बालगीत
गोपाल की चौपाल
(श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष)
लेखक - गोपाल कौशल
माखन मिश्री से भरी थाल
सजा है व्दार और चौपाल ।
आएंगे फोडऩे मटकियां
सखाओं के संग गोपाल ।।
चमक रहा मोती -सा भाल
सारे संकट रहे संभाल ।
आएंगे तोडऩे सारे बंधन
सखाओं के संग गोपाल ।।
प्रेम की बरसती सुरताल
जहाँ विराजते है नंदलाल ।
आएंगे देने गीता उपदेश
सखाओं के संग गोपाल ।।
कंस का बनकर काल
मथुरा को किया खुशहाल ।
आएंगे आज देने आशीष
सखाओं के संग गोपाल ।।
क्या करूँ ?
लेखक – द्रोण साहू
तुम्हें क्या पता पढ़ना सीखने के लिए,
मुझे कहाँ-कहाँ भटकना पड़ रहा है.
एक-एक शब्द को पढ़ने के लिए,
कितनी बार अटकना पड़ रहा है.
मुझे तो पढ़नी है बहुत सी कहानी,
पर वर्ण और मात्रा के ये मेल,
याद दिला रहे हैं, नानी.
क्या करूँ कोई रास्ता दिखाता भी नहीं,
पढ़ते कैसे हैं व्यवस्थित सिखाता भी नहीं.
किसी के कहने पर अब बारहखड़ी में ही,
अपना सिर मुझे पटकना पड़ रहा है.
पढ़ने के लिए क्या -क्या जरूरी है,
कोई यह नहीं बताता,यही तो मजबूरी है.
इसीलिए पढ़ने के इस मकड़जाल में,
अब तक मुझे लटकना पड़ रहा है।
तुम्हें क्या पता.............
एकता का पाठ
लेखिका - जागृति मिश्रा रानी
चुन्नू मुन्नू तुम क्यों लड़ते,
बात बात पर क्यों हो अडते।
बोलो क्या ये बात है अच्छी,
झगड़ा करना बात है सच्ची।
बात बहुत है भले पुरानी,
पर मिलती है सीख सुहानी,
दो भाई थे बस तुम जैसे,
लड़ते थे वो भी तुम जैसे।
मम्मी ने दी लकड़ी दोनों को,
कहा पकड़ तोड़ो कोनों को।
अलग-अलग लकड़ी जब पकड़ी,
झट से तोड़ा जैसे ककडी।
बांधा मम्मी ने अब गट्ठा,
अब तोड़ दिखाओ बोली बच्चा।
तरह-तरह की जुगत लगाई,
लकड़ी फिर भी तोड़ ना पाई।
थक कर दोनों बैठ गए फिर,
मुंह दोनों के ऐंठ गए फिर।
सुनो समझ जाओ तुम बच्चों,
नन्हे-मुन्ने मन के सच्चो।
पाठ एकता का तुम पढ़ लो,
जीवन में अपने यह गढ़ लो।
गटठे को तुम तोड़ ना पाए,
एका रहे तो न कोई हराये।
कविता में व्याकरण
लेखक - मनोज कश्यप
संज्ञा होती है सदा, किसी वस्तु, स्थान, व्यक्ति का नाम ।
यमुना तट पर रास रचाते, जैसे हो घनश्याम ।।
कार्य करे संज्ञा का, वह सर्वनाम कहलाता है ।
किसका कौन कहाँ मैं और तू, यह सब झूठा नाता है ।।
संज्ञा की विशेषता कहते हो, वे गुण या दूषण ।
छोटा मोटा गुणी श्रेष्ठ, कहलाते सभी विशेषण ।।
क्रिया बताती सदा कार्य का होना हो या करना ।
शाम खेलना किन्तु सुबह उठकर है लिखना पढ़ना ।।
जो विशेषता कहे क्रिया की होता क्रिया विशेषण ।
बहुत शीघ्र जाना है हमको, या दो बढ़िया भोजन ।।
जो सम्बंध बताते वह है संबंधों के सूचक ।
राजा का बेटा चाहे उसकी नियुक्ति हो बेशक ।।
वाक्य शब्द जोड़े काटे जो वही समुच्चय बोधक ।
किशन और राम झगड़े, रखी मेज पर पुस्तक ।।
विस्मय हर्ष आवेगों को जो दर्शाते हैं ।
विस्मिय बोधक, हे प्रभु! ओफ! आह! कहलाते है ।
इसीलिए मनोज जी कहते, शब्दो के यह भेद ।
आठ हैं पूरे, गिन कर देखो, शब्दो के यह भेद ।।
मेरे शिक्षक का साथ
लेखक - द्रोणकुमार सार्वा
अबूझ लकीर ही थे वे
कुछ बिंदु सरीखे लगते थे
काले पट्टी में श्वेत चाक
बनकर कुछ चित्र उभरते थे
उंगली को मिला सहारा तब
पीठ में अपनेपन की थाप
कुछ लकीरें वर्ण बन गईं
पाकर मेरे शिक्षक का साथ
गूँगा था तब तलक स्वयँ
मन कोरा था ज्ञान बिना
मां की लोरी का मन्त्र ही था
जिससे शब्दों का अहसास मिला
कुछ भाव मेरे भीतर जागे
पर साहस शिक्षा से आया
परी, कहानी, चन्दा मामा
मुनिया दुनिया खूब दिखाया
मंच दिलाकर और निखारा
ताली का वो पहला हाथ
तुतलाते लफ़्ज़ शब्द बन गए
पाकर मेरे शिक्षक का साथ
कभी सख्त हो दिया डांट
कभी सीख की सरल बात
अनगित लम्हो का दौर याद
सृजनदूत वे शिल्पकार
सीधी-सादी जीवनधारा
पर मन मे थे उच्च विचार
ध्वनि घण्टी पर बंधे नियम
समय बोध कर्तव्य पाठ
सुखद हो गया वर्तमान
पाकर मेरे शिक्षक का साथ....
गिनती
लेखक - सुबोध कुमार फ्रेंकलीन (आशिक़ रायपुरी)
एक - अब न घुटने टेक
दो - यस, यू केन गो
तीन - दादा की मशीन
चार - अब पड़े न तुमको मार
पाँच - साँच को नहीं आँच
छः - बोलो देश की जै
सात - खाओ कभी न मात
आठ - याद करो पाठ
नौ - जलाओ ज्ञान की लौ
दस - काम से न करो बस
मम्मी
लेखिका – कनकलता गेहलोत
मम्मी मेरी आओ ना,
अब तुम देर लगाओ ना,
प्यारी बेटी कहकर मुझको
जल्दी गले लगाओ ना.
मै तो अब भी छोटी हूं,
दिखती थोड़ी मोटी हूं,
सुंदर-सुंदर आंखे मेरी,
तुझ बिन मैं बस रोती हूं.
रोज़-रोज़ जाना तेरा,
मुझको बहुत रुलाता है,
बिन तेरे अब मम्मी मेरी,
मुझको कुछ नहीं भाता है.
छोड़ नौकरी तुम आ जाओ
मम्मी देर लगाओं ना,
मम्मी मेरी आओ ना.