संस्मरण - छोटा वाला D

लेखिका - सेवती चक्रधारी

इस बात को शायद एक महीना हो गया है. मै प्रा.शा. गोढी मे कार्यरत हूं. रोज़ की तरह उस दिन भी मै अपने समय पर कक्षा 5वी मे अंग्रेजी पढ़ाने पहुंची. उस समय मै बच्चो को colours name याद करवा रही थी. मैने बच्चो को लिखकर दिखाने को कहा. काफी बच्चो के दिखाने के बाद खिलेश्वर नाम का लड़का आया उसने अपने अंग्रेजी की 4 लाईन वाली कापी मे लिखा था ReD . मै कहा कि' D 'को छोटा बना. उसने उस 4 लाईन मे लिखी हुई 'D' को मिटाकर तीन लाईन मे लिखा यानि उसकी लम्बाई छोटी कर दी और वापस आया. मैने देखा फिर कहा - बेटा D को छोटा वाला बना. वह वापस गया फिर आया मैने देखा ये क्या? उसने D को दो लाईन मे लिखा था यानि फिर से उसने लम्बाई छोटी कर दी थी. इस बार मैने थोड़ा तेज में कहा - छोटा d बना. वह डर गया और वही खड़े होकर उसने उसे मिटाकर D को एक लाईन मे लिख दिया. यानि फिर से लम्बाई छोटी कर दी. इस बार मुझे बहुत जोर से हॅसी आ गई. आस-पास खड़े बाकी बच्चे भी हॅंस पड़े. फिर मैने उसे कापी मे लिखकर (d) बताया, इस बार वह खुद भी हॅस पड़ा. आज भी जब वह बात याद आती है तो मुझे हॅंसी आ जाती है. तो आप सब ने देखा कि बात स्पष्ट न होने पर क्या हो सकता है. अब इस बात का मै हमेशा ध्यान रखती हूं कि मेरी बात स्पष्ट हो.

संस्मरण - लगन

लेखिका - पद्यमनी साहू

बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री घनश्याम सिंग साहू जी का जन्म दुर्ग जिले के एक छोटे से गाँव में हुआ था. बालक घनश्याम बाल्यकाल से ही कुशाग्र बुध्दि के थे. वह अपनी माता पिता की सबसे छोटे सन्तान थे.

बात उन दोनों की है जब बालक घनश्याम कक्षा 6वी में अध्ययन रत थे. उनके बड़े भाई हारमोनियम वादन की शिक्षा ले रहे थे. मास्टर जी घर में आते और उन्हें हारमोनियम सिखाते. बालक घनश्याम उन्हें बहुत रुचि लेते हुये देखा करते.

उन्हें भी हारमोनियम बजाने की बड़ी इच्छा होती. मास्टर जी उन्हें यह कह कर रोक देते की तुम अभी बहुत छोटे हो. प्रतिदिन भाई के अभ्यास करने के बाद बालक घनश्याम हारमोनियम निकाल कर स्वयं से अभ्यास करने लगा.

बालक घनश्याम के भाई ने कुछ समय के बाद अभ्यास करना छोड़ दिया. किन्तु घनश्याम ने अभ्यास जारी रखा. फिर क्या था वह बालक खुद से धुन बनाने लगा. कुछ ही समय मे वह बहुत अच्छा हारमोनियम वादक बन गया.

अपने गाँव में ही मित्र मानस मण्डली की बुनियाद रखी. गाँव के कुछ युवकों को संगीत सिखाया. विगत 35 वर्षों से उनकी मण्डली अनवरत कार्यशील है. वर्तमान में श्री घनश्याम सिंग जी दुर्ग भिलाई राजनादगांव इलाके में अच्छे हारमोनियम वादक के साथ साथ बहुत अच्छे गायक ढोलक वादक राम चरित मानस के व्यख्याकार, मंच संचालक एवं गीत कविता व कहानीकार के रूप में जाने जाते हैं.

वह होनहार लगनशील बालक अब कई लोगो को निःशुल्क हारमोनियम वादन की शिक्षा प्रदान कर रहे हैं. हारमोनियम वादन की लुप्त होती कला को फिर से नव जीवन प्रदान कर रहे हैं.

किसी भी कार्य को करने की लगन व प्रबल इक्छा शक्ति यदि मन में है तो हम भी वह कर सकते है जो बालक घनश्याम व एकलव्य ने कर दिखाया.

संस्मरण - अंजान प्रकृति प्रेम-अंजान प्रकृति सेवा

लेखक -इन्द्रभान सिंह कंवर

रोज सवेरे प्रातः 9:20 को जब मैं विद्यालय का गेट खोलने के लिये उसकी चौखट पर चढ़ता हूं, मुझसे पहले मेरे नन्हें-मुन्हें बच्चों का झुंड गेट पर खड़ा हो जाता है. जैसे ही गेट खुलता है, वे सभी उस ओर दौड़ते जहाँ बरामदे में पौधों पर पानी डालने के लिये प्लास्टिक के डिब्बे रखे होते हैं. फ़िर जो तेज पहुंचता डिब्बा उसका. उसको लेकर वह सीधे हैंडपम्प, नल की ओर दौड़ते और पानी भरकर सीधे अपने व्दारा रोपित पौधे के पास जाकर लग जाते हैं उसकी सेवा में उसके आस-पास की सफ़ाई में सुन्दरता में.

यही कार्य उनका रहता लघु और दीर्घ अवकाश के समय मना करने पर भी नही मानते. सभी शिक्षक धूप देखकर चिंतित रहते कि इतनी धूप में ये बच्चे क्या कर रहे हैं? मगर उन्हें धूप की चिन्ता कहाँ. उन्होने तो इसे एक दैनिक जीवन के खेल में सम्मिलित कर लिया है.

उनके व्दारा रोपित कुछ पौधे अब उन बच्चों से बड़े हो चुके हैं. कुछ तो छाया देने लगे हैं और कुछ फलने-फूलने लगे हैं. जिनके नीचे वे सब बच्चे आनंद के साथ खेलते हैं, प्रतिदिन अपने छोटे -छोटे हाथों से मिट्टी का चारो तरफ़ घेरा बनाते उसको चिकना करते, और उस पर पानी डालते इस क्रिया को एक खेल बना लिया है. वे बच्चे इस बात से अंजान हैं कि वे किस तरह से प्रकृति की सेवा में लीन हैं, किस प्रकार वे अपना भविष्य सुरक्षित करने की राह पर अग्रसर हैं.

वे सब इन बातों से अंजान हैं पर मैं नही, मैं प्रतिदिन उनकी इन गतिविधियों पर नजर रखता हूँ, उनके पास जाकर उनको उत्साहित करता हूँ, उनकी फोटो खींचता हूँ, जिससे वे खुश होते हैं. उनके इस अंजान प्रकृति प्रेम और प्रकृति सेवा को देखकर गर्व महसूस होता है.

आज मेरे शाला प्रांगण में 200 से 300 पौधे हैं ,जिनमें कुछ तो बड़े होकर छाया भी देने लगे हैं. जिससे शाला का वातावरण भी सुन्दर और सुसज्जित लग रहा है. यह सब कुछ मेरे इन नन्हे-मुन्हे अंजान प्रकृति प्रेमी, प्रकृति सेवी बच्चों की सेवा का प्रतिफल है. मेरे प्यारे बच्चों आज तुम सब अंजान हो लेकिन कल जब तुम्हें पता चलेगा तब तुम लोगों को भी अपने -आप पर गर्व होगा जैसा की आज मुझे हो रहा है तुम लोगो की इस प्रकृति सेवा को देखकर.

पेड़ लगाओ - सेवा करो -और खुद का जीवन सुरक्षित करो.

Visitor No. : 6701656
Site Developed and Hosted by Alok Shukla