पर्यावरण,परम्परा अउ माटी बर परेम ले उपजे आजादी बर आदिवासी संघर्ष

लेखक - द्रोणकुमार सार्वा

कतको दिन के अंधियारी रात ल चिरत आजादी के सुरुज ह हमर देश म नव बिहान लाइस. लइका - सियान, हिन्दू - मुसलमान सबो जात धरम के साँझर मिझर कर्ज ले आजादी के सिरजन होइस. मनखे के मन म गुलामी के भाव ऊन ल हिनहर माने अउ उकर ऊपर जुलुम के होए के सेती होइस हाबे. उनकर मन के इही हिनहर भाव ह जुरिया के आजादी बर नवा सिरजन गढीस अउ फिरंगी मन ल हमर माटी ले भगाइस.

ए बात सिरतोन म सही हावे सिक्छा ले मनके के भीतर सुराज के भाव ल जनम लेथय. फेर के बात ल घला नई झुठला सकय के मनखे के अन्तस् के आरो ह ओला सुराज बर साव चेत करथे. सिरतोन खुद के नीत अउ रीत ह टी स्वाधीनता आय.

अइसन त 1857 ल हमर देश म सुराज के पहिली संगराम मानथे फेर आदिम जनमन के भुइया बस्तर म गुलामी के बिरोध के भाव कतकोन पहिली के हवय. 1795 म अंग्रेज जे बी ब्लंट के बस्तर आये के बिरोध ले हो गए रहिस. बस्तर के आदिवासी मन भला भौतिक सुख सुविधा म पछुवाये रहिस फेर अपन सुवाभिमान बार मरे मिटे ल जानय. उनला अपन सन्सकीरीति, परब, सभ्यता अउ परियावरण के परेम रहिस. उकर हित अउ पिरित म उ मन अपन अंतस के अभिमान ल जोड़ के देखय. 1824 म नारायणपुर के परलकोट म जमीदार गैंद सिंह ह कैप्टन पेबे के जुलुम के विरोध म संघर्ष करत अपन परान गवां दीन. वोमन आजादी बर मिटगे. वोला परथम शहीद घला मानथय. धावड़ा पेड़ के डंगाली ल परतीक के रूप म पूजा घला कर उन ल आदिवासी समाज याद करथय.

आदिवासी समाज अपन माटी ले मया करय तभे अपन रीत परब के रख़्वार के रूप म पहचान बनाईन. 1842 ले 1963 में मेरिया मारिया विद्रोह म हिड़मा मांझी ले अगुवाई म दंतेवाड़ा म अपन देवी पूजा के विधि विधान अउ नरबलि के विरोध होए के सेती उकर आहत भाव ह आंग्ल मराठा शासन के विरोध म खड़ा होइस.

बस्तर के आदिवासी म जुर मिलके रहिस उकर इहि जुडा व ह उनला मजबूत करिस. राजा ले वोमन मया करय त गलत कर विरोध घला. जिहा राज के भलाई म पराण दे ल जान य उहे गलत ल घला नई छोड़य. 1876 के मुरिया विद्रोह राज बार कुनित अउ षड्यंत्र के बिरोध म झाड़ा सिरहा के रूप म नवा नायक ल आगू लाथय जेन मुरिया आदिवासी के विद्रोह जुलुम के खिलाफ अपन संगी मन संग मिल के लड़ीं. आदिवासी समाज आज आमा के डारा के रूप म एला प्रतीक रुप म सुरता करथय.

वनवासी भला जंगल ले परेम नई करहि एसनहा नई होवय. उनकर पराण ले बढ़के उनकर माटी ह हो थय. अपन सुख दुख के रुख राई जीव जिनावर संग बाँट थय अउ उकर पीरा म संग देखय. 1859 म नागुल दोरहा के कोई विद्रोह ह उकर इही भाव ल देखाथय. साल के पेड़ के काटे के विरोध म एक पेड़ म एक मुड़ी लगाके अपन प्राण के आहुति दे दीन. अंग्रेज सेना अउ ठेकेदार ले लडिन अउ ठेकेदारी प्रथा के अंत होइस.

एक अउ एक मिल गियारा होथे ए आदिवासी मन के एकता ल देख कहे जा सकत रहिस. परब, पूजा या परकृति के माध्यम ले हो अपन संगठन ले विरोधी मन ल पस्त कर देवय. पूरा बस्तर राज म आदिवासी संगराम के महानायक गुण्डाधुर के रुद्रप्रताप के शाशन काल म 1910 म होवय भूमकाल आंदोलन एकर पहिचान आय. जेमा केप्टनमेयर के दमन के सेती आदिवासी मन एक ले दूसर हाथ मिलाके अपन पहिचान बताइन.

सिरतोन जब मनखे के अन्तस् के आरो ल रोके जे उदिम होही, उकर धरम रीत के सङ्गे संग जिनगी के उछाह ल रोके के उदिम आय गुलामी अउ अपन मिलजुल के रहिके अपन माटी, परब के सन्मान करत अन्तस् के आरो ल उभारन त उही ह सुराज के आवाज बन्थय.

लेख - मस्ती के फुहार - होली के तिहार

(होली विशेष)

महेन्द्र देवांगन 'माटी'

होली हे भई होली हे , बुरा न मानों होली हे ।

होली के नाम सुनते साठ मन में एक उमंग अउ खुशी छा जाथे। काबर होली के तिहार ह घर में बइठ के मनाय के नोहे। ए तिहार ह पारा मोहल्ला अउ गांव भरके मिलके मनाय के तिहार हरे।

कब मनाथे ------ होली के तिहार ल फागुन महीना के पुन्नी के दिन मनाय जाथे।

एकर पहिली बसंत पंचमी के दिन से होली के लकड़ी सकेले के शुरु कर देथे। लइका मन ह सुक्खा लकड़ी ल धीरे धीरे करके सकेलत रहिथे।

लकड़ी छेना चोराय के परंपरा------- पहिली जमाना में लकड़ी छेना के दुकाल नइ रिहिसे त चोरा के होली में डारे के परंपरा रिहिसे। हमन नान नान राहन त गांव में दूसर के घर या बियारा कोठार से चुपचाप छेना या लकड़ी ल चोरा के लानन अउ होली में डार देवन । होली में डारे लकड़ी ल कोनों नइ निकाल सके। काबर ओहा होलिका ल समरपित हो जथे।

अब मंहगाई के जमाना में ए सब परंपरा ह नंदागे। अब तो होलीच के दिन लकड़ी , छेना ल लानथे अउ होली जलाथे।

फाग गीत के परंपरा ----------- होली के पंदरा दिन पहिली गांव के चौराहा मन में सब कोई सकलाके नंगाड़ा बजाथे अऊ फाग गीत गाथे। कई जगा फाग गीत अउ राहेस नाचे के प्रतियोगिता भी होथे।

होली कइसे जलाथे --------- होली ल कोनों भी आदमी नइ जला देवे। एला महराज मन ह पूजा पाठ करके शुभ मुहुरुत देखके रात में जलाय जाथे। पहिली एकर बिधि बिधान से पूजा करे जाथे ओकर बाद चकमक पथरा से पोनी या पैरा में जलाके होली ल जलाय जाथे। ओकर बाद सब एक दूसर से गला मिलके बधाई अउ शुभकामनाा देथे।

हुड़दंग करे के गलत परंपरा ----------- होली एक पवित्र तिहार हरे। एहा बुराई से अच्छाई के जीत के तिहार हरे। फेर कतको सरारती लइका मन ह एला गलत ढंग से मनाथे। होली में हुड़दंग करके एकर रुप ल बिगाड़ देहे। कतको झन ह नसा पानी करके बहुत हुड़दंग करथे अऊ अंडबंड गारी बकत रहिथे। काकरो उपर केरवस, चीखला, गाड़ा के चीट अऊ गोबर ल घलो चुपर देथे। कोनों के मुड़ में अंडा ल फोर देथे त कोनों उपर केमिकल वाला रंग लगा देथे।

एकर से कतको झन ह लड़ई झगरा घलो हो जाथे।

वइसे धीरे धीरे ए परंपरा ह कम होवत जावत हे फिर भी सुधारे के बहुत जरुरत हे।

होली ल परेम से एक दूसर के उपर रंग गुलाल लगाके अऊ गला मिलके मनाना चाहिए।

आशीर्वाद ले के परंपरा ---------- होली जलथे ताहन सब आदमी अपन अपन घर से पांच ठन छेना ,एक मूठा चांउर अऊ नरियर धरके होली जगा जाथे अऊ पूजा पाठ करके होलिका में समरपित करके आसीरबाद लेथे।

होली के राख ल एक दूसर के माथ में लगाथे अउ शुभकामना देथे। कतको झन ह राख ल लान के अपन घर में छितथे ताकि बुरी नजर से बचे रहे।

होली के काहनी --------- एक झन हिरण्यकश्यप नाम के बहुतेच दुष्ट अउ पापी राजा रिहिसे। वोहा भगवान ल न तो मानत रिहिसे न दूसर ल मानन देत रिहिसे। ओकर राज में कोनों भगवान के नाम नइ ले सकत रिहिसे। सबले बड़े मेंहा हरों काहे।

ओकर एक झन बेटा प्रहलाद ह भगवान के बहुत भक्त रिहिसे। ओहा हर समय भगवान के नाम लेवत रहय । राजा ह कइ प्रकार से ओला समझाइस, फेर प्रहलाद ह मानबे नइ करीस। राजा ह वोला पहाड़ से फेंकवा दीस, हाथी से दबवा दीस अऊ कई प्रकार के उपाय करीस तभो ले प्रहलाद ह मरबे नइ करीस । अंत में राजा ह अपन बहिनी होलिका से आगी में जलाय ल कहिथे। होलिका ल वरदान मिले रहिथे के वोहा आगी में कभू नइ जले। तब होलिका ह प्रहलाद ल गोदी में धरके आगी में बइठ गे । अपन शक्ति के गलत उपयोग करे के कारन होलिका आगी में जलगे अउ प्रहलाद ह बांच के निकल गे।

ओकरे याद में ए तिहार ल मनाय जाथे।

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