अभिनंदन

लेखक - वेद प्रकाश शुक्ला

अ - अदम्य साहस का परिचय दे,
भारत का सीना फूला दिया।
भि - भिड़ा मिग21 एफ16,
पापीस्तान को रुला दिया।।

न -- नजर मिला दुश्मन से,
उसी के घर में दहाड़ा है।

न - न्योछावर समूचा देश तुम पे,
क्या वीर योद्धा हमने पाया है।।

द - दमकाकर माँ का चेहरा,
गर्वित हमें किया है तुमने।

न - न जाने कितनी वेदना,
पाक में सह लिया है तुमने।।

कहती है दादी

लेखक - बलदाऊ राम साहू

चटर-पटर मत खाना भैया,
यह बतलाती हैं दादी।

खटर-पटर मत करना भैया
यह समझाती हैं दादी।

इधर-उधर मत जाना भैया,
यह सिखलाती हैं दादी।

पटर-पटर मत कहना भैया
यह गुर सिखाती हैं दादी।

मन में रखना नेक इरादे
हरदम समझतीं हैं दादी।

काश ऐसा होता

लेखक - नेमीचंद साहू

अमीर और गरीब में,
दर्द का बंटवारा होता !
दुनिया में इतना सुंदर,
आश्चर्य भरा नजारा होता !

घर का इकलौता बेटा,
मॉ-बाप का सहारा होता !
बेटी हो या बेटा हो,
सभी को पुकारा होता !

गुरू के लिए चेला भी,
ऑखो का तारा होता !
आदर और सम्मान भरा
मंजिल का किनारा होता !

परिवार में भाई-भाई,
एक-दूसरे का वारा होता !
अपनत्व भाईचारे का,
मिल बहे नदी का धारा होता !

छोटा होता अरमान तो,
कम में ही गुजारा होता !
बड़े बनने की न चाह,
कितना प्यारा न्यारा होता !

प्रकृति से कर लगाव,
जीव सबको प्यारा होता !
पेड़ लगाये एक-एक,
लक्ष्य ऐसा हमारा होता !

शॉति अमन का फूल खिले,
काश ऐसा दुबारा होता !
मीठे बोल आचरण से,
हर कोई दुलारा होता !

कर्म होगा तब महान,
यदि मन को मारा होता !
बनता वही इंसान जो,
जीतकर हारा होता !!

गुड़िया की होली (सार छंद)

लेखिका - प्रिया देवांगन 'प्रियू'

छमछम करती गुड़िया रानी,
घर आँगन मे आई ।
अपने हाथो रंगे लेकर,
सबको खूब लगाई ।।

हाथो मे पिचकारी लेकर,
दादी को भीगाई ।
दौड़ दौड़ कर गुड़िया रानी,
सब को रंग लगाई ।।

मम्मी ने पकवान बनाई,
पापा भांग मिलाये ।
बच्चे बूढ़े सभी जनों ने,
झूम झूम कर गाये ।।

चलो हम अपना कर्तव्य निभायें

तृप्ति शर्मा

आज चलो हम देशभक्ति का पाठ पढ़ायें
सोए हुए हृदयों में स्नेह और करूणा का जल भर आये
कोई ना लूटे किसी का सुख चैन
आपस में भाईचारे का बांध इतना मजबूत बनाये
चलो हम अपना कर्तव्य निभाये
कोई भ्रष्टाचारी ना पैदा हो
ऐसा बीज नन्हे मुन्नों के मन में रोप आयें
वसुंधरा की पवित्रता को कायम रखने के लिये
हम अपने नवनिहालो को स्वच्छता का अर्थ समझायें
चलो हम अपना कर्तव्य निभायें
देश की बाहरी सीमा हो या भीतरी मैदान
हर जगह देशभक्ति का दीप जलायें
अपने विद्यार्थियों को सेना का त्याग समझायें
सब बच्चो के मन में ऐसी लहर बहायें
हर कोई लेकर दौड़े शमशीर
जब देश पर संकट आये
चलो हम अपना कर्तव्य निभायें

छुट्टी छुट्टी

लेखि‍का - कविता चौबे

बस्ते की छुट्टी करवाने,
देखो छुट्टी आयी जी,
पढ़ाई लिखाई का भूत भगाने,
देखो छुट्टी आयी जी,

जाने कितने पाठ, पहाड़े,
हम तो रट रट कर ही हारे,
जहाँ भी देखो,कापी पुस्तक,
जाएं कहाँ फिर हम बेचारे,

अब तो मस्ती खूब करेंगे,
खाएंगे दूध मलाई जी,
बच्चों का दुःख दूर भगाने,
देखो छुट्टी आयी जी,

दोपहरी कंचे खेलेंगे,
कच्ची पक्की अमिया तोड़ेंगे,
खट्टी खट्टी इमली के लाटे,
चुन्नू मुन्नू मिलकर गटकेंगे,

ठंडी ठंडी कुल्फी मलाई,
लेकर छुट्टी आयी जी,
मास्टर जी से कह दो जाकर,
अब तो छुट्टी आयी जी।

जंगल की होली

लेखक - षड प्रकाश किरण कटेन्द्र

मुन्नू खरगोश ने बनाई टोली
खेलेंगे सब मिलकर होली
फूल पलाश का लाया भालू
रंग बनाई हिरणी शालू
कोयल रानी गीत बनाई
सबको उसने खुब नचाई
बब्बन बंदर लाया गुलाल
बजा नगाड़ा हुआ धमाल
सभी ने खेली खुब होली
मिले गले प्यार की बोली
राजा शेर ने दी बधाई
रहो मिलकर न करो बुराई

जीवन इसका नाम ( सरसी छंद)

लेखक - महेन्द्र देवांगन माटी

जीवन को तुम जीना सीखो, किस्मत को मत कोस ।
खुद बढकर तुम आगे आओ, और दिलाओ जोश ।।

सुख दुख दोनों रहते जीवन, हिम्मत कभी न हार ।
आगे आओ अपने दम पर, होगी जय जयकार ।।

सिक्के के दो पहलू होते, सुख दुख दोनों साथ ।
कभी गमों के आँसू बहते, कभी खुशी हैं हाथ ।।

राह कठिन पर आगे बढ़ जा, मंजिल मिले जरूर ।
वापस कभी न होना साथी, होकर के मजबूर ।।

अर्जुन जैसे लक्ष्य साध लो , बन जायेगा काम ।
हार न मानो कभी राह में, जीवन इसका नाम ।।

जीवन एक गणित है प्यारे, आड़े तिरछे खेल ।
गुणा भाग से काम निकलता, होता है तब मेल ।।

हँसकर के अब जीना सीखो, छोड़ो रहना मौन ।
माटी का जीवन है प्यारे, यहाँ रहेगा कौन ?

दृश्य अनोखा

लेखक - बलदाऊ राम साहू

बंदर चला रंग-पिचकारी लाने,
भालू लगा है धूम मचाने
हिरणी बना रही थी व्यन्जन
हाथी बैठा, छककर खाने।

गदहा सुर साध रहा था
कोयल लगी गीत सुनाने,
चंदा मामा जल्दी आओ
नन्ही गिलहरी गा रही तराने।

बब्बर शेर लगा कर आसन
रौब जमाता, करता शासन
पीकर मदिरा का वह प्याला
आया वह ठुमका लगाने।

लोमड़ी, चीता, जेब्रा आये
एक दूसरे को गले लगाये
गीदड़ दौड़कर गया गुफा में
जो रूठे थे, उन्हें मनाने।

होली का है दृश्य अनोखा
या फिर है आँखों का धोखा
छोटे-बड़े का भेद नहीं है
सब बैठे हैं फाग सुनाने।

परीक्षा की तैयारी ( सार छंद)

लेखक - महेन्द्र देवांगन माटी

प्रश्न सभी तुम हल कर डालो, अच्छे नंबर पाओ ।
करो परीक्षा की तैयारी , अव्वल नंबर आओ ।।

पढ़कर जाओ प्रश्न सभी को, लिखकर पूरा आओ ।
कर लो अब उपयोग समय का, व्यर्थ नहीं गंवाओ ।।

उठ जाओ जल्दी सोकर के, आलस को अब त्यागो ।
लक्ष्य अगर हासिल करना है, झटपट जल्दी जागो ।।

अर्जुन जैसा लक्ष्य रखो तुम, अचुक निशान लगाओ ।
करो परीक्षा की तैयारी, अव्वल नंबर आओ ।।

घबराना मत प्रश्न देखकर, शांति पूर्वक विचारो।
समाधान चुटकी में होगा, जीवन फिर सँवारों ।।

तांक झांक मत करना बच्चों, अपने आप बनाओ ।
मिल जायेगी मंजिल तुमको, जग में नाम कमाओ ।।

नाम करो सब मातु पिता का, सच्चे पूत कहाओ ।
करो परीक्षा की तैयारी, अव्वल नंबर आओ ।।

देखो मत मुड़कर पीछे अब, आगे बढ़ते जाओ ।
नाम परीक्षा का लेकर के, कभी नहीं घबराओ ।।

कंटक पथ पर आगे बढ़कर, तुम पद चिन्ह बनाओ ।
इस माटी का कण कण पावन, माथे तिलक लगाओ ।।

भूलो मत संस्कार कभी भी, चरणों शीश झुकाओ ।
करो परीक्षा की तैयारी, अव्वल नंबर आओ ।।

परीक्षा

लेखक - गोपाल कौशल

खुशी-खुशी दो तुम परीक्षा
एक उत्सव हैं हर परीक्षा ।
हंसते-हंसते करों पर्चा हल
मत करों तुम कोई चिंता ।।

मित्रों पाई जो हमनें शिक्षा
बस चलें हम उसी दिशा ।
गुरुजनों ने सिखाया पाठ
प्रश्नों का उत्तर मोती सरीखा ।।

प्रतिभा का आईना है परीक्षा
सिखाती जीने का सलीखा ।
तुम भी प्रतिभा दिखला दो
बनों तुम गांधी-कलाम सरीखा ।।

पापा मुझको सैर करा दो

लेखक - अरविन्द वैष्णव

पापा मुझको सैर करा दो
अपना गांव मुझे घुमा दो
बस कहते हो प्यारा गांव
बरगद की वह छाँव बता दो

गिल्ली डंडा क्या होता है
क्या होता है गेड़ी चढ़ना
नंगे पाँव खेत में चलना
पापा मुझको भी सिखला दो

खपरा छानी किसको कहते
कच्चे घर में कैसे रहते
गोबर से छेनो का बनना
पापा हमको भी बतला दो

फरा मुठिया और अंगाकर
मुझको भी खिलाओ न
पापा मुंह मे पानी आये
कोचई जिमि कांदा बनवाओ न

अखबारों में रोज ही छपता
नरवा, गरवा, घुरवा, बारी
पापा ये सब क्या होता है
मुझको भी तो यह दिखला दो

बच्चे की बातें सुन सुन
पापा लगे पलक झपकाने
बैलगाड़ी मे तुझे घुमाउँ
छत्तीसगढ़ के ओ दीवाने

प्रकृति गान

लेखक देवानंद साहू(पावनेय)

नीले नीले आसमान में
पिला सूरज आया है,
खुद जागा है सबसे पहले
फिर वो हमें जगाया है।

पेड़ो की पत्ती को देखो
हरा भरा मन भाया है,
रंग बिरंगे फूल खिले है
क्यारी को महकाया है।

पक्षी गाते सुंदर गाना
सरगम नया बनाया है,
हवा बहाते शुद्ध तरु ये
मौसम बड़ा सुहाया है।

मिट्टी है अनमोल यहाँ की
पानी गंगा माया है,
चंदन सी है धूल यहां की
माथे से इसे लगाया है।

फागुन गीत

लेखिका - स्नेहलता 'स्नेह'

गीतों की महफिल सजी हुई है
नदी नाला झरनें गीत गा रहे
फागुन की रुत जी आ गयी है
नभ धरा चाँदनी में नहा रहे

1.हरी-हरी घासों पे ओस के मोती
चलो नंगे पैर बढ़े नैनों की ज्योति
जग सारा स्नेह लगन से भरा रहे

नदी नाला--------
गीतों की महफिल-------

2. टेंसू दहकता रस टपके बौर से
राधा को देखे कान्हा जी गौर से
झूला पे बासुँरी बजा रहे है

नदी नाला -------
गीतों की महफिल-------

3.मन में उमंग है तन में तरंग
रंग सराबोर हुई यमुना औ गंग
राजा रंक मिल होली मना रहे

नदी नाला-------
गीतों की महफिल

4.बजती डफली झांझ मतवाली
साजन उड़ेल रहे रंग भरी थाली
भेष विविध बालक बना रहे

नदी नाला-------
गीतों की महफिल ------

5.गुझिया सुहाली मठरी समोसा
दही बड़ा चटपटा तीखा भकोसा
पकवान थाल सब सजा रहे हैं

नदी नाला-----
गीतों की महफिल-----

6.कर तीनों लोक अपने खिलाते
स्वांग रचकर श्याम सबको रिझाते
लीला नवीन हमें दिखा रहे हैं

नदी नाला-----
गीतों की महफिल-----

7. राग द्वेष मिटाने का संदेश देता
बदले में फागुन कुछ भी न लेता
भक्त पह्लाद पाठ सिखा रहे है

नदी नाला----
गीतों की महफिल---

भगत सिंह

लेखक - द्रोणकुमार सार्वा

इस हिन्द की धरा के थे शान भगत सिंह
माँ भारती के लाल नौजवान भगत सिंह
लालयपुरा के बंगा ने दी बचपन की खुशियां
विद्यावती-किशन के रहे जान भगत सिंह

जलियांवाला बाग की वेदना बसाके मन में
चिंगारी बनी शोला ये संधान भगतसिंह
पंजाब की धरा से बन गर्जना दहाड़े
भारत के हर युवा के अभिमान भगत सिंह

थी आरजू इक मन में हो आजाद मेरी माता
कर दी जवानी अर्पित ले अरमान भगत सिंह
हँसते हुए भी फाँसी पे चढ़कर दिखाया जग को
भारत के लिए हो गए बलिदान भगत सिंह

भारत मां के सपूत

लेखक - डीजेन्द्र क़ुर्रे 'कोहिनूर'

(1)
तिलक लगाकर चल, भाल सजाकर चल
माटी मेरे देश की, कफ़न लगाकर चल
देश में वीर योध्दाज जन्मे, मच गई खलबल
भारत मां के सपूत है ,आगे चल आगे चल

(2)
भगत, चंद्रशेखर, सुखदेव थे क्रांतिकारी दल
अंग्रेजो के नाक में दम, कर रखा था हरपल
देश आजादी पाने के लिए,बना लिए दलबल
भारत मां के सपूत है,आगे चल आगे चल

(3)
नारी जगत की शान ने, मचाया कोलाहल
ऐसी वीरांगना लक्ष्मीबाई को याद करेंगे हरपल
मातृभूमि के लिए, जब कुर्बानी दी थी ओ पल
भारत मां के सपूत है, आगे चल आगे चल

(4)
लाल बाल पाल क्रांतिकारी, ये थे गरम दल
साइमन कमीशन वापस जाओ, किया हल्ला बोल
वीर लाला लाजपत राय ने गवांई प्राण ओ पल
भारत मां के सपूत है, आगे चल आगे चल

मेरा नाम दीपक है

लेखक - दीपक साहू कक्षा सातवीं

मेरा नाम दीपक है
शिक्षा का दीप जलाता हूं
जो बच्चा स्कूल नहीं आता
उसके घर शिक्षादूत बनकर जाता हूं
समाझाता हूं उसे और उसे माता पिता को
स्कूल का महत्व समझाता हूं
बात समझकर मेरी वो
भेज देते मेरे साथ
देकर मेरे हाथें में हाथ
उसको शाला लेकर आता हूं
शाला लाकर उसको
मैं भी खुश हो जाता हूं

मेरी मां

लेखिका - पुष्पाै नायक

ईश्वर की अपार शक्ति
मेरी सांसों की शुरुआत
मेरे हृदय कर आवाज़
जीवन के सारे दर्द की दवा है जो,
वो है मेरी मां.

नौ माह कोख में भार सहे जो,
अपनी पीड़ा भूल सबका ख्याल रखे
अपनो के लिये अपना सब कुछ कुर्बान करे जो
वो है मेरी मां

हर कदम पर प्रेरणा की स्रोत बनी जो
मायूस हो जब वापस आऊं
तो और बेहतर होने की आस जगाए
खुद भूखी रहकर सबको तृप्ति दिलाये
जिन्दगी के हर पग पर मेरी ढ़ाल बने जो
वो है मेरी मां

मेरे आत्मविश्वास को प्रबल बनाए
बेसहारा हुए तो सबल बनाए
मेरे अस्तित्व की शुरुआत है
और अंत तक जिसका आशीर्वाद है
वो है मेरी मां

रँगीली होली

लेखक - द्रोणकुमार सार्वा

होली लाये प्रेम का,सन्देशा जन मन भरे
हर्षित मन झूमें, लगे मधुमास हो
धरती के सारे रंग,भाव बन सजे ऐसे
जैसे इस बार होली,अपनी ही खास हो..

लाल लगे माथे,शौर्य का प्रतीक बन
पौरुष पराक्रम ,विजय श्री भाल हो
केसरिया त्याग का सन्देशा,जग जन को दे
संयम वैराग्य तप,अपने ये ढाल हो
धरती की अंगड़ाई,हरे की हरियाली फैले
लहराये तृण-तृण,वसुधा का साज हो...

विद्या का प्रकाश फैल,तिमिर अशिक्षा का हरे
चहुँओर ज्ञान पीले, रंग का पैगाम हो
नीले सज पुरुषार्थ,मान बढ़ जाये
विश्व गुरु फिर अपना, हिंदुस्तान हो.....

श्वेत सजे मन की ,पवित्रता का भाव लेके
चहुँओर शांति,स्वच्छता सद्भाव हो
रंग सारे मिल जाये,दूर हो विषमताएं
विश्वशांति,सद्भाव का,पूरा अब अरमान हो.....

हम वीर सिपाही भारत के

लेखिका - अणिमा उपाध्याय

नहीं है खौफ इस समन्दर से
मुझे है प्यार जमीं से खंजर से
हवा का रुख भी बदल मैं सकता हूं
दिल में छुपा के तिरंगा रखता हूँ
मैं हूं सैनिक मां का अदना सा
उसके कदमों में मस्तक झुका के रखता हूँ।
नहीं है प्यार मुझे युद्घ या तबाही से
प्यारी है जिंदगी जो खुदा से हमने पाई है
लेकिन जीवन का मोह मै छोड़ देता हूं
वतन पे मिटने का प्रण जब मैं लेता हूं
देश की आवाम चैन से सोएगी
वीरों में गिनती तभी तो होएगी
हमें हर वक़्त सतर्क रहना होगा
जागना है, हमें ना सोना होगा
प्यार करते हैं उन्हें जो दिल लगाते हैं
भून देते हैं उन्हें जो दहशत फैलाते हैं
नहीं दुशमन को कभी चैन से सोने देंगे
बिठा के घुटनों पे उन्हे मजबूर कर देंगे
उन्हें गर प्यार की भाषा समझ ना आती है
हमें भी युध्द भेरी बजानी आती है
हम हैं हिन्दोस्ताँ के वीर सिपाही सब
दुश्मनों की ईंट से ईंट बजानी आती है
पल भी हिचकेंगे ना, ये जां निसार कर देंगे
तेरी गोदी में सर अपना रख देंगे
चले जायेंगे जीभर सोने को
तेरी गोदी में नींद गहरी आती है.....

होली

-1-

लेखक - बलदाऊ राम साहू

आओ मिलकर बात करें हम होली में।
रंगों की बरसात करें हम होली में।

धोएँ मन का मैल, हास - परिहास करें,
बिन मतलब दूसरों का न उपहास करें।

ज़ज्बातों का मान करें हम होली में।
आओ मिलकर बात करें हम होली में।

जुम्मन अलगू गले मिलें औ' प्यार करें,
आपस में ना झगड़े , ना तक़रार करें।

सद्भाव की लिखें इबादत हम होली में,
आओ मिलकर बात करें हम होली में।

अलग -अलग हों फूल, गंध अलग हों,
चाहे सब गीत, लय और छंद अलग हो।

भावों का बस, मिलाप करें हम होली में,
आओ मिलकर बात करें हम होली में।

-2-

लेखक - बलदाऊ राम साहू

खेलो - कूदो, नाचो - गाओ होरी मा।
मस्ती के सब रंग लगाओ होरी मा।

जिनगी मा कतको दुख-पीरा आथे जी
उन सब ला झट तुम बिसराओ होरी मा।

कब तक धरे रहिहु तुम जुन्ना बात इहाँ,
नवा - नवा बिचार जगाओ होरी मा।

जात-धरम के झगरा-झंझट ला छोड़व,
बने पियार ले गला लगाओ होरी मा।

दुखिया मन के मन मा उछाह छा जाही
ऊँकरो दुख ला होरी बारौ होरी मा।

-3-

लेखक - गिरधर राम साहू

टीवी, मोबाइल छोड़ के पढाई, लिखाई में रंग जाना है
नये-नये सोपान गढ़े बर, ग्यान दीप जलाना है
चलत-चलागन पुरखा मन के, रास फाग रचाना है
होली छेके के चक्कर में, प्राण नहीं गवाना है
काम,क्रोध, मद,मोह के संग, बैर भाव भी मिटाना है
प्रेम सद्भाव के मीठास, आपस में बढाना है
नये-नये सोपान गढ़े बर, ग्यान दीप जलाना है
पेड़-पौधा बचाना है, पानी भी कम बहाना है
प्राकृतिक रंग-गुलाल लगाना है
जात-पात, छोटे-बड़े, ऊँच-नीच, के भाव भूल जाना है
फूहड़ता से सबको बचाना है, अच्छा संस्कृति-संस्कार अपनाना है
खुशियो की सौगात दे जाना है
नये-नये सोपान गढ़े बर, ग्यान दीप जलाना है
गंदगी की होली जलाना है, स्वच्छता की अलख जगाना है
देश के खातिर अभिनंदन, जैसे शौर्य दिखाना है
पुलवामा के अमर शहीदो का, मान हमें बढाना है
मतदाताओ को जागरूक कर, अच्छा सरकार बनाना है
देश के झण्डा ऊँचा करे बर, अपन फर्ज निभाना है
रंग, गुलाल, पिचकारी के संग, होली अच्छा मनाना है
नये-नये सोपान गढ़े बर, ग्यान दीप जलाना है

-4-

लेखक - अरविन्द वैष्णव

बसंत बहार की अदाएं,
धूमिल हो रही गाथायें
होली का त्यौहार पर
मिलकर मनाओ जी ।
जात पात सब भूलकर
भेदभाव सब छोड़कर
सबसे गले मिलकर
भाईचारा बढ़ाओ जी ।
दिल मे उत्साह भर
रंगों से सरोबार हो
अपनेपन के भाव से
खुद को भी रंगाओ जी।
बुराई का संग छोड़
पलाश का फूल तोड़
फागुन के गीत गा
नशे से खुद को बचाओ जी ।

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