जाड़ भागत हे
लेखिका - प्रिया देवांगन 'प्रियू'
जाड़ ह भागत हे जी,
गरमी के दिन आगे।
स्वेटर साल ल रखदे,
कुछु ओढे ल नइ लागे।
कुलर पंखा निकाल,
रांय रांय के दिन आगे।
घाम ह अब्बड़ बाढ़गे,
गरम गरम हावा लागे।
आमा अब्बड़ फरे हे,
लइका मन सब मोहागे।
चोरा चोरा के खावत लइका,
ओली म धर के भागे।
दाई ददा के गोठ
लेखक-बलराम नेताम
दाई दादा के गोठ ल, सुनथो जी
मने मन गुनथो जी,
हमर सियान मन के, सीखनी ए जी
दाई ददा के सुघ्घर, बानी ए जी,
दाई कहिथे पढ़ई लिखई, तोर किसानी ए जी
ददा कहिथें एहि तोर संग, संगवारी मितानी ए जी,
बेटा बने पढ ले, एहि तोर जिनगानी ऐ जी,
दाई ददा के गोठ ला सुनथो जी
मने मन गुन थो जी,
बिन पढ़ई के जिनगी अंधियार हो जाहि जी
बने पढबे त उजियार हो जाहि जी,
ददा कहिथें मोर राज दुलरुवा
दाई कहिथें सोन चिरैय्या के फूल,
छः साल के होंगे बेटा अब जाना है स्कूल।
दाई ददा के गोठ ला सुनथो जी
मने मन गुनथो जी
मने मन गुनथो जी।।
फागुन आवत हे
लेखक - द्रोणकुमार सार्वा
हरियर हे रुख-राई,जस धरती के कोरा
नवा-नवा फूल फुले ,फुलवारी के शोभा
आमा ह मउरे जस, धरती के मउर हे
कोयली ह गावत हे,अमर इया ठउर में
महुआ के मतौना सोन्द,सब ल मतावत हे
घुंघरू कस चना बाजे, सरसो पिवरावत हे
लागत हे मोला, रँगरेली फागुन आवत हे।।
धरती म उड़त हे, रंग अउ गुलाल ह
गुंजत हे चारों मुड़ा, नगाडा के ताल ह
गदरत हे मगन मन,मन मंजूर नाचत हे
लइका सियान सबो, मिलके फ़ाग गावत हे
डोकरा के अगोरा म,डोकरी मन मन मुचकावत हे।
लागत हे मोला रँगरेली.....
भउजी के चिक्कन गाल,हरियर पिवरी दिखत हे
भैया ह माते हे, भांग ल पियत हे
चुरहि ठेठरी खुरमी,बरा चौसेला
लइका मन मगन होगे, पिचकारी के ठेला
चेलिक मोटियारी मन,मने-मन लजावत हे।
लागत हे संगी मोला.....
कान्हा के पिचकारी म, राधा ह रंग जाहि
मया के गुलाल,कान्हा बर सज जाहि
गली-गली डंडा नाचा म,सब झन जुरियाही
होली के राख आसन,मनके मइल जर जाहि
कंगला अउ बड़हर,सबो झन अनचिन्हारी हे
मनखे ले मनखे के, भेद मिटावट हे।
लागत हे संगी....
बसंत ऋतु
लेखिका - प्रिया देवांगन 'प्रियू'
आगे बसंत ऋतु ह संगी
सबके मन ह डोलत हे
पेड़ में बइठे कोयल ह
कुहु कुहु कहिके बोलत हे
बाग बगीचा हरियर दिखत
सुघ्घर फूल ह फूलत हे
पेड़ म बांधे हावय झूला
लइका मन ह झूलत हे
मउर धरे हे आमा में
महर महर ममहावत हे
फूल फूले हे फूलवारी में
सबके मन ल भावत हे
हवा चलत हे अब्बड़ संगी
डारा मन ह झूमत हे
खेत खार ह हरियर दिखत
लइका मन ह घूमत हे
चना मटर के दिन आये हे
लइका मन ह जावत हे
खेत म नइहे कोनो जी
चोरा चोरा के खावत हे
बालिका शिक्षा
लेखिका - गिरजा ध्रुव
पापा के लाड़ली रानी
मत कर तै कोनो नादानी
अनपढ़ रहिबे त कहिबे
अबला नारी
सास ससुर केतको
सुनबे तै गारी
पढ़ लिख के बन जा
तै झांसी के रानी
स्कूाल जा के देख
पुस्तंक हावे आनी बानी
धर ले तै कलम
रूपी तलवार
नई सहना हे तोला
कोनो अत्या चार
तोर उम्मीाद म टिके हे
दुनिया सारी
तै भारत के
बेटी प्यारी
भाजी-भाजी-भाजी
लेखक चितेश्वभर प्रसाद वर्मा
छत्तीसगढ़ के भाजी गभइया
आनी बानी मैं बखावन
तरिया नरवा खेतीखार
घुरवा परिया ले लानव
कइसे विटामिन येमा भरे हे
खाके सब्बो जानौब
पटवा, अमारी, नुनियाभाजी
कोचई जिमिकांदा
बोहार भाजी मुंह चटकारे अम्मगट डार के रांधा
खेड़हा सुनसुनिया खोटनीभाजी
छार नन सुघ्घनर रांधा
लसून गोदली के फोरन देके
अउ परोसी ल बांटा
मुनगा मखना बरबट्टी भाजी
चरोटा ल दवाई लाना
दारभात के पाचन सुंदर
ये महिमा जानौ
लाली करेला पालक भाजी
चेच पकड़ी रोपा
कुरमा कुकरीपोटा भइया
पीपर खुड़मुड़ी चोखा
माँ
लेखक - देवानंद साहू
माँ पुण्य तीर्थ जस पावन हे
माँ जिनगी में मनभावन हे
माँ अड़हा के समझवन हे
प्यासे धरती के सावन हे
माँ जिनगी के हरयाली हे
नई ते उजड़े जंगल खाली हे
माँ जिनगी के वनमाली हे
धाने के सोनहा बाली हे
माँ हमर देवता खोली हे
माथा के चंदन रोली हे
माँ मीठा गुरतुर बोली हे
जिनगी के हंसी ठिठोली हे
माँ सुग्घर अकथ कहानी हे
सुक्खा धरती बर पानी हे
माँ हे ते भागमानी हे
नइ कोनो एकर सानी हे
माँ मावस के अंजोरी हे
घर के धनहा तिजोरी हे
माँ सब लइका के लोरी हे
माँ पंछी सुघर चकोरी हे
माँ हिन्दू के पुराण हे
माँ मुस्लिम के कुरान हे
माँ गंगा के स्नान हे
माँ जम्मो स्तुतिगान हे
मोर सुग्घर गॉव
लेखक - नेमीचंद साहू
लिम पीपर के छइंहा जेमा
सियनहा मन के चौपाल हे !
सुग्घर नित नियाव करइया
चैतू मंगलू अउ गोपाल हे !!
सोनहा मोर धान के बाली
भररी अउ कछार हे !
बिरबिट करिया कन्हारमाटी
जेकर महिमा अपार हे !!
मोटहा चउंर के बासी ह,
अउ कड.ही गुरतुर मिठाथे!
कॉदा अमारीभाजी दार म
खेडहा अम्मट म सुहाथे !!
डोकरी दाई के लोरी सुग्घर
डोकरा बबा के सियानी हे !
माई--पिला सबो नाचे झूमे
अइसन गॉव के कहानी हे !!
पनिहारिन के कनिहा मटके
रेंगय बॉहें ल जोरे--जोरे !
मोटियारी मन बारी म
लुगरा म भाजी ल टोरे !!
ठेठरी सुहारी खुरमी मुठिया
किसम किसम ले पकवानहे!
होरी देवारी तीजा अउ पोरा
आदर अउ सनमान हे !!
सुवारथ के नइहे पुछइया
अउ नइहे कोनो मीठलबरा!
सुमत के रद्दा म रेंगय
नइ राहय खंचवा-डबरा !!
दाइ-ददा के सेवा करइया
अइसन हमर मितान हे !
धरती दाई के कोरा म
बइठे सिधवा किसान हे !!
गॉव गली के चिखला माटी
जिहॉ किसन अउ राम हे !
घर-घर होवत रमायन गीता
कोरी--कोरी परनाम हे !!
कोलकी कोलकी म बिराजे
अउ रूख राई के डार म !
आशीष देवइया देबी देवता
बइठे शीतला तरिया पार म!!
लाटा
लेखक ‘ संतोष कुमार साहू (प्रकृति)
चलव लाटा बनाबोन, चलव चांट के खाबोन।
हो बाबु होय चाहे नोनी, हो सचिन होय चाहे धोनी।।
१
अमली फर ल टोर के सुघ्घर,सील लोडहा म दताबोन।
नून मिरचा अऊ धनिया संग म, कस के ओला ठठाबोन।।
बांस काडी म चटकाके, टुहूं सब ला देखाबोन।।
२
पेरा फुटू खोज के सुघ्घर , पनपुरवा चमकाबोन।
नून मिरचा अऊ धनिया संग म,केरा पान लोटाबोन ।
अंगरा भीतरी चुरो के ओला, जरत ले घलो डबकाबोन ।।
३
उलहवा उलहवा आमा घलो ल, पिसी चटनी बनाबोन ।
बासी संग म चीख चीख के, दुई दिन ले ओला खाबोन।।
डोकरी दाई डोकरा बबा ल, थोरेच किन दे आबोन।।
४
बोइर कुट के मुठिया बनाके, मन बरहा चमकाबोन।
गुठलू कुचर के चिरौंजी ल सुघ्घर, तेल म फोर के खबोन।
चिरपोटी के अम्मट रस ल, चुचर चुचर के खाबोन।।
चलव लाटा बनाबोन, चलव चांट के खाबोन।
हो बाबु होय चाहे नोनी, हो सचिन होय चाहे धोनी।।
सुघ्घर गोठ
लेखक - नेमीचंद साहू गुल्लूं
आवव सबो मिल जुरके
सुघ्घर बगिया ल सजाबो
नवा-नवा पेड़ लगाके
हरियाली ल बगराबो
कोना-कोना के सफई
गंदगी ल दुरिहा भगाबोन
गली-गली म परचार कर
सबोझन ल बताबोन
नइ राखन मन म भरम
ऑगनबाडी़ म जाबोन
पोसन अहार दलिया ल
लइका ल दूध पियाबोन
जिनगी के सुघ्घर अधार ए
नान्हे--नान्हे लइकामन
इसकुल म दाखिला कराके
गढ़बो जिनगी ल हमन
किसानी के करबोन बुता
नवा तकनीक अपनाबो
डोकरी डोकरा के सेवा कर
दुलरवा लइका कहाबो
सुरूज-चंदा कस बरबो
नाव ल उज्जर कराबोन
करम हमर पूजा हरय
जग म एला बताबोन
मइनखे अन मइनखे के
धरम के झंडा फहिराबो
चिरइ-चिरगुन ल घलो
दया के ओनहा पहिराबो
बरोबर के भाव लऱखबो
सबो ल गले लगाबोन
अइसन गॉव-सहर बनाके
छत्तीसगढिया कहाबोन
अरजी-विनतीहे सबो ले
ए बात म विचार करव
सुमत के रद्दा म चलके
अउ मन म एला धरव