प्रस्तावना

हिन्दी हमारी राजभाषा है और राष्ट्रभाषा भी है. हम सभी हिन्दी पर गर्व करते हैं. फिर भी सचाई यह है कि हिन्दी बोलने वाले भी हिन्दी साहित्य की संपन्नता, प्रचुरता और विवधिता से पूरी तरह परिचित नहीं हैं. हिन्दी के विकास और हिन्दी साहित्य के इतिहास पर बहुत से विव्दतापूर्ण ग्रंथ लिखे गये हैं. परन्तु ऐसी पुस्तकें आसानी से उपलब्ध नहीं हैं जिनके माध्यम से लोग आम बोलचाल की भाषा में हिन्दी साहित्य की महान रचनाओं से परिचित हो सकें. मैं तो विज्ञान का विद्यार्थी रहा हूं और साहित्य के ज्ञान से पूरी तरह अछूता हूं, परंतु हिंदी साहित्य का प्रेम मुझे मेरी मां से विरासत में मिला है. बचपन में शाम के सयम घर के आंगन में खाना बनाते हुए मां अक्सर हिंदी साहित्य की सुंदर रचनाएं हम बच्चों को सुनाया करती थीं. इससे साहित्य के रसास्वादन की आदत हम सभी भाई-बहनों को पड़ गई. कुछ बड़ा होने पर मैने रायपुर के विवेकानंद आश्रम के पुस्तकालय से पुस्तकें लेकर पढ़ना प्रारंभ किया, और बहुत से साहित्यिक ग्रंथ पढ़ डाले. इन ग्रंथों को पढ़ने से एक बात मेरी अल्प बुध्दि में यह आई कि साहित्य की माला के मोतियों की एक प्रारंभिक झलक दिखाना साहित्य में रुचि विकसित करने के लिये आवश्ययक है. यह पुस्तक न तो इन महान साहित्यिक कृतियों की समालोचना है और न ही इसमें उनके रस आंलकार भेद आदि का विस्त्रत अध्ययन है. इस पुस्तक का उद्देश्य केवल इतना ही है कि पाठक को हिन्दी के प्राचीन कवियों के महान कृतित्व की एक झलक मिल सके जिससे वे साहित्य के महासागर में गोता लगाने के लिये उतावले हो जायें.

हमारे देश में भाषा को अक्सर धर्म के साथ जोड़कर देखा गया है. इन महान कवियों की रचनाओं को पढ़कर यह भ्रांति पूरी तरह दूर हो जाती है कि हिन्दी किसी धर्म अथवा संप्रदाय की भाषा है. सचाई तो यह है कि हिन्दी के माध्यम से धर्मों और संप्रदायों में एकता और मित्रता का भाव उत्पन्न हुआ है. जहां रसखान कृष्ण भक्ति के गीत गाते हों, जायसी ने पद्मावत लिखी हो और कबीर एक साथ हिन्दुओं तथा मुसलमानों के अंधविश्वासों पर प्रहार करते हों वहां हिन्दी को किसी धर्म या संप्रदाय की भाषा कैसे कहा जा सकता है. हिन्दी के महान कवियों की रचनाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि हिन्दी भारत की भाषा है, किसी धर्म की नहीं.

एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि अन्य भाषाओं का हिन्दी के विकास में बड़ा योगदान रहा है. हिन्दी के कवियों की भाषा में बृज भाषा और अवधी के साथ-साथ, फारसी, तुर्की आदि के शब्द भी बड़ी सहजता से पिरोये गये हैं. रहीम की कुछ रचनाओं में तो छंदों का पहला भाग फारसी और दूसरा संस्कृत में है. अमीर खुसरो ने अपनी कुछ रचनाओं में एक वाक्य फारसी तथा दूसरा वाक्य हिन्दी में लिखा है. इससे हमें कम से कम इतनी सीख तो मिलती ही है कि हिन्दी का किसी भी भाषा से कोई झगड़ा नहीं है. हिन्दी सभी भाषाओं से अच्छी बाते ग्रहण करती रही है और यही इस महान भाषा की शक्ति है.

वर्तमान समय में बड़े अच्छे साहित्य का सृजन हो रहा है, परन्तु साधारण जन हिन्दी के प्रचीन साहित्य को भूलते जा रहे हैं. इसीलिये इस पुस्तक में मैने केवल प्राचीन कवियों एवं उनकी महान रचनाओं के संबंध में लिखा है. इसमें मूल रूप से आदिकाल और भक्ति‍काल की रचनाओं का समावेश है. इन रचनाओं और कवियों के संबंध में जानकारी मैने अंतरजाल पर उपलब्ध बहुत से ब्लागों और वेबसाइटों से एकत्रित की है. विशेष रूप से हिन्दी विकीपीडिया, भारत ज्ञान कोष, रेख्ता, कविता कोष आदि का मैं बहुत आभारी हूं, क्योंकि इन वेबसाइटों से न केवल मुझे इन कवियों के संबंध में विस्त्रत जानकारी मिली और उनकी रचनाओं का मूल पाठ मिला, बल्कि बहुत सी कठिन रचानाओं के भावार्थ समझने में भी मदद मिली.

जिन प्राचीन कवियों की रचनाओं का समावेश इस पुस्तक में किया गया है, वे भारत की अंतरात्मा में रचे-बसे हैं. इनके लिखे भजन, दोहे, गीत, कव्वाली और गज़ल भारत के लोक संगीत की आत्मा हैं. इन्हें शास्त्रीय गायकों ने भी बहुत खूबसूरती से गाया और यह शास्त्रीय नृत्य और नाटक आदि के विषय भी रहे हैं. इनका पूरा रसास्वानदन इन्हें पढ़ने मात्र से नहीं किया जा सकता. मैंने यू-ट्यूब पर उपलब्ध संसाधनों को इस पुस्तक में कवियों की रचनाओं के साथ लिंक कर दिया है, जिससे आप इन गीतों को सुनकर और नृत्य आदि को देखकर इनका पूरा आनंद प्राप्त कर सकें. पुस्तक के ई-प्रकाशन का इतना लाभ तो लिया ही जा सकता है. मैने प्रयास किया है कि अंतरजाल के इन संसाधनों से प्राप्त‍ ज्ञान का वर्णन मैं अपने शब्दों में तथा अपनी समझ के अनुसार कर सकूं. यह पुस्तक यदि कुछ लोगों को भी इन महान कवियों की रचनाओं का अध्ययन करने के लिये और हिन्दी के प्राचीन साहित्य का रसास्वादन करने के लिये प्रेरित कर सकी तो मैं अपने आप को सफल मानूंगा.

आलोक शुक्ला

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