पंचतंत्र
नटखट बंदर
लेखिका – पुष्पा शुक्ला
मीरा के घर के पास ही नीम का एक पेड़ था. बन्दर का एक छोटा सा बच्चा पेड़ की डाल पर इधर-उधर कूद रहा था. मीरा के कमरे की खिडकी बिलकुल पेड़ के पास ही थी. मीरा खिडकी खोलकर पढ़ रही थी. उसकी दादी ने केले लाकर दिए और कहा – “मीरा पहले केले खा लो फिर पढाई करना.” मीरा ने कहा – “जी दादी.” मीरा ने केला छीलना शुरू किया ही था कि बन्दर का बच्चा झट से आया और मीरा के हाथ से केला छीनकर भागा. अचानक मीरा को ज़ोर की छींक आ गई. मीरा जोर से छींकी – “आ......छी.”
बन्दर के बच्चे ने ऐसी आवाज कभी नहीं सुनी थी. वह डर गया. उसके हाथ से केला छूटकर गिर गया. वह वापस पेड़ पर जा बैठा. मीरा यह देखकर हँसने लगी – “हा.. हा... हा...” तभी दादी ने कहा – “मीरा, जब भी छींक आए हमें मुँह पर रुमाल रखकर छींकना चाहिए. इससे बीमारियों के फैलने से बचाव होता है.” मीरा ने कहा – “अच्छा दादी, हमेशा मैं अब छींक आते ही मुंह पर रुमाल रखूंगी.” दादी ने कहा – “तुम अच्छी लड़की हो.” फिर मीरा ने कहा – “दादी, हम एक केला बंदर को भी दे दें?” दादी ने कहा – “हाँ, ज़रूर दे दो.” मीरा ने केला खिडकी पर रख दिया. बन्दर का बच्चा केला देखकर डरते-डरते आया और उसे उठाकर जल्दी से पेड़ पर बैठकर खाने लगा. दादी और मीरा यह देखकर हँसने लगीं.