नन्हीं तितली डोल रही थी ,
फूलों को वो तोल रही थी ।
रंग बिरंगे फूलों से वो,
हंस के नाता जोड़ रही थी ॥
थोड़ा सा मैं रस पी लूँगी,
पंख पराग से भर लूँगी ।
दूजे फूलों पे जाकर मैं,
यह पराग कण उनको दूंगी ॥
इठलाते पौधे भी उसको,
अपने पास बुलाते होंगे ।
अपने बीजों को तितली से,
चहुं ओर बिखराते होंगे ॥
कैसी अदभुत क्रीड़ा करते,
रंग प्रकृति में हैं भरते ।
लाते हैं मुस्कान लबों पर ,
छोटे से यह कीट पतंगे ॥