लेख

समाज की वास्तविक वास्तुकार

रचनाकार- प्रियंका सौरभ, हरियाणा

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महिलाएँ एक सशक्त शब्द है. यह आकर्षक है क्योंकि यह प्यार, देखभाल, पोषण, दायित्वों, जिम्मेदारियों, शक्ति, मातृत्व आदि को दर्शाता है. नारी समाज का दर्पण है. जब उसे हाशिये पर धकेल दिया जाता है, तो उस पर अत्याचार किया जाता है; यदि इसे पाला जाता है, तो समाज को पाला जाता है; यदि इसे मजबूत किया जाता है, तो यह सशक्त होता है. वह संस्कृति और रीति-रिवाजों को बनाए रखती है और उन्हें सामने लाती है. वह वह है जो अपने पति और उसके परिवार की परवाह करती है. दूसरे शब्दों में, वह समाज में सब कुछ बनाती है. एक महिला (माँ) उसकी संतान होती है, पहली शिक्षक; वह अपने बच्चों का प्यार से इलाज करने वाली पहली डॉक्टर हैं. वह अपने बच्चों को पढ़ाने वाली पहली शिक्षिका हैं, अपने बच्चों के साथ खेल खेलने वाली पहली साथी हैं. अपने बच्चे के विकास में उसका कार्य बहुत बड़ा है.

हमारे समाज में कई सालों से महिलाओं को पुरुषों से कमतर समझा जाता रहा है. इस प्रकार की हीनता के कारण उन्हें अपने जीवन में विभिन्न मुद्दों और समस्याओं का सामना करना पड़ता है. खुद को पुरुषों के बराबर साबित करने के लिए उन्हें पुरुषों से ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है. मध्य युग में लोग महिलाओं को विनाश की कुंजी मानते थे, इसलिए उन्होंने कभी भी महिलाओं को पुरुषों की तरह बाहर जाने और सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति नहीं दी. फिर भी आधुनिक युग में महिलाओं को अपने दैनिक जीवन में कई सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है और अपना करियर स्थापित करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है. कई माता-पिता केवल लड़का पैदा करना पसंद करते हैं और केवल लड़कों को ही शिक्षा देने की अनुमति देते हैं. उनके लिए महिलाएँ परिवार को खुश और स्वस्थ रखने का माध्यम मात्र हैं.

एक महिला को समाज में अधिक उपहास की दृष्टि से देखा जाता है और यदि वह प्रेम विवाह या अंतरजातीय प्रेम विवाह में शामिल होती है तो उसे ऑनर किलिंग का खतरा अधिक होता है. महिलाओं को पुरुषों की तुलना में स्वायत्तता, घर से बाहर गतिशीलता, सामाजिक स्वतंत्रता आदि तक समान पहुँच नहीं है. महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली कुछ समस्याएँ उनकी घरेलू जिम्मेदारियों और सांस्कृतिक और सामाजिक निर्दिष्ट भूमिकाओं के कारण हैं.

भारत सरकार ने लैंगिक समानता और सभी महिलाओं और लड़कियों की आर्थिक स्वतंत्रता को आगे बढ़ाने के लिए हाल के वर्षों में कई नई नीतियाँ और सुधार लागू किए हैं. महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए, कुछ प्रमुख पहलों में 22 करोड़ महिलाओं के लिए जन धन खाते बनाना और उन्हें मुद्रा योजना के तहत कम ब्याज पर ऋण प्रदान करना शामिल है. बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ पहल शिक्षा के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने के उद्देश्य से शुरू की गई थी.

जनसंख्या की आवश्यकताओं के प्रति जिम्मेदार और उत्तरदायी निष्पक्ष, सस्ती और उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच प्राप्त करने का लक्ष्य राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का प्राथमिक फोकस है. महिलाओं को सशस्त्र सेवाओं में स्थायी कमीशन प्रदान करना और मातृत्व अवकाश की अवधि 12 से बढ़ाकर 26 सप्ताह करना सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए अनुकूल माहौल को बढ़ावा देता है और एक सक्षम वातावरण स्थापित करता है. बलात्कार को रोकने के लिए बनाए गए कानूनों को भी और अधिक सख्त बनाया जा रहा है. इसके अलावा, उज्ज्वला कार्यक्रम, स्वाधार गृह कार्यक्रम और महिला शक्ति केंद्र उन मुद्दों से निपटने के लिए केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई नीतियों और कार्यक्रमों के कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण हैं जिनका महिलाओं को आम तौर पर सामना करना पड़ता है. ये उन नीतियों और कार्यक्रमों के कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण हैं जिन्हें लागू किया गया है. देश में महिलाओं के व्यापक सशक्तिकरण की गारंटी के लिए, सरकार, व्यापारिक समुदाय, गैर-लाभकारी संस्था और आम जनता सभी को मिलकर काम करना चाहिए. जन आंदोलन और जन भागीदारी के माध्यम से सामूहिक व्यवहार परिवर्तन भी आवश्यक है.

हमारा समाज कहता है, पृथ्वी पर सबसे मूल्यवान 'स्त्रियाँ' हैं. आइए इस धरती पर हर महिला को सलाम करें. 'महिलाएं समाज की वास्तविक वास्तुकार हैं, वे जो चाहें वह बना सकती हैं.' 'एक महिला क्या चाहती है'? - समय, देखभाल और बिना शर्त प्यार, आदि. इस धरती पर प्रत्येक महिला गरिमा, संस्कृति और सम्मान का प्रतीक है. नारी के बिना यह संसार सूना और अंधा है. महिलाएँ समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. निजी जीवन में महिला की भागीदारी काफी प्रभावशाली है. कई समाज घरों और समुदायों में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को नजरअंदाज करते हैं. महिलाओं के अवैतनिक श्रम को अक्सर न तो महत्व दिया जाता है और न ही जीडीपी में शामिल किया जाता है, जो अक्सर अनदेखा और गैर-मान्यता प्राप्त रहता है. अब यह पहचानने का समय आ गया है कि उनकी भूमिका और योगदान कितने महत्वपूर्ण हैं. आइए सुनिश्चित करें कि दोनों लिंग एक-दूसरे को भागीदार के रूप में देखें.

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माता-पिता को हर ख़ुशी दें

रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

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भारत की मिट्टी में ही संस्कार हैं, भारत में संस्कार, भाव, आस्था, परोपकार की जैसी भावना है, वह हमें कहीं और दिखाई नहीं देती. हर भारतवासी स्वभाविक ही इन भावों से ओतप्रोत हो जाता है. यूँ तो संस्कारों की माला में बहुत से मोती हैं पर हम आज उसके एक मोती माता-पिता के सम्मान की बात उठाते हैं. दुनिया में सबसे अनमोल एक रिश्ता है जिससे कोई भी अछूता नहीं है. ऐसा रिश्ता जो अपना है,जिसमें कोई धोखा नहीं है,जिसमें स्वार्थ के लिये कोई स्थान नहींं है,जिसमें परायेपन की तो परछाई तक नहीं है,और वो रिश्ता है-माता-पिता का अपनी संतान से. य़ह एक ऐसा रिश्ता है जो दिल से जुडा होता है. भारत में इस रिश्ते का बहुत मान सम्मान है. माता-पिता पर एक श्लोक है कि सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमय: पिता.

मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत्..

अर्थात: माता सर्वतीर्थ मयी और पिता सम्पूर्ण देवताओं का स्वरूप हैं इसलिए सभी प्रकार से यत्नपूर्वक माता-पिता का पूजन करना चाहिए. जो माता-पिता की प्रदक्षिणा करता है, उसके द्वारा सातों द्वीपों से युक्त पृथ्वी की परिक्रमा हो जाती है. माता-पिता अपनी संतान के लिए जो क्लेश सहन करते हैं, उसके बदले पुत्र यदि सौ वर्ष माता-पिता की सेवा करे, तब भी वह इनसे उऋण नहीं हो सकता.

अगर हम पहले की बात करें तो सबसे सटीक उदाहरण हम श्रवण कुमार का दे सकते हैं परंतु यह समय का चक्र है जो घूमता रहता है. समय कैसे बदल जाता है पता ही नहीं चलता. आज के बदलते परिवेश मे श्रवण कुमार बमुश्किल मिलेंगे. आज समय के हिसाब से पुत्र में भी काफी बदलाव आया है,अब पहले वाली बात नहीं रह गयी. एक बच्चे के लिये माता-पिता का रहना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है,जितना महत्व एक पौधे को पालने मे माली करता है, उतनी ही जिम्मेदारी एक बच्चे को पालने में निभानी पड़ती है. वह माली जो लकड़ी का सहारा देकर ,पानी ,खाद आदि से सिंचित करके पौधे को वृक्ष बनाता है.उसी प्रकार माता-पिता भी नन्हे से बच्चे को अनेक कष्ट झेलते हुए युवक बनाते हैं. माता-पिता के अथक प्रयास की बदौलत ही एक बच्चा सफलता के मार्ग पर चलते हुए एक बड़ा इंसान बनता है. इसीलिये माता-पिता को बच्चों का प्राथमिक विद्यालय कहते है. क्योंकि हर बच्चा पैदा होते ही स्कूल नही जाता. घर पर पहली सीख माँ और पिता ही देते हैं. आज लोग भूलते जा रहे हैं कि मनुष्य को पहला निस्वार्थ और सच्चा प्यार सिर्फ अपने माँ-बाप से मिला है. माता-पिता ने हमें जिंदगी देने के लिए कितनी कठिनाइयों का सामना किया इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता. इसीलिए माता-पिता से हमेशा प्यार करे उनकी सेवा करे, माता-पिता की सेवा करना मतलब ईश्वर को राज़ी करना. हालाँकि इस बदलते परिवेश में भी हम सभी एक बात महसूस करते हैं कि बेटे की अपेक्षा बेटी की माता-पिता के प्रति भाव, लगाव, आस्था, अधिक होती है और स्वाभाविक रूप से उसके परिवेश में माता-पिता के भी बेटी में भाव अपेक्षाकृत अधिक होते है फिर भी बेटा बेटी दोनों माता-पिता की आँखों के दो तारे होते हैं और दोनों आँखों को समान भाव देना मनुष्य की कुदरती प्रवृत्ति है अतः हर बेटे बेटी को चाहिए माता-पिता का भरपूर सम्मान करें. हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि, हमने माता-पिता की ऊँगली थाम के चलना सीखा और उनकी मेहनत से पले. आज हम जो कुछ भी हैं हमारे माता-पिता की वजह से हैं. माता-पिता के त्याग और बलिदान का कर्ज हम अपनी जान देकर भी नहीं चुका सकते. इस दुनिया में माँ की ममता का कोई मोल नहीं है और पिता की मोहब्बत का कोई जोड़ नहीं है. आज हम जब बड़े हो गए है तो हमारा क़र्त्तव्य बनता है की हम अपने माता-पिता की सेवा करें, उनसे ऊँची आवाज में बात न करें, कोई भी काम शुरू करने से पहले उनसे सलाह लें, उनका सम्मान करें और अपने माता-पिता का कभी दिल न दुखाएँ. माता- पिता अपने बच्चों के लिए अपनी हर चीज कुर्बान कर देते है. लेकिन आज माता-पिता की अहमियत कम होती जा रही है. जिस बेटे की लाइफ बनाने में माता-पिता की जिंदगी गूजर जाती है आज उसी बेटे के लिए शादी के बाद माँ-बाप पराये हो जाते हैं. वे माता-पिता के त्याग और बलिदान को भूल रहे है. इस धरती पर हमारे माता-पिता ही साक्षात ईश्वर रूपी अंश हैं. माता-पिता की सेवा करना ईश्वर की आराधना का दूसरा नाम है. आज माता-पिता को गंगाजल नहीं, केवल नल के जल की जरूरत है. यदि हम समय पर उनकी प्यास बुझा सके तो इसी धरती पर स्वर्ग है. जिनके माता-पिता जिंदा है वे दुनिया के सबसे अमीर और संपन्न लोगहै. माता- पिता ईश्वर का दूसरा रूप होते हैं. अगर आपके माता-पिता आपसे खुश हैं तो समझो ईश्वर खुश है. जिस घर में माता-पिता की इज्जत नहीं होती, उस घर में बरकत नहीं होती है. माता-पिता की दुआ आपको मिल गयी समझो आपकी जिंदगी सँवर गयी, माता-पिता को आखिरी साँस तक खुश रखें और उन्हें हर वो सुख दे जो वो अपनी ज़िन्दगी में न पा सके, उनके हर एक सपने को पूरा करें.आज माता-पिता की कद्र उस व्यक्ति से पूछिए जिनके माता-पिता इस दुनिया में नहीं है सब के आँसू झलकेंगे और विपरीत अपवाद कुछ ही लोग होंगे अतः माता-पिता में ही ईश्वर समाया है, गुरु समाया है, उनकी सेवा करने से सौ गुना अधिक पुण्य फल भी प्राप्त होता है.

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मेरा स्कूल

रचनाकार- Emmanuel Jiwan, Class-8, School - Swami atmanand Sheikh Gaffar government English medium School Tarbhar

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मैं स्वामी आत्मानंद शासकीय इंग्लिश मीडियम स्कूल तारबहार में पढ़ता हूं. यह बहुत अच्छा स्कूल है, यहां बुनियादी ढांचा और पढ़ाई दोनों बहुत अच्छी हैं, यहां कक्षा 1 से 12 तक के छात्र शिक्षा प्राप्त करते हैं. मेरा स्कूल बिलासपुर का अच्छा स्कूल माना जाता है. यहां हमें न केवल पारंपरिक तरीके से शिक्षा मिलती है, बल्कि हाई टीच एजुकेशन भी मिलती है. इसका मतलब है कि आधुनिक चलन का पालन करते हुए हम सभी छात्र यहां प्रौद्योगिकी आधारित शिक्षा प्राप्त करते हैं, हम न केवल अपने पाठ्यक्रम का ज्ञान प्राप्त करते हैं, बल्कि प्रौद्योगिकी का भी ज्ञान प्राप्त करते हैं, इस प्रकार हम कह सकते हैं कि यहां हम अपने भविष्य में आने वाली किसी भी चुनौती का सामना करने में सक्षम हो रहे हैं.

मेरा स्कूल बहुत विशाल है, सभी कक्षाओं के लिए बहुत सारे कमरे हैं, दो इंटरेक्टिव बोर्ड हैं जिनके माध्यम से हम अपनी पढ़ाई बहुत दिलचस्प तरीके से कर रहे हैं, हमारे अभ्यास और कुशल बनाने के लिए बहुत सारे कंप्यूटर हैं.

वहाँ एक बड़ा खेल का मैदान है जहाँ हम खेल, खेल, स्काउट और गाइड आदि जैसी कई पाठ्यचर्या संबंधी गतिविधियाँ करते हैं, इस प्रकार हम कह सकते हैं कि यह विद्यालय छात्रों के केंद्र में समग्र रूप से विकसित है. मुझे अपना स्कूल बहुत पसंद है और मैं उससे बहुत प्यार करता हूँ

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स्वच्छ भारत

रचनाकार- अर्पिता साहू, सातवीं, स्वामी आत्मानंद शेख गफ्फार अंग्रेजी माध्यम स्कूल तार बाहर बिलासपुर

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हमारे भारत देश को हम स्वच्छ कैसे कर सकते हैं:-
1) हमारे घर के आस-पास गली - मोहल्ला को साफ - सफाई का ध्यान रखना चाहिए.
2) सभी गली - मोहल्लों में एक- एक कूड़ा दान पेटी रखना चाहिए जिसे गंदगी नहीं फैलेगी.
3) हमें प्लास्टिक का उपयोग नहीं करना चाहिए.
4) देश की सार्वजनिक एवं शासकीय स्थानों को स्वच्छ बनाए रखना चाहिए.
5) हमें केवल कचरा पेटी में ही डालना चाहिए.
6) प्रत्येक व्यक्तियों को शौचालय का उपयोग करना चाहिए.
7) स्वस्थ भारत के लिए स्वच्छ भारत बनाना जरूरी है.
8) 2 अक्टूबर 2014 के नरेंद्र मोदी जी ने एक राष्ट्रव्यापी सफाई के रूप में प्रारंभ किया था.

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यह मेरा गाँव है

रचनाकार- हरीश कुमार देवांगन, कोण्डागांव

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मुझे मेरा गाँव बहुत अच्छा लगता है, क्योंकि यहाँ चारों ओर हरियाली है और मौसम हमेशा खुशनुमा बना रहता है. यहाँ छोटे-छोटे पहाड़ों से घिरा हुआ घास का छोटा सा मैदान है. हर वर्ष बारिश के मौसम में घास लहलहाने लगती है. गाँव के सभी लोगों के साथ मेरे माता -पिता भी पशुओं के लिये हरा चारा काटने सुबह-सुबह आ जाते हैं. मेरी उम्र अभी स्कूल जाने की नहीं हुई है इसलिये मैं भी अपने माता-पिता के साथ यहाँ आ जाता हूँ. पक्षी हरे भरे पेडों पर बैठकर हरियाली का आनंद उठाते हुए चहचहाने लगते हैं. इन्हें देखकर मैं भी आनंद से झूमने लगता हूँ. पक्षियों को उन्मुक्त आसमान में विचरण करते हुए देखना मुझे बहुत पसंद है. बरसात के मौसम में मोर भी हरियाली को देखकर बहुत खुश हैं. गाँव के सभी पुरूष व महिलाएँ हरा चारा काटने में व्यस्त हैं. हमारे गाँव में ही पिछले वर्ष धान बेचने से हुए लाभ से एक किसान ने ट्रैक्टर खरीदा है जिसके उपयोग से हरे चारे को घास के मैदान से गाँव के घरों तक पहुँचाया जाता है. जिससे गाँव के लोगों के समय तथा मेहनत दोनों की बचत हो जाती है. अब हमारे खेतों तक आवागमन का पूर्ण साधन है जिससे ट्रैक्टर सीधे घास के मैदान तक पहुँच जाता है और इसमें सभी के द्वारा काटे गये हरे चारे को व्यवस्थित रूप से रखकर घरों तक पहुँचाया जाता है. इस चारे को खाकर हमारी गायें अधिक दूध देने लगीं हैं जिससे हमारे गाँव के सभी परिवारों को अच्छी आमदनी हो रही है. साथ ही गायों एवं बैलों के गोबर बेचकर भी हमें अच्छा मुनाफा होने लगा है. इस कार्य में महिला और पुरूष दोनों ही बिना किसी भेदभाव के कार्य को सफल बना रहें हैं.

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बचपन की यादें

रचनाकार- साक्षी यादव, कक्षा- 8वीं, स्वामी आत्मनाद शेख गफ्फार अंगरेजी मध्य शाला तारबाहर बिलासपुर

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बचपन की यादें अब तक की सबसे अनमोल यादें हैं. अपने छोटे भाई-बहनों को देखकर हमें अपना बचपन याद आ जाता है. हमारे माता-पिता ने हमारी सुरक्षा और खुशी के लिए सब कुछ किया. हमारे माता-पिता प्यार से हमारा ख्याल रखते हैं. जब हम बीमार पड़ते थे तो वे पूरे दिन और पूरी रात हमारे साथ रहते थे. जब हम छोटे बच्चे थे तो हम अपने पिता के साथ स्कूल जाते थे और घर आते समय जब भी हमें खिलौने की दुकान या मिठाई की दुकान दिखती थी तो हम अपने पिता से कहते थे कि दुकान से कुछ खरीद लिया करो. वे सभी किस्से और कहानियाँ जो हमारे दादा-दादी हमें सुनाया करते थे जब हम बच्चे थे जैसे - परियों की कहानियाँ, राजकुमार और राजकुमारी की कहानियाँ, कुछ मज़ेदार और डरावनी कहानियाँ आदि. बचपन में हम नए-नए और मज़ेदार प्रकार के खेलों का आविष्कार करते थे और उन्हें हर समय खेलते रहते थे. और जब शिक्षक बोर्ड पर लिख रहे होते थे तो हम बातें करते थे और जब शिक्षक हमें देखते थे तो हम ऐसे व्यवहार करते थे जैसे हम पढ़ रहे हों. और खाली समय में हम अंताक्षरी, नदी-पहाड़ जैसे खेल खेलते थे. बचपन में हम किसी चीज़ को खरीदने के लिए या दादा-दादी को बहुत परेशान करते थे. वो दिन हम सभी के लिए बहुत कीमती है. वे यादें मेरे जीवन के सबसे अच्छे पल हैं.

मैं चाहती हूँ कि वो बचपन के दिन में वापिस से जी सकूँ.

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मेरा सपना

रचनाकार- साक्षी यादव, कक्षा- 8वीं, स्वामी आत्मनाद शेख गफ्फार अंग्रेजी मध्यम शाला तारबाहर बिलासपुर-

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हम सभी का सपना किसी के जैसा बनने का होता है. उसी तरह मेरा भी कुछ बनने का सपना है. बचपन में हम डॉक्टर, पुलिसकर्मी, शिक्षक आदि बनने के बारे में सोचते थे। मैं भी सोचती थी कि मैं भी डॉक्टर बनूंगी. जब हम छोटे बच्चे थे तो हम सोचते थे कि डॉक्टरों के पास मरीज़ों को ठीक करने की कुछ शक्तियाँ होती हैं. और यही मुख्य कारण था कि मैं डॉक्टर बनना चाहती थी लेकिन जब हम बड़े हुए तो हमें एहसास हुआ कि डॉक्टरों के पास मरीजों को ठीक करने की कोई शक्ति नहीं थी। और फिर मेरा सपना टूट गया. कुछ वर्षों के बाद मैंने सोचा कि शिक्षक बनना अद्भुत है. क्योंकि शिक्षक सबसे ज्ञानी व्यक्तियों में से एक होता है. और यही कारण था कि मैं टीचर बनना चाहती थी. हम सभी एक साथ अनेक व्यक्ति होने की सोचते हैं.

इसी तरह मैं भी चाहती थी कि मैं डॉक्टर, इंजीनियर, पुलिसकर्मी, शिक्षक, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, वैज्ञानिक आदि बनूंगी.

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भोजली

रचनाकार- मनोज कुमार पाटनवार, बिलासपुर

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छत्तीसगढ़ में विविध प्रकार की संस्कृतियाँ देखने को मिलती हैं. श्रावण मास में जब प्रकृति चारों ओर हरियाली बिखेरने लगती है तब कृषक अपने खेतों में बीज बोने के पश्चात गाँव की चौपाल में विविध प्रकार के कर्मा ददरिया आल्हा गीत गाने में मग्न हो जाते हैं. इस समय अनेक लोकपर्वों का आगमन होता है और लोग उन्हें खुशी-खुशी मनाते हैं. इन्हीं त्योहारों में भोजली भी मनोकामनाओं का पर्व है. सावन के महीने में नागपंचमी के दिन तथा कहीं कहीं सावन की सप्तमी, अष्टमी को छोटी॑-छोटी टोकरियों में मिट्टी डालकर उनमें गेहूँ या जौ के दाने बोए जाते हैं. ब्रज और उसके निकटवर्ती प्रान्तों में इसे 'भुजरियाँ` तथा अलग-अलग प्रदेशों में इन्हें 'फुलरिया`, 'धुधिया`, 'धैंगा` और 'जवारा`(मालवा) या भोजली कहते हैं. तीज या रक्षाबंधन के अवसर पर फसल की प्राण प्रतिष्ठा के रूप में इन्हें छोटी टोकरी या गमले में उगाया जाता हैं. जिस टोकरी या गमले में ये दाने बोए जाते हैं उसे घर के पवित्र स्थान के साथ अँधेरे कमरे में जहाँ प्रकाश न मिले ऐसी जगहों पर स्‍थापित किया जाता है. उनमें रोज़ पानी दिया जाता है और देखभाल करते हुए रोज के रोज भोजली गीत गाकर सेवा की जाती है. बीज धीरे-धीरे पौधे बनकर बढ़ते हैं तथा अँधेरे में रहने के कारण भोजली का रंग पीला दिखाई पड़ता है, महिलाएँ उसकी पूजा करती हैं एवं जिस प्रकार देवी के सम्‍मान में देवी-गीतों को गाकर जवारा–जस–सेवा गीत गाया जाता है वैसे ही भोजली दाई (देवी) के सम्‍मान में भोजली सेवा गीत गाये जाते हैं. सामूहिक स्‍वर में गाये जाने वाले भोजली गीत छत्‍तीसगढ की शान हैं.

भोजली के पास बैठकर घर की बालाएँ एवं महिलाएँ गीत गाती हैं उसमें से एक गीत यह है जिसमें गंगा देवी को संबोधित करती हुई गाती है--

देवी गंगा
देवी गंगा लहर तुरंगा
हमरो भोजली देवी के
भींजय आठों अंगा.
मांड़ी भर जोंधरी
पोरिस कुसियारे
जल्दी-जल्दी बाढ़ौ भोजली
हो वौ होशियारे.

अर्थात भोजली से कह रही हैं महिलाएँ कि भुट्टे और गन्ने जैसे आप भी बड़ी हो जाइये, गन्ने तो सिर से भी ऊँचे हो गए और भुट्टे घुटनों तक पहुँच गये हैं. आप भी जल्दी-जल्दी बड़े हो जाइए.

खेतों में इस समय धान की बुआई व प्रारंभिक निराई गुडाई का काम समापन की ओर होता है. किसानों की लड़कियाँ अच्‍छी वर्षा एवं भरपूर भंडार देने वाली फसल की कामना करते हुए फसल के प्रतीकात्‍मक रूप से भोजली का आयोजन करती हैं.

सावन की पूर्णिमा तक इनमें ४ से ६ इंच तक के पौधे निकल आते हैं. इसे रक्षाबंधन के दूसरे दिन अर्थात भादो माह के प्रथम दिन संध्या 4 बजे भोजली लिए बालिकाएँ अपने-अपने घरों से निकलकर पहले राजा ,जमींदार या गौटिया के घर पर इकट्ठा होते थे किंतु अब गाँव के चौपाल चौराहों पर इकट्ठा होती है वहाँ उसकी पूजा अर्चना के बाद बाजे गाजे के साथ क्रम से जुलूस निकलता है गाँव का भ्रमण करते हुए भोजलियों का जुलूस नदी अथवा तालाब में विसर्जन के लिए ले जाया जाता है इस अवसर पर ग्रामीण बालाएँ नए वस्त्र पहनकर अपनी भोजली को हाथ में अथवा सिर में लिए आती है तथा सभी मधुर कंठ से भोजली गीत गाते हुए आगे बढ़ती है नदी अथवा तालाब के घाट को पानी से भिगो कर धोया जाता है फिर भोजली को वहाँ पर रखकर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है उसके पश्चात जल में विसर्जन करते हुए अच्छी फसल की कामना की जाती है, बालाएँ भोजली की बाली को मंदिरों में चढ़ाती हैं, इस दिन अपने समवयस्क बालाओं के कान में भोजली की बाली लगाकर 'मितान' अथवा 'गियां' बदने की प्राचीन परंपरा है जिनसे मितान अथवा गियां बदा जाता है उसका नाम जीवन भर नहीं लिया जाता और गियां अथवा मितान से ही हमेशा संबोधित किया जाता है माता-पिता भी उन्हें अपने बच्चों से बढ़कर मानते हैं उन्हें हर पर्व और त्यौहार में आमंत्रित कर सम्मान देते हैं इसके अलावा घर और गाँव में अपने से बड़ों को भोजली की बाली देकर आशीर्वाद लिया जाता है और छोटों को देकर अपना स्नेह प्रकट करते हैं भोजली छत्तीसगढ़ में मैत्री का बहुत ही सुंदर और पारंपरिक त्यौहार है. नदी, तालाब और सागर में भोजली को विसर्जित करते हुए अच्छी फ़सल की कामना की जाती है. भले ही आज इसका चलन कम होता जा रहा है लेकिन भोजली के प्रति आकर्षण आज भी बरकरार है इस संस्कृति को धरोहर के रूप में बचाए रखने के लिए ग्राम बिटकुला में प्रतिवर्ष भोजली प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है सबसे सुंदर, सघन, पीला रंग रहता है उसमें से प्रथम 10 को विशेष पुरस्कार देकर पुरस्कृत किया जाता है और बाकी सभी प्रतिभागियों को सांत्वना पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है. आओ हम सब ऐसी विलुप्त होती संस्कृतियों वाली परंपरा को मिलकर सहेजे यह हमारा दायित्व भी है.

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