बालगीत
चंदा मामा
रचनाकार- सुचित्रा सामंत सिंह, बस्तर
चंदा मामा भोले भाले,
लगते हो तुम कितने प्यारे,
शाम ढले तुम आते हो,
दिन में कही छिप जाते हो.
ना पढ़ने की तुमको चिंता,
ना सोने की तुमको चिंता,
रात भर जागते रहते हो,
ना जाने क्या करते हो.
दुध मलाई खाते हो,
शायद इसलिए तुम,
गोरे गोरे लगते हो,
चंदा मामा भोले भाले.
*****
माता–पिता
रचनाकार- कु.हेमिका साहू, कक्षा–१२ वीं, शास उ मा वि बेलौदी, ब्लॉक–मगरलोड,धमतरी
माता मेरी प्यारी है, तो पिता प्यारा है
इनका साथ हो तो, ये जीवन न्यारा है
माता भूमि है तो,ये पिता आसमान है
दोनो का साथ है तो,जीवन आसान है
माता पिता की, आओ सेवा करलें,
फिर न पड़ेगा कभी हमको पछताना
इन दोनो का जीवन में साथ रहेगा,
तो दुख·पीड़ा, फिर काहे को आना.
माता–पिता से ही है, पहचान हमारी
यह दोनों है तो हमारी, जिंदगी न्यारी
माता–पिता बच्चों के लिए भगवान हैं
इनके पावन चरणों में, सारा जहान है.
*****
समय का महत्व
रचनाकार- कु. चुनेश्वरी साहू, कक्षा–१०वीं, शास उ मा वि बेलौदी, ब्लॉक–मगरलोड,धमतरी
समय कहता है, मैं तुम्हारे साथ हूं
समय की चाल, निरंतर चलती है
यह पल–पल में निरंतर बदलता है
यह सुख–दुख का साथी बनता है.
रोज अपने नए रंग–रूप दिखाता है
सब में इसकी ही मर्जी से चलता है
अपना हर पल का ये महत्व बताता
यह कभी न रुकता और न थकता है.
बस निरंतर ही यह चलता जाता है
इसके महत्व को जब कोई समझता है
जीवन में लक्ष्य सदा हासिल करता है
सारे काम वह समय पर पूरा करता है.
चाहे हम कितने भी क्यों न उत्सुक हों
होगा सारे हमारा काम समय पर ही
इसलिए समय के महत्व को समझो
ये समय कहता है मैं तुम्हारे साथ हूं.
*****
सुहाना मौसम
रचनाकार- कु.डगेश्वर साहू,कक्षा–१२वीं, शास उ मा वि बेलौदी, ब्लॉक–मगरलोड,धमतरी
मौसम है, कितना सुहाना
मन को है, ये बहुत भाता
कौन मौसम किसको भाए
हम इसको कैसे क्या जाने.
मौसम है होता परिवर्तन
हमको है पता नहीं चलता
कौन सा मौसम कब आए
हम जाने न ही आप जाने.
मौसम परिवर्तन होने लगी
पता ही नहीं ,चलता हमें
मौसम से मिलती है सीख
छोटे–बड़े ज्ञानी की सीख.
बड़े अच्छे, लगते हैं गीत
इन मौसम का, है ये मीत
मौसम है, कितना सुहाना
मन को है, ये बहुत भाता.
*****
हमें स्वच्छता अपनाना है
रचनाकार- कु.गूंजा साहू,कक्षा–१२वीं, शास उ मा वि बेलौदी, ब्लॉक–मगरलोड,धमतरी
हर गली हर घर में,यह बताना है
हमें घर–घर स्वच्छता अपनाना है
साफ –सफाई सब रखोगे ध्यान
तभी होगा हमारा भारत महान.
बीमारी को जड़ से हमें हराना है
हमें घर–घर स्वच्छता अपनाना है.
आओ मिलकर ये सबको समझाएँ
स्वच्छता के प्रति जागरूकता लाएँ.
मिलकर हमको कदम बढ़ाना है
हमें घर–घर स्वच्छता अपनाना है
कूड़े–कचरे को कूड़ेदान में डालें
गाँव–शहर–नगर में स्वच्छता लाएँ.
बापू,मोदी के सपने साकार करना है
हमें घर–घर स्वच्छता अपनाना है
हर जगह स्वच्छता का लहर चलाएँ
देश में चलो एक नया सबेरा लाएँ.
हम सब को राष्ट्र विकसित कराना है
हमें घर–घर स्वच्छता अपनाना है.
*****
पौधे हमसे कहना चाहते हैं
रचनाकार- कु.हेमलता साहू, कक्षा १२ वीं, शा उ मा विद्यालय बेलौदी, मगरलोड धमतरी
हममें अब भी हिम्मत बाकी है
जब–जब तुमने हमको तोड़ा था
तब से ही हममें हिम्मत बाकी है.
हमने ही तुमको सहारा दिया
पर तुमने हमको बेसहारा किया
हमने तुमको जीना सिखाया
पर तुमने हमको नष्ट किया.
हमने है स्वच्छ हवा बनाए
हमने है सुंदर फूल खिलाए
हमने धरा को है महकाए
हमने ही है खुशहाली लाए.
तुमने हमको काटा था
हमने न तुमको डांटा था
हम दर्द से कराहते थे
तुम हंसते हुए जाते थे.
हम रातों को रोते थे
तुम चैन से सोते थे
जब तुम पे आई बात
तभी आई हमारी याद.
मनुष्य कहता मान ली
हमने तुम्हारी बात
कर दो गुस्ताखी माफ
अब न तुमको तोड़ेंगे
न ही साथ हम छोड़ेंगे.
पौधा कहता ये हुई न बात
अब रहेंगे हम दोनों साथ–साथ
हम सब हाँ आपस में एक हैं
तुम्हारा संकल्प बड़ा नेक है.
*****
किताब
रचनाकार- कु.हेमिका साहू, कक्षा–१२ वीं, शास उ मा वि बेलौदी, ब्लॉक–मगरलोड,धमतरी
किताब हमारे जीवन का आधार है
किताब से ही होंगे सपने साकार है
यह किताब ज्ञान का होता भंडार है
इसके बिना हमारा जीवन बेकार है.
किताबों से ही हम सब नाता जोड़ें
इससे कभी न ,हम सब मुख मोड़ें
किताबों को पढ़कर हम बने महान
इससे ही मिलता समाज में सम्मान.
किताबों को अपना,अपने जीवन में
इससे न होगा कष्ट, आगे भविष्य में
किताब हमारे ,जीवन का आधार है
किताब से ही होंगे, सपने साकार है.
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कितना प्यारा बचपन हमारा
रचनाकार- कु ऋतू निषाद, कक्षा १२ वीं शा उ मा वि बेलौदी, ब्लॉक-मगरलोड जिला धमतरी
जब हम बड़े हुए, तो हमने जाना
कितना प्यारा था, बचपन हमारा.
भले थे कहीं शैतान, कहीं नादान
पर बचपन में ही,थी सब की जान.
ना कोई जिम्मेदारी, ना कोई बोझ
मस्त मगन होकर, खेलते थे रोज.
बड़े हुए तो जाना, क्या है बचपन
ना कोई समझदारी, ना बड़प्पन.
नटखट था मन, ये पागल था मन
पर बचपन था, सबसे अच्छा पल.
सुबह से खेलते,व शाम को घर आते
वक्त की न फ़िक्र, दिन अच्छे बिताते
नहीं थी कोई सुझबूझ, न परेशानी
हमने तो बचपन में ही, मस्ती ठानी.
पर हमने अब, जाना क्या है बचपना
ना कोई भी चिंता,ना किसी से डरना.
आती थी हर छोटी, बातों पर खुशियाँ
बचपन में चाही थी सिर्फ एक टिकिया.
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छतरी
रचनाकार-हिमकल्याणी सिन्हा, बेमेतरा
आसमान में बादल छाया
छतरी लेकर सब आया
काले -काले बादल आये
चाहे जितना जल बरसाये
रंग बिरंगे छतरी ताने
देखो बच्चों लगे सुहावने
बारिश की पानी अंदर न आये
छतरी में सब छूप जाये
पानी से सबको बचाये
छतरी सबके मन को भाये
बच्चें पानी में करते धमाल
देखो-देखो छतरी का कमाल
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नया इतिहास- मिशन चंद्रयान
रचनाकार- श्रवण कुमार साहू, 'प्रखर', गरियाबंद
जिस चाँद को उस चकोर ने
आज तक छू नहीं पाया है.
उसी चाँद को पाने के लिए,
आज हमने कदम बढ़ाया है.
जिस चाँद को चंदा मामा कह,
हमने जीवन भर पुकारा है.
उसी चाँद की गोद में खेलने,
हमने एक कदम बढ़ाया है.
चाँद और सूरज के किस्से,
अब तक किताबों में पढ़ा है.
उसी चाँद पर कदम रख कर,
हमने नया इतिहास गढ़ा है.
धर्म को अद्भुत जोड़ दिया है,
आज वैज्ञानिकों ने विज्ञान से.
आसमां में नया चाँद खिला,
देखो तो अपने हिंदुस्तान से.
भारत माता गर्वित हो उठी,
सचमुच मिशन चंद्रयान से.
गौरव गाथा लिखी जा रही,
वैज्ञानिकों के अनुसंधान से.
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सूखा पड़ गया
रचनाकार-बद्री प्रसाद वर्मा अनजान
आज किसान के खेतों में
सूखा पड़ गया सूखा.
हर किसान का आज है
हृदय दर्द से रूखा.
धान के खेतों में
छाने लगी उदासी.
हर किसान के चेहरे पर
छाई है मायूसी.
खेतों में सूखे से
गहरी हुई दरार.
आज खेत में पानी की
सबको है दरकार.
क्रुद्ध हुए बादल भी
जल नहीं बरसाते.
इंद्रदेवता भी क्यों
बिलकुल तरस न खाते.
सूखा देख हर किसान
आज बहुत लाचार है.
पानी बिन धान का खेत
देखो आज बेकार है.
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पृथ्वी
रचनाकार- उदय करन राजपूत, जालौन
अंडे जैसी अपनी धरती,
सूरज का चक्कर है करती
प्यारा सुन्दर रूप मनोहर,
भार बहुत सहन है करती,
चंद्रमा है उपग्रह प्यारा,
शीतलता हमको देता है.
सूरज करता है उजियारा,
कुछ नहीं हमसे लेता है.
पाँच सागरों में जल सारा,
सात द्वीपों में है संसार,
कहते हैं इसको ग्रह नीला,
महिमा इसकी बड़ी आपार.
हरा - भरा सुंदर रंगीले
वृक्ष धरा के हैं आभूषण.
जीवन हमको देते हरदम
करते दूर वायु प्रदूषण.
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घर भी है एक भगवान
रचनाकार- सलीम कुर्रे, कक्षा 8 वीं, शास. पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, संकुल- लालपुर थाना, वि.ख. लोरमी, जिला- मुंगेली
खुद तो धूप में रहता है.
लेकिन हमको छाया देता है.
गर्मी हो या सर्दी हो,
हमें रात से बचाता है.
एक जगह खड़ा रहता है,
फिर भी हमें सुरक्षित रखता है.
खुद तो भीगता है पानी में,
लेकिन हम सब को भीगने नहीं देता.
घर भी है एक भगवान,
क्या लेते हैं? क्या देते हैं?पता नहीं चलता.
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पेड़ भी है दानी
रचनाकार- सलीम कुर्रे, कक्षा 8 वीं, शास. पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, संकुल- लालपुर थाना, वि.ख. लोरमी, जिला- मुंगेली
इन पेड़ों को देखो. इन पेड़ों को देखो.
कितना सुंदर फूल खिला है.
आओ-आओ यहाँ देखो,
कितना सुंदर फूल खिला है.
गाओ यहाँ. नाचो यहाँ.
झूम-झूम के गाओ यहाँ.
पेड़ों में भी है जान.
इन पेड़ों में भी है ज्ञान.
इनके माध्यम से जीते हैं यहाँ,
इनसे ही एक उम्मीद है हमारी.
इनसे ही मिलती है शुद्ध हवा,
ये पेड़ भी है एक दानी.
क्या लेते हैं? क्या देते हैं?
इनसे ही पूरी होती है जरूरतें सारी,
इनसे ही मिलती है जरूरत की सारी समानें.
ये पेड़ भी एक दानी है.
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स्वागत हे
रचनाकार- सूर्या दिवाकर, कक्षा 8 वीं, शास. पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, संकुल- लालपुर थाना, वि.ख. लोरमी, जिला- मुंगेली
स्वागत-स्वागत हे! मोर गाँव के सियान.
गुरु जन के महान्.
आज के पावन दिन में सत् सत् हे नमन!
सत् सत् हे नमन! आज के पावन दिन म.
छोटे-छोटे लईका बाबा,
नई जानेन तोर गियान ल.
नई जानेन तोर गियान ल.
भूल-चूक ल माफी देबे,
हमरो सियान-हमरो सियान.
स्वागत-स्वागत हे! मोर गाँव के सियान,
गुरु जन के महान्.
आज के पावन दिन म.
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मेरी प्यारी माँ
रचनाकार- कु. श्वेता टंडन, कक्षा 8 वीं, शास. पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, संकुल- लालपुर थाना, वि.ख. लोरमी, जिला- मुंगेली
माँ क्या है? माँ सब कुछ है.
माँ भगवान की सर्वोच्च रचना है.
माँ सबसे बड़ी दौलत है.
लगने से चोट माँ सबसे पहले याद आती है.
संसार हमारे बारे में झूठ बोल सकती है
लेकिन माँ झूठ कभी नहीं बोल सकती है?
माँ अपने बच्चों के लिए हर जंग लड़ सकती है.
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पानी रे पानी
रचनाकार- कु. भावना नवरंग, कक्षा- 8 वीं, शास. पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, संकुल- लालपुर थाना, वि.ख. लोरमी, जिला- मुंगेली
देखो यह पानी को,
कभी जमीन से खोदकर निकाला जाता है,
कभी आसमान से गिरता है,
बिन पानी पृथ्वी सूनी है,
पानी बिना हरियाली नहीं है,
बिन पानी इंसान नहीं है,
जब सुनामी आती है तो,
पूरा गाँव-शहर डूब जाता है,
पानी से किसान खुश हो जाता है,
पानी से खेतों में हरियाली आ जाती है
*****
रंग-बिरंगे फूल
रचनाकार- कु. भावना नवरंग, कक्षा- 8 वीं, शास. पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, संकुल- लालपुर थाना, वि.ख. लोरमी, जिला- मुंगेली
ये फूल मन को खुश कर देता है,
जब यह सामने होता है.
फूल जब खिलता है तो,
सबके मन को भा लेता है.
जब फूल खुश होता है तो,
खुशबू फैल जाता है.
जब फूल नाखुश होता है तो,
वह सूख जाता है.
ये फूल अनेकों रंग के हैं,
किस-किस में कहूँ अनेकों रंग है?
सुख हो, दुःख हो, चाहे पुरस्कार हो,
ये सब में काम आता है.
फूल को कोई ना नहीं कहता.
फूल सबके मन को भा लेता है.
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इसांनियत को जाहिर कर स्वार्थ को मिटाना है
रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
इसांनियत को जाहिर कर
स्वार्थ को मिटाना है.
बस यह बातें दिल में धर
एक नया भारत बनाना है.
एकता अखंडता भाईचारा दिखाना है
यह जरूर होगा पर
इसकी पहली सीढ़ी
अपराध को ह्रदय से मिटाना है.
सरकार कानून सब साथ देंगे
बस हमें कदम बढ़ाना है
हम जनता सबके मालिक हैं
यह करके दिखाना है.
कलयुग से अब सतयुग हो
ऐसी चाहना है
हम सब एक हो ऐसा ठाने
तो ऐसा युग जरूर आना है.
पूरी तरह अपराध मुक्त भारत बने
यही चाहना है,
भारत फिर सोने की चिड़िया हो
ऐसी भावना है.
सबसे पहले खुद को
इस सोच में ढालना हैं,
फिर दूसरों को प्रेरित कर
जिम्मेदारी उठाना है.
ठान ले अगर मन में
फिर सब कुछ वैसा ही होना है,
हर नागरिक को परिवार समझ
दुख दर्द में हाथ बटाना है.
इस सोच में सफल हों
यह जवाबदारी उठाना है,
मन में संकल्प कर
इस दिशा में कदम बढ़ाना है.
पूरी तरह अपराध मुक्त भारत बने
यही चाहना है,
भारत फिर सोने की चिड़िया हो
ऐसी भावना है.
*****
बादल आए
रचनाकार- कन्हैया साहू 'अमित', भाटापारा
काले-काले बादल आए.
नभ पर देखो कैसे छाए.
रूप अनोखा, गजब निराला.
कोई गोरा, कोई काला.
कोई दिखता जैसे हाथी.
लगता कोई अपना साथी.
कोई घोड़ा, बंदर, भालू.
कोई कद्दू, बैगन, आलू.
कोई पर्वत, घाटी, सागर.
कोई लोटा, थाली, गागर.
कोई मछली, मेढक, पानी.
कोई दादा, नाना - नानी.
कोई सूरज, चाँद, सितारे.
लगता जैसे पास हमारे.
खेल खेलतें छुपन छुपाई.
बादल, बिजली, हवा हवाई.
मन करता है इनको पकड़ूँ.
अपनी बाहें कसकर जकड़ूँ.
पल पल रूप बदलते बादल.
हमको तो बस छलते बादल.
*****
प्रकृति की सुंदरता
रचनाकार- युक्ति साहू , कक्षा 8 वी, स्वामी आत्मानंद शेख गफ्फार अंग्रेजी माध्यम विद्यालय, तारबाहर, बिलासपुर
हरी-भरी सी दिख रही है,
देखो प्रकृति हमारी.
चारो ओर हरियाली बिछ रही है,
आई थी जो वर्षा प्यारी.
पत्तियों को तो देखो ज़रा,
कैसी वो खिल खिला रहीं है.
डाल फूल पत्तियों से भरा,
कुसुम भी तो मुस्कुरा रही है.
वायु हर्ष से दौड़ रहा,
आया है जो सावन.
नभ बादल से सज रहा,
ठंडी फुहार है मनभावन.
नदी ,तालाब और जलाशय,
फिर से जलमय हो गए हैं.
इस सुंदरता का क्या हो आशय?
हम भी मोहित हो गए हैं.
पेड़ -पौधे तो मानो जैसे,
खुशी से झूम रहे हैं.
प्रकृति की शोभा बताऊॅं कैसे?
स्वागत सावन का ये कर रहे हैं.
*****
ओजोन की पीड़ा
रचनाकार- कामिनी जोशी, कबीरधाम
तड़प उठी धरती माता भीष्म उष्मा को देखकर.
बिलख पड़े जीव -जंतु भी प्रचंड ताप को सह कर.
सबकी आशाएँ थी जुड़ी ओज़ोन की परत से
हैरान हो ओज़ोन बोली याद आई हूँ अब से.
हे मानव,
भौतिक सुख की आस में प्रकृति को भुला दिया
एक मात्र मैं बची थी मुझे भी झुठला दिया.
चीत्कार से क्या होगा अब तो आँख खोल लो
बची हूँ थोड़ी बहुत फिर मुझको जोड़ लो.
भुला दिया तुमने मुझे फिर लौटकर ना आऊँगी
प्रेमपूर्वक सहेजने से छोड़कर ना जाऊँगी.
मेरे वजूद को पाकर धन्य धरती हो जाएगी
आएगी हरियाली ,खुशियां छा जाएगी
अवनी के शान को फिर से उच्च कर जाओ तुम.
कष्टों से मुझे दूर भगाओ तुम.
हे धरा !अब तुम पर आस है
जीत जाओगे तुम ये विश्वास है.
*****
हिन्दी भाषा
रचनाकार- सुचित्रा सामंत सिंह, SAGES JAGDALPUR
हिंद देश के निवासी हैं,
हिन्दी हमारी मातृभाषा है,
जिसे सुनकर बोलकर बड़े हुए,
यही हमारी राष्ट्रभाषा है.
भारतीयों को जो एकता में जोड़े रखे,
यह हमारी पावन हिन्दी भाषा है,
भारतीय संस्कृति, संस्कारों का,
प्रतिबिंब हमारी हिन्दी भाषा है.
सरल, सहज, सुगम, लचीली,
मातृभूमि की अनमोल धरोहर,
एकता के सूत्र में जो पिरोए हमें,
हमारी पहचान हिन्दी भाषा है.
*****
अपनाएँगे हम नवाचार
रचनाकार- कन्हैया साहू 'अमित', भाटापारा
पढ़ना-लिखना होगा मजेदार,
अपनाएँगे जब हम नवाचार.
डाँट-डपट ना अनुशासन से,
सीखें बच्चे अपने मन से.
उछलकूद और खेल-तमाशा,
खुश हों पाकर अपनी भाषा.
तभी बनेंगे सब भागीदार,
अपनाएँगे जब हम नवाचार.
चाहे जो भी वह करने दें,
रंग सलोना नित भरने दें.
देखभाल कर जानेंगे सब,
समझ बनेगी, मानेंगे तब.
सहज करेंगे सारा स्वीकार,
अपनाएँगे जब हम नवाचार.
दौड़, कबड्डी, खो-खो खेलें,
खूब मजे शाला में ले लें.
शिक्षा के प्रति हो अनुरागी,
मिले नहीं फिर शाला त्यागी.
शिक्षा पर है सबका अधिकार,
अपनाएँगे जब हम नवाचार.
*****
बादर के रूप
रचनाकार- कन्हैया साहू 'अमित', भाटापारा
पाँख लगा बादर उड़ियाथें.
आनीबानी रूप देखाथें.
दिखथें बादर जोक्कर, जकला
लगथें भुतुवा, भालू, भकला.
कतको हंसा जइसे उज्जर.
कोनो बिरबिट कजरी अलकर.
कोनो दिखँय मुंदरी, छल्ला.
कतको अरझे, कतको पल्ला.
छिन मा आने, छिन मा ताने.
बस रूप बदलथें मनमाने.
कभू लगय इन भौंरा-बाँटी.
कहूँ दिखयँ दाई के साँटी.
कतको कुप्प किंजरँय छेल्ला.
कोनो तो हरहिंछा हेल्ला.
लामे जस कोरवान चद्दर.
कभू दिखैं इन छानी-खद्दर.
कभू दिखयँ महतारी कोरा.
लगय कभू इन चुमड़ी, बोरा.
रिंगी-चिंगी रूप सुहाये.
बादर मोला गजब लुहाये.
*****
भारतीय संस्कृति हमको प्यारा
रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
सबको प्यारा माता पिता
राष्ट्र की सेवा का पाठ पढ़ाते हैं.
हम अपनी भारतीय संस्कृति से
प्राणों से अधिक प्यार करते हैं.
भारतीय संस्कार
हमारे अनमोल मोती है.
प्रतितिदिन माता-पिता के पावन
चरणस्पर्श से शुरुआत होती है.
अनेकता में एकता
हमारी शैली है.
प्राकृतिक संपदा से
भरपूर हरियाली है.
उसके बाद वंदन कर
गुरु को नमन करते हैं.
बड़ों की सेवा में हम भारतीय
हमेशा स्वतः संज्ञान से आगे रहते हैं.
श्रवण कुमार गुरु गोविंद सिंह
महाराणा प्रताप वीर शिवाजी
अनेकों योद्धाओं और वीरों
महावीरों की मां भारती है.
हम भारतवासी संयुक्त परिवार की
प्रथा श्रद्धा से कायम रखे हैं.
अतिथियों को देव तुल्य मानकर
भरपूर भाव से सेवा करते हैं.
*****
स्कूल खुला फिर
रचनाकार- कन्हैया साहू 'अमित', भाटापारा
पढ़ने-लिखने के दिन आए.
स्कूल खुला फिर हमें बुलाए.
बीत गए अब पल मस्ती के,
छोड़ें साथ मटरगश्ती के,
चलो खिलौने छोर टिकाए.
स्कूल खुला फिर हमें बुलाए.
पुस्तक-कापी, ढूंढो पेंसिल,
पढ़-लिख बनना है काबिल,
अपना बस्ता, पीठ लगाए.
स्कूल खुला फिर हमें बुलाए.
अपनी किस्मत स्वयं बनाओ,
जो चाहो वो तुम बन जाओ,
गुरुजन तुमको राह दिखाए.
स्कूल खुला फिर हमें बुलाए.
पढ़ने-लिखने के दिन आए.
स्कूल खुला फिर हमें बुलाए.
*****
हवा है सुन्दर
रचनाकार- करन टंडन, कक्षा- 8 वीं, शास. पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, संकुल- लालपुर थाना, वि.ख. लोरमी, जिला- मुंगेली
ये हवा है कितनी सुन्दर
इसको कोई काट नहीं सकता
ना ही इसको कोई मार सकता है
देखो इसको, महसूस करो तुम
कितना आनंद आ रहा है
सभी तरफ खुशहाली है
गर्मी भी कम हुई है
इन पेड़ों से महक आ रही है
ये हवा है दानी
इसको रोको ना मनमानी
अपने ज्ञान को तुम बढ़ाओ
सुन्दर-सुन्दर पेड़ तुम लगाओ
ये हवा है कितनी सुन्दर
ये पेड़ भी है कितना सुन्दर
*****
आगे बढ़ जाऊँगा
रचनाकार- यशवंत पात्रे, कक्षा- 8 वीं, शास. पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, संकुल- लालपुर थाना, वि.ख. लोरमी, जिला- मुंगेली
मैं विद्यार्थी हूँ,
परीक्षा से कभी ना डरूँगा.
मैं विद्यार्थी हूँ,
पढ़ कर आगे बढ़ जाऊँगा.
मैं पानी नहीं,
जो ऊपर से गिर जाऊँ.
मैं चिट्ठी नहीं,
जो हवा में उड़ जाऊँ.
पानी तुम कितना भी कोशिश कर लो,
मैं रेनकोट ले आऊँगा.
हवा तुम कितनी भी कोशिश कर लो,
मैं सीढ़ी समझ कर चढ़ जाऊँगा.
मैं विद्यार्थी हूँ,
पढ़ कर आगे बढ़ जाऊँगा.
*****
भरोसा
रचनाकार- निलेश यादव, आठवीं
भरोसा एक आधार है जीवन का,
जैसे चंदन जल में रंग बदलता.
इसकी महिमा शब्दों में बयां करना, व्यर्थ नहीं,
अस्थायी नहीं, सच्चा है यह वचन.
भरोसा एक पुष्प है जो खिलता है मन में,
जैसे सूरज की किरण छाती में घुलती है.
यह जीवन का रंग है, संगीत है जो गाता है,
उम्मीद की किरणों को जगाता है.
भरोसा एक सपना है जो सच होता है,
जैसे पानी की धार नदी में बहती है.
यह समर्पण की शक्ति है, जीने की राह है,
विश्वास के पंखों पर मन को उड़ाता है.
भरोसा एक आश्रय है जो चढ़ता है ऊँचाईयों पर,
जैसे बादलों का घेरा आसमान में बदलता है.
यह विजय की शक्ति है, संकटों का साथी है,
दृढ़ता के बंधनों को तोड़कर मन को संभालता है.
भरोसा एक आधार है जीवन का,
जैसे चंदन जल में रंग बदलता.
सत्यता की गहराई है, प्रेम का आकार है,
जीवन की दास्तान जो सच्चाई से सजता है.
*****
जिंदगी में विराम चिन्ह
रचनाकार- अशोक कुमार यादव मुंगेली
जिंदगी कोई विराम चिन्ह नहीं है,
जिसे, जब चाहे लगाया जा सके.
जिंदगी लिखी हुई कहानी नहीं है,
जिसे, जब चाहे मिटायी जा सके.
कठिन अभ्यास करो नव्य अध्येता,
प्रश्नों और उत्तरों का हो पुनरुक्ति.
दोहरे शीर्षक का ना हो अब काम,
जैसे उप विराम की हो कोई सूक्ति.
भावों, सवालों का बोध नहीं तुम्हें,
लक्ष्य में लगा प्रश्नवाचक निशान.
लगातार कर रहे हो बड़ी गलतियाँ,
हंस पद का नहीं शिक्षार्थी संज्ञान.
अवतरण, कोष्टक में कैद है विचार,
लाघव बन, ज्ञान का कर रहे लोप.
योजक और निर्देशक में उलझा मन,
टिप्पणी कर, विस्मय समाप्ति सोच.
मानव थक-हार कर रुक जाता है,
उसी दिन लग जाता है पूर्ण विराम.
मन की इच्छाओं को दफन करके,
वो निश्चिंत होकर करता है आराम.
*****
बेटी की विदाई
रचनाकार- प्रियांशिका महंत, कक्षा – 7, शाला – सजेस तारबहर बिलासपुर
कन्यादान हुआ जब पूरा,आया समय विदाई का.
हंसी खुशी सब काम हुआ था,सारी रस्म अदाई का.
बेटी के उस कात्तर स्वर ने, बाबुल को झकझोर दिया.
पूछ रही थी पापा तुमने, क्या सचमुच में छोड़ दिया.
अपने आंगन की फुलवारी, मुझको सदा कहा तुमने.
मेरे रोने को पर भर भी, बिल्कुल नहीं सहा तुमने.
क्या इस आंगन के कोने में, मेरा कुछ स्थान नहीं.
अब मेरे रोने का पापा , तुमको बिल्कुल ध्यान नहीं.
देखो अंतिम बार देहरी, लोग मुझे पुजवाते हैं.
आकर पापा क्यों इनको, आप नहीं धमकाते हैं.
नहीं रोकते चाचा ताऊ, भैया से भी आस नहीं.
ऐसी भी क्या निष्ठुरता है, कोई आस पास नहीं.
बेटी की बातों को सुनके, पिता नहीं रह सका खड़ा.
उमड़ पड़े आंखों से आंसू, बदहवास सा दौड़ पड़ा.
कातर की बछिया-सी वह बेटी, लिपट पिता से रोती थी.
जैसे यादों के अक्स वह, अश्रु बिंदु से धोती थी.
मां को लगा गोद से कोई, मानो सबकुछ छीन चला.
फूल सभी घर की फुलवारी से कोई ज्यों बीन चला.
छोटा भाई भी कोने में, बैठा-बैठा सुबक रहा.
उसको कौन करेगा चुप अब, वह कोने में दुबक रहा.
बेटी के जाने पर घर ने, जानें क्या क्या खोया है.
कभी न रोने वाला बाप , आज फुट-फुट कर रोया है.
*****
गुरु
रचनाकार- प्रियांशिका महंत, कक्षा – 7, शाला – सजेस तारबहर बिलासपुर
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर गुरुदेवोमहेश्वर.
गुरु साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः.
ज्ञान से बड़ा कोई दान नहीं और
गुरु से बड़ा कोई भगवान नहीं.
अंधेरे जीवन में हमारे नया सवेरा लाते है
उनकी ऊंची शान है शिक्षक वो कहलाते है.
जल जाते हैं वो दीये की तरह
कई जीवन रोशन कर जाते हैं.
कुछ इसी तरह से हर गुरु
अपना फर्ज निभाते हैं.
जिंदगी गिरवी रख कर भी
ना चुका पाएंगे हम उनका ऋण,
मां ही नहीं, भगवान के बराबर
गुरु का भी है उतना ही महान ऋण.
किस्सा जिंदगी का कभी शुरू ना हुआ होता.
अगर जिंदगी को जिंदगी बनाने वाला गुरु ही ना हुआ होता.
*****
खुश रहो हर हाल मे
रचनाकार- सृष्टि प्रजापति, आठवीँ, स्वामी आत्मानंद तारबहार बिलासपुर
जिन्दगी है,खुशी- खुशी बिताओ तुम.
हमेशा खुश रहो सबको खुश रहना सिखाओ तुम.
क्या पता कल हो या न हो.
जो है, आज में ही जियो.
सारे परेशानियों को भूल जाओ तुम.
खुशियों को पास बुलाओ तुम.
जैसी भी परिस्थिति हो उसको अपनाओ तुम.
चेहरे पर मुस्कान लाओ तुम.
जीवन का एक-एक क्षण कीमती है.
दुखी होकर इसे न बरबाद करो तुम.
ग़म की नहीं हमेशा खुशी के आँसुओ की बरसात करो तुम.
*****
बारिश
रचनाकार- सृष्टि प्रजापति, आठवीँ, स्वामी आत्मानंद तारबहार बिलासपुर
बारिश आई, बारिश आई.
बिजली चमके देखो भाई.
बादल गरजे गड-गड, गड-गड.
चारो तरफ खुशियाँ छाई.
आई,आई बारिश आई.
मिट्टी की खुशबू चहुँओर छाई.
सुखी नदियाँ फिर से भर आई.
हरियाली छाई हरियाली छाई.
देखो-देखो बारिश आई.
जीव-जन्तु की प्यास बुझाई.
किसानों की खुशी सातवे आसमान पे छाई.
बारिश आई, बारिश आई.
*****
रक्षाबंधन
रचनाकार- जानवी कश्यप, आठवीं ,स्वामी आत्मानंद तारबाहर बिलासपुर
सावन के महीने में राखी का त्यौहार आता है,
ढेर सारी साथ खुशियां भी बांध लाता है,
आखिर में यह भाई बहनों का रिश्ता कितना अनमोल होता है,
तोड़े से भी ना टूटे यह भाई बहनों का बंधन.
एक यही तो है भाई बहनों का त्यौहार.
चाहे जितना भी लड़े पर यह त्यौहार सभी को मिला ही देता है.
इसलिए पूरे साल बहनों को इंतजार रहता है इस त्यौहार का.
*****
बचपन अनमोल
रचनाकार- रेशमी, कक्षा-8, स्कूल- राउप्रा विद्यालय बेनिवालो की ढाणी, राजस्थान
बचपन जो था अपना,
अब सब लगता है सपना.
लगती थी दोस्ती वह सस्ती,
और दोस्तों के साथ की मस्ती.
अपने बचपन के घेरे में,
और दोस्तों के डेरे में.
दोस्तों का साथ पाना,
और हमेशा पास रह जाना.
हर वक्त मित्रों का पहरा,
और प्यार उनका गहरा.
क्या बचपन था वह अपना,
अब सब लगता है सपना.
दोस्ती का तो नभ भर में संचार,
पर दोस्ती तो 10 फुट का संसार.
बचपन जो था अपना,
अब लगता है सपना.
*****
नया भारत
रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
भारत नवाचारों का उपयोग करके
ऐसी तकनीकी विकसित करता है
जनता के लिए सस्ती सुगम सहजता लाए
ऐसा नवाचार विज्ञान नए भारत में लाता है
उन्नत भारत अभियान में नवाचार भाता है
उन्नत ग्राम उन्नत शहर में विज्ञान लाकर
नमामि गंगे का अभियान चलाना है
नवाचार हरआदमी के जीवन में सहजता लाता है
रचनात्मक नवाचार से जुड़ा विज्ञान
आम आदमीके जीवन में सहजता लाता है
डिजिटल भारत मेक इन इंडिया
जैसी थीम जनहित में लाता है
भारत वैज्ञानिक दृष्टिकोण के फलक को
विकसित करने नए आयाम बनाता है
सतत विकास और नए तकनीकी नवाचारों
के माध्यम के साथ उन्नति दिखाता है
*****
मेरे दो की कहानी
रचनाकार- संज्ञा साहू, बड़ेटेमरी
अगर होते समोसे के पेड़,
मैं खाती केवल डेढ़.
आप सोचेंगे दो क्यों न खाती,
दो की संख्या मुझे न भाती.
मम्मी -पापा भी दो के जोड़े,
बंधे जैसे दो अड़ियल घोड़े.
होते रोज नए-नए झगड़े,
मम्मी के नाटक, पापा के लफड़े.
यह है मेरे दो की कहानी,
दो में चीजें मुझे नहीं खानी.
*****
बाघ
रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र, लखनऊ
बाघ सदस्य बिल्ली - कुटुंब का
पूर्ण रूप से मांसाहारी.
लैटिन नाम 'पैंथरा टिगरिस'
जिसका अर्थ है 'तेज शिकारी'.
वन का बहेलिया कहलाता
बिग कैट' भी उसका नाम.
शक्ति और आक्रामकता का
रूप दिखाना जिसका काम.
बांग्लादेश, दक्षिण कोरिया
मलेशिया और भारत का.
राष्ट्रीय पशु कहलाता है
शुभ प्रतीक अतुलित ताकत का.
पीले रंग की मोटी चमड़ी
जिस पर सौ से अधिक धारियाँ.
इन सबका पैटर्न अलग है
जैसे भिन्न हों छाप-उँगलियाँ.
पीले बाघों की आँखों का
रंग हमेशा होता पीला.
श्वेत बाघ की आँखों का रंग
प्राकृतिक होता है नीला.
शक्ति के साथ-साथ बाघों की
बुद्धि बहुत होती है तेज.
अपने से भी बड़ा जानवर
जबड़ों में ले तुरत सहेज.
है फुर्तीला चतुर शिकारी
करता है छिप करके वार.
इतनी होती जीभ खुरदरी
देता छील तुरंत शिकार.
पिछले पैर हैं लंबे होते
बहुत अधिक मजबूत हैं टांगें.
इस कारण लंबी दूरी तक
भर लेता है खूब छलांगें.
साथी से संवाद हेतु ही
प्रायः करते तेज दहाड़.
भोजन बाद शिकार बचे यदि
उसे छिपाते करके आड़.
अँधियारे में अधिक है दिखता
प्रायः रात को करे शिकार.
नींद भी लेता सोलह घंटे
नींद से करता बेहद प्यार.
करने हित संवाद परस्पर
अपनी पूँछ का करें प्रयोग.
जल्दी-जल्दी पूँछ घुमाते
अधिक क्रोध का जब हो योग.
बाघ के बिना नहीं वन होते
वन के बिना न होते बाघ.
सम्मुख मिमियाने लगते हैं
एक से एक बड़े पशु घाघ.
बाघों को संरक्षण देकर
उनकी संख्या और बढ़ाएँ.
जंगल-वन कटने से बचाएँ
अवैध शिकार पर रोक लगाएँ.
*****
मछलीघर
रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र, लखनऊ
बना काँच का मछलीघर
मैं रहती उसके अंदर.
उसमें भरा हुआ है पानी
जिसमें करती मैं मनमानी.
खूब तैरती हूँ हरदम
नहीं सताता कोई गम.
आती रहती स्वच्छ हवा
स्वस्थ रहूँ मैं बिना दवा.
सहेलियाँ मेरी कुल आठ
सबके अपने-अपने ठाठ.
विद्युत का रंगीन प्रकाश
करा रहा सुख का आभास.
हर दस दिन में बदले पानी
कभी न भोजन की हैरानी.
रंगबिरंगा है संसार
दर्शक देख जताते प्यार.
बच्चे मुग्ध बजाते ताली
उनकी बढ़ जाती खुशहाली.
यहाँ न है शिकार का डर
सुखद सुरक्षित अपना घर.
*****
जल बचाओ जीवन बचाओ
रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
मानसून 2023 शुरू है
जलवायु परिवर्तन चेता रहा है
जल बचाओ जीवन बचाओ जलबिना
मानव जीवन अधूरा बता रहा है
पानी बचाने की ज़वाबदेही निभाना है
पानी का मूल्य हर मानव को समझाना है
पानी को अहम दुर्लभ मानकर
अपव्यय करने से बचाना है
पानी के स्त्रोतों की सुरक्षा स्वच्छता अपनाने
के लिए जी जान से ध्यान लगाना है
पानी बचाओ जीवन बचाओ
यह फॉर्मूला मूल मंत्र के रूप में अपनाना है
पानी बचाने की ज़वाबदेही निभाना है
हर मानव को ज़ल संरक्षण संचयन अपनाकर
पानी बचाकर जनजागृति लाना है
अगली पीढ़ियों के प्रति ज़वाबदारी निभाना है
बिना पानी ज़िन्दगी का दर्द क्या होता है
पानी अपव्यय वालों तक पहुंचाना है
पानी का उपयोग अब हमें
प्रसाद की तरह करना है
*****
भारतीय संस्कार
रचनाकार- किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
भारतीय संस्कार
हमारे अनमोल मोती है
प्रतितिदिन मातापिता के पावन
चरणस्पर्श से शुरुआत होती है
अनेकता में एकता
हमारी शैली है
प्राकृतिक संपदा से
भरपूर हरियाली है
उसके बाद वंदन कर
गुरु को नमन करते हैं
बड़ों की सेवा में हम भारतीय
हमेशा स्वतः संज्ञान सेआगे रहते हैं
श्रावण कुमार गुरु गोविंद सिंह
महाराणा प्रताप वीर शिवाजी
अनेकों योद्धाओं बलवीरों
महावीरों की मां भारती है
हम भारतवासी संयुक्त परिवार की
प्रथा श्रद्धा से कायम रखे हैं
अतिथियों को देव तुल्य मानकर
भरपूर भाव से सेवा करते हैं
सबको प्यार का मीठा प्यारा माता पिता
राष्ट्र की सेवा कापाठ पढ़ाते हैं
हम अपनी संस्कृति से
प्राणों से अधिक प्यार करते हैं
*****
राष्ट्रीय शिक्षा नीति को गंभीरता से अमल में लाना है
रचनाकार- किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
राष्ट्रीय शिक्षा नीति को शिक्षकों प्रशासकों
ने गंभीरता से अमल में लाना है
शिक्षा क्षेत्र में भारत को
विश्वगुरु बनाना है
भारतीय युवाओं में प्रतिभा की कोई कमी नहीं
बस गंभीरता से उसे पहचानना है
शिक्षण को स्वांदात्मक बहुआयामी
आनंदमयी अनुभव बनाना है
छात्रों में मूल्यों को विकसित करने शिक्षकों
की महत्वपूर्ण भूमिका रेखांकित करनाहै छात्रों के
आचरण को सुधारने विपरीत परिस्थितियों
का सामना करने आत्मविश्वास जगाना है
भारत को मजबूत स्थिर शांतिपूर्ण देश
के रूप में विकसित करना है
शिक्षा क्षेत्र में भारत को
विश्वगुरु बनाना है
*****
युवाओं में एक मंत्र की अति ज़रूरत है
रचनाकार- किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
साझा करना और देख़भाल करना
भारतीय दर्शन के मूल तत्व हैं
भारतीय संस्कृति में इनका महत्व है
युवाओं में इस मंत्र की अति ज़रूरत है
साझा करने से समस्या का हल निकलता है
मन का बोझ हल्का होता है
साझा करने की प्रवृत्ति में सरलता है
ख़ुदकुशी के बचाव में मिलती सफ़लता है
ख़ुद परिवार और बुजुर्गों की
देख़भाल करना भी अत्यंत ज़रूरी है
डिजिटल उपकरणों में दिनभर खोए रहना
रिश्तो में होती असहनीय दूरी है
साझा करना देखभाल करना
दोनों बहुत जीवन में ज़रूरी है
दोनों से रचनात्मकता और मौलिक सोच
भारतीय संस्कृति कूट-कूट कर भरी है
*****
मित्र हमारे
रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र, लखनऊ
मित्र हमारे लिए जरूरी
आवश्यकताएँ करते पूरी.
अंजू, राज, सुमन, राजीव
प्यारे-प्यारे मित्र अतीव.
मित्र सदा देते हैं साथ
हम सब चलें मिलाकर हाथ.
एक-दूजे की सुनते बात
नहीं किसी सँग करते घात.
किसी से कोई झूठ न बोले
व्यर्थ न कोई मोबाइल खोले.
खेलें खेल, करें हम मस्ती
हँसी-मजाक न करते सस्ती.
हम सब करते खूब पढ़ाई
सबसे मिलती स्नेह-बड़ाई.
घर में जब जन्मतिथि मनाते
मित्रों को सप्रेम बुलाते.
*****
मुस्कान में मिठास की पर छाई
रचनाकार- किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
मुस्कान में पराए भी अपने होते हैं
अटके काम पल भर में पूरे होते हैं
सुखी काया की नींव होते हैं
मानवता का प्रतीक होते हैं
स्वभाव की यह सच्ची कमाई है
इस कला में अंधकारों में भी
भरपूर खुशहाली छाई है
मुस्कान में मिठास की परछाई है
मुस्कान उस कला का नाम है
भरपूर खुशबू फैलाना उसका काम है
अपने स्वभाव में ढाल के देखो
फिर तुम्हारा नाम ही नाम है
मीठी जुबान का ऐसा कमाल है
कड़वा बोलने वाले का शहद भी नहीं बिकता
मीठा बोलने वाले की
मिर्ची भी बिक जाती है
*****
पहली बारिश
रचनाकार- पिंकी सिंघल, दिल्ली
वो पहली बारिश सावन की
तन मन मेरा भिगा गई
नाच उठा मन मयूर सा मेरा
तपन हृदय की मिटा गई
रिमझिम रिमझिम सी बूंदें वो
याद प्रियतम की दिला गईं
जब जब गिरी गात पर मेरे
एहसासों में हलचल मचा गई
सिहर उठे जज़्बात मेरे सारे
मादकता नयनों में छा गई
स्पंदन बढ़ गया धड़कनों का
मस्ती अंग अंग में समा गई
नन्हीं बूंदें उस सावन की
मायने उल्फत के बता गई
शायद थी ख़ास वो पहली बारिश
प्यार मुझे जो करना सिखा गई
*****
राही
रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू', गरियाबंद
आगे बढ़ते जाना
राह दिखे काँटे
मत वापस तुम आना.
हँस के जीना होगा
जन्म लिए गर तो
विष भी पीना होगा.
आँखों में हो सपने
साथ नहीं देते
छल करते हैं अपने.
कल की छोड़ो बातें
त्याग चलो चिंता
मधुरम होंगी रातें.
मिलना तुमको माटी
कर्म करो ऐसा
याद रहें परिपाटी.
*****
बलिदानी वीर नारायण सिंह
रचनाकार- डिजेन्द्र कुर्रे 'कोहिनूर', बसना, महासमुंद
चिन्हारी जे वीर पुरुष हे,भरे कटोरा धान के.
वीर नारायण ले पबरित हे, भुइँया सोनाखान के.
वीर नारायण के जिनगी म,अइसे दिन भी बीते हे.
एक अकेला अंग्रेजी शासन से,लड़ के जीते हे.
जब अकाल के बेरा आईस,जन-जन तरसीन दाना ल.
धरम करम बर ये ही धरमी,लुटे रहिस खजाना ल.
घोड़ा म चढ़के जाएँ, बलिदानी सीना तान के.
वीर नारायण ले पबरित हे, भुइँया सोनाखान के.
बज्र बरोबर तन के बलिदानी,जब भुइँया नापे.
सेट महाजन अउ अँग्रेजी,शासन थर-थर काँपे.
जेहर आघु म आ जाये,अपन प्राण गवाएं.
मेंछा म दे ताव वीर जब,जब तलवार चलाये.
आज वहीं बलिदानी दे,आदर्श हमर अभिमान के.
वीर नारायण ले पबरित हे, भुइँया सोनाखान के.
*****
बेटियाँ
रचनाकार- डिजेन्द्र कुर्रे 'कोहिनूर', बसना, महासमुंद
वसुंधरा में रीति नीति,
परिपाटी हैं ये बेटियाँ.
नभ तक जाने को हर बेड़ी,
काटी हैं ये बेटियाँ.
मुख में मधुर-मधुर मुश्काने,
मन मंदिर में ममताई.
कोमल उर्वर समर्पिता सम,
माटी है ये बेटियाँ.
*****
आजादी का अमृत महोत्सव
रचनाकार- डिजेन्द्र कुर्रे 'कोहिनूर', बसना, महासमुंद
आजादी का अमृत महोत्सव,भारत भू महकाएगा.
सबके घर में आज तिरंगा,लहर-लहर लहराएगा.
शौर्य दिखाया खूब रणों में,बरछी भाला तीरों ने.
प्राणों की बलिदानी देकर,आजादी दी वीरों ने.
भारत भू में हर बालक को,स्वभिमान ही प्यारा है.
इसलिए प्राणों से प्यारा, पुण्य त्रिरँग हमारा है.
शांति त्याग का,हरियाली का,सबमें भाव जगाएगा.
सबके घर में आज तिरंगा,लहर-लहर लहराएगा.
मुकुट हिमालय की चोटी है,सागर पाँव पखारा है.
गुरुताई में इस भारत से,पूर्ण जगत ही हारा है.
धर्म सनातन अमर हमारा,पावन हर परिपाटी है.
जिसको हम जननी कहते है,चंदन जैसी माटी है.
सीमा पर जो वीर खड़ा वह,अरिदल मार भगाएगा.
सबके घर में आज तिरंगा,लहर-लहर लहराएगा.
*****
हम भारत के वासी
रचनाकार- डिजेन्द्र कुर्रे 'कोहिनूर', बसना, महासमुंद
जन्म लिए जिस पुण्य धरा पर,
इस जग में जो न्यारा है.
हम भारत के वासी हम तो,
कण -कण इसका प्यारा है.
देश वासियों चलो देश का,
हमको मान बढ़ाना हैं.
दया-धरम सदभाव प्रेम से,
सबको गले लगाना हैं.
द्वेष-कपट को त्याग हृदय से,
सुरभित सुख के हेम रहे.
हिन्दू मुस्लिम,सिख-ईसाई,
सब में अनुपम प्रेम रहे.
मुनियों के पावन विधान ने,
जग को सदा सुधारा है.
हम भारत के वासी हम तो,
कण - कण इसका प्यारा है.
आधुनिक इस दौर में मानव,
पग - पग आगे बढ़ता हैं.
जो रखता है शुभ विचार निज,
कीर्तिमान नव गढ़ता हैं.
भले भिन्न बोली-भाषा है,
फिर भी हम सब एक रहे.
सदियों से भारत वालों के,
कर्म सभी शुभ-नेक रहे.
जिस धरती पर प्रीति-रीति की,
बहती गंगा-धारा है.
हम भारत के वासी हम तो,
कण - कण इसका प्यारा है.
जहाँ वीर सीमा पर अपनी,
पौरुष नित दिखलाते हैं.
समय पड़े तो निज प्राणों को,
न्यौछावर कर जाते हैं.
नहीं डरे हम कभी किसी से,
गर्वित चौड़ी-छाती है.
जहाँ वीर-गाथा यश गूंजे,
भारत भू की थाती है.
अरिदल को अपने वीरों ने,
सीमा पर ललकारा है.
हम भारत के वासी हम तो,
कण-कण इसका प्यारा है.
*****
डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन
रचनाकार- श्रीमती नंदिनी राजपूत, कोरबा
5 सितंबर शिक्षक दिवस,जब यह पावन दिन आता है.
राधाकृष्णन का जन्म दिवस, धूमधाम से मनाया जाता है.
तमिलनाडु के तिरूतनी में, जब हुआ था इनका जन्म.
5सितंबर 1888 को मिला था,भारत को एक अनमोल स्वर्ण.
स्वतंत्र भारत के जब पहले उपराष्ट्रपति व दूसरे राष्ट्रपति बने.
भारतीय संस्कृति के संवाहक,शिक्षाविद,महान दार्शनिक के रूप में कार्य किए.
उनकी प्रथम पुस्तक *द फिलॉसफी ऑफ रविंद्रनाथ टैगोर ने ऐसा मन को भाया.
वर्ष 1954 में उन्हें, भारत रत्न से सम्मानित कराया.
1962 में जब भारत चीन युद्ध में सैनिकों का कदम डगमगाया.
उनके ओजस्वी भाषणों ने, सैनिकों का मनोबल बढ़ाया.
उन्होंने अपना अधिकतम जीवन, एक शिक्षक के रूप में बिताय.
इसलिए अपने जन्म दिवस को, शिक्षक सम्मान के रूप में समर्पित कराए.
एक लंबी बीमारी ने,उन्हें ऐसा तोड़ा.
17अप्रैल 1975 को उन्होंने हमारा साथ छोड़ा.
उस अनमोल हीरे को,हम कभी नहीं भूल पाएँगे.
उनकी याद में हम, शिक्षक दिवस प्रतिवर्ष मनाएँगे.
*****
छत्तीसगढ़ महतारी
रचनाकार- लोकेश्वरी कश्यप, मुंगेली
खनीज सम्पदा से भरपूर,
नदियां फैली बहती दूर -दूर.
यहाँ की हर चीज बहुत मशहूर,
यहाँ का हर बच्चा वीर सपूत.
बांस, तांबा, टिन,लोहा,कोयला,
खनीजों की कमी नहीं यहाँ.
रीति रिवाज़, बोली -भाषा, पकवान,
बढ़ाते है सब छत्तीसगढ़ का मान.
महामाया, दंतेश्वरी,डोंगड़गढ़, बंलेश्वरी,
माता सती के शक्तिपीठ है कई.
प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर,
सुन्दर पर्यटन स्थल है मशहूर कई.
सोम,वाकाटक,फणी नागवंशियों का शासन
प्राचीन जन जातियों का निवास यहाँ.
माता कौशल्या की यह जन्मभूमि,
पंचवटी में श्री राम ने भी किया निवास यहाँ.
बस्तर के शिल्प विदेशो तक प्रसिद्ध,
राजिम छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहलाता.
यहाँ का जनमानस है भोला - भाला,
भोरमदेव छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहलाता.
कल कल छल छल करती बहती,
अरपा, पैरी , सोंढुर, इद्रावती, महानदी.
सब कहते छत्तीसगढ़ धान का कटोरा,
उपजाऊ है हमारी छत्तीसगढ़ महतारी.
*****
मेरी मुस्कान, मेरी पहचान है
रचनाकार- कु.भारती साहू 'धड़कन', करेली बड़ी मगरलोड, जिला धमतरी
गम का आना -जाना है,
गम को मुझे मिटाना है.
जिंदगी जीना आसान है,
मेरी मुस्कान, मेरी पहचान है.
मेरी जान बन गए हो तुम,
मेरी पहचान बन गए हो तुम.
आने वाला बड़ा तूफान हैं,
मेरी मुस्कान, मेरी पहचान है.
मुझको बचाने वाला तू फरिश्ता है,
अब तुझसे मेरा एक नया रिश्ता है.
मेरे लिए सचमुच में तू भगवान हैं,
मेरी मुस्कान,मेरी पहचान है.
देश के लिए मुझे लड़ना है,
संघर्ष लिए आगे बढ़ना है.
मुझको भी देना बलिदान है,
मेरी मुस्कान, मेरी पहचान है.
सभी चलेंगे एक दिन साथ,
एक दूजे के हाथो में लेकर हाथ.
गर्व होगा सबको ये हिंदुस्तान हैं,
मेरी मुस्कान, मेरी पहचान है.
*****
आसमानों से भी ऊंचा जाना है
रचनाकार- ईशा सेन 'आस्मां', कक्षा 12वी शा उ मा वि करेली बड़ी, जिला धमतरी
हर गम सहन कर मुस्कुराना है,
मेरे खिलाफ साजिशों को मिटाना है,
और जो कहते हैं कि तुम झाड़ू पोछा
के अलावा कुछ ना कर पाओगी,
उन्हें भी मेरी काबिलियत दिखाना है,
मुझे आसमानों से भी ऊंचा जाना है,
राह में खड़े तूफानों से टकराना है,
हर अंधकार को मुझे मिटाना है,
संसार में ज्ञान का प्रकाश लाना है,
मुझे आसमानों से भी ऊंचा जाना है,
गिर कर भी मुझे संभलना है,
अपने हक के लिए मुझे लड़ना है,
अपनी मंजिल को पाने खुद को घिसना है,
मुझे आसमानों से भी ऊंचा जाना है,
असंभव को संभव कर दिखाना है,
आग से भी मुझे खेल जाना है,
रुकना नहीं अब, सिर्फ आगे ही बढ़ना है,
मुझे आसमानों से भी ऊंचा जाना है,
मुझे इस दुनिया को अपना रूप दिखाना है,
मैं भी किसी से कम नहीं यह कर बताना है,
हर ऊंचाइयों में भी अपना अधिकार बसाना है,
मुझे आसमानों से भी ऊंचा जाना है,
अब रास्ते से हटना नहीं हटाना है,
मुझे किसी से डरना नहीं डराना है,
साथ ही अपनी मर्यादा को भी बचाना है,
मुझे आसमानों से भी ऊंचा जाना है
*****
विश्व गुरु बनेगा भारत
रचनाकार- रेश्मा साहू 'झाँसी', कक्षा 12 वीं, शा उ मा वि करेली बड़ी, मगरलोड जिला धमतरी
एक नया सूरज उगाकर
लोगों को जगाकर
नया इतिहास रचेगा भारत
विश्व गुरु बनेगा भारत
एकता की अलख जगाकर
हर धर्म को एकजुट लाकर
हम एक खून है कहेगा भारत
विश्व गुरु बनेगा भारत
भूखे को खाना खिलाकर
ऊँच नीच का भेद मिटाकर
हमेशा अमर रहेगा भारत
विश्व गुरु बनेगा भारत
धर्म भले यहाॅं अनेक है
लेकिन हम सब एक है
हर दिल में बसेगा भारत
विश्व गुरु बनेगा भारत
विश्व को परिवार बनाकर
एकता का दीप जलाकर
सबके साथ चलेगा भारत
विश्व गुरु बनेगा भारत
हौसलों की उड़ान भरों
आस्माँ में परवाज़ करों
सारे जग को कहेगा भारत
विश्व गुरु बनेगा भारत
*****
सबसे प्यारे मेरे पापा
रचनाकार- साक्षी सेन, कक्षा आठवीं, शा उ मा वि करेली बड़ी जिला धमतरी
सबसे प्यारे मेरे पापा.
सबसे न्यारे मेरे पापा.
सबकी सुनते मेरे पापा.
सबसे भोले मेरे पापा.
मेरे पापा मेरे पापा.
सब कुछ दिखाते मेरे पापा.
सब कुछ सिखाते मेरे पापा.
खूब तोहफा दिलाते मेरे पापा.
मेरे पापा मेरे पापा.
सबको हंसाते मेरे पाप.
सबको खिलाते मेरे पापा.
सबको दुलारते मेरे पापा.
मेरे पापा मेरे पापा.
सबसे अच्छे मेरे पापा.
भूखे रह मुझे खिलाते मेरे पापा.
मेरे पापा मेरे पापा.
*****
जवान
रचनाकार- दिनेश कुमार साहू, ग्राम करेली बड़ी, मगरलोड जिला धमतरी
सत्य की राह पर चलने वाले होते हैं जवान,
हमेशा अनुशासित रहने वाले होते हैं जवान.
देश के प्रति प्रेम रखने वाले होते हैं जवान,
देश की आन बान और शान होते हैं जवान.
तपती रेत पर सीना तान के खड़े होते हैं जवान,
-20 डिग्री बर्फ पर सीमा पर अड़े होते हैं जवान.
कभी कभी कई कई दिनों तक भूखे सोते हैं जवान,
देश की आन बान और शान होते हैं जवान.
भारत मां के सभी संतान होते हैं जवान,
होठों पर मां का नाम रखने वाले होते हैं,जवान.
दिलों में तिरंगा बसाने वाले होते हैं जवान,
देश के आन बान और शान होते हैं जवान.
देश की हिफाज़त करने वाले होते हैं जवान,
परिश्रम की गंगा से नहाने वाले होते हैं जवान.
देश के लिए मर मिट जाने वाले होते हैं जवान,
देश की आन बान और शान होते हैं जवान.
आतंक का खात्मा वाले होते हैं, जवान,
मरकर भी अमर हो जाने वाले होते हैं जवान.
भारत मां का कर्ज चुकाने वाले होते हैं जवान,
देश की आन बान और शान होते हैं जवान.
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आगे बढ़ना है मुझे
रचनाकार- कु. पेमेश्वरी निषाद, कक्षा 12वीं
कामयाबी की ऊँचाई पे चढ़ना है मुझे,
हिंसा के खिलाफ लड़ना है मुझे.
मेहनत और लगन से पढ़ना है मुझे,
वक्त से आगे बढ़ना है मुझे.
समय से पहले कुछ करना है मुझे,
इसी देश, इसी गाँव में रहना है मुझे.
जीत के आगे अड़ना है मुझे,
वक्त से आगे बढ़ना है मुझे.
सोने से पहले जगना है मुझे,
दौड़ने से पहले दौड़ना है मुझे.
उड़ाने से पहले उड़ना है मुझे,
वक्त से आगे बढ़ना है मुझे.
गिरते - गिरते संभलना है मुझे,
हक के लिए झगड़ना है मुझे.
सच्चाई का हाथ पकड़ना है मुझे,
वक्त से आगे बढ़ना है मुझे.
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वो बचपन
रचनाकार- कु. डोमेश्वरी साहू, कक्षा 12वीं, शा उ मा वि करेली बड़ी, मगरलोड जिला धमतरी
वो बचपन कितना सुहाना था,
जहाँ पापा के कंधों का सहारा था.
कभी माँ के आँचल में छुप जाना था,
जिसका रोज़ का फ़साना था,
वो बचपन कितना सुहाना था.
कभी-कभी रूठ जाने पर
वो पापा का मनाना था,
मम्मी की प्यारी प्यारी हाथों से
भर पेट खाना खाना था.
जिसके लिए करना पड़ता खूब बहाना था,
वो बचपन कितना सुहाना था.
जब डांट पड़ती पापा से
दौड़कर मम्मी के पास जाना था
चोट लगती खेलते खेलते
तो रोते हुए चिल्लाना था.
तभी दौड़ती हुई मम्मी का
हमारे पास आना था,
वो बचपन कितना सुहाना था.
गोद में उठाकर लाड लगाना था,
आते जब पापा काम से
पापा. पापा बुलाना था.
खाने को नही लाते कुछ तो
खूब रूठ जाना था,
वो बचपन कितना सुहाना था.
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मेरी दिवाली
रचनाकार- कु. नुमिता साहू, 12 वीं (आर्टस), शा उ मा वि करेली बड़ी मगरलोड, जिला धमतरी
धनतेरस का था खूब इन्तजार,
चौदस ने लायी बहार.
मैं सबका हाल-चाल पूछती थी,
मेरी दिवाली कुछ ऐसी थी.
त्यौहार में मिले नया उपहार,
जुए में गए धन हार.
त्यौहार के बारे में सोचती रहती थी,
मेरी दिवाली कुछ ऐसी थी.
इस दिवाली बनाए नए पकवान,
कलश के लिए लाए धान.
मैं सबको दिवाली विस करती थी,
मेरी दिवाली कुछ ऐसी थी,,
फटाकों का खूब शोर था,
चहल-पहल चारो ओर था,
हर घर रौशनी रहती थी,
मेरी दिवाली कुछ ऐसी थी.
हर मुहल्ले घूम कर आये थे,
सब के चेहरे पर खुशी लाए थे.
सब मुस्कुराती रहती थी,
मेरी दिवाली कुछ ऐसी थी.
पापा से फटाके मंगवाई थी,
मम्मी से कपड़े खरीदवायी थी.
कलशे को सजाती रहती थी,
मेरी दिवाली कुछ ऐसी थी.
ग्रहण में न कुछ कर सकते थे,
सोच कर मन भरते रहते थे.
मेरी सहेली मुझे याद करती थी,
मेरी दिवाली कुछ ऐसी थी.
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माँ तू जन्नत है
रचनाकार- कु. परमेश्वरी साहू, कक्षा 12वीं (आर्ट्स) शा उ मा वि करेली बड़ी मगरलोड जिला धमतरी
माँ है आरमाँ तारे हैं हम,
माँ के राजदुलारे हैं हम.
तू पास रहे मेरी मन्नत है,
माँ तू मेरी जन्नत है.
उदास कभी रहने न देती,
आँसू कभी बहने न देती.
तू रब, तू ही इबादत है,
माँ तू मेरी जन्नत है.
लोरी गा कर सुलाती हो माँ,
मुझको सीने से लगाती हो माँ.
कितनी अच्छी तेरी आदत है,
माँ तू मेरी जन्नत है.
करती है तू हमसे प्यार,
तुझसे है हमारा संसार.
तुझसे सीखा शराफत है,
माँ तू मेरी जन्नत है.
प्यार से हमें सहलाती हो,
प्यार से हमें नहलाती हो.
सच कहू तू मेरी हिम्मत है,
माँ तू मेरी जन्नत है.
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अपने जन्मदिन पर
रचनाकार- कु. अनिता राव 'मासूम', कक्षा-12 वीं (साइंस) शा उ मा वि करेली बड़ी मगरलोड जिला धमतरी
मैं घी के दीप जलाऊँगी मेरे जन्मदिन पर,
मैं दो-दो पेड़ लगाऊँगी मेरे जन्मदिन पर.
केक शायद मुझे इतना पसंद नहीं है,
गाजर का हलवा बनवाऊँगी मेरे जन्मदिन पर.
मैं कोई किताब लाऊँगी मेरे जन्मदिन पर,
मैं खुद को कहीं ले जाऊँगी मेरे जन्मदिन पर.
मैं वही पुराने कपड़े पहन लूँगी भले,
गरीबों को कपड़े दिलवाऊँगी मेरे जन्मदिन पर.
मैं अक्षर ज्ञान कराऊँगी मेरे जन्मदिन पर,
मैं नेकी की दीवार बनाऊँगी मेरे जन्मदिन पर.
पार्टी का तो मुझको पता नहीं है पर,
यज्ञ हवन करवाऊँगी मेरे जन्मदिन पर.
मैं बुजुर्गों को फोन लगाऊँगी मेरे जन्मदिन पर,
मैं आशीर्वाद खूब पाऊँगी मेरे जन्मदिन पर.
काम के सिलसिले में अक्सर बाहर रहती हूँ,
मैं घर में समय बिताऊँगी मेरे जन्मदिन पर.
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आज की युवा पीढ़ी
रचनाकार- कु. गीतांजलि भारती, कक्षा 12वीं आर्टस, शास उच्च मा वि करेली बड़ी मगरलोड जिला धमतरी
क्या हो गया है हमारे देश
की युवा पीढ़ी को
नशे की लत में युवा पीढ़ी
पागल हो रही है
छोटे छोटे बच्चे छुपाकर
पीने लगे है सिगरेट
जिसके हाथों में चिप्स होता था
आज उसी हाथों में है
सिगरेट का बंडल
सिगरेट की धुँआ
गांजे की लत ने
माँ बाप के सपनों को
चकनाचूर कर रहे हैं.
बेमतलब बुला रहें
अपनी मौत को
ये मेरे भारत के युवाओं
अब तो ऑंखे गोलों जागो.
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सुनों साथियों
रचनाकार- कु. लिलम बघेल, कक्षा 10 वीं, शास उच्च मा वि करेली बड़ी मगरलोड जिला धमतरी
सुनों साथियों मित्रता हो ऐसी
कृष्णा और सुदामा जैसी
सुनों साथियों प्रेम हो ऐसा
मीरा का कान्हा के प्रति जैसा
सुनों साथियों ज्ञानी हो ऐसा
दशानन्द रावण के जैसा
सुनों साथियों भक्त हो ऐसा
राजकुमार प्रहलाद के जैसा
सुनों साथियों पुत्र हो ऐसा
राजकुमार श्रवण के कैसा
सुनों साथियो वीरांगना हो ऐसी
मणिकर्णिका रानी लक्ष्मी बाई जैसी
सुनों साथियों वचन निभाओ ऐसा
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जैसा
सुनों साथियों युवा नेता हो ऐसा
स्वामी विवेकानन्द जी के जैसा
सुनों साथियों स्वामी भक्त हो ऐसा
महाबली हनुमंत के जैसा
सुनो साथियों पत्नि हो ऐसी
सत्यवान की पत्नि सावित्री जैसी
सुनों साथियों युवा ही ऐसा
पंजाब के शेर भगत सिंह जैसा
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चेहरे में क्या रखा है
रचनाकार- अशोक पटेल'आशु', तुस्मा,शिवरीनारायण
चेहरे में क्या रखा है
मन को सँवार के तो देख.
लिबास में क्या रखा है
सोंच को निखार के तो देख.
इंसान में क्या रखा है
इंसानियत दिखा के तो देख.
नफरत में क्या रखा है
मोहब्बत जता के तो देख.
ईर्ष्या द्वेष में क्या रखा है
प्यार का पैगाम देके तो देख.
तेरे गुरुर में क्या रखा है
दिल से दिल मिला के तो देख.
जिंदगी में क्या रखा है
इसके मायने समझ के तो देख.
लोंगों के भीड़ में क्या रखा है
भीड़ मे पहचान बना के तो देख.
दुनिया के मंजर में क्या रखा है
मंजर को जन्नत बना के तो देख.
खुशी की चाहत में क्या रखा है
किसी को खुशयां बांट के तो देख.
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आओ आओ ऐ युवा शक्ति
रचनाकार- अशोक पटेल' आशु', तुस्मा,शिवरीनारायन
आओ-आओ ऐ युवा शक्ति
तुझको है माँ पुकारती.
कर दो तन-मन अर्पित अपना
चाहती यही माँ भारती.
आओ-आओ ऐ युवा शक्ति
सौगन्ध खाएँ तेरी माँ भारती
तेरा सर न कभी झुकने देंगे.
मस्तक तेरा नित ऊँचा रहे
ये सौगन्ध न कभी टूटने देंगे.
आओ-आओ ऐ युवा शक्ति
प्राचीन भारत में जो गौरव था
वह हरदम सलामत रहे.
विश्व गुरु का जो दर्जा था
वह ऊंचा तेरा स्थान रहे.
आओ-आओ ऐ युवा शक्ति
ज्ञान-धर्म-जोतिष-की भक्ति
का तूने ही तो पाठ पढ़ाया है.
धर्म-पथ से जो भटके थे
उनको भी तो राह दिखाया है.
आओ-आओ ऐ युवा शक्ति
तेरी मिट्टी पावन-धरती से
हमे सदा अभिमान रहे.
तनमन मेंरा तुझको अर्पित
तुझसे मेरा स्वाभिमान रहे.
आओ-आओ ऐ युवा शक्ति
तीन रंग का तेरा तिरंगा
फहराए जग में मान रहे.
तेरी महिमा कोई न भूले
विश्व मे तेरा पहचान रहे.
आओ-आओ ऐ युवा शक्ति
केशरिया चोला है अद्भुत
त्याग-तपस्या से भान रहे.
सादा-उजला तेरा अनुपम
हरियाली का तू खान रहे.
आओ-आओ ऐ युवा शक्ति
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राखी का त्यौहार
रचनाकार- गरिमा बरेठ, कक्षा - आठवीं, स्वामी आत्मानंद शेख गफ्फार अंग्रेजी माध्यम शाला तारबहार बिलासपुर
राखी का त्यौहार,
जैसे भाई - बहन का प्यार.
सावन के महिने में है आता यह त्यौहार,
परिवार के लिए यह खुशियां लाता बार -बार.
रंग - बिरंगे धागों से है आती राखी,
भाई-बहन के प्यार को है दर्शाती राखी,
बहनों की रक्षा करते हैं,
यह अहसास दिलाती हैं राखी.
सारे जगो से अच्छा होता है,
भाई - बहन का प्यार.
कहने का मन है करता बार - बार,
आ गया है फिर से राखी का त्यौहार.
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किलोल' पत्रिका
रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र, लखनऊ
मिला 'किलोल' का अंक अगस्त
पढ़कर लगा बड़ा ही मस्त
कविताओं ने किया विभोर
वर्षा में नाचा मन मोर
धन्य - धन्य तुलेंद्र यशस्वी
स्वामी आत्मानंद यशस्वी
'बंदर और खरगोश 'कहानी
देती सीख ज्यों दादी - नानी
'गुरु का महत्व' है सुंदर लेख
सिर झुक जाता गुरु को देख
'चित्र देख कर, लिखो कहानी'
लगती प्रस्तुति बहुत सुहानी
बच्चों की मोहक चित्रकारी
अतिशय लगती प्यारी - न्यारी
'भाखा जनऊला' शब्द पहेली
हम सबकी है सखी - सहेली
' किलोल' पत्रिका रंगबिरंगी
बच्चों की प्रिय साथी - संगी
' किलोल' पत्रिका ज्यों ही आती
पाठकगण को खूब लुभाती
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स्कूल खुला
रचनाकार- कन्हैया साहू 'अमित', भाटापारा
पढ़ने-लिखने के दिन आए.
स्कूल खुला फिर हमें बुलाए.
बीत गए अब पल मस्ती के,
छोड़ें साथ मटरगश्ती के.
चलो खिलौने छोर टिकाए,
स्कूल खुला फिर हमें बुलाए
पुस्तक-कापी, ढूंढो पेंसिल,
पढ़-लिख बनना है काबिल.
अपना बस्ता, पीठ लगाए,
स्कूल खुला फिर हमें बुलाए.
अपनी किस्मत स्वयं बनाओ,
जो चाहो वो तुम बन जाओ.
गुरुजन तुमको राह दिखाए,
स्कूल खुला फिर हमें बुलाए.
पढ़ने-लिखने के दिन आए.
स्कूल खुला फिर हमें बुलाए.
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बारिश आई
रचनाकार- कन्हैया साहू 'अमित', भाटापारा
बारिश आई, बारिश आई,
गरमी की तय हुई विदाई.
बूँदों की सुन मीठी सरगम,
मन करता मैं नाचूँ छमछम.
पुरवाई बहती है मध्यम,
बिजली रानी धूम मचाई.
बारिश आई, बारिश आई.
कोई लेकर चलता छाता,
कोई बारिश बीच नहाता.
कोई गर्म पकौड़े खाता,
लगता जैसे नव तरुणाई.
बारिश आई, बारिश आई.
बेल, लता, कानन इतराते,
निर्मल जल बादल बरसाते.
जीव, जगत, जन जीवन पाते,
लगता जैसे मस्ती छाई.
बारिश आई, बारिश आई.
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आई फ्लू
रचनाकार- कु.कशिश पाल, कक्षा 12 वीं (कृषि ), शा उ मा वि करेली बड़ी मगरलोड, जिला धमतरी
आँखों में लालिमा पन सा छाया हुआ है
ना जाने क्या ये आई फ्लू आया हुआ है
कोरोना के बाद यही छाया हुआ है
देखो क्या आई फ्लू आया हुआ है
मास्क लगाने के दिन चले गए अब
चश्मा लगाने का दिन आया हुआ है
आई फ्लू ने कहर ऑंखों पर ढाया हुआ है
आँखों में लालिमापन छाया हुआ है।
जो करते थे नज़र से नज़र की बातें
अब ऑंख मिलाने से कतराया हुआ है
ये आई फ्लू ने अपना रंग दिखाया हुआ है
गाँव शहर में दहशत छाया हुआ है
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सूरज
रचनाकार- जितेन्द्र सुकुमार 'साहिर', 'एकांत विला' राजिम पदमा तालाब थाना पारा राजिम
पूरब से रोज निकलता सूरज
दक्षिण में जा ढ़लता सूरज
साथ समय के चलता सूरज
हरदम आगे बढ़ता सूरज
गर्मी के मौसम में हमने
देखा आग उगलता सूरज
बारिश का जब मौसम आये
रंग अपना बदलता सूरज
ॲंधियारा हरने के लिए ही
खुद में ही तो जलता सूरज
सर्दी के मौसम में 'साहिर'
तप से अपने पिघलता सूरज
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एन एस एस
रचनाकार- जितेंद्र सुकुमार 'साहिर', NSS सहायक कार्यक्रम अधिकारी, शा उ मा वि करेली बड़ी मगरलोड, जिला धमतरी
दिल के जज़्बात जगाता है एन एस एस.
भटके को राह दिखाता है एन एस एस.
हम क्या हम कौन हमारी ताकत क्या है?
इसका अहसास कराता है एन एस एस.
हर मौसम हर आलम में जी लेने के
हमको अंदाज़ सिखाता है एन एस एस.
करुणा का भरकर के सागर हर मन में
सेवा का भाव जगाता है एन एस एस.
साथ रहें और करें मिलकर काम सभी
हमको यह पाठ पढ़ाता है एन एस एस.
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मैं अपनी जिंदगी महकाउॅंगी
रचनाकार- कु. तारणी साहू, कक्षा 11 वीं (कृषि ), शा उ मा वि करेली बड़ी मगरलोड, जिला धमतरी
हर मुस्किलों से लड़ कर दिखाऊंगी,
दुनिया में नया इतिहास बनाऊंगी.
मैं अपनी जिंदगी शिक्षा से सजाऊँगी,
मैं सबकी आदर्श बनकर दिखाऊँगी.
मैं अपना नया भारत सजाऊँगी,
मैं जहाँ चलूँ नई राह बनाऊँगी.
अपने भीतर के हौसले को जगाऊंगी,
एक बार वक़्त को भी अजमांऊँगी.
मैं जहाँ में नया कुछ कर दिखाऊंगी,
मैं इस बेरंग जिंदगी में रंग लाऊंगी.
मैं अपनी जिंदगी को महकाऊँगी,
मंजिल की तलाश में निकल जाऊँगी.
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मैं भारत की मिट्टी हूँ
रचनाकार- कु. वंदना सेन, कक्षा 11 वीं (विज्ञान संकाय), शा उ मा वि करेली बड़ी मगरलोड, जिला धमतरी
हमारे देश की प्यारी मिट्टी
लिखती है खिलखिलाती चिट्ठी
मै हँसती हूँ, कभी रोती हूँ
मैं भारत की मिट्टी हूँ.
मुझसे बनते है हजारों खिलौने
मुझसे ही गर्मी के दिनों में मटके बने
मैं भी तो प्रकृति की पहचान हूँ
मैं भारत की मिट्टी हूँ.
लोग चलाते है मुझ पर बाण
कड़वी दवाईयाँ डालते
मुझ पर इंसान
इस सबसे बहुत प्रभावित होती हूँ
मैं भारत की मिट्टी हूँ.
मुझसे ही पृथ्वी की ढाल है बनी
मुझसे ही पेड़-पौधों का जीवन है सभी
रात-दिन पेड़ कटते देखकर मैं रोती हूँ
मै भारत की मिट्टी हूँ.
प्रदुषण ने मुझको रुलाया है
खनन ने मुझको हटाया है
पर्यावरण को सताया है
मैं कुछ नही कह पाती हूँ
मैं भारत की मिट्टी हूँ.
किसानों की हूँ मैं बड़ी पहचान.
मुझको मानते है वे भगवान.
फसलें लहराते देख झूम उठती हूँ.
मैं भारत की मिट्टी हूँ.
मेरे लिए लड़ जाती है देश की नारी.
शहीद हो जाते है वीर सैनानी.
मैं सभी के लिए बहुत ही किमती हूँ.
मैं भारत की मिट्टी हूँ.
मानते हैं लोग मुझे धरती माता.
पेड़ - पौधे करते है मुझसे जीवन की आशा.
मैं इनका स्नेह देख बहुत खुश हो जाती हूँ.
मै भारत की मिट्टी हूँ.
मै तालाब का कीचड़ बन कमल उगाती.
पेड़ों की हिम्मत बढ़ा कर जंगल बनाती.
लोंगो के द्वारा भूमि पूजन से मुस्कुराती हूँ
मैं भारत की मिट्टी हूँ.
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IAS के अलावा
रचनाकार- कु. नम्रता राव, कक्षा 12 वीं (आर्ट्स), शा उ मा वि करेली बड़ी मगरलोड, जिला धमतरी
इतना खाली दिल है मेरा
जिसमें किसी का न होगा बसेरा
दिल भी बेचारा चुप चाप ठहरा
इसमें कभी उलझनों का बखेड़ा न होगा
अब सिर्फ IAS की बुलंदियों को छूना है.
इसमें कभी डर का न होगा डेरा
कड़ी मेहनत करके उस मुकाम में पहुँचना है
जहाँ कभी हार का न होगा अंधेरा
अपने देश का नाम ऊँचा करना है.
मेरे खून में कभी रिश्वत का न होगा बसेरा
बस इतना ही खाली दिल है मेरा
जिसमें IAS के अलावा किसी का न होगा बसेरा
किताबों का दरिया पार करना है
टेस्ट सीरीज के पहाड़ों से गुजरना है
IAS बनने के सपने देखने से ही सब कुछ नहीं होगा
हर दिन अपने कमजोरियों से लड़ना है
जब सब चैन से सोयेंगे, मुझे नींद को हराना है
बाकी मेरे हारने का इंतजार करेंगे
पर मुझे जुनून को जगाना है
और कोई अप्सन सोचने की जरूरत नहीं
मेरा लक्ष्य एक ही बस IAS बनके दिखाना है.
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गांधी बाबा
रचनाकार- कु.जितेश्वरी साहू, कक्षा 9 वीं, शा उ मा वि करेली बड़ी मगरलोड, जिला धमतरी
गांधी बाबा तुम हो न्यारे
आजादी दी देश को हमारे
नंगे पैर चलते थे आप
देश के लिए अंग्रेजों से लड़ गए आप
कभी जेल में तो कभी
मार खाते
कोड़े से आप
कभी धूप में तो कभी छांव में
हिम्मत नहीं तोड़ी आपने
कभी भूखे में तो कभी प्यास में आंदोलन रखा आपने
गांधी बाबा ने कष्ट उठाया
काले गोरे का फर्क मिटाया
अंग्रेजों से आजाद किया
गांधी बाबा तुम हो न्यारे
आजादी दी देश को हमारे
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देश हमारा
रचनाकार- कन्हैया साहू 'अमित', शिक्षक- भाटापारा
देश हमारा है सतरंगा
शान हमारी, यही तिरंगा.
नील गगन से बातें करता,
इसे देख दुश्मन है डरता.
रक्षक इसके वीर भुजंगा,
शान हमारी, यही तिरंगा.
केसरिया है सबसे ऊपर,
शौर्य वीरता भरता तत्पर.
बोझिल को कर देता चंगा,
शान हमारी, यही तिरंगा.
श्वेत शांति ही चाहे हरदम,
साथ धैर्य के रखना दमखम.
पहले से ना करना पंगा.
शान हमारी, यही तिरंगा.
हरा रंग कहता खुशहाली,
सबको भाये ये हरियाली.
जीवनदात्री जैसे गंगा,
शान हमारी, यही तिरंगा.
देश हमारा है सतरंगा,
शान हमारी, यही तिरंगा.
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वंदेमातरम
रचनाकार- कन्हैया साहू 'अमित', भाटापारा
वंदेमातरम मैं भी गाऊँ,
मान सिपाही सा मैं पाऊँ,
ड्यूटी मेरी सीमा पर हो,
ताकि सुरक्षित सबका घर हो.
नभ तक मैं झंडा लहराऊँ,
वंदेमातरम मैं भी गाऊँ.
जाति-धर्म के झगड़े छोड़ो,
मानवता से नाता जोड़ो,
भाईचारा सदा बढ़ाऊँ,
वंदेमातरम मैं भी गाऊँ.
करें देश की रक्षा पहले,
हृदय शत्रु का हम से दहले.,
लड़ते-लड़ते अमर कहाऊँ,
वंदेमातरम मैं भी गाऊँ.
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अमर रहे रक्षाबंधन का पर्व
रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु', तुस्मा,शिवरीनारायण
अमर रहे रक्षाबंधन का यह पावन पर्व.
अमर रहे भाई-बहन का यह पावन धर्म.
बहन की रक्षा का भाई यह शपथ लेगा.
भाई अपनी कलाई में राखी बंधवाएगा.
रेशम के धागों में प्रेम-विश्वास झलकेगा.
आस्था प्रेम की राखी हाथ में निखरेगा.
महज धागा नहीं है,यह रेशम का धागा
जन्म-जन्मांतर के प्रेम का है यह बंधन.
रिश्तों की बुनियाद रहे अमर व मजबूत.
सदा रहे अखंड विश्वास यह गठबंधन.
नही तौल सकते हैं रिश्तों को दौलत से
और न निभा सकते हैं ईर्ष्या-नफरत से.
निभा सकते हैं इसे प्रेम आस्था प्यार से.
इसे पावन भी बना सकते हैं,विश्वास से.
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तमाशे वाला
रचनाकार- शीतल बैस, सहा. शिक्षक, शा. प्राथ. शाला मगरघटा, बेमेतरा
चौक चौराहे लगी है भीड़, देखो कोई आए हैं.
अम्मा बोली देखो जाकर, तमाशा दिखलाए हैं.
झटपट दौड़ लगाया बाहर, सब साथी आए हैं.
भालू बंदर देखो ,देखो, सुंदर कपड़े पहनाए हैं.
आंखों देखी को झूठलाए, ऐसे जादू लाए हैं.
गानों की धुन में बच्चे को, रस्सी पर चलवाए हैं.
रोजी-रोटी की तलाश में, जान जोखिम लगाए हैं.
गले जीभ सरिया से छेदे, ऐसे करतब लाए हैं.
छोटी सी रिंग के अंदर से, पूरा शरीर बाहर आए हैं.
खाली टोपी उल्टी रख के, फूल कबूतर लाए हैं.
जान हथेली पर रखकर, पेट की भूख मिटाए हैं.
भीड़ लगी है बहुतों की, पर चिल्लर कुछ ही आए हैं
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नए भारत को साकार रूप देना हैं
रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया, महाराष्ट्र
प्रौद्योगिकी पर जोर देकर,
विकास को बढ़ाना है.
कल के नए भारत को,
साकार रूप देना है.
साथ मिलकर महत्वपूर्ण,
भूमिका निभाना है.
संकल्प लेकर सुशासन को,
आखिरी छोर तक ले जाना है.
भ्रष्टाचार को रोककर सुशासन को,
आखरी छोर तक ले जाना है.
सरकारों को ऐसी नीतियां बनाना है,
भारत को सोने की चिड़िया बनाना है.
आधुनिक प्रौद्योगिकी युग में भी,
अपनी जड़ों से जुड़कर रहना है .
प्रौद्योगिकी का उपयोग
कुशलतापूर्वक करना है.
भारत को परिवर्तनकारी,
पथ पर ले जाना है.
सबको परिवर्तन का सक्रिय,
धारक बनाना है.
न्यूनतम सरकार अधिकतम,
शासन प्रणाली लाना है.
सुशासन को आखिरी,
छोर तक ले जाना है.
भारतीय लोक प्रशासन को,
ऐसी नीतियां बनाना हैं
वितरण प्रणाली में भेदभाव,
क्षमता अंतराल को दूर करना है.
लोगों के जीवन की गुणवत्ता
कौशलता विकास में सुधार करके
सुखी आरामदायक बेहतर
ख़ूबसूरत जीवन बनाना है.
सुविधाओं समस्यायों, समाधानों
की खाई पाटना है.
आम जनता की सुविधाओं को
अधनुतिक तकनीकी से बढ़ाना है.
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कोशिका
रचनाकार- कामिनी जोशी, kgbv दुल्लापुर बाजार
हमारे शरीर की रचनात्मक इकाई
जो कोशिका कहलायी.
आकार इनका मधुमक्खी के छत्ते के समान,
वह दिखता है प्यारा ईटों का मकान.
इनके बिना शरीर का कोई नहीं आधार
हर कोई अधूरा है बच्चा स्वस्थ हो या बीमार,
कई प्रकार की होती है जीवो में इसकी आकृति,
चिपचिपा पदार्थ जीवद्रव्य इसमें तैरते रहती.
हमारे शरीर की रचनात्मक इकाई
जो कोशिका कहलायी.
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रक्षाबंधन
रचनाकार- सुशीला साहू, रायगढ़
भाई बहन का प्यारा रिश्ता,
आया राखी का त्यौहार.
मन भावन खुशियाँ हैं छाई,
देखो प्यार भरा संसार.
लड्डू पेड़ा बरफी देखो,
भरकर थाली बहना लाई.
रोली चंदन से थाल सजा,
आरती कर तिलक लगाई.
रेशम की डोरी बांध कर,
दुआ मांगती बारम्बार.
प्रीत निभाती प्यारी बहना,
देता भाई प्यारा उपहार.
रंग बिरंगे धागों के संग,
हर सावन में आती है राखी.
छोटी-छोटी नोक झोंक होती,
फिर भी है आपस में प्यार.
सदियों से है चली आ रही,
रक्षाबंधन का यह त्योहार .
*****
शिक्षक चालीसा
रचनाकार- कन्हैया साहू 'अमित'
दोहा:-
जगहित जलता दीप सम, सहज, मृदुल व्यवहार.
शिक्षक बनता है सदा, ज्ञान सृजन आधार.
चौपाई:-
जयति जगत के ज्ञान प्रभाकर. शिक्षक तमहर श्री सुखसागर.-1
वंदनीय विद्या विज्ञापक. अभिनंदन अधिगुण अध्यापक.-2
आप राष्ट्र के भाग्य विधाता. सदा सर्वहित ज्ञान प्रदाता.-3
जन-जन जीवनदायी तरुवर. प्रथम पूज्य हैं सदैव गुरुवर.-4
शिक्षित शिष्ट शुभंकर शिक्षक. विज्ञ विवेचक विनयी वीक्षक.-5
अतुलित आदर के अधिकारी. उर उदार उपनत उपहारी.-6
लघुता के हो लौकिक लक्षक. सजग, सचेतक सत हित रक्षक.-7
वेदित विद्यावान विशोभित. प्रज्ञापति हो, कहाँ प्रलोभित?-8
अंतर्दर्शी हैं आप अभीक्षक. प्रमुख प्रबोधी प्रबुध परीक्षक.-9
विद्याधिप विभु विषय विशारद. उच्चशिखर चमके यश पारद.-10
विश्व प्रतिष्ठित प्रबलक पारस. ढुनमुनिया मति के दृढ़ ढारस.-11
होने देते कभी न अनुचित. सीख सिखाते सबको समुचित.-12
क्षमाशील हिय अतुलित क्षमता. समदर्शी सत स्नेहिल समता.-13
नमस्य नामिक दोष निवारक. तथ्यान्वेषी तदधिक तारक.-14
अतुलनीय निज जीवन अनुभव. कहकर बाँटे तनया तनुभव.-15
भलमनसाहत भूर भलाई. हृदय गाढ़ गुणकर गहराई.-16
समय निष्ठ सह अति अनुशासी. सहज, सरल होते मृदुभाषी.-17
शांतचित्त यह दृढताधारी. करते काज सर्वहितकारी.-18
शिक्षक सचमुच सीख सिखाते. अनुभव धारित मार्ग दिखाते.-19
नित्य सीखने रहते आतुर. चौकस चित, चिंतामणि चातुर.-20
शिष्यगणों के यही चहेते. देते सबकुछ, मोल न लेते.-21
नैतिकता का पाठ पढ़ाते. हाथ पकड़ निर्बाध बढ़ाते.-22
जन-जन से शिक्षा को जोड़े. मिथक धारणा तत्पर तोड़े.-23
शिक्षित करते अगली पीढ़ी. शीर्ष सफलता, बनते सीढ़ी.-24
सामाजिकता के गुण भरते. कर्म सदा जनहित में करते.-25
दीपक सा ये करे उजाला. शिक्षक लगते ज्यौं मणिमाला.-26
छलछंदों को शिक्षक छाँटे. ज्ञान संपदा सबको बाँटे.-27
कभी न कोई रहे निरक्षर. पहचानें सब स्वर्णिम अक्षर.-28
नवाचार के ये अनुयायी. शिक्षार्थी के सदा सहायी.-29
मातु-पिता सम बनते पोषक. तथ्य तथागुण शिक्षक तोषक.-30
कभी न अध्यापक अभिमंता. गुणाकार गुरुजी गुणवंता.-31
शिक्षक सबको योग्य बनाये. पढ़ा-लिखाकर खुशी मनाये.-32
बाल सखा सा बन सहगामी. कुशल कार्य करते अनुकामी.-33
खेले-कूदे, नाचे-गाये. हार्दिकता से हिय हर्षाये.-34
शिक्षक श्रेष्ठ राष्ट्र निर्माता. विद्याभूषण विधि विख्याता.-35
प्रथम ईश से शिक्षक पूजित. कीर्ति पताका नभ तक गुंजित.-36
अध्यापक बन काज सँवारे. कोई शिक्षक, गुरू पुकारे.-37
नमन करूँ मैं अपने गुरुजन. जिनसे सँवरा यह जग जीवन.-38
अमित' कहाँ कुछ लिख पाता. यदि जो शिक्षक नहीं सिखाता.-39
सदा रहूँ शिक्षक का चाकर. नित्य नमन है श्री विद्याधर.-40
दोहा:-
आत्म निवेदन आपसे, करें कृपा की वृष्टि.
हाथ थाम मेरा रखें, जब तक है यह सृष्टि.
*****
जन्माष्टमी
रचनाकार- जानवी कश्यप ,आठवीं ,स्वामी आत्मानंद तारबहार बिलासपुर
मेरे गोपाल जी का दिन आ रहा है,
खुशियां भी आएगी,
मेरे पूरे सवाल का हल भी निकलेगा.
मिश्री से भी मीठा नंदलाल का बोल है,
माखन चोर नंद किशोर है.
नटखट हो पर मनमोहक हो,
रंग के सावले हो पर दिल के साफ हो.
आपसे कुछ भी मांगो सब कुछ मिल जाता है.
एक आप ही तो हो जो सबको इतना प्यार करते हो.
*****
आजादी
रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र, लखनऊ
मेरी प्यारी - प्यारी दादी.
मिट्ठू बंद पड़ा पिंजड़े में
क्यों छीनी उसकी आजादी.
माना बड़े प्यार से पाला
पानी रखा है, दाना डाला
कबसे पर फड़फड़ा रहा है
झेल रहा अपनी बर्बादी.
बाहर होता, नभ में उड़ता
अपने मित्रों के सँग जुड़ता
निज कुटुंब से दूर हो गया
गुमसुम रहने का अब आदी.
बेचारा 'टें टें टें' करता
छोटे खतरों से भी डरता
जो सिखला दो, वही बोलता
परवशता में चुप्पी लादी.
बंधन लगता सबको भारी
सब जीवों की दुनिया न्यारी
जल्दी मुक्त करो मिट्ठू को
आजादी की पिटे मुनादी.
मेरी प्यारी - प्यारी दादी.
*****
हिंदी
रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र, लखनऊ
हमको प्यारी, भाषा हिंदी.
जन - जन की अभिलाषा हिंदी.
कर्म - धर्म में रची - बसी है
भारत की परिभाषा हिंदी.
ज्ञान और विज्ञान है हिंदी.
संस्कृति की पहिचान है हिंदी.
सहज, सरल. मधु जैसी मीठी
जननी का जयगान है हिंदी.
राष्ट्रसंघ की शान है हिंदी.
उन्नति का सोपान है हिंदी.
जग में यश - सम्मान पा रही
विखराती मुस्कान है हिंदी.
आओ! हम सब,बोलें हिंदी .
संस्कारों में घोलें हिंदी.
माता - सा सम्मान करें हम
एक सूत्र में पिरो लें हिंदी.
*****
नारी की कहानी
रचनाकार- कु. विरम निषाद, कक्षा 12वीं, शा उ मा वि करेली बड़ी मगरलोड, जिला धमतरी
जीवन भर परायापन, तुम्हारी यही कहानी.
होंठों पे ख़ुशी झलकती और ऑंखों मे पानी.
ना जाने किस -किस पर बीती यही कहानी.
दहेज प्रथा से अभिशाप बन गई है जिंदगानी.
दहेज को उपहार मानकर क्यों रचाते हैं शादी.
और कौन समझेगा कन्यादान की परेशानी.
ससुराल आये दो दिन ही हुए, हुई शुरू कहानी.
पैरों की धूल समझकर बना दी गई नौकरानी.
रोक लगी बाल विवाह पर ,लोगों की मनमानी .
भारत में बत्तर हो गई थी जागे निंद जवानी.
एक हजार एक रातें सुनी है सब ने कहानी.
पति के हाथों कत्ल रोजाना होती थी अर्धांगिनी.
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कहाँ खो गया मेरा मन
रचनाकार- कु. विद्या निषाद (कला संकाय), कक्षा 12 वीं, शा उ मा वि करेली बड़ी मगरलोड, जिला धमतरी
न जाने कैसी हूँ मैं,
खुद से कहती हूं मैं.
कहाँ है मेरा ध्यान,
कहां खो गया है मेरा मन.
सितारों पे नजर पड़ गई,
समुद्र में लहरें ठहर गई.
धड़क रही है मेरी धड़कन,
कहाँ खो गया मेरा मन.
हो दोस्तों से मुलाकातें,
हो जाती है खूब बातें.
हो जाती थी मैं मगन,
कहाँ खो गया मेरा मन.
किसी का हूँ मैं सहारा,
तूने मुझे क्यों ललकारा.
बेहद सुंदर रहा मेरा बचपन,
कहां खो गया मेरा मन.
दिल बेचारा है गुमसुम चुप,
कितना निखारा है रूप.
अपनों ने देख लिया दर्पण,
कहाँ खो गया मेरा मन.
*****
मेरी माँ
रचनाकार- कु.प्रीति साहू, कक्षा 11 वीं कला, शा उ मा वि करेली बड़ी मगरलोड, जिला धमतरी
माँ से ना कोई अच्छा,
ना माँ से कोई प्यारा,
सबसे अच्छी मेरी माँ,
प्यार बरसाये हम पर माँ,
मैं माँ की लाडली,दुलारी,
माँ है मेरी सबसे प्यारी,
सबसे अच्छी मेरी माँ,
प्यार बरसाये हम पर माँ .
गोद में रखकर है सुलाया,
माँ के आँचल में जग समाया.
तेरी लोरी ने मुझे सुलाया,
तेरा यूं डाटना हमें समझाया.
माँ है तो दुनिया सारी,
माँ नही तो बेरंग है सारी.
सबसे अच्छी मेरी माँ,
प्यार बरसाये हम पर माँ.
मैं हूँ माँ की लाडो रानी,
माँ सुनाती रोज कहानी.
सबसे अच्छी मेरी माँ,
प्यार बरसायें हम पर माँ.
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मेरे भाई
रचनाकार- कु. गीतांजलि साहू, कक्षा 11 वीं, शा उ मा वि करेली बड़ी मगरलोड, जिला धमतरी
कहीं गलियों में नजर आए थे वो एक दिन
मुझे देखकर मुस्कुराए थे वो एक दिन.
ऑंखों से आंसू जब बहुत बहाया था मैंने.
गुडिया कहकर चुप कराए थे वो एक दिन
हँस रही थी उनकी बातों पर खिलखिलाकर मैं.
पागल बोल हॅंसी मेरी उड़ाए थे वो एक दिन.
चोट लगी रस्ते में जब मुझको.
घाव में मरहम लगाए थे वो एकदिन.
भूख मुझको जब जोरो से लगी थी
हाथों से अपने खिलाए थे वो एक दिन.
झगड़ा करके की भी लाड़ली बोलकर
मुझे रूठने पर मनाए थे वो एक दिन.
रक्षा बंधन मे गई थी जब मैं राखी बांधने
उपहार खूब दिलाये थे वो एक दिन
बहुत याद आ रही है आपकी मुझको.
भईया मोटी बोलकर बुलाओ न मुझे एक दिन.
*****
मेरा सच्चा साथी
रचनाकार- अशोक कुमार यादव मुंगेली
मेरा सच्चा साथी माता और पिता है,
जिसने पालन-पोषण कर बड़ा किया.
मेरा सच्चा साथी महाज्ञानी गुरुदेव है,
जिसने मुझे काबिल बनने ज्ञान दिया.
मेरा सच्चा साथी शिक्षामणी पुस्तक है,
जिसे पढ़कर मैंने सफलता प्राप्त की.
मेरा सच्चा साथी हर वो नेक इंसान है,
जिसने दुःख के समय में मेरी मदद की.
मेरा सच्चा साथी शरीर के प्रत्येक अंग है,
जो मुझे कर्म करने के लिए किया प्रेरित.
मेरा सच्चा साथी हमउम्र के सभी मित्र है,
जो गुणों और अवगुणों को किये चित्रित.
सच्चा साथी भगवान कृष्ण और सुदामा थे,
केवल नाम सुनकर ही प्रभु दौड़े चले आये.
विप्र के मनोकामना पूरी हुई, खुशियाँ मिली,
सखा को भाव विभोर होकर गले से लगाये.
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मीठी आज पढ़ने स्कूल चली थी
रचनाकार- श्रीमती अन्नपूर्णा यदु, बलौदा बाजार
उम्मीदों से पूरी भरी थी
वह धीमे-धीमे चली थी
चिड़ियों सी चहचहाती
निश्छल खिलखिलाती
आशाओं के पंख फैलाकर
वह एक उड़ान भरने चली थी
मीठी आज पढ़ने स्कूल चली थी.
ख्वाबों को अपने महकाने
दिवा- दिवा अवसर सजाने
कामयाबी की सीढ़ियां कई
नई बुलंदियों को छूने चली थी
एक नया इतिहास रचने चली थी
मीठी आज पढ़ने स्कूल चली थी.
आतुर नैना आनन प्रसन्न
कल्पनाओं से थी परिपूर्ण
हृदय में एक आस संजोए
राब्ता वह सबसे निभाने चली थी
मीठी आज पढ़ने स्कूल चली थी
लकड़ी कंकड़ बीज रंगीले
दिवा -दिवा मोर पंख सजीले
सुना था उसने सबसे कहते
नित नवीन होता है हटके
गीत कहानी चिड़िया बंदर
सभी सीखे शाला के अंदर
अपने नए सहपाठियों से मिलने चली
मीठी आज पढ़ने स्कूल चली थी
खुद से खुद की बातें करती
इक- इक पग धरा पर धरती
तितलियों सी थी सजी रंगीली
मन में एक विश्वास भरते चली थी
मीठी आज पढ़ने स्कूल चली थी.
*****
स्त्री
रचनाकार- श्रीमती अन्नपूर्णा यदु, बलौदा बाजार
भावों को समझने वाली
इंसान को उसके नजरों से पहचानने वाली
सबके जीवन में रंग भरने वाली
सभी में ऊर्जा भरने वाली
सभी के जीवन को आधार देने वाली
क्या रूप बताऊँ उसके
क्या-क्या गुण गिनाऊँ उसके
सुबह से शाम तक अपने कर्तव्यों को पूरा ही करती
हर रोज अपने रिश्तो में प्यार की महक है भरती
माला में सुमेरु का बड़ा महत्व है होता
वही महत्व घर में उसका है होता
कभी दुर्गा कभी काली का रूप है तू
विष्णु प्रिया लक्ष्मी तू ही शक्ति है अंबा भी तू
देवी स्वरूपा को कभी कम ना आंक तू
हंस वाहिनी है जो सभी को ज्ञान प्रदान है करती
आओ मिलकर गुणगान करें ईश्वर का वरदान होती है स्त्री.
*****
मै और मेरी कोशिशे
रचनाकार- सृष्टि प्रजापति, कक्षा-8, स्वामी आत्मानंद तारबहार बिल
ासपुर
मुझे चाहत है,सफलता की
मेरा राह है संर्घष का.
हौसला मेरा बुलंद है.
परेशानियों को आ गया मुझे सँभालना.
हर परिस्थिति मे मुस्कुराती हूँ.
मेरी खासियत है,मै खुद मे ही खुश हो जाती हूँ.
मेहनत करके जब थक जाती हूँ.
अपने ही सपनों को मन मे सजाकर फिर से शुरू हो जाती हूँ.
हर वक्त कोशिश करती हूँ,
अपने आज को कल से बेहतर बनाने की.
मै चाहती हूँ जमीन पर रहकर,
आसमान को पाने की.
भीड़ मे नही चलना मुझे,
मुझमे हिम्मत है,भीड़ से अलग निकलकर अपना स्वयं बनाने की.
मैने खुद से ही एक वादा किया है.
अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का संकल्प लिया है.
*****
बढ़ना होगा
रचनाकार- श्रीमती योगेश्वरी साहू, बलौदा बाजार
काली घनेरी रात को
चीर कर आगे जाना होगा
लड़ना होगा हां मुझे बढ़ना होगा.
रीति से रिवाज से
घर से समाज से
अपने परिवार से
और खुद अपने आप से
लड़ना ही होगा हां मुझे बढ़ना होगा.
कोई नहीं दोस्त सिवा तुम्हारे
कोई नहीं दिखाता राह सिवा तुम्हारे
इसलिए मुझे पढ़ना होगा
हां बढ़ना है तो मुझे पढ़ना ही होगा.
खुले दिमाग के लिए
अच्छे विचार के लिए
नए ओज के लिए
नए तेज के लिए
मुझे पढ़ना होगा हां मुझे बढ़ना होगा.
बहुत हुआ छींटाकशी
अब तुम्हारे हाथों को थामना होगा तानाशाही से ऊपर उठकर
दबाने कुचलने से हटकर
तुम्हें ऊपर उठाना होगा
हां बढ़ाना ही होगा
तुम्हें साथ लेकर मुझे बढ़ना ही होगा.
अपने मान के लिए
अपने सम्मान के लिए
अपने मुकम्मल जहा के लिए लड़ना ही होगा हां मुझे बढ़ना होगा.
संघर्षों को स्वीकार कर
मुश्किलों से टकराकर
नया भविष्य गढ़ना होगा
नई राहों में मुझे बढ़ना होगा.
लड़ना होगा हां मुझे आगे बढ़ना ही होगा.
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गाँव हमारा
रचनाकार- डॉ. सतीश चन्द्र भगत
न्यारा- प्यारा
गाँव हमारा.
रोज सबेरे
उठती मइया,
हमें जगाती
सोनचिरैया.
सुबह- सबेरे
उठकर दादा,
सैर कराते
करते वादा.
लिखते- पढ़ते
गोपू भइया,
जल्दी- जल्दी
चरती गइया.
खेत- खेत में
अच्छी फसलें,
फूलों जैसे
बच्चे हंसले.
इतराते हैं
सब मुस्काते,
बच्चे मिलकर
पढ़ने जाते.
शाम ढले तब
घर आ जाते,
खेल- खेल में
हंसते गाते.
*****
नल का पानी
रचनाकार- दीपेश पुरोहित, जांजगीर चाम्पा
सुबह -सुबह आता है मेरे, घर में नल का पानी.
धमा- चौकड़ी खूब मचाता, घर में नल का पानी.
सुबह -सुबह सारे बर्तन, जोर खूब लगाते.
आगे -पीछे बारी -बारी, नल के नीचे आते.
खूब भरते, और उछलते, शोर खूब मचाते.
नल इतराता, खूब मचलता,कहता नई कहानी.
सुबह -सुबह आता है मेरे, घर में नल का पानी.
मम्मी मुझको डांट -डपट कर, रोज बिस्तर से लाती.
सुबह -सुबह नल के आगे, साबुन लगा नहलाती.
बस मग्गे से डाल डालकर,पानी खूब बचाती.
ठंडी मौसम में नहाकर, याद आ जाती नानी.
सुबह-सुबह आता है मेरे, घर में नल का पानी.
नल का पानी बून्द बून्द, बचाना हमें सिखाती.
उस पानी से पौधों को,सींच- सींचकर,बढ़ाती.
इंतजार में कभी- कभी, गुस्सा मम्मी दिखाती.
उस दिन चुपचाप आता, घर में नल का पानी.
सुबह-सुबह आता है मेरे, घर में नल का पानी.
*****
कोयल रानी
रचनाकार- सूर्यदीप कुशवाहा, वाराणसी
कोयल रानी आओ न
कुहूक-कुहूक कर गाओ न
नहीं बजाती तुम तबला
नहीं पहनी हो झबला
छिप-छिपकर पेड़ों पर
मधुर गीत सुनाती हो.
शोर मत करो कोई
चुप रहकर सुनो हर कोई.
कोयल गीत गाती हैं
उसकी मीठी वाणी है.
कुहूको सब मिलकर
तब चिढ़कर गाना गाती है
आम के बौर में छिपी हुई है
मुझको आज दिखी है.
सबके लिए बेचारी गाती
उड़-उड़कर पेड़ों पर जाती
कुहूक-कुहूक कर गीत सुनाती
सब काम छोड़कर आती है.
*****
जीवन में यह संकल्प लें
रचनाकार- गायत्री पाल, कक्षा ११वीं, शा उ मा विद्यालय बेलौदी,मगरलोड धमतरी
जीवन में यह संकल्प लें
हंसी दो और हंसी लो
एक हंसी से मिलेगी दुवाएं
जीवन हो जाएगा सुखमय.
बड़े बुजुर्गों को खुशी दें
मिलेगा सदा आशीर्वाद
दादी मां की लोरी सुनकर
रह जायेंगी यादें बनकर.
दूसरों की खुशी में ही
हमने हंसना सीखा है
दूसरों को खुशी देकर
सुखद अनुभव हुआ है.
खुश रहे यह जग–न्यारा
हंसी से खिलेगा जग–सारा
जग में सुख–दुख का चलना
निशदीन यह चक्र चलता है.
एक मिनट दुख के लिए
पूरा दिन व्यर्थ निकलता है
सोचें जब हम सकारात्मक
होगी दूर यह नकारात्मकhttp://alokshukla.com
*****
सपने
रचनाकार- गायत्री पाल कक्षा ११वीं, शा उ मा विद्यालय बेलौदी, मगरलोड धमतरी
नन्हे–नन्हे आंखों में,
सपने सजाए
गुड़िया रानी सपनों के
महल में बैठी.
जन्म लिया परी ने जब
सपने सजा लिया अपने
उसे क्या पता सपने पूरे करने में
रुकावटें पैदा होती है हजार.
विद्यालय का वो पहला दिन
नन्ही परी की पहली उड़ान
हंसती खेलती रहती हरदम
चंचल स्वभाव मीठी है मुस्कान.
धीरे–धीरे बढ़ती है नन्ही परी
और बढ़ते हैं उसके सपने
सपनों की उड़ान भरने के लिए
जब होती है वह तैयार
तब होती है जिंदगी के
पड़ाव का एक नया दौर.
कितनों ने टोका परी को
मां बाप के लिए परी ने
तोड़े अपने सारे सपने,
और हो गई यह भी परी
वही अन्य परियों के जैसे.
*****
किसान की बेटी हूं
रचनाकार- गायत्री पाल कक्षा ११वीं, शा उ मा विद्यालय बेलौदी,मगरलोड धमतरी
किसान की बेटी हूं मैं,गर्व से यह कहती हूं
देखी मैंने अपने पिता की आंखों में,
सुबह सुबह हम जाते हैं खेत–खलिहानों में
दृढ़ संकल्प लेकर करते हैं निशदिन मेहनत.
बैलों के घांघड़ बाजे खन–खन–खन
और खेतों की जुताई करने लगते हैं
फिर फसल लह–लहाते हैं खेतो में
किसान की मेहनत व्यर्थ नहीं जाती हैं.
किसान पसीना बहाएगा तभी अन्न उगेगा
और यह दुनिया पेट भरके खाना पाएगा
इन्ही के बदौलत चलती है यह दुनिया
ये खुश रहेंगे तो इंसान भी खुश हो पाएगा.
*****
देश की बेटी
रचनाकार- परवीनबेबी दिवाकर, मुंगेली
देश की बेटी बनकर तुम,
जग में ऐसे छाना,
करके काम बड़ा तुम,
देश का मान बढ़ाना.
मन में हौसला भरकर,
तुम, तूफानों से लड़ जाना,
करना देश की सेवा,
इंदिरा सा -छा जाना.
आँख उठाये देश पर जो,
उन पर भारी पड़ जाना,
करके काम बड़ा तुम,
देश की मान बढ़ाना.
संघर्षों के इस दौर में भी,
डटकर सामना करना,
लहराना अपने नाम का
परचम, दुनिया में छा जाना.
*****
सत्यनिष्ठा का भाव
रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
भारत की संस्कृति व मिट्टी में ही है
सत्यनिष्ठा का भाव
तभी तो सत्यनिष्ठा से आत्मनिर्भरता अभियान में
साथ देकर भारतीयता का फ़र्ज़ निभा रहे हैं
भारत को आत्मनिर्भर बनाना है
प्रोत्साहन देकर संकल्प ले रहे हैं
वेबिनार डिबेट प्रतियोगिताएँ शुरू हैं
संकल्पों का दौर भी शुरू है
भारत @ 75 के उपलक्ष्य में
कार्यक्रमों के आयोज़न हो रहे हैं
सत्यनिष्ठा से आत्मनिर्भरता के
जागरूकता कार्यक्रम हो रहे हैं
वोकल फॉर लोकल की अपील
पीएम हर संबोधन में कर रहे हैं
जनता सत्यनिष्ठा से साथ देकर
भारत निर्मित सामान अपना रही है
*****
यह कैसी है आजादी?
रचनाकार- अशोक कुमार यादव मुंगेली
नारी घर से निकल नहीं सकती, शातिर भेड़िये ताक रहे.
उल्लू और चमगादड़, देकर संदेश कोटर से झाँक रहे.
सुख-चैन और नींद को छीनने, गली-गली घूमते हैं पापी.
बेटियाँ सुरक्षित नहीं है भारत में, यह कैसी है आजादी?
कोई दहेज के लिए प्रताड़ित होकर, जल रही हैं आग में?
जुल्म और सितम को सहना, लिखा है नारियों के भाग में.
कम उम्र में ही कर दी जाती है जोर-जबरदस्ती से शादी.
बेटियाँ सुरक्षित नहीं है भारत में, यह कैसी है आजादी?
शराबी पति शेर बन दहाड़ रहे, पत्नी को समझकर बकरी.
दुःख के पलड़े में झूल रही जिंदगी, नरक की तौल-तखरी.
व्याकुल मन की चीख-पुकार अब खोल रही द्वार बर्बादी.
बेटियाँ सुरक्षित नहीं है भारत में, यह कैसी है आजादी?
प्राचीन काल से ही गौरव नारी हुई थी शोषण का शिकार.
अब दुर्गा बन कलयुगी दानव महिषासुर का करो संहार.
पढ़-लिख कर आत्मरक्षा के लिए बननी होगी फौलादी.
जिस दिन बेटियाँ सुरक्षित रहेंगी, उसी दिन मिलेगी आजादी.
*****
राखी का त्यौहार
रचनाकार- कु.आस्था साहू, कक्षा-१० वीं, शा उ मा वि बेलौदी, मगरलोड,जिला,धमतरी
राखी का यह है, प्यारा त्यौहार
सभी के मन में, आया है बहार.
भाई-बहनों में है खुशहाली छाई
सभी के मन में है, मिठास आई.
बांधे भाई के कलाई में यह धागा
माथे में तिलक मन में स्नेह जागा.
मेरे भैया तोहफ़े को भूल न जाना
राखी का यह प्यारा त्यौहार मनाना.
भाई-बहन का प्रेम सदा अमर रहे
राखी का त्यौहार ये संदेश देता रहे.
*****
एक पेड़ लगाओ
रचनाकार- कु.गायत्री पाल, कक्षा-११ वीं, शा उ मा वि बेलौदी, मगरलोड,जिला,धमतरी
सोंचो अभी भी वक्त है,तुम्हारे पास
निकट समय आने पर हाहाकार होगा
सारी पृथ्वी चीखेगी और चिल्लायेगी
तब समझ पाओगे मेरी अहमियत
मेरी तुम्हारी सबकी इस जिंदगी में.
बंद करो मनुष्यों इस पर जुल्म ढाना
एक पेड़ लगाओ,सबकी जान बचाओ
अक्सीजन और हरियाली की कमी को
जल्दी-जल्दी तुम पुरी कर जाओ.
प्रदूषण भरी इस सारी पृथ्वी को
तुम सुंदर हरा-भरा बनाओ
यह पृथ्वी भी हरदम खुश रहेगी
यह संसार भी खुश हो जाएगा
इस धरा पर सुंदर स्वर्ग उतर आएगा.
*****
घरौंदा
रचनाकार- वसुंधरा कुर्रे, कोरबा
सुंदर सा घरौंदा माटा चाटा का
रहते सब समूह में मिलजुल कर
सुंदर सा घरौंदा माटा का
पेड़ों के पत्तों से बनाते सुंदर सा घरौंदा
सब पत्तों को जोड़कर गेंद की तरह
गोल-मटोल इनका घरौंदा.
धूप, हवा, पानी से बचाए इनका घरौंदा
लगता कितना सुंदर इनका घरौंदा
हजारों की संख्या में रहते एक साथ
न लड़ना, न झगड़ना, न कोई बैर
सब मिलकर रहते घरौंदे में
कितना सुंदर इनका घरौंदा.
*****
काले काले बादल
रचनाकार- वसुंधरा कुर्रे, कोरबा
काले -काले बादल घड़घड़ करते आते
आते ही काले बादल बूँदें बरसाते.
वर्षा की पहली बूँदें जब पड़ती वसुंधरा पर
वसुंधरा महकती सौंधी-सौंधी
महक से मन प्रफुल्लित हो जाता.
वर्षा की बूँदें जब पड़ती कमल के पत्तों पर
हवा से पत्ते हिलोर मारते
बूंदें मोती की तरह नाचने लगतीं.
वर्षा की बूँदें जब पड़ती वनों पर
हरी-भरी सुंदर कोमल पेड़ों की पंखुड़ियाँ
हरी साड़ी से ढकी हुई झाँकने लगतीं.
वर्षा की बूँदें जब पड़ती गर्म चीजों पर
कूद-कूद कर नाचने लगतीं.
वर्षा की बूँदें जब पड़ती शरीर पर
मन करता मस्तमौला आनंद लेती रहूँ.
*****
चलो आगे बढ़ो
रचनाकार- कु.चांदनी साहू, क्लास–10th, शास उ मा वि बेलौदी, मगरलोड,धमतरी
आओ चलें हम आगे बढ़ें हम
स्कूल चलें हम पढ़ाई करें हम
दुनिया की सारा मोह छोड़ें हम
आगे बढ़ो तुम आगे बढ़ें हम
लोग जलते हैं, लोग बिगड़ते हैं
लोगों में ही बनते व बिगड़ते हैं
भेद-भाव छोड़ो साथ में रह लो
खूब पढ़ाई करो व आगे बढ़ लो
खूब खेलो-कूदो खूब हँस लो
जीतने की अब आशा कर लो
सत्य से ही दुनिया आगे बढ़ती
सत्य से ही दुनिया यह चलती
आओ चलें हम आगे बढ़ें हम
स्कूल चलें हम पढ़ाई करें हम
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सावन और बसंत
रचनाकार- भजनलाल हंस बघेल, हरियाणा
शिक्षा, संस्कृति, कला, ज्ञान और ध्यान से महकता जीवन संसार.
सर्दी और पतझड़ के बाद ही आती बसंत- बहार.
त्याग,तपस्या और बलिदान से जीवन होता पावन.
भीषण गर्मी के बाद भी आता सुहावना सावन.
साहस,हिम्मत,मेहनत और लगन जीवन का तोहफा.
लबों पर मुस्कान और आंखों में खुशी,
काम का सच्चा, स्वभाव, व्यवहार का अच्छा;
जीवन में कभी खाता नहीं धोखा.
जीवन में सदैव बनी रहे उम्मीद और आशा.
बनाए रख विश्वास और उमंग; छोड़ निराशा.
संयोग से मिलता है जीवन,
सहयोग से जीवन जाता तराशा.
हंसी-खुशी जीवन की गाड़ी चले.
खुशी का दीपक दहलीज पर जले.
जीवन का सफर, सावन हैअति सुहाना.
सुंदर,मनोहर, सुगंधित फूल आंगन में खिले.
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पेड़
रचनाकार- कुमारी टीकेश्वरी वर्मा, कक्षा 8 वीं , शा पूर्व माध्यमिक शाला तर्रा, विकासखंड धरसीवां
प्यारा मेरा पेड़ है,
झूला झूले इसपे चढ़के,
धूप लगे तो छाया दे,
भूख लगे तो फल देता.
सुंदर सुंदर फूल है,
पत्ते देखो बड़े निराले,
फल इसके मीठे-मीठे,
कभी नहीं सताता है.
प्यारा मेरा पेड़ है.
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प्रकृति की सुंदरता
रचनाकार- रामेश्वरी साहू
हरी-भरी सी दिख रही है,
देखो प्रकृति हमारी.
चारो ओर हरियाली बिछ रही है,
आई थी जो वर्षा प्यारी.
पत्तियों को तो देखो ज़रा,
कैसी वो खिल खिला रहीं है.
डाल फूल पत्तियों से भरा,
कुसुम भी तो मुस्कुरा रही है.
वायु हर्ष से दौड़ रहा,
आया है जो सावन.
नभ बादल से सज रहा,
ठंडी फुहार है मनभावन.
नदी ,तालाब और जलाशय,
फिर से जलमय हो गए हैं.
इस सुंदरता का क्या हो आशय?
हम भी मोहित हो गए हैं.
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अपना सरस्वती शिशु मंदिर
रचनाकार- शांति लाल कश्यप, कोरबा
ना जाने क्यूँ ये शिशु मंदिर अपना घर सा लगता है.
बहन भैया आचार्य मईया दीदी जी परिवार सा लगता है.
ना जाने क्यूँ ये शिशु मंदिर अपतना घर सा लगता है.
आते हैं जब हम मंदिर झुकाते शीश चौखट पे.
सरस्वती वन्दना प्रातः स्मरण प्रार्थना करते.
ना दूजा भाव ना द्वेष रहता मन मे निर्मल सा लगता है.
बहन भैया आचार्य मईया दीदी जी परिवार सा लगता है
ना जाने क्यूँ ये शिशु मंदिर अपना घर सा लगता है.
शिष्टाचार नैतिकता सदाचारी बनें हम सब.
महापुरुषों की गाथाओं से सीखते नेक बातें हम.
शिशु मंदिर की शिक्षा हमें ज्ञान सागर सा लगता है.
बहन भैया आचार्य मईया दीदी जी परिवार सा लगता है.
ना जाने क्यूँ ये शिशु मंदिर अपना घर सा लगता है.
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भारत की आजादी
रचनाकार- अशोक कुमार यादव मुंगेली
सूनों अंग्रेजों,कान खोल के,
कुछ कह रहे हैं नेता जी.
बहुत हुआ परतंत्र भारत,
अब हमें चाहिए आजादी.
गाँधी
धरती माँ को लाल किया.
भगत सिंह ने फाँसी चढ़कर,
हँसते-हँसते बलिदान दिया.
इस मिट्टी का कर्ज चुकाने,
इस मिट्टी में मर-मिट जाने,
हमें बननी होगी फौलादी.
बहुत हुआ परतंत्र भारत,
अब हमें चाहिए आजादी.
सरहद पर वीर जवानों ने,
सीने पर गोलियाँ खायी है.
सूनी हो गई माता की गोद,
आँखों में आँसू भर आयी है.
इस तिरंगे की शान के खातिर,
इस तिरंगे की मान के खातिर,
हम सबको देनी होगी कुर्बानी.
बहुत हुआ परतंत्र भारत,
अब हमें चाहिए आजादी.
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आजादी महोत्सव
रचनाकार- श्रीमती नंदिनी राजपूत, कोरबा
15 अगस्त को हम,आजादी महोत्सव मनाएँगे
गाँव- गली,मोहल्ले में, झंडे खूब फहराएँगे.
देश को मिली आजादी हम ऐसे नहीं गवाएँगे.
हम सब भारत के नागरिक मिल,एकता की कसमें खाएँगे.
रैली में शामिल होकर, नारे खूब लगाएँगे.
15अगस्त को हम, आजादी महोत्सव मनाएँगे.
महापुरुषों को याद कर गीत ऐसे गाएँगे.
जन -जन के तन -मन में ,समर्पण भाव जगायेंगे.
मातृभूमि की मिट्टी को, सीने से ऐसे लगाएँगे.
हम उनके गुलाम नहीं, अंग्रेजों को याद दिलाएँगे.
हिंदू, मुस्लिम ,सिख,इसाई, आपस में गले लगाएँगे.
15 अगस्त को हम, आजादी महोत्सव मनाएँगे.
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सतरंगी टिफिन
रचनाकार- रजनी शर्मा
अम्मी बनाती है रोज खाना,
इसमें होते हैं व्यंजन नाना.
सतरंगी हो मेरा डिब्बा,
रोज कहते हैं मेरे अब्बा.
हरी सब्जी ,टमाटर लाल,
पीला पीला पपीता,आम.
लाल अनार हो सेब लाल,
मीठे केले का छिलका निकाल.
मीठा गन्ना खा ले बन्ना,
कहते नानी मेरे नाना.
खा कर गाल जब होंगें लाल,
दादी कहेगी मुझे बाल गोपाल.
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आगे-आगे बढ़े कदम
रचनाकार- जीवन चन्द्राकर'लाल'', दुर्ग
बस आगे आगे बढ़े कदम.
साहस कभी न खोना साथी,
पथ में चाहे हो भीषण तम.
बस आगे आगे बढ़े कदम.
असफलता से न घबराना,
मंजिल तक हर हाल में जाना.
चरणों में न कम्पन आये,
फूलने न देना अपना दम.
बस आगे आगे बढ़े कदम.
खुशियों का फिर कल पायेगा,
हर बाधा का हल पायेगा.
जोश भरा हो रग रग अंदर,
हाथ में हो जीत का परचम.
बस आगे आगे बढ़े कदम.
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देश के खातिर पढ़ना है
रचनाकार- जीवन चन्द्राकर'लाल'', दुर्ग
हमें देश के खातिर पढ़ना है,
अमर शहीदों के सपनों को,
अपने श्रम जल से गढ़ना है.
हमें देश के खातिर पढ़ना है.
दुश्मन जो भी अब आएगा,
जनता पर जुल्म ढायेगा,
घुसने न देंगें हम उनको,
जान लगाकर लड़ना है.
हमें देश के खातिर पढ़ना है.
हिम्मत न अब कोई हारे,
मुट्ठी में जकड़े सभी सितारें,
अपनी साहस की सीढ़ी से,
आसमान पर चढ़ना है.
हमें देश के खातिर पढ़ना है.
अपनी गरिमा को पहचाने,
जग वाले भी जिनको माने,
देश व अपनी गौरव गाथा,
जग में प्रसार फिर करना है.
हमें देश के खातिर पढ़ना है,
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चंदन है, माटी मेरे देश की
रचनाकार- जीवन चन्द्राकर'लाल'', दुर्ग
चंदन है माटी मेरे देश की.
चंदन है माटी मेरे देश की.
अनुपम और पुण्य धरा है,
राम,कृष्ण और महेश की.
चंदन है माटी मेरे देश की.
अमृत जैसी पावन नदियां,
मोहक हैं,गिरी वन व बगिया.
स्वर्ग भी तुलना कर न पाए,
यहां के पावन परिवेश की.
चंदन है माटी मेरे देश की.
झरने भी सुंदर गीत सुनाते,
बुलबुल के सुर हमे लुभाते,
गलियों में गूँजती है कहानी,
गीता के संदेश की.
चंदन है माटी मेरे देश की.
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देश प्रेम
रचनाकार- आशा उमेश पांडेय, सरगुजा
देश प्रेम की भावना, जाग उठी है आज.
वीर शहीदों पर सदा, करते सब है नाज.
रहते वीर जवान है,सरहद पर तैनात.
डटकर करते सामना,वो तो दिन औ रात.
बढ़ा रहे रणबांकुरे, सदा देश की शान.
प्राणों को आहूत कर, रखे देश का ज्ञान.
मेरे भारत वर्ष में, बहे प्रेम रस धार.
रहते मिलजुल कर सभी, जाने जग संसार.
बच्चा बच्चा गा रहा, देश प्रेम का राग.
हिम्मत दुश्मन की नहीं,लगा सके जो दाग.
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रक्षा बंधन
रचनाकार- शुभम पान्डेय भव, सरगुजा
भाई बहन के प्रेम का,
होता रक्षाबंधन पर्व,
लेता रक्षा वचन भाई,
करती बहना है गर्व.
रंग बिरंगी राखियों से,
सजती भाई की कलाई,
देख बहना के चेहरे पर,
आती है फिर तरुणाई.
यही भारतीय संस्कृति,
प्रेम आस्था का है बंधन,
इक रेश्म की डोरी से,
अटूट रिश्ता जाता बन.
जन्मों जन्म साथ निभाने का,
खाता भाई है कसम,
निश्छल पावन रिश्ते को,
जग करता सादर नमन.
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गणेश
रचनाकार- आशा उमेश पांडेय, सरगुजा
मेरे प्यारे गणराज,
पूरा करें सब काज.
महिमा अपार होती,
जग यह जाने है.
रिद्धि सिद्धि दाता यह,
सबके विधाता यह.
पूज्य देव बप्पा को तो,
सब लोग माने है.
बल बुद्धि विद्या देते,
सब दुख हर लेते.
विध्नहरण को सभी,
जग पहचाने है.
एकदंत दयावंत,
भरे मन वो है कंत.
गौरी सुत गणेश के,
सब ही दिवाने है.
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कितना प्यारा बचपन हमारा
रचनाकार- कु. ऋतू निषाद, कक्षा १२ वीं शा उ मा वि बेलौदी, ब्लॉक-मगरलोड जिला धमतरी
जब हम बड़े हुए, तो हमने जाना
कितना प्यारा था, बचपन हमारा.
भले थे कहीं शैतान, कहीं नादान
पर बचपन में ही, सब की जान.
ना कोई जिम्मेदारी, ना कोई बोझ
मस्त मगन होकर, खेलते थे रोज.
बड़े हुए तो जाना, क्या है बचपन
ना कोई समझदारी, ना बड़प्पन.
नटखट था मन, ये पागल था मन
पर बचपन था, सबसे अच्छा पल.
सुबह से खेलते,व शाम को घर आते
वक्त की न फ़िक्र, दिन अच्छे बिताते
नहीं थी कोई सुझबूझ, न परेशानी
हमने तो बचपन में ही, मस्ती करनी ठानी.
पर हमने अब, जाना क्या है बचपना
ना कोई भी चिंता,ना किसी से डरना.
आती थी हर छोटी, बातों पर खुशियाँ
बचपन में चाही थी सिर्फ एक टिकिया.
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भारत माँ के यदुवंशी सपूत
रचनाकार- अशोक कुमार यादव, मुंगेली
भारत की आजादी में यादवों की गाथा सुनाता हूँ.
महा पराक्रमी अहीर योद्धाओं को शीश नवाता हूँ.
हाथों में तलवार, खून सवार, यदुवंशी सेना का वार.
समर शंख फूँक कर, बिगुल बजाया, मचा हाहाकार.
सबसे पहले अल्गुमुत्थू कोने ने तलवार उठाई थी.
अंग्रेजों को तमिलनाडु से खदेड़ने सेना बनाई थी.
प्लासी के युद्ध में राजा मोहन लाल ने लोहा लिया.
नवाब सिराजुद्दौला के प्रतिमूर्ति बन बगावत किया.
हरियाणा के शेर राव गोपाल देव थे सुरमा महाबली.
अकेले तीस गोरों का सर कलम कर मचा दी खलबली.
शत्रु सेनाओं को चीरते हुए किशन ने घोड़ा दौड़ाया.
मद-मस्त हाथी में सवार फिरंगी काना को मार गिराया.
अट्ठारह सौ सत्तावन में रंजीत सिंह ने बगावत कर दी.
छल से पकड़ कर अंग्रेजों ने काला पानी की सजा दी.
अहीर चौबीसी सेना लेकर बराल पहुँची होकर क्रुद्ध.
केसरिया पगड़ी धारण कर मेहताब सिंह ने किया युद्ध.
महाराजा हरिवंश ने सौ अंग्रेजों का गर्दन धड़ से काटा.
माँ कालिका के मंदिर में क्रांति के बलि स्वरूप चढ़ाया.
ऐसे कई वीर अहीर योद्धाओं ने अंग्रेजों को मार गिराया.
ब्रिगेडियर हुकुम ने सर्वप्रथम भारत में तिरंगा लहराया.
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जादुई पिटारा
रचनाकार- कलेश्वर साहू, बिलासपुर
पढ़ाई में अब मिल गया सहारा,
स्कूल में आया है जादुई पिटारा.
जादुई पिटारा का प्रयोग कराएंगे,
समग्र विकास बच्चों का कराएंगे.
इससे पढ़ना लिखना सीखो,
खेल-खेल में गणना सीखो.
बहुत खिलौना इसके भीतर,
नहीं होंगे कोई अब इधर उधर.
खिलौना से पैटर्न बनाएंगे,
रंगों का भी ज्ञान सीखेंगे.
संख्या कार्ड खूब खेलेंगे,
संख्या ज्ञान हम बढ़ाएंगे.
गुड़िया के संग खूब खेलेंगे,
अपनी संस्कृति को संजोएंगे.
नया नया खेल खेलेंगे,
निपुण भारत बनाएंगे.
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तिरंगा हम फहरायेंगे
रचनाकार- पिंकी सिंघल, दिल्ली
झंडा ऊंचा रहे हमारा,
लगता सबसे एकदम न्यारा,
तीन रंगों से सजकर ये झंडा,
दिखता देखो कितना प्यारा.
हरा रंग हरियाली बतलाता,
त्याग करना केसरिया सिखलाता,
धवल रंग जो सजे बीच में,
शांति का पैगाम वो लाता.
आन बचाता भारत की ये,
बान दिखाता भारत की ये,
आंच न इस पर आने दें हम,
शान बढ़ाता भारत की ये.
प्राण अपने गंवा देंगे हम,
सर्वस्व अपना लुटा देंगे हम,
भारी हर विपदा पर भारत,
दुश्मन को आज बता देंगे हम.
हर किमत मे इसे हम लहरायेंगे,
प्रेम सुधा बस बरसायेंगे
झुकने देंगे न इसे हम कुछ भी हो जाए,
हर घर तिरंगा हम फहरायेंगे.
हर घर तिरंगा हम फहरायेंगे.
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शिक्षक हमें सिखाते है
रचनाकार- प्रीतम साहू
जल्दी सोना-जल्दी जगना
समय के साथ हर दम चलना
सिखने को आतुर रहना,
शिक्षक हमें सिखाते है.
संयम और विश्वास रखना,
जीत के लिए परिश्रम करना,
कोशिश अंत तक करते रहना
शिक्षक हमें सिखाते है.
सच्चाई की राह में चलना,
आपस में मिल जुल कर रहना,
लक्ष्य मार्ग पर आगे बढ़ना,
शिक्षक हमें सिखाते है.
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शिक्षक
रचनाकार- प्रीतम साहू
शिक्षा और संस्कार के दाता,
बच्चों का है भाग्य विधाता.
अज्ञानता को दूर भगाकर,
ज्ञान का वह प्रकाश फैलाता.
पढ़ना लिखना हमें सिखाता,
अनुशासन का पाठ पढ़ाता.
सही गलत का ज्ञान कराकर,
योग्य नागरिक हमें बनाता.
बड़ो का आदर करना सिखाता,
गलती हमारी हमें बताता.
शिक्षा की अलख जगाकर,
लोगों को जागरूक बनाता.
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मेरा एक घर है
रचनाकार- प्रीतम साहू
शहर से दूर गांव में,बरगद की छांव में,
घास से बनी हुई,मिट्टी में सनी हुई,
मेरा एक घर है.
पड़ोसी मेरे अच्छे है,दिल के वे सच्चे है,
माँ बाप मेरे रहते है,ना किसी क डर है,
मेरा एक घर है.
पक्षी की चहक है,तुलसी की महक है,
सूरज की पहली किरण आते है मेरे आँगन में.
मेरा एक घर है.
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वीर शहीदों को नमन
रचनाकार- महेन्द्र साहू 'खलारीवाला', बालोद
खून से लथपथ भीगकर,
सह गए गोरों के अत्याचार.
जुबां पर फिर भी एक ही
नाम,जय हिन्द की पुकार.
रानी लक्ष्मी,दुर्गावती,अवंतिका,
झलकारी ने ललकारी.
मां भारती की धरा पर ऐसी
वीरांगना थी दमदार.
आजाद,बोस,भगत,गुरु,सुखदेव,
अशफ़ाक थे तेज तलवार.
दासता की बेड़ी तोड़ने,आज़ादी के
दीवानों की थी भरमार.
तन-मन-धन सब वार दिए,
झेल गए गोलियों की बौछार.
नमन है उन वीर शहीदों को,
कोटिशः नमन है बारम्बार.
फांसी पर झूल गए हँसकर,
भारत माता के लाल.
हँसकर शीश कटा गए,
झुकने न दिए हिन्द के भाल.
वीर शहीदों के साहस से,
मिली है हमें आज़ादी.
ऐसे वीर शहीदों का है,
हम सब पर उपकार.
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देशभक्ति
रचनाकार- श्रीमती योगेश्वरी साहू, बलौदाबाजार
नमन तिरंगे तुमको मेरा,
तू हम सबका अभिमान है.
तेरे तीनों रंगों में बसते,
हर भारतवासी के प्राण हैं.
तुझमें संयम तुझमें शांति,
त्याग, प्रेम और तुझमें नीति.
तुझमें आरोग्य तुझमें सेवा,
तू ही समृद्धि,कल्याण है.
नमन तिरंगे तुमको मेरा,
तू हम सबका अभिमान है.
तुझसे मैत्री तुझसे प्रेम,
क्षमा, बंधुत्व और नियम एक.
तुझसे अर्थ तुझसे न्याय,
तू ही कर्तव्य, अधिकार है.
नमन तिरंगे तुमको मेरा,
तू हम सबका अभिमान है.
तुझसे सहकार्य, तुझमें उद्योग,
संगठन है सब का योग.
तुमसे अर्थ तुमसे समता,
तू शील और तू ही ममता.
नमन तिरंगे तुमको मेरा,
तू हम सबका अभिमान है.
तेरे तीनों रंगों में बसते,
हर भारतवासी के प्राण हैं.
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मां गंगा को शुद्ध करने अनेक मिशन चलाएंगे
रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
मां गंगा को शुद्ध करने अनेक मिशन चलाएंगे
इन मिशनों को प्रेरणा दायक बनाएंगे
प्रकृति में संरक्षण का नियम अपनाएंगे
युवा शक्ति को इस शुभ काम में लगाएंगे
गंगा उत्सव मनाने को अब
राष्ट्रव्यापी नदी उत्सव बनाएंगे
मां गंगे की पीड़ा की वास्तविक कहानी
जन-जन तक हम पहुंच जाएंगे
नदी उत्सव सम्मान की परंपरा को
पुनर्जीवित करने का बीज बोएगा
देश का हर नागरिक सचेत होकर
दूषित जल की पीड़ा सुलझाएगा
गंगा की पीड़ा को हम सब तब समझ पाएंगे
जब कचरे का ढेर नदियों में पड़ा पाएंगे
नदियों को स्वस्थ रखने जनता जनजागृति लाएंगे
प्रेरणा के लिए हर साल गंगा उत्सव मनाएंगे
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चांद पर तिरंगा फहराये
रचनाकार- सोमेश देवांगन, कबीरधाम
आओ आगे बढ़कर देश वासियों,
हम शान से तिरंगा लहराये.
धरती से ऊपर आसमान तक,
चलो चांद पर हम तिरंगा फहराये.
चमकेगा चांद पर अपना झण्डा,
गाड़ के बैठेंगें झंडे का डंडा.
चंद्रयान का सब मिल गान करंगे,
गूँजेगा विश्व में भारत का डंका.
कण कण कंठ में बसा लो तिरंगा,
मन निर्मल करलो बन पावन गंगा.
प्रेम रहे सबको मातृभूमि से हरदम,
मातृभूमि माँ भारती माँ सा अम्बा.
द्वेष मन में रख मन को न बहकाये,
हल कर सबके मन को हम हर्षाये.
धरती से ऊपर आसमान तक,
चलो चांद पर हम तिरंगा फहराये.
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कभी नाराज ना होना
रचनाकार- कवि पृथ्वीसिंह बैनीवाल, हरियाणा
जग रूठै तो रूठने दे,
पर तुम नाराज न होना.
जो चाहो कहना महबूब,
पर तुम नाराज न होना.
तुम रूठोगी मैं मनाऊंगा,
मैं रूठ जाऊँ तुम्हें मनाना है.
जो कहना हो कह देना तुम,
पर तुम नाराज न होना.
चाहत नहीं जिंदगी हो तुम,
मेरी नितप्रति बन्दगी हो तुम.
दिल में शामिल हो इस कदर,
हरपल आवाज देती हो तुम.
मैं तुम्हारा ही हूं तुम मेरी हो,
मेरे लिए इन्द्र की ज्यूँ परी हो.
हरपल मुझे अहसास है तेरा,
मुझे देखकर तुम होती हरी हो.
मुझे कभी तुम टूटने ना देना,
मुझे कभी तुम घूटने ना देना.
जब सब छोड़ जाये साथ मेरा,
तब भी तुम साथ मेरा देना.
मुझसे कभी नाराज न होना तुम,
मुझे जान से भी प्यारी हो तुम.
पृथ्वीसिंह' सब भूल सकता है,
पर तुम्हें कभी नहीं भूल सकता.
इसलिए मेरी महबूबा
तुम कभी नाराज न होना.
तुम कभी नाराज न होना.
*****
महसूस कर
रचनाकार- रामेश्वरी सी. के. जलहरे, पलारी
कर महसूस, महसूस कर इस आजादी का
क्या सही उपयोग कर पाए हम,
कर रहे दुरुपयोग इस आजादी का,
लगे हुए है मोबाइल में, देख रहे है वीडियो
कर महसूस, महसूस कर इस आजादी का
क्या सही कार्य कर रहे है हम?
शेयर कर रहे है आधार हीन पोस्ट, बिना जांचे परखे,
फैला रहे है नफरत,जल रहे है कुछ हिस्से
कर महसूस, महसूस कर इस आजादी का
क्यो वीरो ने शहादत दी है?
फर्ज निभाओ कुछ अपना भी ऐसे न नफरत फैलाओ,
बिना जांचे परखे कोई ऐसा पोस्ट आप भी न कर जाओ
आप भी करो कुछ ऐसा काम,
शहीद वीर भी करे स्वर्ग से सलाम
कर महसूस, महसूस कर इस आजादी का
कुछ ऐसा उपयोग करो आजादी का
सर राष्ट्र का हो ऊपर
कर महसूस, महसूस कर इस आजादी का
क्या सही उपयोग कर पाए?
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स्वतंत्रता
रचनाकार- राधेश्याम सिंह बैस, बेमेतरा
त्याग शान औऱ समर्पण, किया याद उन सपूतो को.
बलिदान माँ भारती क़े लिए, श्रद्धा सुमन माँ की पूतो को.
स्वर्ण अक्षरों मे अंकित, वह दिन सबको प्यारी है.
स्वतंत्र हवाओ मे सांस ली, सब जन -जन की न्यारी है.
देश प्रेम की भावना, हर भारत वासी मे हो.
दिल मे जिन्दा रखने, उफान लाने कविता देशवासी मे हो.
कवियों की कविता से, रग -रग मे जोश भर देता है.
स्वतंत्रता सेनानियों क़े सम्मान मे, देश हमसे कुछ नहीं लेता है.
देश हमारा हम सब इसका, है यह सबसे प्यारा.
जिस पर देशवासी गर्व करें, ऐसा मेरा देश है न्यारा.
धरती की तृण -तृण हर्षित, नर्तक खग दृश्य विहंगम.
हवाओ मे तीन रंग तिरंगा, लगता गंगा यमुना औऱ सरस्वती की संगम.
जाये नजरें मेरी जहाँ तक, दिखता दृश्य वहाँ तिरंगा.
नहीं भेद वर्ण धर्म की, हर भारतीय एक ही रंग रंगा.
इतिहास पर प्रश्न उठाने वाले, एहसास नहीं दर्द परतंत्रता की.
लेते आज खुली वायु मे सांस, वह भूल चूके कीमत स्वतंत्रता की.
वतन पर मर मिटने वाले, पल- पल याद करें हिंदुस्तान.
बजे डंका दुनियाँ मे,दे देते रक्षा क़े लिए अपनी जान.
स्वतंत्रता की इस वेदी पर, त्याग समर्पण औऱ बलिदान.
आजादी की 77वी वर्षगाठ पर,करते श्रद्धा सुमन अर्पित हिंदुस्तान.
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