बालगीत

गाँव का मेला

रचनाकार- डॉ. सतीश चन्द्र भगत

Gaon

गुमसुम क्यों बैठे हो भैया,
चलो देखें गाँव का मेला.

मेला में है चरखी-झूला,
खेल- खिलौने वाला ठेला.

लगी हुई है बहुत दुकानें,
बड़ी भीड़ है रेलम- रेला.

किताब घर में बहुत किताबें,
लो खरीद, मत करो झमेला.

सस्ता- महंगा फल लेकर ही,
भूख मिटाओ, खाओ केला.

जलेबी छान रहा ‌ हलवाई,
खा मत लेना चुप्प अकेला.

गुब्बारे भी लेकर चलना,
बेच रहा है कालू ‌‌‌ चेला.

हुई शाम अब चल रे भैया,
बढ़िया लगा गाँव का मेला.

*****

रेडियो के विस्तार पर सभी को बधाईयां हो

रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

redio

रेडियो के शौकीन बड़े बुजुर्गों को सैल्यूट हो
सभी साझा करता है चाहे गीत या मन की बात हो
रेडियो के विस्तार पर सभी को बधाईयां हो
मन की बात से पीएम रेडियो से जुड़े बधाईयां हो

रेडियो जैसे उत्कृष्ट माध्यम को अपनी प्रतिभा
रचनाओं से समृद्ध करने वालों को रेडियो
फिर से रफ्तार में आने पर लख़ लख़ बधाईयां हो
रेडियो प्रेमियों की रेडियो से कभी जुदाई नां हो

रेडियो सकारात्मक साझा करने की बधाईयां हो
जीवनमें गुणात्मक परिवर्तन लाभकी बधाईयां हो
परेशानी में गीत मेरे मीत रेडियो को बधाईयां हो
आपस में जोड़ने अद्भुत साधन की बधाईयां हो

*****

चन्द्रयान तीन

रचनाकार- डिजेन्द्र कुर्रे 'कोहिनूर'

chandryan

भारत के मित्र है जो,
शुभता के चित्र है जो.
उनका नमन किया,
मान में सम्मान में.

हार कहाँ सकते है,
हम कहाँ रुकते है.
हम ही तो विश्व गुरु,
विविध विधान है.

प्रज्ञान विक्रम संग,
चाँद पे जमाये रंग.
विश्व को किया है दंग,
भारती की शान में.

चाँद पे जमाके पैर,
देश कर रहा शैर.
रच दिया इतिहास,
आज चन्द्रयान में.

*****

किताब

रचनाकार- डिजेन्द्र कुर्रे 'कोहिनूर'

kitaab

किताबों में लिखेंगे हम,
हमारी प्यार की बातें.
छुपाएं छुप नहीं सकती,
कभी दिलदार की बातें.
तेरी मैं मांग भर दूँगा,
सितारों की छटा लेकर,
मेरी आगोश में आओ,
छोड़ संसार की बातें.

महज है उम्र थोड़े से,
चलो जी भर इसे जी ले.
दिए है ज़ख्म दुनिया ने,
उसे भी आज हम सी ले.
नहीं चिंता कर जग की,
जगत ने क्या दिया हमको.
बहाकर धार अश्कों से,
प्यार के नाम में पी ले.

*****

विज्ञान

रचनाकार- गरिमा बरेठ, कक्षा - आठवीं

vigyan

विज्ञान है हमारे जीवन का आधार,
इसके बिना हम ना कर पाए कुछ भी आसानी से आर - पार.
विज्ञान ने ही है किया हर मुश्किल आसान,
विज्ञान नहीं दिया है दुनिया को एक नया जीवनदान.

ऑक्सीजन है हमारा प्राण दाता,
नाइट्रोजन है रोकता आग को.
कैल्शियम है जोड़ता हड्डियों को,
क्लोरीन करता है जल को शुद्ध.

ईश्वर ऐसा करो कि,
मैं भी बन जाऊं वैज्ञानिक.
नई-नई खोजों द्वारा,
मैं बना जग को महान.

हमारी तो पहचान ही है विज्ञान,
इसी विज्ञान से मिला है जीवन को वरदान.
विज्ञान है हमारे जीवन का आधार,
इसके बिना हम ना कर पाए कुछ भी आसानी से आर - पार.

*****

भाषा हमारी

रचनाकार- सृष्टि प्रजापति, आठवी, स्वामी आत्मानंद तारबहार बिलासपुर

bhasha

सबसे प्यारा भारत देश हमारा.
हिन्दी इसकी शान है.

भारत के जन-जन बोले,
हिन्दी को सलाम है.

भारत के सारे भाषाएँ श्रेष्ठ है.
पर हिन्दी सबसे महान है.

देखो इसकी वर्णमाला को,
अधुरे को पूरा करने के लिए रहते तैयार है.

सुख दुःख को प्रकट करे.
यह भाषा प्रिय हमारी.

दादी की कहानियाँ भी लगती हिन्दी में प्यारी.
प्राचिन युग से आई ये भाषा हमारी.

सबसे प्यारी, सबसे न्यारी.
बन्धे है संस्कारो मे, हिन्दी की मिठी वाणियो मे.

बचपन मे बोला जो शब्द,
पहला वो था माँ का.

फिर भी अंग्रेजी बोलकर अभिमान दिखाते है.
भारत के ही कुछ लोग हिन्दी बोलने से कतराते है.

बोलो सर्व भाषाएँ पर हिन्दी से नाता न तोड़ो.
हिन्दी भाषा की उन्नती हो, उन्नती हो.

*****

सृजन का प्रतीक विश्वकर्मा

रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु', धमतरी

srijan

सृजन का तू ही प्रतीक है
शिल्पकला में तू सटीक है.

देव-शिल्पी तू विश्वकर्मा है
विश्व का तू निर्माणकर्ता है.

मेहनत,श्रम का तू मूल है
रचना करने में तू अतुल है.

सर्जन का तू ही आधार है
कर्मठता तूझमे आपार है.

नव-निर्माण में तू अग्रणी
तू जगत का मंगलकरणी.

देवलोक का निर्माणकर्ता है
मृत्युलोक का सृजनकर्ता है.

तू आदि-विज्ञान का दाता है
तू जड़-चेतन का रचयिता है.

तू ब्रह्मपुत्र स्वर्ग का सर्जक है
तू जीव-योनियों का पालक है.

तेरे चरणों में ये शीश नमन है
तुझको शत-शत मेरा वंदन है.

*****

एक नया संविधान

रचनाकार- दिलकेश मधुकर, कोरबा

Ek_naya

माँ मुझको एक लेखनी दे,
मैं नया इतिहास रचूँगा.
बनकर मैं बाबा अंबेडकर,
एक नया विधान लिखूँगा.

हिन्दू-मुस्लिम न हो कोई,
छूत-अछूत न जात कोई.
ऊँच-नीच का भाव मिटाने,
एक नया विधान रचूँगा.

शिक्षा का अधिकार मिले,
नारी को सम्मान मिले.
नई पीढ़ी को पहचान मिले,
ऐसा विधि-विधान लिखूँगा.

सब का अपना धाम हो,
ऊँचा देश का नाम हो.
सबको मिलता काम हो,
ऐसी मैं आवाज बनूँगा.

*****

गौ माता से भी करो प्यार

रचनाकार- सृष्टि प्रजापति, कक्षा -आठवी, स्वामी आत्मानंद तारबहार बिलासपुर

gau_mata

आओ देखो इस युग को,
यहाँ क्या हो रहा है?
गाय माता सड़क पर रो रही
और कुत्ता पलंग पर सो रहा है.

कुत्ते को गोद में लेकर,
प्यार का महत्व समझाते हैं.
वही लोग देखो,
मछलियाँ पकाकर खाते हैं.

कुत्ते के लिए बिस्किट लाते,
गाय को प्लास्टिक खिलाते हैं.
प्रेम से रखा कुत्ते को घर पर,
गाय को मार भगाते हैं.

माना कि कुत्ता वफादार है,
उससे जरूर प्यार करो.
पर गौ हमारी माता है,
उस पर न अत्याचार करो.

*****

डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन

रचनाकार- श्रीमती नंदिनी राजपूत, कोरबा

dr.

5 सितंबर शिक्षक दिवस ,जब यह पावन दिन आता है.
राधाकृष्णन का जन्म दिवस, धूमधाम से मनाया जाता है.

तमिलनाडु के तिरूतनी में, जब हुआ था इनका जन्म.
5सितंबर 1888 को मिला था ,भारत को एक अनमोल स्वर्ण.

स्वतंत्र भारत के जब पहले उपराष्ट्रपति व दूसरे राष्ट्रपति बने.
भारतीय संस्कृति के संवाहक,शिक्षाविद ,महान दार्शनिक के रूप में कार्य किए.

उनकी प्रथम पुस्तक *द फिलॉसफी ऑफ रविंद्रनाथ टैगोर ने ऐसा मन को भाया.
वर्ष 1954 में उन्हें, भारत रत्न से सम्मानित कराया.

1962 में जब भारत चीन युद्ध में सैनिकों का कदम डगमगाया.
उनके ओजस्वी भाषणों ने, सैनिकों का मनोबल बढ़ाया.

उन्होंने अपना अधिकतम जीवन, एक शिक्षक के रूप में बिताय.
इसलिए अपने जन्म दिवस को, शिक्षक सम्मान के रूप में समर्पित कराए.

एक लंबी बीमारी ने ,उन्हें ऐसा तोड़ा.
17अप्रैल 1975 को उन्होंने हमारा साथ छोड़ा.

उस अनमोल हीरे को ,हम कभी नहीं भूल पाएंँगे.
उनकी याद में हम, शिक्षक दिवस प्रतिवर्ष मनाएंँगे.

*****

गीता की महिमा

रचनाकार- युक्ति साहू, कक्षा 8 वी, स्वामी आत्मानंद शेख गफ्फार शासकीय अंग्रेजी माध्यम विद्यालय तारबहार बिलासपुर

GITA

वेद व्यास जी द्वारा,
है रचित ये अनुपम ग्रंथ.
जीवन जीना जो हमें सिखाता,
ऐसा ये अद्भुत तंत्र.

जब अर्जुन पड़े असमंजस में,
कदम जब उन्होंने पीछे लिए.
बताया जगत का खेल कृष्णा ने,
तभी जले थे धर्म के दिये.

श्रीकृष्ण के श्रीमुख से,
निकली हमारी श्रीगीता.
जो पढ़ले एक बार इसे तो समझो,
इस झूठी दुनिया से वो जीता.

जब-जब तुम्हें अच्छा न लगे,
मन भटके तुम्हारा जब.
खोलकर गीता देख लेना,
शान्ति मिलेगी तब-तब.

हर समस्या का हल है इसमें,
वास्तव में है ये एक अमृता.
सुख-दुख को जो समान बनादे,
वही है हमारी श्रीमदभगवत् गीता.

*****

विश्व गुरु भारत

रचनाकार- श्रीमती मंजू साहू, बेमेतरा

VISHVA_GURU

वीरों का वीर कहलाता है, विश्व गुरु भारत
आसमान तक बिखेरेगा आभा, विश्व गुरु भारत.
अनेकता में एकता का दीप जलाता विश्व गुरु भारत
चंद्रयान मिशन सफल कराता है विश्व गुरु भारत.

मिट्टी से हरियाली लाता है, विश्व गुरु भारत
शिक्षा से सभ्यता लाता है, विश्व गुरु भारत.
सुदामा-कृष्ण की मित्रता सिखाता विश्व गुरु भारत
धर्म निरपेक्षता की पाठ पढ़ाता है, विश्व गुरु भारत.
ईद और होली में गले मिलाता है, विश्व गुरु भारत
सोने की चिड़िया कहलाता है, विश्व गुरु भारत.

*****

दीपावली

रचनाकार- सागर कुशवाहा, स्वामी आत्मानंद तार बहार बिलासपुर

dewari

आने वाला है त्योहार फिर से दीपों का,
जाने वाला है मौसम फिर से बारिश का.
लोगों ने कर दी है तैयारी फिर से चमकने की,
लोगों को रहती प्रतीक्षा जिस दिन के आने की.

दीप जलेंगे फिर से दिल से,
आने वाला है मौसम फिर से दीपों का.
खूब नाचेंगे गायेंगे इस दिन शौक में,
खूब मजे करेंगे इस दिन के मौज में.

फड़फड़ आवाज से गूंजेगा यह आसमान,
इस दिन के मौज में मौज करेगा सारा जहाँ
आने वाला है त्योहार दिवाली का.

*****

सच्चाई को लेखनी से सलाम करते हैं

रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

SACCHAI

सच्चाई को लेखनी से सलाम करते हैं,
उनकी लेखनी अस्त्र महत्वपूर्ण कलम है.
बुराई का धागा जो तीव्र कलम से काटते हैं,
लेखक, कवि, बुद्धिजीवी, पत्रकार को सलाम है.

साहित्य का ख़जाना भारत में अनमोल है,
साहित्य को जीवंत बनाने में प्रिंट और
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का महत्वपूर्ण रोल है.
कायम रखने में हमारे पूर्वजों का विशेष रोल है.

साहित्य राष्ट्र की महानता
और वैभव का दर्पण होता है.
साहित्य को आकार देने में संस्कृति
और परंपराओं का महत्वपूर्ण रोल होता है.

जो साहित्य और कविताएँ सामाजिक कल्याण
पर केंद्रित है वह कालजई होती हैं.
यही कारण है रामायण और महाभारत
जैसे महाकाव्य आज भी हमें प्रेरणा देते हैं.

हमारे भारत के ज्ञान भण्डार में
कितनी चमत्कारिक बातें छिपी हुई हैं,
हम यह सोचने पर विवश हो जाते हैं कि
विराट ज्ञान हमारे पास कहाँ से आया?

उस प्राचीनकाल में यह जबरदस्त
ज्ञानभंडार हमारे पास था,
तो अब क्यों नहीं है?
यह ज्ञान कहाँ चला गया?
सबसे बड़ा सवालिया निशान है.

*****

सफलता की राह

रचनाकार- सृष्टि प्रजापति, कक्षा-आठवी, स्वामी आत्मानंद तारबहार बिलासपुर

safalta

नींद त्यागो, चैन त्यागो.
करो कोशिश हिम्मत न हारो.

कोई न रहेगा साथ हमेशा,
खुद ही अपना साथ दो.

सफल होने की खुशी के लिए,
असफलता का दुःख सहना पड़ेगा.

यही समय है,
खुद को उभार लो.

कोशिश से सफल हुआ जो व्यक्ति,
मशहूर हुआ संसार में.

फिर क्यों खड़े हो पीछे तुम,
उतर चलो मैदान में.

मेहनत तुम्हारी,
सफलता तुम्हारी,
तालियाँ सभी बजाएँगे.

कोशिश के कदम,
सफलता के ओर ले जाएँगे.

*****

नवरात्रि

रचनाकार- युक्ति साहू, कक्षा 8वी, स्वामी आत्मानंद शेख गफ्फार अंग्रेजी माध्यम विद्यालय तारबहार बिलासपुर

navratri

आने वाली है नवरात्रि,
आएँगी अब माँ कालरात्रि.
आने वाली है शारदीय नवरात्रि,
है ये नौ सुखों की रात्रि.

माँ दुर्गा के ये नौ स्वरूप,
भक्तों पर प्रेम बरसाते भरपूर.
ना होने देती माँ कभी अत्याचार,
अपने प्रिय भक्तों के साथ.
उनका आना खुशियों की बौछार,
वो दुष्टों का करती है संहार.

शेरों की वो करती सवारी,
और करती सोलह श्रृंगार.
ये नौ रात और दस दिन,
सच में है मधुरता की बहार.

नौ दिन के लिए आती माँ,
और हर लेती जीवन का दुख.
सभी त्यौहारों मे पसंदीदा सबसे,
नवरात्रि ही है प्रमुख.

लेकिन जैसे ही आती है,
वो घड़ी विदाई की.
आँखें सबकी भर जाती है,
याद आती महामाई की.

*****

असली भगवान और असली मंदिर

रचनाकार- युक्ति साहू, कक्षा 8वी, स्वामी आत्मानंद शेख गफ्फार अंग्रेजी माध्यम विद्यालय तारबहार बिलासपुर

asli

माता-पिता को तो,
कहा जाता है भगवान.
लेकिन उन्हीं माता-पिता को,
क्यों नहीं दिया जाता सम्मान.

उस प्रेम मूर्ति माँ को,
जिसने कितने कष्ट सहे तुम्हारे लिए.
उसी माँ को वृद्ध हो जाने पर,
घर से बाहर इस युग ने किए.

तुम्हारे पिताजी जिन्होंने,
तुम्हारे लिए दिन रात परिश्रम किया.
जहाँ जाने का तुम्हारा मन था,
उन्होने कहा के 'जा ',
उसी पिता को आखिर में तुमने,
वृद्धाश्रम मे क्यों भेज दिया?

सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए,
उन्होंने अपना कर्तव्य निभाया.
लेकिन बारी जब तुम्हारी आई,
तो तुमने उन्हें क्यों सताया?

उँगली पकड़ के जिन्होंने तुम्हें,
चलना सिखाया था.
उन्हीं का हाथ छोड़कर,
तुम्हारे मन में क्या भाव आया था?

अब तुम्हारी बारी है,
उनका हाथ थामो न कि छोड़ो.
एक तुम ही उनका सहारा हो,
उनका विश्वास निभाओ न कि तोड़ो.

छप्पन भोग लगालो भगवान को,
ना करेंगे वो इसे स्वीकार.
जब तक अपने माता-पिता को,
न दोगे तुम प्रेम उपहार.

माता-पिता ही भगवान हैं,
और जिस घर में वो हैं,
वो ही मंदिर है.

*****

माँ की ममता , पिता का प्यार

रचनाकार- मानसी निषाद, कक्षा- 8 वी, विद्यालय- शेख गफ्फार अंगेजी माधयम शाला तारबहार बिलासपुर

maa_ki

माँ की ममता
पिता का प्यार
दुनिया के हर बच्चे का है
यही प्यारा संसार।
डाट-डपर फटकार कर
उँगली पकड़ दुलार कर
हर राह पे चलना सिखाया
आगे बढ़ना सिखाया
सत्य जीवन रहना सिखाया
माँ की ममता पिता का प्यार
हौसला होता पिता से
माँ से सब सहना आया
सर पर हो गए पिता का
सबसे बड़ा है उपहार
माँ की आँचल में जीवन संसार
माँ की ममता
पिता का प्यार

*****

ओ कान्हा

रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू', राजिम

wo_kanha

ओ कान्हा!
हाथ थाम लो आकर मेरे,
कोई नहीं सहारा है.
मन कितना विचलित हो उठता,
ह्रदय सिसक कर रोता है,
जरा बता दे तू गिरधारी,
ऐसा ही क्यों होता है.
भीड़ भरी है इस दुनिया में,
लेकिन कौन हमारा है.

जीवन इक अनमोल रतन है,
जैसे कोमल-सी कलियाँ,
कदम बढ़ाऊंँ गर मैं आगे,
हर पथ पर रोके छलिया.
किस–किस को मैं व्यथा सुनाऊँ
करते सभी किनारा हैं.

बनकर दासी मैं चरणों में,
भक्ति भाव सम रम जाऊँ.
शाम–सबेरे रज के कण–कण,
माथे मैं तिलक लगाऊँ.
जगमग हो जायेगा जीवन,
बन के मेघ सितारा है.

सब कुछ तो तेरे ही वश में,
तू ही है पालनहारी.
कैसी लीला रचते कान्हा,
हम पर पड़ जाता भारी,
ज्ञात तुम्हें है तेरे बिन अब,
होता कहाँ गुजारा है.

*****

मेरी माटी मेरा देश

रचनाकार- राधेश्याम सिंह बैस, बेमेतरा

meri

मेरा देश के कोना -कोना,
महके माटी चंदन.
बसते इसमें देवी देवता,
मेरी माटी मेरा देश वंदन.

फसलों की बयार देखो,
हरियाली छायी घट -घट.
नित नमन हे वतन,
प्यार भरा ह्रदय का पट.

झूमें नाचे पेड़ -पौधे,
शीतल इनकी छाया.
नृत्य करता तन-मन
गान गाती हर काया.

सुबह सबेरे मंद -मंद पवन,
हर्षित दिखते हर जन.
पर्वत नदियाँ नरुआ जंगल,
रहता इसमें अपनापन.

क्या नहीं देती? हमें माटी,
जीता जीव मदमस्त.
सूरज की लाली किरणों से,
होता दिवस जबरदस्त.

हैं यह वीरों की भूमि,
शहादत हुए कई वीर.
भूमि संत महात्माओं की,
जिस भूमि पर एक घाट की नीर.

स्वतंत्रता के खातिर,
बहा दी अपनी जवानी.
परवाह किये बिना प्राणों की,
भूमि को दी अपनी कुर्बानी.

यह भूमि वीर जवानों का,
बसता बच्चों -बच्चों में राम.
माता कौशिल्या औऱ सीता की भूमि,
मेरी माटी मेरा देश का नाम.

पूजूं निशा औऱ दिवस,
करू आराधना वंदन.
मिलते रहे यही माटी,
मेरी माटी मेरा देश हैं अभिनंदन.

खुली हवओं में लेती श्वास,
गूंजती किलकारियां बच्चों की.
हर बाला में सीता बसती,
मेरी माटी मेरा देश हैं सच्चों की.

खेतों से खलिहानों तक,
गाँवो से गलियारों को.
मेरी माटी मेरा देश,
दूर भगाये अंधीयारों को.

*****

चंद्रयान

रचनाकार- डिजेन्द्र कुर्रे 'कोहिनूर'

chandryan

पाक हाथ मल गया,
चीन को भी खल गया.
अमेरिका भारत को,
देख -देख कुड़ गया.

गुरुता में मुखर जो,
वीरता में प्रखर जो.
हिमाद्री का शिखर जो,
श्रेष्ठ पथ मुड़ गया.

अलौकिक काम हुआ,
दुनिया में नाम हुआ.
भारत में फिर एक,
इतिहास जुड़ गया.

वीरता का भेष ले के,
शुभता संदेश ले के.
भारत का शौर्यवान,
चंद्रयान उड़ गया.

*****

नारी

रचनाकार- गरिमा बरेठ, कक्षा - आठवीं

naari

मैं नारी हूं, मैं नारी हूं.
मैं जननी हूं, मैं जीवन भी हूं.
मुझे दुनिया से कोई डर नहीं,
क्योंकि मैं अपने आप पर पूरी हूं.

सभी यह कहते,
लक्ष्मी व सरस्वती का रूप है नारी.
तब है हम कहते,
हम हैं झांसी की भी रानी.

जरूरत पड़ती सरस्वती मां का रूप लेकर,
दुनिया को बहुत कुछ सिखा दे.
और अगर जरूरत पड़े तो झांसी की रानी बनाकर,
दुश्मन के छक्के छुड़ा दे.
कहीं बढ़कर जाए अगर अत्याचार,
तो काली दुर्गा का रूप धारण ले

मैं नारी हूं, मैं नारी हूं.
सिर्फ शब्दों में लिखी जाती हूं आसानी से.
इतना सब कुछ अपने भीतर में समेटे,
बस मुस्कुराए जाती हूं.
मैं नारी हूं, मैं नारी हूं.

*****

एकता की पहचान है हिन्दी

रचनाकार- शांति लाल कश्यप, कोरबा

ekta

भारत माता का वरदान है हिन्दी.
एक हैं हम, एकता की पहचान है हिन्दी.

आदर सम्मान का भाव है इसमें, गीत कविता का सार है इसमें.
मुस्कान आ जाती चेहरे पर, बच्चे बूढ़े का प्यार है हिन्दी.
एक हैं हम, एकता की पहचान है हिन्दी.

कवि की कविता है हिन्दी, लेखक की तूलिका है हिन्दी.
वक्ता की आवाज है इसमें, हम सब का संवाद है हिन्दी.
एक हैं हम, एकता की पहचान है हिन्दी.

हिन्दू बोले सिख्ख भी बोले, बोले है मुसलमान.
हिन्दी भारत माता की आन बान और शान.
जाति रंगरुप का भेद नहीं, सब है एक समान.
विविधता में एकता की पहचान है हिन्दी.
एक हैं हम, एकता की पहचान है हिन्दी.

*****

एक दोस्त ऐसा भी

रचनाकार- जानवी कश्यप ,आठवीं ,स्वामी आत्मानंद तारबहार बिलासपुर

ek

एक दोस्त ऐसा भी हो ,
जो सिर्फ और सिर्फ मेरा हो.

मैं रूठु तो मुझे मनाए ,
मैं रोने लगूं तो मुझे हँसाए.

हाँ एक दोस्त ऐसा भी हो,
जो मेरे हर कठिन राह को सरल बनाए,
जो मेरे हर सुख- दुख का साथी बने.

हाँ एक दोस्त ऐसा भी हो,
जो मेरे दर्द को बिन बोले महसूस करें,
जो मेरे अंधेरे की रोशनी बने.

हाँ एक दोस्त ऐसा भी हो,
जो मुझे खोने से डरे,
मेरे ना होने पर महसूस करें.

हाँ एक दोस्त ऐसा भी हो,
जो सिर्फ और सिर्फ मेरा हो.

*****

हमारे बुजुर्ग

रचनाकार- Abhinav Pandey, Class - 7, Swami Atmanand Sheikh Gaffar Government English Medium school Tarbahar Bilaspur

hamare

घर के बुजुर्ग हैं घर की शान
मत करो तुम इनका अपमान
यही तो हमको राह दिखाते
अनुशासन यह हमें सिखाते
अनुभव अपना करते साझा
अपने सम्मान की करते आशा
पूरे परिवार को बांधकर रखते
एक माला में पिरोकर रखते
इनके ना रहने से यह माला,
टूट-सी जाती है
परिवार बिखर-सा जाता है
और याद इनकी सताती है
इसलिए बच्चों सुन लो तुम
करो सदा इनका सम्मान.

*****

दीवाली का त्योहार

रचनाकार- Astha Pandey, Class - 6, Swami Atmanand Sheikh Gaffar Government English Medium School Tarbahar Bilaspur

DIWALI

आया दशहरा आयी दीवाली,
खुशियों का यह मौका लायी.
लक्ष्मी जी की पूजा करते,
गणेश भी साथ में आते हैं.
राम जी के आगमन का यह दिन,
हम दीप जलाकर मनाते हैं.
नये - नये रंग बिरंगे कपड़े,
पहन - पहन सब आते हैं.
खुशियों से भरा यह त्यौहार,
पटाखे फोड़े जाते हैं.
मिठाईयाँ बांटी जाती है,
दीप जलाएं जाते हैं.
रंगोली के रंगों से द्वार सजाए जाते हैं. बंधन बार भी बांधे जाते हैं.
घरको खूब सजाते हैं.
दीवाली का यह त्यौहार,
हम सब साथ मिलकर मनाते हैं.

*****

वीर गाथा

रचनाकार- राधेश्याम सिंह बैस, बेमेतरा

veer

हमारी संस्कृति विशाल,
हैं यह बड़ा अनमोल.
वीरगाथओं का संगम,
नहीं किसी का तोल.

नायक वीरों की कहानी,
है सदा प्रेरणा देता.
साहित्यिक परम्परा विहंगम,
वीर गाथा उत्सव कुछ कहता.

कथा सरिता जबानजो की,
व्यक्तित्व उनका बहादुर.
कर्म हैं कुछ एसा,
न्याय रक्षा से नहीं दूर.

कहानी सुनना औऱ सुनाना,
मूल्यों का होता इतिहास.
सुरवीर रामायण औऱ महाभारत की,
दूर नहीं, साहित्य है पास.

वीरगाथा की जिसने नींव रखी,
राम, कृष्ण, अर्जुन,जैसे महान.
भरा पड़ा इतिहास हमारे,
पीढ़ियों को नित देता ज्ञान.

विकट समय पर किया कारज,
महाराणा, बिरसा मुंडा क्रांतिकार .
दर्शाते हैं अपनी बहादुरी,
गया नहीं पद्यमती का नाम बेकार.

विवेकानंद जी को देखो,
धर्म इतिहास पर बड़ा प्रभाव.
दिया सन्देश देश को,
आपका सन्देश बिना अभाव.

आदर्श हैं यह गाँधी नेहरू,
भगत, चंद्रशेखर नायकों का योगदान.
लोककला वीरगाथा औऱ नृत्य से,
प्रहर, दिवस निश दिन होगा मान.

गाथाओं को फिल्मों से,
करता प्रसार वीर कहानी.
संस्कृति औऱ परम्पराओं का मेल,
गौरव गाथा को जन -जन ने जानी.

नमन उन बहादुर वीरों को,
जिनका स्वर्णिम इतिहास पर नाम.
मिलता सन्देश पीढ़ियों को,
वीरों को मेरा शत -शत प्रणाम.

*****

मां की याद

रचनाकार- युक्ति साहू, कक्षा 8वी, स्वामी आत्मानंद शेख गफ्फार अंग्रेजी माध्यम विद्यालय तारबहार बिलासपुर

naari01

बड़ी सुहानी ये नवरात्रि,
ममतामयी माँ कालरात्रि.
मां शारदा की शारदीय नवरात्रि,
है ये नौ सुखों की रात्रि.

मां दुर्गा के ये नौ स्वरूप,
भक्तों पर प्रेम बरसाता भरपूर.
ना होने देती माँ कभी अत्याचार,
अपने प्रिय भक्तों के साथ.
उनका आना खुशियों की बौछार,
लेकिन वो दुष्टों का करती भी है संहार.

शेरों की वो करती सवारी,
और करती सोलह श्रृंगार.
ये नौ रात और दस दिन,
सच में लाती मधुरता की बहार.

नौ दिन के लिए आती माँ,
और हर लेती जीवन का दुख.
सभी त्यौहारों मे पसंदीदा सबसे,
नवरात्रि ही है प्रमुख.

लेकिन जैसे ही आती है,
वो घड़ी विदाई की.
आँखे सबकी भर जाती है,
याद आती महामाई की.

जस गीत जो गाते तेरे लिए,
किसके लिए अब गाएंगे ?
तू जब तक न लोरी गाएगी,
हम कैसे सो जाएंगे ?

तेरी कृपा की आंचल माँ,
याद हमेशा आएगी,
इतनी जल्दी क्यों चली गई मां ?
हमें तेरी बहुत याद आएगी.

*****

देश के प्यारे बच्चों

रचनाकार- श्रीमती युगेश्वरी साहू बिलाईगढ़

desh

ऐ मेरे देश के प्यारे बच्चों!
तुम हो कल के भविष्य निर्माता.
बदल सकते हो तुम देश का,
भविष्य बनकर भाग्य विधाता.
तुम भी बन सकते हो,
गांधी तिलक सुभाष जैसे.
देश का प्रहरी बनकर रहोगे,
भूलेंगे तुम्हारा उपकार कैसे.
माता- पिता प्रथम गुरु हैं तुम्हारे,
तुम उनका सम्मान करना.
उन्हीं की बदौलत बड़े हुए हो,
मत उनका अपमान करना.
मन में दृढ़ संकल्प लेकर,
सच्चाई की ओर ही आगे बढ़ना.
अगर आ जाये तूफान तुम
तूफानों से कभी नहीं डरना.
छू सकते हो तुम भी,
ऊँचाई आसमान की.
ऊंचा कर सकते हो नाम विश्व में
अपने प्यारे हिंदुस्तान की.
ऐ मेरे देश के बच्चों !
तुम सदा करो ऐसा काम.
भारत का हर आदमी करे,
तुम पर सदा अभिमान.

*****

नारी

रचनाकार- उर्मी साहू, कक्षा - छठवीं, विद्यालय स्वामी आत्मानंद शेख गफ्फार, शासकीय अंग्रेजी माध्यम स्कूल, तारबहार, बिलासपुर

naari01

सुना है,परियों के देश से आई है,
धरती पर रहती है.
मौन ही उसका शस्त्र है,
पर सदा मौन न रहती है.

है कल्याणी, वह सरस्वती,
वह गृहलक्ष्मी का भी अवतार.
पर बन आए तो रणचंडी,
आदिशक्ति बन करती वह उद्धार.

समस्त दुख-पीड़ाओं को,
हरदम वह सहती है.
खुद पीड़ा से घिरी रहे,
पर रिश्तों को प्रेम से सेती.

खुद जीवन से लड़कर,
नवजीवन वह देती है.
सुना है परियों के देश से आई है,
धरती पर रहती है.

*****

पेड़

रचनाकार- अर्पिता साहू, सातवीं, स्वामी आत्मानंद से गफ्फार अंग्रेजी मीडियम स्कूल तारबाहर बिलासपुर

PED

पेड़ से हमें जीवन मिलता.
हवा,छाया,फल सबको देता.
प्रदूषण से ये हमें बचाते हैं.
हमने ये शपथ लिया है.
पेड़ हमें खूब लगाना है.
जीवन हमें बचाना है
तो पेड़ को बचाना है.
पेड़ से जीवन है तो पेड़ से संसार है.
आओ सब मिलकर पेड़ लगाए अपना जीवन सुखमय बनाएं.

*****

जुनून पर कविता

रचनाकार- शिखा मसीह, 8वीं, स्वामी आत्मानंद शेख गफ्फार सरकारी अंग्रेजी माध्यम स्कूल तारबहार बिलासपुर

junun

जुनून एक जिंदगी का हिस्सा है
जुनून एक जिंदगी का हिस्सा है
अपनी जिंदगी में शामिल किये
तो किसी भी मंजिल को पाना हमारे लिए मुमकिन हो जाता है.

जुनून एक ऐसी चीज है
जो जिंदगी में एक बार आ गया
तो हम हमारी सोच से भी आगे बढ़ जाते हैं.

जुनून एक ऐसी चीज है
जो हर जीत के पीछे खड़ा होता है.

जुनून हमारे अंदर की एक ऐसी अग्नि है
जो हमें हर चुनौती के लिए साहस देता है.

जुनून हमें एक ऐसी सीख देती है
जो हमारी जिंदगी बदल देती है.

जुनून एक ऐसी चीज है
जो हमारे कोशिश और हमारे संघर्ष में कामयाबी देता है.

*****

घनघोर वर्षा

रचनाकार- सलीम कुर्रे, कक्षा 8 वीं, शास. पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, जिला- मुंगेली

ghanghor

ठण्डी-ठण्डी हवा है आई
पानी को साथ में लाई.
धीरे-धीरे बादल भी छाए
तेजी से बारिश भी ले आई.

साथ-ही-साथ सर्दी भी आई
धीरे-धीरे बुखार भी आया.
मम्मी-पापा को हुई है टेंशन
तेजी से बारिश फिर आई.

खेत-खलिहान भर जाते हैं
नदी तालाब डूब जाते हैं.
किसानों की थी खुशियाली
अब लुट गई उनकी खुशियाली.

किसानों को हुई है टेंशन
तब बादल को कोस रहे थे.
कितना ज्यादा बोल रहे थे
मुश्किल आई वर्षा वाली.

*****

दोहे

रचनाकार- कामिनी जोशी, कस्तुरबा ग़ांधी बालिका आवासीय विद्यालय दुल्लापुर बाजार

dohe

मटर में करके प्रयोग, दिया नाम विज्ञान.
आनुवंशिकी के पिता, मेंडल हुये महान.

दूर देश के मित्रों से, बात कराता कौन.
ग्राहम बेल का शुक्रिया, दे गये टेलीफोन.

नीले लिटमस पत्र को, कर देते वह लाल
कहते है हम अम्ल उसे, अंग न देना डाल

किसी जीव का किस जगत, होता है स्थान.
ऐसा लीनियस ने दिया, वर्गीकरण विज्ञान.

जिसको चाहे भेज दो, अब तुम टेलीग्राम.
मारकोनी का शुक्रिया, उसको करो सलाम.

फिल्म देखने का जिसे, सचमुच में है शौक.
एडीसन ने पेश किया, उसको बाइस्कोप.

कैसी तारों की बस्ती, या उनका आलोक.
गैलिलियो ने बता दिया, देकर टेलीस्कोप.

चाहे तुम सूट सिलाओ, या सिलवाओ जीन्स.
एलियास देकर गए, ऐसी सिलाई मशीन.

*****

कोशिश कर

रचनाकार- महेन्द्र कुमार साहू 'खलारीवाला', गुण्डरदेही बालोद

koshis

फासले भी गुजर जाएँगे,मंजिल भी मिल जाएगा.
कोशिश कर जीवन में हर समस्या का हल पाएगा.

हार न मान,उदास न बैठ,तुम्हारा भी जरूर नाम होगा.
कोशिश कर,हर बाधा से जूझना आसान काम होगा.

आँधियों का दौर चलता रहेगा,इस जीवन चक्र में.
मरूभूमि की तपिश सहन कर,जीवन भी आसान होगा.

राह भटकाने वाले भी मिलते रहेंगे इस जगत में.
अडिग रह लक्ष्य पर,जरुर तुम्हारा मुकाम होगा.

कोशिश से ही जीवन में हर काम आसान होगा.
जीवन का फलसफा सीख,तेरा पथ आसान होगा.

आसमां पर उड़ने वाले परिंदे अपना हुनर जानते हैं.
कोशिश कर,उन परिंदों की भाँति गगन अवश्य तुम्हारा होगा.

*****

1 से 10 तक गिनती

रचनाकार- श्रीमती सरोजनी साहू, सारंगढ़

ek

1 एक बड़े राजा की बेटी.
2 दिन से बीमार पड़े.
3 सिपाही दौड़े आए.
4 दवा की पुड़िया लाई.
5 मिनट में गरम कराई.
6 घंटे बाद पिलाई.
7 दिन में आंखें खोली8 दिन में ताकत आई.
9 दिन में दौड़ लगाई.
10 दिन में साला को आई.

*****

हमारी सेना

रचनाकार- राजेन्द्र श्रीवास्तव, विदिशा

hamaari

मम्मी बोलीं चिंटू जी से-
बेटा मानो बात हमारी.
जाओ चीनी लेकर आओ
खत्म हो गई चीनी सारी.

काम टालते ही रहते हो
लापरवाही नहीं चलेगी.
देखो अभी कहे देती हूँ
चाय शाम को नहीं मिलेगी.

चिंटू बोले- मम्मी! सुनिए
चाय भले ही तुम मत देना.
लेकिन चीन और चीनी का
नाम भूलकर भी मत लेना.

अब जबाब मुँहतोड़ उसे भी
उसकी ही भाषा में देना.
उससे दो-पग आगे ही हैं
हम सब और हमारी सेना.

*****

होली

रचनाकार- राजश्री राठी, महाराष्ट्र

holi

होली आई, होली आई
रंगों वाली होली आई.

लाल, गुलाबी, नीला, पीला
मन को भाए रंग चटकीला.

मिलजुलकर आपस में रहना
प्रेम रंग में सभी को बहना.

ऊॅंच-नीच का भेद मिटाओ
सबको गले लगाते जाओ.

वृक्षों को हम नहीं काटेंगे
कूड़ा-कचरा जलाएँगे.

रंग गुलाल हम उड़ाएँगे
व्यर्थ जल को न बहाएँगे.

रखना मीठी तुम बोली
सन्देश यहीं लाई होली.

*****

पंछी

रचनाकार- राजश्री राठी, महाराष्ट्र

panchhi

पंछी बनकर उड़ना चाहूँ
नील गगन को छूना चाहूँ.

रंग-बिरंगे पंखों से मैं
सैर बागों की करना चाहूँ.

इस डाली से उस डाली जाऊॅं
हाथ किसी के मैं नहीं आऊॅं.

दाना चुग-चुगकर मैं लाऊॅं
जहॉं मन हो वहॉं उड़ जाऊॅं.

कभी आम, कभी अमरूद खाऊॅं
पेड़ों की छाया में सो जाऊॅं.

मीठे प्यारे गीत सुनाऊॅं
खुली हवा का आनन्द पाऊॅं.

चुन-चुन तिनके घोंसला बनाऊॅं.
ऊॅंची उड़ान मैं भरना चाहूँ.

साथियों संग-संग मैं उड़ जाऊॅं
आजादी से रहना चाहूँ.

*****

समय

रचनाकार- राधेश्याम सिंह बैस, बेमेतरा

samay

समय का चक्र चलता,
नित प्रहर दिवस.
रुकने का नाम नहीं,
हो गर्मी,सर्दी या पावस.

समय समेटे सारी घटनायें,
हैं यह बड़ा अनमोल.
जब निकले हाथ से,
नहीं समय का कोई मोल.

समय की नजरें सामान,
कर लो समय पर काम.
परख न सके समय को,
सब कुछ उनका जाम.

समय सभी को देखता,
हर घटना को समेटे.
नहीं किसी की प्रतिक्षा,
हर दिन हर कार्य को लपेटे.


समय का बड़ा मान,
होता समय बलवान.
समय निकले तो काम बिगड़े,
करना होता सबको इनका सम्मान.

इतिहास संजोये रखे समय,
भूत,वर्तमान व भविष्य .
घूमे साहित्य औऱ समाज,
देते समय निशा दिवस को ताल.

बढ़ती उम्र समय के साथ,
करते रहिये समय पर काज.
रुकता समय कभी नहीं,
सफल पहने समय का ताज.

समय गिनाता आदि से अंत,
वह मिटता कभी नहीं.
याद रहता हर पल,
गुजरता रहता दिन रात यही.

देखता रहता नित वह,
इस बात से न हो अज्ञात.
समय,समय पर बता देता
तब कहता हमको नहीं था ज्ञात.

समय समय पर घटता,
अच्छी या बुरी हो बात.
देखता रहता वह बराबर,
निरंतर चलता रहता निज पात.

*****

तुझपे कुर्बान मेरी जान

रचनाकार- प्रमेशदीप मानिकपुरी, धमतरी

tujhpe

शान तेरी ना घटे मेरी माँ
मान तेरी ना घटे मेरी माँ
विश्व की रहें सदा अभिमान
तुझपे कुर्बान कर देंगे जान

लहराता रहें हिम मे तिरंगा
बहती रहें नित पावन गंगा
नित बढ़ती रहें तेरी ही शान
तुझपे कुर्बान कर देंगे जान

दुनिया मे परचम लहराये
तेरे आगे कोई टिक ना पाये
सबसे ऊँचा हो तेरा मुकाम
तुझपे कुर्बान कर देंगे जान

चाँद पर होगा हमारा बसेरा
सूरज का भी लगाएंगे फेरा
बस यही हो सबकी जुबान
तुझपे कुर्बान कर देंगे जान

*****

सतत चलना ही जीवन

रचनाकार- प्रमेशदीप मानिकपुरी, धमतरी

satat

कल-कल बहती सरिता जीवन सी
तुष्ट करती धरा को शास्वत गंगा सी
इठलाती बलखाती चलती जाती है
सतत चलना ही जीवन सिखलाती है

सुख-दुख जीवन मे जब भी आते है
धैर्य का परीक्षा सहज ही हो जाते है
जीवन देखो,कैसे चलती ही जाती है
सतत चलना ही जीवन सिखलाती है

रास्ता खुद के लिए खुद ही बनाकर
परिश्रम को सहजता से अपनाकर
जब कर्म ही हमारी धर्म बन जाती है
सतत चलना ही जीवन सिखलाती है

कर्म पथ पर धृढता से आगे बढकर
राह की मुश्किलों से डटकर लड़कर
मंजिल की ओर ही हर कदम जाती है
सतत चलना ही जीवन सिखलाती है

*****

गुरु की कीजै नित सम्मान

रचनाकार- प्रमेशदीप मानिकपुरी, धमतरी

guru

जन्म मरण का भेद बताया
अंतस का सब भेद मिटाया
सद्गुरु को सादर है प्रणाम
गुरु की कीजै नित सम्मान

जीवन का अँधियार मिटाकर
जीवन मे नवज्योति जलाकर
जीवन का बढ़ाया जैसे मान
गुरु की कीजै नित सम्मान

सद्गुरु मिले जीवन सुलझे
जीव आशा तृष्णा मे उलझे
कीजिये गुरुवर का ही गान
गुरु की कीजै नित सम्मान

गुरु से निज की गुरुता बढ़े
ज्ञान और मान सम्मान बढ़े
चरणरज से मिटे अभिमान
गुरु की कीजै नित सम्मान

गुरु ही भ्रम जाल मिटाये
आचरण से मान दिलाये
गुरुवर को कोटिशः प्रणाम
गुरु की कीजै नित सम्मान

*****

नये सपने सजायेंगे

रचनाकार- प्रमेशदीप मानिकपुरी, धमतरी

nye_sapne

आशा निराशा के बीच उलझी जीवन मे
आश के प्रति नित संकल्प रखे जीवन में

संकल्पमय प्रयास से हर सपने होंगे पुरे
जीवन सार्थक होगा आयेगा नया सवेरे

विश्वास से जीवन की लड़ाई लड़ना होगा
घनाअंधेरा हो,विश्वास से उसे डरना होगा

विश्वास की तेजस से हर जंग जीतेंगे अब
ज़माने की ताने-बाने में नही उलझेंगे अब

हर दिन एक नया प्रयास कर आगे बढ़ेंगे
जीवन के गम को दिल से अलविदा कहेंगे

समय को समय दो हर जख्म भर जायेंगे
समय के साथ समय नये सपने सजायेंगे

*****

मेरा स्कूल

रचनाकार- कौशल प्रसाद डाहिरे, बिलासपुर

mera_school

मम्मी मेरा बस्ता दे दे
पढ़ने स्कूल जाऊंगा
खूब पढूंगा खूब लिखूंगा
पढ़ लिखकर घर आऊंगा

दीनू,मीनू,सीता,गीता
सीखकर आते रोज कविता
गाते सुंदर सुंदर गाना
खुश हो जाते नानी नाना
घर में आकर मैं भी गाकर
तुमको रोज सुनाऊंगा

सर मैडम रोज स्कूल आते
अक्षर,गिनती, पाठ पढ़ाते
हाथ पकड़कर हमें सिखाते
अच्छी अच्छी बात बताते
खेल खिलाते, खूब हंसाते
तुमको रोज हसाऊंगा

मम्मी मेरा बस्ता दे दे
पढ़ने स्कूल जाऊंगा
ख़ूब पढूंगा ख़ूब लिखूंगा
पढ़ लिखकर घर आऊंगा.

*****

ताला

रचनाकार- श्री कौशल प्रसाद डाहिरे, बिलासपुर

tala

ताला हूं मैं भाई ताला हूं
घर का सच्चा हूं रखवाला
कहीं चमकता चांदी जैसा
कहीं पर दिखता काला हूं
सोने जैसा रंग है चढा मैं
कितना किस्मत वाला हूं
ताला हूं मैं भाई ताला हूं.....

मंदिर ,मस्जिद,महल,अटारी
मुझ पर सबका भरोसा भारी
कलकारखाना,बैंक,दुकान
छोटा हो या बड़ा मकान
हर जगह पर मिलने वाला हूं
ताला हूं मैं भाई ताला हूं......

दरवाजे पर लटकते रहता
चोरों को मैं खटकते रहता
मुझे लगा सब चैन से सोते
गांव,शहर सब घूमकर आते
स्टील, पीतल,लोहा वाला हूं
ताला हूं मैं भाई ताला हूं....

ले आओ मुझे देकर दाम
फिर देखो जी मेरा काम
भले बिना मैं आंखों का
बचत करूं मैं लाखों का
दो,तीन,चार चाबी वाला हूं
ताला हूं मैं भाई ताला हूं
घर का सच्चा रखवाला हूं.

*****

भालूजी

रचनाकार- अशोक ' आनन '

bhaalu

काले - काले भालू जी.
सर्कसवाले भालू जी.

नाचें एक इशारे पर ये -
बैठे - ठाले भालू जी.

शहद तोड़कर छत्तों से -
झट से खा लें भालू जी.

गर्मी में भी बालोंवाली -
ओढ़ें शालें भालू जी.

टी. वी काल में मदारी -
कैसे पाले भालू जी.

चिड़ियाघर में सुस्त पड़े -
जंगल वाले भालू जी.

*****

टी . वी .

रचनाकार- अशोक ' आनन '

tv

घर की शान बढ़ाता टी. वी.
अपना हमें बनाता टी. वी.

पलक झपकते दुनिया की ये -
हमको सैर कराता टी. वी.

पल में दुनिया भर की ख़बरें -
रोज़ हमें सुनाता टी. वी.

इसे देखते सभी चाव से -
सबका दिल बहलाता टी. वी.

इसे देखकर कहते हम सब -
तुम बिन रहा न जाता टी. वी.

जोकर जैसा कभी हंसाता -
बच्चों. कभी रुलाता टी. वी.

*****

खटमलजी

रचनाकार- अशोक ' आनन '

KHATMAL

हम ज़रा लेटते खटमलजी.
तुम हमें काटते खटमलजी.

तन में डंक चुभाकर तीखा -
तुम लहू चूसते खटमलजी.

कुर्सी, टेबल, बेंच ,पलंग तुम -
खटिया में रहते खटमलजी.

सुबह-शाम तुम रात- दुपहरी -
बेफ़िक्र घूमते खटमलजी.

जब पकड़ में आ तुम जाते -
हम नहीं छोड़ते खटमलजी.

तुम तो पीकर लहू हमारा -
मदहोश घूमते खटमलजी.

*****

रेल चली

रचनाकार- अशोक ' आनन '

RAIL

छुक - छुक करती रेल चली.
करती कितने खेल चलीं.

जोसफ, कादर, मुन्ना आओ.
मेरी, सलमा, शीला आओ.

पहिए सूरज जैसे गोल.
इंजिन इसकी खोले पोल.

इंजिन के संग डिब्बे चलते.
हर दिन सैर सपाटा करते.

विसिल बजाती जाए दइया.
झंडी गाॅर्ड दिखाए भइया.

पटरी पर यह चलती जाए.
व्यर्थ ज़रा न समय गंवाए.

जीवन चलने का है नाम.
समझो , रीना, मीना, श्याम.

*****

तितली

रचनाकार- बद्री प्रसाद वर्मा अनजान

TITLI

तितली उड़ी, तितली उड़ी
रेल में चढ़ी
पहली बार देखा रेल
होती है बड़ी.

जाना था उसे
आगरा के पास.
टिकट नहीं था
थी बहुत उदास.

टी टी जब आया
बोला टिकट दिखाओ.
टिकट नहीं है बोली
जाओ आगे जाओ.

अब तो पड़ेगा तुमको
भरना जुर्माना.
तितली बोली
नहीं दूंगी जुर्माना.

फुर्र से तितली
रेल से उड़ी.
कैसा जुर्माना
मैं तो चली.

*****

उपकारी वृक्ष

रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु ', धमतरी

UPKARI

यह वृक्ष तरु वन उपवन और यह हरियाली
धरती का है श्रृंगार और इसी से खुशहाली.
वृक्ष हमारे शुभचिंतक हैं वृक्ष हमारे हितैषी
यही हमारे प्राण अधारे,इससे निर्दयता कैसी?

वृक्ष हमे देता है सब कुछ,देता शीतल छाया
फल-फूल बूटियां देकर उपकारी कहलाया.
वृक्षों हमे हवा है देता, जीवन सुखद बनाया
दूर पथिक निकट में आकर विश्रांति है पाया.

लगती है बड़ी प्यारी तेरी शीतल घनेरी छाया
धन्य-धरा सब जीव जगत सभी को है भाया
तुझसे ही यह धरा श्रृंगारित तूने धरा सजाया
धन्य-धन्य तुम्हे है तरुवर उपकारी कहलाया.

*****

मैं हूं पेड़

रचनाकार- ओमकार डीढहत्रे, कक्षा पांचवी, शासकीय प्राथमिक शाला भोजपुरी

MAI

मुझे मत काटो.
टुकड़ों टुकड़ों में
मुझे मत बांटो.
दर्द मुझे भी होता है.
मेरा मन भी रोता है.
मैं हूं मित्र तुम्हारा.
सखा हूं सबसे न्यारा.
मेरे फल
मैं खुद नहीं खाता हूं.
सब तुम्हें दे देता हूं.
जहरीली गैसे
मैं खुद ही पी जाता हूं.
शुद्ध हवा
तुम तक पहुंचता हूं.
मैं पेड़ हूं
मुझे मत काटो.

*****

चंदा मामा

रचनाकार- पिंकी सिंघल, दिल्ली

CHANDA_MAM

चंदा मामा कभी तो आओ
मामी को भी साथ में लाओ
भूख तुम्हें जो लगे कभी फिर
संग हमारे खाना खाओ

बातों से न यूं बहलाओ
मधुर सा कोई गीत सुनाओ
गर्मी की छुट्टी में तुम भी
साथ हमारे मौज उड़ाओ

चारो तरफ़ प्रकाश फैलाओ
भटकों को तुम राह दिखाओ
आसमान का कोना कोना
अपनी आभा से तुम चमकाओ.

आधे आओ चाहे पूरे आओ
हर रूप से बस तुम हमें लुभाओ
छोड़ के तुम नखरे ये सारे
लाज का पर्दा जल्द उठाओ.

लुक छिप कर न उन्हें सताओ
मां भूखी है जल्दी आओ
दिखला के सुंदर मुखड़ा अपना
उनकी पूजा सफ़ल बनाओ.

*****

विरह

रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू', राजिम

VIRAH

विह्वल व्यथित दृष्टि ये मेरी,
देखे पथ को निहार,
बार बार ध्वनि सुन वाहन की,
जब दिखती परछाई,
हृदय कहे करके स्पंदन तब ,
तुम ठहरो!मैं आई,
निर्जन पथ ये देख नयन भी,
आकुल फिर एक बार.

छिपा भावनाओं को कितनी,
मौन सदा ही रहती,
बिना नीर के मीन बनी मैं,
आतप हर क्षण सहती,
अंग–अंग में प्रलय समेटे,
विछिन्न सकल श्रृंगार.

मिलने को व्याकुल सदैव ही ,
देखूंँ प्रतिपल सपना,
बिना तुम्हारे है क्या कोई,
यहांँ जगत में अपना,
समक्ष मेरे आ जाओ तो,
आंँसू दें पथ पखार.

अब तुमको आना ही होगा,
विरह वेदना न सहूँ,
मिली देह ये क्षणभंगुर है,
अगले पल मैं न रहूँ,
मन भर देखूँ तुम्हें प्रिये फिर,
कर दूँ सर्वस्व वार.

*****

दिपावली

रचनाकार- सृष्टि थवाईत, कक्षा= 7वी, स्वामी आत्मानंद शेख गफ्फार अंग्रेजी माध्यम शाला तारबाहर बिलासपुर (छ.ग)

diwali01

कार्तिक अमावस की काली रात को दियों से सजाएंगे
आँगन में रंगोली बनाकर लक्ष्मी को बुलाएंगे
घर घर मे खुशियाँ फैलाएँगे
पहन के नए कपड़े मिलकर दिप जलाएँगे
भूल के हर गम को अपने घर को सजाएंगे
मिलकर दिपावली का त्योहार मनाएंगे
घर घर मे खुशियाँ फैलाएँगे

*****

दददू भईया

रचनाकार- वसुंधरा कुर्रे, कोरबा

daddu_bhaiya

एक था दददू
लेने गया था कद्दू
कद्दू मिला उसे ठेला में
लेकर आ रहा था अकेला
रास्ते में पड़ा मेला
दददू मेला देखें गया
भूल गया वह मेला में
खो गया उसका कद्दू
दददू रोने लगा
नंदू ने दददू को देखा
दददू को दिया लड्डू
दददू खुश हो गया
दददू ने खाया लड्डू
दददू ने मेला देखा
मेले में थे रंग रंग का ठेला
ठेला में मिल गया दददू का कद्दू
दददू अब ना रहा अकेला
रास्ते में मिला उसे एक केला
दददू केला खाने लगा
खुशी-खुशी कद्दू के साथ आने लगा

*****

अंतिम साँस तक लड़ना होगा

रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू, धमतरी

antim

जीवन पथ पर लड़ना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा.

राहे अपनी खुद गढ़ना होगा
लक्ष्य मार्ग पर बढ़ना होगा.

रगों में साहस भरना होगा
कर्म से किस्मत लिखना होगा.

मुश्किलों से खुद लड़ना होगा
लडते लड़ते बढ़ना होगा.

सफलता नहीं मिलती जब तक
अंतिम साँस तक लड़ना होगा.

*****

शरद ऋतु

रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू(शिक्षक), धमतरी

sharad

बीत गई है बरसा ऋतु
शरद ऋतु अब आई है
सुबह शाम शीत बरसाने
ठंड ने पैठ जमाई है

कोहरा और धुंध बरसते
शरद् ऋतु के मौसम में
गरम वस्तुएं गरम कपड़े
खूब भाते इस मौसम में

रेनकोट और छतरी की
हो गई अब तो बिदाई
स्वेटर,कंबल,मफलर,टोपी
इन सबकी है बारी आई

*****

गूगल बनाम हृदय

रचनाकार- राजेन्द्र जायसवाल, सूरजपुर

google

एक ज्ञान गूगल देता है
एक ज्ञान हमारे अंदर से आता है

गूगल का ज्ञान कोई भी दे सकता है
हृदय अनुभूत ज्ञान कोई बिरला ही देता है

गूगल का ज्ञान बासी होता है
हृदय से निकला ज्ञान ताजगी भरा होता है

गूगल का ज्ञान दूसरों के लिए ज्ञानदायिनी है
अंदर का ज्ञान खुद के लिए पवित्र गंगा होता है

विचारों का असली खान हमारे अंदर स्थित है
आइए हमलोग अंदर डूबना सीखें

हम सभी के अंदर एक कालीदास बैठा है
आइए उस कालीदास को हम जगाना सीखें

*****

विश्व गुरु

रचनाकार- राजेन्द्र जायसवाल, सूरजपुर

VISHVA_GURU

तुरू रू तुरू,हम हो गए शुरू.
बनाकर छोड़ेंगे,भारत विश्व गुरु.
गर्व है हमको जरूर.
वह दिन अब न दूर.

हो रहे हम मशहूर.
किसान और मजदूर.
रहेंगे ना मजबूर.
अन्य धन से भरपूर.

कुछ देश रहें घूर.
उनका तोड़ेंगे जो, ज्यादा मगरूर.
प्रेम भी है अपना, प्यारा दस्तूर.
तुरू रू तुरू, हम हो गए शुरू.

कोशिश है भरपूर.
कृष्ण जगतगुरु.
शक्ति देंगे जरूर.
कलम भी चले जरूर.

दुनिया गायेगी.
भारत विश्व गुरु.
भारत विश्व गुरु.
भारत विश्व गुरु

तुरू रू तुरू रू, हम हो गए शुरू

*****

मुनिया रानी

रचनाकार- रूपा अम्बस्ट, प्रा. शाला भगवानपुर अम्बिकापुर

muniyarani

मुनिया रानी बड़ी सयानी
मीठी बातें ठंडा पानी

जब वह बोले मीठे बोल
झूम बंदर नाचे मोर

उसकी आंखें गोल गोल
मानो चंदा सी अनमोल

जब वह चलती झूम झूम
धरती माता को चूम चूम

खुश हो जाती दादी नानी
मुनिया रानी बड़ी सयानी

*****

मोबाइल

रचनाकार- प्रतिभा सुधीर त्रिपाठी, बालोद

mobile

मोबाइल हैं,
घातक हथियार
करती है बीमार
ये कैसा रोग
हाथ में है साथ
बना जीवन रोग.

मोबाइल से
बच्चों का हैशोषण
रखते बच्चे साथ
यह करिश्मा
मानो मेरी बात ये
न करों उपयोग.

समय बचे
मोबाइल से काम
जल्दी होता हैं नाम
अच्छाई जानें
दूर बैठे पास हों
ऐसा हो आभास.

सच तो बड़ा
खुश सारा संसार
पर जीना बेकार
मोबाइल हैं
गलत अविष्कार
बच्चे होंगे लाचार.

*****

नूतन भोर हुआ है

रचनाकार- चेतना चन्द्राकर, कोरिया

nutan

मिटने को है, निशा निशानी,
अब तो नूतन भोर हुआ है.
स्वागत में सब खग वृन्द का,
कलरव व मीठा शोर हुआ है
मिटने को......
रक्त वर्ण में निकला सूरज,
सुनहरा चहुँ ओर हुआ है.
मिटने को......
फूलों से सज गए हैं उपवन,
मधुप,भृंग भाव-विभोर हुआ है.
मिटने को......
गगन नापते नीड़ के खग में,
नव उमंग पुर-जोर हुआ है.
मिटने को......
जाग,छोड़ दे खाट को अपने,
अब उठने का दौर हुआ है.
मिटने को......

*****

गाँधी जी

रचनाकार- यशवंत पात्रे, कक्षा- 8वीं, शास. पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा(न), संकुल-लालपुर थाना, वि.ख-लोरमी, जिला-मुंगेली

raashtra

गाँधी जी आए.
भारत छोड़ो आन्दोलन चलाए.
गाँधी जी ने दिया संदेश.
स्वतंत्र रखो भारत देश.
सफेद रंग का कपड़ा पहने वाले वो पुरूष कौन थे.
अंग्रेजों के सामने क्यों गाँधी जी मौन थे.
कमर कस ली गाँधी जी ने, अंग्रेजों को दिखाने के लिए.
भारत छोड़ो आन्दोलन चलाने के लिए.
खुद की मिट्टी में बना नमक, जिस पर कर लगाया गया.
गाँधी जी द्वारा नमक कानून आन्दोलन चलाया गया.
गाँधी जी के बकरी के चार पैर.
अंग्रेज नही लेते थे गाँधी जी से बैर.
दो अक्टूबर को स्टेज सजायेंगे.
गाँधी जी का जन्मदिन मनायेंगे.
गाँधी जी चरखा चलाते रहे.
ऊनी कपड़े बनाते रहे.
गाँधी जी का जन्मदिन आया.
सत्य और अहिंसा को मैंने अपनाया.

*****

बापू जी

रचनाकार- करन टंडन, कक्षा 8 वीं, शास. पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, संकुल- लालपुर थाना, वि.ख. लोरमी, जिला- मुंगेली

raashtra

बापू जी बहुत भोले-भाले थे.
हम सब के रखवाले थे.
गली-गली में दुःख के पल्ले पड़ते थे.
सभी अंग्रेज एक नंबर के निठल्ले थे.
सत्य की राह पर चलने वाले.
ईमान का पाठ पढ़ाने वाले.
समय उनका एक था.
काम उनका नेक था.
गाँधी जी ने चरखा चलाए.
तभी तो अपना नाम बनाए.
गाँधी जी के जन्मदिन की शुभ घड़ी आई.
सभी बच्चों ने उसके फोटो को सजाई.
जन्मदिन आपका हम मनायेंगे.
अंग्रेजों को भारत से भगायेंगे.
राजकोट में पढ़ने वाले.
शिक्षित देश बनाने वाले.
प्यारे-प्यारे बापू थे.
जन-जन के दुलारे बापू थे.
सिद्धांत के पाठ पढ़ाने वाले.
गाँधी जी थे एक दिलवाले.

*****

कान्हा

रचनाकार- कु. भावना नवरंग, कक्षा- 8 वीं, शास. पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, संकुल- लालपुर थाना, वि.ख. लोरमी, जिला- मुंगेली

wo_kanha

कान्हा-कान्हा सभी गोपियाँ बुलाए.
नंदलाला के नाम से सारा जग बुलाए.
राधा के साथ कृष्ण रास रचावे.
राधे-राधे, राधा को, कृष्ण कहे.
कान्हा के बाँसुरी सबके मन को मोह लेते.
नटखट कान्हा, सब कहते.
कान्हा माखन चुराए.
मटकी फोड़ कर माखन खाए.
सभी गोपियाँ कान्हा के पीछे भागे,
देवकी ने तो जन्म दिया,
यशोदा ने तो पाला है.
कान्हा मोर पंख और,
बाँसुरी के बिना अधूरा है.
कृष्ण हर कण-कण में है.

*****

शिक्षक और शिक्षा

रचनाकार- आदित्य बघेल, कक्षा- आठवीं, शास. पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, संकुल- लालपुर थाना, वि.ख. लोरमी, जिला- मुंगेली

shikshak

शिक्षा से बढ़कर कोई शिक्षक नहीं.
ज्ञान से बढ़कर कोई ज्ञानी नहीं.
शिक्षक का करते हैं सम्मान.
कभी नहीं करेंगे उसका अपमान.
हम जैसे बच्चों का कुछ बनने का इच्छा है.
हमारे इच्छा को पूरा करने वाला वह शिक्षक है.
हमारे शिक्षक कुछ भी कर लेते हैं. पर?
हमारे दुःख, पीड़ा को समझ जाते हैं सर.

*****

शिक्षक दिवस आ गए

रचनाकार- अंकित बघेल, कक्षा छठवीं, शास. पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, संकुल- लालपुर थाना, वि.ख. लोरमी, जिला- मुंगेली

shikshak

शिक्षक दिवस आ गए,
दुनिया भर में छा गए.
शिक्षक दिवस मनाएँगे,
पूरे देश में छा जाएँगे.
शिक्षक भी है एक भगवान,
स्कूल में है इनका सम्मान.
शिक्षक देता है हमको ज्ञान,
बच्चे करते हैं बड़े सम्मान.
सब लोग स्कूल चलो जाएँगे,
शिक्षक से ज्ञान पाएँगे.
स्कूल में शिक्षक दिवस मनाएँगे,
हम गाँव में छा जाएँगे.
सभी स्कूल में शिक्षक का सम्मान है,
शिक्षक दिवस का अभिमान है.

*****

आई है राखी

रचनाकार- करन टंडन, कक्षा- 8 वीं, शास. पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, संकुल- लालपुर थाना, वि.ख. लोरमी, जिला- मुंगेली

aai

वचन यह लेता हूँ
सदा खुश रखूँगा तुझको
आई है राखी मेरी बहना प्यारी
सबकी हो तुम लाड दुलारी
इस पावन दिन का कब से इंतजार था मुझको
सूनी पड़ी है बहन मेरी कलाई
मत करो मुझसे लड़ाई
राखी एक पावन त्यौहार है
भाई-बहन का प्यार है
लड्डू, पेड़ा, मिठाईयाँ तुम लेते आना
हम सभी भाईयों को तुम खिलाना
सदा वचन देता हूँ रक्षा करूँगा तुम्हारी
मेरी बहना सबसे प्यारी तुम हो मेरी लाड दुलारी
बहन तू आई है मेरे घर बाँधने मुझे राखी
तेरा-मेरा बंधन है कितना सच्चा साथी
मेरी बहना सबसे प्यारी
सबकी हो तुम लाड दुलारी
मेरे और मेरी बहन की तरफ से राखी की आप लोगों को ढेर सारी बधाई.

*****

चंद्रयान- 3

रचनाकार- आदित्य बघेल, कक्षा- 8 वीं, शास. पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, संकुल- लालपुर थाना, वि.ख. लोरमी, जिला- मुंगेली

chandryan

ऐ मेरे चाँद मैं तुझसे मिलने आऊँगा,
सही सलामत तेरे सतह पर लैंडिंग कर जाऊँगा.
धरती से बादल को चीर कर तेरे पास आऊँगा,
मैं अपने भारत देश को नंबर वन पर लाऊँगा.
चालीस दिनों के बाद तेरे सतह पर आऊँगा,
आकर तेरे सतह पर तिरंगा झण्डा लहराऊँगा.
भारत देश खुशियाली मनाएगा,
अब नया इतिहास रचाएगा.

*****

तिरंगा का सम्मान

रचनाकार- कु. श्वेता टंडन, कक्षा 8 वीं, शास. पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, संकुल- लालपुर थाना, वि.ख. लोरमी, जिला- मुंगेली

tiranga

इस तिरंगा का हम सम्मान करते हैं,
देश के लिए हम जीवन कुर्बान करते हैं
इस तिरंगे में मेरी जान है जैसे तिरंगे में भगवान है.
तिरंगे से है हमारी पहचान इसमें ही हमारी जान है.
आओ मेरे हिंदुस्तान और देखो इसकी शान.
हमारा देश कई राज्यों में बँटा है
अनेकता में एकता इसकी प्राकृतिक छटा है
मुश्किल से मिली है हमें स्वतंत्रता
हम स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं
तिरंगा फहराते हम राष्ट्रगान गाते हैं
खुल कर इस दिन को मनाते हैं
इस तिरंगे से हमारी शान है
करते इसका हम सम्मान हैं

*****

मौज मनाओ जी

रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा, भोपाल

mauj

लड्डू पेड़ा खाओ जी,
जम कर मौज मनाओ जी.

गरम समोसे अगर मिले,
खाओ फिर मुस्काओ जी.

पानी पूरी चाट चटक,
खाकर ख़ुशी मनाओ जी.

हलवा पूरी अगर मिले,
खाओ,मत शरमाओ जी.

पेट भरा हो तब प्यारे,
मीठा पान चबाओ जी.

*****

अलबेले पेड़

रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा, भोपाल

albeli

खुशियां लेने लगी हिलोर,
देखो छम छम नाचा मोर.

सुन प्यारी कोयल का गीत,
सभी हो उठे भाव विभोर.

सुबह सुबह बरगद के पास,
गूँज उठा कलरव का शोर.

महक उठे जब प्यारे फूल,
बगिया झूम उठी हर ओर.

चहक उठे अलबेले पेड़.
हवा चली जब भी घनघोर.

*****

चिड़िया बोली

रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा, भोपाल

CHIDIYA

बड़े सवेरे चिड़िया बोली,
आई तितली की इक टोली.

कलरव गूंजी फिर बगिया में,
तब कलियों ने आँखें खोली.

शीतल चली हवा सुखदाई,
सुनो सुबह कोयल की बोली.

फूल खिले मौसम हरषाया,
मुखरित हुई हवा हमजोली.

खुशबू से ये बाग़ नहाया,
महक फिजा में किसने घोली ?

*****

बरगद

रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा, भोपाल

bargad

ये बरगद का पेड़ हमारा,
घना वृक्ष ये सबको प्यारा.

पक्षी का ये अपना घर है,
इसमें करते सभी गुजारा.

बड़े सवेरे पक्षी करते,
कलरव का संगीत बहारा.

देता है ये शीतल छैया,
दोपहरी का बने सहारा.

यहाँ राही करते आराम,
बरगद उपकारी है यारा.

*****

सुकून की चाह

रचनाकार- संगीता नेताम,बालोद

sukun

सुकून मिलता है सिर्फ अपने नसीब से
जिंदगी जी लो चाहे अच्छे तहजीब से.

जन्म लेते ही बुन लिए सपना एक अच्छा
बड़ा होकर क्या बनेगा मेरा प्यारा बच्चा.

तोतली आवाज में जब मैंने बोलना सीखा,
पाठशाला ने बदल दिये बोलने का सलीका,

पाठशाला में गुरु जी से मिला आश्वासन
शिक्षा से मिलेगा तुम्हें सुकून का जीवन

पढ़ाई करते-करते,पार कर गए उम्र बीस
भरते रहे माँ-बाप स्कूल कॉलेज का फ़ीस

कालेज के अध्यापक ने हमें दिया ज्ञान
पांच साल की तप से मिलेगा वरदान

कालेज की पढ़ाई, साथ शुरु हुई तैयारी
नौकरी के साथ आएगी,सुकून की पारी

आज नहीं तो कल आएगी हमारी बारी
शुकुन की जिंदगी देगी नौकरी सरकारी

दिन रात नौकरी की करने लगे तलाश
सुकून से जीना छोड़,सुकून की थी आश

मिल गई नौकरी,कुछ तो मिला राहत
पर पुरा ना हो सकी सुकून की चाहत

घर से निकले दफ़्तर और दफ़्तर से घर
कटने लगे अब तो जिंदगी का यह सफर

छुट्टी की आश में सप्ताह निकल गए
सप्ताह से सप्ताह,कई महीना निकल गए

दिन,सप्ताह,महीना और गुजरने लगे साल
ना मिला सुकून,जिन्दगी का वही हाल.

*****

जल

रचनाकार- मनोज चंद्राकर, गरियाबंद

jal

जल अमृत की सागर,शिव शंभु का नीर
जल में जग समाया है,गंगा की तस्वीर
जल ही जीवन है, धरा का आधार
सबकी निज आकृति, पानी निराकार
पितृ की तर्पण है पानी,भागी की कहानी
प्रकृति की दर्पण है पानी,पृथ्वीलोक की रानी
हाइड्रो, ऑक्सी की प्रेम प्रणय से,बन जाता है नीर
जल में जग समाया है,गंगा की तस्वीर
तीन रूपों की संगम है,ठोस,द्रव और गैस
रंगहीन कहलाता है,बिन पानी सब भैंस
पानी की एक एक ओस का,कृत कार्य सम्मान
महादेव को अर्पण कर,बन जाओ महान.

*****

शिक्षा है अनमोल

रचनाकार- जगजीवन प्रसाद जांगड़े, सक्ती

shiksha

जीवन है अनमोल, नहीं है इसका कोई तोल,
शिक्षा से मिलता है हम को सम्मान,
इसी से मिलता है हमें, जीवन का हर ज्ञान.
शिक्षा बिना जीवन होता है बेकार,
अगर जीवन को बनाना है धारदार,
चलो साथियों शिक्षा के द्वार.
चलो निकलो बस्ता पकड़ो,
गांठ ये बांध लो, होकर के कूल.
चलना है चलना है स्कूल,
विद्यालय जाना है मिलेगी उड़ान,
शिक्षा ही देगी आन -बान- शान
शिक्षा ही है बस एक गहना, बात मेरी मान,
अगर जीवन को बनाना है उपलब्धि का सार,
सुन ले पुकार चलो शिक्षा के द्वार.

शिक्षा जीवन को संवार देगी,
जीवन संवर जायेगा, इससे नाता जोड़ लो.
शिक्षा का अधिकार मिला है, बात ये जान लो,
अगर जीवन को बनाना है मुक्ति का द्वार,
सुन लें पुकार चलो शिक्षा के द्वार.

*****

शिक्षा बहुत ज़रूरी है

रचनाकार- जगजीवन प्रसाद जांगड़े, सक्ती

shiksha

शिक्षा की कली जब फूल बनेगी
देश हमारा महक उठेगा,
पुस्तक पढ़ने लगेंगे बच्चे
तब ही जीवन सार्थक होगा,

शिक्षित जब सारे बच्चे होंगे,
उनका जीवन रोशन होगा
शिक्षक भी खुश होंगे दुगुना,
ज्ञान दीप जब जगमग होगा,

शिक्षा की घुट्टी सबको पिलाना,
जीवन धन्य बनाना है,
क़लम की शक्ति पहचानो साथी
भारत को स्वर्ग बनाना है,

मेहनत चाहे मजदूरी करना
बच्चों को अच्छी शिक्षा देना
पढ़कर वह जब आगे बढ़ेंगे
राष्ट्र का नव निर्माण करेंगे.

*****

कुत्ते हुए व्याकुल

रचनाकार- जीवन चन्द्राकर'लाल'', दुर्ग

kutte

सब्जी बाज़ार जा रहा था,
आज,बड़े शान से हाथी.
गली के कुत्ते भौंक रहे थे,
लेकर बहुत से साथी.

गुस्से में आकर हाथी ने,
अपने सूंड से धूल उठाया.
जोर से कुत्तों पर दे मारा,
कुत्तों को समझ न आया.

चकरा कर सब गिरे वही,
मुंह, आंख में भर गए धूल.
शान से हाथी गुज़र गया,
सब कुत्ते हुए व्याकुल.

*****

प्रकाश के घेरे में

रचनाकार- जगजीवन प्रसाद जांगड़े, सक्ती

prakash

करोड़ों-करोड़ ग्रहों और तारों
को प्रकाशमान करती हुई ज्ञान की आकाशगंगा
गुज़रती है ख़ामोश, पृथ्वी के सन्नाटे
अंधकार के ऊपर से.
एक विद्यालय के रन्ध्र से,
शिक्षा का दिनकर चमक रहा
छिटकता है,
बस्ता थामे, एक विद्यार्थी के कपोल पर

अज्ञानता में पड़ी चौड़ी दरारों से
घूरता है काला अँधकार
और झींगुरों की आवाज़ का पहरा
गहराता जाता है रात-रात

दूर कहीं कोने में
विद्यालय के भीतर,
शिक्षकों की आवाज उभरती है,
चुपचाप, एक प्रयोगशाला में चल रहे अनुसंधान से
एक तीव्र प्रकाश-पुंज शिक्षा का,
पूरे परिवेश को उजलित करता चला जाता है.

*****

गुब्बारे वाला

रचनाकार- श्रीमती ज्योती बनाफर, बेमेतरा

gubbare

देखो आया गुब्बारे वाला.
रंग बिरंगे गुब्बारे लाया.
सबके मन को यह है भाया.
बच्चों को यह खास लुभाया.

चुन्नू लो तुम लाल और पीला.
मुन्नू लो तुम हरा और नीला.
है इसका हर रंग छबीला.
पर गहरा नीला ले गई शीला.

सबके मन को यह है भाते.
शादी पार्टी में रंग जमाते.
आयोजन में यह चार चांद लगाते.
बच्चे खेलते खुशियां मानते.

*****

आगे बढ़ते जाना

रचनाकार- कुमारी सुषमा बग्गा, रायपुर

aage

आगे बढ़ते जाना
आगे बढ़ते जाना.
जहां खड़े हो वहां से,आगे बढ़ते जाना
बीते हुए दिनों को पीछे छोड़,
आगे बढ़ते जाना.
ना निराश हो , ना चिंता कर
ना हताश हो,ना पीछे मुड़
आगे बढ़ते जाना.
उन्नति के मार्ग पे,आगे बढ़ते जाना.
हार ना मान सपनों को ना छोड़
सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंचते जाना
आगे बढ़ते जाना-आगे बढ़ते जाना.
सुख की है हमको चाह नहीं
दुख की हमको परवाह नहीं
आगे बढ़ते जाना - आगे बढ़ते जाना.

*****

चाचा नेहरू

रचनाकार- भूपसिंह भारती, हरियाणा

chacha

नेहरू जी के जन्मदिवस को,
बाल दिवस' हम सब कहते.

निर्माण करो उन रिश्तों का,
जो शक से भी ना हो ढहते.

प्यार से आपस में खेलो,
ना बात-बात में हम फहते.

देश बनाओ ऐसा जिसमें,
प्यार के झरने हो बहते.

नेहरू जी भी बच्चों संग,
बच्चों की भांति ही रहते.

आराम हराम है बच्चों,
नेहरू जी भी यह कहते.

बच्चों के संग खूब खेलते,
उनके सब दुख-सुख सहते.

इसीलिए तो इनको बच्चे,
प्यार से 'चाचा नेहरू' कहते.

*****

लो फिर से आ गई दिवाली

रचनाकार- भूपसिंह भारती, हरियाणा

dewari

मौज-मस्ती संग ले खुशहाली.
लो फिर से आ गई दिवाली
हरे, लाल, नीले बल्बों की,
चस भुज करने लगी लड़ी.
अमावस की रात अँधेरी में,
आई खुशियों की शुभ घड़ी.
दामन रहे ना किसी का खाली.
ये लो फिर से आ गई दिवाली.

एटम बम बड़ा शोर मचाये,
रॉकेट सर्रर्र से नभ में जाये,
चकरी,चिड़िया, साँप,फुलझड़ी
अनार पटाखे खूब चलाये.
सब नाचे-कूदे बजाके ताली.
लो फिर से आ गई दिवाली.

एक-दूजे को गले लगाकर,
मन से नफरत का भाव मिटायें.
मन में अपने प्रेमदीप जलाकर,
जग में प्रेम प्रकाश फैलायें.
रहे ना कोई गरीब मवाली.
लो फिर से आ गई दिवाली.

आओ मिलकर ये प्रण उठाये,
बने दोस्त न कोई दुश्मन हो.
संसार को मानो निज परिवार,
सर्वत्र उन्नति चैन अमन हो.
तब लगे विश्व की शान निराली.
लो फिर से आ गई दिवाली.

*****

बंटी की जिद

रचनाकार- डॉ०कमलेंद्र कुमार, उत्तरप्रदेश

banti

एक सड़क पर रम्मन काका
बेच रहे गुब्बारे.
दो रुपये में एक मिलेगा,
लेलो बंटी प्यारे.

काले,पीले, हरे,गुलाबी,
और नारंगी लाल.
भिन्न रंग के हैं गुब्बारे,
ये हैं खूब कमाल.

जिद पकड़ कर बैठ गया नन्हा
अपना बंटी प्यारा.
मुझे चाहिए सब गुब्बारे,
रंग बहुत है न्यारा.

पापा ने समझाया उसको,
बहुत नहीं हैं पैसे.
बाँह डाल मम्मी के बोला,
खेलूँगा मैं कैसे?

मम्मी ने अपने पल्लू से
एक गांठ है खोली.
चार लिये गुब्बारे सुन्दर,
हँस करके यह बोली.


होम वर्क भी नहीं हुआ है,
उसको करके जाना.
खेलो कूंदो मौज मनाओ,
गाना खूब तराना.

*****

आओ पेड़ लगाए हम

रचनाकार- गुलज़ार बरेठ, जांजगीर चाम्पा

aao

आओ पेड़ लगाए हम
धरती को स्वर्ग बनाये हम

फल मिलता है फूल मिलता है
लकड़ी और छाया मिलता है
घर मिलता है चारा मिलता है
पशु पक्षियों को सहारा मिलता है

चिड़ियाँ फिर से चहकाएंगे
बगियाँ फिर से महकाएं हम
आओ पेड़ लगाए हम
धरती को स्वर्ग बनाये हम

बारिश ये कराता है
धरती का प्यास बुझाता है
किसान फ़सल उगाता है
तब हमको खाना मिल पाता है

कल ये पेड़ बन जाएंगे
आज जो पौधा रोपे हम
आओ पेड़ लगाए हम
धरती को स्वर्ग बनाये हम

*****

नेह बेशुमार दे

रचनाकार- श्रीमती स्मृति दुबे

hava

त्याग आज हर गुमान
स्नेह को उधार ले
राह राह - जो मिले
तू नेह बेशुमार दे
पड़ाव हर जगह मिले

अभाव हर नजर खिले
तू पुजारी कर्म का
न धर्म की तू आड़ ले
राह-राह जो मिले
तू नेह बेशुमार दे

दूध की दरार सी
जुबान आज चल पड़ी
क्रोध की बयार में दामिनी भी जल पड़ी


मनुष्यता का कर्ज तू
मनुष्य से उतार लेकर

राह- राह जो मिले
तू नेह बेशुमार दे
जीवन की सांझ ढल पड़ी

आंधियां सी चल पड़ी
तिलिस्म आज 'मैं का देख

शमशान की उधार तू
जीवन जरा सुधार ले

राह-राह जो मिले
तू नेह बेशुमार दे

*****

किस्मत की क्या बात है

रचनाकार- सृष्टि प्रजापति, आठवी, स्वामी आत्मानंद तारबहार बिलासपुर

kismat

किस्मत की क्या बात है.
न रहता ये किसी के साथ है.
मिलती सफलता सिर्फ उसे ही,
जिसे खुद पर विश्वास है.

नही है किस्मत मे,
यह कहकर हार जाते है.
मेहनत करने से पहले ही,
डर कर भाग जाते है.

बंद करो किस्मत को दोष देना.
ये सब फिजूल की बात है.
करो कठोर परिश्रम क्योकी,
तुम्हारी सफलता तुम्हारे हाथ है.

*****

जगमग दीप जले

रचनाकार- सुशीला साहू, रायगढ़

jagmag

जगमग-जगमग दीप जले
दीप जले भई दीप जले.
दीपावली का पर्व जो आया,
खुशियों से सब का दीप जले.

घर आंगन को खूब सजायें,
सब गमलों में पौध लगायें.
चारों ओर सजे फुलवारी,
आओ बच्चों धूम मचाएं.

चिकनी मिट्टी भी ले आयें,
सुन्दर सुन्दर दीया बनायें.
स्नेह रूपी बाती से हम मिल,
प्रीत भरी सब दीप जलाएं.

खील बताशे बाँट-बाँट कर,
लड्डू पेड़ा हम खूब खाएं.
भेद भाव को हम मिटाकर,
आपस में सब गले लगायें.

बम फटाखे धुआं से बचकर,
फूलझड़ियां हम जलायेंगे.
पेड़ पौधों से दोस्ती करके,
एक एक पेड़ जरुर लगायेंगे.

ध्यान में पर्यावरण की सुरक्षा,
ऐसा कुछ कर दिखायेंगे.
पर्यावरण बचायेंगे तभी तो ,
खुली हवा में सांस ले पायेंगे.

*****

मुनिया रानी

रचनाकार- रूपा अम्बस्ट, सहायक शिक्षक, प्रा. शाला भगवानपुर

muniyarani

मुनिया रानी बड़ी सयानी
मीठी बातें ठंडा पानी

जब वह बोले मीठे बोल
झूम बंदर नाचे मोर

उसकी आंखें गोल गोल
मानो चंदा सी अनमोल

जब वह चलती झूम झूम
धरती माता को चूम चूम

खुश हो जाती दादी नानी
मुनिया रानी बड़ी सयानी

*****

दूर नही अब चंदा मामा

रचनाकार- सुचित्रा सामंत सिंह

CHANDA_MAM

नए भारत का उदय हुआ,
नए परिवर्तन,नए विज्ञान लिए.
अथक परिश्रम, दृढ निश्चय से,
खुले नए रास्ते,अनुसंधान से.

राह मुश्किल,कठिन डगर था,
पर भारत ने यह काम किया.
इस सावन में हमने,
कदम बढ़ाए चाँद पर.

चाँद पर तिरंगा लहराया,
भारत की ये शान है.
चंद्रयान-3 के सफल अवतरण से,
हर्षित हर एक इंसान हैं.

शंखनाद किया भारत ने,
हम कमतर नहीं विज्ञान में.
सर्वप्रथम भारत ने लहराया,
परचम चाँद के दक्षिण भाग में.

विश्वपटल पर स्वर्णिम शब्दों में,
अंकित किया नाम अपना.
गर्वित हैं,हम सब देशवासी,
भारत के सफल अभियान से.

चंद्र तल पर घूमता प्रज्ञान,
जैसे सुना रहा हो तान.
बढ़ा रहा उत्सुकता मन में,
चंदा मामा तुम हो नभ में .

*****

दीपावली

रचनाकार- सुचित्रा सामंत सिंह

diwali01

हर घर में दीप जली,
हर आँगन सजी रंगोली.
हर चेहरे पर खुशियाँ छाई,
पावन पर्व दीपावली आई.

खील बताशों से सजी थाल,
फुलझड़ियों की लगी कतार.
खुशियों की उठती फुहार,
सजे रंग रोगन से घर-द्वार.

आशाओं के दीप जले,
उम्मींदों के आश खिले.
मेरे और तुम्हारे आँगन में,
खुशियों की रंगोली सजे.

आओ इस दीपावली में,
भाई-चारे के दीप जलाएँ.
चहुँ ओर खिल उठी आशाएँ,
श्रद्धा,विश्वास के दीप जलाएँ.

*****

बहुत कुछ है

रचनाकार- सौरभ सेन

bahut

बहुत कुछ है जो
अव्याख्यायित है,
बहुत कुछ है जो
सोचने पे विवश करता है,
बहुत कुछ है जो
जानकर भी अजाना है,
मै कभी-कभी यह सोचता हूं
कि मै ये सब क्यों सोचता हूं,
एक व्याकुलता है अधूरे जीने मे,
लहू घुल-घुलकर मिल जाता
है पसीने मे,
फिर मुझको लज्जा आती
स्वयं पर,
क्यों अपनी पीड़ा का अलाप निरंतर,
क्यों अपनी दुर्बलता से मुंह मोड़ना,
क्यों निरर्थक स्थितियों मे
सिर फोड़ना,
प्रभात की नवकिरणें नही
गाती तिमिर का गान,
मेघाच्छादित आवरण
बांटती जग को प्राण,
जैसे वायु नही करता
सबल निर्बल का भेद,
मानव दुष्कृत्यों को वहन कर
धरा को नही खेद,
यह जानकर की आग्नेयगिरि
के मुहाने पर खड़े हम सब,
हाहाकार करने, विभत्सता
को छुपाने के विफल प्रयास
मे जाने क्या बनते जा रहे हैं,
शुष्क हो रहे भावों का
पारस्परिक संकुचन,
संवेदना का विघटन,
मुल्यों का अवमूल्यन,
व्यवस्था का नियोजित पतन,
और बहुत कुछ,
अभी तो आवश्यक है,
प्रभात का स्वागत किया जाए,
समीरण का वंदन किया जाए,
मेघों से जल लेकर वसुधा का
आचमन किया जाए,
अपने निर्णयों पर बार-बार
चिंतन किया जाए.

अव्याख्यायित=जिसकी व्याख्या न की गयी हो,
तिमिर=अंधेरा,
मेघाच्छादित= बादलों से ढका हुआ,
आग्नेयगिरि=ज्वालामुखी,
संकुचन=सिकुड़ना,
विघटन=टूटना,
अवमूल्यन=गिरावट,
समीरण=हवाओं का चलना

*****

दुविधा

रचनाकार- गुंजन सिंह ' क़ासिर '

duvidha

कैसे मैं कोई गीत लिखूँ ?
दिलबर,प्रियतम,मनमीत लिखूँ ?
चारों ओर के हाहाकारों में,
कैसे प्रेमसंगीत लिखूँ ?
कैसे मैं कोई गीत लिखूँ ?

खेतों में बारूदी गोले,
खलिहानों में बिखरे शोले.
खून भरे हैं नदी और नाले,
कटते - मरते इंसाँ भोले.
तुम ही कहो लाशों के बीच मैं,
कैसे मीठी - सी प्रीत लिखूँ ?
कैसे मैं कोई गीत लिखूँ ?

चहुँ ओर है बिखरी लाशें,
कातर, सहमी - उखड़ी साँसें.
हिंसा सब कुछ लील रही है,
जैसे शकुनि के जादुई पाँसें.
ऐसे जंगलराज में कैसे
दिल पर दिल की जीत लिखूँ ?
कैसे मैं कोई गीत लिखूँ ?

बेटी बिकती कारण तंगी है,
कहीं पिता ही शीलभंगी है.
कहीं नहीं है सुरक्षित कन्या,
हरसूँ लटकी तलवार नंगी है.
इसे रगों में आई गर्मी लिखूँ,
या रिश्तों में आई शीत लिखूँ ?
कैसे मैं कोई गीत लिखूँ ?

अपनों से मुख मोड़े जाते,
सभी रिश्ते क्यों तोड़े जाते ?
जिनका अमृत - लहू पिया है,
वृद्धाश्रम में छोड़े जाते !
इसे बदलता हृदय लिखूँ,
या आधुनिकता की रीत लिखूँ ?
कैसे मैं कोई गीत लिखूँ ?

नेताओं में नीति नहीं है,
जाति - जाति में प्रीति नहीं है.
क्यूँ यह बहकावे में भूले,
यह भारत की रीति नहीं है.
पुष्प सुवासित इस बगिया में
कैसे पनपी ये भीत, लिखूँ ?
कैसे मैं कोई गीत लिखूँ ?

रिश्तों में सच्चाई नहीं है,
परहित अब अच्छाई नहीं है.
एक ही माई के लाल हैं लेकिन,
हिन्दू - मुस्लिम भाई नहीं है.
अखिल विश्व के सम्मुख कैसे
हुई है माटी पलीत, लिखूँ ?
कैसे मैं कोई गीत लिखूँ ?

आओ एक संकल्प करें हम,
एकल राष्ट्रचरित्र वरें हम.
एक देश के लिये जीयें और
एक देश के लिये मरें हम.
भारत माँ हो मन - मन्दिर में,
मैं ये संकल्प पुनीत लिखूँ.

आओ ! मैं एक गीत लिखूँ.
आओ ! मैं एक गीत लिखूँ.

*****

Visitor No. : 6795149
Site Developed and Hosted by Alok Shukla