छत्तीसगढ़ी बालगीत
श्रमदान
रचनाकार- श्रीमती ज्योति बनाफर, बेमेतरा
आवव संगी चलव मितान
हम सब करबोन अब श्रमदान.
कचरा के अब हो ही निदान
स्वच्छ भारत म करबो अभिमान.
जम्मो मिलके करबो श्रमदान
झन छूटे मोहल्ला अउ गौठान.
सबले बड़े हे श्रमदान
भारत के अब बढ़गे मान.
बापू के संदेश पहुंचाना हे
हर घर स्वच्छ बनाना हे.
गंदगी ला दूर भगाना हे
निरोगी जीवन बिताना हे.
सुन लो नोनी बाबू सियान
सफल बनाबो स्वच्छता अभियान.
हम सब कारबोन अब श्रमदान
आवव संगी चलव मितान.
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जय गनेश देवता
रचनाकार- अशोक कुमार यादव, मुंगेली
तोर जय होवय गनेश देवता, करहूँ मैंय हा मान-मनौता.
जिनगी मा सुख तैंय लाए हच, बिगड़े काम ला बनाए हच.
बिकट दुख मैंय पावत रेहेंव, अपने-अपन नठावत रेहेंव.
कुलूप छाए रहिसे अँधियारी, किरपा करके करे उजियारी.
एक दिन करेंव परतिगिया, घर ले जाहूँ गनपति मोरिया.
रोज पूजा-पाठ, सेवा करहूँ, तोर नाव ला मने-मन सुमरहूँ.
तोला दाई-ददा जान के लाहूँ, मीठ लड्डू के भोग लगाहूँ.
धोतिया, बंगाली तोला पहिराहूँ, तोर हाथ-पाँव ला दबाहूँ.
तोर बंदना ला रात-दिन गाहूँ, नरियर अउ फूल चढ़हाहूँ.
धूप,दीया अउ अगरबत्ती जलाहूँ, घेरी-बेरी आरती उतारहूँ.
रहिबे मोर संग दस दिन ले, ओखर बाद चल देबे छोड़ के.
मंगल, समरिद्धी, मोला देके, गियान के खूब बरसा करदे.
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राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी
रचनाकार- अशोक कुमार यादव, मुंगेली
बापू के जन्मदिन ल अहिंसा दिवस के रूप म मनाबो.
रघुपति राघव राजा राम पतित पावन के गीत ल गाबो.
स्वर्ग लोक ले उतर आइच, चमकत दिव्य एक आत्मा.
सफेद रंग के धोतिया पहिने, सत्य रूप दिखे विश्वात्मा.
हाथ के लाठी ब्रह्मास्त्र तोर, चरखा तोर चक्र के समान.
शांति के दूत तोला कहिथें, भारत के विधाता, महान्.
टैगोर ह महात्मा कहिस तोला, बोस कहिस तोला बापू.
भारत के तैंय राष्ट्रपिता हच, सत्य अउ अहिंसा के साधु.
कानून के रखवाला बनके, जन अधिकार बर करे युद्ध.
किसान अउ श्रमिकों के, भूमिकर, भेदभाव के बिरुद्ध.
माई लोगिन मन ल अधिकार अउ गरीबी ले मुक्ति देवाए.
आत्मनिर्भर, एकता अउ अपृश्यता के कार्यक्रम चलाए.
स्वराज पाए के खातिर, किसिम-किसिम के करे उदिम.
अंग्रेज मन के नून कानून ल टोर के, छेड़े जबर मुहिम.
साबरमती के संत कहाथच, जिनगी के आध्यात्मिक गुरु.
भारत ल आजादी देवाए, भारत छोड़व जंग करके शुरू.
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हरतालिका तीजा के दिन आगे
रचनाकार- कु. भावना नवरंग, कक्षा- 8 वीं, शास. पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, मुंगेली
अब आगे हरतालिका तीजा के तिहार
जम्मों डहर तीजा के माहोल छागे
सब माई लोगिन मन
जावत हवैंय अपन मइके
बेटी, माई के तिहार आगे
झूलना मा झूलत हवैंय
उपवास रहत हें भादो महीना मा
अपन गोसइया के जादा उमर बर
हाथ मा सुघ्घर मेंहदी रचाके
पहिन-ओढ़ के करत हें सिंगार
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तीजा के तिहार
रचनाकार- अशोक कुमार यादव, मुंगेली
घेरी-बेरी अंगना मा निकल के, रद्दा ला देखत हौंव बाबू.
नइ आवथच काबर लेगे बर, आँखी ले गिरत हे आँसू.
गाँव के जम्मों माई लोगिन मन, कुलकत चल दिन मइके.
परान भूकुर-भूकुर करत हे, का करहूँ ससुरार मा रहिके.
काखर मेर भेजौंव सोर, पता, तोला कोने जाही बताएला.
झटकुन आजा अबेर झन कर, तीजा मा मोला लेवाएला.
ननंद-भउजी मन ताना देत रहिन, कोनो नइहें तोर पुछइया.
ओतकेच समय तुमन पहुँचेव, लेगे बर मोला बाबू-भइया.
मइके जाके दाई-दीदी संग, सुख-दुख के बात गोठियाबो.
नवा-नवा लुगरा पहिन के, हरतालिका तिहार ला मनाबो.
करुहा करेला साग अउ भात खाहूँ, रहिहूँ निर्जला उपास.
केरा के पाना ले मंडप बना के, सुमर के करहूँ पूजा-पाठ.
गौरी-शंकर के प्रतिमा बइठा के, बरदान माँगहूँ मैंय आज.
गोसइया मोर जुग-जुग जिए, हँसी-खुशी से रहय सुहाग.
साबू दाना ला पी के, ठेठरी अउ खुरमी के करबो फरहार.
घूम-घूम के खाबो घरो-घर, खाके साध बूता जाही हमार.
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तीजा-पोरा
रचनाकार- कु. सुनयना बंजारा, कक्षा-7 वीं, शास. पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, मुंगेली
तीजा-पोरा मा खुशी आथे
सब के बेटी घर आथे.
तीजा-पोरा मा बहनी मन आथें
तीजा-पोरा मा सब झन
रोटी-पीठा बनाथें अउ
परिवार भर बइठे-बइठे खाथें
तीजा-पोरा के गुन गावा
खुशी से तिहार मनावा.
तीजा-पोरा के तिहार
लाए हवय बहार.
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विद्या मंदिर
रचनाकार- मनोज चंद्राकर, गरियाबंद
जस देखन में काजू लागे, ताकत में अंजीर
अस ज्ञान की गंगा है,अपना विद्या मंदिर
सुघ्घर सुघ्घर बच्चे मेरे,सुघ्घर सुघ्घर बोल
अमावस की निशा धरा पर, लगते हैं अंजोर
दुर्गेश,मोहन,सोहन,जोहन, सीता,गीता,माला,बाला
जस बगिया की पुष्प परागण, ज्ञान कुंड की अद्भुत शाला
जस चमचम की रसिया, सदाचार का खीर
अस ज्ञान की गंगा है, अपना विद्या मंदिर
मुझे याद है प्रधान पाठिका, देतीहैं उपदेश अनमोल
गणित शिक्षक की बात निराली, त्रिज्या,वृत्त और गोल
वर्मा,शर्मा, सर्व गुरुजन, ज्ञान भूमि का वीर
अस ज्ञान की गंगा है, अपना विद्या मंदिर
जहां भी जाओ प्यारे बच्चों,मत करना अभिमान
विद्या मंदिर की ज्ञान सबक को, अमृत तुल्य जान.
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कहाँ नन्दा गे घिरनी,खड़खड़िया
रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु ', धमतरी
कहाँ लुका गे ओ चिरई के चाँव-चाँव
कहाँ नन्दागे टेड़ा-रहट ओ गली गाँव.
दिखय नहीं अब कउनो हर जम्मो नँदागे
अब कइसे-कइसे मन ल मैं ह दुलराँव
कहाँ लुकागे मोर गाँव के कुँआ बावली
कोनो कोती दिखय नहीं डहर पैडगरी.
कहाँ नँदागे हे मोर गाँव के पनिहारिन
दिखय नहीं ओ पनघट के घिरनी,गघरी.
ओ पनघट के रद्दा,सुख-दुख के बोली
कहाँ नँदागे सँगी-सहेली के ठिठोली.
कहाँ नँदागे घिरनी अउ खड़खड़िया
दिखय नहीं ओ सुग्घर बैन मीठ-बोली.
ओ,खड़खड़ात घिरनी के डोरी-बाल्टी
कहाँ नँदागे हे कुँआ के ओगरा पानी.
ओ पार पनघट कुँआ ह सुनसान होगे
दिखय नही छलकत गघरी के बिहानी.
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सुना नोनी कर गोएठ
रचनाकार- श्रीमती आशा पान्डेय, सरगुजा
ये मोर दाई ओ, ये मोर दाउ हो.
सुनला अपन नोनी कर एगो गोएठ हो.
नी चराव छेरी अउ नी चराव गरु हो.
नी खेलाव नोनी अउ नी खेलाव बाबू हो.
रोज इसकुल जाहूं में संगी मन कर संग में.
पढ़ें बर लिखे बर अउ जिनगी ला गढ़े बर.
ये मोर दाई ओ, ये मोर दाउ हो.
सुनला अपन नोनी कर एगो गोएठ हो.
पढ़ लिख जाहूं त बनहूं में अफसर जी.
अनपढ़ रहहू त जाही करम फाट जी.
पढ़ लिख जाहू त बोझ नी बनो जी.
मोरो फेर होही अब्बड ठाट- बाट जी.
ये मोर दाई ओ, ये मोर दाउ हो.
सुनला अपन नोनी कर गोएठ हो.
पढ़ें लिखे रहहू त गांव करहूं शिक्षित.
भाई बहिनी मन ला करहूं प्रशिक्षित.
गांव कर विकास होही,गांव बनही खुशहाल जी.
जम्मो कर्जा मेट के करहूं ज़िन्दगी निहाल जी.
ये मोर दाई ओ,ये मोर दाउ हो.
सुनला अपन नोनी कर एगो गोएठ हो.
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उठा बिहनिया
रचनाकार- श्रीमती आशा पान्डेय, सरगुजा
रोएज बिहनिया उठे करा,
कसरत,योगा करें करा.
हवा मिलथे फरी फरी,
गोएठ बात खरी खरी.
सुरूज देखा हिकेल आइस,
सुरूज में हे लाली छाइस.
बिहनिया उठे ले होंथे निरोग,
कभो नी होथे भाई रोग.
मुँख म चमक बने रहिथें,
देह ला ताजगी मिलथे.
फेर दिन हर लागेल सुग्धर,
मन हो जाथे हरियर हमर.
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जाड़ म
रचनाकार- रुद्र प्रसाद शर्मा
चल स्वेटर, कम्बल राखबोन साथ.
ऊन के पिछौरी ल हेरबोन येदारी,
कनचप्पी अऊ टोपी ल धरबो माथ.
आईस जाड़, जुड़ाईस गोड़ हाथ.1.
🌌🌌🌌
दाॅत बाजय किटकिट - किटकिट.
जुड़ चाबय चिटचिट - चिटचिट.
सुहावय गोरसी म आगी के गोठ - बात.
आईस जाड़, जुड़ाईस गोड़ हाथ.2.
🌈🌈🌈
फूलय कंवल, फूल ह पटावत हवय.
तरिया म पानी चिटिक अंटावत हवय.
कोकड़ा बोंकला के नजर, मछरी- घात.
आईस जाड़, जुड़ाईस गोड़ हाथ.3.
💧💧💧
जुड़ - सरदी के मारे नाक ह होगे लाल.
झटपट ओढ़व जी अपन कथरी शाॅल.
पेज - पसिया सोहाय खायेबर तातेतात.
आईस जाड़, जुड़ाईस गोड़ हाथ.4.
🌈🌈🌈
निरमल अगास, तारा ह दिअना सजावय.
सुरुज ह बिहनिया जुड़ावत लजावय .
जाड़ म मीठ लागय तात गोरस भात.
आईस जाड़, जुड़ाईस गोड़ हाथ.5.
🌙🌙🌙
बरफ सहि ठरत हवय धुॅका अऊ पानी .
जाड़ म मिलय साग - भाजी आनीबानी.
बिहनिया के रद्दा धुमेला, दिखय नहिं हठात्.
आईस जाड़, जुड़ाईस गोड़ हाथ.6.
⭐⭐⭐
कोठार म धान गादा, खेत म करपा .
बांस के फईरका म ठेंगा के हरपा.
धान के पूंजी म किसान ह अपनेच के नाथ.
आईस जाड़, जुड़ाईस गोड़ हाथ.7.
☀️☀️☀️
जाड़ म दउड़ई, कूदई आलस भगाय.
जेन ह महिनत नई करे तेन ह ठगाय.
झनि कर भरोस, अपन हाथ जगन्नाथ.
आईस जाड़, जुड़ाईस गोड़ हाथ.8.
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हरियर हे धानी दाई
रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु', धमतरी
हरियर हे धानी दाई हरियर तोर अंचरा ओ
लहराए सर-सर-सर सुग्घर तोर लुगरा ओ
सिंगारी जईसे लागे, सिंगारी जईसे लागे,
झूमें मुड़ म फुंदरा ओ....
हरियर हे धानी दाई हरियर..
कोरा म दिखथे दाई रंग-बिरंगी फुलवा ओ
सोला सिंगारी लागे अउ हरियर रुखुवा ओ
सिंगारी जईसे लागे, सिंगारी जईसे लागे,
झूमें मुड़ म फुंदरा ओ....
हरियर हे धानी दाई हरियर..
आगे कुवांरे महीना छटके सोनहा बाली ओ
रिगबिग-रिगबिग जइसे मंजूर के पांखी ओ
सिंगारी जईसे लागे, सिंगारी जईसे लागे,
झूमें मुड़ म फुंदरा ओ....
हरियर हे धानी दाई हरियर..
काशी ह फुलगे दाई राहेर,तिल ह फुलगे ओ
जगमग, चन्दैनी उज्जर हांसी तोर लागे ओ
सिंगारी जईसे लागे, सिंगारी जईसे लागे,
झूमें मुड़ म फुंदरा ओ....
हरियर हे धानी दाई हरियर..
पुरवाई आवत हावय झूमरत हे तोर अंगे ओ
लक्षमी ह परगट होगे जईसे धरती लागे ओ
सिंगारी जईसे लागे,सिंगारी जईसे लागे,
झूमें मुड़ म फुंदरा ओ....
हरियर हे धानी दाई हरियर..
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गनपति बबा
रचनाकार- यशवंत पात्रे, कक्षा 8 वीं, पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, संकुल- लालपुर थाना, वि.ख. लोरमी, जिला- मुंगेली
मंडप बनावत हौंव गनपति बबा,
तोर तिहार ला मनावत हौंव.
लड्डू चघावत हौंव गनपति बबा,
तोर मूर्ति ला बइठावत हौंव.
गणपति बबा तोर तिहार ला मनावत हौंव.
झांझ-मजीरा बजावत हौंव गनपति बबा,
तोर बर बाजा ला लगाए हौंव.
गनपति बबा तोर तिहार ला मनावत हौंव.
आस हे! बिसवास हे! गनपति बबा,
तोर महिमा हा अपार हे.
कुछू झन होवय कहिके मोर चिन्ता,
हर बखत मैंय करहूँ सुमिरन.
तैंय हा बनके मोर घर आए हच पहुना,
दस दिन तक होही तोर मान-मनौता.
नारियर धर के मैंय हा आहूँ,
छप्पन प्रकार के व्यंजन बनवाहूँ.
गनपति तोर तिहार ला धूम-धाम से मनाहूँ.
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राखी के दिन आगे
रचनाकार- सलीम कुर्रे, कक्षा 8 वीं, शास. पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, संकुल- लालपुर थाना, वि.ख. लोरमी, जिला- मुंगेली
देख मोर संगवारी अब राखी के दिन आगे.
भाई अऊ बहनी के प्यार ह दुनिया भर म छागे.
चारों कोती दिखत हवैय लड्डू, पेड़ा अऊ राखी के दिन आगे.
मोर जम्मों भाई अऊ बहनी मन के पहली तिहार आगे.
मोर बहनी ह जोर जबरदस्ती करके अपन मइके आगे,
आज मैंय अपन भाई मन ल पहनाहू राखी,
जेमा रंग-बिरंग के होही धागा. मोर भाई के करही सुरक्षा.
ओही हे मोर कसम के वादा, भाई ह देवत हे पइसा जेला झोंकत नई हे मोर बहना.
का तकलीप होगे मोर प्यारी बहना.
दु:खे-दु:ख ह जावत हे, खुशी के दिन ह आवत हे.
रक्षाबंधन आवत हे, भाई बहनी के प्यार ल समझावत हे.
भाई ह देवत हे ढेरों उपहार,
दूनों हाथ म झोंकत हे मोर प्यारी बहनी.
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आबे मोर दूवरिया
रचनाकार- सलीम कुर्रे, कक्षा 8 वीं, शास. पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, संकुल- लालपुर थाना, वि.ख. लोरमी, जिला- मुंगेली
मोर सहारा म जियत रहे, आज छोड़ के जाथच मोला
बेटी लइका धर के जावत हवच, मोर ले दूरिहा
का करबे अउ का धरबे, मोर ले जाके तैंय दूरिहा
आज नहीं तो काल, आबे मोर दूवरिया
बहू के बात माने रेहे, जाबे मोर ले दूरिहा
तोला का पता हे, भाई, दाई अउ ददा के पांव म हे दुनिया
तोला का पता हे, भाई, दाई अउ ददा के पांव म हे दुनिया
आज नहीं तो काल, आबे मोर दूवरिया
आबे मोर दूवरिया, बहू के बात माने रहे
भोगत हच ओखर बात म, भोगत हच ओखर बात म
चौखट पार करे बर तैंय, रोबे मोर ले दूरिहा
आज नही तो काल, आबे मोर दूवरिया, आबे मोर दूवरिया
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स्वतंत्र राज्य - मोर छत्तीसगढ़
रचनाकार- युक्ति साहू, कक्षा 8 वी, स्वामी आत्मानंद शेख गफ्फार अंग्रेजी माध्यम विद्यालय तारबहार बिलासपुर
भारत के जिवरा भुइयाँ म, जेन ह बिराजथे.
उही भारत के धुकधुकी ह, मोर छत्तीसगढ कहाथे.
स्थापित होइस हे,एक नवंबर के दण्डकारण्य ह.
बनगे ए ह आजाद राज्य, भारत के प्राण ह.
अरपा, महानदी, शिवनाथ मन, हावय इहाँ के नदिया.
पैरी, हसदो मन मान इहाँ के, इंद्रावती पखारय पइयाँ.
अइसन मीठ अऊ मन मोहइया, हावय इहाँ के बोली.
तभे छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, कहय लइका मन के टोली.
पहाड़ी मैना नरीयावय सुघ्घर, गेंदा ह ममहाथे.
हज़ार किलो के वन भैसा, दक्षिण कौशल म पाये जाथे.
राजकीय गीत करमा ह, हमर रग रग म बोहाथे.
फाग ह रंग मन संग, होली म गाये जाथे.
कातिक मास म सुवा ल मढ़ाके, जब सुआ गाये जाथे.
तरी हरी ना ना मोर ना ना सुवा ना, जगजाहिर हो जाथे.
फरा, मुठिया, चिला मन, इहाँ खाये जाथे.
राजकीय फल कटहल ह, बड़ सुघ्घर मिठाथे.
पप्ची इहाँ के राजकीय मिठाई, साल ह वृक्ष कहाथे.
पाँच सौ साल ले जीथे ऐ ह, इहाँ ल हरियर ऐ ह बनाथे.
साल पेड़ के नीचे म, जेन फुटु ह फुटथे.
उही साग ल बोड़ा कहिके, राजसी माने जाथे.
तीरंदाजी करथे लइका मन, फुगड़ी खेले जाथे.
करतब तमासा अपन देखाथे जब, धुर्रा ह थपोली बजाथे.
हरियर लुगरा पहिर के, छतीसगढ़ महतारी करथे सिंगार.
गोड़ म पैरी,अटकारिया पहिरथे, सुतिया पहिरै अस हार.
ओखर कोरा के लइका हन हमन, ओ हरय हमर महतारी.
मुस्काथे जब ओहा त होथे, खुसी के बरसा भारी.
*****
देवारी तिहार
रचनाकार- कलेश्वर साहू, बिलासपुर
आ गे हे देवारी तिहार
मिलजुल दीया जलाबो.
सजाबो चउक पुरके अंगना ल,
सब मगन होके सुवा गीत गाबो.
नवा-नवा कपड़ा पहिनबो
सुहुत्ती दीया जलाबो जी भाई.
हाथ जोड़ के पूजा करबो,
तोला मनाबो लक्ष्मी दाई.
मिरची अउ बम फटका फोड़ के,
अड़बड़ लाई अउ मिठाई खाबो.
देवारी तिहार मिल मिलाप के,
घर-घर सँगवारी कना मिले जाबो.
देवारी तिहार दीया के,
मिलजुल दीया जलाबो.
*****
खा ले मिठाई
रचनाकार- शशिकांत कौशिक, बिलासपुर
देवारी के देवत हव बेटा बधाई,
लाने हव तोर बर खा ले मिठाई.
आ गे देवारी फटक्का ले न दाई,
लेबे फटक्का तभे खाहूँ मिठाई.
एक लरी मिर्ची बम
एक पाकिट चकरी,
अनारदाना छोटकुन
दू रंगिया छुरछुरी.
ले दे न दाई मैं ह नई मांगव खाई,
आ गे देवारी फटक्का ले न दाई.
नान्हे जुगजुगी के झालर लगाहूँ,
केरा पान दिया ले घर ल सजाहूँ,
गाय के गोबर म अंगना लीप के,
दुआरी म सुग्घर अलपना बनाहूँ.
अऊ ला देहूँ बतासा संग लाई,
आ गे देवारी फटक्का ले न दाई.
लेहे हावय चकरी सोनू के अम्मा,
मिर्ची बम लेही मोनू के अम्मा,
गोलू बर ले हे जाही छुरछुरी,
ओखरे संग म भोलू के अम्मा.
अम्मा होवत हे मोर करलाई,
आ गे देवारी फटक्का ले न दाई.
लछमी माता के पूजा करबो
आसन कमल के सजा के,
सुरसती अउ गजानन देव ल
बढ़िया सुमिर के मना के.
तभे होही बेटा सबके भलाई,
छोड़ फटक्का खा ले मिठाई.
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माता रानी
रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू', गरियाबंद
जोत जलत हे जगमग जगमग, गूँजत हे किलकारी.
नव दिन बर माता रानी हर, आये हमर दुवारी.
लाल–लाल चूरी पहिरे अउ, लाली महुर रचाये.
लाली चुनरी ओढ़े माता, मुच मुच ले मुस्काये.
सरग उपर ले दुर्गा दाई, बघवा करे सवारी.
नव दिन बर माता रानी हर, आये हमर दुवारी.
महाकाल अउ राम चंद्र जी, हर दुर्गा स्तुति गावै.
नारद मुनि सँग सबो देवता, माथा अपन नवावै.
कुष्मांडा अउ गौरी मइया, सब के हवै दुलारी.
नव दिन बर माता रानी हर, आये हमर दुवारी.
कतको धरती संकट आथे, तुरते ओला टारे.
रूप धरे काली माता के, दानव मन ला मारे.
करे पाप कलयुग मा मानव, ओखर लाये पारी.
नव दिन बर माता रानी हर, आये हमर दुवारी.
*****