लेख

स्वच्छता रैली

रचनाकार- शासकीय प्राथमिक शाला एवं पूर्व माध्यमिक शाला पुरुषोत्तमपुर

SWACHHATA

शासकीय प्राथमिक शाला एवं पूर्व माध्यमिक शाला पुरुषोत्तमपुर में गाँव गली में घूमकर नारे लगाकर स्वच्छता रैली निकाली गई. इस रैली में प्राथमिक विद्यालय के 30बच्चे, मिडिल स्कूल पुरुषोतमपुर से 40बच्चे तथा समन्वयक डिजेन्द्र कुर्रे, प्रधानपाठक गंगाधर प्रसाद द्विवेदी, प्रधानपाठक रुपलता कुर्रे, जितेन्द्र नाग सर, मनोज नायक सर, जानकी साहू, सपना साहू, आंगनबाडी कार्यकर्त्ता सिरमोती सिदार के अलावा ग्रामीण जन उपस्थित थे.

शासन के निर्देशानुसार अभी स्वच्छता सप्ताह के अंतर्गत अलग अलग दिन अलग अलग कार्यक्रम का आयोजन करना है. जिसमें साहित्य संगोष्ठी, रंगोली प्रतियोगिता खेलकूद प्रतियोगिता पेंटिंग प्रतियोगिताआदि का आयोजन होना है. जिसके तहत आज स्वच्छता रैली निकाली गई.अंत में सभी को स्वच्छता शपथ दिलाई गई.

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हिंदी हमारे देश की सबसे बड़ी धरोहर

रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु', धमतरी

hindi

हमारे देश की हिंदी एक ऐसी भाषा है जो सार्वभौम है.जन-जन के लिए सर्वसुलभ है.हिंदी सहज है,सरल है,बड़ी रोचक है. हिंदी हमारी मातृ भाषा है.हिंदी हमारी जान है.हिंदी हमारे रोम-रोम में बसी है,हिंदी हमारी शान है,हमारी मान है,हमारा सम्मान है.जन्म से लेकर मरण तक यदि कोई हमारे साथ रहती है तो वह है हमारी हिंदी.हिंदी के बिना हमारा जीवन अधूरा और अपूर्ण है.हिंदी सभी भाषाओं की आधारशीला है.हमारी हिंदी में शालीनता है,हमारी हिंदी में,बड्डप्पन है,हमारी हिंदी में मर्यादा है,हमारी हिंदी में रोचकता है,हमारी हिंदी में हम की भावना है,हमारी हिंदी में एकता की भावना है,हमारी हिंदी में समरसता की भवना है.हमारी हिंदी में सम्मोहन और लगाव की भावना है.हिंदी हमारी बहुत प्यारी है,न्यारी है,और हमारे भारत वासियों की दुलारी है.हिंदी हमारे मस्तक की बिंदी है.हमारे देश की पहचान है.हमारे देश की शान है.

हिंदी हमारे देश की सबसे बड़ी धरोहर है.और इसे यूँ ही धरोहर नही कहा जाता इसके पीछे बहुत बड़ा करण है और वह कारण है हमारे देश की विशाल साहित्य,जिसमें बड़े- बड़े महाकाव्य,खंड काव्य,मुक्तक काव्य,साथ ही साथ,उपन्यास,कहानी,नाटक,एकांकी,समीक्षा,

आत्मकथा,संस्मरण,डायरी,पत्र लेखन,निबंध,लिखे गये हैं जो हिंदी में लिखे गये.इसी प्रकार धर्म ग्रंथ शास्त्रों की बात करें तो हमारे देश की महान धार्मिक ग्रंथ जैसे वेद,पुरान गीता,रामचरित मानस आदि.और हमारे देश की महान विभूतियाँ और उनकी बड़ी-बड़ी प्रसिद्ध कृतियाँ,हमारे देश की महान और विशाल पुस्तकालय,हमारे देश की बड़ी-बड़ी शिक्षण संस्थाएँ, विश्वविद्यालय,ज्ञानपीठ,शोध संस्थाएँ,गुरुकुल,और हमारा हिंदी साहित्य भंडार.इसके अलावा हमारा हिंदी साहित्य का इतिहास.जहाँ पर आदिकाल,भक्तिकाल,रितिकाल,

आधुनिक काल,छायावाद,रहस्यवाद,प्रगतिवाद,प्रयोगवाद,नई कविता आदि में हमारी हिंदी का वर्चस्व, हिंदी का बोलबाला, हिंदी का प्रभाव हम सहज ही में देख सकते हैं, जो किसी चमत्कार,उपकार,वरदान या किसी धरोहर से कम नही है.आइये हम हिंदी की समृद्धि,प्रगति के लिए हर सम्भव प्रयास करें.और यह संकल्प लें की हम हिंदी का सम्मान करते हुए लिखित और मौखिक दोनो रूपों में इसका प्रयोग करेंगे.

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बेजुबान पशु पक्षी

रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

bejubaan

भारतीयों की संवेदनशीलता जग प्रसिद्ध है. यह गुण भारत माता की मिट्टी में ही समाया हुआ है. संवेदनशीलता का यह भाव केवल मानव जाति तक ही सीमित नहीं है, यह संवेदनशीलता बेजुबान पशु पक्षियों जानवरों के प्रति भी कूट-कूट कर भरी है. भारत एक आध्यात्मिकता से परिपूर्ण देश है. भारतीयों के स्वभाव में ही मैत्रीपूर्ण व्यवहार, दया, करुणा भरी है. धर्म मानवता का विस्तार करता है, मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी भी उसकी करुणा में आश्रय पाते हैं. भारतीय संस्कृति में पशु पक्षियों के प्रति प्रेम, सह-अस्तित्व और यहाँ तक कि उनकी पूजा की भी परंपरा रही है. भारतीय धर्मशास्त्रों के अनुसार जीवों की उत्पत्ति जल से हुई है.वृहदारण्यक उपनिषद में कहा गया है कि सबसे पहले जल में सूक्ष्म जीव की उत्पत्ति हुई, उससे दूसरा जीव बना और उनके संयोग से धीरे-धीरे चींटी, बकरी, वराह आदि जीवों का विकास हुआ.

अगर हम वर्तमान समय में बेजुबान पशु पक्षियों जानवरों की बात करें तो बदलते परिवेश,जलवायु परिवर्तन की भयंकर त्रासदी,बढ़ते शहरीकरण बदलते पर्यावरण, जंगलों की कटाई इत्यादि अनेक कारणों से बेजुबान पशु पक्षियों, जानवरों के लिए भीषण समस्या खड़ी हो गई है. साथियों कई प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी है तो कई प्रजातियाँ विलुप्तता के कगार पर खड़ी है. अब समय आ गया है कि हम अपनी पूर्ण संवेदनशीलता का उपयोग करें.

मानव तो बोल कर अपनी समस्या या जीवनपथ की कठिनाइयों को सुलझा सकते हैं, परंतु इन बेजुबान जीवो की सुरक्षा व रक्षा करने का समय अब आ गया है. साथियों प्राकृतिक विपत्तियों, पिछले साल से कोरोना महामारी भयंकर त्रासदी, के कारण विपरीत प्रभाव मूक प्राणियों के ऊपर भी पड़ा है जिसका हमें संज्ञान लेकर इन मुक्त जानवरों के प्रति मैत्री भाव रखना ज़रूरी हो गया है, क्योंकि हम भारतीय हैं और बेजुबान पशु पक्षियों, जानवरों के प्रति मैत्री, भाव, करुणा, रक्षा, मदद का भाव रखना उन्हें क्रूरता से बचाना, ईश्वर की अनमोल आराधना है.

साथियों बात अगर हम पशु पक्षियों, जानवरों को क्रूरता से बचाने की करें तो भारत में इसके लिए केंद्र व राज्यों में अनेक कानून बने हैं जिनमें भारतीय वन्य जीव संरक्षण (संशोधित) अधिनियम 2002 तथा भारतीय संविधान में जानवरों की सुरक्षा के लिए आर्टिकल अत्यंत महत्वपूर्ण है. पशु क्रूरता रोकने के लिए कानून को सख्त करना पड़ेगा. कठोर प्रावधान सिर्फ कागजों में ही सीमित न हों, बल्कि सख्ती से लागू भी होने चाहिए और दण्ड राशि में बढ़ोतरी होनी चाहिए. पशुपालको को प्रोत्साहन राशि देनी चाहिए, पशु बीमा योजना को बढ़ावा देना होगा. पशु चिकित्सालयों की संख्या बढ़ा देनी चाहिए और उनमें पड़े रिक्त पदों की पूर्ति होनी चाहिए,उनमें आधुनिक सुविधाओं के साथ मुफ्त दवाइयाँ उपलब्ध होनी चाहिए. सरकार को गौशालाओं की तर्ज पर अन्य पशुओं के लिए भी पशुशालाएँ खुलवा देनी चाहिए. पशुधन बढ़ाने के लिए सस्ती दरों पर लोन उपलब्ध कराने से लोगों का पशुपालन के प्रति रुझान होगा एवं उनका मनोबल बढ़ेगा. इससे पशुओं के प्रति क्रूरता कम होने के साथ रोजगार भी बढ़ेगा. पशुओं पर क्रूरता को रोकने के लिए संबंधित कानूनों का सख्ती से पालन कराएँ. विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाएँ स्थानीय प्रशासन से सामंजस्य स्थापित कर आवारा पशुओं के लिए आवास, भोजन, जल, चिकित्सा जैसी सुविधाएँ उपलब्ध कराएँ. चारागाह को संरक्षण दिया जाए. पशु हिंसा को रोकने के लिए सख्त कानून बनाने होंगे. पशुओं के साथ क्रूरता की घटनाएँ बहुत ज्यादा हो रही हैं. सड़क पर रहने वाले जानवरों से लेकर पालतू पशुओं तक को क्रूरता झेलनी पड़ती है. दूध निकालकर गायों को भी यूँ ही छोड़ दिया जाता है. भूखी-प्यासी गाएँ कचरे में मुंह मारती नजर आती हैं. कुत्ते बहुत ज्यादा क्ररता झेलते हैं. पाड़े, घोड़े, खच्चर, ऊंट, बैल, गधे जैसे जानवरों का इस्तेमाल माल की ढुलाई के लिए किया जाता है. इस दौरान उनके साथ बहुत ज्यादा क्रूरता होती है. पशुओं की तकलीफों को लेकर बिलकुल भी जागरूकता नहीं है. अभी हाल ही में मार्च में केरल के मल्लपुरम में गर्भवती हथिनी के साथ हुई निर्मम हिंसा को भारतीय नागरिक अभी तक भूले नहीं हैं. पशुओं के प्रति क्रूरता रोकने के लिए शासन प्रशासन सख्त होना चाहिए जेल भी हो और साथ-साथ भारी जुर्माना भी हो, ताकि लोगों में डर पैदा हो. मीडिया पशु-पक्षियों के संरक्षण के लिए काम करने वाले लोगों के बारे में ज्यादा से ज्यादा बताए. पशु कल्याण अधिकारी के नाम, फोन नंबर का प्रचार किया जाए. पशु-पक्षियों के संरक्षण के लिए काम करने वाले सभी सरकारी विभागों और संस्थाओं के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी दी जाए, ताकि लोगों में जागरूकता पैदा हो.

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चिंता और गुस्सा

रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु ', धमतरी

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काव्य और मानव जीवन में रस का बड़ा महत्व होता है. इसी रस से हमारा जीवन संचालित होता है. जीवन कई उतार-चढ़ाव से होता हुआ आगे बढ़ता है. मानव के मन मे पूरे चौबीस घण्टे कोई न कोई रस प्रवाहित होता रहता है. यह रस स्थायी भी हो सकता है और अस्थायी भी.

स्थायी रस दस हैं जिनमें

रति, हास, शोक, उत्साह, क्रोध, भय, जुगुप्सा विस्मय,निर्वेद और वात्सल्य रस होता है.

इसी प्रकार अस्थायी रस या भाव जिसे संचारी भाव कहा जाता है, को भरत मुनि ने तैंतीस माना है जैसे-

निर्वेद, ग्लानि, शंका, असूया, मद, श्रम, आलस्य, देन्य, चिंता, मोह, स्मृति, घृति, ब्रीडा, चपलता, हर्ष, आवेग, जड़ता, गर्व, विषाद, औत्सुक्य, निद्रा, अपस्मार, स्वप्न, विबोध, अमर्ष, अविहित्था, उग्रता, मति, व्याधि, उन्माद, मरण, वितर्क.

स्थायी भाव सर्वत्र विद्यमान रहता है.जबकि अस्थायी भाव जिसे संचारी भाव कहा जाता है, का अचानक संचार होता है फिर चला जाता है. यह कहा जा सकता है कि स्थायी भाव को पुष्ट करने के लिए जिस रस का संचार हो वही अस्थायी भाव है. उसे ही संचारी भाव कहते हैं.

इसी पर आधारित होता है 'चिंता और गुस्सा'.

चिंता शब्द चित्त से बना है, चित्त अर्थात मन.

जब चित्त किसी विषय के बारे में लगातार चिंतन करे, मनन करे, उसके बारे में सोचना शुरू कर दे,और ध्यान उसी पर बार-बार जाए, तो यह चिंता है. बात यहीं खत्म हो जाती तो कोई बात नही थी पर!धीरे-धीरे यह चिंता, चिता का रूप लेना शुरू कर देती है जो शरीर के लिए खतरनाक साबित हो सकती है.

यह माना जाता है कि चिंता जीवित शरीर को जला देता है जबकि चिता मृत शरीर को जलाती है.

तो हमें यह तय करना है कि हम किस शरीर को जलाएँ.

इसी प्रकार एक होता है रौद्र रस जिसका स्थाई भाव होता है गुस्सा. इस गुस्से के कारण भी हमारा जीवन अत्यधिक प्रभावित और परेशान रहता है. गुस्से ने न जाने कितने लोगों का जीवन बर्बाद किया है. इसने कितनों का घर उजाड़ा, कितनों का संबंध विच्छेद किया ,कितनों को बलि चढ़ने के लिए मजबूर कर दिया.पूरा जीवन घर-परिवार को बरबाद कर दिया.

इस पर मानव को सोचने और चिंतन करने की आवश्यकता है. मानव के मन में नाना प्रकार के स्थायी और अस्थाई भाव निहित होते हैं. जो इन्हे प्रभावित करते हैं. उपरोक्त भावों मनोभावों को ध्यान में रखते हुए हमें तय करना है कि किसे चुनना है किसे त्यागना है. हमें यह सोचना होगा की इन भावों का हम कब, और कैसे, कहाँ, किस रूप में उपयोग करें,यह हमारी बुद्धि और समझदारी पर निर्भर करता है.

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बोझ नही हैं,आशीर्वाद हैं- वृद्ध

रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु' धमतरी

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हमारे जीवन में बड़े बुजुर्गों का बहुत बड़ा योगदान है. उनके योगदान से,उनके आशीषों से ही हम उस मुकाम पर खड़े होते हैं,जहाँ हम अपने आप को खुशहाल, सुखी और सुकून भरे जीवन में पाते हैं. यदि ये वृद्ध,बड़े बुजुर्ग,हमारे जीवन में नहीं होते तो शायद हमें यह खुशहाल समृद्ध और सुकून भरा जीवन नहीं मिल पाता.

आइए हम अपने बड़े बुजुर्गों का सम्मान करें, उनका ख्याल रखें, उनकी देखभाल करें, उनका पालन पोषण करें,उनकी हर इच्छाओं, अपेक्षाओं को पूरा करें. उनके सुख-दुख, उनके आरोग्य का ध्यान रखें.उनके उपकारों, उनके आशीषों, उनके त्याग बलिदान का ध्यान रखें. जिनके कारण हमें यह खुशहाल भरी जिंदगी प्राप्त हुई है. इन सारी चीजों को ध्यान में रखते हुए ०१अक्तुबर को दुनिया के सारे वृद्धजनों को समर्पित करते हुए उनके सम्मान के लिए उनकी खुशी सुख शांति के लिए अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस मनाने का निर्णय लिया गया.

अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस मनाने का निर्णय १९९० में हुआ. वृद्ध दिवस मनाने का उद्देश्य दुनिया में इनके ऊपर हो रहे अन्याय, अत्याचार, दुर्व्यवहार,पर प्रतिबंध लगाने के लिए १४ दिसम्बर सन १९९० में निर्णय लिया गया और यह तय किया गया की प्रतिवर्ष ०१ अक्टूबर को

अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस मनाया जाएगा जो पूरे विश्व के बुजुर्गों को समर्पित होगा.

इसके बाद संयुक्त राष्ट्र संघ द्वार १९९१ में अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध वर्ष के रूप में मनाया गया.

इस प्रकार से इस दिवस पर वृद्धों को पूरा दिन समर्पित किया गया. उनकी सुख शान्ति और सम्मान के लिए नाना प्रकार के सम्मान जनक कार्यक्रम के आयोजन होने लगे. इस दिन यह संकल्प लिया जाता है कि उनकी सुख शांति के लिए हमेशा प्रतिबद्ध रहेंगे, उनको प्रेम, विश्वास सहानुभूति प्रदान करते रहेंगे ताकि वे खुशहाल जिंदगी जी सकें.

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पढ़ाई में रुचि कैसे जागृत करें ?

रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु ', धमतरी

PADHAI

पढ़ाई-लिखाई का मानव जीवन में अत्यंत महत्व है.

इसके बिना मानव का जीवन अधूरा अपूर्ण और अन्धकारमय है.पढ़ाई अर्थात शिक्षा से है.और शिक्षा का अधिकारी कौन है? शिक्षा का अधिकारी वह हर एक बच्चा है जिसकी उम्र शून्य से ८ की हो गई हो.चाहे वह किसी वर्ग धर्म समुदाय जाति का हो. शिक्षा के अधिकार २००९ के तहत हर बच्चे को कक्षा ८ वी तक अनिवार्य और निः शुल्क शिक्षा दिया जाना है.

यह तो शासन का सराहनीय कदम है.इसके अलावा बच्चों को कौशल विकास पर जोर दिया जा रहा.बिना कौशल के शिक्षा अधूरा है.

इसके अंतर्गत बोलना,पढ़ाना,सीखना,और समझना है.यह चारो प्रकार के कौशल एक बच्चे के लिए निहायत ही अवश्यक है.इसके बिना हम बच्चे के कौशल उसकी योग्यता का आँकलन नहीं कर सकते.

पर यहाँ प्रश्न यह उठता है की उसके अंदर योग्यता कैसे आए?वह कौशल कैसे आए?

उसकी समझ शक्ति कैसे बढ़े?समझ कौशल के साथ-साथ उसकी समरण शक्ति,मनन-शक्ति चिंतन-शक्ति तुलनात्मक शक्ति आदि कैसे बढ़े?

इसके लिए घर-परिवार से लेकर शाला तक एक उचित और स्वस्थ माहौल तैयार करना होगा.इस माहौल को तैयार करने में घर में माता-पिता और शाला में शिक्षक की भूमिका अहम हो सकती है.माता-पिता और शिक्षक अपनी अहम भूमिका निभाते हुए निम्न बिंदुओं पर जोर दे सकता है.

उचित माहौल-

बच्चों को उचित और स्वस्थ शिक्षा प्रदान करने के लिए घर-परिवार और शाला में उचित माहौल तैयार करने की आवश्यकता है.इसके बिना हम लाख कोशिश करें सभी प्रयास निरर्थक होंगे.

उचित माहौल के लिए हमें शिक्षा से संबंधित चिंतन-मनन, चर्चा-परिचर्चा,नवाचार आदि और अन्य शैक्षिक गतिविधियाँ करायी जानी चाहिए ताकि बच्चे उसमें हमेशा सक्रिय रहे.

शान्ति प्रिय वातावरण-

पढ़ाई मे रुचि बढ़ाने के लिए यह आवश्यक होता है की घर-परिवार,शाला का वातावरण शांतिपूर्ण हो.माहौल अशांत रहने से बच्चे की मानसिकता पर बुरा असर पड़ सकता है.उसका ध्यान भंग हो सकता है.

पर्याप्त नींद सेहत और खान पान-

बच्चों में शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिए यह आवश्यक हो जाता है की बच्चों को पर्याप्त नींद लिया जाना चाहिए.पलकों को उनकी सेहत का समय-समय पर ध्यान दिया जाना चाहिए.उनके खान-पान का विशेष ख्याल रखा जाना चाहिए.

आत्मविश्वास बधाएं-

बच्चों का मनोबल बढ़ाए रखने के लिए उनसे शालीनता पूर्वक बर्ताव करें,उनसे शान्ति पूर्वक और मित्रवत व्यवहार करें.उनकी प्रशंसा करें,उनको पुरस्कृत करें.उनकी कमियों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने का प्रयास करें.

इस प्रकार से उनका आत्मविश्वास जगाने का प्रयास करें.

बच्चे की रुचि-

बच्चों की पढ़ाई में रुचि जगाने के लिए यह आवश्यक है की सबसे पहले हम उनकी मानसिकता को समझे की वह किस विषय किस दिशा में ज्यादा रुचि रखता है और जाना चाहता है उसके अनुरूप बच्चों को हम शिक्षा दीक्षा प्रदान करें.

उपरोक्त बिंदुओं के आधार पर बच्चों को सही और उचित प्लेटफार्म प्रदान कर सकते है.सुंदर माहौल तैयार कर सकते है.और बच्चा पढ़ाई करने के लिए हमेशा उत्सुक और ललायित होगा.

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विलुप्त होती गिद्ध प्रजाति के संरक्षण से रुकेगा संक्रमण का फैलाव

रचनाकार- डॉ. बी. आर. नलवाया, शोध निर्देशक, प्रो. योगेश कुमार पटेल, शोधार्थी

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भारत में विश्व की सभी प्रकार की जलवायु के पौधे, वृक्ष, वनस्पतिया एवं प्राणी जगत की प्रजातियां थल, जल एवं पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती है. प्राणी समूह की लगभग 81000 प्रजातियां होती है जो कि विश्व स्तर का 6.4 प्रतिशत है. हम भले ही अंतरिक्ष तक पहुंच गए हैं, परंतु हम प्रकृति के वरदान के साथ अन्याय भी कर रहे हैं. 10000 साल पहले प्रकृति पर 600 करोड़ हेक्टेयर पर यानी करीब 57 प्रतिशत हिस्से में जंगल ही था लेकिन अब यह केवल 400 करोड़ हेक्टेयर ही बचा है. जैव आकलन करने वाली संस्था आईयूसीएन की रेड डाटा बुक में शामिल 142500 प्रजातियों में से 40000 प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है. यह ज्ञात प्रजातियों का 28 प्रतिशत है. इसी तरह 454 करोड़ साल पहले निर्मित हुई पृथ्वी पर 70 प्रतिशत से अधिक पानी था लेकिन अब पानी का भार केवल 1 प्रतिशत ही रह गया है.

यह लेख एक ऐसी ही विलुप्त होती जा रही गिद्ध प्रजाति पर है. वर्ष 2003 के बाद भारत समेत दुनिया भर से गिद्ध विलुप्त होते जा रहे हैं. वर्ष 1990 के दशक से भारतीय गिद्धों का लगभग विलुप्त होना मनुष्य के लिए घातक साबित हो रहा है, क्योंकि गिद्ध प्राकृतिक तौर पर सफाई में मदद करते हैं. उनके आहार में मुख्य तौर पर मरे हुए जानवर शामिल होते हैं. गिद्धों की कमी का कारण यह रहा है कि किसानों ने अपने मवेशियों का इलाज करने के लिए डाइक्लोफेनाक नामक दवा का उपयोग शुरू कर दिया था. इस दवा से मवेशी और मनुष्यों दोनों के लिए कोई खतरा नहीं था. लेकिन जो पक्षी डाइक्लोफेनाक से उपचारित मरे हुए जानवरों को खाते थे उन पक्षियों के गुर्दे खराब होने लगे व कुछ ही हफ्तों में उनकी मृत्यु होने लगी.

अब गिद्धों की संख्या में कमी होने के कारण इन सबको जंगली कुत्तों और चूहों ने खाना शुरू कर दिया लेकिन ये गिद्धों की तरह पशुओं के शव को पूरी तरह खत्म करने में सक्षम नहीं होते हैं. जबकि गिद्धों का समूह एक जानवर के शव को लगभग 40 मिनट में साफ कर सकता है क्योंकि गिद्ध हमेशा झुंड में रहता है. गिद्ध का समूह एक किलोमीटर की ऊंचाई से भी मरे हुए जानवर की गंध सूंघ लेता हैं और उसे देख लेता हैं. सबसे ऊंची उड़ान भी यही पक्षी भरता है. इनका रंग काला और कत्थई होता है, इनके पंख 5 से 7 फीट तक होते हैं एवं इनका वजन 6 से 7 किलोग्राम तक होता है.

अब गिद्धों की संख्या कम हो रही है क्योंकि बढ़ते प्रदूषण और घटते जंगलों के चलते भी उनके प्राकृतिक आवास नष्ट हुए हैं. गिद्ध का मुख्य भोजन मृत पशु होता है लेकिन इन मृत जानवरों को खाने से गिद्ध के शरीर में यूरिक अम्ल बनता है जो इनकी किडनी और लीवर को नुकसान पहुंचता है. यही इन गिद्धों की मौत का कारण बन रहा है एक दूषित पशु से कई गिद्धों की एक साथ मौत हो रही है. मध्य प्रदेश में अब केवल 6700 गिद्ध ही बचे हैं व देश में भी अपेक्षाकृत इनकी संख्या कम हुई है.

दुनिया भर में 23 प्रजाति के गिद्ध (वल्चर) पाए जाते हैं जिसमें से भारत में केवल 9 प्रजातियां है व मध्यप्रदेश में 7 प्रजातियों के गिद्ध देखे गए हैं. राजस्थान के झालावाड़ जिले में गिद्धों की लॉन्ग बिल्ड वल्चर प्रजाति पाई जाती है अब लॉन्ग बिल्ड गिद्ध राजस्थान के अलावा महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश में ही बचे हैं. मंदसौर जिले का गांधीसागर अभ्यारण वन्यजीवो के लिए स्वर्ग साबित हो रहा है. 6 फरवरी 2021 में गांधीसागर अभ्यारण में 684 गिद्ध मिले. वैसे तो सन 2010 के पूर्व गिद्धों की संख्या में गिरावट आई थी लेकिन पिछले वर्षों की तुलना में अभी कुछ वृद्धि हुई है.

गिद्धों की तस्करी का पहला मामला खंडवा से पकड़ा गया जो कि पिछले 10 वर्षों से चल रहा था. तस्करी में सात सफेद गिद्ध खंडवा से पकड़े गए. एक और तो देश में गिद्ध विलुप्त हो रहे है वही दूसरी तरफ खाड़ी देशों में इनकी जमकर तस्करी की जा रही है. इन देशों में रसुखदार लोग, तंत्रक्रिया वाले और घरों में पालने के लिए लोग गिद्धों की मुँहमांगी कीमत देते रहे है. इसके चलते भारत से गिद्धों को समुद्र के रास्ते दुबई और अन्य खाड़ी देशों में तस्करी चल रही थी. उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों से भी गिद्धों की तस्करी होती रही है.

यदि देखा जाए तो अभी के युवाओं को गिद्ध को देखने का अवसर नहीं मिला है. विगत 30 वर्षों पूर्व आसमान में मंडराते गिद्धों को आज के 45 से 50 से अधिक वर्ष के बुजुर्गों ने काफी संख्याओं में देखा है. अब गिद्धों की रक्षा में हर व्यक्ति व संस्थाओं को सहयोग हेतु आगे आना होगा. गिद्धों के संरक्षण से पर्यावरण स्वच्छता के फायदे ही होते हैं. पर्यावरण हितैषी गिद्ध धरती पर जहां संक्रमण को रोकते हैं वही स्वच्छता में हमारे सहयोगी भी रहते हैं. गिद्धों से पर्यावरण संरक्षण तभी बना रहेगा जब हम गिद्ध प्रजाति को विलुप्त के कगार पर नही पहुंचने देंगे.

गिद्धों के संरक्षण की दिशा में 25 जून 2023 को हरियाणा के पिंजौर से 1100 किलोमीटर का सफर तय कर वहां से 20 गिद्ध भोपाल लाए गए. पिंजौर में गिद्धों के संरक्षण की बेहतरीन कयावत से प्रजनन द्वारा पिछले 22 साल में 365 गिद्धों का जन्म हो चुका है. पिंजौर की देश में अहमियत इसलिए भी बढ़ गई है की विलुप्त होती हुई तीन प्रजाति के गिद्धों का प्रजनन यहाँ के केंद्र में हो रहा है. पिंजौर से ही मध्यप्रदेश, पश्चिमबंगाल, असम समेत कई राज्यों में गिद्धों को संरक्षण और और प्रजनन के लिए भेजा गया है. गिद्धों की संख्या में वृद्धि के लिए देशभर में भोपाल सहित करीब 5 प्रजनन केंद्र भी बनाए गए हैं. फिर भी इनके संरक्षण के लिए जनजागृति बहुत आवश्यक है, तभी मनुष्य सुरक्षित पर्यावरण में जीवन बसर कर सकेगा.

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तीजा के करुभात

रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू', राजिम

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तीजा–पोरा हा हमर छत्तीसगढ़ के माई लोगन बर विशेष तिहार हरे. राखी के बाद सब के मन मा एक अलग से खुशी झलकथे की अब तीजा –पोरा आही.अउ खुशी होही काबर नहीं साल भर मा एक बार ये तिहार हर आथे. वइसे तो हर तिहार हा एके घाँव आथे, फेर ये तीजा मा माई लोगन मन अपन–अपन मइके जाथे. मइके के नाम मा ता जम्मों महिला मन एक गोड़ मा खड़े रहिथे. नवा–नेवन्नीन मन हा आठे मनाथे अउ घेरी–बेरी फोन कर के अपन भाई–माई मन ला बुलावत रहिथे. साल मा कतको बार मइके जाही फेर तीजा मा नइ जाही ता घेरी–बेरी पारा –पड़ोस संग गोठिया डरथे. अई ये दारी मँय तीजा नइ गए हंव बहिनी अब्बड़ सुरता आवत हे दाई–बाबू, भाई–भतीजा के . अपन अँचरा मा आसूंँ पोछत बतावत रहिथे. फेर यहू तिहार हर दिनों दिन कम होवत जावत हे एके दिन बर जाथे अउ लुगरा धर के आ जाथे.

ये तिहार हर पोरा ले शुरू हो के गणेश चतुर्थी तक रहिथे. करुभात के विशेष महत्व रहिथे ये तिहार मा. घर–घर माई लोगन मन घूम–घूम के करेला साग खाये ला जाथे. वो दिन काकरो घर साग नइ पूछे, काबर की सबो घर तो करेला हा बने रहिथे. अउ बजार मा करेला के भाव अगास छुवत रहिथे, एकरो दिन आथे. रात कन माई लोगन मन अपन–अपन लोग–लइका ला धर के घरोघर जाथे .अइ चल न बहिनी करेला चीखे बर जाबोन या इही बहाना सबों झन संग भेट मुलाकात हो जाही.

करू भात काबर खाये जाथे :– करेला अउ चना अधिकांश घर मा बनथे अउ येला खा के माई लोगन मन उपास रहिथे. करेला काबर खाय जाथे येखर वैज्ञानिक कारण भी हे, करेला मा विशेष प्रकार से पोषक तत्व मिले रहिथे. येमा विटामिन सी, मैंगनीज,पोटेशियम जइसे तत्व मिले रहिथे. येहा औषधि के भी काम करथे. करेला मा पानी के मात्रा मौजूद रहिथे जेकर से प्यास बहुत कम लगथे, अउ चना मा कैल्सियम किसम–किसम के पोषक तत्व के भरमार रहिथे. शरीर ला ऊर्जा देथे . ओकर कारण से माई लोगन मन ह करेला याने की करुभात खा के दूसर दिन निर्जला उपवास रहिथे.

पुरखा के बात :– हमर छत्तीसगढ़ मा करेला साग ला विशेष महत्व दिए जाथे. सियान मन बहुत सोच विचार कर के नियम ला बनाए हे ताकि आने वाला पीढ़ी ये कर लाभ उठा सकें. कभू–कभू लगथे की पुरखा मन ये समय ला जानत रिहिन का.... की आने वाला पीढ़ी के मन निर्जला उपास नइ रहे सकें. येकर कारण करेला मा विशेष फायदा देख के उपास के पहिली दिन करू भात खाये के नियम बनाए हे. ताकि महिला मन येकर लाभ उठा सकें अउ पुरखा के मान रख सकें .

आज के पीढ़ी ला विशेष ध्यान रखना चाहिए अउ भरपूर लाभ घलो उठाना चाहिए. ये प्रकार से करुभात खाये के महत्व हे.

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मेरे प्यारे दादा जी

रचनाकार- दीक्षा पाठक, क्लास-3, शासकीय प्राथमिक शाला- सैगोना, बेमेतरा

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मेरे दादा जी बहुत अच्छे है,
वे सुबह जल्दी उठते हैं
मैं भी उसके साथ उठती हूँ,
हम साथ में टहलने जाते है
बहुत सारी बाते करते हैं,
सुबह स्नान कर पूजा करते और अच्छी-अच्छी किताबें पढ़ते हैं
हमें भी किताब पढ़ने को कहते,
हम दादा जी के साथ खेलते है, बाजार जाते, मेला जाते है
सुंदर- सुंदर खिलौना लेते है,
झूला झूलते है
कभी- कभी मम्मी पापा डाटते है तो उनकी डांट से हमें बचाते है,
हम भी दादाजी की हर बात मानते हैं
उनका आदर हम सब करते है,
मेरे दादा जी बहुत प्यारे और अच्छे हैं
वे हमसे बहुत प्यार करते हैं.

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