छत्तीसगढ़ी बालगीत

डरपोकहा बिलवा

रचनाकार- गीता द्विवेदी, बलरामपुर

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इते ले झाँकेल फेर उते ले झाँकथे ,
देख दाई बिलवा छान्हीं ले झाँकथे.

म्याऊँ- म्याऊँ कहि के मोला खिझाथे,
मैं खाथों दूध - भात ओहर ललचाथे.

गली में कुकुरमन खुबेंच भोंकथें
बोली ला सुइन के गजबे डराथे.

तनीकुन ओकरो आगु दूध मढ़ा दे,
मुसवा नइ पाए होही तभे मंडराथे.

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धान के महिमा

रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू', राजिम

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पींयर –पींयर धनहा बाली,
बिहना पड़थे सूरज लाली.

घाम अगासा के वो सहिथे,
धान सोन कस चमकत रहिथे.

चिरई–चिरगुन गाना गाथे,
घेरी–बेरी खेत म जाथे.

पक्का–पक्का बीजा पाथे,
फोर–फोर के जम्मों खाथे.

किसम–किसम के धान ल बोथे,
अब्बड़ पैदावार ह होथे.

चारों मुड़ा सुघर ममहाथे,
देख किसनहा खुश हो जाथे.

धरती के कोरा हरियाथे,
सुख के ॲंचरा कस लहराथे.

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छत्तीसगढ़ महतारी

रचनाकार- के.पी.साहू, दुर्ग

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भारत दाई के सुग्घर दुलौरिन बेटी,
धान के कटोरा,छत्तीसगढ़ महतारी.
एक नवंबर तोर जनम दिन ये,
जोहर मोर छत्तीसगढ़ महतारी.

तोर कोरा मा लोहा कोयला,
अलमुनियम अऊ हीरा के भंडार.
वन संपदा के गंगा बहत हे,
तोर गाथा हे अपरम्पार.
*जोहर मोर छत्तीसगढ़ महतारी.

बोरे बासी मोर अभिमान,
गोंदली चटनी सन खूब मिठाय,
जिमी कांदा के अमसुरहा सब्जी,
अंगाकर सन गजब मिठाय.
जोहर मोर छत्तीसगढ़ महतारी.

भेलाई के लोहा बिकास गड़त हे,
*कोरबा के बिजली जगमग करत हे.
*ददरिया, करमा,पंथी, पड़वानी के
दुनिया भर में हमर शोर उड़त हे.
जोहर मोर छत्तीसगढ़ महतारी.

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सोनू तै स्कूल आना जल्दी

रचनाकार- संतोष कुमार कर्ष, कोरबा

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अनार के दाना हे गोल-गोल
आमा ल खाके किताब खोल
इमली के स्वाद हे खट्टा
ईख के स्वाद हे मीठा
उल्लू के आंखी हे गोल-गोल
ऊन के हावय रोला
ऋषि के नाव हे भोला
एक तारा ला तै बजा ले
ऐनक पहिन के हीरो
नई पढ़बे त बन जाबे जीरो
ओखली म कुटथे हल्दी
औरत ल कईथे माता
अंगूर हावए गोल-गोल
अ: करके किताब खोल
सोनू तै स्कूल आना जल्दी

क से कलम म लिख ले
ख से खरगोश ला देख ले
गमला म फूल ह खिलथे
घड़ी हावए घर म
ङ ल पढ़ ले सोनू पंगा मत ले तै
सोनू च से चम्मच होथे
छाता ला बरसात म ओढथन
ज से जहाज होते
झंडा फहरा ले सोनू
ञ ला पढ़ ले सोनू
टमाटर हावए गुझ गुझ
ड से डमरू बाजथे
ढक्कन ह कुकर शटथे
ण ल पढ़ के किताब खोल
त से तराजु होधे
दवात म होथे स्याही
ध से धनूष होथे
नल से पानी निकलथे
पंतग आकाश म नाचथे
फ से फल ल खाथन
बकरी ह मे मे करथे
भ से भाटा होथे
मछरी ह पानी म रईथे
य से यज्ञ होथे
रस्सी से गाय ल बांधथन
ल से लड़की होथे
व से वन होथे
शेर ह जंगल म रईथे
ष से षटकोंण होथे
सरोता म आमा ह कटथे
हलवाई ह लड्ड बनाथे
क्ष से क्षत्रीय होथे
त्रिशूल ल भोला ह धर थे
ज्ञानी ह कईथे सोनू
बस्ता ला धर ले सोनू

सोनू तै स्कूल आना जल्दी
स्कूल म आके पढ़ ले अपन जिंनगी गढ़ ले

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छत्तीसगढ़

रचनाकार- राधेश्याम सिंह बैस, बेमेतरा

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देखव छत्तीसगढ़ के श्रृंगार,
सजे हे जइसे नव श्रृंगार.
एक नवम्बर म स्थापित,
बरस के छत्तीसगढ़िया तिहार.

का कहिबे येखर बोली गुत्तुर,
बोली म घुलथे मिसरी.
अपन भाषा अपन बोली,
दाई के बोली कभू नइ बिसरी.

हरियर -हरियर लुगरा,
सोनहा बाली कस चमके धान.
मोर मुकुट चंदा कस दिखे,
रखथे छत्तीसगढ़िया के मान.

अन्न उपजइया किसान मजदूर,
खेती म बहाथे पसीना.
हमर जेवन हमर बियारी,
नागर बैला धरे चले तान के सीना.

नदियाँ नरुआ कल -कल,
गीत ह अब्बड़ सुहाथे.
सर सरावत पूर्वया हवा,
तन के पसीना ल सुखाथे.

छत्तीसगढ़ के गाय गरुआ,
सबो हर गोधन कहाथे.
होवत बिहनिया दूध के चाय
अंगरा रोटी म अब्बड़ सुहाथे.

गाँव गली म डंडा पिचरंगा,
भौरा बाटी अउ गेढ़ी तिहार.
नोनी के फूगड़ी अउ रस्सी कूद,
इहा मनखे,मनखे करथे चिन्हार.

सुआ ददरिया के धुन,
ऐके सुरु म गाये गीत.
किसम -किसम ले संस्कृति,
सुख -दुख म सबो मीत.

मंदिर देवाला देवी देवता,
बइठे तरिया नदियाँ बीच खार म.
तैतिस कोटि देव धामी के बसेरा,
हम जम्मो के जिनगी इह सार म.

पाँव परत हो गुण गावों,
मोर छत्तीसगढ़ के माटी ल.
तोर कोरा म जिनगी हे,
मानत रहू तोरेच परिपाटी ल.

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छत्तीसगढ़ चालीसा

रचनाकार- कन्हैया साहू 'अमित', भाटापारा

chhattisgarhi_chalisha

दोहा:-
दाई के अँचरा भरे, ममता मया खदान.
जय छतीसगढ़ नित कहत, करँव अमित गुणगान.

चौपाई:-
जय जय छतीसगढ़ महतारी, महिमा तोरे हावय भारी.-1
एक नवंबर दिन हे पावन, रंग-रूप हे तोर सुहावन.-2

एक हाथ मा हँसिया, बाली, दुसर हाथ बाँटत खुशहाली.-3
सरी अंग मा गहना साजे, दुनिया भर मा डंका बाजे.-4

कोरवान निक लुगरा हरियर, माथ मउर मन मोहय सुग्घर.-5
तोरे मुखड़ा मन ला भावय, तोर सहीं कोनो नइ हावय.-6

करनफूल अउ ककनी, करधन, सूँता, रुपिया पहिरे बन ठन.-7
चुटकी, पैरी, बिछिया, लच्छा, माहुर, टिकली बहुते अच्छा.-8

ओली तोरे अन, ओन्हारी, भरपुरहा भाजी तरकारी.-9
खानपान के बड़ भंडारा, चटनी-बासी अगम अपारा.-10

गुरहाचीला,भजिया, हलुआ, अरसा, पपची, पिड़िया, पकुआ.-11
लाड़ू, सोंहारी, अंगाकर, रोटी-पीठा इँहचे आगर.-12

रिता कभू नइ राहय कोरा, सिरतों सिगसिग धान कटोरा.-13
गुरमटिया, सफरी, सुखसागर, पलटू, लुचई, रानीकाजर.-14

हाही-माही धनहा, परिया, कुआँ-बावली, नँदिया, तरिया.-15
माटी निक कन्हार, मटासी, खेती कारज, भरय हुलासी.-16

इंद्रावती, ईब, मनियारी, महानदी, अरपा के धारी.-17
लीलागर, शिवनाथ, जमुनिया, लहर-लहर लहराय दुगुनिया.-18

गंगरेल जस लागय गंगा, हसदो, खुड़िया लहर तुरंगा.-19
पुटका, बंकी अउ किंकारी, कोड़ार, मोंगरा मुखतारी.-20

ईसर राजा, ठाकुर देवा, ठउर-ठउर महमाया सेवा.-21
जयति शीतला, जय बगदाई, मेड़ोपार चुरैलिन माई.-22

सिरपुर, राजिम अउ डोंगरगढ़, भोरमदेव, रतनपुर बढ़-चढ़.-23
दंतेवाड़ा, शिवरीनारायण, धर्म धाम हे छाहित कण-कण.-24

जय गिरौध, जय दामाखेड़ा, चारोंकोती सत के बेड़ा.-25
चार चिरौंजी, तेंदू अउ मँउहा, जिनिस इहाँ सब झँउहा-झँउहा.-26

तिज तिहार हे कोरी-कोरी, राखी, देवारी अउ होरी.-27
इहाँ हरेली, जोत जवाँरा, पोरा-तीजा प्राण अधारा.-28

सुआ, ददरिया, पंथी, करमा, गाँवय-नाँचय सब घर-घर मा.-29
सैला, सरहुल अउ डंडारी, मन उछाह भरथे बड़भारी.-30

गोंड़, कोरकू, हल्बा, सौंरा, तोरे कोरा खावँय कौंरा.-31
कोल, कँवर, धनवार, अगरिया, रहँय-बसँय इन सब मनफरिया.-32

कोठा, कोठी, कोठार-बियारा, सरी कुसाली तोर सहारा.-33
घर, अँगना अउ बखरी-बारी, तोर कृपा बरसै महतारी.-34

टिन, बाक्साइट, डोलोमाइट, हीरा, सोना अउ ग्रेफाइट.-35
छुही, कोयला, चूना, पखरा, छपछप ले छतीसगढ़ अँचरा.-36

मोर कलम थक जाथे दाई, लिखत-लिखत मा तोर बड़ाई.-37
जिनगी भर देबे आसीसा, लिखत रहँव तोरे चालीसा.-38

अमित सरग नइ चाही चोखा, इहें जनम के माढ़य जोखा.-39
करबे सुख-दुख सरी सरेखा, मोर भाग मा लिख सुख लेखा.-40

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तोरे अगोरा हे लछमी दाई

रचनाकार- कन्हैया साहू 'अमित', भाटापारा

diwali

होगे घर के साफ सफाई,
तोरे अगोरा हे लछमी दाई.
अँगना दुवार जम्मो लिपागे,
नवा अंगरक्खा घला सिलागे.
लेवागे फटक्का अउ मिठाई,
तोरे अगोरा हे लछमी दाई.. 1

अँधियारी म होवय अँजोर,
दीया बारँव मैं ओरी ओर.
हूम-धूप अउ आरती गा के,
पईयाँ परत हँव मैं ह तोर,
बाँटव बतासा-नरियर,लाई,
तोरे अगोरा हे लछमी दाई.. 2

तोर बिन जग अँधियार,
संग तैं त रतिहा उजियार.
तोर किरपा ह होथे जब,
अन-धन के भरय भन्डार.
सुख-दुख म तैं सदा सहाई.
तोरे अगोरा हे लछमी दाई.. 3

कलजुग के तहीं महरानी,
तोर आगू भरैं सबो पानी.
माया म तोर जग बउराय,
अप्पढ-मूरख अउ गियानी.
बिनती 'अमित', कर भलाई,
तोरे अगोरा हे लछमी दाई.. 4

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देखव हमर बेटी मन कईसे सुग्घर सुआ नाचत हे

रचनाकार- श्याम सुंदर साहू, गरियाबंद

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हमर छत्तीसगढ़ के मान बढ़ावत हे,
देखव हमर बेटी मन,
कईसे सुग्घर सुआ नाचत हे.

हमर छत्तीसगढ के संस्कृति ल बचावत हे,
देखव हमर बेटी मन,
कईसे सुग्घर सुआ नाचत हे.

घर घर जाके सुआ के गीत गावत हे,
देखव हमर बेटी मन,
कईसे सुग्घर सुआ नाचत हे.

हमर जुन्ना परंपरा ल निभावत हे,
देखव हमर बेटी मन,
कईसे सुग्घर सुआ नाचत हे.

टूकनी में बैठे सुआ के जोड़ी,
अब्बर सुहावत हे,
देखव हमर बेटी मन,
कईसे सुग्घर सुआ नाचत हे.

बदला म चउर अऊ पैसा लेके,
हमन ल आशीष देवत हे.
देखव हमर बेटी मन,
कईसे सुग्घर सुआ नाचत हे.

*****

चल ओ संगवारी

रचनाकार- सृष्टि प्रजापती, आठवी, स्वामी आत्मानंद तारबहार बिलासपुर

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चल ओ संगवारी जाबो,
बनबो देश के भविष्य.
बनाबो अपन देश ल,
सबले सुघ्घर, सबले उच्च.

तज के आलस चल जाबो.
करके महिनत, पसिना बहाके.
अपन देश ल,
हरियर बनाबो.

चल ओ संगवारी जाबो.
पथ्थरा के महिल बनाबो.
सोन के चिरई ल,
फिर से चहिकाबो.

छत्तीसगढ़ के वासी हन.
अपन देश के विकास बर,
जग ल जीत के आबो.
चल ओ संगवारी जाबो.

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बेंदरा

रचनाकार- माला तिवारी, बलरामपुर

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डारी डारी फांदे बेंदरा
आंखी ला मुचकाए
पाकल पाकल आमा देख के
ओखर जीव ललचाए
आमा खाए गापुच गापुच
पोंछी ला घुमाए
मनखे मन ला देख के
किंदर किंदर जाए

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चलव रे संगी चलव रे बाबू वोट डाले बर जाबो

रचनाकार- श्याम सुंदर साहू, गरियाबंद

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चुनई के बेरा आगे,
अपन फर्ज ल निभाबो,
चलव रे संगी चलव रे बाबू,
वोट डाले बर जाबो.

लोकतंत्र के महान परब ल,
जुरमिल के सब मना बो,
चलव रे संगी चलव रे बाबू,
वोट डाले बर जाबो.

हमर देश के भविष्य ल,
मिलजुल के सुग्घर बना बो,
चलव रे संगी चलव रे बाबू,
वोट डाले बर जाबो.

शत प्रतिशत वोट के लक्ष्य ल,
जुरमिल के पुरा कर बो,
चलव रे संगी चलव रे बाबू,
वोट डाले बर जाबो.

सही और योग्य उम्मीदवार के,
चुनई ल हमन करबो,
चलव रे संगी चलव रे बाबू,
वोट डाले बर जाबो.

काकरो बहकावा म नहीं आवन,
सोच समझ के वोट डालबो
चलव रे संगी चलव रे बाबू,
वोट डाले बर जाबो.

*****

मेरी माटी मेरा देश

रचनाकार- माला तिवारी, बलरामपुर

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मेरे देश को माटी है चंदन,
निश दिन करूं मैं इसका वंदन.
हनुमत,शिव,कृष्ण और रघुनंदन,
इनके चरण पड़े हैं हरदम.
जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक,
इसका कर्ज है मुझपर हर क्षण.
वीरों ने जब दिया बलिदान,
देश बन गया और महान.
धर्म के साथ मिलता विज्ञान,
तभी तो बढ़ता जाता ज्ञान.
धरती में कोयला,सोना खान
इसकी और बढ़ाता शान.
माटी की महक,बरगद की छांव,
ऐसा होता यहां का गांव.

*****

बचपन के मजा

रचनाकार- श्रीमती सुनीता सिंह राजपूत, बेमेतरा

bachapan

धुर्रा माटी मां खेलन
खो खो कबड्डी और सागा पहुना
ओ दीन के मजा बड़ आवे

कैसे वनवा न माटी के घरौंडा
सगी मां सॉन्ग स्कूल जावन
सगी मां सॉन्ग खाऊ खावन
ओ दीन के मजा बड़ आवे
कैसे संगी मनल ल टू हू दिखा वन
स्कूल से पहली खेत जावन
नागर बैल म खेत जोतवय
ओ दीन के मजा बड़ आवे
कैसे ददा दाई बर बासी पहुचवन
डोकरा बबा ह कहानी सुना व य
डोकरी दाई है कहानी सुना व य
ओ दीन के मजा बड़ आवे
कैसे दा ई ह गो ड म झूलना झुलावे
कैंची फास्ट में साइकिल चलावन
बाटी भंवरा और लुका छुपी खेलन
ओ दीन के मजा बड़ आवे
कैसे सड़क में चक्का चलावन
आम के बगीचा मां आमा चोरावन
खेत खार म बें न्दा कू द'वन
ओ दीन के मजा बड़ आवे
कैसे ला ट' बन'के इमली लखावन

*****

आगे देवारी तिहार

रचनाकार- श्याम सुंदर साहू राजिम, गरियाबंद

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पांच दिन के ये तियार
दिया जलाबो घर घर अउ दुवार दुवार,
दिया जला के मिटाबो अंधियार
आगे देवारी तिहार.

नवा नवा कुरता पहिनबो,
अउ लेबो बताशा मिठाई के हार,
ताश जूआ से दूर रबो,
नहीं तो पुलिस के खाएं ल पड़ ही मार,
आगे देवारी तिहार.

लक्ष्मी दाई के पूजा कर बो,
अउ मांग बो आशीर्वाद,
झूठ के रददा ल छोड़,
सच के दिया जलाबो ये बार,
आगे देवारी तिहार.

एक दिन सबो झन ल हे जाना,
झन रख ककरो से ईरसा द्वेष,
बाती बुता जाही त हो जाहि अंधियार,
देवत हे संदेश दीया हा बार-बार,
आगे देवारी तिहार.

*****

हमर पाठशाला

रचनाकार- संतोष कुमार साहू संकुल प्राचार्य संकुल केंद्र सोमनापुर नया,कबीरधाम

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सोमनापुर की धरती मे
ज्ञान का दीपक जलते देखा.
आसपास के बच्चो में,
प्रतिस्पर्धा से नित आगे बढ़ते देखा
गांव के इन सब बच्चों को
पाठशाला में आकर पढ़ते देखा.
शिक्षा का जब अवसर पाया
जन जीवन को बदलते देखा.
पढ़ाई पूर्ण कर जब यहां से निकले
उनके सपनों को मचलते देखा.
खेल के मैदानों में हमने
प्रतिभाओं को उभरते देखा.
गांव के गरीब बच्चों में,
नए स्वपनो को खिलते देखा.
बुझे हुए अरमानों को
हमने फिर से जलते देखा.
शिक्षको की मेहनत से आज,
ज्ञान की धारा बहते देखा.
सोमनापुर के पाठशाला में,
कल के भविष्य को पलते देखा.

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