लेख

दीपावली

रचनाकार- Aabha Chndra, Class -7th, School - Sages Tarbahar, Bilaspur

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दीपावली भारत का एक प्रमुख त्यौहार है. यह त्यौहार हर साल अक्टूबर या नवंबर के महीने में मनाया जाता है. इस त्यौहार के आने से पहले लोग अपने घरों और दुकानों की सफाई करते हैं. यह त्यौहार पांच दिनों का होता है धनतेरस ,नरक चतुर्दशी ,दीपावली गोवर्धन पूजा और भाई दूज . नरक चतुर्दशी को छोटी दीपावली के नाम से भी जाना जाता है. दीपावली में हम माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करते हैं. यह त्यौहार भगवान राम की वनवास से लौटने की खुशी में मनाया जाता है. इस दिन सभी अपने परिवार और दोस्तों को मिठाई बांटते हैं और बच्चे पटाखा फोड़ते हैं. इस त्यौहार को दीपों का त्योहार कहा जाता है.

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जीने की कला

रचनाकार- सीमा यादव, मुंगेली

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जो व्यक्ति सोता है उसका भाग्य सोता रहता है. इसी तरह जो मनुष्य जागता है उसका भाग्य भी जागता है.हमारी आदतों, हमारे कर्मों और हमारी दिनचर्या का हमारे सौभाग्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है. आलसी, कामचोर और निकम्मा व्यक्ति ही प्रत्येक क्षण भाग्य और ईश्वर को कोसता रहता है.वह उदासीनता का लबादा ओढ़कर अपने इर्द -गिर्द नकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है. ऐसा व्यक्ति अपने आप तो दुःखी रहता है, साथ ही घर -बाहर की दुनिया में भी निष्क्रियता का संदेश पहुँचाता है.

एक नकारात्मक व्यक्ति पुरे घर, परिवार, समाज एवं राष्ट्र का नैतिक पतन और विकास का विनाश कर देता है. सही अर्थ में विश्लेषण किया जाय तो ऐसे व्यक्ति का इस संसार में रहना और न रहना एक समान हो जाता है. वे धरती के लिए बोझ होते हैं मानव के नाम पर कलंक होते हैं.

यदि आप अपने को ऐसे स्वभाव वाले व्यक्ति से दूर रखना चाहते हैं तो एक ही सिद्ध मंत्र हैं कि न तो उससे दोस्ती रखें और न ही दुश्मनी. कहने का आशय हैं कि आसक्ति का त्याग करके अनासक्ति का दामन थामें और थोड़े दिनों बाद आप देखेंगे कि सब कुछ,सारी चीजें हमारी ही मनःस्थिति के अनुरूप हो रही हैं. मन में सकारात्मक विचार को बार बार सोचने-दोहराते रहने से हमारे मन मस्तिष्क पर बहुत सुन्दर और अच्छा प्रभाव पड़ता है. हमारे आस -पास के चराचर जीव जंन्तु एवं सभी दिशाएँ प्रफुल्लित होकर नाचने लगती हैं.ध्यान रखें जो अच्छा कर्म करता है उसी का भाग्य चमकता-दमकता है. और जो बुरे कर्म में लिप्त रहता है. उसका कोई ठौर -ठिकाना नहीं रहता है. ऐसे व्यक्ति से कोसों दूर रहें. इसी में आपकी भलाई है.कड़ी मेहनत ईमानदारी और धैर्य के साथ करते रहें.

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दिवाली की सफाई और शापिंग

रचनाकार- स्नेहा सिंह, नोएडा

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नवरात्र पूरी हुई और दशहरा भी चला गया, अभी थकान भी नहीं गई कि हम सभी को दिवाली के कामों का टेंशन होने लगा है. जबकि आज की जनरेशन जल्दी टेंशन नहीं लेती. पर शादीशुदा महिलाओं को तो यह टेंशन थोड़ी-बहुत लेनी ही पड़ती है. अभी नौ दिन के व्रत-पूजा की थकान उतरी भी नहीं है कि छुट्टी के दिनों में सफाई के झंझट में पड़ना ही है. कभी-कभार यह सफाई का अभियान इतना लंबा और मुश्किल हो जाता है कि इसकी वजह से त्योहारों में महिलाएं बीमार पड़ जाती हैं. पहले का समय अलग था. तब सफाई का अभियान एक निश्चित तरह का था, घर में गोबर-मिट्टी की लिपाई-पोताई से ले कर घर के तमाम छोटे-बड़े बर्तनों की धुलाई होती थी. घर का हर कपड़ा धोया जाता था, घर की गुदरी से ले कर सारे गद्दों और रजाई के कवर तक धो दिए जाते थे, जिनका उपयोग भले ही एक बार भी न किया गया हो. उस समय महिलाएं बहुत काम करती थीं.

शापिंग का झंझट, बजट न बिगाड़ें

दिवाली के समय सब से बड़ा दूसरा काम है दिवाली की खरीदारी और बजट. महिलाओं की एक आदत यह होती है कि वे जो खरीदने जाती हैं, वह तो लेती ही हैं, उसके साथ अन्य दूसरी तमाम चीजें पसंद कर लेती हैं. जो भी देखती हैं, वही लेने का मन हो जाता है. परिणामस्वरूप जिस चीज की जरूरत नहीं होती, वह भी खरीदकर ले आती हैं. जिससे अधिक खर्च हो जाता है और बजट बिगड़ जाता है. मिडिलक्लास फैमिली को इन बातों का बहुत ध्यान रखना पड़ता है. इनके लिए बिगड़ा बजट घर में कलह पैदा करता है. कभी-कभी यह भी होता है कि कोई महिला किसी दूसरी महिला का सामान देखती है तो वह सामान लेने का उसका भी मन हो जाता है. महिलाओं में देखादेखी का महत्व अधिक होता है. यह देखादेखी मन को दुखी भी कर देता है. दूसरे द्वारा ली गई चीज हमें भी लेनी है, यह सोच कभी-कभी घर में अशांति भी पैदा करा देती है. ज्यादातर महिलाएं जब ऐसा करती हैं और किसी कारणवश वह चीज नहीं ले पातीं तो दुखी हो जाती हैं. इसकी वजह से पति से कहासुनी भी हो जाती है. इस बात का ख्याल रखें ऐसी स्थिति न खड़ी हो. याद रखें कि किसी का महल देख कर अपनी झोपड़ी न जलाएं. किसी ने लिया है और हमें भी लेना है. अगर बजट हो और वह चीज जरूरी हो, तभी खदीदें. बाकी बजट से बाहर बेकार खर्च न करें. बजट से बाहर खर्च करने पर आगे चल कर समस्या खड़ी हो सकती है.

बजट का रखें ख्याल

दिवाली के पहले हमेशा एक बजट बना लेना चाहिए. बजट के साथ ही यह भी तय कर लें कि कौन-कौन सी चीज लेनी है. जिन चीजों की जरूरत हो, उसकी एक लिस्ट बना लें. उसी लिस्ट के अनुसार ही शापिंग करें. लिस्ट के हिसाब से शापिंग करेंगी तो बेकार खर्च नहीं होगा और बजट भी नहीं बिगड़ेगा. क्योंकि शोभा में पैसा खर्च करने के बजाय उसे बचा कर रखेंगी तो वह कभी परेशानी के समय में काम आएगा. तिजोरी साजश्रृंगार की चीजों से भरी हो और पैसा न हो तो तकलीफ के समय में रोना ही पड़ेगा.

समय के साथ परंपरा भी बदलती है

आज के समय में नौकरी करने वाली महिला के पास न तो उतना समय होता है और न ही उतनी ताकत. अब महिलाओं का लक्ष्य भी बदल गया है. हम सभी को समय के साथ चलना पड़ता है. अब घड़ी की सुई के हिसाब से काम करने वाली महिलाओं के पास घर की छोटी से छोटी चीज का ढ़ंग से साफ करने का समय नहीं होता. अब सफाई के लिए बाहर से आदमी बुलाए जाते हैं. अपनी मानिटरिंग के अंतर्गत वे घर की प्राॅपर सफाई कर देते हैं. यहां कहने का मतलब यह नहीं है कि आप खुद सफाई न करें. अगर आप के पास समय है और आप का शरीर साथ दे रहा है तो आप खुद भी सफाई कर सकती हैं. बात मात्र इतनी है कि करने के लिए करना है, ऐसा करने के बजाय अगर आप के पास सुविधा है और आप के पास समय का अभाव है तो आप बाहर से आदमी बुला कर सफाई करवा सकती हैं.

शरीर और पैसे का रखें ख्याल

हम साल में न जाने कितना पैसा मात्र शौक में खर्च कर देते हैं. तब पैसे की गिनती नहीं करते. तब ऐसे में बेकार के खर्च बचा कर घर के काम और सफाई के लिए आदमी बुला सकती हैं. वैसे तो यह हर किसी की पर्सनल च्वाइस है. कुछ लोग दिवाली के काम खुद ही करना चाहती हैं. अगर आप अपने काम खुद कर सकती हैं तो इसमें कोई बुराई भी नहीं है. सवाल मात्र यह है कि शरीर को तकलीफ हो इस हद तक कोई काम नहीं करना चाहिए. कभी ऐसा भी होता है कि हम सभी काम में इस तरह लग जाती हैं कि बाद में बीमार पड़ जाती हैं. आज के समय में नौकरी करने वाले लोगों के लिए छुट्टी की परेशानी होती है. ऐसे में त्यौहार पर बीमार हो जाने पर सारा मूड खराब हो जाता है. पूरे साल भर एक ही तरह जीवन जीते हुए हम त्यौहारों में थोड़ा मौजमजा करना चाहते हैं. पर इस समय काम के ओवरलोड के कारण बीमार पड़ जाने पर त्यौहार की छुट्टी का कोई मतलब नहीं रह जाता. इसलिए जो भी करें, खूब सोच विचार कर, शरीर को ज्यादा तकलीफ न हो, तबीयत न खराब हो, इस तरह करें. जिससे त्यौहार के समय में कोई समस्या न आए.

अक्सर ऐसा होता है कि इन कामों की वजह से घर में कहासुनी हो जाती है. घर में किसी तरह का किचकिच न हो, इस बात के ध्यान रख कर दिवाली के समय में काम करें. काम की वजह से घर में कुछ खट्टामीठा न हो, संबंध में खटास न आए, इस तरह इस मामले को टैकल करें.

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अंतरिक्ष की उड़ान

रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र

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वैश्विक स्तरपर भारत जिस तेजी के साथ भारत अपनी टेक्नोलॉजी के विस्तार प्रौद्योगिकी क्षमताओं का विस्तार कर रहा है दुनियां यह देखकर हैरान है ! परंतु जब उनका ध्यान भारत के पैतृक और पीढ़ियों से गॉड गिफ्टेड में मिली बौद्धिक क्षमताओं पर जाता है तो उन्हें विश्वास करना पड़ता है कि असफलताओं से सफलताओं का रास्ता ढूंढने वाले भारत माता के सपूतों की जय हो! चंद्रयान-3 सूर्यायान की सफलता के बाद अब बारी गगनयान की है जिसके आधार पर भारत ने 2040 तक चंद्रमा पर मानवीय दल भेजने की अपनी रूपरेखा तैयार कर ली है. याने आज दिनांक 21 अक्टूबर 2023 सुबह 8 बजे भारतीय अंतरिक्ष यान के साथ पहले गगनयान कार्यक्रम की शुरुआत हो गई है. जिसकी आगे की रूपरेखा पूर्ण रूप से तैयार है. चूंकि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो)द्वारा कतारबद्द सफलताओं की श्रेणी में एक और सफलता अर्जित की है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, अंतरिक्ष की उड़ान, गगन यह ने बढ़ाया भारत का मान, भारत की मुट्ठी में होगा आसमान.

हम गगनयान कार्यक्रम की शुरुआत को देखें तो, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान (इसरो) शनिवार (21 अक्टूबर, 2023) को सिंगल स्टेज लिक्विड रॉकेट की लॉन्चिंग के जरिए पहले क्रू मॉड्यूल टेस्टिंग के साथ ही अपने महत्वाकांक्षी मानवअंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम गगनयान की यात्रा को रफ्तार देगा. यहपरीक्षण अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए यहां अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा किया गया. इसरो का लक्ष्य तीन दिवसीय गगनयान मिशन के लिए मनुष्यों को 400 किलोमीटर की पृथ्वी की निचली कक्षा में अंतरिक्ष में भेजना और उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाना है. इसरो के अन्य मिशन से इतर अंतरिक्ष एजेंसी अपने परीक्षण वाहन एकल चरण वाले तरल रॉकेट (टीवी-डी1) के सफल प्रक्षेपण का प्रयास, जिसे 21 अक्टूबर को सुबह आठ बजे इस स्पेसपोर्ट के पहले लॉन्च पैड से उड़ान भरने के लिए निर्धारित किया गया था. इस क्रू मॉड्यूल के साथ परीक्षण वाहन मिशन समग्र गगनयान कार्यक्रम के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, क्योंकि उड़ान परीक्षण के लिए लगभग पूरी प्रणाली एकीकृत है. इस परीक्षण उड़ान की सफलता शेष योग्यता परीक्षणों और मानवरहित मिशनों के लिए मंच तैयार करेगी, जिससे भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों के साथ पहला गगनयान कार्यक्रम शुरू होगा, जिसके 2025 में अमल में आने की उम्मीद है. इसमें क्रू इंटरफेस, जीवन रक्षक प्रणाली, वैमानिकी और गति में कमी से जुड़ी प्रणाली (डिसेलेरेशन सिस्टम) मौजूद हैं. नीचे आने से लेकर उतरने तक के दौरान चालक दल की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इसे पुन: प्रवेश के लिए भी डिजाइन किया गया है हम इस मिशन की सफलता,शेष परीक्षणों की तैयारी को देखें तो, इस परीक्षण उड़ान की सफलता शेष परीक्षणों और मानवरहित मिशन के लिए मंच तैयार करेगी, जिससे भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों के साथ पहला गगनयान कार्यक्रम शुरू होगा, जिसके 2025 में आकार लेने की उम्मीद है. टेस्ट वीइकल एस्ट्रोनॉट के लिए बनाए गए क्रू मॉड्यूल को अपने साथ ऊपर ले जाएगा. फिर 17 किलोमीटर की ऊंचाई पर किसी एक पॉइंट पर अबॉर्ट जैसी स्थिति बनाई जाएगी और क्रू एस्केप सिस्टम को रॉकेट से अलग किया जाएगा. इस दौरान टेस्ट किया जाएगा कि क्या क्रू एस्केप सिस्टम ठीक काम कर रहा है. इसमें पैराशूट लगे होंगे, जिनकी मदद से यह सिस्टम श्रीहरिकोटा तट से करीब 10 किलोमीटर दूर बंगाल की खाड़ी में टचडाउन करेगा. भारतीय नेवी का जहाज और डाइविंग टीम की मदद से इसे बाहर निकाला जाएगा.

हम गगनयान मिशन के लाइव प्रोग्राम टेलीकास्ट को देखें तो, अनेक निजी टीवी चैनलों सहित टीवी-डी1 परीक्षण उड़ान प्रक्षेपण का डीडी न्यूज चैनल पर सीधा प्रसारण किया गया और इसरो अपनी आधिकारिक वेबसाइट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी प्रक्षेपण का सीधा प्रसारण किया. परीक्षण के दौरान चालक बचाव प्रणाली, क्रू मॉड्यूल विशेषताएं और अधिक ऊंचाई पर गति नियंत्रण शामिल हैं. इस अभियान के माध्यम से, वैज्ञानिकों का लक्ष्य चालक दल की सुरक्षा सुनिश्चित करना है, जिन्हें वास्तव में गगनयान मिशन के दौरान एलवीएम-3 रॉकेट से क्रू मॉड्यूल में भेजा जाएगा.

हम माननीय पीएम द्वारा 17 अक्टूबर 2023 को इसरो वैज्ञानिकों से मीटिंग को देखें तो, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) 2040 तक चंद्रमा पर इंसान को भेज सकता है. 2035 तक अपना स्पेस स्टेशन बना सकता है. हालांकि इससे पहले 2025 में वह अंतरिक्ष में मानव मिशन गगनयान भेजेगा. यह टारगेट मंगलवार यानी 17 अक्टूबर को इसरो के वैज्ञानिकों के साथ पीएम की मीटिंग में तय किए गए. पीएम ने 21 अक्टूबर को भारत के पहले ह्यूमन स्पेस फ्लाइट मिशन गगनयान के क्रू एस्केप सिस्टम की टेस्टिंग की तैयारियों की जानकारी भी ली थी. पीएमओ ने प्रेस में बताया था कि भारत की पहली मानव अंतरिक्ष उड़ान 2025 में होने की संभावना है.मीटिंग में पीएम ने इसरो के वैज्ञानिकों से कहा था कि हमें 2035 तक अपना स्पेस स्टेशन बनाने और 2040 तक चंद्रमा पर मानव भेजने की योजना पर काम करना चाहिए. पीएम ने वीनस ऑर्बिटर मिशन और मार्स लैंडर पर भी काम करने को कहा था. भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो लगातार अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपना कद बढ़ाती जा रही है. कुछ ही दिन पहले पीएम ने गगनयान मिशन की तैयारियों की समीक्षा के दौरान वैज्ञानिकों के लिए नए टारगेट सेट किए. 2040 तक पहले भारतीय को चंद्रमा पर भेजने का लक्ष्य रखें. शुक्र और मंगल ग्रह के लिए भी मिशन की शुरुआत करने की बात पीएम ने कही थी. बैठक में गगनयान मिशन की तैयारियों की समीक्षा की गई थी. पीएम ने साल 2018 में स्वतंत्रता दिवस भाषण में गगनयान मिशन की घोषणा की थी. 2022 तक इस मिशन को पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था. हालांकि, कोविड महामारी के कारण इसमें देरी हुई. अब 2024 के अंत या 2025 की शुरुआत तक इसके पूरा होने की संभावना है. इसरो इस मिशन के लिए चार एस्टोनॉट्स को ट्रेनिंग दे रहा है. बेंगलुरु में स्थापित एस्ट्रोनॉट ट्रेनिंग फैसिलिटी में क्लासरूम ट्रेनिंग, फिजिकल फिटनेस ट्रेनिंग, सिम्युलेटर ट्रेनिंग और फ्लाइट सूट ट्रेनिंग दी जा रही है. इसरो भविष्य के मानव मिशनों के लिए टीम का विस्तार करने की योजना भी बना रहा है. गगनयान मिशन के लिए करीब 90.23 अरब रुपए का बजट आवंटित किया गया है.

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि अंतरिक्ष की उड़ान - गगनयान ने बढ़ाया भारत का मान - भारत की मुट्ठी में होगा आसमान.अंतरिक्ष की उड़ान भरने भारत का पहला ह्यूमन मिशन गगनयान.भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों के साथ पहले गगनयान कार्यक्रम की शुरुआत हुई - 2025 से 2040 तक की रूपरेखा की तैयारी सराहनीय है.

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'दिखावा' तेजी से फैलता एक सामाजिक रोग

रचनाकार- डॉo सत्यवान सौरभ, भिवानी

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समय के साथ बदलते समाज में दिखावे की प्रवृत्ति तेज़ी से बढ़ रही है. आजकल ज्य़ादातर लोग दूसरों के सामने अपनी नकली छवि पेश करते हैं. काफी हद तक ईएमआइ की सुविधाओं ने भी लोगों में दिखावे की इस आदत को बढ़ावा दिया है. दूसरे के पास कोई भी नई या महंगी चीज देखकर लोगों के मन में लालच की भावना जाग जाती है. फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल साइट्स की वजह से भी युवाओं में दिखावे की प्रवृत्ति बढ़ रही है. रिलेशनशिप को भी सोशल साइट्स पर दूसरों को दिखाने के लिए ही अपडेट किया जा रहा है. जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ेगी, आपके आचार, विचार और व्यवहार में गंभीरता आएगी. तब कभी आप सोचेंगे कि अगर मैं 300 रुपए की घड़ी पहनूं या 30000 की, दोनों समय एक जैसा ही बताएंगी. मैं 300 गज के मकान में रहूं या 3000 गज के मकान में, तन्हाई का एहसास एक जैसा ही होगा. सोने के लिए एक बेड ही पर्याप्त होगा. फिर आपको ये भी लगेगा कि यदि मैं बिजनेस क्लास में यात्रा करूं या इक्नामी क्लास में, अपनी मंजिल पर उसी नियत समय पर ही पहुँचूँगा. या फिर रेलवे केे स्लीपर क्लास में यात्रा करो या एसी में, ट्रेन एक ही समय में दोनों को पहुंचाएगी. इसलिए अपनी आवश्यक आवश्यकताओं पर ध्यान देना चाहिए न कि व्यर्थ के दिखावे पर फोकस करना चाहिए.

किसी भी चीज का दिखावा करने की आपको कोई जरूरत नहीं है क्योंकि इससे क्षणिक फायदा मिलता है. हमें कुछ भी काम करना है वह दूर दृष्टि को ध्यान में रखते हुए करना है. अपनी क्षमताओं को बढ़ाइए और यह सब पॉसिबल होगा जब आप अच्छी बातों को अपने जीवन में धार लेंगे. यह आप जीवन के किसी भी पड़ाव पर कर सकते हैं तो फिर दिखावे की क्या जरूरत है? इंसान को केवल अपना मानसिक संतुलन बराबर रखते हुए आत्मविश्वास की चरम प्रकाष्ठा पर पहुंचना होगा. इसमें पहुंचने का सबसे आसान तरीका है कि वह अपने को सादा जीवन और उच्च विचार वाली कहावत पर चरितार्थ करें. हमें जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए बहुत कुछ अपने अंदर बदलाव करने होंगे वह सब आसानी से कर सकते हैं सिर्फ सोच को सकारात्मक बना ले. आज का युग आधुनिक युग है, जहां हर क्षेत्र में विकास देखने को मिलता है. पूरी दुनिया पर आधुनिकता का भूत सवार हो चुका है. आधुनिकता का सीधा संबध विकास से दिखाई देता है. उद्योग से लेकर प्रयोग तक यह संसार बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है. पीछे मुड़कर देखना नहीं चाहते हैं हम इस विकास की दौड़ में हम मानवता को भूल चुके हैं. हम एक बार भी पीछे मुड़कर देखना भी नहीं चाहते हैं, जो एक बड़ी भूल साबित हो सकती है.

कहते हैं कि इतिहास अपने आप को दोहराता है, जो हमें समय-समय पर देखने को भी मिलता है. इतना होने के बावजूद हम कुछ सीखने के मूड में नहीं हैं. आज के दौर में आनलाइन प्लेटफार्म पर निजी जीवन का अनावश्यक दिखावा इस कदर बढ़ गया है कि हम जो खाएं, पीएं, घूमने जाएं, उसे आनलाइन प्लेटफार्म पर डालना जैसे हमारी ड्यूटी में शामिल हो गया है. नई चीज खरीदते हैं तो उसे फेसबुक पर अपलोड करना नहीं भूलते. परिवार के साथ छुट्टियां बिताने के दौरान खींची निजी तस्वीरों को भी लोग साझा करने से नहीं चूकते. जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ेगी, आपके आचार, विचार और व्यवहार में गंभीरता आएगी. तब कभी आप सोचेंगे कि अगर मैं 300 रुपए की घड़ी पहनूं या 30000 की, दोनों समय एक जैसा ही बताएंगी. मैं 300 गज के मकान में रहूं या 3000 गज के मकान में, तन्हाई का एहसास एक जैसा ही होगा. सोने के लिए एक बेड ही पर्याप्त होगा. फिर आपको ये भी लगेगा कि यदि मैं बिजनेस क्लास में यात्रा करूं या इक्नामी क्लास में, अपनी मंजिल पर उसी नियत समय पर ही पहुँचूँगा. या फिर रेलवे केे स्लीपर क्लास में यात्रा करो या एसी में, ट्रेन एक ही समय में दोनों को पहुंचाएगी. इसलिए अपनी आवश्यक आवश्यकताओं पर ध्यान देना चाहिए न कि व्यर्थ के दिखावे पर फोकस करना चाहिए.

आजकल केवल रहन-सहन में ही नहीं, बल्कि रिश्तों के मामले में भी लोग नकली व्यवहार करने लगे हैं. यहां तक कि प्यार जैसी कोमल और सच्ची भावना में भी अब दिखावे की मिलावट हो रही है. आज की युवा पीढ़ी में रिश्तों के प्रति पहले जैसी ईमानदारी नज़र नहीं आती. लोग मन ही मन दूसरों के बारे में बुरा सोचते हैं, पर उनके सामने अच्छा बने रहने का ढोंग करते हैं. झूठ की बुनियाद पर टिके ऐसे रिश्ते नकली और खोखले होते हैं, इसीलिए वे जल्द ही टूट भी जाते हैं. हमें अपने बच्चों को बहुत ज्यादा अमीर बनाने के लिए प्रोत्साहित करने के बजाए बहुत ज्यादा खुश कैसे रहना चाहिए ये सिखाना चाहिए. हमें भौतिक वस्तुओं के महत्व को देखना चाहिए उसकी कीमत को नहीं. दिखावे की जिंदगी से हमें बाहर आना होगा. आने वाली पीढ़ी को बताना होगा कि उनका यह समय पठन-पाठन व ज्ञानअर्जन का है. ऐसे में जरूरी है कि हम फेसबुक, वाट्सएप पर सिर्फ अपने काम की बातों से ही सरोकार रखें. वाट्सएप पर रिश्ते बनते हैं पर बिगड़ते भी हैं. गलतफहमियां होती हैं. अंतत: रिश्ते बिखरते देर नहीं लगती. बच्चों को अभिभावक जितना समय देंगे, बच्चे उतने ही संस्कारवान बनेंगे. एकल परिवार की विभीषिका झेलने पर मजबूर बच्चे एकाकीपन का समाधान मोबाइल पर ढूंढने लगते हैं. संवादहीनता से बचाव, बच्चों की बातों को सुनना व उनकी दिनचर्या का भाग होना ही उन्हें आपके प्रति आकर्षित करेगा.

हमें यह जानना होगा कि अगर समाज में दिखावे की प्रवृत्ति बढ़ रही है तो इसकी वजह क्या है? आज लोगों को पहले की तुलना में पैसे कमाने के ज्य़ादा विकल्प मिल रहे हैं. पहले लोग अपनी सीमित आमदनी में भी संतुष्ट रहना जानते थे. अब वे सोचते हैं कि हमारे पास और क्या होना चाहिए, जिससे समाज में हमारा स्टेटस ऊंचा नज़र आए. काफी हद तक ईएमआइ की सुविधाओं ने भी लोगों में दिखावे की इस आदत को बढ़ावा दिया है. दूसरे के पास कोई भी नई या महंगी चीज देखकर लोगों के मन में लालच की भावना जाग जाती है. फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल साइट्स की वजह से भी युवाओं में दिखावे की प्रवृत्ति बढ़ रही है. रिलेशनशिप को भी सोशल साइट्स पर दूसरों को दिखाने के लिए ही अपडेट किया जा रहा है. हम अपनी सभी गतिविधियों को वहां साझा करके चर्चा में बने रहना चाहते हैं. अब लोग रिश्तों के मामले में भी दिखावा करने लगे हैं. जीवन में अब पहले जैसी सहजता नहीं रही. इसी समाज का हिस्सा होने के कारण जाने-अनजाने हम सब इससे प्रभावित हो रहे हैं. इसलिए हमें सचेत ढंग से ऐसी आदत से बचने की कोशिश करनी चाहिए.

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रंगत खोते हमारे सामाजिक त्यौहार

रचनाकार- डॉo सत्यवान सौरभ, भिवानी

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बाजारीकरण ने सारी व्यवस्थाएं बदल कर रख दी है. हमारे उत्सव-त्योहार भी इससे अछूते नहीं रहे. शायद इसीलिए प्रमुख त्योहार अपनी रंगत खोते जा रहे हैं और लगता है कि त्योहार सिर्फ औपचारिकताएं निभाने के लिए मनाये जाते हैं. किसी के पास फुरसत ही नहीं है कि इन प्रमुख त्योहारों के दिन लोगों के दुख दर्द पूछ सकें. सब धन कमाने की होड़ में लगे हैं. गंदी हो चली राजनीति ने भी त्योहारों का मजा किरकिरा कर दिया है. हम सैकड़ों साल गुलाम रहे. लेकिन हमारे बुजुर्गों ने इन त्योहारों की रंगत कभी फीकी नहीं पड़ने दी. आज इस अर्थ युग में सब कुछ बदल गया है. कहते थे कि त्योहार के दिन न कोई छोटा. और न कोई बड़ा. सब बराबर. लेकिन अब रंग प्रदर्शन भर रह गये हैं और मिलन मात्र औपचारिकता. हम त्योहार के दिन भी हम अपनो से, समाज से पूरी तरह नहीं जुड़ पाते. जिससे मिठाइयों का स्वाद कसैला हो गया है. बात तो हम पूरी धरा का अंधेरा दूर करने की करते हैं, लेकिन खुद के भीतर व्याप्त अंधेरे तक को दूर नहीं कर पाते. त्योहारों पर हमारे द्वारा की जाने वाली इस रस्म अदायगी शायद यही इशारा करती है कि हमारी पुरानी पीढिय़ों के साथ हमारे त्योहार भी विदा हो गये.

कृषि प्रधान होने के कारण प्रत्येक ऋतु परिवर्तन हंसी-खुशी मनोरंजन के साथ अपना-अपना उपयोग रखता है. इन्हीं अवसरों पर त्योहार का समावेश किया गया है,जो उचित है. प्रथम श्रेणी में वे व्रतोत्सव, पर्व-त्योहार और मेले है, जो सांस्कृतिक हैं और जिनका उद्देश्य भारतीय संस्कृति के मूल तत्वों और विचारों की रक्षा करना है. इस वर्ग में हिन्दूओं के सभी बड़े-बड़े पर्व-त्योहार आ जाते है, जैसे - होलिका-उत्सव, दीपावली, बसन्त,श्रावणी, संक्रान्ति आदि. संस्कृति की रक्षा इनकी आत्मा है. दूसरी श्रेणी में वे पर्व-त्योहार आते है,जिन्हे किसी महापुरूष की पुण्य स्मृति में बनाया गया है. जिस महापुरूष की स्मृति के ये सूचक है, उसके गुणों, लीलाओं, पावन चरित्र, महानताओं को स्मरण रखने के लिए इनका विधान है. इस श्रेणी में रामनवमी, कृष्णाष्टमी, भीष्म -पंचमी, हनुमान- जयंती, नाग-पंचमी आदि त्योहार रखे जा सकते हैं.

यानि यहां हर दिन में एक त्यौहार अवश्य पड़ता है. अनेकता में एकता की मिसाल इसी त्यौहार पर्व के अवसर पर देखी जाती है. रोजमर्रा की भागती-दौड़ती, उलझनों से भरी हुई ऊर्जा प्रधान हो चुकी, वीरान सी बनती जा रही जिंदगी में ये त्यौहार ही व्यक्ति के लिए सुख, आनंद, हर्ष एवं उल्लास के साथ ताजगी भरे पल लाते हैं. यह मात्र हिंदू धर्म में ही नहीं वरन् विभिन्न धर्मों, संप्रदायों पर लागू होता है. वस्तुतः ये पर्व विभिन्न जन समुदायों की सामाजिक मान्यताओं, परंपराओं और पूर्व संस्कारों पर आधारित होते हैं. सभी त्यौहारों की अपनी परंपराएं, रीति -रिवाज होते हैं. ये त्यौहार मानव जीवन में करुणा, दया, सरलता, आतिथ्य सत्कार, पारस्परिक प्रेम, सद्भावना, परोपकार जैसे नैतिक गुणों का विकास कर मनुष्य को चारित्रिक एवं भावनात्मक बल प्रदान करते हैं. भारतीय संस्कृति के गौरव एवं पहचान ये पर्व, त्यौहार सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण हैं.

सामाजिक त्योहार और अंतर-विद्यालय सांस्कृतिक कार्यक्रम बच्चों के आत्मविश्वास और पारस्परिक कौशल के निर्माण में सहायता करने के लिए अद्भुत अवसर प्रदान करते हैं. पारस्परिक कौशल में दूसरों के साथ प्रभावी ढंग से संवाद करने और बातचीत करने की क्षमता शामिल है और आत्मविश्वास स्वयं और स्वयं की क्षमताओं में विश्वास है, जो दोनों दूसरों के साथ सकारात्मक संबंध बनाने के लिए आवश्यक हैं. सामाजिक त्योहार विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं और परंपराओं के संपर्क में लाते हैं, जो उनके क्षितिज को व्यापक बना सकते हैं और उन्हें दूसरों के प्रति सहानुभूति और समझ विकसित करने में मदद कर सकते हैं. नए दोस्त और संपर्क बना सकते हैं, जो समुदाय से अधिक जुड़ाव महसूस करने और अपनेपन की भावना विकसित करने में मदद कर सकते हैं. ये आयोजन इसे विकसित करने का एक शानदार तरीका है क्योंकि वे बहुत सारे लोगों को एक साथ लाते हैं, और इस तरह एकता और भाईचारे की भावना पैदा करते हैं. ये जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों के प्रति अधिक स्वीकार्य, सहिष्णु और समावेशी होना सिखाते हैं.

बाजारीकरण ने सारी व्यवस्थाएं बदल कर रख दी है. हमारे उत्सव-त्योहार भी इससे अछूते नहीं रहे. शायद इसीलिए प्रमुख त्योहार अपनी रंगत खोते जा रहे हैं और लगता है कि हम त्योहार सिर्फ औपचारिकताएं निभाने के लिए मनाये जाते हैं. किसी के पास फुरसत ही नहीं है कि इन प्रमुख त्योहारों के दिन लोगों के दुख दर्द पूछ सकें. सब धन कमाने की होड़ में लगे हैं. गंदी हो चली राजनीति ने भी त्योहारों का मजा किरकिरा कर दिया है. हम सैकड़ों साल गुलाम रहे. लेकिन हमारे बुजुर्गों ने इन त्योहारों की रंगत कभी फीकी नहीं पड़ने दी. आज इस अर्थ युग में सब कुछ बदल गया है. कहते थे कि त्योहार के दिन न कोई छोटा. और न कोई बड़ा. सब बराबर. लेकिन अब रंग प्रदर्शन भर रह गये हैं और मिलन मात्र औपचारिकता. हम त्योहार के दिन भी हम अपनो से, समाज से पूरी तरह नहीं जुड़ पाते. जिससे मिठाइयों का स्वाद कसैला हो गया है. बात तो हम पूरी धरा का अंधेरा दूर करने की करते हैं, लेकिन खुद के भीतर व्याप्त अंधेरे तक को दूर नहीं कर पाते. त्योहारों पर हमारे द्वारा की जाने वाली इस रस्म अदायगी शायद यही इशारा करती है कि हमारी पुरानी पीढिय़ों के साथ हमारे त्योहार भी विदा हो गये.

हमारे पर्व त्योहार हमारी संवेदनाओं और परंपराओं का जीवंत रूप हैं जिन्हें मनाना या यूँ कहें की बार-बार मनाना, हर साल मनाना हर समाज बंधु को अच्छा लगता है. इन मान्यताओं, परंपराओं और विचारों में हमारी सभ्यता और संस्कृति के अनगिनत सरोकार छुपे हैं. जीवन के अनोखे रंग समेटे हमारे जीवन में रंग भरने वाली हमारी उत्सवधर्मिता की सोच मन में उमंग और उत्साह के नये प्रवाह को जन्म देती है. हमारा मन और जीवन दोनों ही उत्सवधर्मी है. हमारी उत्सवधर्मिता परिवार और समाज को एक सूत्र में बांधती है . संगठित होकर जीना सिखाती है . सहभागिता और आपसी समन्वय की सौगात देती है . हमारे त्योहार, जो हम सबके जीवन को रंगों से सजाते हैं, सामाजिक त्यौहार एक अनूठा मंच प्रदान करते हैं इनमे साथियों के साथ सहयोग करने, मिलने और सामूहीकरण करना, अपनी प्रतिभा दिखाने और विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं के बारे में सिखाने और सीखने की क्षमता होती है. ये कौशल हमारे जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा हैं और अक्सर हमारे जीवन के लगभग सभी पहलुओं के मूल में होते हैं.

इसलिए, वर्तमान समय में इनकी प्रासंगिकता का जहां तक प्रश्न है, व्रत -त्यौहारों के दिन हम उक्त देवता को याद करते हैं, व्रत, दान तथा कथा श्रवण करते हैं जिससे व्यक्तिगत उन्नति के साथ सामाजिक समरसता का संदेश भी दिखाई पड़ता है. इसमें भारतीय संस्कृति के बीज छिपे हैं. ''पर्व त्यौहारों का भारतीय संस्कृति के विकास में अप्रतिम योगदान है. भारतीय संस्कृति में व्रत, पर्व -त्यौहार उत्सव, मेले आदि अपना विशेष महत्व रखते हैं. हिंदुओं के ही सबसे अधिक त्योहार मनाये जाते हैं, कारण हिन्दू ऋषि - मुनियों के रूप में जीवन को सरस और सुन्दर बनाने की योजनाएं रखी है. प्रत्येक पर्व - त्योहार, व्रत, उत्सव, मेले आदि का एक गुप्त महत्व हैं. प्रत्येक के साथ भारतीय संस्कृति जुडी हुई है. वे विशेष विचार अथवा उद्देश्य को सामने रखकर निश्चित किये गये हैं. मूल्यों को पुनः प्रतिष्ठा के लिए मूल्यपरक शिक्षा की आवश्यकता पर विशेष बल दिया गया है. मूल्यपरक शिक्षा आज समय की मांग बन गई है. अतः इसे शीघ्रतिशीघ्र लागू करने की आवश्यकता है. वर्तमान डिजिटल युग में लोग अपनी सभ्यता-संस्कृति को भूलते जा रहे हैं.

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देवारी तिहार

रचनाकार- गीता द्विवेदी, बलरामपुर

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हमर सरगुजा में वइसे तो कइयों गो तिहार मनाल जाएल, जेमे करमा, छेरता, दसराहा, नवा खाई. अउ गनेश पूजा, दुर्गा पूजा, गोबरधन पूजा, नवरात घलो खूबे धूमधाम ले मनाल जाएल, चाहेक गाँव कि शहर जम्मों बाट लोगमन अब्बड़ हँसी- खुसी ले नाच-गा के मनाथें. ओही में एजग के एगो अउ परमुख तिहार हवे, देवारी तिहार. देवारी तिहार जम्मो देश कर तिहार हवे. जेनहर कातिक महिना के अमावस के मनाल जाथे. अइसन कहल जाएल कि भगवान् राम जी, देवी सीता अउ लगाने संघे बनवास के थोरेक दिन सरगुजा हों में घलो बिताए रहिन. भगवान् राम रावन ला मायेर के देवी सीता अउ भाई लछमन संघे अयोध्या लउट के आए रहिन. तेकर अयोध्या के लोगमन दीया जराय के भगवान राम के भुगतान करे रहिन. ते परमपरा हर तइहा जुग ले चलल आथे. अउ आयेज ले दसराहा में रावन जराल जायेल, कातिक अमावस के देवारी तिहार मनाल जाएल.

ए तिहार के तइयारी महिनाभर पहिले ले शुरू हो जाएल. चारों कती साफ़-सफाई, लिपाई-छबाई में घर के सभे झन लायेग जाथें. घर- दुरा ला करिया माटी, छुही माटी, गोबर, अउ दुसर-दुसर रंग ले रँग-पोत के जगमगाय देखें. नोनी, बहुरियामन दुरा मे़्ं रंगोली घलो बनाथें. केला के पेड़ कर खम्भा गाड़थें आमा पतई अउ गोंदा फूल ले सब कती सजाथें. ओ दिना घर के सब झन नवा-नवा, अंगा, लुगा कपड़ा पिंध के राती लछमी दाई के पूजा करथें. तेकर परसादी में लाई-बतासा, मिठाई बाँट थें खाथें. पटाखा फोरथें.

अइसने हमर सरगुजा में घलो देवारी तिहार ला जम्मो झन मिलजुल के भगति- परेम ले मनाथें.

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रोजगार

रचनाकार- राजेन्द्र जायसवाल (सूरजपुर)

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हर व्यक्ति के लिए रोजगार परम आवश्यक व्यवस्था है, सामाजिक जीवन सम्मान के साथ चलाने के लिये जरूरी है. क्या नौकरी ही रोजगार है. वह भी सरकारी हो, क्या संविधान में लिखा है. या जो शिक्षा हमने ग्रहण की है.वह हमें नौकर बनाने के अलावा कोई ज्ञान नहीं देती है.जब वर्ण व्यवस्था की बात करते हैं.तो नौकर होना शुद्र का काम है. पर हमने ज्ञान अपने ज्ञान के भण्डार शास्त्रों से तो लिया नहीं है. हमने ज्ञान वहां से लिया जो हमें नौकर बनाकर अपने नीचे दबाये रखना चाहते थे. वह तो चलें गये पर गुलामी की मानसिकता इतने अन्दर तक बैठा गये की रोजगार का मतलब नौकरी के अलावा और कुछ सूझता ही नहीं है.

दुनिया में करोड़ों लोग हैं, जिन्होंने जीवन के बंजर में बीज रोपा और जी-जान से मेहनत कर उद्योग,व्यापार, कारपोरेट, खड़े किये क्या वें बेरोजगार हैं. या हजारों को रोजगार देने वाले हैं.जो बलिदान होने को तत्पर होता हैं वहीं अमरता पाता है, नाम कमाता है. नौकरी ही रोजगार नहीं है. सही रास्ते चलकर धन कमाने के सभी साधन रोजगार है.

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अनमोल उपहार

रचनाकार- शांति लाल कश्यप, कोरबा

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मेरे स्कूल के बच्चों को पता ही नहीं था कि आज मेरा जन्मदिन है पता नहीं ऐसे ही अचानक कक्षा पांचवी के छात्र प्रवीण यादव ने पूछा कि सर जी आपका जन्मदिन कब है? मैंने सोचा बच्चों को किसी ने बता दिया है कि आज मेरा जन्मदिन है. मैनें कहा आज ही मेरा जन्मदिन है. फिर सभी बच्चे आपस में खुसूर - फुसूर करने लगे. फिर कुछ देर बाद बच्चों ने कहा सर जी सही- सही बताईये ना. फिर मैंने कहा सच में आज मेरा जन्मदिन है और उनको अपने मोबाईल वाट्सऐप में शिक्षक साथियों द्वारा दी गई बधाई को उनको बताया. फिर सभी बच्चे खुश हो गये.

सही मायने में जन्मदिन की बधाई और उपहार क्या होता है आज मुझे मेरे बच्चों से सीखने को मिला जिसको मैं आप लोगों से शेयर करना चाहता हूं.

मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि बच्चों ने मेरे जन्मदिन के लिए पहले से सोच कर रखा था. प्रवीण यादव और लक्ष्य यादव जिसने मेरे जन्मदिन के लिए बहुत दिन पहले से ही उपहार खरीद कर रखा था. जैसे ही सभी बच्चों को क्लीयर हुआ कि मेरा जन्मदिन आज ही है सबने एक स्वर में HAPPY BIRTHDAY TO YOU SIR JI कहकर मुझे बधाई दिया. फिर क्या था सबने मुझे उपहार में कुछ ना कुछ दिया.

प्रवीण,लक्ष्य,दीपक और देवधर इनका उपहार सबसे अलग था जिसे मैं आपके समक्ष बताने जा रहा हूँ. प्रवीण यादव जिसे पता चला कि आज मेरा जन्मदिन है वह बहुत खुश हो गया और तुरंत एक पेन लाकर मुझे गिफ्ट करने लगा. मैंने पूछा तुरंत कहाँ से खरीद लिए तब उसने बताया कि सब का जन्मदिन आता है फिर हमारे गुरुजी का भी कभी ना कभी जन्मदिन जरूर आयेगा. ऐसा सोचकर मैनें बहुत पहले से आपके जन्मदिन गिफ्ट के लिए एक पेन खरीद कर रखा था. उसे रोज अपने साथ स्कूल ला रहा था सर जी. मुझे सुनकर बड़ा ही आश्चर्य हुआ.

इसी कड़ी में लक्ष्य यादव ने मुझे हैप्पी बर्थडे सर जी कहकर एक लाल पेन गिफ्ट किया.उसका कहना है कि सर जी आप रोज हमारा गृहकार्य जांचते हो आज से आप इसी लाल पेन से हमारा गृहकार्य जांचना मुझे बहुत अच्छा लगेगा.

दीपक और देवधर का मेरे लिए बर्थडे उपहार मेरे जन्मदिन का सबसे अनमोल उपहार था. उनके पास मुझे देने के लिए कुछ भी नहीं था. दोनों आपस में कुछ बात किये और मुझसे पानी पीने के लिए छुट्टी मांग कर स्कूल अहाता के पास छीता के पेंड से दो कच्चा छीता मुझे गिफ्ट किये.मैनें फोटो लेने के लिए दोनों को अपने पास बुलाया. संकोचवश देवधर ने मेरे साथ फोटो नहीं लिया. अपने स्थान पर उसने लक्ष्य को फोटो के लिए भेज दिया. मैं उन दोनों की प्रेम से दी गई सच्ची उपहार को पाकर बहुत आनंदित हुआ. मैं इन दोनों के प्रेम को कभी भूल नहीं पाऊंगा.

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माँ

रचनाकार- हिमकल्याणी सिन्हा, बेमेतरा

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माँ ममता का अथाह सागर है, सब में श्रेष्ठ माँ है, शब्द कोष में मात्र माँ का शब्दार्थ मिले पर माँ का भावार्थ तो हृदय कोष में ही मिले, माँ तो ईश्वर की प्रतिनिधि है, माँ अर्थात प्रेम की यूनिवर्सिटी है, माँ का एक ही अर्थ होता है वो है माँ का चेहरा, भगवान से प्रार्थना करते छोटे बच्चें को पूछे की भगवान का चेहरा कैसा है तो उसका वर्णन उसकी माता जैसे होगा, माँ दुनिया की सबसे आसान और अनमोल शब्द है, बच्चों की उन्नति और प्रगति में माँ ही सबसे ज्यादा ख़ुश होती है और बच्चों के गलत रास्ते पर जाने से माँ ही सबसे ज्यादा दुःखी होती है, माँ बच्चों की प्रथम शिक्षक होती है जिन्हे अपने बच्चों की भलाई और बुराई का भली भांति ज्ञान रहता है, माँ तो वो सागर है जिनकी ममता कभी खत्म नहीं होती, माँ बूढ़ी भी हो जाए तो भी अपने बच्चों के लिए ममता कम नहीं होती, बड़ी अरमानो से माँ अपनी बच्चों को पालती है, माँ को दुःख देना मतलब भगवान को दुःख देना है, इसलिए माँ का सम्मान करे कोई भी ऐसा काम न करे जिससे माँ का दिल दुखे उन्हें रोना पड़े क्योंकि सबके नसीब में माँ नहीं होती, माँ तो बड़ी किस्मत से मिलती है.

'अगर हम शब्द है तो वो पूरी भाषा है
माँ की बस यही परिभाषा है'

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मेरा छोटा सा परिवार

रचनाकार- चांदनी यादव, कक्षा चौथी शासकीय प्राथमिक शाला निपानिया संकुल केंद्र कन्या बिल्हा, बिलासपुर

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मेरा नाम चांदनी यादव है. मैं कक्षा चौथी में शासकीय प्राथमिक शाला निपानिया में पढ़ती हूं. मेरा परिवार एक छोटा सा परिवार है. मेरे परिवार में चार सदस्य है, मम्मी - पापा , मेरे भाई और मैं रहते हैं . मेरा पापा एक ट्रक ड्राइवर है. मेरे पापा मेरे परिवार के मुखिया है. मेरी मम्मी गृहणी है जो हमारे देखरेख करती है. मैं और मेरे भाई गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ाई करते हैं हम दोनों भाई-बहन को मम्मी - पापा सुबह - शाम पढ़ते हैं और खेलाते हैं. हम दोनों भाई-बहन को बहुत पढ़ना अच्छा लगता है . मुझे मेरे परिवार बहुत प्यारा लगता है.

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मेरा बगीचा

रचनाकार- समर यादव , कक्षा चौथी शासकीय प्राथमिक शाला निपानिया संकुल केंद्र कन्या बिल्हा, बिलासपुर

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मेरा बगीचा बहुत ही सुंदर है . बगीचा हमारे घर के बिल्कुल बाहर है. उसमें कई तरह के रंग-बिरंगे फूल और मज़ेदार फल है. हमारे बगीचे में कई तरह की सब्जियां भी लगी हुई है. हमारा बगीचा हरा-भरा और साफ सुथरा. उसमें हर तरह के पौधे हैं . मेरे बगीचे में खेलने के लिए झूले भी है. मैं अपने दादा के साथ रोज बगीचे के पौधों को पानी देता हूं. मैं अपने बगीचे में रोज सैर करने जाता हूं. मुझे मेरा बगीचा बहुत पसंद हैं.

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