चित्र देख कर कहानी लिखो
पिछले अंक में हमने आपको यह चित्र देख कर कहानी लिखने दी थी–
हमें जो कहानियाँ प्राप्त हुई हम नीचे प्रदर्शित कर रहे हैं
संतोष कुमार कौशिक, मुंगेली द्वारा भेजी गई कहानी
दिवाली के वे दिन
रीता एक गरीब परिवार में जन्मी हुई होनहार लड़की है. रीता की मां कुछ दिन पहले ही स्वर्ग सिधार गई है.जिसके कारण रीता हमेशा परेशान रहती है. पिताजी,दो वक्त की रोटी के लिए इधर-उधर भटकते रहते हैं.बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी का इंतजाम होता है.उसके पिताजी को चिंता सताए जा रही थी.कि कुछ दिन के बाद दीपावली का त्यौहार है.जिसमें गांव के सभी बच्चे नए-नए कपड़े पहनेंगे, पटाखे फोड़ेंगे और फुलझड़ियां जलाएंगे.लेकिन मेरी रीता,उन सबको देखकर दुःख होगा.मैं चाहते हुए भी रीता के लिए नए कपड़े एवं पटाखे नहीं खरीद पा रहा हूँ.तभी रीता अपने पिताजी को उदास देखकर कहती है- पिताजी आप क्या सोच रहे हैं?आपका चेहरा चिंतित दिखाई दे रहा है.तभी उसके पिताजी कहते हैं-बेटा कुछ दिन बाद दिवाली का त्यौहार आने वाला है.गाँव के सभी बच्चे नए-नए कपड़े पहनेंगे,फटाका फोड़ेंगे, फुलझड़ियां जलाएंगे और मैं आपके लिए कुछ नहीं ले पा रहा हूँ.जिसकी वजह से मैं उदास हूँ. रीता कहती है-आप चिंता ना करें, मुझे कुछ नहीं चाहिए.हम लोग घर में लक्ष्मी माँ की प्रतिमा है. दिवाली के दिन उसी का पूजा करेंगे.लक्ष्मी माँ ही हमारे दुःखों को दूर करेंगी.बेटी की समझदारी को देखकर उसके पिताजी का आंख भर जाता है.उसका चिंता दूर हो जाता है और वह अपने काम में लग जाते है.
गाँव के मुखिया की बेटी गीता,रीता की अच्छी सहेली है.वह रीता के परिवार के स्थिति के बारे में जानती है.वह रीता के उदासीपन को दूर करने के लिए बाहर घूमने के लिए ले जाती है और खुशखबरी देती है कि मेरे पिताजी दिवाली के दिन एक बहुत बड़ा कार्यक्रम करेंगे.जिसमें रंगोली एवं दीप सजावट का प्रतियोगिता होगा. जिसमें गाँव के सभी बच्चे उसे प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं.जो भी प्रतियोगिता में प्रथम आएगा उसे इनाम दिया जाएगा.चूंकि गीता जानती है कि उसकी सहेली रीता,रंगोली बनाने में दक्ष है.इस कारण उसे प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए प्रेरित करती है.तभी रीता कहती है-गीता बहन!अभी मेरा मन नहीं है और नहीं मेरे पास रंगोली बनाने के लिए रंग है.मेरे परिवार की स्थिति को आप जानते ही हैं.तभी गीता कहती है-आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है.वहाँ जो भी चीजों की आवश्यकता होगी,उसकी व्यवस्था मैं कर दूंगी.मैंने आपका नाम प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए दर्ज करा चुकी हूँ. रीता अपनी सहेली की कहे हुए बातों का सम्मान करती है.रीता और गीता तैयार होकर प्रतियोगिता हो रहे हैं उसे स्थान में पहुँचते हैं.
कुछ क्षण पश्चात रंगोली का प्रतियोगिता प्रारंभ होता है. प्रतियोगिता में भाग लिए बच्चे रंगोली बनाने में जुट जाते हैं.सभी कोई बहुत ही सुंदर ढंग से रंगोली बनाते हैं.कोई रीति रिवाज का, कोई परंपराओं का,कोई लोकगीतों से संबंधित,तो कोई त्यौहार से संबंधित अपने रचनात्मक कौशल को प्रदर्शित करते हैं.थोड़ी देर बाद गाँव के मुखिया एवं प्रतियोगिता के चयन कर्ता बारी-बारी से सभी के रंगोली को निरीक्षण करते हैं.सभी का रंगोली बहुत ही प्रेरणादायक थी. रीता की रंगोली दिवाली त्योहार से संबंधित था.रीता ने पटाखा फोड़ते एवं फुलझड़ियां जलाते हुए बच्चों का चित्र बनाया था.जिसे सभी को बहुत ही पसंद आया.निरक्षण करने के पश्चातअब बारी थी इनाम के घोषणा करने की, सभी प्रतिभागी दिल थाम कर अपने-अपने जगह पर बैठे थे.हृदय की गति बढ़ी हुई थी.तभी मुखिया के द्वारा कुमारी रीता का नाम रंगोली में प्रथम आता है.सभी कोई ताली बजाते हैं और रीता को ढेर सारा इनाम एवं पैसा मिलता है. बचे हुए प्रतिभागी को सांत्वना पुरस्कार देते हैं.थोड़ी देर पश्चात दीप प्रतियोगिता होता है.जिसमें चारों ओर बच्चे दीप को सजाए रहते हैं दीपों की चमक ऐसा लग रहा था, मानो जैसे भगवान श्री राम वहाँ पहुँच गए हो और उसके लिए चारों तरफ से दीप सजाकर रखें हैं.दीप प्रतियोगिता में भाग लिए सभी प्रतिभागी को मिठाई का पैकेट देते हैं सभी खुशी से अपने-अपने घर चले जाते हैं.
रीता,गीता को धन्यवाद देती है.जिसकी वजह से वह प्रथम आई.गीता,रीता को अपने पिता जी के पास ले जाते हैं और उसका परिचय कराते हैं.गीता के पिताजी अपने तरफ से रीता को नए कपड़े एवं ढेर सारा गिफ्ट देते हैं और रीता को कहते हैं-बेटा,आपको कभी भी कोई भी चीजों की आवश्यकता होगी तो आप यहाँ आ सकती हो.आप गीता की तरह मेरी बेटी के समान हो.रीता,उसे धन्यवाद देते हैं और खुशी-खुशी से घर आकर अपने पिताजी को सारी बातों की जानकारी देती हैं.पिताजी कहते हैं बेटा,देवी माँ ने ही गीता के रूप में हमारे जरूरतों की पूर्ति किया हैं.उस लक्ष्मी माँ को बहुत-बहुत धन्यवाद जिनका आशीर्वाद हम पर हमेशा बना रहे.
बच्चों आप सब जानते ही हैं कि दीपावली का त्यौहार असत्य पर सत्य की जीत और अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है.केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है बल्कि इसका सामाजिक, आध्यात्मिक,पौराणिक, ऐतिहासिक और आर्थिक महत्व भी है.यह त्यौहार सामाजिक एकता को बढ़ाने का कार्य करता है.
हालांकि दिवाली के त्यौहार का एक दूसरा पहलू भी है,जिसे हम अपने आनंद के लिए वर्ष-प्रतिवर्ष बढ़ावा देते जा रहे है.वो दूसरा पहलू है,आतिशबाजी और पटाखे फोड़ना.यह एक ऐसा कार्य है,जिसका दिवाली के त्यौहार से कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है और ना ही दिवाली के त्यौहार में इसका कोई ऐतिहासिक और पौराणिक वर्णन है,इसके साथ ही दिवाली पर होने वाली इस आतिशबाजी के कारण दिन-प्रतिदिन पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि होती जा रही है.इसके स्थान पर रंगोली,खेलकूद, दीप सजावट आदि प्रतियोगिता पर ध्यान देना चाहिए.
अगले अंक की कहानी हेतु चित्र
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