छत्तीसगढ़ी बालगीत
चलत हे धान लुवई
रचनाकार- अशोक कुमार यादव मुंगेली
खेत के बोंवाए धान ह पाकगे,
हँसिया धर के निकले बनिहार.
पागी खोंच के लुवत हें जम्मों,
बिकट सोन उगले खेती-खार.
सिला बिनत हें गाँव के टूरी-टूरा,
पसर-पसर गबके लाडू अउ मुर्रा.
सुकसी मछरी के साग ह सुहावय,
जाड़ म हनय डोकरा बबा मेछर्रा.
माईलोगिन डोहारे बोझा बाँधके,
टूरा पिला मन खांध म धरे हें सुर.
रचमच-रचमच बइला-गाड़ी आगे,
कोठार म खरही गंजे परबत लुर.
अधिरतिया म किसान दउरी फांदे,
झरे धान के करे बिहनिया ओसाई.
पंखा के हावा ले उड़ागे बदरा मन,
पोठ-पोठ बीजा के करय नपाई.
कोठी-डोली म लछमी के होगे बास,
तिहार मनाए के चलय खूब तियारी.
नवा चाउर के सोहारी अउ दूधफरा,
रंधनही खोली म बनावत हे सुवारी.
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राउत के दोहे
रचनाकार- अशोक कुमार यादव मुंगेली
आगे तिहार देव उठनी के, मंडप बनायेंव कठई के हो.
कोहड़ा के पकुवा फदकाके, जेंवाबो कान्हा, तुरसी ल हो.
सिरी किसना के जय बोलावंव, पाँव परौंव हाथ जोर हो.
घेरी-बेरी मैंय माथा नवावंव, जम्मों कोती करदे अंजोर हो.
खुमरी ओढ़ के बँसुरी बजावय, खेत-खार म यादव हो.
धोतिया अउ जाकिट ह फभय, लहुट-पहुट के आवय हो.
पहट चराके आवय पहटिया, बरदी चराके बरदिहा हो.
दोहनी म दूध दूहय, खाँड़ी म चुरोवय अधिरतिया हो.
अहीरा नाचे टोली संग म, पारे सिंगार, मया के दोहा हो.
क्षत्रिय कुल के यदुवंशी आवैंय, कोनों नइ लैंय लोहा हो.
खोड़हर देव के पूजा करैंय, राउत मन जाग के मातर हो.
गड़वा बाजा के धुन म थिरके, सजे धरे लाठी पातर हो.
परसा जरी के सुहई बनयेंव, मोर पांखी ले सजायेंव हो.
अमरीत कस गोरस देवइया, गऊ माता ल पहिरायेंव हो.
देवत हन आसिस तुंहला, अन्न-धन खूब बाढ़य घर म हो.
लाख बरीस जीयव सबो झन, सुख जिनगी के तर म हो.
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मुंगेसर के फूल
रचनाकार- अशोक कुमार यादव मुंगेली
मोर गियां ह खोपा म खोंचे हे मुंगेसर के फूल.
बारी घुमेला जावत हे, कान म झूलत हे झूल.
तरी दिखे पिंयर-पिंयर, आगु जामुनी पंखुरिया.
लमरी-लमरी फरे हवय, हरियर-हरियर बीजा.
फुरफुंदी अउ तितली मन उड़ावैंय बनके सहेली.
ममहावत हे मोंगरा असन, भौंरा पुछत हे पहेली.
पुरवर्ई म डोले पातर कनिहा, संग म झूमरे पाना.
लाली चोंच वाले सुआ ह मया के गावत हे गाना.
चिरई-चुरबून मन बिकट नाचत हें फूदुक-फूदुक.
साँप ह बिला ले निकल के धिड़काथे बाजा गुदुम.
कोयली अउ मैना घलोक पिरीत के टेही अलापे.
अपन मयारू परानी के बिसरना ह नगत बियापे.
आँसू ढरकावैंय चरोटा, चेंच, बोरझरिया, ढनढनी.
बोम फार के रोवत हें तीर म कांदी, गोंदा, बेमची.
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बंदर के किस्सा
रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू', गरियाबंद
चढ़े पेड़ मा बंदर मामा,अब्बड़ खावैं ओहर आमा.
संझा–बिहना कूदय डारा,घूमय दिनभर पारा–पारा.
खीस–खीस ले दांँत दिखाये,नान–नान लइका डर्राये.
लूटय जम्मों खई–खजानी,नइ मांँगय कोनो ले पानी.
अपन पिला ला पीठ चघाये,पुचकारत वो मया दिखाये.
नहीं कलेचुप बंदर बइठे,कोनजनी काबर बड़ अइठे.
कोरी भर राहै संँगवारी,जाये सँघरा कोला बारी.
छिदिर –बिदिर कर के सब जावैं,जाम पपीता छीता खावैं.
भेद–भाव बंदर नइ जाने,इक दूसर ला अपने माने.
जीयत भर ले साथ निभावैं,बिपत परे मा आगू आवैं.
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जाड़ के जादू हे
रचनाकार- अशोक कुमार यादव मुंगेली
ठंडा-ठंडा चले पुरवई, बरसत हवय गुंगुर.
जाड़ के दिन म हाथ-पाँव ह जावथे चंगुर.
जुन्ना सेटर संदूक भीतरी सूते खटखटावत हे.
कथरी, चद्दर अउ कमरा मन बकबकावत हे.
साल, कंटोप, बेंदरा टोपी, गलबंधनी ह हाँसे.
हतथा अउ मोजा ह लुकाके खिरकी ले झाँके.
बिलई लुकागे गोड़ा म, कुकुर खुसरगे कोनहा.
छेरी, गरुवा कोठा म सपटगे, देखत हे कोटना.
चिरई बईठे खोंधरा म, साँप, मुसवा मन बिला.
तरिया म तउंरे मछरी, बघवा के देंह होगे ढिला.
बरफ अउ करा जईसे गउकिन लागत हे पानी.
पोटा काँपैय नहाए बर, धरसा जोहथे नहानी.
सँझा जुहर गोरसी ल भरथें डोकरी-डोकरा.
कुनकुनावत सुतथें संगी खटिया हे झोलगा.
खुरा के भोकंड ढेकुना करथे जी कुसूर-मुसूर.
परानी मन ओढ़े गोठियाथें खूब फुसूर-फुसूर.
रात म ओढ़ना के चलत हे झिंकी-के-झिंका.
तापैंय भूरी बारके बिहनिया जुहर माई पिला.
तात करे पंजा घंसर के, मुँह के धुआँ बेकाबू हे.
गाँव, सहर म ए बछर बिकट जाड़ के जादू हे.
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गंगा अमली के रुख म
रचनाकार- मीनाक्षी शर्मा, भाटापारा
कहाँ जाबे रे परदेशी
टेहर्रा तैं भुख म.
आ जाबे मोर घर पिछोत
गंगा अमली के रुख म।
ए डारा के जम्मो पंछी
पड़की अऊ परेवा
राखही अपन घर म
बना के तोला दुलरवा
दुसर रुख के कोनो चिरई
कहाँअ इसन सुख म।
कहाँ जाबे रे परदेशी टेहर्रा.
गंगा अमली गुदा मिठ के
थोकिन देख तो तैं चिखके
एकर सुवाद म तैं अपन
भुला जाबे सरी दुख ल
कहाँ जाबे रे परदेशी टेहर्रा.
ए रुख के छँइया
अऊ ये गांव के भुँइया एकर सुरता ल परदेशी
ले जाथे अपन संदुक म
कहां जाबे रे परदेशी टेहर्रा.
सोज सोज म जाबे जे डहर
महानदी के बोहावत हे
नहर
पाबे अमृत के सुवाद
डारे जे बूँद मुख म
कहाँ जाबे रे परदेशी टेहर्रा.
नहर के खालहे उतर के देख
हरियर हरियर खेते खेत
ओ पार दुसर गाँव के शिकारी
झन तुके तोला बंदूक म
कहाँ जाबे रे परदेशी
टेहर्रा तैं भुख म.
आ जाबे मोर घर पिछोत
गंगा अमली के रुख म
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आईस पूस पुन्नी के तिहार्
रचनाकार- रुद्र प्रसाद शर्मा , रायगढ़
आईस पूस के तिहार.
छाईस पूस के बहार.
🍧🍧🍧
गोर्रा ह बनय पैंरा के गदिया ,
कुहरा शीशर खेत खार नदिया.
सुलसली बईहर के धार.
आईस पूस के तिहार.
छाईस पूस के बहार.
🍧🍧🍧
अर्रर्र तततत बैला के गाड़ा.
धान डोहारय पूस के जाड़ा.
धान गादा जम्मो कोठार.
आईस पूस के तिहार.
छाईस पूस के बहार.
🍧🍧🍧
भैंसा पड़वा जुआ म फान्दय .
सुमेला डोरा के नाहना बान्धय.
टेकनी ,टट्टा, तुतारी औजार.
आईस पूस के तिहार.
छाईस पूस के बहार.
🍧🍧🍧
धरती महतारी धान देवय.
किसान ह साजय सेवय.
पिंवर सेरसों फूल के सिंगार.
आईस पूस के तिहार.
छाईस पूस के बहार.
🍧🍧🍧
पुस पुन्नी म बनय रोटी पीठा.
देढ़ौरी , खुरमी , अईरसा मीठा.
पुस म साग भाजी भरमार.
आईस पूस के तिहार.
छाईस पूस के बहार.
🍧🍧🍧
गांव के लईका मांगयॅ छेरछेरा.
तोर् कोठार के धान हेरहेरा.
देवईया के करयॅ जै जै कार.
आईस पूस के तिहार.
छाईस पूस के बहार.
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आ मैना आ
रचनाकार- रुद्र प्रसाद शर्मा , रायगढ़
हमर सुग्घर रईपुर म ,
आ मैना आ आ आ.
पाके जाम , चार , केन्दू
खा खा खा.
आ मैना आ आ आ.
🕊️🕊️🕊️
उड़िहावत आबे बूढ़ापारा.
पीपर रुख म बनाबे घारा.
पसार के अपन डेना
ला ला ला.
आ मैना आ आ आ.
🐧🐧🐧
चोंच हवय तोर सुग्घर भारी.
मया करय छत्तीसगढ़ महतारी.
देखके तोला कहंयं जम्मो
वा वा वा.
आ मैना आ आ आ.
🐦🐦🐦
मोरे बोलत मैना आ उड़ि के.
परदेसिया चलती डगर मुड़ि के.
दूसर देस ल कभु झनि
जा जा जा.
आ मैना आ आ आ.
🐥🐥🐥
बस्तर के पहिचान तैं,
छत्तीसगढ़िया अभिमान तैं.
गा ले तहूं जय जोहार
गा गा गा.
आ मैना आ आ आ.
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जय होय स्वामी विवेकानन्द
रचनाकार- रुद्र प्रसाद शर्मा ,रायगढ़
भुवनेश्वरी ,विश्वनाथ के नन्द.
नरेन्द्र के नाम ,ख्यात होईन विवेकानन्द.
जय होय स्वामी विवेकानन्द.1.
🙏🙏🙏
ज्ञान अऊ कर्म योग के दाता.
रामकृष्ण तुँहर गुरू पितु माता.
वेदान्त के गोठ जेन ल जिनगी म रहिस पसन्द.
जय होय स्वामी विवेकानन्द.2.
🙏🙏🙏
सत्य के भाव ले भर के जीव के सेवा .
जगत ल सिखाईन विवेकानन्द देवा.
सन्यास अऊ शिवोहम के कंठस्थ जम्मो छन्द.
जय होय स्वामी विवेकानन्द.3.
🙏🙏🙏
दुनियाँ ल भाई-बहिनी के नाता सिखोईया.
इंसानियत,सतकरम के डगर देखोईया.
कभू नईँ विषम जेन ह सदा रहय निर्द्वन्द्व.
जय होय स्वामी विवेकानन्द.4.
🙏🙏🙏
बताईन सेवा नर रुप म नरायन के .
सिखाईन अग्निमंत्र आत्मज्ञान गायन के.
संन्यासी भेष म देस बिदेस ला देईन आनन्द.
जय होय स्वामी विवेकानन्द.5.
🙏🙏🙏
अनुसरण अष्टांगिक मार्ग गौतम बुध्द .
हठयोगी सर्वदा जेकर चित्त ह शुध्द.
लक्ष्य पाए के बाट बतोईया युवाशक्ति अनुसंध.
जय होय स्वामी विवेकानन्द.6.
🙏🙏🙏
धन धन होईस हमर भारत भुईयाँ .
रामकृष्ण मठ के दुआरी परौं पईंयाँ.
मनखे मनखे म तुँहर अमर विचार के रहय सम्बन्ध.
जय होय स्वामी विवेकानन्द.7.
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बेमौसम, बादर पानी
रचनाकार- जीवन चन्द्राकर'लाल'', दुर्ग
बिन मौसम के,बादर पानी,
चौपट कर दिस,हमर किसानी.
धूंका पानी मा, धान लथरगे.
धनहा डोली मा,पानी भरगे.
बिसाय रेहेंव,महंगी मा बीज,
जागे उतेरा,जम्मो सरगे.
पील-पील,पील-पील होगे खार,
कइसे सकेलन करन विचार.
हार्वेस्टर बर,होगे मुश्किल,
मिलत नइ हे जी,अब बनिहार.
लेगत हस तैं दे के काबर
हाड़ा-गोड़ टूटगे जाँगर.
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महू कुछु करके देखाहूँ
रचनाकार- यशवंत पात्रे, कक्षा 8 वीं, शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला बिजराकापा, मुंगेली
मैं ह पढ़े ल गेंव त छेंकेव मोला,
का करके देखाही, कहेव मोला.
महू पढ़-लिख के कुछु जीनिस बिसाहूँ,
जग मा कुछ करके देखाहूँ.
मैं ह कॉपी, पुस्तक लेवौ त,
मोर ददा ल भड़कावैंय,
काय करही, नागर तो चलाही,
कहिके मोर ददा ल पढ़ावैंय.
मोर ददा ह कहिस, मैंय नागर नई चलवावौं,
अपन बेटा ल मैं डॉक्टर, इंजीनियर बनाहौंव.
कसम खाएँव, महू कुछु करके देखाहूँ,
अपन ददा के नाव ला रोशन करहूँ.
संसार म नवा इतिहास रचहूँ,
जग मा कुछ करके देखाहूँ.
एक दिन अइसन आइस,
मैं ह बेग धर के स्कूल जावत रहेंव,
त मोला दउड़ावैंय,
मोर परुवार ल गाँव ले भगवावैंय.
अतका मुश्किल म मैंय ह पढ़ेंव,
गाँव ल उबारे बर आगू बढ़ेंव.
जग मा कुछ करके देखाहूँ.
गाँव ल शिक्षित बनाहूँ.
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नवा साल मनाबो
रचनाकार- शशिकांत कौशिक, परसदा
आवाहो संगी आवो नवा साल मनाबो,
आज नइ आ पाहू त काल मनाबो.
जउन इसकुल जाथे, वहू ला बलाबो
नइ जावय तेला a b c पढाबो,
आवो संगी आवो नवा साल मनाबो.
छोटे-बड़े सबो ल बलाबो
मिलजुलके संगी नवा साल बनाबो,
आवो संगी आवो नवा साल मनाबो.
कउनो झन राहय जी ठलहा
मेहनत के फल बढ़िया होथे बताबो,
आवो संगी आवो नवा साल मनाबो.
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