छत्तीसगढ़ी बालगीत

FLN नारा

रचनाकार- कलेश्वर साहू, बिलासपुर

FLN

पढ़बो लिखबो जम्मों छत्तीसगढ़िया,
दुनिया म कहाबो सब ले बढ़िया.


नइ बइठन हमन ठलहा रीता,
पूरा करबो FLN के जम्मो बुता.

पढ़ लिख के जिनगी म बड़ नाम कमाबो,
FLN अभियान ल हमन आगु बड़हाबो.

FLN खोले हे शिक्षा के नवा - नवा दुवार,
लइका के मन म आवत हे नवा- नवा विचार.

सकल पढ़ाई FLN मा होही,
नइ जुड़ही ते मौका खो ही.

बरसत हे FLN म ज्ञान के भण्डार,
शिक्षा जगत के बनगे सुग्घर आधार.


सौ दिन के पठन अउ गणितीय कौशल अभियान,
आवव संगी आधारभूत शिक्षा म लगावव ध्यान.

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मड़ईं- मेला

रचनाकार- राधेश्याम सिंह बैस, बेमेतरा

madai

हमर छत्तीसगढ़ के माटी म,
सुघर परब आथे.
मन म भरथे उमंग,
जउन मड़ईं मेला कहाथे.

गाँव के मड़ईं मेला म,
सोर भेजथन सम्बन्धी सगा म .
बेटी माई दीदी बहनी,
जम्मो पहुंचथे मेला ठउर जगा म.

बाजार हाट भरागे,
किसम -किसम के चीज आगे.
आनी बानी के चीज बिसाय बर,
लइका मुंदरहा ले जागे.

लइका पिचका रोये फुग्गा बर,
पेठा ठेला सजगे ओरि ऒर.
नोनी के चुड़ी फूली खिनवा,
उहू चिल्लावत हे तोरी तोर.

रच -रच ढेलवा के बोली,
कोलबिल कोलबिल लइका सियान.
सोर करत हे झुनझुना वाला.
चसमा डहर नइये कोनो के धियान.

माई पीला बाजार करें,
मुँह ल टेरर्रावत हे बहुरिया.
महू घूम लेतेव मेला मड़ई,
संगे संग होतिस मोर जहुरिया.

संझा के बेरा म राउत भैया,
मोहरी के संग गड़वा बाजा भागे.
सज धज निकले पारे दोहा.
मड़ई के संग राउत नाचत आगे.

मंच सजगे राम कथा के,
बाचत सत्संगी भैया मन रामायण.
गाँव घर तीर तखार के बइठे मनखे,
सियान बबा बांध पगड़ी बइठे करें जमायन.

छत्तीसगढ़ के लोक परम्परा,
बेरा नाचा गम्मत के आगे.
होवत बियारी लइका सियान,
अतेक भीड़ म ओरि ऒर भागे.

हमर गाँव के अतेक सुघघर संस्कृति,
उमंग भरे हे जम्मो लइका जवान म.
भीड़ -भाड़ म धक्का खावत,
नइ आवत कोनो ह पहचान म.

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आवव खाबो गुपचुप

रचनाकार- डॉ. कन्हैया साहू 'अमित'

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अल्लू-बल्लू, अमलू-रमलू, आवव खाबो गुपचुप.
सरदी-खाँसी के डर नइ हे, बइठव झन तुम चुपचुप.

देख सँझौती बेरा सुग्घर, घर ले बाहिर निकलव.
अमसुर-गुरतुर सेवाद भरे, थोर-थोर सब चिखलव.
अमली पानी मिला-मिला के, मुँह मा डारव गुपगुप.
अल्लू-बल्लू, अमलू-रमलू, आवव खाबो गुपचुप.

कोनो खावव चाट बना के, मटर, मसाला डारे.
तुरतेताही तात-तात बड़, झन पुछ येखर बारे.
मन होथे बस खाते जावँव, सरपट सँइया टुपटुप.
अल्लू-बल्लू, अमलू-रमलू, आवव खाबो गुपचुप.

भेल, पापड़ी, आलू टिकिया, गजब मिठाथे नड्डा.
आनी-बानी खाये खातिर, चलव चलिन चौगड्डा.
हाथ लमा के जम्मों खाथें, कहन न कोनो छुप छुप.
अल्लू-बल्लू, अमलू-रमलू, आवव खाबो गुपचुप.

सरदी-खाँसी के डर नइ हे, बइठव झन तुम चुपचुप.
अल्लू-बल्लू, अमलू-रमलू, आवव खाइन गुपचुप.

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छत्तीसगढ़ के माटी

रचनाकार- डिजेन्द्र कुर्रे 'कोहिनूर', महासमुंद

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अन धन के भंडार महि अँव,मैं ही धनहा डोली अँव.
दया मया अउ सुख सुमता के,मैं ही गुरतुर बोली अँव.
गौरा करमा सुआ ददरिया,भोजली के परिपाटी अँव.
मैं छत्तीसगढ़ के माटी अँव,मैं छत्तीसगढ़ के माटी अँव.

मोर हरियर भुइयाँ म बइठे, है अकइसो दाई.
मड़वारानी सरमंगला, महमाया अउ बम्बलाई.
शवरीनारायन गिरौदपुर,अउ हे राजिम लोचन.
जगा जगा हनमान बिराजे,बनके संकट मोचन.
सब देवता के मान करोइया,मैं ही नँगरिया खाँटी अँव.
मैं छत्तीसगढ़ के माटी अँव,मैं छत्तीसगढ़ के माटी अँव.

इही धरती म रामचन्द्र के,जनमे हे महतारी.
तेकरे बर भांचा के पाव,परथन सब नर नारी.
बीरनारायन इही भुइयाँ बर,दिस अपन बलिदानी.
लोरिक के चंदा के भी हावय,जग म अमर कहानी.
परम्परा के भरे खजाना,जेकर महि मुँहाटी अँव.
मैं छत्तीसगढ़ के माटी अँव,मैं छत्तीसगढ़ के माटी अँव.

मैं ही राहेर तिवरा ओनहारी,के सोनहा होरा.
ये दुनिया मोला जाने ,कहिथे धान कटोरा.
मैं ही नांगर मैं बईला, मैं ही सुघ्घर तुतारी.
सुघ्घर लिपे पोते अँगना, हरियर कोला बारी.
मैं ही छानी खपरा अउ,मैं ही फइका टाटी अँव.
मैं छत्तीसगढ़ के माटी अँव,मैं छत्तीसगढ़ के माटी अँव.

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