चित्र देख कर कहानी लिखो

पिछले अंक में हमने आपको यह चित्र देख कर कहानी लिखने दी थी–

CKFeb24

हमें जो कहानियाँ प्राप्त हुई हम नीचे प्रदर्शित कर रहे हैं

संतोष कुमार कौशिक, मुंगेली द्वारा भेजी गई कहानी

किशन और गुब्बारे वाला की कहानी

अक्सर हम किसी सफल व्यक्ति को देखते है,तो उसकी वेषभूषा और रंग रूप बनावट से प्रभावित होते है.सोचते हैं कि काश हम भी ऐसे होते है,तो शायद हम भी वैसे ही सफल होते. लेकिन वास्तविकता यह होती है कि वह व्यक्ति अपने वेषभूषा और रंगरूप से नही बल्कि अपने गुणो के कारण ही सफल होता है.चलिये आज इसी सोच पर आधारित 'किशनऔर गुब्बारे वाला की कहानी' जो की हम सभी को प्रेरणा देती है,

एक समय की बात है,एक आदमी गुब्बारे बेचकर वह अपना एवं परिवार का पेट भरता था.गाँव के आस पास लगने वाले मेलों,हाट बाजारों एवं पास के विद्यालय में जाता था और गुब्बारे बेचता था.बच्चों को आकर्षित करने के लिए उसके पास रंग बिरंगे (हर रंग के) गुब्बारे होते थे.उसे जब भी यह महसूस होता कि अब उसके गुब्बारे बिकने कम हो गए हैं तो वह एक गुब्बारा लेता और उसे हवा मे उड़ा देता था.जिसको देखकर बच्चों के मन में प्रसन्नता हो जाती और बच्चे फिर से गुब्बारे खरीदने उसके पास पहुँच जाते थे.

‌‌ एक बार गुब्बारे वाला पास के विद्यालय में गुब्बारे बेचने के लिए गया.जहाॅ॑ किशन नाम का छोटा सा बालक उसी विद्यालय में पढ़ता था.किशन दूसरे बच्चों की अपेक्षा रंग से थोड़ा ज्यादा ही काला था.जिस कारण विद्यालय के सभी बच्चे उसे कल्लू कहते, कोई कालू कहते,तो कोई कालिया,कोई कालीचरण,तो कोई काला नाग इस तरह आए दिन उसे चिढ़ाते रहते थे.जिनके वजह से उनकी मानसिक स्थिति अच्छी नहीं रहती थी और उसका प्रभाव पढ़ाई पर पड़ता था.इस कारण वह पढ़ाई में भी कमजोर था.सभी बच्चे ने उसे काले होने के कारण तुम पढ़ नहीं सकोगे,ऐसा उनके मस्तिष्क के ऊपर दबाव बना दिया था.वह भी सोच रहा था कि मैं काला हूँ,इस कारण मैं दूसरे बच्चों की अपेक्षा नहीं पढ़ सकता और मैं अपने जीवन में आगे नहीं बढ़ सकता. यह सोचकर वह बच्चा उदास और चुप रहता था.

कुछ क्षण पश्चात गुब्बारे वाले के पास आकर किशन ने रंग बिरंगें गुब्बारे को देखा.गुब्बारे वाले नेअपनी बिक्री में बढ़ोत्तरी करने के लिए वह समय-समय पर गुब्बारों को हवा में उड़ा देता था.यह सब गुब्बारे वाले के पास खड़ा होकर किशन बड़े ध्यान से देख रहा था.जैसे ही उसने हरे रंग के गुब्बारे को हवा मे उड़ाया तो बच्चा उसके निकट गया और गुब्बारे वाले से पूछा- 'यदि आप इस काले रंग वाले गुब्बारे को छोड़ोगे तो क्या गुब्बारा ऊपर जायेगा.'गुब्बारे वाले ने आश्चर्य पूर्वक बच्चे की ओर देखा और बोला-'जी बिल्कुल बेटा, जरूर ऊपर जायेगा गुब्बारा,ऐसा कहकर वह काले रंग की गुब्बारे को छोड़ दिया.देखते ही देखते काले रंग की गुब्बारे बहुत ही ऊपर चला गया.फिर उसने कहा-बेटा गुब्बारा का ऊपर जाना इस बात में निर्भर नहीं करता है कि वो किस रंग का है या कितना बड़ा है,बल्कि इस बार निर्भर करता है कि गुब्बारे की अंदर क्या भरा हुआ है.'

ठीक इसी प्रकार यह बात हम लोगों पर भी लागू होती है कि कोई आगे चलकर क्या बनने वाला है.ये उनके कपड़े या रंग इस पर निर्भर नहीं करता है,बल्कि ये इस बात पर निर्भर करता है कि उसके अंदर कौन से गुण हैं.उसका व्यवहार कैसा और उसका बात करने का तरीका कैसा है.इसीलिए किसी के कपड़े और उसके शरीर के रंग को देखकर उसके बारे में गलत नहीं सोचना चाहिये.किशन गुब्बारे वाले की बातों को समझ गया.उस दिन से अपने काले रंग की चिंता ना करते हुए पढ़ाई में जुट गया.वार्षिक परीक्षा परिणाम घोषित हुआ जिसमें किशन ने कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया.विद्यालय के सभी बच्चों ने किशन से अपने किए हुए गलती के लिए क्षमा मांगते हैं.फिर सभी बच्चे मिल जुलकर एक साथ रहते हैं.

कु.भूमिकाराजपूत,कक्षा-आठवीं, शाला-शासकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय ककेड़ी, मुंगेली द्वारा भेजी गई कहानी

एक गाॅ॑व में रिंकू और पिंकी दोनों भाई-बहन अपने माता-पिता के साथ रहते थे.इसी गाॅ॑व में एक बूढ़ा व्यक्ति अपने परिवार के साथ रहता था. वह गुब्बारे बेचकर अपने परिवार का जीवन यापन करता था. कुछ दिन पश्चात गाॅ॑व में नए वर्ष के उपलक्ष्य में मेला लगने वाला था.वह गुब्बारे वाला व्यक्ति मेला में अपने गुब्बारे रखकर बेचने के लिए जा रहा था. तभी अचानक उसे चक्कर आया और वह जमीन में गिर गया.रिंकू और पिंकी भी मेला देखने जा रहा था.अचानक सड़क पर भीड़ लगी हुई थी.दोनों वहाॅ॑ पर जाकर देखा-वह कोई और नहीं गुब्बारे वाला ही था.दोनों बच्चे उसे उठाकर पानी पिलाया और कुछ खाने को दिया. ठीक होने के पश्चात दोनों भाई बहन मेला देखने चले गए.

मेले में टिंकू और पिंकी मौज मस्ती करते हुए पूरे मिले का भ्रमण किया.उसके बाद झूला झूले,ढेर सारे खिलौने लिए,मिठाइयां खरीदी तत्पश्चात अपने दोस्तों से मिला.उसके बाद घर की ओर निकल गए.

रास्ते में गुब्बारे वाले को देखकर गुब्बारे खरीदने की इच्छा हुई. लेकिन जेब को देखा,उसके पैसे खत्म हो चुके थे.उन दोनों पर बूढ़े व्यक्ति की नजर पड़ा.दोनों बच्चे को पहचान लिए. समझ गया कि यह दोनों बच्चे ही मुझे चक्कर आने पर पानी पिलाया था.तभी उन दोनों को परेशान देखकर गुब्बारे वाले कहता है-तुम परेशान क्यों हो? तभी रिंकू ने कहा-कुछ नहीं बाबा,घर जा रहें हैं,सोचा कि आपके हाल-चाल पूछ लें.गुब्बारे वाले बाबा को समझने में देर नहीं लगी.उन्होंने रिंकू और पिंकी को मुफ्त में गुब्बारे दिए.लेकिन दोनों बच्चे ने उसे लेने से मना कर दियेऔर उसे धन्यवाद कहा,तभी गुब्बारे वाले ने कहा धन्यवाद देने की बात नहीं है.मैं भी आपके दादा के समान हूँ.आप दोनों ने भी तो मुझे दादा जैसी देखभाल की है. इस कारण इस गुब्बारे को रख लो. दोनों बच्चों ने गुब्बारे रखकर उसे धन्यवाद दिया और खुशी-खुशी से घर चले गए.

मनोज कुमार पाटनवार, बिलासपुर द्वारा भेजी गई कहानी

गुब्बारे वाला

एक गांव में एक गुब्बारे वाला हर दिन गुब्बारे बेचने आया करता था रंग-बिरंगे गुब्बारे देखकर गांव के बच्चे उसके पीछे-पीछे चल देते थे सभी को गुब्बारे बेचने के बाद गुब्बारे वाला वापस चला जाता था एक दिन गुब्बारे बेचने के लिए वह गांव के बाजार में खड़ा था आज उसके गुब्बारे कम ही बिके थे तभी एक बच्ची गुब्बारे खरीदने आई और बोली भैया कितने का गुब्बारा है गुब्बारे वाले ने कहा 2 रुपए का एक और 5 रुपए के तीन, तब बच्ची बोली -भैया मेरे पास तो केवल एक रुपए हैं, एक काम करो एक गुब्बारा मुझे दे दीजिए और दो गुब्बारे किसी और को बेच देना, इससे तुम्हारा 5 रुपए के तीन बिक जायेंगे. नहीं एक गुब्बारा तो 2 रुपए का ही मिलेगा गुब्बारे वाले ने कहा उतने में बच्ची निराश होकर चली जाती है और आगे जाकर एक पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बैठ जाती है गुब्बारे वाला उसे देखता रहता है गुब्बारे वाले के शाम तक सारे गुब्बारे बिक जाते हैं केवल दो ही गुब्बारे बचते हैं, गुब्बारे वाला उस बच्ची को बुलाता है और पूछता है अरे तू घर नहीं गयी दोपहर से यहीं बैठी है तो बच्ची जवाब देती है- हां भैया मैंने अपनी छोटी बहन से कहा था कि मैं उसके लिए गुब्बारे लेकर आ रही हूं ,अब जब वह सो जाएगी तब ही घर जाऊंगा तब गुब्बारे वाले ने कहा- तो अपने घर से एक रुपए और ले आती और गुब्बारा ले लेती बच्ची बोली मेरे घर में केवल मेरी मां है जो मजदूरी करती है बड़ी मुश्किल से वह हर दिन एक रुपया देती है. गुब्बारे वाले ने सोचा चलो ठीक है तेरा नाम क्या है बच्ची ने बताया मेरा नाम मुनिया है गुब्बारे वाले को बच्ची पर दया आ जाती है फिर कहता है अच्छा एक काम कर तू यह दोनों गुब्बारे ले ले एक अपनी बहन के लिए और एक अपने लिए मुनिया बहुत खुश होती है और वह गुब्बारे लेकर घर की ओर भागने लगती है अगले दिन गुब्बारे वाला गुब्बारे बेचने आता है तभी उसे मुनिया दिखाई देते हैं मुनिया उनके पास जाकर कहती है भैया यह एक रुपया ले लो, गुब्बारे वाला ठीक है कहते हुए गुब्बारा निकाल कर मुनिया को दे देते हैं तभी मुनिया कहती है कि नहीं भैया यह तो मैं कल के रुपए दे रहा हूं कल मैं जब घर पहुंचा तो मां ने बहुत गुस्सा किया उन्होंने कहा कि बिना रुपए के कोई सामान लेना भीख मांगने के बराबर है आप यह एक रुपया ले लो. तब गुब्बारे वाले ने सोचा इतना सुंदर विचार है तेरी मां का फिर बच्ची से कहता है कि तू पढ़ने नहीं जाती क्या ? मुनिया बताती है नहीं हमारे पास इतने रुपए नहीं है, इसलिए मैं घर पर ही पढ़ लेती हूं फिर गुब्बारे वाले कहता है तुम रहती कहां हो ? मुनिया जवाब देती है वह जो सामने बड़ा सा नीम का पेड़ है उसके पीछे ही मेरा घर है. इसी तरह समय बीत रहा था गुब्बारे वाले से कभी-कभी मुनिया एक रुपया में गुब्बारे ले जाती और अपनी बहन को दे देती थी कुछ दिन बाद गुब्बारे वाले को वह बच्ची नजर नहीं आया, अब वह गुब्बारा लेने भी नहीं आती थी एक दिन शाम को गुब्बारे वाला उनके घर पहुंच जाता है और घर के बाहर आवाज देता है मुनिया ,मुनिया तभी मुनिया की मां बाहर आती है तब गुब्बारे वाले पूछता है कि मुनिया कई दिनों से गुब्बारे लेने नहीं आई है तब उनकी मां बताती है कि भैया मेरा काम छूट गया है कटाई के बाद हम खेतिहर मजदूरों की मजदूरी बंद हो जाती है बड़ी मुश्किल से घर का खर्चा चल रहा है इसलिए मुनिया को रुपए नहीं दे पाती हूं .तभी गुब्बारे वाले ने कहा बहन क्या मैं आपकी कुछ मदद कर सकता हूं? नहीं भैया हम केवल मेहनत का पैसा ही लेते हैं मां ने जवाब दिया. तब गुब्बारे वाले ने एक सुझाव दिया की मुनिया को मेरे साथ गुब्बारे बेचने के लिए भेज दिया कीजिए हम दोनों गांव में घूम घूम कर गुब्बारे बेचेगे, तब मां ने कहा वह तो अभी बहुत छोटी है, गुब्बारे वाले ने कहा बहन इससे आपकी कुछ मदद हो जाया करेगी मैं चाहता हूं कि मुनिया स्कूल जाए इस काम से उसके स्कूल की फीस निकल आएगी, ठीक उसी समय मुनिया कमरे से बाहर आ जाती है और सारी बातें सुन लेती है फिर अपनी मां से कहती है कि- हां मां मेरे ख्याल से यह ठीक कह रहे हैं ,मां तैयार हो जाती है अगले दिन से मुनिया गुब्बारे वाले के साथ गुब्बारे बेचने जाने लगती है गुब्बारे वाला मुनिया का स्कूल में दाखिला करा देता है और पढ़ने के साथ-साथ मुनिया शाम को गांव के गार्डन के पास गुब्बारे बेचने लगती है धीरे-धीरे मुनिया बड़ी हो जाती है तब तक वह गुब्बारे वाला बूढ़ा हो जाता है फिर मुनिया बोलती है -बाबा अब आप काम मत कीजिए मेरी पढ़ाई पूरी हो गई है जल्द ही मुझे नौकरी मिल जाएगी तभी गुब्बारे वाले बोलता है बेटी तुझे अपनी मां और बहन का ख्याल भी तो रखनी है मैं तो जैसे तैसे अपनी जिंदगी काट लूंगा तू नौकरी करके अपनी और अपनी बहन की शादी के लिए पैसा जोड़ लेना. मुनिया बहुत पढ़ाई करती है और एक दिन उसके घर एक चिट्ठी आती है उसे सरकारी नौकरी मिल जाती है मुनिया सबसे पहले यह खबर गुब्बारे वाले को सुनाती है बाबा मुझे नौकरी मिल गई है गुब्बारे वाला उसे गले लगाकर कहता है शाबाश बेटी तेरी मेहनत रंग लाई अब शहर जाकर मुझे भूल मत जाना कभी-कभी गुब्बारे लेने जरूर आना तब उनकी मां कहती है नहीं भाई साहब यह सब आपकी मेहनत का नतीजा है, हम सब साथ में शहर में रहेंगे अभी तो मुनिया शहर जाकर इंतजाम करेगी फिर हमें लेने आएगी मुनिया अगले दिन शहर चली जाती है वहां तीन महीने नौकरी करने के बाद वह एक बड़ा सा मकान किराए पर ले लेती है और दो दिन की छुट्टी लेकर वापस घर आ जाती है फिर अपनी मां से कहती है मां तुम जल्दी से सामान बांध लो हम सब कल ही शहर चलेंगे मैं बाबा को भी कह कर आती हूं , मां बोलती है बेटी वह तो तो अपना सामान कब का बांधकर जा चुके हैं कहते हुए फफक रोने लगती है .तब मुनिया भागती हुई गुब्बारे वाले के घर पहुंचती है और रोते हुए कहती है बाबा जीवन भर मेरी मदद करते रहे जब मेरे द्वारा सेवा करने का समय आया तो मुझे छोड़ कर चल दिए वह वहां बैठकर रोती रहती है . मुनिया की मां उसे चुप कराते हुए बोलती है बेटी कुछ लोग पेड़ की तरह होते हैं वह छाया देते हैं , फल देते हैं, लकड़ी देते हैं लेकिन लेते कुछ नहीं .
मुनिया गुब्बारे वाले को आज भी याद करती है और जो कोई भी उसे मिलता है उसे गुब्बारे वाली की कहानी जरूर सुनाती है

योगेश्वरी तंबोली जांजगीर द्वारा भेजी गई कहानी

सोना और विवान अपने पापा के साथ गार्डन में घूमने गए थे. गार्डन में उन्हें बहुत मजा आ रहा था.वहां बहुत सारे झूले थे. सभी झूलों में झूलने के बाद वह घर आने के लिए निकल ही रहे थे कि सोना की नजर वहां आए गुब्बारे वाले पर पड़ी जो रंग-बिरंगे गुब्बारे बेच रहा था.सोना दौड़ के उसके पास गई और गुब्बारे वाले से बातें करने लगी.आप गुब्बारे कहां से लाते हैं इसे कौन फूलाता है? तुम्हारे घर में कोई बच्चे नहीं है क्या? जो गुब्बारे से खेले जो तुम इसे पार्क में बेचने आए हो? यह सुनकर गुब्बारे वाले के आंखों में आंसू आ गए. अपना आंसू छिपाते हुए उसने सोना से कहा बेटा मेरे घर में भी तुम्हारी तरह छोटे-छोटे दो बच्चे हैं गुब्बारे फुलाने का काम भी वही करते हैं.लेकिन उन्हें गुब्बारे खेलने के लिए मैं नहीं दे सकता. यदि मैं गुब्बारे नहीं भेजूंगा तो बच्चों को क्या खिलाऊंगा गुब्बारे बेचकर ही जो पैसे मिलते हैं उसका उन बच्चों के लिए खाने पीने की कुछ सामग्री आ जाती है.गुब्बारे वाले की बात सुनकर सोना अपने पापा को गुब्बारे लेने के लिए कहती है. और सारा गुब्बारा खरीद लेती है. फिर सभी गब्बरो को वापस गुब्बारे वाले को देते हुए कहती है यह गुब्बारा अपने बच्चों को खेलने के लिए देना. यह सुनकर गुब्बारे वाला खुश हो जाता है और उसमें से एक गुलाबी रंग का गुब्बारा सोना को देते हुए कहता है बेटा यह तुम्हारे लिए. सोना गुब्बारे से खेलते हुए अपने भाई विवान एवं पापा के साथ घर आ जाती है और आकर मां को सारी बात बताती है.

अगले अंक की कहानी हेतु चित्र

CKMarch24

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