बालगीत
बसंत
रचनाकार- श्रीमती सावित्री साहू, रायपुर
बसंत आया बसंत आया
मौसम सुहाना लाया.
कोयल की कुहू कुहू हर्षाती है
आम की मौर खूब भाती है.
सरसों की पीली पीली देख फूल
मन भौरा जाती है झूल.
बसंत पंचमी को गड़ाते है अरण्डी.
होलिका दहन के लिए करते है इकठ्ठा लकड़ी.
बसंत मे बागो मे आती है बहार
बांसती खुशबु समाये रहती है बयार.
बसंत मे बागो मे मिलती हैं फूल ताज़ा
बसंत हैं ऋतुओ का राजा
*****
चिंटू गैंडे की जंगल में सभा
रचनाकार- डॉ राकेश चक्र, मुरादाबाद
चिंटू , मिंटू नाम है उनके
गैंडे हैं दो जुड़वाँ भाई.
जंगल में मंगल करने को
पशुओं की है सभा बुलाई.
ढोल बजाते बंदर आए
भालू आए टमटम गाड़ी.
कार शेर जी की इम्पाला
आई पहन लोमड़ी साड़ी .
चले तेंदुआ पैदल - पैदल
लंगूर चलें स्कूटी लेकर.
सभी आए आन बान से
ऐंठ मूँछ ताव दे - देकर.
मंच - विराजे सिंह राज जी
और पधारे हाथी लालू.
गैंडा चिंटू संयोजक भी
मस्ती में हैं कालू भालू.
भाषण हुए जोर के भइया
तालियाँ सबकी खूब बजीं.
पक्षी देख रहे पेड़ों से
महफ़िल प्यारी खूब सजी.
चिंटू गैंडा बोला सबसे
रोज उजाड़े मानव जंगल.
कोई आग लगाता वन में
संकट आएं करें अमंगल.
सभी एक स्वर बोल उठे पशु
नहीं सहें हम अत्याचार.
भू , जल , नभ सब दूषित होते
बढ़ा रहे जन पापाचार.
राजा शेर गरज कर बोला
शिकार हमारा बंद करो.
पछताओगे एक दिन मानव
बचो पाप से पुण्य करो.
*****
रंग बदलती अपना धूप
रचनाकार- डॉ राकेश चक्र, मुरादाबाद
नित्य सुबह
मेरे घर - आँगन
आ जाती गुनगुनी धूप.
किरणें मुझको हैं सहलाती
सहज , पावन उनका रूप.
गौरैयाँ , बुलबुल नित आएँ.
जब पकडूँ ,
फुर-फुर उड़ जाएँ.
फूलों पर
किरणें बिखराकर
खूब हँसाती मुझको धूप.
गर्मी का मौसम जब आए.
धूप तपन दे तन झुलसाए.
बरसा में लुक - छुप है करती
हर मौसम में खेल अनूप.
*****
बकबकावत बसंत हे
रचनाकार- कन्हैया साहू 'अमित', भाटापारा
मउर महर-महर ममहावत हे,
कोइली कुहकी पारत हे....
अब बिजरावत बसंत हे...
खेत मा खार मा, डोंगरी मा पहार मा,
भाँठा मा कछार मा, मटासी मा कन्हार मा,
ठेनी अउ दुलार मा, भेंट अउ जोहार मा,
मटमटावत बसंत हे.-1
हरियर मा पिंवरा मा, राहेर मा तिंवरा मा,
तितली मा भँवरा मा, फाँका मा कँवरा मा,
करिया अउ सँवरा मा, लाली अउ धँवरा मा.
अघुवावत बसंत हे.-2
गुलाब मा गोंदा मा, कांदा मा करोंदा मा,
निंधा मा पोंडा मा, ठोसलग मा लोंदा मा,
चकवा अउ चंदा मा, चटरहा अउ कोंदा मा,
मुचमुचावत बसंत हे.-3
आहाँ मा उहूँ मा, सरसो मा गहूँ मा,
हाड़ा मा लहू मा, सास मा बहू मा,
ओहू अउ एहू मा, हा हा अउ हू हू मा.
बकबकावत बसंत हे. -4
हाँसी मा ठिठोली मा, मुक्का अउ बोली मा,
मोटरा अउ ओली मा, कोठा अउ डोली मा,
खीसा अउ झोली मा, अकेल्ला अउ टोली मा.
मटकावत बसंत हे.-5
सारी मा सुवारी मा, मया मा गारी मा,
गोरी मा कारी मा, रंग अउ पिचकारी मा.
बरछा अउ बारी मा, बगईचा अउ फुलवारी मा.
परघावत बसंत हे.-6
पैडगरी मा धरसा मा, मँउहा मा परसा मा,
अंगाकर मा अरसा मा, मरकी मा करसा मा.
भोभला अउ खिरसा मा, कोंवर अउ सुकसा मा.
बइहावत बसंत हे.-7
पाना मा पतई मा, फाँफा मा चिरई मा,
बोकरा मा बरई मा, भाँटा मा मुरई मा,
साजा अउ सरई मा, थाँघा अउ जरई मा,
मेछरावत बसंत हे.-8
*****
मैं राम बनूँ
रचनाकार- टीकेश्वर सिन्हा ' गब्दीवाला ', बालोद
मैं राम बनूँ मस्त खेलूँ,
अवध नगर में.
चाँद भी है सूरज भी है,
और है नवलख तारा.
पुनित शीतल रातें,
शुभ दिवस उजियारा.
मैं आगे बढ़ूँ बढ़ता रहूँ,
सरयू डगर में.
मैं राम बनूँ....
कंधे पर धनुष रख,
बाणों से भरा तूणीर.
साथ में गुरुवर मेरे,
और भाई लखन वीर.
मैं आगे चलूँ चलता रहूँ,
जंगल बीहड़ में.
मैं राम बनूँ....
माथ पर तिलक मेरे,
गले में तुलसी माला.
मन में है इक आस,
मुझे मिले जनक-बाला.
मैं पग धरूँ धरता रहूँ,
मिथिला शहर में.
मैं राम बनूँ....
*****
भारत जैसा बनना है
रचनाकार- श्रीमती संगीता निर्मलकर, दुर्ग
मुझे भारत जैसा बनना है.
हिमालय जैसा सीना ताने,
हर तूफानों को सहना है.
दक्षिणी सागर जैसा,
हर लहरों से लड़ना है.
पश्चिम के रेगिस्तानों के जैसे,
रेतों में भी चलना है.
पूरब की हरियाली लिये,
उमंग सभी में भरना है.
पर्वत- घाटी में बहती,
झरनों जैसी,
कल- कल, हर -पल आगे बढ़ना है.
बस मुझे मेरे,
भारत जैसा बनाना है
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खोल धूप का ताला
रचनाकार- डॉ राकेश चक्र, मुरादाबाद
गौरैया ने 'पर' फैलाये,
बोली,जाड़ा जा-जा.
शीत लहर क्यों बरपा दी है
हलुआ पूड़ी खा -खा.
सूरज दादा को दुब काया,
रथ भी उनका रोक दिया.
चंदा जी पर चादर ढक कर,
उन पर गुस्सा थोप दिया.
ठंड भगा दे,सहज बना दे,
तपन फटाफट ला-ला.
सारे पक्षी दुखी बहुत हैं,
बाल वृद्ध काँपे थर-थर.
फूल अधखिले मौसम गुमसुम,
लगता ठंडक से है डर.
किरणों की चाबी से झट अब,
खोल धूप का ताला.
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मेरे राम
रचनाकार- डॉ. सत्यवान सौरभ, हरियाणा
राम नाम है हर जगह, राम जाप चहुंओर.
चाहे जाकर देख लो, नभ तल के हर छोर.
नगर अयोध्या, हर जगह, त्रेता की झंकार.
राम राज्य का ख्वाब जो, आज हुआ साकार.
रखो लाज संसार की, आओ मेरे राम.
मिटे शोक मद मोह सब, जगत बने सुखधाम.
मानव के अधिकार सब, होने लगे बहाल.
राम राज्य के दौर में, रहते सभी निहाल.
रामराज्य की कल्पना, होगी तब साकार.
धर्म, कर्म, सच, श्रम बने, उन्नति के आधार.
राम नाम के जाप से, मिटते सारे पाप.
राम नाम ही सत्य है, सौरभ समझो आप.
मद में डूबे जो कभी, भूले अपने राम.
रावण-सा होता सदा, उनका है अंजाम.
राम भक्त की धार हैं, राम जगत आधार.
राम नाम से ही सदा, होती जय जयकार.
जगह-जगह पर इस धरा, है दर्शनीय धाम.
बसे सभी में एक से, है अपने श्री राम.
राम सदा से सत्व है, राम समय का तत्व.
राम आदि है अन्त हैं, राम सकल समत्व.
राम-राम सबसे रखो, यदि चाहो आराम
पड़ जायेगा कब पता, सौरभ किससे काम.
राम नाम से मैं करूँ, मित्रों तुम्हे प्रणाम.
जीवन खुशमय आपका, सदा करे श्रीराम.
राम-राम मुख बोल है, संकटमोचन नाम.
ध्यान धरे जो राम का, बनते बिगड़े काम.
रोम-रोम में है बसे, सौरभ मेरे राम.
भजती रहती है सदा,जिह्वा आठों याम.
उसका ये संसार है, और यहाँ है कौन.
राम करे सो ठीक है, सौरभ साधे मौन.
हर क्षण सुमिरे राम को, हों दर्शन अविराम.
राम नाम सुखमूल है, सकल लोक अभिराम.
जात-पात मन की कलह, सच्चा है विश्वास.
राम नाम सौरभ भजें, पंडित और' रैदास.
सहकर पीड़ा आदमी, हो जाता है धाम.
राम गए वनवास को, लौटे तो श्रीराम.
बन जाते हैं शाह वो, जिनको चाहे राम.
बैठ तमाशा देखते, बड़े-बड़े जो नाम.
जपते ऐसे मंत्र वो, रोज सुबह औ' शाम.
कीच-गंद मन में भरी, और जुबाँ पे राम.
राम राज के नाम पर, कैसे हुए सुधार.
घर-घर दुःशासन खड़े, रावण है हर द्वार.
हारे रावण अहम तब, मन हो जय श्री राम.
धीर-वीर गम्भीर को, करे दुनिया प्रणाम.
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श्री राम स्तुति
रचनाकार- मंजू पाठक. दुर्ग
प्रभु श्री राम की छवि अलौकिक ,
सबके मन को भाए रही है.
जो भी जाए शरण में इनकी,
उस पर कृपा बरसाए रहे हैं.
आज अयोध्या धाम को देखो,
भाग्य पर अपने इठलाए रही है.
राम - लखन - भरत - शत्रुघ्न,
चारों भैया आए रहे हैं.
प्राण प्रतिष्ठा आज भगवन की,
मंत्र उच्चारत पंडित- पूजारी.
हर्षित है अंबर, हर्षित है धरती,
हर्षित है सारे भारतवासी.
पावन धरती,अयोध्या धाम,
दर्शन करने बुलाएं रही है.
प्रभु श्री राम की छवि अलौकिक,
सबके मन को भाए रही है.
तीनो लोक के स्वामी प्रभुजी,
सबके मन में समाए रहे हैं.
*****
मेरे राम
रचनाकार- पिंकी सिंघल, दिल्ली
संवरे सारे बिगड़े काम,
विपदा का हो काम तमाम,
संशय हटे तब मन का सारा,
प्रभु राम का लें जब नाम,
छवि अनोखी जिनकी प्यारी,
उनसे महके हर फुलवारी,
कांटों में भी गुल मुस्काए,
प्रभु राम की लीला न्यारी.
खुशबू उनकी जैसे चंदन,
बार बार है उनको वंदन,
दुखहर्ता सुखकर्ता हैं वो,
कहलाते जो दशरथ नंदन.
राघव ने भी थी रीत निभाई,
प्राण जाए पर वचन न जाई,
मां सीता के नाथ राम ने,
कीर्ति विश्व में ख़ूब थी पाई.
केवट को अपने अंग लगाया,
पुरुषोत्तम का दर्ज़ा पाया,
भक्ति में करवा लीन प्रभु ने,
रावण मुख से भी राम कहाया.
करते हैं सबका वो उद्धार,
उनके दरस मोक्ष का द्वार,
नहीं है बढ़कर कुछ भी उनसे,
राम नाम है जीवन सार.
*****
मनमोहक दृश्य
रचनाकार- सृष्टि प्रजापती, कक्षा- आठवी, स्वामी आत्मानंद तारबहार बिलासपुर
नीले गगन में उड़ रहे.
पक्षी पर फैलाके.
बाग में खिले फूल है.
मधूर सुग्न्ध फैलाके.
पेड़ की धाँव में बैठे ये बच्चे.
हँस रहे खिल-खिलाके.
प्रकृति की खुबसूरती देखो.
जीना ये सिखा दे.
फिर क्यो पक्षी को कैद मे रखा.
उन्हे यूँ तड़पाके.
फूलो को तोड़ कर मसल दिया.
अपने हाथो तले दबाके.
पेडो़ को काट दिया.
उन्हें मौन पा के.
अब न सतायेगे प्रकृति को.
चलो कसम ये खाये.
*****
मेरे राम आ गए
रचनाकार- अशोक कुमार यादव मुंगेली
जय-जय श्री राम, परम सुख के धाम.
जन-जन के सहारा, विष्णु के अवतारा.
राम में ही शक्ति है, राम में ही भक्ति है.
राम ही तो दृष्टि है, राम ही तो सृष्टि है.
राम नाम जपता हूँ, राम-राम कहता हूँ.
राम चारों धाम है, राम ही सत्य नाम है.
राम ही केशव है, राम ही तो माधव है.
राम नाम सार है, राम से ही संसार है.
राम ही तो धर्म है, राम ही तो कर्म है.
राम ही सगुण है, राम ही तो निर्गुण है.
राम में आस्था है, राम से ही वास्ता है.
राम में आशा है, राम तृप्त बिपाशा है.
अयोध्या में धूम मची, गली फूलों से सजी.
घी के दीप जल उठे, नगर में पटाखे फूटे.
राम से ही प्रेम है, राम नाम में सप्रेम है.
मेरे प्रभु राम आ गए, राम राज्य आ गए.
*****
मंजिल का कुछ पता नहीं
रचनाकार- यशवंत पात्रे, कक्षा- 8 वीं, शास.पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, मुंगेली
इतना पढ़ता हूँ. इतना लिखता हूँ.
न जाने किसकी चाह में?
मंजिल का कुछ पता नहीं.
चल दिया हूँ किस राह में.
कक्षा बदली. स्कूल बदला.
पूरे पढ़ने के बाद क्या मैं बदलूँ?
है मंजिल की सीढ़ी लंबी.
क्या मैं अब उसको चढूँ?
पढ़ता हूँ पैसे खर्च होता है.
पिता का गिरता पसीना देख मन रोता है.
आगे बढ़ने के बाद मैंने मंजिल चुन ली.
कहकर मन में मैंने ठान ली.
मंजिल का पता चली.
मन में हुई खलबली.
अब मन लगाकर पढूँगा, सपने पूरे करूँगा.
नौकरी पाकर अब मैं शान से चलूँगा.
तुम भी पढ़ना. तुम भी बढ़ना.
मेरे प्यारे दोस्तों, समझ के पढ़ना.
*****
कामयाबी
रचनाकार- करन टंडन, कक्षा 8वीं, शास.पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, मुंगेली
पढ़ने-लिखने का मन में चाह थी.
जिंदगी में मेरी कई राह थी.
कितनों ने रोका, कितनों ने टोका.
पर मैं कभी न झुका..
सफलता को पाने की मुझमें चाह थी.
जिंदगी में तो मेरी कई राह थी.
कक्षा ऊपर कक्षा की सीढ़ी थी.
इस जिंदगी में कई पीढ़ी थी.
हमको तो डॉक्टर बन के जीवन सजानी है.
कामयाबी पाकर नई इतिहास रचके दिखानी है..
कई रातें हमने गंवाई.
तब जाके जीवन हमने पाई..
पढ़ने की तो मन में चाह थी.
जिंदगी में मेरी कई राह थी..
*****
विज्ञान दिवस
रचनाकार- डॉ. कन्हैया साहू 'अमित', भाटापारा
जीवन को आसान बनाता, वरदानी विज्ञान.
जाँच परखकर, बात बताता, वरदानी विज्ञान.
आदिम युग से वर्तमान तक, देखें तनिक इतिहास,
वैज्ञानिकता ने ही इसको, आज बनाया खास,
सुखद बयारें सतत बहाता, वरदानी विज्ञान.
जीवन को आसान बनाता, वरदानी विज्ञान.
पहले तो दुष्कर होते थे, छोटे-मोटे काज,
काम चुटकियों में बनते हैं, घर बैठे अब आज,
सात समुंदर पार कराता, वरदानी विज्ञान.
जीवन को आसान बनाता, वरदानी विज्ञान.
नित आविष्कारों ने लाया, जीवन में बदलाव.
धन्य हुई भारत की धरती, बिखरा रमन प्रभाव,
आज दिवस यह याद दिलाता, वरदानी विज्ञान.
जीवन को आसान बनाता, वरदानी विज्ञान.
*****
मेरे प्यारे शिक्षक
रचनाकार- अंकित बघेल, कक्षा-छठवीं, शास.पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, मुंगेली
मेरे प्यारे शिक्षक.
सबसे न्यारे मेरे शिक्षक.
पढ़ाते हो, लिखवाते हो.
आप कितना ज्ञान से सीखाते हो.
मुझे भी आप जैसा ज्ञान चाहिए.
मुझे भी दुनिया में सम्मान चाहिए.
आपके ही सहारा से पढ़ता हूँ.
मंजिल की सीढ़ी में धीरे-धीरे चढ़ता हूँ.
आप कविता लिखना सीखा दिये.
आप कवि बनाकर दिखला दिये.
मेहनत से पढ़ाया.
मंजिल में चढ़ाया.
मैं कुछ भी बन कर दिखलाऊँगा.
मैं भी अपने सर जैसे पढ़ाऊँगा.
*****
मेरा प्यारा बचपन
रचनाकार- सलीम कुर्रे, कक्षा आठवीं, शास.पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, मुंगेली
वो बचपन की लम्हें याद आ जाती है,
जब हम खेलते, कूदते और हँसते थे.
कभी दोस्तों से मजाक किया करते थे,
तो कभी मुसीबतों में साथ दिया करते थे.
वह बचपन की हर चीज याद आ जाती थी,
जो हम बचपन में खेला करते थे.
यादों में हम खोए रहते थे,
भविष्य में आगे बढ़ने का एक सोच रखते थे.
एक नई उम्मीद लिए खड़े रहते थे,
घंटों पसीना बहाकर पैसा कमा लिया करते थे.
खाने के लिए कुछ सामान ला लिया करते थे,
पैसे बचाने के लिए माँ से कुछ डाँट खा लिया करते थे.
साथी मिलकर कुछ काम कर लिया करते थे,
माता-पिता को पता न चले कहकर,
कपड़े को साफ और हाथ को धो लिया करते थे.
जो पैसे हम बचा लिया करते थे,
वो पैसे हम पार्टी में उड़वा दिया करते थे.
*****
नारी हूं
रचनाकार- वीरेंद्र बहादुर सिंह
सीता जैसी पवित्रता नहीं,
है मात्र चंचल मन का आलाप,
आप की राह में आतुर सामान्य नारी हूं.
शबरी जैसा धीरज नहीं,
है मात्र जिम्मेदारी का बोझ,
आप की राह में आतुर सामान्य नारी हूं.
राधा जैसी असीम प्रीत नहीं,
है मात्र दुनियादारी का भार,
आप की राह में आतुर सामान्य नारी हूं.
मीरा सम सहनशीलता नहीं,
है मात्र चतुर समाज का भय,
आप की राह में आतुर सामान्य नारी हूं.
*****
ऊर्जा संरक्षण
रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र
आओ! नित ऊर्जा बचाएँ.
ऊर्जा संरक्षण में जुट जाएँ.
डीजल, पेट्रोल, गैस, कोयला
प्रकृति के हैं संसाधन सीमित,
हुआ समाप्त न ऊर्जा संकट
कैसे मानव रहेगा जीवित,
लें सँवार जलवायु परिवर्तन
स्वच्छ - हरित ऊर्जा बनाएँ.
आज ऊर्जा बचत करेंगे
जीवन तभी सुखी कल होगा,
किये सफल सार्थक प्रयास से
उज्ज्वलतम भविष्य फल होगा,
ऊर्जा की बर्बादी रोकें
ऊर्जा प्रौद्योगिकी अपनाएँ.
पंखे, एसी, हीटर, गीजर
घर में लगातार हैं चलते,
ऑफिस, गाँव, शहर, गलियों में
हैलोजन - ट्यूबलाइट जलते,
नियंत्रित विद्युत - उपकरणों से
बिजली की कुल खपत घटाएँ.
मोटर साइकिल, कार, स्कूटी
कम से कम हम करें प्रयोग,
कभी दूर तक जाना हो तो
बस - टेम्पो कर लें उपयोग,
थोड़ी दूर चलें पैदल ही
हँसी - खुशी साइकिल चलाएँ.
प्रेशर कुकर. सोलर कुकर
सोलर लालटेन है उत्तम,
सोलर पंप चलाना हितकर
धन - विद्युत - व्यय भी होता है कम,
प्राकृतिक जीवन - शैली से
स्वास्थ्य, बुद्धि, बल, ओज बढ़ाएँ.
गैर - परंपरागत ऊर्जा
नवीकरणीय तकनीक दक्ष है.
सौर ऊर्जा पर निर्भरता
जन - जन के हित कल्पवृक्ष है.
भारत, जग को नई दिशा दे
हम जागें औरों को जगाएँ.
'सूर्योदय योजना' लाभप्रद
लगें छतों पर सोलर पैनल,
सब्सिडी अनुदान मिलेगा
खुल जाएँगे सुख के चैनल,
डर न कोई बिजली जाने का
सुविधा का आनंद उठाएँ.
आओ! नित ऊर्जा बचाएँ.
*****
हम भारत के बालक
रचनाकार- संतोष कुमार कर्ष, कोरबा
हम हैं नन्हे मुन्ने बालक,
कदम बढ़ाते हैं,
भारत मां की रक्षा खातिर,
मर मिट जाते हैं.
देश की रक्षा हम करेंगे,
शपथ उठाते हैं,
नहीं डरेंगे नहीं झुकेंगे,
आगे आते हैं.
भारत मां की रक्षा खातिर,
शीश कटाते हैं,
नहीं चाहिए कोई प्रलोभन,
भ्रष्टाचार मिटाते हैं.
तिरंगे की खातिर,
हम जान लुटाते हैं,
दाग न कोई लगने देंगे,
विश्वास दिलाते हैं.
पीठ नहीं दिखाएंगे,
शहीद हो जाते हैं,
तिलक लगाकर कसमें खाकर,
मां से मिलकर आते हैं.
भारत में हम जन्म लिए,
भारतीय कहलाते हैं,
देश की रक्षा हम करेंगे,
शपथ उठाते हैं.
*****
स्वर ले सेहत
रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू', गरियाबंद
अ – अमली लाटा मनखे खाये.
मुॅंह कोती ले लार बहाये.
आ – सबो चाय मा डारॅंय आदा .
कब्ज रोग जब होवय जादा.
इ – इलायची हे बड़ गुणकारी.
खा लव जब मुॅंह महके भारी .
ई– ईख चुहक के सब झन खावव.
पेट रोग ला दूर भगावव.
उ– उड़द दार के बने बिजोरी.
गोल–गोल अउ चिक्कन गोरी.
ऊ– खान–पान ले मिलथे ऊर्जा.
रहिथे पोठ देह के पुर्जा.
ए– एलोवीरा लगा चाम मा.
घूम आव सब तेज घाम मा.
ऐ– ऐनक ऑंखी मा लग जाथे.
देखे मा जब धुॅंधरा पाथे.
ओ– मीठ ओखरा घलो नॅंदागे.
सुग्घर गुरतुर जे हा लागे.
औ– औंरा हावय बड़ उपयोगी.
खा के राहत पावय रोगी.
अं – अंगाकर हा गजब मिठाथे.
संग टमाटर चटनी भाथे.
अः – आखर के पाछू मा रहिथे.
शब्द भार ला येहर सहिथे.
*****
बचपन
रचनाकार- अनिता मंदिलवार सपना
बचपन कितना सुहाना था
उसका भी एक फसाना था
पिता के कंधे पर कभी-कभी
मां के आंचल में छिप जाना था
मिट्टी के खिलौने से खेलना
सखियों का साथ मस्ताना था
पतंग के पीछे कभी भागना
तितलियों के संग दौड़ना था
परछाई के संग चलना
कभी बारिश में भीगना था
सच कहे है ये सपना
दिन हसीन थे बताना था
*****
दादा जी, नाना जी
रचनाकार- अनिता मंदिलवार 'सपना'
दादा दादी के
बच्चे होते हैं जान
नाना नानी की तो
बसते हैं उन में प्राण
परियों की कहानी
वो सभी
किस्से बयानी
आपका साथ
उन्हें भाता है
खुशियों के रंग
भर जाते हैं
आपका साथ पाकर
हम फूलों सा
खिल जाते हैं
प्यार दुलार आपका
ढेर सारा हम पाते हैं
दूर रहकर आपसे
नहीं होते हैं कभी दूर
आपकी दी हुई सीख
जीवन की है सौगात
आपके चरणों में
वंदन है हर बार !
*****
घर
रचनाकार- अनिता मंदिलवार 'सपना'
सभी को होता है
अपना घर प्यारा
जहाँ बाँटते मिल बैठ
प्यार होता बहुत सारा
अपनी अपनी कहते
खुलता खुशियों का पिटारा
तीज त्योहार पर
बनता मिठाई सारा
पकवान होते इतना सारे
पर जी नहीं भरता हमारा
सुरक्षा कवच हम सब की
बचाता हर आपदा से
रिश्ता बनाता प्यारा
घर हमारा सबसे न्यारा!
*****
बलिदानी वीर नारायण सिंह
रचनाकार- डिजेन्द्र कुर्रे 'कोहिनूर'
चिन्हारी जे वीर पुरुष हे,भरे कटोरा धान के.
वीर नारायण ले पबरित हे, भुइँया सोनाखान के.
वीर नारायण के जिनगी म,अइसे दिन भी बीते हे.
एक अकेला अंग्रेजी शासन से,लड़ के जीते हे.
जब अकाल के बेरा आईस,जन-जन तरसीन दाना ल.
धरम करम बर ये ही धरमी,लुटे रहिस खजाना ल.
घोड़ा म चढ़के जाएँ, बलिदानी सीना तान के.
वीर नारायण ले पबरित हे, भुइँया सोनाखान के.
बज्र बरोबर तन के बलिदानी,जब भुइँया नापे.
सेट महाजन अउ अँग्रेजी,शासन थर-थर काँपे.
जेहर आघु म आ जाये,अपन प्राण गवाएं.
मेंछा म दे ताव वीर जब,जब तलवार चलाये.
आज वहीं बलिदानी दे,आदर्श हमर अभिमान के.
वीर नारायण ले पबरित हे, भुइँया सोनाखान के.
*****
मुरलियाँ
रचनाकार- डिजेन्द्र कुर्रे 'कोहिनूर'
मधुर मुरलियाँ से,
तान छेड़ - छेड़ हरि.
राधिका रानी को नित,
कन्हाई रिझाने लगे.
बाल ग्वाल संग ले के,
गोपिकाओं के घरों में.
छुपते छुपाते हरि,
माखन चुराने लगे.
भले छोटे बालक है,
पर जग पालक है.
वृन्दावन घूम-घूम,
धेनु भी चराने लगे.
शुभता के सूत्र बन,
यशोदा के पुत्र बन.
गोकुल में रोज-रोज,
खुशियाँ बढ़ाने लगे.
*****
अलाव
रचनाकार- प्रीति श्रीवास, मुंगेली
ठंड सताती , तब जल जाती
गरम -गरम अलाव हमारी
सर्दी जब हमे ठिठुराती
गरमाहट दे ठंड भगाती
सब के मन को खूब भाती
गरम गरम अलाव हमारी.
चम -चम - चम चमकती रहती
धू-धू -धू कर जलती रहती
सोने सी लपटो वाली
गरम - गरम अलाव हमारी.
सुबह - शाम याद आती
मम्मी तब अलाव जलाती
बैठ घेरे मे हमें तपाती
गरम - गरम अलाव हमारी.
*****
चूहिया की शादी
रचनाकार- प्रीति श्रीवास, मुंगेली
अभी खबर जंगल से आई
चूहिया की शादी है भाई
चारो ओर खुशिया छाई
बटने लगे खूब मिठाई
सज गया बिल शोभा पाई
बजने लगी मंगल शहनाई
फिर वह शुभ घड़ी आई
दूल्हन चूहिया की हुई सजाई
बन ठन कर चूहिया इतराई
दर्पण देख खूब शरमाई
तभी चूहे की बारात आई
सुनकर चूहिया मन ही मन मुस्काई
बिल्ली ने शादी संपन्न कराई
चुहिया ने खुशी मनाई
*****
मेरी माँ
रचनाकार- नलिन खोईवाल, मध्यप्रदेश
माँ का बहुत सुंदर नज़ारा,
माँ खुदा का रूप है प्यारा.
बेटा कितना भी नाकारा,
पर माँ की आँखों का तारा.
करी कटौती समय गुजारा,
मुझ पर अपना सब कुछ वारा.
माँ ममता की निर्मल धारा,
करें निछावर जीवन सारा.
माँ ही मंजिलें,माँ किनारा,
माँ से बनें जीवन हमारा.
*****
मतवाली कोयल
रचनाकार- नलिन खोईवाल, मध्यप्रदेश
नीम पर करती है बसेरा,
इनसे खूबसूरत सवेरा.
कड़वा-कड़वा खाती कोयल,
मीठा-मीठा गाती कोयल.
कुहू-कुहू की तान लगाती,
भोर भए यह हमें जगाती.
दिखने में है काली कोयल,
चाल चलें मतवाली कोयल.
कितना मधुर-मधुर बोले हैं,
कानों में यह रस घोले हैं.
तन का रंग कभी ना देखो,
पहले-पहल गुणों से परखो.
*****
ठंड-ठंड है ठंडी लगती
रचनाकार- नलिन खोईवाल, मध्यप्रदेश
ठंड-ठंड है ठंडी लगती,
सूर्य तपन से झटपट भगती.
पेड़ भी ठंड से काँपे हैं,
पंछी इधर-उधर भागे हैं.
नहाने का मन नहीं करता,
पर धूप से हौसला बढ़ता.
ठंड बहुत कैसे स्कूल जाएँ,
सूझे न क्या बहाना बनाएँ.
शीत से काँपे जब तन मेरा,
साइकिल का करूँ इक फेरा.
कुछ भी खाए सभी हज़म है,
देखें किसमें कितना दम है.
जितना पहनो लगता कम है,
ठंडी इतनी कि आँख नम है.
अलाव से ठंड भगाते हैं ,
मिलकर हम खुशी मनाते हैं.
*****
परीक्षा परख हमारी
रचनाकार- डॉ. कन्हैया साहू 'अमित'
समय परीक्षा का जब आये,
तनिक नहीं घबराओ बच्चों.
धैर्य रखो मन में नित अपने,
पाठ पठित दुहराओ बच्चों.
व्यर्थ नहीं तुम समय गँवाओ,
आलस से झट नाता तोड़ो.
कठिन परिश्रम का फल मीठा,
विपदाओं का तुम मुख मोड़ो.
ध्यान लगाकर करो पढ़ाई,
साथ सफलता ही आयेगी.
अपने पथ पर आगे बढ़ना,
दुनिया फिर तुमको भायेगी.
सजग रहे हम, अडिग रहे हम,
जीवन पथ पर सबकी बारी.
नहीं संतुलन भय से खोयें,
कठिन परीक्षा, परख हमारी.
*****
बचपन
रचनाकार- वर्षा जैन, बेमेतरा
विश्वास भरे कदमों की आहट है
'बचपन”
जिज्ञासा भरी सोच का नाम है
'बचपन”
निश्वार्थ, निर्मल मन की उत्तम परिभाषा है
'बचपन”
छल, द्वेष, दम्भ, पाखंड से परे है
'बचपन”
झूठी चकाचौंध और दिखावे से दूर है
'बचपन”
मन की सच्चाई का दर्पण है
'बचपन”
रिश्तों की गरिमा का मान है
'बचपन”
चिंतामुक्त और उन्मुक्त है
'बचपन”
सचमुच कितना प्यारा और भोला है
'बचपन”
सही दिशा में तराशें
तो बनकर कोहिनूर चमकता है
बचपन
*****
एक दिन जरूर रंग लाएगा
रचनाकार- श्याम सुंदर साहू, गरियाबंद
कड़ी मेहनत कर आगे बढ़ ,
सफलता तुझे मिल ही जाएगा.
मेहनत की ये तेरी कोशिश,
एक दिन जरुर रंग लाएगा.
संघर्षों की कहानी लिखते जा,
परिणाम तुझे मिल ही जाएगा.
संघर्ष की ये तेरी कोशिश,
एक दिन जरुर रंग लाएगा.
आज रास्ता बना लिया है,
कल मंजिल भी मिल जाएगा.
हौसलो की ये तेरी कोशिश,
एक दिन जरुर रंग लाएगा.
अपने अंदर जुनून पैदा कर,
लक्ष्य तुझे मिल ही जाएगा.
जुनून की ये तेरी कोशिश,
एक दिन जरुर रंग लाएगा.
जीवन में कुछ चाहत है अगर,
कभी न कभी मिल ही जायेगा.
चाहत की ये तेरी कोशिश,
एक दिन जरुर रंग लाएगा.
*****
अभी तो बहुत दूर तक जाना है
रचनाकार- श्याम सुंदर साहू, गरियाबंद
चल फैला अपने पंख को
मत रोक अपनी उड़ान को
खुद से किया वादा निभाना है
अभी तो बहुत दूर तक जाना है.
न कोई हिला सके तेरे हौसले को
इतना मजबूत बनाना है खुद को
अरमानों के उड़ान तुझे भरना है
अभी तो बहुत दूर तक जाना है.
तेरी किस्मत भी हार मान जाय
कड़ी मेहनत और संघर्ष देखकर
ऐसी जोश अपने अंदर जगाना है
अभी तो बहुत दूर तक जाना है.
चुनौतियों तेरे आड़े आएगी
तुझे तेरे लक्ष्य से भटकाएगी
इन चुनौतियों से तुझे लड़ना है
अभी तो बहुत दूर तक जाना है.
यूं ही नही मिलेगी तुझको मंजिल
यूं ही नही होगा सब कुछ हासिल
खुद के दिल में आग लगाना है
अभी तो बहुत दूर तक जाना है.
*****
गणतंत्र दिवस
रचनाकार- श्याम सुन्दर साहू, गरियाबंद
अपना 75वां गणतंत्र दिवस मनाएंगे,
वीर शहीदो को श्रद्धा सुमन चढ़ाएंगे.
इस दिन का रहता है सभी को इंतजार,
इस दिन मिला था गणतंत्र का उपहार.
यह है हमारे देश का राष्ट्रीय त्यौहार,
इसलिए सभी करते हैं इससे प्यार.
अपना प्यारा तिरंगा झंडा फहराएंगे,
सब मिलकर गणतंत्र दिवस मनाएंगे.
लोगों को मिला मतदान का अधिकार,
जिससे बनी देश में जनता की सरकार.
आओ डॉ अम्बेडकर को याद करे,
सभी महापुरुषों का सत्कार करे.
भारत माता को आज सब करे नमन,
ताकि देश मे रहे शान्ति और अमन.
आज के दिन सबको दे शुभकामनाएं,
आओ मिलकर गणतंत्र दिवस मनाएं.
*****
सूरज आया , सूरज आया
रचनाकार- गरिमा बरेठ, आठवीं
रोज सुबह सूरज आकर,
हम सबको रोज जगाता.
सूरज की किरणें आती,
तब सारी कालियाॅ भी खिल जाती.
उगता हुआ सूरज कहता है कि,
उदय हो या अस्त एक समान रहता है .
उसके आने से अंधकार खो जाता,
सारा जग सुंदर बन जाता.
यही रात भगाकर,
नया सवेरा लाता.
*****
फिर से तुझे पढ़ना होगा
रचनाकार- श्याम सुंदर साहू, गरियाबंद
सच करना है सपना अगर,
तुझे नींद से जगना होगा.
राह बहुत मुश्किल है मगर,
फिर से तुझे पढना होगा.
पाना है लक्ष्य को अगर,
आलस्य को छोड़ना होगा.
जीवन मे कुछ बनना है अगर,
फिर से तुझे पढना होगा.
आज हार गए है अगर,
कोशिश तुझे करना होगा.
कल जीत तेरी होगी मगर,
फिर से तुझे पढ़ना होगा.
कठिन चुनौतियां हैं मगर,
इन चुनौतियों से लड़ना होगा.
सफल इंसान बनना है अगर,
फिर से तुझे पढ़ना होगा.
बहुत मुश्किल है यदि डगर,
फिर भी तुझे चलना होगा.
अपने पैरो मे खड़ा होना है अगर,
फिर से तुझे पढ़ना होगा.
*****
जब लक्ष्य रहेगा सीने में
रचनाकार- श्याम सुंदर साहू, गरियाबंद
न तकलीफ न संघर्ष
फिर क्या मजा जीने में
मंजिल जरूर मिलेगा
जब लक्ष्य रहेगा सीने में.
न कोई तड़प न जूनून
फिर क्या मजा जीने में
तूफान भी थम जाएगा
जब लक्ष्य रहेगा सीने में.
किस्मत जरूर बदलेगा
जब तू नहाएगा पसीने में
ख्वाब जरूर पूरा होगा
जब लक्ष्य रहेगा सीने में.
जब पानी साफ न हो तो
फिर क्या मजा पीने में
सफलता कदम चूमेगा
जब लक्ष्य रहेगा सीने में.
हौसला और विश्वास रखो
अपने दिल के नगीने मे
सपना जरूर सच होगा
जब लक्ष्य रहेगा सीने में.
*****
शून्य से शिखर तक जाना है मुझको
रचनाकार- श्याम सुंदर साहू, गरियाबंद
राह कितना भी कठिन क्यों न हो,
मंजिल की ओर बढ़ना है मुझको,
लक्ष्य को हासिल करना है मुझको,
शून्य से शिखर तक जाना है मुझको.
आज हार गए तो कोई गम नही,
फिर से कोशिश करना है मुझको,
जीत का परचम लहराना है मुझको,
शून्य से शिखर तक जाना है मुझको.
जीवन में कैसे भी परिस्थितियों आए,
इन परिस्थितियों से लड़ना है मुझको,
अपने सपने को सच करना है मुझको,
शून्य से शिखर तक जाना है मुझको.
राह में चाहे हजारों लाखो कांटे बिछे हो,
कांटों को पारकर निकलना है मुझको,
पुष्प की आशा छोड़ बढ़ना है मुझको,
शून्य से शिखर तक जाना है मुझको.
जीवन में कोई कार्य असंभव हो तो,
इसे संभव करके दिखाना है मुझको,
सफलता की सीढ़ी चढ़ना है मुझको,
शून्य से शिखर तक जाना है मुझको.
*****
मैं हूं मोबाइल
रचनाकार- गरिमा बरेठ, आठवीं
मैं हूं मोबाइल , मैं हूं मोबाइल,
मैं हूं ज्ञान का भंडार.
मुझे इस्तेमाल कर पढ़ते हैं बच्चे,
मुझसे ही आगे बढ़ते हैं बच्चे.
मैं ही धरती के हर कोने तक बात करता,
मेरे बिना अब इस युग में कोई न
रह पाता.
जो मुझे अच्छे से इस्तेमाल करते,
वह ही आगे बढ़ते.
जो मेरा गलत इस्तेमाल करते,
वह बिगड़ जाते.
*****
मुझे भारत जैसे बनना है
रचनाकार- श्रीमती संगीता निर्मलकर, दुर्ग
मुझे भारत जैसा बनना है.
हिमालय जैसा सीना ताने,
हर तूफानों को सहना है.
दक्षिणी सागर जैसा,
हर लहरों से लड़ना है.
पश्चिम के रेगिस्तानों के जैसे,
रेतों में भी चलना है.
पूरब की हरियाली लिये,
उमंग सभी में भरना है.
पर्वत- घाटी में बहती,
झरनों जैसी,
कल- कल, हर -पल आगे बढ़ना है.
बस मुझे मेरे,
भारत जैसा बनाना है
*****
संग्रह करना बुरी बात
रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र
एक पथिक सरिता से बोला
सरिते! तू छोटी इतनी.
तेरा जल कितना मीठा है
पीकर तृप्ति मिले कितनी!
सागर अति विशाल होता है
लेकिन उसका जल खारा.
इसका क्या रहस्य बतलाओ?
मैं तो सोच - सोच हारा.'
सरिता बोली 'अरे! पथिक जी
मेरा समय न नष्ट करो.
सागर से ही स्वयं पूछ लो
जाने का कुछ कष्ट करो. '
पहुँचा सागर निकट पथिक जब
देखा, वह फैला विस्तृत.
खूब कर रहा गर्जन - तर्जन
दृश्य न पलभर हो विस्मृत.
पथिक ने प्रश्न किया सागर से
वह बोला -' मैं बहुत हूँ व्यस्त.
जाओ थोड़ी दूर झील है
वह ही उत्तर देगी मस्त. '
कहा झील ने,' सुनो पथिक जी!
सरिता दीदी है दानी.
जो कुछ मिले दान कर देती
पास नहीं रखती पानी.
संग्रह करना बुरी बात है
परहित हो जीवन सारा.
सागर नहीं बाँटता निज जल
इसीलिए होता खारा. '
*****
ट्रेक्टर के सवारी
रचनाकार- श्रीमती परवीनबेबी दिवाकर, मुंगेली
करके ट्रेक्टर के सवारी,
मोला मजा आगे भारी.
ट्रेक्टर मम्मी मोर चलावय,
मोला ट्राली म बइठावय.
गाँव /शहर ल घुमावय,
नाना /नानी से मिलावय.
जम्मो मिलके मड़ई -मेला के,
मजा उठावन, बताशा, जलेबी खूब खावन.
करके ट्रेक्टर के सवारी,
मोला मजा आगे भारी.
*****
परीक्षा
रचनाकार- श्याम सुंदर साहू, गरियाबंद
परीक्षा का देखो मौसम आया,
कई बच्चो का दिमाग चकराया.
जीवन का है यह एक पड़ाव,
परीक्षा से कभी मत घबराव.
परीक्षा को बनाओ अपना मीत,
क्योंकि डर के आगे है जीत.
अपनी मेहनत पर भरोसा रख,
मन में कोई तनाव मत रख.
पढ़ाई मे ध्यान केंद्रित कर,
परीक्षा से कभी मत डर.
नही होगा तेरा कभी अहित,
क्योंकि डर के आगे है जीत.
परीक्षा का भूत भाग जाएगा,
तनाव थोड़ा कम हो जाएगा.
मन और दिमाग को शांत रख,
अपनी तैयारी पूर्ण रख .
विफलता से कभी डर मत,
क्योंकि डर के आगे है जीत.
*****
मेरा बचपन
रचनाकार- अनुष्का शुक्ला, छठवीं, स्वामी आत्मानंदशेख गफ्फार अंग्रेजी माध्यम विद्यालय तारबहार बिलासपुर
एक बचपन का जमाना था,
जिसमें खुशियों का खजाना था.
चाहत चांद को पाने की थी,
पर दिल तितली का दीवाना था.
थक कर आना स्कूल से,
फिर भी खेलने जाना था.
बारिश में कागज की नाव थी,
हर मौसम सुहाना था.
रोने की वजह ना थी,
ना हंसने का बहाना था.
क्यों हो गए हम इतने बड़े,
इससे अच्छा तो बचपन का जमाना था.
*****
होली
रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र
रंगों का त्योहार है होली.
स्नेह, मान, मनुहार है होली.
फाल्गुन पूर्णिमा शुभ दिन को
सबके मन में हर्ष समाता,
मिट्टी - धूल से खेला जाता
तभी 'धुलण्डी पर्व' कहाता,
माटी का वंदन करते हम
समता का व्यवहार है होली.
मिलजुल हँसना और हँसाना
मस्ती लिये नाचना - गाना,
मिलते गले एक - दूजे के
खूब अबीर - गुलाल लगाना,
ढोल, मंजीरे बीच फाग की
बहा रही रसधार है होली.
रंग बनें टेसू - गुलाब से
खेलें और हुड़दंग मचाएँ,
गोबर, कालिख, कीच, रसायन
अति घातक हैं, बचें - बचाएँ,
जीभर खाएँ गुझिया - पापड़
मिलन का शुभ उपहार है होली.
आपस की कटुता सब भूलें
रखें सभी के प्रति मृदु प्रेम,
दें मंगलकामना - बधाई
चाहें सबकी सकुशल - क्षेम,
करती दूर निराशा, चिंता
खुशियों की बौछार है होली.
रंगों का त्योहार है होली.
*****
कर्म करो तो फल मिलता है
रचनाकार- जीवन चन्द्राकर'लाल'', दुर्ग
कर्म करो तो फल मिलता है,
आज नहीं तो,कल मिलता है.
पत्थर को भी,खोद के देखा,
उसके अंदर,जल मिलता है,
आज नहीं तो,कल मिलता है.
दुख से टूट न जाना,दिल से,
बाद में सुख का,पल मिलता है.
आज नहीं तो,कल मिलता है.
मधुर वचन ही,बोल सभी से,
तब हिरदे का,तल मिलता है.
आज नहीं तो,कल मिलता है.
पार तू कर जा,दुर्गम पथ को,
राह फिर,सरल मिलता है.
आज नहीं तो,कल मिलता है.
धार को चीर दे,भुजा से अपनी,
आगे बढ़कर,थल मिलता है.
आज नहीं तो,कल मिलता है.
कर्म करो तो,फल मिलता है.
*****
गोल - गोल है पृथ्वी
रचनाकार- काव्या दिवाकर, चौथी, मुंगेली
गोल - गोल है पृथ्वी.
पानी - पानी है पृथ्वी.
रहते हम है यहाँ.
हमारा घर है पृथ्वी.
पृथ्वी मैं है जीवकई
लगे मुझे सब नई - नई.
मैं देखू उनके सब खेल.
देखू मैं उड़ती बादल मैं तितली.
*****
सीखो
रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू, दुर्ग
खुद की लड़ाई खुद लड़ना सीखो
खा कर ठोकर सम्हलना सीखो.
खुशी और गम आएंगे जिंदगी मे
स्वीकार दोनों को करना सीखो.
नदियों सा हर दम बहना सीखो
सूरज की तरह निकलना सीखो.
थककर ना बैठ मंजिल के मुसाफिर
मंजिल की राह पर चलना सीखो.
मुश्किलों से डटकर लड़ना सीखो
पाने के लिए कुछ करना सीखो.
बिन मेहनत के नहीं मिलता कुछ
मेहनत पर भरोसा करना सीखो.
*****
वरदानी विज्ञान
रचनाकार- डॉ. कन्हैया साहू 'अमित'
जीवन को आसान बनाता, वरदानी विज्ञान.
जाँच परखकर, बात बताता, वरदानी विज्ञान.
आदिम युग से वर्तमान तक, देखें तनिक इतिहास,
वैज्ञानिकता ने ही इसको, आज बनाया खास,
सुखद बयारें सतत बहाता, वरदानी विज्ञान.
जीवन को आसान बनाता, वरदानी विज्ञान.
पहले तो दुष्कर होते थे, छोटे-मोटे काज,
काम चुटकियों में बनते हैं, घर बैठे अब आज,
सात समुंदर पार कराता, वरदानी विज्ञान.
जीवन को आसान बनाता, वरदानी विज्ञान.
नित आविष्कारों ने लाया, जीवन में बदलाव.
धन्य हुई भारत की धरती, बिखरा रमन प्रभाव,
आज दिवस यह याद दिलाता, वरदानी विज्ञान.
जीवन को आसान बनाता, वरदानी विज्ञान.
*****
चमत्कारी विज्ञान
रचनाकार- डॉ. कन्हैया साहू 'अमित'
पहले चिठ्ठी भेजी जाती,
अब तो मोबाइल ही भाती.
गाँव- शहर तब पैदल जाते,
आज हवा में हम उड़ पाते.
कार्य अधिक हो, हम झट थकते,
लेकिन रोबोट आज रखते.
किडनी, लीवर, हार्ट बदलते,
रिक्त गोदियाँ, आज मचलते.
अंध भक्ति से हमें बचाये,
विज्ञान सत्य राह दिखाये.
रात अँधेरी, दिन सा रोशन,
आज ग्रहों का देखें 'मोशन'.
बंजर में भी फूल खिलाता,
उम्मीदों से आगे जाता.
है विज्ञान आज अधिनायक,
जीवन का यह बना सहायक.
*****
ख़ुशी मनाओ
रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा, भोपाल
झूठ कहो मत ,
झूठ सहो मत.
हर झगड़े से,
दूर रहो मत.
ख़ुशी नदी में,
खूब बहो मत.
यदि कड़ुआ हो,
सत्य कहो मत.
दुख निवास में,
कभी रहो मत.
फूल बनो पर ,
शूल बनो मत.
सरल रहो तुम,
तेज बनो मत.
आलस जी के
पास रहो मत.
ख़ुशी मनाओ,
कष्ट सहो मत.
*****
ख़ुशी चिरैया
रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा, भोपाल
करो पढ़ाई ताबड़तोड़,
दुनिया को फिर पीछे छोड़.
करेगी ये दुनिया जगमग,
पहले खुद को सबसे जोड़.
जिन राहों पे मिले न ख़ुशी,
उन राहों को जल्दी छोड़.
जिस शाख पे हो फल कच्चे,
वैसे फल तू कभी न तोड़.
ख़ुशी चिरैया गर मिल जाय,
कर लेना उससे गठजोड़.
*****
खुल्लम खुल्ला
रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा, भोपाल
सोनू खाता रस का भल्ला ,
मोनू को भाता रसगुल्ला.
बिल्ली जब पा जाती चूहा,
करे ख़ुशी से हल्ला गुल्ला.
मिले जलेबी जब अलबेली ,
मन में बजता है रमतुल्ला.
हाथी खाय रबड़ी मलाई ,
पर पहले करता है कुल्ला.
बन्दर मामा खाते केला ,
वो भी भैया खुल्लमखुल्ला.
*****
होली का उत्सव
रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा, भोपाल
फूल हँसे कलियाँ मुस्काई,
होली आई हवा हवाई.
पिचकारी की बौछारों से,
रंग सुहाने होली लाई.
अब गुलाल खामोश नहीं है,
उसने खुशियां खूब लुटाई.
हुरियारों का जोश देख के,
ढोल बजे मस्ती इठलाई.
ये जीवन होली का उत्सव
इससे दुख की करो बिदाई.
*****
प्रीत गुलाल
रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा, भोपाल
हरे गुलाबी नीले लाल,
खुशियां बांटें प्रीत गुलाल.
होली के रंग से मिल के,
सबको करते लालमलाल.
खुशबू वाले हरे गुलाल,
करते सबको खूब निहाल.
नाच रहे सब होली वीर,
ढोल बजाए कालू लाल.
रंग बिखेरें खुशियों वाले,
जीवन में हर साल गुलाल.
*****
बसंत ऋतु का आगमन
रचनाकार- श्याम सुंदर साहू, गरियाबंद
ऋतुओं का राजा बसंत है आया,
चहुं ओर सुन्दर हरियाली छाया.
सबके मन को खूब है भाया,
बसंत ऋतु का मौसम आया.
नई चेतना और उमंग छा गया,
देखो देखो बसंत ऋतु आ गया.
मां सरस्वती का हम करे वंदन,
बसंत ऋतु का करे अभिनंदन.
चि चि चिड़िया चहकने लगते,
भर भर भंवरे भंवराने लगते .
कू कू बोल कोयल गीत सुनाए ,
भंवरे की गुंजन मन को भाए.
प्रकृति का कण कण खिल उठा,
पशु पक्षी भी उल्लास से भर उठा.
सरसों का फूल सोने जैसे चमकने लगा,
जौ और गेहूं की बालियां खिलने लगा.
आम के पेड़ो पर सुन्दर बौर आने लगा,
फूलों में रंग बिरंगी तितलियां मंडराने लगा.
*****
होली
रचनाकार- नमिता वैश्य
होली आई, होली आई
रंग- बिरंगी होली आई.
धूम मचाती होली आई
प्रेम बढ़ाती होली आई.
रंग-अबीर, गुलाल लगाएं
डटकर गुझिया, पापड़ खाएं.
पास सभी के है पिचकारी
लगती कितनी सुन्दर प्यारी.
मिल-जुलकर त्योहार मनाएं
खुशियां बांटें, नाचें, गाएं.
सबको हंसकर गले लगाएं
भेदभाव को दूर भगाएं.
पाकर शुभकामना, बधाई
बच्चों की टोली हर्षाई .
*****
पानी
रचनाकार- नमिता वैश्य
सबका जीवनदाता पानी
सबकी प्यास बुझाता पानी.
पानी से ही हरियाली है
पानी से हैं वन-उपवन.
पानी से ही वसुधा फलती
पानी ही है उत्तम धन.
पानी बिना नहीं है जीवन
पानी से फसलें उगती.
ताल-तलैया, झीलें, झरने
पानी से नदियां बहतीं.
पानी है अनमोल धरा पर
पानी ही जीवन आधार.
पानी से हम सीखें सेवा
याद रखें अनुपम उपकार.
आओ बचत करें पानी की
पानी को न व्यर्थ बहायें.
बूंद-बूंद से सागर बनता
सब को यही बात समझायें.
*****
गर्मी आई
रचनाकार- नमिता वैश्य
गर्मी आई, गर्मी आई
हमको खूब सताती भाई.
स्वेटर, कंबल दुबक गये सब
पंखे, कूलर ही भाये अब .
धूप दिखाती अपने तेवर
बाहर जाने में लगता डर.
तपता सूरज, लू है चलती
आसमान से आग बरसती.
आमपना, शरबत, ठण्डाई
लस्सी, आइसक्रीम मन भायी.
बड़े-बडे दिन, छोटी रातें
सब करते छुट्टी की बातें.
खेल और मस्ती संग लाई
घर में ही अब करो पढ़ाई.
*****
साफ-सफाई
रचनाकार- नमिता वैश्य
मम्मी ने यह बात बताई
आसपास तुम रखो सफाई.
यहां-वहां मत फेंको कचरा
घर को रखो साफ-सुथरा.
जहां न होती साफ-सफाई
समझो सौ बीमारी आई.
गंदगी को दूर भगाओ
सब रोगों से मुक्ति पाओ.
स्वच्छता की आदत अपना लो
कूड़ा कूड़ेदान में डालो.
स्वच्छ रहेगा जब परिवेश
सुंदर होगा अपना देश.
*****
आशाएँ
रचनाकार- युक्ति साहू, कक्षा 8 वी, स्वामी आत्मानंद शेख गफ्फार अंग्रेजी माध्यम शाला बिलासपुर
आशाएं कभी न छोड़ना,
अपना मन कभी न तोड़ना.
मुसीबतें चाहे कितनी आए,
उम्मीदों से मुँह न मोड़ना.
भले ही असफलता हाथ लगे,
आशाओं की राह चुनना.
इस बार पूरी रणनीति से,
युद्ध में खरे उतरना.
तुम्हारे साथ भले कोई न रहे,
तुम उम्मीदों के साथ रहना.
नकारात्मकता को दूर भगाकर,
मानना अपने दिल का कहना.
आनंद लेते हुए मेहनत करना,
नाकामी भी घुटने टेकेगी.
बस तुम निराश न होना,
जीत तुम्हें ही मिलेगी.
छोटी छोटी असफलता तो आती रहती है,
इनसे कभी न घबराना.
जिंदगी खुलके जीना,
हँसना और हँसाना.
*****
वसन्त जब आये
रचनाकार- सोनल सिंह 'सोनू', दुर्ग
आम्र वृक्ष पर बौर आए,
पलास खिलकर मुस्कुराए,
कोयल मीठे तराने गाये,
वसन्त आये, वसन्त आये.
अमलताश मन को है भाये,
पतझड़ से क्यों घबराए,
परिवर्तन का उत्सव मनाये,
वसन्त आये, वसन्त आये.
शीत ऋतु लौट के जाये,
खुशनुमा मौसम हो जाये,
झरबेरी के बेर ललचाये,
वसन्त आये, वसन्त आये.
विविधरंगी पुष्प खिले,
पीतवर्णी सरसों फूले,
सुरभित सी पवन बहे,
वसन्त आये ये कहे .
वसन्त ऋतुराज कहाये,
शोभा इसकी बरनी न जाये,
उर में है आनंद समाये,
वसन्त आये, वसन्त आये.
*****
जंगल में होली
रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र
एकबार जंगल के अंदर
जानवरों से बोला बंदर
आया होली का त्योहार
मिलजुल चलो, मनाएँ यार
सभी रहेंगे नशे से दूर
बस हुड़दंग मचे भरपूर
सबको लगी योजना प्यारी
दौड़ - दौड़ कर ली तैयारी
जेब्रा ले आया पिचकारी
रंग भरी चीते को मारी
भालू नाचे, करे धमाल
दादा शेर के मला गुलाल
सूंड़ में पानी लाया हाथी
बौछारों से भीगे साथी
गीदड़ पानी से घबराया
पकड़ गधे ने उसे घुमाया
हिरण वहाँ से लगा सटकने
बंदर मामा लगे डपटने
झाड़ी में दुबका खरगोश
चढ़ा लोमड़ी को था जोश
बाहर आओ मेरे लाल
रंग से भिगो दिया तत्काल
सभी को आया अति आनंद
प्रेम से रहना है स्वच्छंद
बोल रहे सब अपनी बोली
यादगार बन गई है होली
*****
इन सपनों को,पाने भागो
रचनाकार- जीवन चन्द्राकर'लाल'', दुर्ग
निद्रा तोड़ो जल्दी जागो.
और सपनों को पाने भागो.
सूरज को है, शीघ्र उठाना,
पूरब में लाली बगराना.
फूलों को मुस्कान है देना,
पुरवाही में महक मिलाना.
चिड़ियों को गीत सिखाकर,
उनको है उड़ान सिखाना.
लहरों को भी जोश है देना,
और जुबान को रस से पागो.
इन सपनों को पाने भागो.
*****
अब तो मन को पढ़ाई में लगा
रचनाकार- श्याम सुंदर साहू, गरियाबंद
बहुत हो गया घूमना फिरना,
दोस्तों के साथ गप्पे मारना.
समय को यूं बर्बाद मत कर ,
चल परीक्षा की तैयारी कर.
पढ़ाई के प्रति रूचि तो जगा,
अब तो मन को पढ़ाई में लगा.
सपना तेरा जरूर सच होगा ,
जग मे तेरा बड़ा नाम होगा.
अपने सीने मे हौसला तो जगा,
अब तो मन को पढ़ाई में लगा.
लक्ष्य लेकर निरंतर बढ़ता चल ,
हर समस्या का निकलेगा हल.
अपने सीने मे जुनून तो जगा ,
अब तो मन को पढ़ाई में लगा.
सुबह चार बजे उठ पढ़ाई कर,
अपने सपने को जरा याद कर.
अपने सीने मे जज्बा तो जगा,
अब तो मन को पढ़ाई में लगा.
*****
दादा मेरी बात मानो
रचनाकार- संजय जांगिङ 'भिरानी', राजस्थान
दादा जी मेरे दादा जी,
मेरी एक बात सुनो जी,
कैसा होता ये स्कूल जी,
क्यों जाते हम रोज जी,
भविष्य मेरी सुनो तुम बात,
नही भाता स्कूल का साथ,
क्यो करते हो ऐसी तुम बात,
पढाई देती हर काम मे साथ .
स्कूल होता सपनो का घर,
लगाता हमारे परी जैसे पर,
निकालता हमारे मन से डर,
ज्ञान से देता हमे पूरा भर .
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गाँव गली महकने लगा अमराई के बौरों से
रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु', धमतरी
गाँव गली महकने लगा है,अमराई के बौरों से
जंगल-पहाड़ दहकने लगा है पलास फूलों से
वासंती बयार बहने लगी वन-उपवन बागों से
झूम रहे हैं तरुवर भी मस्त पवन के झोंकों से
आम्र तारु लद गए स्वर्ण मंजरियों के बौरों से
अमराई भी गुंजने लगी कोकिल के कूकों से
वसुंधरा अब सजने लगी कोयल के संदेशों से
सतरंगी आभा बिखरने लगी वसुंधरा फूलों से
मद मस्त महुआ मदहोश करने लगा डालों से
तरुवर भी सवंरने लगे पंछी और कोकिलों से
जंगल पहाड़ गुंजने लगे झरनों और पठारों से
सुर सरिता बहने लगी है,अपने पावन धारों से
वसुंधरा भी संवरने लगी फुल केशर सरसों से
नव यौवना दुल्हन सी लगने लगी है श्रृंगारों से
मंगल परिणय होगा,ऋतु राज वसंत बहारों से
अभिनंदन होगा कोकिल भ्रमरों की गुंजारों से
शहनाइयां बजेगी, सुमंगल, सुमधुर बयारों से
दशों दिसाएं, झंकृत होंगी,इस पावन रस्मों से
कण-कण ये आनंदित होगा, सुरमई तालों से
मधुर मिलन होगा फुल चमन के गलियारों से
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बाबा जी
रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र
गाँव में लगते सबसे न्यारे, बाबा जी .
हम सबको हैं बहुत ही प्यारे, बाबा जी.
खुलकर हँसते और हँसाते
अच्छी सीख सदैव बताते
अस्सी वर्ष है आयु, किंतु कमजोर नहीं
चलते अब भी बिना सहारे, बाबा जी.
बाग और खेतों में जाते
ताजे फल, गन्ने हैं लाते
पौधों को सींचते, गाय को चारा दें
उठ जाते प्रतिदिन भिनसारे, बाबा जी .
माने हुए वे कृषि विज्ञानी
नित्य सुनाते नई कहानी
बच्चे उनके परम मित्र, सँग - सँग खेलें
कहते हैं बनना ध्रुवतारे, बाबा जी .
नहीं किसी पर गुस्सा करते
सच कहने से कभी न डरते
चाय न छूते, एक गिलास दूध पीते
मजे से खाते शक्करपारे, बाबा जी .
हम सबको हैं बहुत ही प्यारे, बाबा जी.
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अ से अ: की सीख
रचनाकार- सुंदर लाल डडसेना 'मधुर'
अ से अनार, आ से आम.
पढ़ाई करो, सुबह -शाम.
इ से इमली, ई से ईख.
लो बड़ों से भी सीख.
उ से उल्लू, ऊ से ऊन.
अपने बड़ों की बातें सुन.
ऋ से ऋषि है बनता.
सबको ज्ञान जो देता.
ए से एड़ी ,ऐ से ऐनक.
पढ़ के नाम, करो रौनक.
ओ से ओखली, औ से औरत.
पढ लिखकर बनोगे महारत.
अं से अंगूर, अ: है खाली.
खत्म कहानी, बजाओ ताली.
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वो है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम
रचनाकार- श्याम सुंदर साहू, गरियाबंद
अयोध्या के पावन धरा पर जो जन्मे,
त्रेता,सतयुग किसी भी युग में न हारे.
भक्तों के हृदय में जो सदा रहते,
जिनके गुणगान हर कोई करते.
संसार में सुंदर है जिनके नाम ,
वो है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम,
माता कौशल्या के आंखों के तारे,
राजा दशरथ के प्राणो से प्यारे.
वन वन भटके हर कष्ट सहे ,
कर्तव्य पथ पर सदा डटे रहे.
नाम लेने से बन जाए बिगड़े काम,
वो है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम.
शबरी के झूठे बेर जो खाए,
मूरत सबके मन को भाए.
पत्थर बने अहिल्या को तारे,
केंवट जिनके चरण पखारे.
भक्त के कंठ से निकले जो नाम,
वो है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम.
वचनों को निभाने महल त्याग दिए,
श्रेष्ठ कर्म कर आदर्श प्रस्तुत किए.
भक्तों के हृदय के रोम-रोम है राम,
वो है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम.
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बसंत ऋतु का आगमन
रचनाकार- श्याम सुंदर साहू, गरियाबंद
ऋतुओं का राजा बसंत है आया,
चहुं ओर सुन्दर हरियाली छाया.
सबके मन को खूब है भाया,
बसंत ऋतु का मौसम आया.
नई चेतना और उमंग छा गया,
देखो देखो बसंत ऋतु आ गया.
मां सरस्वती का हम करे वंदन,
बसंत ऋतु का करे अभिनंदन.
चि चि चिड़िया चहकने लगते,
भर भर भंवरे भंवराने लगते .
कू कू बोल कोयल गीत सुनाए ,
भंवरे की गुंजन मन को भाए.
प्रकृति का कण कण खिल उठा,
पशु पक्षी भी उल्लास से भर उठा.
सरसों का फूल सोने जैसे चमकने लगा,
जौ और गेहूं की बालियां खिलने लगा.
आम के पेड़ो पर सुन्दर बौर आने लगा,
फूलों पर रंगीन तितलियां मंडराने लगा.
यह बसंत आपको खुशियां दे अनंत ,
प्रेम व उत्साह से भर दे जीवन में रंग.
*****
अंगना म शिक्षा
रचनाकार- श्रीमती चंचला चन्द्रा, सक्ती
हम माताएं हैं, हमें बच्चे गढ़ना है.
एक सभ्य समाज की ओर बढ़ना है.
नन्हें मुन्हे बच्चों को , प्यार से सिखाना हैं.
ज्ञान विज्ञान की बाते बताना है.
धरती से अंतरिक्ष तक सैर कराना है.
पहाड़ से लेकर समुद्र तक तैर आना है.
हर अंगना में शिक्षा लाना है,
हर बच्चे को जिज्ञासु बनाना है.
कठिन रास्तों पर हँस कर चलना सिखाना है,
बच्चों को उनके लक्ष्य तक पहुंचाना है.
अब सृजनात्मकता को समझना है,
एक सभ्य समाज की ओर बढ़ना हैं.
हम माताएं हैं हमें बच्चे गढ़ना हैं.
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सुबह की सैर
रचनाकार- राजकुमार निषादराज, दुर्ग
प्रातः काल का समय,
थोड़ा अँधेरा होता है.
निकलता हूँ सुबह सैर के लिए,
तो मौसम सुहाना होता है.
आगे बढ़ता हूँ चलते-चलते,
तो धीर-धीरे उजाला होता है.
निकलता हूँ सुबह सैर के लिए,
तो मौसम सुहाना होता है.
ठंडी हवाएं जब तन को,
यूं स्पर्श करतीं हैं.
तब मन में उमंग और,
उत्साह पैदा होती है.
घास पर पड़ी ओस की बूंदें,
मोतियों सा नजर आता है.
निकलता हूँ सुबह सैर के लिए,
तो मौसम सुहाना होता है.
चिड़ियों की चहचहाहट से,
जब मधुर शोर होता है.
चारो ओर आनंद और,
भाव विभोर होता है.
सड़क किनारे खेतों में,
पीले सरसों का नाजारा होता है.
निकलता हूँ सुबह सैर के लिए,
तो मौसम सुहाना होता है.
पहुंचता हूँ नदी किनारे तब,
हसीन वादियां दिखाई देती है.
पानी से निकलता धूँध कोहरे,
में परछाई नजर आती है.
धीरे-धीरे आसमान में,
सूरज भी निकल आता है.
निकलता हूँ सुबह सैर के लिए,
तो मौसम सुहाना होता है.
*****
उड़ान
रचनाकार- सुश्री मीना तिवारी, बेमेतरा
उड़ान मेरे सपनों की,
उम्मीद मेरे अपनों की,
साकार करने को हूँ तैयार .
छू लूंगी आसमान को,
दिखा दूंगी इस जहां को,
एक दिन होगा मेरा सपना साकार .
कह दो उलझन को रोके ना मुझे,
मुझ में है जज्बा कुछ कर दिखाने का,
अपने सपनों को दूंगी आकार.
मैं हूं भारत की बेटी,
मेरा अंदाज नया है,
ऊंचा करूंगी देश का नाम,
बहुत ऊंची है मेरी उड़ान.
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शारदे वंदना
रचनाकार- सुश्री सुशीला साहू, रायगढ़
हे माँ शारदे तेरी चरणों में, शीश झुकाने आऍं हम.
नेक राह दिखाना हमको, बालक भटक न जाऍं हम.
पढ़ लिखकर बने महान, ऐसा विमल मति पाऍं हम.
हे माँ शारदे तेरी चरणों में, शीश झुकाने आऍं हम.
कोकिल कंठी स्वर दे दो माँ, सुमधुर गीत गाऍं हम.
सात सुरों के सरगम जैसा, लय ताल सब पाऍं हम.
ऐसा वरदान दे दो माता, अक्षर ज्ञान बढाऍं हम.
हे माँ शारदे तेरी चरणों में, शीश झुकाने आऍं हम.
तेरी दिव्यता के ऑंचल में, ममता की छाॅंव पाऍं हम.
ज्ञान चक्षु खोल दे मैय्या, अपनी पहचान बनाऍं हम.
पाकर बुद्धि विद्या तुझसे, अज्ञानता दूर भगाऍं हम.
हे माँ शारदे तेरी चरणों में, शीश झुकाने आऍं हम.
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बसंत ऋतु
रचनाकार- आशा उमेश पान्डेय, सरगुजा
फूले सरसो फूल जब, आता सदा बसंत.
खिलते टेसू देखकर, , मन होता है कंत.
खेतो में फैली जहाँ, हरियाली चहुँ ओर.
देख सुहानी है लगे, सदा नवल है भोर.
आम बौर भी आ गये , फैली मंद बयार.
लेकर खुशियाँ आ गयी, घर घर प्रेम अपार.
कोयल कूके बाग में, नाचे वन में मोर.
पवन चले सन सन जहाँ, खूब मचाये शोर.
अलबेला मौसम जहाँ, मन को भाए खूब.
खुशहाली को देखकर, लगता हरियर दूब.
*****
बहती है पुरवाई
रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू', गरियाबंद
माह फरवरी आतुर है मन,
धरा प्रेम बरसाई,
सुरभित गुलाब की पंखुड़ियाँ,
शूल मध्य इठलाती.
देख दृश्य पुलकित है कण-कण,
कोयल गीत सुनाती.
पात–पात तरुवर झूमे जब,
संग बसंती आई.
प्रणय गीत का भाव जगाती,
कवियों की कविताएंँ.
स्पर्श हृदय को करें शब्द ये,
श्रृंगारित हो जाएँ.
पग–पग जीवन उल्लास भरे,
बहती है पुरवाई.
पीले–पीले सरसों फूले,
बृक्षारण महकाते,
भॅंवरे तितली मिलकर सारे,
बैठ वहाँ हर्षाते,
लगे झूलने बौर आम के,
झूम उठे अमराई.
रूप बसंती सज बैठी जस,
दुल्हन नई नवेली,
कभी सुहाने दृश्य दिखाती,
रचती कभी पहेली,
बॅंधे प्रीत में प्रियतम सारे,
बजती है शहनाई.
*****
बसंत ऋतु
रचनाकार- श्रीमती रेणुका अग्रवाल, बेमेतरा
आई बसंत झुम के
खेतों में फिर सरसों फुले
देखो सुंदर अजब नजारा
आम की बोर से महका जग सारा
चारों तरफ हरियाली छाई
कोयल ने फिर कु-कू गाई
कहलाता ऋतुओ का राजा
जो सबके मन को भाता
बागो में कलियां मुस्कुराई
ठंडी ने भी ली अंगड़ाई
बच्चे खेले घूम घूम कर
आई बसंत ऋतुु झूम झूम कर.
*****
हिम्मत को न हार
रचनाकार- जीवन चन्द्राकर 'लाल'', दुर्ग
हिम्मत को न हार ,
साथी,हिम्मत को न हार.
दिन परीक्षा का है, आया,
खुद को कर तैयार,साथी...
इन प्रश्नों से क्या घबराना,
इनसे कर डालो याराना.
कर लो अंगीकार,साथी...
समय बनाकर सोवो जागो,
समय निकालो खेलो भागो.
खुद को करो तैयार, साथी....
बूंद बूंद से भरना मटका,
मन मे न देना तुम झटका,
महशूस न करना भार,
साथी ,हिम्मत को.....
*****
रंग-बिरंगी तितली
रचनाकार- जीवन चन्द्राकर'लाल'', दुर्ग
मैं हूँ रंग बिरंगी तितली,
गुलशन की करती हूं सैर
न रंगों से भेद मुझे है,
न फूलों से रखता बैर.
मैं हूँ.....
नित फूलों को गीत सुनाऊं,
मन को उनके मैं बहलाऊँ.
बगिया सुनी,मेरे बगैर.
मैं हूँ......
हर फूलों के पास में जाऊँ,
ढेर प्यार,उनसे मैं पाऊँ.
सब अपने हैं, न कोई गैर.
मैं हूँ....
*****
बसंत बहार
रचनाकार- श्रीमती राजकिरण मिश्रा, बेमेतरा
ओस की बूंदे पड़ी कोमल कली पर
चहक उठी नन्ही कली मुस्कुरा कर
भंवरा गुनगुन कर आ बैठ नन्ही कली पर
कली खिल पड़ी खिलखिलाकर
मानो उस फूल पर यौवन की
सुंदर छटा छा गई
वह सकुचाकर थोड़ा शरमा गई
फूल और भंवरे का संगम देख
कोयल पपिहा मस्ती में झूम उठे
पंछी मोर इठलाकर नाच उठे
आया सुंदर बसंत ऋतुराज
मानो हरियाली से सजकर
निकली हो बारात
पशु ,पक्षी ,फूल ,लता करती
स्वागत बारंबार
आया मस्त बसंत बहार
आया मस्त बसंत बहार
*****
मैं भी स्कूल जाऊंगी
रचनाकार- श्रीमती राजकिरण मिश्रा, बेमेतरा
मैं भी स्कूल जाऊंगी
मौज मस्ती कर सहेली के साथ खेल कर
मैं आ जाऊंगी
मैं भी स्कूल जाऊंगी मैं भी स्कूल जाऊंगी
खेल खेल में सीखूंगी एक दो तीन चार
ऐसे ही गिनती मै सीख जाऊंगी
मैं भी स्कूल जाऊंगी
कभी कहानी तो कभी कविता ,कोई किस्सा,
गीत का हिस्सा,
मैं रोज तुम्हें सुनाऊंगी
मैं भी स्कूल जाऊंगी मैं भी स्कूल जाऊंगी
अपने कपड़े संग में सारे कपड़े धो कर लाऊंगी.
घर के सभी काम मैं करके जाऊंगी पर,
मैं भी स्कूल जाऊंगी
स्कूल में तो रोज मेले हैं
खुशियों की वहां रोज रेले हैं
उन्ही खुशियों में मैं भी खुश हो जाऊंगी
मैं भी स्कूल जाऊंगी.
शीला रानू रोज स्कूल जाती है
मीठे गीत सीखकर आती है
मैं भी कोई गीत सीख कर आऊंगी
मैं भी स्कूल जाऊंगी मैं भी स्कूल जाऊंगी
नई बात नया ज्ञान
गुरुजी पढ़ाते हैं विज्ञान
विज्ञान समझ कर आऊंगी
मैं भी स्कूल जाऊंगी
मिलता वहां खाना भी
सिखाते रोज गाना भी
खाना खाकर मैं भी आऊंगी
मैं भी स्कूल जाऊंगी.
*****
बाग का झूला
रचनाकार- कामिनी जोशी, कबीरधाम
मेरे बाग में है झूला, है मुझे बहुत पसंद.
कभी इधर कभी उधर ,लटके मुनिया और आनंद .
मुनिया मुनिया आयी नानी की आवाज.
भाग पढ़ी मैं जल्दी नानी पास.
नानी ने एक बात बतायी.
झूले की राज सुनायी.
एक दिन गयी वो बाग टहलने
दौड़कर नजदीक आकर
जोर जोर से लगी मैं झूलने
चरर चरर की आवाज आयी
नानी आपकी हिम्मत जुटाई
कुछ था नही, पकड़ने पास
नानी गिर गयी, आवाज आई धड़ाम
हँसकर दोनो चल दिये झूले पास
आनंद के मन मे भी था उल्लास.
*****
मेरा देश
रचनाकार- श्रीमती ज्योती बनाफर, बेमेतरा
समृद्ध प्रकृति की छटा
संस्कार की धानी.
सर्वगुणों की खान
है मेरा देश है.
तपोभूमि है ऋषि मुनियों की
बहती गंगा की अविरल धारा.
ममतामयी माँ का स्वरूप
है मेरा देश..
है संस्कृति और परंपरा
विविधता की भूमि.
सभ्यता का इतिहास
है मेरा देश.
है यहां अनेक बोलियां
भाषाओं में विविधता.
अनेकता में एकता की मिशाल
*****
राजस्थान
रचनाकार- श्रीमती ज्योती बनाफर, बेमेतरा
था अर्थ राजाओं का स्थान,
हुआ नामकरण राजस्थान.
था बंटा गढो और रियासतों में,
हुआ गठन 30 मार्च 1949 में.
जैसलमेर जोधपुर बीकानेर,
है ये मेरे समृद्ध अंग.
बनी राजधानी जयपुर ,
गुलाबी खूबसूरती के संग.
त्याग रानी पद्मिनी की,
राणाजी की वीरता.
है सांगा का अभिमान,
साहस पृथ्वीराज की.
शौर्य गाथा सुना रहा है,
पूरा भारत आज भी.
हूं मैं हल्दीघाटी भी,
पद्मिनी के जौहर का प्रमाण भी.
तपोभूमि हूं कपिल मुनि की,
हूँ मैं राजपूतों की स्वर्ण भूमि.
राग हूँ चंद्रवरदाई की,
तो पंच पीरो का स्थान भी.
है समृद्धशाली इतिहास मेरा,
जी हां हूं मैं राजस्थान.
*****
वृद्धाश्रम
रचनाकार- श्रीमती नंदिनी राजपूत, कोरबा
उंगली पड़कर जिस मांँ बाप ने ,हमें चलना सिखाया.
उसे वृद्धाश्रम छोड़ते समय, तुम्हें तनिक शर्म भी ना आया.
भूल गए वह बचपन जब वो रोटी खिलाती थी, गोदी में बिठाकर दूध भी पिलाती थी.
तुम भूखा ना सो जाओ,सोचकर दिन रात कमाती थी.
कोई अरे भी तुमको कहता, तो खूब चिल्लाती थी
मेरा बेटा मेरा बेटा कहकर, पूरे गांव वालों से लड़ जाती थी.
उस मां-बाप पर तुमको, तनिक दया भी ना आई.
वृद्धावस्था में छोड़ने से पहले, हाथ पैर क्यों नहीं कपकपाई.
हे ऊपर वाले किसी को, ये दिन ना दिखाना.
वृद्ध आश्रम की चौखट से पहले, अपने दर पर बुलाना.
*****
नारी तेरी शक्ति अनंत
रचनाकार- सीमा यादव
नारी जब तू सहती है, तो बसता है घर संसार.
नारी तू हँसती है, तो घर उपवन होता गुलजार.
नारी जब तू रोती है, तो उजड़ जाता है परिवार.
नारी जब तू पहल करती , पल्लवित होता है संस्कार.
नारी तू जब प्रेम करती , तो सृष्टि में आती है बहार.
नारी जब तू यातना पाती है, तो प्रलय आता है अपार.
नारी का मान-सम्मान ही ,उसका है अनमोल उपहार.
*****
आया बसंत बहार
रचनाकार- सुंदर लाल डडसेना 'मधुर'
आया सुंदर मधुमास है, फूल खिले हैं डाली डाली.
नवकोपल लिए तरुवर देखो, लग रही है मतवाली.
दिख रहे सुंदर बगिया, बौर भरी है आम्र की डाली.
सुगंध भरा यौवन देखो, कुक रही है कोयल काली.
खिली है चहुँ ओर, खेतों में सुंदर सरसों पीली बाली.
जन जन में छाया उन्माद, हर तरफ छाई है हरियाली.
ओढ़ सरसों की चुनरी, लग रही धरा देखो हरी पीली.
मधुमास की भोर, पूरब में दिखती सूरज की लाली.
अंबर छटा है निराली, आई बसंत ऋतु मतवाली.
मंद मंद पवन बह रहे, छाई चारों तरफ खुशहाली.
कोयल मोर के किलोल से, नाच रही प्रकृति नखरीली.
फूल खिले हैं गुलशन गुलशन, गूंज रहें हैं भौरें काली.
बसंत गान करती कुक रही है देखो कोयल मतवाली.
टेसू के फूल मन भाए, दिख रही है उसकी लाली.
खिले फूल से गंध आ रही ,बौर भरे आम्र की डाली.
प्रकृति का यौवन देख खिल उठता है जीवन मतवाली.
*****