छत्तीसगढ़ी बालगीत

छेरछेरा परब

रचनाकार- अशोक कुमार यादव, मुंगेली

cherchera

हमर मन के गली-खोर म हवय डेरा.
माँगे बर आए हवन तुंहर घर छेरछेरा.

धान ह धरागे, पुस पुन्नी के दिन आगे.
टूरी-टूरा मन सुआ अउ डंडा नाच नाचे.
हम लइका-पिचका मन घेरे हवन घेरा.
माँगे बर आए हवन तुंहर घर छेरछेरा.

कोनों धरे हन बोरी, कोनों मन चुरकी.
कोनों धरे हन झोला, कोनों मन अंगौछी.
छबाए कोठी के धान ल झटकुन हेरा.
माँगे बर आए हवन तुंहर घर छेरछेरा.

एक पसर देदे या देदे सूपा म भरके.
कहूँ खोंची म देबे, लेलेबो हमन लरके.
दूसर दूवारी जाना हे, होगे अबड़ बेरा.
माँगे बर आए हवन तुंहर घर छेरछेरा.

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आगे छेरछेरा

रचनाकार- यशवंत पात्रे, कक्षा आठवीं, शास.पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, मुंगेली

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चल संगी अब झन कर तैंय अबेरा.
बोरी, सूपा ल धर ले, आगे हवय छेरछेरा.
ए घर जाबो, ओ घर जाबो.
लम्बा, जुच्छा बोरी ल देखाबो.
छेरछेरा देवा कहिके, हमन संगी चिल्लाबो.
गीत ल गाबो, घर म सूते किसान ल बलाबो.
कट्टी-कट्टी धान धरे हवय, तेन बोरी ल खुलवाबो.
आज आगे छेरछेरा के दिन, छेरछेरा मांगे ल जाबो.
चल संगी अब झंन कर तैंय अबेरा.
बोरी, सूपा ल धर ले, आगे हवय छेरछेरा.

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छेरछेरा

रचनाकार- डिजेन्द्र कुर्रे 'कोहिनूर'

cherchera

कहु टुकनी कहु चुरकी,
कहु झोला ले जाबो जी.
सबो घर के दुवारी म,
धान बर गीत गाबो जी.
ख़ुशी के बाग म मन हर,
हमर ये झूम जाथे जी.
अबड़ सुघर हे छेरछेरा,
परब मिलके मनाबो जी.

संगी साथी सबो मिलके,
गली अउ खोल जाबो जी.
गोहारत हम सबो के घर,
सूपा भर धान पाबो जी.
हमर छत्तीसगढ़ के ये,
हवय पहचान दुनिया म.
चलव पबरित परब हमरो,
छेरछेरा मनाबो जी.

लिपके पोतके घर ल,
सरग जइसे सजाबो जी.
सोहारी ठेठरी कुरमी,
बरा गुझिया बनाबो जी.
जगाथे जे हमन के भाग ल,
हावय ओ छेरछेरा.
ख़ुशी के गीत गा गा के,
परब आवव मनाबो जी.

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आवव अंग्रेज़ी पढ़बो

रचनाकार- श्रीमती संगीता निर्मलकर, दुर्ग

aavaa

तुमन चिन्हे रहु नोनि,
तुमन चिन्हे रहु बाबू.
अंग्रेजी के अक्षर ल पहिचाने रहु,
अंग्रेजी के अक्षर ल पहिचाने रहु.
ददा ल father कहिथे,
दाई ल कहिथे mother,
दा ई ल कहि थे mother.
बहिनी ल sister कहिथे,
भाई ल कहिथे brother,
भाई ल कहिथे brother.
तुमन चिन्हे रहु नोनि,
तुमन चिन्हे रहु बाबू.
अंग्रेजी के अक्षर ल पहिचाने रहु.
राजा किंग ल कहिथे,
रानी ल कहिथे queen,
रानी ल कहिथे queen.
बेटा ल son कहिथे,
बेटी ल कहिथे daughter,
बेटी ल कहिथे daughter.
तुमन चिन्हे रहु नोनि,
तुमन चिन्हे रहु बाबू.
अंग्रेजी के अक्षर ल पहिचाने रहु.
अंग्रेजी के अक्षर ल पहिचाने रहु.

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छत्तीसगढ़ मा राम

रचनाकार- राजकुमार निषाद 'राज', दुर्ग

cg me ram

भारत के भुइँया मा बसे हे,
हरियर लुगरा सुग्घर भावय.
कौशिल्या माता के मइके,
छत्तीसगढ़ महतारी हावय.

भागमानी हम छत्तीसगढ़िया,
चरण छू के माथ नवाँये.
अइसन हमर पावन भुइँया,
राम ह इहाँ भाँचा कहाये.

राम ल जब वनवास होइस,
संग म लछमन सीता आये.
कुटि बनाये ये भुइँया मा,
छत्तीसगढ़ के भाग जगाये.

राक्षस अउ दानव ला मारे,
रिसि मुनि के प्राण बचाये.
छत्तीसगढ़ के ये महिमा ला,
ज्ञानी अउ विद्वान ह गाये.

जशपुर मल्हार सिरपुर राजिम,
आरंग मा प्रभु राम ह आये.
शिवरीनारायण के पावन भुइँया,
शबरी के जूठा बोइर खाये.

तुरतुरिया वाल्मीकि के आश्रम,
माता सीता जिनगी बिताये.
लव कुश ल इहाँ जनम देके,
छत्तीसगढ़ के मान बढ़ाये.

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करम ला कर ले

रचनाकार- जीवन चन्द्राकर 'लाल'', दुर्ग

karm

करम ला कर ले फल तै पाबे.
आज नहीं त कल तै पाबे.
डांवाडोल झन हो सवाल ले,
आगू बड़ के फल तै पाबे.
करम ला कर....
पथरा ला घलो खोदके देखले,
ओखर भीतरी जल तै पाबे.
करम ला कर.......
दुख मा झन टोर तै दिल ला,
थोड़के मा सुख के पल तै पाबे.
करम ला कर......
कड़वा भाखा ला छोड़ दे संगी,
तभे हिरदे के तल तै पाबे.
करम ला कर....

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कहर-महर आमा मउरे

रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु', धमतरी

kahar mahar ama

मउहारी जाड़ा आगे, मउहा हर कुचियागे
गर्रा धुंका-बड़ोरा आगे, रुखुवा झुमे नाचे
साजा-सराई ह, हरियागे, तेंदु-चार लदागे
डुमर हे टुक लाली अउ गस्ती ह करियागे.

बर-पीपर पीकरी ह अउ बोईर ह गदरागे
कहर-महर आमा मउरे अमली लटलटागे
पड़की-परेवना, मैना मया म चहक जाथे
रुखराई के डारी-डारी गुरतुर तान सुनाथे.

पिंवरी-पिंवर सरसों फुलगे हरदी ह रंगागे
बिहा-पाठौनी के जईसे मड़वा हर छवागे
लाली रंग परसा फुले,सोला सिंगारी लागे
नवा नवरिया बहुरिया जईसे अंगना आगे.

गमकत हे अमराई,तन मन म निसा छागे
कोयली के कुहकी गोरी कस बोली लागे
रही-रही के सुरता म हांसी-रोवासी आथे
ए बसंत फेर बेरंग होगे अईसे हिया लागे.

संगी-साथी झूमत हे मन महुआ म मतागे
झांज मंजीरा मांदर नगाड़ा जमके घुड़के
लाली गुलाली रंग उड़ाए फगुआ म रंगागे
मया-प्रीत के ए बेरा बसंत होरी अब आगे

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बसंत पंचमी

रचनाकार- राजकुमार निषाद 'राज', दुर्ग

basant ritu

कोहली कुहकै मारे तान, बइठे हावै आमा डार.
मन मोर झूमय नाचय संगी, आगे बसंत बहार.

पिंयर-पिंयर सरसो फूलय, चना गहूं लहरावत हे.
चिंव-चिंव चहकत चिरई, सबके मन ल भावत हे.
हरियर-हरियर दिखत हावय, सुग्घर खेती-खार.
मन मोर झूमय नाचय संगी, आगे बसंत बहार.

आनी-बानी के फूल फूले, भँवरा मन मंडरावत हे.
चंपा-चमेली गुलाब-गोंदा, अब्बड़ के ममहावत हे.
लाली-लाली परसा दिखय, फूले हावय हजार.
मन मोर झूमय नाचय संगी, आगे बसंत बहार.

घन अमरइया आमा मउरे, तन मन ला हरसावत हे.
सरसर-सरसर चले पुरवाई, मया के गीत सुनावत हे.
तरिया-नदिया जंगल-झाड़ी, मगन डोंगरी पहाड़.
मन मोर झूमय नाचय संगी, आगे बसंत बहार.

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परीक्षा के डर

रचनाकार- विधि शर्मा, बेमेतरा

pariksha ke dar

अब परीक्षा आवत हे, जाड़ हा जवात हे.
हमला काबर डरना हे, परीक्षा अब आवत हे.

मिलजुल के पढ़ना हे, सुग्घर तैयारी करना हे.
अब नवा छत्तीसगढ़ गढ़ना हे.

नवा रंग भरना हे मे सपना के दाई ददा में.
अब नवा छत्तीसगढ़ गढ़ना हे.

नवाचारी मैडम तैनात हे संग में शासन के साथ.
हम सुन डरे हन परीक्षा पे चर्चा ला.

डरना हे नहीं हमला, अब हमला नहीं डरना हे.
गढ़ना हे छत्तीसगढ़ नवा, तैयारी करना हे सुग्घर..

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हमर स्कूल

रचनाकार- महेन्द्र कुमार चन्द्रा, सक्ती

hamar school

हमर स्कूल के का बतावव बात,
जिंहा मिलथे पौष्टिक भात.
जेला हमन खाथन ,
अउ स्वस्थ शरीर बनाथन.
रोज स्कूल जाथन पढ़े बर,
अपन जिंनगी ल गढ़े बर .
दई - ददा कस मया हमर गुरुजी मन करथे,
अउ तरह-तरह के ज्ञान हमन के मन मा भरथे.
फेकल्हा समान के सुग्घर खेलौना बनाथे ,
जेमा हमन ला विज्ञान सिखाथे.
हमन खाथन बोईर करौंदा,
हमर स्कूल के नाव हे झालरौंदा.
हमर गांव म हे भांठा बस्ती,
हमर जिला के नाव हे सक्ती.

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सुघ्घर बगरे बसंत हे

रचनाकार- अशोक कुमार यादव मुंगेली

bakbakavat

गीत म, संगीत म, मनखे के पिरीत म,
मन म, जीवन म, आनंद-ही-आनंद हे.
खेत म, खार म, रूख-राई के डार म,
बाग म, राज म, सुघ्घर बगरे बसंत हे.

इंद्रधनुषी जम्मों फूल के गुरतुर रस ल,
तितली, भौंरा अउ चिरई मन ह चूहके.
सुआ अउ मैना ल मया करत देख-देख,
आमा पेड़ म कोयली कुहू-कुहू कुहके.

पिंयर रंग के सरसों, राहेर फूले हवय,
सादा के मोंगरा, मंदार अउ कुसियार.
बोइर, बिही, अरम पपई के फर गदरागे,
कउंवा भगनहा पुतला लगे हे रखवार.

धान के कलगी खोंचे, माथा गहूं पटिया,
गला म चंदैनी-गोंदा के सुर्रा हे मनोहारी.
जवा फूल के नांगमोरी, बंभरी बीजा सांटी,
भुईयां महतारी सजे-धजे लागे फुलवारी.

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किसान

रचनाकार- शोभना यादव कक्षा आठवीं शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला कंतेली जिला बेमेतरा

karm karo

मेहनत करके अन्न उगाते
ओला कई थे किसान
अपन भूखे रही के
दूसरा बार उगते धन
पसीना ह मोती बन जाते
जब धरती म बोहथे
मझनिया के घाम म तप के
बरसात के पानी में भीग के
पेट भरेबर उगा थ च धान

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