कहानियाँ

पंचतंत्र की कहानी

शिकार का ऐलान

PKMarch

सालों पहले एक घने से जंगल में कुछ जानवर रहा करते थे. उनमें से एक शेर था और उसकी सेवा में हरदम लोमड़ी, भेड़िया, चीता और चील रहते थे. लोमड़ी को शेर ने अपनी सेक्रेटरी, चीता को अपना अंगरक्षक और भेड़िये को अपना गृहमंत्री बना रखा था. इनके अलावा, चीता दूर-दूर की सारी खबरें लाकर शेर को देता था यानी वो खबरी का काम करता था.

इन चारों को भले ही शेर ने अच्छे-अच्छे पद दे रखे थे, लेकिन दूसरे जानवर इन्हें चापलूस मंडली कहते थे. सबको पता था कि चारों कोई काम करें, चाहे न करें, लेकिन शेर की चापलूसी खूब अच्छे से करते हैं.

रोजाना चारों जानवर शेर की बढ़ाई में कुछ शब्द कह देते थे, जिससे वो खुश हो जाता था. इन सबके चलते जैसे ही शेर शिकार करता था, तो अपना पेट भरने तक खाने के बाद वो अपने चारों खास पद में बैठे जानवरों को बाकी का हिस्सा दे देता था. इसी तरह लोमड़ी, भेड़िया, चीता और चील की जिंदगी बड़े ही आराम से कट रही थी.

एक दिन खबरी चील ने अपने चापलूस दोस्तों को आकर बताया कि काफी देर से सड़क के पास में ही एक ऊंट बैठा हुआ है.

भेड़िया ने सुनते ही पूछा कि क्या वो अपने काफिले वालों से बिछड़ गया है?

चीते ने इस सवाल को सुनते ही कहा कि चाहे जो भी हो हम उसका शिकार करवा देते हैं शेर से. उसके बाद कई दिनों तक आराम से उसे खाएंगे.

इस बात को सहमति देते हुए लोमड़ी ने कहा कि ठीक है मैं जाकर राजा से यह बात करती हूं.

इतना कहकर सीधे लोमड़ी शेर के पास पहुंची और बड़े ही प्यार से बोली, 'महाराज! हमारा दूत खबर लेकर आया है कि एक ऊंट हमारे इलाके में आकर सड़क के किनारे में बैठा हुआ है.' मुझे किसी ने बताया था कि मनुष्य जिन जानवरों को पालते हैं उनका स्वाद काफी अच्छा होता है. एकदम राजाओं के खाने के लायक. अगर आप कहें, तो मैं यह एलान करवा दूं कि वह ऊंट आपका शिकार है?

लोमड़ी की अच्छी बातों में आकर शेर ने कहा, ठीक है. इतना कहते ही वह उस जगह पर पहुंच गया, जहां ऊंट बैठा हुआ था. शेर ने देखा कि वो ऊंट काफी कमजोर है और उसकी आंखें भी काफी पीली हो चुकी हैं. उसकी ऐसी हालत शेर से देखी नहीं गई. उसने ऊंट ने पूछा कि दोस्त, तुम्हारी ऐसी हालत कैसे हो गई?

कराहते हुए ऊंट ने जवाब दिया, 'जंगल के राजा क्या आपको नहीं पता कि सारे इंसान कितने दयाहीन होते हैं. सारी उम्र मुझसे एक व्यापारी ने माल ढुलाया. अब मैं बीमार हो गया, तो उसने मुझे अकेले मरने के लिए छोड़ दिया. उसने सोचा कि मैं उसके किसी काम का नहीं रहा. इसी वजह से अब वो मुझे अपने साथ नहीं रख रहा है और न ही मेरा इलाज करवा रहा है. अब आप ही मेरा शिकार कर दीजिए ताकि मुझे इस दर्द से मुक्ति मिल जाए.'

इन सब बातों को सुनकर शेर काफी दुखी हुआ. उसने ऊंट से कहा कि अब तुम इसी जंगल में रहोगे हमारे साथ. यहां तुम्हें कोई भी नहीं मारेगा. मैं एलान कर देता हूं कि तुम्हारा शिकार कोई जानवर नहीं करेगा.

शेर की इस दयालुता को देखकर चारों चापलुस जानवर दंग रह गए. धीमी आवाज में भेड़िये ने कहा कि कोई नहीं, बाद में इसे किसी तरह से मरवा देंगे. अभी जंगल के राजा का आदेश मान लेते हैं.

ऊंट अब उसी जंगल में आराम से रह रहा था. अच्छे से हरी घास खाते-खाते ऊंट एक दिन बिल्कुल स्वस्थ हो गया. वो हमेशा शेर के प्रति आदर भाव रखता था और शेर के दिल में भी उसके लिए दया और प्रेम की भावना थी. अब शेर की शाही सवारी भी स्वस्थ ऊंट निकालता था. वो शेर के चारों खास पदाधिकारी जानवरों को अपनी पीठ पर बैठाकर चलता.

एक दिन चापलूस जानवरों ने जंगल के राजा शेर को हाथी का शिकार करने के लिए कहा. राजा भी मान गया, लेकिन वो हाथी पागल था. उसने शेर को बुरी तरह से पटक दिया. किसी तरह से शेर पागल हाथी से बच तो गया, लेकिन उसे काफी चोट लग लई.

अब बीमार शेर बिना शिकार किए किसी तरह से अपनी जिंदगी जीने लगा. उसके सेवक भी भूखे थे. उनके मन में हुआ कि आखिर ऐसा क्या करें कि कुछ खाने को मिल जाए. फिर उनका ध्यान हट्टे-कट्टे हो चुके ऊंट पर गया. सबने मिलकर एक तरकीब सोची और राजा के पास चले गए.

सबसे पहले भेड़िए ने कहा कि महाराज आप कितने दिनों तक भूखे रहेंगे. मेरा शिकार करके मुझे खा लीजिए आपकी भूख मर जाएगी.

फिर चील कहने लगी कि राजा साहब! भेड़िए का मांस खाने लायक नहीं होता है. आप मुझे खा लीजिए.

चील को पीछे धकेलते हुए लोमड़ी बोली, 'तुम्हारा मांस इनके दांतों में ही लगकर रह जाएगा. आप इसे छोड़िए मुझे खा लीजिए.

एकदम से फिर चिता बोला कि इसके शरीर में आपको सिर्फ बाल ही मिलेंगे. आप मुझे खाकर अपनी भूख मिटा लीजिए.

ये सब उन चापलूस जानवरों का नाटक था, जिसे ऊंट नहीं समझ पाया. उसने भी एकदम से कहा कि महाराज, मेरी जिंदगी तो आपकी ही दी हुई है. आप इस तरह से भूखे क्यों रहेंगे. आप मुझे मारकर खा लीजिए.

चारों चापलूस जानवरों को इसी बात का इंतजार था. उन्होंने एकदम कहा कि ठीक है महाराज आप ऊंट को ही खा लीजिए. अब तो ये खुद ही कह रहा है कि मुझे खा लो और इसके शरीर में मांस भी काफी ज्यादा है. अगर आपकी तबीयत ठीक नहीं लग रही है, तो इसका शिकार हम कर देते हैं.

इतना कहते ही चीते और भेड़िये ने मिलकर एक साथ ऊंट पर हमला कर दिया. कुछ ही देर में ऊंट की मौत हो गई.

कहानी से सीख – अपने आसपास चापलूस लोगों को नहीं रखना चाहिए. वो हमेशा अपने फायदे की ही सोचते हैं.

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डब्बू सुधर गया

रचनाकार- बद्री प्रसाद वर्मा अनजान

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एक जंगल में रानी नाम की एक हथिनी रहती थी .

उसका एक बेटा था, उसका नाम डब्बू था. जंगल के जानवर दूसरे जानवर डब्बू से बहुत परेशान थे.

डब्बू आए दिनी किसी जानवर खेत में जा कर गन्ना तरबूजा खाता और तहस नहस कर देता था ,तो कभी किसे बागीचे में जा कर आम केला अनार अमरुद अनार पपीता के पेड़ों को हीला हीला कर सारा फल जमीन पर गिरा देता था.

जब जानवर डब्बू को मारने जाते तो डब्बू उल्टे उनको पकड़ कर हवा में घुमा कर जमीन पर गिरा देता था.

आए दिन रानी को डब्बू की शिकायत सुसने को मिलती थी. रानी बहुत समझाती डब्बू तू सुधर जा वनाॅ मैं तुमको शहर के चिड़िया घर में भेज दूंगी तब तेरी सारी शरारत छूट जाएगी. न घुमने को मिलेगा न किसी का नुकसान करने को मिलेगा.

मां रानी की बात सुनकर डब्बू बोल उठता मां तुम हमें चिड़िया घर मत भेजना मैं अब किसी का कुछ भी नुकसान नहीं करुंगा.

मगर दो चार दिन बीतने पर डब्बू की सरारत फिर शुरु हो जाती.एक दिन डब्बू शेर के सेव वाले बाग में पहुंच कर पहले तो पेट भर सेव तोड़ तोड़ कर खाया फिर ढेर सारी सेव तोड़ कर जमीन पर फेकने लगा उसी वक्त शेर से वहां आ गया और डब्बू से बोला वो डब्बू के बच्चे क्या हमारे सेव के बाग को अपने बाप का बाग समझ रखा हो जो तोड़ तोड़ कर फेंक रहा है.

'हां हां मेरे बाप का बाग है, तुम मेरा क्या कर लोगे! '

डब्बू की इतनी बात सुनकर कर शेर गुस्से में आ गया और डब्बू को पकड़ कर उसे रस्सी से बांध कर जमीन पर लेटा दिया और इसकी सूचना उसकी मां रानी को जा कर दे आया.

अपने बेटे डब्बू की इतनी बड़ी शिकायत सुनकर

रानी गुस्से से आग बबूला हो गई और तुरंत डब्बू के पास पहुंच कर बोली आज मैं तुमको चिड़िया घर भेज कर ही दम लूंगी.

अपनी मां की बात सुनकर कर डब्बू बोला मां आज तुम हमें माफ कर दो मैं कसम खा कर कहता हूं कि अब किसी का कोई नुकसान नहीं करुंगा .तुम मुझे क्षमा कर दो इतना कह कर डब्बू रोने लगा. तभी शेर वहां आ गया और रानी से बोला इसे शहर के चिड़िया घर भेजना ही ठीक रहेगा. इस पर दया करने की कोई जरुरत नहीं है.

'हां हां शेर राज आप सही कह रहे हैं मैं इसे चिड़िया घर भेज कर ही रहूंगी. रोज रोज इसकी शिकायत सुन सुन कर मैं बहुत तंग आ गई हूं.

कल इसे मैं वन विभाग की टीम के हवाले कर दूंगी ताकी वे इसे चिड़िया घर भेज सके.

इतना कह कर रानी डब्बू को छोड़ कर जाने लगी.

तभी डब्बू रोते हुए बोला मां तुम मेरी बात का विश्वास करो अब कभी कोई शरारत नहीं करुंगा.

डब्बू को रो रो कर कहते सुनकर रानी बोली अबकी बार तो तुमको माफ कर दे रही हूं तीसरी बार फिर किसी का नुकसान किया तो तुमको चिड़िया घर भेज कर ही रहूंगी.

रानी ने शेर से कह कर उसके शरीर से बंधी रस्सी खोलवा कर अपने साथ ले कर घर जाने लगी.

उस दिन के बाद डब्बू ने अपनी सारी शरारत छोड़ दिया और अपनी मां के साथ रहने लगा.

डब्बू के सुधर जाने पर जंगल के सभी जानवर बहुत खुश हुए.

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सोन मछली

रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू, दुर्ग

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एक जंगल में एक बहुत बड़ा तालाब था. जिसमें बहुत सारे मछलियाँ रहती थी. उसी तालाब के किनारे बरगद का पेड़ था जिसमें एक वृद्ध बगुला रहता था.

वृद्ध बगुला तालाब से मछलियां पकड़ने की बहुत कोशिश करता पर एक भी मछलियाँ नहीं पकड़ पाता था.

एक दिन उसने देखा की एक सुनहरे रंग की मछली,'सोन मछली' तालाब से बाहर जमीन पर उछल कूद कर रही थी. वृद्ध बगुला बिना देर किए अपना पंख फड़फड़ाया और उस सोन मछली को अपने चोंच में पकड़ लिया.

सोन मछली कहने लगी मुझे छोड़ दो मैं मछलियों की रानी हु. वृद्ध बगुला कहने लगा आप मछलियों की रानी हो इस बात पर मैं कैसे विश्वास कर लू?

सोन मछली बोली मेरा रंग रूप देखो मैं दिखने में सोने की जैसी दिखती हू, रानी मछलियाँ सोन मछली होते है.

वृद्ध बगुला मछली की बात सुनकर थोड़ा सोंचने लगा! और कहा चलो मान लेते है आप मछलियों की रानी सोन मछली हो.

पर मैं आपको नहीं छोड़ सकता .क्योंकि यदि मैं आपको छोड़ दू तो मैं भूखा मर जाऊंगा ?

तब सोन मछली बोली अच्छा ठीक है आप मुझे खा लीजिए .पर आप मुझको खाओगे तो सिर्फ एक दिन का भूख मिटेगा. उसके बाद फिर आपको भोजन की तालाश करना पड़ेगा?

किन्तु आप मुझको छोड़ दोगे तो मैं आपके लिए सालो साल तक भोजन क इंतजाम कर सकती हू!

वृद्ध बगुला आश्चर्य से बोला वो कैसे?

सोन मछली बोली मैं मछलियों की रानी हु. मेरे आदेश का पालन सब मछलियां करते है. मैं आपके लिए रोज सुबह दो मछलियों का इंतजाम कर दूंगा .

आप रोज सुबह तालाब के पास आना और उन दो मछलियों को खा कर अपना भूख शांत कर लेना.

वृद्ध बगुला को सोन मछली की बातों पर पुरा पुरा विश्वास हो गया. अब वृद्ध बगुला सोन मछली को अपने चोंच से अलग कर देता है.

जैसे हीं वृद्ध बगुला उस सोन मछली को छोड़ता है सोन मछली स्वीम करते हुए तालाब में चली जाती है.

उधर वृद्ध बगुला दो मछलियों का इंतजार करते-करते सुबह से शाम हो जाता है पर मछलियाँ नहीं आई.

सिख: कठिन समय में हमें सूझ बुझ से काम लेना चाहिए.

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प्रिया की नई सहेलियाँ

रचनाकार- टीकेश्वर सिन्हा 'गब्दीवाला', बालोद

priya ki saheli

गर्मी का मौसम था. स्कूलों की छुट्टियाँ हो चुकी थी. प्रिया का भी स्कूल जाना बंद हो गया था. कक्षा तीसरी की प्रिया बहुत सुंदर थी. गोरा रंग. गोल-मटोल चेहरा. फुंडा-फुंडा गाल. सुंदर नुकीली सुआनाक. लम्बे-घने बाल. यानी दिखने में खूबसूरत तो थी ही; पढ़ाई-लिखाई में भी नंबर वन. पर अपने मम्मी-पापा की अकेली संतान होने के कारण थोड़ी जिद्दी हो गयी थी. मन करते तक घर में अकेली खेलती थी; आखिर कब तक खेलती ? बोर हो जाती थी बेचारी. आसपास उसकी उम्र की एक भी बच्ची नहीं थी. इस मुहल्ले में पंद्रह दिन हुए थे उन्हें शिफ्ट हुए. मम्मी घर पर रहती थी. पापा काम पर चले जाते थे. जहाँ वे लोग पहले रहते थे, उस काॅलोनी की प्रिया को बहुत याद आती थी.

एक दिन प्रिया टीवी देख रही थी. काॅर्टून खत्म होते ही वह कुछ बोलती, इससे पहले मम्मी बोली- तुम एक काम करो प्रियू. एक छोटी सी कटोरी में पानी रखकर तुलसी चौरा के पास रख दो.

' क्यों मम्मी ? ' प्रिया सोफे से उठते हुए बोली.

' तुम रखो तो पहले. मैं तुम्हारे लिए बढ़िया नाश्ता बना रही हूँ. गुलगुल भजिया बना रही हूँ. सौंफ डाल दूँगी; और इलाइची भी. फिर मस्त बढ़िया गुबुल-गुबुल खाना. ' किचन से मम्मी बोली.

' अरे वाह ! तब तो मजा आएगा मम्मी. हाँ... मम्मी ठीक है. ' कहते हुए प्रिया ने कटोरी भर पानी तुलसी चौरा के पास रखा. थोड़ी देर बाद देखती है कि कहीं से एक गौरैया आयी; और कटोरी के पास आकर बैठी. पहले वह इधर-उधर देखी. फिर कटोरी का पानी को पीने लगी. प्रिया को बहुत अच्छा लगा गौरैये को पानी पीते देख. उसने तुरंत अपनी मम्मी को आवाज लगायी; और दिखाया. दोनों बहुत खुश हुए. पानी पीने के बाद गौरैया फुर्र से उड़ गयी. मम्मी बोली- ' रोज ऐसे ही रखना प्रियू बिटिया. ' पशु-पक्षियों के लिए इस तरह भोजन-पानी की व्यवस्था करना बहुत जरूरी है. ऐसी भीषण गर्मी में पशु-पक्षी थर्रा जाते हैं. कभी-कभी भूख-प्यास के मारे उनकी जान चली जाती है. ' प्रिया मम्मी की बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी.

दूसरे दिन प्रिया ने एक बड़ी कटोरी में पानी रखा. पंद्रह-बीस मिनट बाद चार-पाँच गौरैया आयीं. वे पानी पीने लगीं. प्रिया अपने कमरे की खिड़की से देख रही थी. तभी दो गौरैया खिड़की के छज्जे पर आकर बैठ गयी. प्रिया को झाँक-झाँक कर देखने लगी. प्रिया खुशी से चहक उठी. मम्मी को बताने चली गयी. आकर दोनों ने देखा; फिर दोनों चिड़िया उड़ गयी. मम्मी बोली- ' निराश नहीं होना मेरी रानी बिटिया. देखना वे कल फिर आएँगीं. ' फिर प्रिया नहाने बाथरूम चली गयी.

अब तो रोज तीन-चार नहीं; दर्जन भर गौरैया आने लगी थीं. प्रिया उनके आने से पहले ही कनकी, चने के छिलके या रोटी के टुकड़े कटोरी के पास रख देती थी ;और पहले से ज्यादा मात्रा में डाल दिया करती थी. गौरैयों को भी रोज-रोज प्रिया के घर आना अच्छा लगता था. उनकी संख्या दिन-ब -दिन बढ़ती जा रही थी. जैसे ही गौरैया आतीं ,प्रिया उनके खाने के लिए कुछ न कुछ कटोरी के पास रख देती थी. पानी भी रख देती थी. सब के सब दाना चुगती; पानी पीती, और फुर्र हो जातीं. प्रिया आँगन में चार-पाँच जगहों पर अब मिट्टी के सकोरे में पानी रखती थी. अब तो गौरैये व प्रिया के बीच नजदीकी बढ़ने लगी थी. एकाध तो बिल्कुल पास ही आ जाती थी. कभी-कभी तो प्रिया के कंधे पर आकर बैठ जाती. गौरैये प्रिया की आवाज परखने लगी थी. तभी तो उसकी आवाज सुनकर कहीं पर भी रहती, आँगन पर आ जाती; और चींचीं-चींचीं करना शुरू कर देतीं. प्रिया भी उनकी आवाज सुनकर बाहर निकल आती. उन्हें छू-छू कर देखती ; और खुश होती.

दो-तीन महीने बीत गये. अब रोज सुबह प्रिया को उठाना गौरैयों का काम हो गया. सुबह प्रिया भी उन्हीं की आवाज से उठती थी. वे झुँड के झुँड प्रिया के कमरे में आती थीं ; और उसके बेड के पास खिड़की के ऊपर बैठ जातीं. घर भर वे प्रिया के पीछे-पीछे चलती थी. उन्हें किसी से कोई भय नहीं था. यह सब देख प्रिया के मम्मी-पापा कहते थे कि पशु-पक्षी भी प्रेम व आत्मीयता की भाषा अच्छी तरह समझते हैं, इसलिए कभी उन्हें भगाना या मारना नहीं चाहिए. जैसे ही प्रिया खिलौने लेकर बैठती, गौरैये भी उसके समीप आकर बैठ जातीं. कभी उसके कंधे पर,तो कभी पैर पर तो, कभी उसके खिलौनों के ऊपर. प्रिया के खेलते तक गौरैया चीचीं-चीचीं करते हुए इधर-उधर फुदकती रहतीं. अब तो प्रिया अपनी इन नई सहेलियों के साथ बहुत खुश थी.

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गरीबी भी एक चीज है

रचनाकार- बद्री प्रसाद वर्मा अनजान

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कवि राम प्रकाश अपने क्षेत्र के एक जाने माने कवि के रुप में विख्यात थे. उनको हर कवि सम्मेलन कवि गोष्ठी और हर सांस्कृतिक प्रोग्राम में बहुत आदर के साथ बुलाया जाता था.

वे अपनी कविता गजल शायरी से ऐसा शमा बांध देते थे कि सुनने वाले वाह वाह कह उठते थे. मंच का संचालन भी बहुत मजे ढंग से करते थे.

कविताई ही उनका रोजी और रोजगार था. जो कुछ कविता सुनाने से पा जाते उसी से अपना और बीवी बच्चों का पेट पालते थे.

इधर कवि राम प्रकाश कई महीने से बीमार चल रहे थे. धन के अभाव में उनका ठीक से इलाज नहीं हो पा रहा था. उनकी पत्नी किसी तरह अपने सारे गहने बेच कर इलाज करवा रही थी. मगर कवि राम प्रकाश की कोई मदत के लिए आगे नहीं आया. आखिर एक दिन कवि राम प्रकाश इस लोक से विदा हो गए.

उनकी मौत पर जगह जगह शोक सभा होने लगी उनको महान कवि का दजाॅ दिया जाने लगा. उनके चित्र पर हर कोई फूल माला पहनाकर कर नमन कर रहा था. जिन्दा थे तो कोई मदत के लिए आगे नहीं आया आज मरने पर हर साहित्यकार उनकी जयजयकार मना रहा था.

जिन्दा थे तो कवि राम प्रकाश भूख से परेशान थे मरने पर उनके नाम पर मिठाई बांटे जा रहे थे.

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पंख वाली मछली

रचनाकार- योगेश्वरी तंबोली जांजगीर

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एक दिन मुनिया अपनी बैग लेकर समुद्र घूमने गई वह देर तक समुद्र को निहारती रही.

अचानक उसका ध्यान समुद्र के ऊपर उड़ रहे मछलियों पर पड़ी रंग बिरंगी मछली बड़े मजे से समुद्र के ऊपर उड़ रही थी.

उसे देखकर मुनिया बहुत खुश हुई उनके पंख लंबे और मोटे थे मुनिया मछलियों से बातें करने लगी क्या तुम मुझे समुद्र के सर करा सकती हो? हां जरूर मछलियों ने जवाब दिया

मुनिया मछली के ऊपर बैठकर समुद्र के ऊपर आसमान पर सैर करने निकली.

मछली मुनिया को आसमान की सैर करने के बाद समुद्र के अंदर लेकर पहुंची. मुनिया को बहुत मजा आ रहा था.

जल के अंदर जलीय घास लहरा रहे थे छोटी-छोटी मछलियां तैर रही थी बहुत से समुद्री जीव जंतु दिखाई दिए.

तभी अचानक उसे एक बड़ा सा ऑक्टोपस दिखाई दिया ऑक्टोपस उस पंख वाली मछली की ओर ही आ रहा था. ऑक्टोपस तेजी से आता हुआ उस पंख वाली मछली को अपने पंजे में जकड़ लिया.

इधर बहुत सारे बड़े-बड़े ऑक्टोपस समुद्र में उसे पंख वाली मछली के आसपास आ गए.

मुनिया डरने लगी.

उसने जोर-जोर से आवाज लगाई. मां,,,,,,,,,, मुझे बचाओ

मां,,,,,,,,,,,,, मुझे बचाओ

तब मा ने उसका पीठ थपथपाया और कहा क्या हुआ मुनिया,,,,,,,,,

मुनिया बेड से उठकर बैठ गई.

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सफल व्यापारी

रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र

safal vyapari

राजू और सोनू आपस में अच्छे मित्र थे. दोनों की अभी बाल्यावस्था थी, उम्र होगी 12 - 14 वर्ष. घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण वे बाजार में फलों के ठेले लगाते थे.

आज राजू पपीते और सोनू ककड़ियाँ बेच रहा था.

काफी देर बाद एक बुजुर्ग ग्राहक राजू के ठेले के पास आया.

जी, बाबा! पपीते डाल के पके हैं और बहुत मीठे हैं' - राजू ने बड़े से कहा.

ग्राहक - किस भाव दिए?

राजू - बाबा, 50 रुपये किलो हैं.

ग्राहक - और ये जो अलग रखे हैं, ये कैसे?

राजू - बाबा, ये 40 रुपए में लग जाएँगे, लेकिन आपके लेने वाले नहीं हैं. इनमें दाग हैं., खराब निकल सकते हैं.

ग्राहक' ठीक है 'कहते हुए ककड़ियों वाले ठेले पर पहुँचा.

हाँ भाई, ककड़ियाँ कैसे दे रहो हो' - ग्राहक ने पूछा.

सोनू ने रूखेपन से कहा - बीस रुपये की चार हैं. आपको पाँच लगा दूँगा. बिलकुल ताजी हैं. सीधे खेत से लाया हूँ. '

ठीक है,पाँच निकाल दो'.

ग्राहक उसकी दी हुई ककड़ियों को लेकर चला गया. तब सोनू ने राजू से नाराज होते हुए कहा -तूने पपीते खराब क्यों बता दिया. वह ले रहा था, तो लेने देते.

राजू - देखो भाई! मैं झूठ क्यों बोलूँ, मैं किसी ग्राहक को खराब फल को अच्छा बताकर नहीं बेचूँगा, भले ही वह ले या न ले.

सोनू- तुम घोंचू हो. धंधे में इतनी सच्चाई नहीं चलती. देखो, मैंने दो दिन की बासी ककड़ियाँ, ताजी कहकर उसे बेच दीं. अब वह जाने उसका काम जाने.

राजू - मैं ऐसी बेईमानी नहीं कर सकता. मैं तो सच बोलकर ही अपना माल बेचूँगा. भले कम बिके.

दुसरे दिन वही बुजुर्ग सोनू के ठेले के पास आकर चिल्लाने लगे - क्यों रे! तूने मुझे ठग लिया . सारी ककड़ियाँ सड़ी निकल गईं. तू झूठा और बेईमान है. अब तुझसे कभी कुछ नहीं खरीदूँगा.

राजू के पास जाकर उसने कहा - बेटा! तुम बहुत सच्चे हो . मुझे बहुत अच्छा लगा. एक दिन तुम अवश्य सफल व्यापारी बनोगे. लाओ, मुझे दो किलो अच्छा पपीता दे दो.

पपीते वाले ठेले पर ग्राहकों की भीड़ थी, जबकि ककड़ियों के ठेले की ओर जाकर लोग हट जा रहे थे.

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