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स्मार्ट फोन जितना समय बच्चों को दें?

रचनाकार- वीरेंद्र बहादुर सिंह

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आप के परिवार में छोटे बच्चे होंगे- आप मम्मी-पापा, दादा-दादी हैं तो इस लेख को जरूर पढ़िए. यह टौपिक हमारे विचारों से थोड़ा अलग है, पर इसकी ओर ध्यान देना बहुत जरूरी है.

स्मार्टफोन जब आज की तरह प्रचलित नहीं था तो परिवार के बुजुर्गों की एक ही शिकायत रहती थी कि नई पीढ़ी पूरे दिन मोबाइल में ही घुसी रहती है, उनकी ओर बिलकुल ध्यान नहीं देती. पर अब समय बदल गया है. अब तो दादा-दादी खुद ही ह्वाट्सएप और यूट्यूब में व्यस्त रहते हैं.

दूसरी ओर छोटे बच्चे भी मोबाइल में रचेबसे रहते हैं, जिसकी आदत हम सभी ही डालते हैं. बच्चों के स्वस्थ विकास के लिए उन्हें परिवार का प्यार मिलना चाहिए, कोई उन्हें पूरा प्यार दे, बातचीत करे और उनकी हर जिज्ञासा को शांत करे और जगाए, उनके साथ धींगामस्ती करे. बच्चों के लिए यह सब बहुत जरूरी होता है. पर यह सब अब घर-आंगन में खेले जाने वाले खेलों की तरह भुलाया जाने लगा है. इस बारे में एक अमेरिकी पिता क्या सोचता है, पहले यह पढ़िए. शुरूआत में मोबाइल की मदद ले कर और फिर उसके बगैर बच्चों के साथ मस्ती भरा समय कैसे बिताया जा सकता है, यह पढ़िए.

एक बहुत जानीमानी टेक्नोलॉजी संबंधित अमेरिकी वेबसाइट के एग्जिकेटिव एडिटर ने कुछ समय पहले अपने मन की बात एक लेख में लिखी थी. वह खुद एक मैगजीन के एडिटर थे, इसलिए दिन-रात फोन और इंटरनेट का उपयोग करते थे. पर यह बात उन्हें खटकती थी. आगे की बात उन्हीं के शब्दों में-

मेरी जैसी हालत बहुतों की होगी. मुझे अपने फोन के बिना एक मिनट भी नहीं रहा जाता. पर मुझे डर इस बात का है कि मेरा फोन मेरे दो साल के बच्चे का बचपन छीन रहा है.

कभी कोई महत्वपूर्ण समाचार टप से आ जाता है और उसे देखे बिना रहा नहीं जाता. इसके बाद ऊब दूर करने के लिए ऐसे ही मैसेज स्क्रोल करने लगता हूं. एक ओर लगता है कि यह मोबाइल है तो दुनिया मेरे हाथ में है. पर स्मार्टफोन की मर्यादा निश्चित करना आसान नहीं है. ग्रोसरी स्टोर में पेमेंट के लिए लाइन में खड़ा होऊं या बेटे को लेकर डाक्टर के पास गया होऊं और नंबर आने की राह देख रहा होऊं तो भी मोबाइल हाथ में ले कर कूछ न कुछ देखता रहता हूं.

2007 में एप्पल का फोन लांच होने वाला था तो मैं सख्त एक्साइटेड था और शायद तभी मेरी पत्नी को पता चल गया था कि अब प्राब्लम होने वाली है. तब से वह मुझसे कहती है कि मेरे हाथ में फोन होता है तो मैं घर में बहुत उद्धतापूर्ण व्यवहार करता हूं. अब मेरा यह व्यवहार मेरे बेटे पर किस तरह असर कर रहा है, मुझे इस बात की चिंता हो रही है. भविष्य में हमारा बेटा कहेगा कि हम ने माता-पिता के रूप में उसकी ओर जरा भी ध्यान नहीं दिया.

स्क्रीन एडिक्शन की बीमारी मात्र मुझे ही है, ऐसा नहीं है. ज्यादातर लोग दिन में लगभग पांच घंटे मोबाइल में सिर गाड़े बैठे रहते हैं, इसमें खास कर 18 से 30 साल के लोग.

इसके पीछे का कारण है हमारा दिमाग. मोबाइल में आने वाला एलर्ट, तरह-तरह के नोटिफिकेशन जैसे पाॅप-अप होता है, हमारे दिमाग में झटका सा लगता है कि यह क्या है, हम उसे देखे बगैर रह नहीं पाते.

इससे दिमाग में डोपामाइन नाम का रसायन उत्पन्न होता है. यह वही केमिकल है, जिसके कारण हमें भूख, नशीले पदार्थों की तलब का अनुभव होता है. इसी के कारण हमें मोबाइल की स्क्रीन की भी तलब लगती है. जब हमें किसी मैसेज का इंतजार न हो, तब कोई नोटिफिकेशन या मैसेज टपक पड़े तो डोपामाइन अधिक सक्रिय हो जाता है. परिणामस्वरूप हमारे जैसे तमाम लोग मोबाइल के शिकंजे में आ जाते हैं.

हमें यह सोचना है कि हमारी मोबाइल की इस लत से हमारे छोटे-छोटे बच्चों पर क्या असर पड़ेगा? मैं अपने छोटे से बच्चे का उदाहरण देता हूं. वह कोई भी चीज हाथ में ले कर कान के पास रख कर कहता है, 'हैलो.' यह कोई हंसने वाली बात नहीं है. मेरे मोबाइल की लत ने उसके छोटे मन पर इतना गंभीर असर किया कि इस बारे में सोचता रह गया.

0 फोन बच्चों का समय छीनता है

माता-पिता के रूप में हम एक बात नहीं समझते कि हमारे बच्चे हमारा सहवास, हमारा ध्यान उनकी ओर हो, इसके लिए झंखते हैं और यह सब उनसे हमारे फोन ने छीन लिया है. शायद आप को हैरानी होगी कि बच्चों हम सब की इस फोन की लत से चिढ़ है, गुस्सा है.

कुछ समय पहले दूसरी कक्षा के बच्चों को होमवर्क दिया गया, जिसमें उन्हें छोटा सा निबंध दिया गया कि ऐसी कौन सी चीज है, जिसकी शोध न हुई होती तो अच्छा होता.

जवाब चौंका देने वाले थे. तमाम बच्चों ने लिखा था कि उन्हें उनके मम्मी-पापा का फोन जरा भी नहीं अच्छा लगता, क्योंकि पूरे दिन वे उसी में रचे-बसे रहते हैं. एक बच्चे ने लिखा था कि उसे उसकी मम्मी का फोन जरा भी अच्छा नहीं लगता, वह उससे नफरत करता है. वह चाहता है कि उसकी मम्मी के पास कोई फोन न हो.

होमवर्क देने और बच्चों का जवाब पढ़ने वाली टीचर ने अपने फेसबुक पेज पर यह जवाब लिखा तो उनकी इस पोस्ट को लगभग ढ़ाई लाख लोगों ने अपने सर्कल में शेयर किया.

माता-पिता की फोन की लत का बहुत बुरा असर होता है. उन्हें लगता है कि फोन मां-बाप के लिए उनसे अधिक महत्वपूर्ण है. यह सोच उन्हें उदास, दुखी और अकेला बना देती है.

लोगों की फोन की इस लत के लिए 'टेक्नोफरंस' शब्द का उपयोग किया जाता है. मतलब कि जब आप का फोन आप के हाथ में हो, तब आप के बच्चे, मित्र या परिवार के अन्य लोग आप से कुछ कह रहे हों तो आप का ध्यान उस ओर नहीं होता.

फोन में रचेबसे रहने वाले मां-बाप को देख कर बच्चे उनका ध्यान अपनी ओर करने के लिए तरह-तरह के उपाय करते हैं. सभी साथ खा रहे हों या बच्चों के साथ खेल रहे हों या कोई और काम करते समय मां-बाप थोड़ी थोड़ी देर में अपना फोन चेक कर रहे हों तो बच्चों को उनका समय कोई दूसरा छीन ले, यह अच्छा नहीं लगता. तब वह गुस्सा होते हैं, दुखी होते हैं या फिर रोने लगते हैं.

0 हमारे अपने समय का क्या? और इसका उपाय क्या?

मां-बाप के रूप में हम कहते हैं कि हमें भी हमारा अपना समय चाहिए - मी टाइम. हमें भी दिन भर के काम में से अपना समय चाहिए. बात सच है, पर यह बच्चों के समय के हिस्से का नहीं होना चाहिए. बच्चे को क्या चाहिए, वह क्या कहना चाहता है, यह समझने के लिए उसके साथ क्वालिटी समय बिताना जरूरी है.

आप 'फोन बाद में, बच्चा पहले' ऐसा हमेशा नहीं कर सकते, पर एक मर्यादा रेखा तो बना ही सकते हैं. आज की दुनिया बिना मोबाइल के नहीं चल सकती, पर इसका उपयोग पॉजीटिव रूप से कैसे किया जाए, बच्चों के सामने यह रखना जरूरी है.

बच्चा जब अकेला खेल रहा हो, तब फोन हाथ में लेना ठीक है, पर एक स्मार्ट व्यक्ति की तरह उस पर भी ध्यान रखना जरूरी है और अपना खेल भी खेलना है. बीच-बीच में ब्रेक ले कर उसके साथ, पूरे ध्यान के साथ बात करेंगे तो भी बहुत है. वह कभी खिलौने के साथ खेल रहा हो तो कहें कि वाह बहुत अच्छा खेल रहा है. उसे गले लगा कर प्यार कर लें, उसके साथ थोड़ा दिस से खेल लें और फिर उसके बाद भले फोन में लग जाएं.

जरूरी है कि दोनों बातों में बराबर संतुलन रखा जाए. बच्चा कभी कभी अकेला खेलना सीखे, यह भी जरूरी है.

बच्चा हमारा ध्यान खींचना चाहे और लंबे समय तक हम उसकी ओर देखें न तो वह कुछ शरारत करेगा. पर थोड़ा इंतजार करा कर उसकी बात सुनेंगे तो धैर्य रखना सीखेगा. बच्चा बुला रहा हो और उसी समय फोन का उपयोग करना जरूरी हो तो उससे कहा जा सकता है कि एक जरूरी मेल देखना है या किसी को जवाब देना जरूरी है, इसलिए उसे धैर्य रखना पड़ेगा.

यह सब लगता तो आसान है, पर जब यह करने लगेंगे, तब लगेगा कि कितना मुश्किल है.

जबकि कहीं से शुरुआत तो करनी ही होगी. हम हमारे बच्चों को हंसता-खेलता, सभी के साथ मिलता-जुलता और सही अर्थ में खुश देखना चाहते हैं तो हमें खुद मोबाइल का समझदारीपूर्वक उपयोग करना शुरू कर देना पड़ेगा. नहीं तो ये बच्चे अभी से हमारी नकल करना शुरू कर देंगे और हमें उनका ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए क्या क्या करना होगा, यह बात भी सोच लें.

बच्चा एकदम छोटा होता है तो मम्मी या पापा उसे बगल में बैठा कर खुद हाथ में कोई स्टोरी बुक ले कर पढ़े, यह जरूरी है. भले ही बच्चे की समझ में कुछ न आ रहा हो. आज के समय के अनुसार किताब की जगह वीडियो देखें या गेम्स खेलें, नो प्राब्लम, परंतु कीवर्ड है बच्चे के साथ, उसे मोबाइल पकड़ा कर खुद इंस्टग्राम में डूबे रहें, यह नहीं चलेगा. फनब्रेन. काॅम वेबसाइट पर केजी से आठवीं क्लास तक के बच्चों के लिए उचित गेम्स, वीडियो और बुक का खजाना है. फोकस पूरा का पूरा 'एज अप्रोप्रिएट एजूकेशन' पर है मस्ती के साथ. अक्कड़-बक्कड़ सीखने से ले कर ह्युमन बाॅडी या पृथ्वी के रहस्यों को ले कर गेम्स यहां मिल जाएंगे. 'डायरी आफ ए विम्पी किड' जैसी बुक्स के चैप्टर भी पढ़ने को मिलेंगे. पर याद रहे, शुरुआत में सब कुछ बच्चों के साथ रह कर करना होगा. सब इंग्लिश में है. पर मस्ती की कोई भाषा होती है क्या?

फनब्रेन जैसी साइट से शुरुआत कर के धीरे धीरे बच्चों को थोड़ा दूर ले जाया जा सकता है. इसके लिए आप मोबाइल में 'क्राफ्ट्स फार किड्स' जैसा कुछ सर्च करें. तमाम साइट्स, एप, वीडियो आदि मिलेंगीं. इसके बाद बाजार से रंगबिरंगे कागज, क्ले, कलर्स, कैंडी स्टिक आदि ले आएं और शुरू हो जाएं क्रिसमस कार्ड्स, बटरफ्लाई, पेन स्टैंड, बुकमार्क्स आदि कुछ न कुछ बनाने की टिप्स मिलेंगीं. बड़े बच्चे होंगे तो खुद ही बना कर खेल सकें इस तरह के बोर्ड गेम्स बनाने का मैथड वाली साइट्स खोजें (गेम खरा, पर खरीदें न, खुद बनाए) इस सब के लिए मोबाइल या पीसी का उपयोग मात्र सीखने के लिए, टिप्स के लिए. इसके बाद धीरे से मोबाइल किनारे खिसका कर बच्चे के साथ पालथी मार कर बैठ जाएं. इसमें परीक्षा आप की है, बच्चे की नहीं.

0 बढ़िया पेपर टाप्स बनाना सिखाएं

बच्चे को पेपर क्राफ्ट में मजा आने लगा? तो अब इस दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है और उसे मोबाइल से दूर ले जाया जा सकता है. इसकी खातिर बस थोड़ी देर के लिए हाथों में मोबाइल लीजिए और पेपरटाॅयज.काॅम नाम की एक मजेदार साइट पर पहुंच जाएं. तमाम छुट्टियां कम हो जाएंगीं, वहां इतना खजाना है. साइट पर अनेक पेपरटाॅयज या माडल बनाने की आसान विधि दी गई है. हर एक के लिए ए-4 साइज के पेपर पर माडल का कटआऊट दिया है. आप उस पेज पर पहुंच कर पूरे पेज की इमेज, घर में प्रिंटर हो तो प्रिंट कर लीजिए. यहां इनलार्ज की गई प्रिंट भी ली जा सकती है. हर माडल के लिए असान फोल्ड, नंबर के साथ दिया है. इसके बाद कैंची और गोंद ले कर जुट जाएं. दादा-दादी और छोटे बच्चों के बीच लगाव बढ़ाने का यह आसान रास्ता है.

0 मोबाइल किनारे रख कर धमाल, धींगामस्ती करें

मोबाइल गेम्स की तरह आप नीचे के तीन लेवल आप सक्सेसफुली पार कर गए? तो अब आगे बढ़ें अल्टीमेट लेवल की ओर. आप को और आप के बच्चों को मोबाइल की जबरदस्त लत लगी है तो इस लेवल पर पहुंचना थोड़ा मुश्किल होगा. पर एक बार यहां पहुंच जाएंगे तो इतना मजा आएगा कि मोबाइल हमेशा के लिए किनारे पड़ा रहेगा.

केवल इतना करें- घर का कोना खंगालें और पुरानी गेंद, जम्पिंग बाल्स, स्माइली बाल्स, रिंग्स आदि धूल खाती पड़ी हों तो इन्हें खोज निकालें. पुराना खोखा भी चलेगा, साथ ही नई- पुरानी कोल्डड्रिंक की बोतल भी खोज लें. पेंसिल का टुकड़ा, डस्टबिन, प्लास्टिक के कप आदि भी चलेंगे.

अब चैलेंज यह है कि इन साधनों के मिलने के बाद तो इसमें किसी गेम्स का सोचना. जैसे कि बोतल और प्लास्टिक के कप आदि को टार्गेट बना कर उसे स्माइली बाल से बंद कर देना. एप को क्रिएटिव हो कर बच्चा ऊबे न इस तरह का गेम सोचना है और उसे अधिक से अधिक इंटरेस्टिंग बनाना है.

खेलने के काम आने वाली ऐसी कोई चीज न मिले तो किसी भी सामान को ले कर बच्चे के साथ ऐक्टिव रहें. फिजीकल ऐक्टिविटी और फन, इन्ही दोनों बातों को ध्यान में रखना है.

शुरुआत में आप के दिमाग में कुछ न आता हो तो पिंटरेस्ट या यूट्यूब की मदद ले सकते हैं. खास कर पिंटरेस्ट में टूडलर ऐक्टिविटीज सर्च करें. छोटे बच्चे के साथ बिना किसी साधन के बाल, गुब्बारा या किसी अन्य खिलौने के साथ खेला जा सकता है. इस तरह बच्चों को फिजिकली ऐक्टिव और एनर्जेटिक रखा जा सकता है.

इस तरह गेम खेल कर आप का बच्चा खुशी से लोटपोट होगा तो थक कर कहेगा, 'अब बस.' तब समझिए कि आप अल्टीमेट लेवल पार कर गए. अभी बच्चे एटेंशन पाने के लिए मोबाइल और हमारे बीच स्पर्धा है. आप मोबाइल को जीतने देंगे तो बच्चा हारेगा.

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परीक्षा कक्ष में विद्यार्थी ध्यान रखें

रचनाकार- टीकेश्वर सिन्हा ' गब्दीवाला ', बालोद

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शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य उन विद्यार्थियों के लिए और बड़ा मूल्यवान होता है, जिनकी परीक्षाएँ बिल्कुल करीब हों. एक स्वस्थ शरीर में ही उत्तम मानसिकता का संयोग बनता है. समय के प्रति सजग रहने की भी नितांत आवश्यकता होती है. एक विद्यार्थी को सकारात्मक सोच व निर्भीकता के साथ सभी आवश्यक सामग्री- प्रवेश-पत्र, स्वच्छ रूमाल, पेन, कम्पास बाॅक्स लेकर अपने शाला गणवेश में ही परीक्षा कक्ष में प्रवेश करना चाहिए. इनके अतिरिक्त कागज व अन्य कोई सामग्री न हो. फिर कक्ष में उन्हें निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना बहुत जरुरी है.

(1). टेबल पर अंकित अपना अनुक्रमांक देख कर अपने प्रवेश-पत्र के अनुक्रमांक से एक बार अवश्य मिला लें. फिर एक बार अपने जेब को अवश्य टटोल लेवें कि कुछ कागजात अथवा अन्य सामग्रियाँ तो नहीं रह गयीं; सुनिश्चित कर लेवें.

(2). अपनी जगह पर बैठने से पहले आसपास को अवश्य जाँच कर लें कि अनावश्यक कागज व पाॅलीथिन वगैरह तो नहीं हैं.

(3). आप अपने टेबल की सीट या उसके अगल-बगल देख लें कि कुछ लिखा या रंग अथवा स्याही के धब्बे तो नहीं है. इनमें से कुछ हों तो पर्वेक्षक को अवश्य अवगत करा देवें.

(4). जैसे ही आपको पर्वेक्षक के जरिये उत्तर पुस्तिका मिलती है, आप इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि उत्तर पुस्तिका की गुणवत्ता अच्छी हो, यानी उत्तर पुस्तक साफ-सुथरी व कटी-फटी न हो.

(5). अपनी उत्तर पुस्तिका में निर्धारित व आवश्यक कालम (जगह)- अनुक्रमांक, कक्षा, विषय जैसे समस्त जानकारी शांति व धैर्यपूर्वक भर लेवें.

(6). अपनी निर्धारित जगह (टेबल) पर प्रवेश-पत्र, पेन-पेंसिल व स्केल के अतिरिक्त कुछ न रखें.

(7). प्रश्न पेपर मिलने पर उसकी जाँच अवश्य कर लेवें. पृष्ठ व प्रश्न संख्या का मिलान कर लेवें. प्रश्न पेपर के प्रथम पृष्ठ के ऊपरी भाग पर अपना अनुक्रमांक लिख लेवें.

(8). सर्वप्रथम पूरे प्रश्न पेपर का ध्यानपूर्वक अवलोकन कर लेवें. मन में शांति व एकाग्रता बनाए रखें. स्वयं निर्भीक व निश्चिंत रहें.

(9). सभी प्रश्नों को पढ़ने के पश्चात , समय का विशेष ध्यान रखें. समय रहते ही सभी प्रश्न हल हो जाने चाहिए. आप जिस प्रश्न के उत्तर के प्रति पूर्ण रूपेण आश्वस्त हैं यानी आप जिस प्रश्न का उत्तर शत-प्रतिशत जानते हैं, उसे सर्वप्रथम हल करे-लिखें. इसके लिए उत्तर-पुस्तिका के मध्य अथवा हासिये पर संबंधित प्रश्न का क्रमांक बोल्ड लेटर्स या फिर उस क्रमांक के नीचे लाइन खींच देवें. इसके पश्चात डाऊटफुल क्यूश्चन अर्थात संदेहपूर्वक प्रश्न, यानी जिनका उत्तर पूर्ण रूपेण अवगत न हों, उन्हें भी हल करें. अंत में जिन प्रश्नों के उत्तर से अनभिज्ञ हों, उन्हें भी प्रश्न के विषय सम्बंधित कुछ न कुछ अवश्य लिखें. किसी भी स्थिति में कोई भी प्रश्न नहीं छुटना चाहिए.

(10). यदि आप वस्तुनिष्ठ प्रश्न बना रहे हैं तो उत्तर क्रमांक लिखते हुए वैकल्पिक सही उत्तर को भी लिख देवें.

(11). रिक्त स्थान की पूर्ति करें या सही जोड़ी बनाइए, जैसे प्रश्नों का उत्तर लिखने के पश्चात एक लाइन खींच देवें. वह लाइन पूर्ण-उत्तर समाप्ति की घोतक होती है.

(12). प्रत्येक अति लघुत्तरीय, लघुत्तरीय या दीर्घ उत्तरीय प्रश्न के उत्तर पूर्ण होने के बाद एक लाइन खींच देवें.

(13). किसी प्रश्न का उत्तर उसके निर्धारित अंक के आधार पर ही लिखें, अर्थात अंक के अनुसार ही उत्तर लिखने की कोशिश करें.

(14). आवश्यकता पड़ने पर ली गयी अतिरिक्त उत्तर पुस्तिका पर दिये स्तम्भ पूरा कर लेवें. इसे एक धागे से मुख्य उत्तर पुस्तिका से अच्छी तरह बाँध देवें. परीक्षा समय समाप्ति के पाँच-दस मिनट पूर्व अपने लिखे उत्तरों की जाँच एक बार अवश्य कर लेवें.

(15). समय समाप्ति पर पूर्ण रूपेण उत्तर पुस्तिका को पर्वेक्षक को सौंप देवें. कोशिश करें, उन्हें बलात उत्तरपुस्तिका लेने का अवसर न देवें. परीक्षा कक्ष से शांतिपूर्वक व क्रमबद्ध बाहर निकलें.

अंत मैं कहना चाहूँगा कि परीक्षा के दरम्यान आप सकारात्मक विचार रखें, निर्भीक रहें, शांत रहें, खुश रहें. मेरी शुभेच्छाएँ आप सबके साथ हैं.

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मन की शक्ति

रचनाकार- सीमा यादव, मुंगेली

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प्रिय बच्चों !मन की शक्ति अपार होती है. इसमें कोई शंका की बात नहीं है. एक मन ही है जो सृष्टि की अनंत सीमा को लाँघने की क्षमता रखता है. किन्तु ध्यान रहे, यह मन हमारा एक अच्छा मित्र भी हो सकता है और हमारा सबसे बड़ा दुश्मन भी हो सकता है. इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता. क्योंकि मन की गति हवा से भी तेज होती है. कब किस रूप में हावी हो जाय और बर्बाद या आबाद का कारक बन जाय. मन को नियंत्रित करके नहीं रखा गया तो यह विनाश का वह रूप दिखा देता है. जिसके बारे में आपने कभी सोचा भी नहीं होगा. वो सब कुछ मन के उस भाव पर निर्भर करता है कि वो किस चीज को आपके मन के भीतर महत्व देता है. यह मन हमें अपना गुलाम बना लेता है जब हम इसके सारे क्रियाकलाप पर आँख में पट्टी बांधकर भरोसा कर लेते हैं. तो हमें अपने मन को इतना सशक्त बनाना होगा कि आसानी से कोई भी अनर्गल विचार हमें स्पर्श न कर पाय.इसलिए मैं स्पष्ट कर देना चाहती हूँ ताकि मन के बारे में आपके हृदय में गलत धारणा स्थापित न हो. मन को एकाग्रता की शक्ति से सिंचित करके निश्चित रूप से हम मन के भीतर असीम शक्ति को सृजित कर सकते हैं. इसके लिए आपको अपनी दैनिक चर्या पर ईमानदारी और निष्ठा से ध्यान केंद्रित करने होंगे. तभी हम मन की शक्ति पर अपार रूप से कार्य सिद्ध करके अपने जीवनोद्देश्य को प्राप्त कर सकेंगे. यही शाश्वत सत्य है. ऐसा वेद पुराणों में अंकित है.

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आत्मविश्वास

रचनाकार- सीमा यादव

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आत्मविश्वास के बल पर व्यक्ति हर वो काम कर जाता है, जो पर्वत सा दुर्गम होता है और जो असम्भव होता है. आत्मविश्वासी व्यक्ति न कभी किसी को दबाता है और न ही किसी से दबता है. वह अपने आप में ही तल्लीन रहता है. बिना किसी से अपेक्षा रखे अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते जाता है. आत्मविश्वास से भरा व्यक्ति स्वयं से ही लगातार मुकाबला करते रहता है. और समाज के हित व उन्नति की कामना करते हुए नित्य नयी -नयी योजना बनाते रहता है. कछुए की भाँति नियमित रूप से धीरे -धीरे अपने कर्तव्य पथ की ओर अग्रसर रहता है. आत्मविश्वास से भरा व्यक्ति ही एक स्वस्थ व्यक्तित्व को निर्मित कर पाता है. जो आशवादी होने का परिचायक है.अतएव हमें हर हालात और परिस्थिति में अपने हृदय तल की शक्ति को स्थिर बनाये रख सकें. इसके लिए अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करना होगा. क्योंकि जब तक हम स्वयं को संयम से नहीं रखेंगे, तब तक हम कोई बड़ा और सार्थक कार्य नहीं कर पायेंगे. जब भी कोई लक्ष्य बनाएं, उसके परिणाम पर अवश्य गौर करें. तत्पश्चात् ही निर्णय की स्थिति में पहुँचें. आप देखेंगे कि सारी प्रकृति हमारे साथ हैं और यही हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि है. अतः आत्मविश्वास को हमेशा जागृत रखें. क्षण भर के लिए भी इसे खोये नहीं.

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साइकिल

रचनाकार- राजेंद्र जायसवाल

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हमारे जमाने में साइकिल तीन चरणों में सीखी जाती थी ,

पहला चरण - कैंची

दूसरा चरण - डंडा

तीसरा चरण - गद्दी ...

तब साइकिल की ऊंचाई 24 इंच हुआ करती थी जो खड़े होने पर हमारे कंधे के बराबर आती थी ऐसी साइकिल से गद्दी चलाना मुनासिब नहीं होता था.

कैंची वो कला होती थी जहां हम साइकिल के फ़्रेम में बने त्रिकोण के बीच घुस कर दोनो पैरों को दोनो पैडल पर रख कर चलाते थे.

और जब हम ऐसे चलाते थे तो अपना सीना तान कर टेढ़ा होकर हैंडिल के पीछे से चेहरा बाहर निकाल लेते थे, और 'क्लींङ क्लींङ' करके घंटी इसलिए बजाते थे ताकी लोग बाग़ देख सकें की लड़का साईकिल दौड़ा रहा है .

आज की पीढ़ी इस 'एडवेंचर' से महरूम है उन्हे नही पता की आठ दस साल की उमर में 24 इंच की साइकिल चलाना 'जहाज' उड़ाने जैसा होता था.

हमने ना जाने कितने दफे अपने घुटने और मुंह तोड़वाए है और गज़ब की बात ये है कि तब दर्द भी नही होता था, गिरने के बाद चारो तरफ देख कर चुपचाप खड़े हो जाते थे अपना हाफ कच्छा पोंछते हुए.

अब तकनीकी ने बहुत तरक्क़ी कर ली है पांच साल के होते ही बच्चे साइकिल चलाने लगते हैं वो भी बिना गिरे. दो दो फिट की साइकिल आ गयी है, और अमीरों के बच्चे तो अब सीधे गाड़ी चलाते हैं छोटी छोटी बाइक उपलब्ध हैं बाज़ार में .

मगर आज के बच्चे कभी नहीं समझ पाएंगे कि उस छोटी सी उम्र में बड़ी साइकिल पर संतुलन बनाना जीवन की पहली सीख होती थी! 'जिम्मेदारियों' की पहली कड़ी होती थी जहां आपको यह जिम्मेदारी दे दी जाती थी कि अब आप गेहूं पिसाने लायक हो गये हैं .

इधर से चक्की तक साइकिल ढुगराते हुए जाइए और उधर से कैंची चलाते हुए घर वापस आइए !

और यकीन मानिए इस जिम्मेदारी को निभाने में खुशियां भी बड़ी गजब की होती थी.

और ये भी सच है की हमारे बाद 'कैंची' प्रथा विलुप्त हो गयी .

हम लोग की दुनिया की आखिरी पीढ़ी हैं जिसने साइकिल चलाना तीन चरणों में सीखा !

पहला चरण कैंची

दूसरा चरण डंडा

तीसरा चरण गद्दी.

● हम वो आखरी पीढ़ी हैं, जिन्होंने कई-कई बार मिटटी के घरों में बैठ कर परियों और राजाओं की कहानियां सुनीं, जमीन पर बैठ कर खाना खाया है, प्लेट में चाय पी है.

● हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने बचपन में मोहल्ले के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, गिल्ली-डंडा, छुपा-छिपी, खो-खो, कबड्डी, कंचे जैसे खेल खेले हैं

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सबसे बड़ी पूंजी

रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

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दुनियां में जिसके पास प्रसन्नता, मन की शांती, संतोष भरा मन हो वो भाग्यशाली और खुश इंसान है. केवल आज की ही क्यूं वो इंसान हर दुनियां मे खुश है. महाभारत मे धर्मराज युधिष्ठिर से एक यक्षने प्रश्न पुछा के हे धर्मराज सबसे बडा सुख कौनसा है इस प्रश्न के उत्तर के स्वरूप युधिष्ठिरजी ने कहा समाधान ही सर्वोत्तम सुख है. मनुष्य के पास बहुत सारा पैसा हो अछी शादीशुदा जिंदगी हो अच्छे माता पिता हो लेकिन मन मे संतोष व प्रसन्नता न हो तो ऐसा व्यक्ती आज की या किसी भी दुनिया मे खुश नही हो सकता. आज की दुनिया मे पैसा अतिआवश्यक है. लेकीन मन का संतोष प्रसन्नता उससे भी अधिक आवश्यक है,और एक बात जो की आवश्यक है वो है आपकी सेहत, सेहत अछी हो तो व्यक्ती का जीवन आनंदमय होता है,वैसे तो कुदरत द्वारा रचित इस अनमोल खूबसूरत सृष्टि में रचनाकर्ता ने मानवीय जीवन में अनेक गुण दोषों को शामिल कर संजोया है, इसका उपयोग करने सर्वश्रेष्ठ बुद्धिमता का भी सृजन कर दिया है. बस!! जरूरत है अब माननीय जीव को उसे गुण-दोष सुख-दुख खुशियां-गम प्रसन्नता दुख इत्यादि का चुनाव कर अपने जीवन को सफल और असफल बनाएं उसके ऊपर है!! क्योंकि प्रसन्नता और सुख दुख भी बौद्धिक क्षमता के आधार पर माननीय जीव को खुद चुनना होता है! इसलिए आज हम छठ की पावन बेला पर मन की प्रसन्नता पर उसके गुणों, प्रक्रिया सुजन करने के तरीकों पर इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे.

साथियों बात अगर हम प्रसन्नता की करें तो खुलकर हंसना, मुस्कुराना, प्रसन्न रहना, मन की प्रसन्नता खुद सृजित की हुई दवा के समान है, क्योंकि इसमें सब दुख तो नष्ट होते हैं,जीव अपने कर्म में असफल नहीं होता. बुद्धि तुरंत स्थिर रहती है. सामाजिक प्रतिष्ठा और गुणों की सुगंध दूर तक जाती है एक अलग हस्मुख व्यक्तित्व की हमारी छाया हमारे अपने परिचितों सहयोगियों पर पड़ती है. प्रसन्नता हमारा ऐसा अनमोल खजाना है, जिसे जितना लूटाएंगे उतना ही बढ़ता चला जाएगा, खिलखिलाते चेहरे और प्रसन्नता की आंखों की चमक मनीषियों को दुर्लभ पूंजी है, क्योंकि प्रसन्नता सुकून से जीने की कुंजी है. यह खजाना तब बढ़ता है जब हम दूसरों की खुशीयों में अपनी खुशी को समाहित करते हैं. हमें छोटी-छोटी चीजों में प्रसन्नता, सुख ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए, विश्वसनीय मन के भाव की खुशी का भाव अभूतपूर्व सफलता और दूरगामी सकारात्मक परिणाम होता है. आध्यात्मिकता, उदारता, परोपकार, सहनशीलता, सहिष्णुता इत्यादि मन की प्रसन्नता के प्रमुख स्त्रोतों में से कुछ हैं, जिनको जीवन में अपनाने की जरूरत को रेखांकित किया जा सकता है.

साथियों बात अगर हम अंतरराष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस, संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी विश्व प्रसन्नता इंडेक्स रिपोर्ट इत्यादि अन्तर्राष्ट्रीय स्तरपर प्रसन्नता के मूल्यों की करें तो प्रसन्नता को हाई वैश्विक टॉनिक माना जाता है. प्रसन्नता दिवस मनाया जाता है अलग-अलग देशों के प्रसन्नता से रहने के क्रमांक बताए जाते हैं, परंतु बहुत हैरानी की बात है प्रसन्नता इंडेक्स में अनेक पूर्ण विकसित देशों के साथ ही भारत भी पिछड़ा हुआ है जो रेखांकित करने वाली बात है!! विश्व प्रसन्नता रिपोर्ट 2022 में 146 देशों की रिपोर्ट के अनुसार फिनलैंड लगातार 5 वर्षों से प्रथम और डेनमार्क द्वितीय और आयरलैंड तृतीय स्थान पर है.जबकि इस रिपोर्ट में भारत 136 वी रैंक पर है याने लास्ट टॉप टेन इतनी ख़राब हालात जो आश्चर्य वाली बात है.

साथियों बात अगर हम मन की प्रसन्नता के गुण एवं लाभों की करें तो, प्रसन्नता तो व्यक्ति का मानसिक गुण है, जिसे व्यक्ति को अपने दैनिक जीवन के अभ्यास में लाना होता है. प्रसन्नता व्यक्ति के अंतर्मन में छिपे उदासी, तृष्णा और कुंठाजनित मनोविकारों को सदा के लिए समाप्त कर देती है. वस्तुत: प्रसन्नता चुंबकीय शक्ति संपन्न एक विशिष्ट गुण है. प्रसन्नता दैवी वरदान तो है ही, यह व्यक्ति के जीवन की साधना भी है. व्यक्ति प्रसन्न रहने के लिए एक खिलाड़ी की भांति अपनी जीवन-शैली और दृष्टिकोण को अपना लेता है. उसके जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता असफलता, जय-पराजय, और सुख-दुख उसके चिंतन का विषय नहीं होता. वह तो अपने निर्धारित लक्ष्य की ओर बढ़ता जाता है.प्रसन्नता मानवों में पाई जाने वाली भावनाओं में सबसे सकारात्मक भावना है. इसके होने के विभिन्न कारण हो सकते हैं: अपनी इच्छाओं की पूर्ति से संतुष्ट होना. अपने दिन-रात के जीवन की गतिविधियों को अपनी इच्छाओं के अनुकूल पाना. किसी अचानक लाभ से लाभांवित होना. किसी जटिल समस्या का समाधान प्राप्त होना.

साथियों बात अगर हम प्रसन्नता के लक्ष्यों की प्राप्ति की करें तो, प्रसन्न रहने वाला व्यक्ति परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए अपने लक्ष्य को अवश्य प्राप्त कर लेता है. यदि वह असफल भी हो जाता है तो निराश होने और अपनी विफलता के लिए दूसरों को दोष देने की अपेक्षा अपनी चूक के लिए आत्मनिरीक्षण करना ही उचित समझता है.ज्ञानीजन और अनुभवी बताते हैं कि प्रसन्नता जैसे दैवीय-वरदान से कुतर्की और षड्यंत्रकारी लोग सदैव वंचित रह जाते हैं. प्रसन्न व्यक्ति स्वयं को प्रसन्न रखकर दूसरों को भी प्रसन्न रखने की अद्भुत सामथ्र्य रखता है. प्रसन्नता को प्रभु-प्रदत्त संपदा समझने वाले व्यक्ति ही सदैव सुखी रहते हुए यशस्वी, मनस्वी, महान और पराक्रमी बनकर समाज और राष्ट्र के लिए आदर्श स्थापित करने में सक्षम हो सकते हैं. प्रसन्नता ही सुखी जीवन का मूल मंत्र है. प्रसन्नता हमारा अनमोल खजाना है. प्रसन्नता को ज़रूर लुटाइए फ़िर देखिए, उसका खजाना बढ़ता चला जाएगा .भलाई करना कर्त्तव्य नहीं, आनन्द है . क्योंकि वह प्रसन्नता को पोषित करता है . सबको प्रसन्न करने की शक्ति सब में नहीं होती . प्रसन्नता आत्मा को शक्ति प्रदान करती है . प्रसन्नतापूर्वक उठाया गया बोझ हल्का महसूस होता है. प्रसन्नता शब्द का प्रयोग मानसिक या भावनात्मक अवस्थाओं के संदर्भ में किया जाता है, जिसमें संतोष से लेकर तीव्र आनंद तक की सकारात्मक या सुखद भावनाएं शामिल हैं. इसका उपयोग जीवन संतुष्टि, व्यक्तिपरक कल्याण, यूडिमोनिया, उत्कर्ष और कल्याण के संदर्भ में भी किया जाता है इसलिए हर व्यक्ति ने इस गुण को अपने में समाहित कर जीवन को सफल बनाने के मंत्र को अपनाना चाहिए.

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि दुनियां में मन का संतोष प्रसन्नता खुशी और अच्छी सेहत ही सबसे बड़ी पूंजी है.आज की दुनियां मे वो सबसे अधिक खुश है जिसके पास प्रसन्नता, मन की शांती, संतोष भरा मन है.प्रसन्नता हमारा ऐसा अनमोल ख़जाना है, जितना लुटाओगे उतना बढ़ता चला जाएगा

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