बालगीत

मां

लेखिका एवं चित्रकार – निहारिका झा

तेरा मेरा अटूट है बन्धन
तुझमें मैं हूं, मुझमें तू हैं

तूने मुझको जन्म दिया है
स्नेह नीर से सिंचित करके
मुझपर यह उपकार किया है

तेरे निश्छल प्यार पे हे मां
हरदम अपना शीश झुकाऊं

मां मेरी है इक अभिलाषा
जन्मों तक तुझसे बंध जाऊं

रिंकू चूहा

लेखक - द्रोण साहू

कहीं एक बिल में रहता था,
रिंकू चूहा, चिंकू चूहा ।

दुनिया देखूँ - सोचा दिल से,
निकल पड़ा वह अपने बिल से ।

बाहर दुनिया बड़ी अनोखी,
अब आपनी आंखों से देखी ।

एक जीव था बड़ा कमाल,
लंबी पूँछ, मुलायम बाल ।

पीछे से उसकी माँ बोली,
मत कर उससे हँसी-ठिठोली ।

उसके पास कभी मत जाना,
हम हैं उसका बढ़िया खाना।

यह सुंदर है देवी जैसी,
पर है बिल्ली शेर की मौसी।

वृक्ष

लेखि‍का - अंजूलता भास्कर

प्रकृति की शान हैं '
वृक्ष हमारी जान हैं ''

प्रकृति हमको है पुकारती '
वृक्ष लगाकर करो आरती ''

सूख रही है पावन धरा '
वृक्ष लगाकर करो हरा ''

सबको वृक्ष लगाना है '
जीवन सुखी बनाना है ''

मुन्नी चली स्कूल

लेखक - प्रकाश कुमार बंजारे

गर्मी की छुट्टी खत्म सोचकर, मुन्नी हुई उदास
आंसू आने लगे आंख में, फूले-फूले से थे गाल ।

उसे देखकर मम्मी बोलीं - मामा की है याद सताती,
या फिर रसगुल्ले के थाल ?

मुन्नी रोते रोते बोली - पढ़ा लिखा सब भूल गई हूं
नहीं जाऊंगी मां, स्कूल ।

मम्मी उससे हंसकर बोलीं - स्कूल अगर तुम जाओगी,
पढ़-लिखकर के नाम करोगी, दुनिया पर तुम छाओगी ।

सोच समझकर मुन्नी बोली - हो गई मुझसे भारी भूल,
अब मुझसे ना कहना कुछ भी, यह देखो मैं, चली स्कूल

मेरी फुलवारी

लेखक – मो. शम्स तबरेज़ आलम

शाला के आंगन में बच्चों की क्यारी
यही है मेरी फुलवारी
बरसात के आते ही, क्यारी में फूल खिल गए
कुछ जाने कुछ अनजाने मिल गए
ए ‘‘शम्स’’ निकल अपनी रोशनी बिखेर
छिपकर बैठा रहा तो हो जाएगी देर
अब सजानी है अपनी फुलवारी

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