मम्मी - पापा हम बड़े हो गए
लेखक - निशांत शर्मा
याद है मम्मी आपको जब में छोटा था तो आप स्कूल के लिए मुझे तैयार किया करते थे. ठण्ड न लगे इसलिये नहलाकर टावेल के भीतर छिपा लिया करते थे. गरम पराठे सब्जी टिफिन में जोड़ दिया करते थे. जूते पालिश करके अप-टु-डेट स्कूल के लिये तैयार किया करते थे. रिक्शे को आने में यदि ज़रा भी देर हो जाये तो पापा स्कूटर से स्कूल छोड़ने को कहते थे. स्कूल से जैसे ही आते थे तो हमारे गंदे कपड़े, मोजे, जूते अपने हाथ से उतारकर घर पर रखे साफ सुथरे कपड़े पहनाते थे और अपने हाथों से गरमागरम खाना खिलाते थे. सचमुच वैसी भूख जिसमें पेट आपके हाथ से खिलाए निवालों से भर जाया करता था आज तक वैसी भूख को तरसते हैं. थोड़े बड़े हुए तो हायर एजुकेशन के लिये आपने हमें कालेज भेज दिया. न हमें अच्छा लगता था कालेज के हास्टल में न आपको हमारे बिना नींद और भूख... पर क्या करें अपने बच्चों को आपको लायक जो बनाना था. हॉस्टल के फोन से कभी-कभी कॉल कर लेते थे आप दोनो को, तो दिन भर अच्छा महसूस करते थे. जैसे-जैसे आप दोनो के बिना कॉलेज की पढ़ाई पूरी की तो सामने एक नया झमेला जॉब का... जैसे-तैसे दूसरे शहर में जॉब तो मिली पर आपसे कोसों दूर होते चले गए. थोड़े दिनो बाद शादी हो गई फिर बच्चे हो गए और बीबी बच्चो में हम इतने लीन हो गए कि आपसे बातें-मुलाकातें कम हो गईं. आज आप बूढ़े हो गए और हम बड़े हो गए पर आज भी मन करता है कि आप वचपन जैसे ही हमे तैयार करके ऑफिस भेजें. आज भी मन करता है कि आप बचपन में जैसे अपने हाथ से खाना खिलाते थे वैसे ही हमारे ऑफिस से घर आने पर हमें खाना खिलाएं.... जब पापा को सब्ज़ी मण्डी सब्ज़ी लेने जाते हुए और आपको घर का सारा काम करते हुए देखते-सुनते हैं तो लगता है कि क्या हमारे लिये आपके प्रति कोई कर्तव्य एवं दायित्व नहीं है पर क्या करें मम्मी–पापा शायद ये ही ज़िन्दगी है. सच में लगता है अब हम बड़े हो गए....
मेरा स्वप्न
लेखक पवन कुमार
अचानक मुझे किसी के रोने की आवाज सुनाई दी. मैने कमरे मे इधर-उधर देखा. वहाँ कोई नही था, लेकिन रोने की आवाज अभी भी आ रही थी. तब मैंने खिडकी से बाहर झाँका, तो देखा कि एक परी बाहर बगीचे में बैठी रो रही है. मैं उसके पास गया और उससे पूछा कि तुम कौन हो? यहाँ क्यों रो रही हो? परी ने कहा, ‘‘मेरा नाम भाव्या है. मैं परीलोक से आई हूँ. मेरी छड़ी तुम्हारे घर की छत पर बनी चिमनी से अंदर गिर गई है. छड़ी के बिना मैं वापस परीलोक नही जा सकती. मेरी सहायता करो!’’ बस इतनी सी बात, इतना कह कर मैं घर के अंदर दौड़ा. रसोई घर से छड़ी उठाई और परी को दे दी. छड़ी वापस पाकर परी बहुत खुश हुई. उसने परी लोक के विशेष फल-फूल से भरी हुई एक टोकरी अपनी छड़ी घुमाकर मँगाई और मुझे दिया. मैने ऐसे फल-फूल पहले कभी नही देखे थे. इन्हे देखकर मैं विस्मित हो गया. मैंने परी को धन्यवाद दिया. परी मुझे धन्यवाद देते हुए उड़ गई. तभी मैं अपने बिस्तर से फर्श पर गिर पड़ा. आश्चर्य से अपनी आँखें मलते हुए कमरे के चारों ओर देखा, लेकिन कोई नहीं था. मै समझ गया कि मैं स्वप्न देख रहा था. मुझे फूलों की खुशबू अभी भी महसूस हो रही थी.