सूरज
लेखक - द्रोणकुमार सार्वा
बड़े बिहनिया आथे सूरज
अउ अंजोर बगराथे सूरज
उठा नींद म बुड़े धरती ले
नवा सिरजन करवाथे सूरज
सुघ्घर लाली बिंदिया बनके
आसमान म भाथे सूरज
तरिया के लहरा म परके
मोती अस झिलमिलाथे सूरज
बन मितान कस छईहाँ अंजोर म
संग-संग मोर जाथे सूरज
दुख के बादर ले सुख आही
जग ल आश देखाथे सूरज...
सूरज दादा
लेखक - बलदाऊ राम साहू
सूरज दादा भरी दुपहरी
कर लो तनिक आराम,
चलते-चलते तुम थक जाओगे
कैसे करोगे काम।
कहीं तुम्हें पर्वत मिले तो
तनिक वहाँ सुसताना,
पेड़ों के ही पास बैठकर
रघुपति राघव गाना।
जंगल के वे पंछी सारे
पास तुम्हारे आएँगे
मोर, पपीहा और कोयलिया
सुन्दर गीत सुनाएँगे ।
मेरी चड्डी-बनियान
लेखक - टीकेश्वर सिन्हा 'गब्दीवाला '
वो मेरी चड्डी-बनियान, कहाँ है मम्मी ?
आपने टेबल पर रखी थी ।
मैंने भी यहीं पर देखी थी ।
वो मेरा पहला परिधान, कहाँ है मम्मी ?
वो मेरी चड्डी-बनियान, कहाँ है मम्मी ?
वो साथी मेरे बहुत प्यारे ।
रंगीन सुंदर और न्यारे ।
वो मासूम-बेजान, कहाँ है मम्मी ?
वो मेरी चड्डी-बनियान, कहाँ है मम्मी ?
काम नहीं बनेगा व्यर्थ कूढ़ने में ।
कुछ मदद करो अब ढूँढ़ने में ।
वो मेरे पहनावे की शान, कहाँ है मम्मी ?
वो मेरी चड्डी-बनियान, कहाँ है मम्मी ?
मोबाईल किस काम के
लेखक - विकास कुमार हरिहारनों
बच्चों हेतु
'जब तक समझ ना बने,
रख्खो सदा इससे दूरी,
वरना पड़ेगा तुम्हें ही भारी,
इसे न बना मजबूरी । '
माता-पिता हेतु
'अपनों से जुड़ना,
सब काम करना,
पर देकर इसे, बच्चों के हाथों,
उनसे तुम ना बिछुड़ना। '
शिक्षकों हेतु
'मैं भी इससे सीखूँ,
तुम भी इससे सीखो,
ज्ञान और विज्ञान,
भिन्न, दशमलव मान। '
सब हेतु
'नहीं है ये फ़ैशन,
न लो इसकी टेंशन,
सफलता मिलेगी तुम्हें,
अपने ही अपने काम से। '
पश्चाताप
रचनाकार - श्रवण कुमार साहू 'प्रखर '
एक लकड़हारा लकड़ी काटने,
नदी किनारे खड़ा था।
उसकी कुल्हाड़ी का वार,
हर बार लकड़ी पर भारी पड़ा था।
देखते ही देखते ही उसने,
सारे पेड़ काट डाले।
माथे पे पड़ा पसीना,
हाथों पर पड़ गए छाले।।
भूख और प्यास से,
वो बैचेन हो रहा था।।
गर्मी के मारे अपना,
आपा खो रहा था।।
इस बैचेनी का,
क्या हल मैं निकालूँ।
अगर दिखे कहीं पेड़,
तो जाकर मैं सुस्ता लूँ।।
पर दिखा ना कोई पेड़,
ना दिखा कोई ठिकाना।।
पेड़ काटकर काहे तू,
खोजे फिर आशियाना।।
पेड़ काटकर खुद वो,
हुआ फिर शर्मिंदा।।
प्रकृति के बिना भला कोई
यहाँ रह सकता है क्या जिंदा ?
बचपन
लेखिका एवं चित्र - स्नेहलता 'स्नेह '
भोला बचपन, न्यारा बचपन
लगता सबको प्यारा बचपन
हंसता औ मुस्काता बचपन
स्नेह सुधा बरसाता बचपन
सबको है अपनाता बचपन
प्रियषा सा मन पाता बचपन
बारिश में हर्षाता बचपन
छप छप धूम मचाता बचपन
रेत में किला बनाता बचपन
धूल का फूल कहाता बचपन
सीख यही दे जाता बचपन
लौट के फिर न आता बचपन
तोत्ते चान
लेखक - योगेश ध्रुव (भीम)
(यह कविता खंड जापान की एक लड़की तोत्ते चान पर आधारित नाटकीय मंचन की दृश्य को कविता के रूप में लिखा गया जो मन में उठने वाले भाव है)
एक लड़की,
निश्च्छल मन,
चंचल मन,
खेलना,
फुदकना चाहती,
आशाएं लिये,
भावनाए सँजोए
मन मे,
आसमान सी,
पर्वत सी,
नदियों की धार सी,
बगियों की फूल सी,
हा मैं एक लड़की,
पकड़ी माँ की उंगली,
खुशी से आनंदित,
उठी झूम,
जाना था स्कूल,
कल्पना की क्यारियां,
डेस्क की आवजे,
धम-धम,
बंधा सा,
ठगा सा,
झरोखे पर खड़ी,
हा एक लड़की,
करती प्रश्न,
अबाबील से,
क्या करोगे बाते मुझ से,
हा करोगे बाते,
हा एक लड़की,
तोत्ते चान हु,
बार-बार टीचर की,
डांट फटकार,
न करो खीझता,
मन मे अकुलाहट,
प्रकृति सा चंचल,
उमंगता,स्वतंत्रता,
बचपन मन को,
न करो दूर,
अपनत्व की भाव चाहिए,
ऐसी कल्पना लिये,
हा मिल गया,
मिल गया,
इक छोटी सी आशा,
खोजता मन मेरा,
अपनत्व, निजता की भाव,
छोटी सी आशाएं,
मन की उमंगता,
इठलाती,बलखाती,
चंचलता की राह बनाती,
जो समझे भाव,
बरबस मेरी मन की भावना,
एक ऐसा इंसान,
प्रकृति की रम्यता,
हर भावो को जोड़ना,
बनता मदारी,
करता करतब,
हा चाहती हूँ,
ऐसी भाव,
हा तोत्ते चान हूं.
मुझे जाना है स्कूल,
जाना है,
जाना है,
स्कूल,
हा मैं तोत्ते चान हूं.
चलो योग करें
लेखक - श्रवण कुमार साहू 'प्रखर '
तन का मन से।
मन का धन से।।
धन का जीवन से।
जीवन का अर्पण से।।
अर्पण का समर्पण से।
समर्पण का अर्चन से।।
अर्चन का वंदन से।
वंदन का अभिनंदन से।।
चलो योग करे।
जगत का जीव से।
जीव का जीवन से।।
जीवन का प्रकृति से।
प्रकृति का संस्कृति से।।
संस्कृति का संस्कार से।
संस्कार का व्यवहार से।।
व्यवहार का विचार से।
विचार का संसार से।।
चलो योग करें।।
व्यक्ति का शक्ति से।
शक्ति का भक्ति से।।
भक्ति का भाव से।
भाव का भावना से।।
भावना का कामना से।
कामना का शुभकामना से।।
शुभकामना का दृष्टि से।
दृष्टि का सृष्टि से।।
सृष्टि का ब्रम्ह से।
ब्रम्ह का परब्रह्म से।।
चलो योग करें।।
दाखिला लें सरकारी (रोला छंद)
लेखक - कन्हैया साहू 'अमित '
चलो चलें हम स्कूल, आज अब से सरकारी।
अपने घर के पास, करें शाला से यारी।
दौड़भाग क्यों दूर, पसीना व्यर्थ बहाना।
सबके रहो समीप, वहीं पर नाम लिखाना।
नया-नया परिवार, नई खुशियों का मेला।
हमजोली का साथ, लगे हैं रेलम-पेला।
कापी पेन किताब, पहाड़ा रख लो बस्ता।
भाँति-भाँति के लोग, लगे शाला गुलदस्ता।
टन-टन घंटी बोल, कान में मधुर सुनाती।
बजते दस जब नित्य, सभी को स्कूल बुलाती।
ईश विनय करजोड़, प्रार्थना मन से गाते।
साफ सफाई योग, स्वच्छ तन स्वस्थ बनाते।
सरस्वती का धाम, बड़ा पावन विद्यालय।
पढ़ना लिखना पाठ, सीख का उत्तम आलय।
खेलकूद सब साथ, मेहनत तप अनुशासन।
नैतिक सद्व्यवहार, सभ्यता संग उपासन।
भ्रम झूठ से दूर, प्रमाणित होती शिक्षा।
साझा सेवाभाव, समर्पित होती कक्षा।
प्रीत भरे प्रतिपाल, दीप सम जलते शिक्षक।
शिक्षा सह संस्कार, सहज बनते संरक्षक।
विनय विमल व्यवहार, स्कूल सबका सरकारी।
भेदभाव का भाग, गुणा गुण शिष्टाचारी।
हृदय बालपन जोड़, कहाँ ऋण फिर गुणवत्ता।
देश राज्य समुदाय, सदा सहयोगी सत्ता।
हाथ धुलाई लाभ, रगड़ धोना सिखलाते।
मीनू के अनुसार, गर्म भोजन सब खातें।
दो जोड़ी गणवेश, किताबें मिलती पूरी।
सबको शिक्षादान, पढ़ाई जीवन धूरी।
छात्रवृत्ति प्रतिवर्ग, पढ़े होकर उत्साही।
मुफ्त सायकल प्राप्त, सुलभ सब आवाजाही।
शिक्षक सभी सुयोग्य, बेहतर पाठ पढ़ाते।
उच्च प्रशिक्षण प्राप्त, देश का भाग्य बनाते।
शौचालय उपयोग, पृथक सब बाला बालक।
विविध कला पर जोर, देख खुश होते पालक।
भाँति भाँति के खेल, मान सबका सदा बढ़ाते।
नवाचार व्यवहार, यहाँ संगणक पढ़ाते।
फिर क्यों इतना सोच, दाखिला लें सरकारी।
नहीं यहाँ पर शुल्क, प्रथम यह जनहितकारी।
साधन सुविधा सर्व, सदागम सत समझातें।
नैतिकता भरपूर, शिष्य को योग्य बनाते।
छोड़ निजी का मोह, स्कूल सरकारी आओ।
निज भाषा में ज्ञान, सहज ही पढ़कर पाओ।
शिक्षक सक्षम सिद्ध, अमित होते उपकारी।
शंशय सारे त्याग, दाखिला लें सरकारी।
वर्षा ऋतु
लेखिका - पद्यमनी साहू
वर्षा ऋतु आई है
नव जीवन साथ लाई है।
ग्रीष्म से तपती धरा पर
अमृत धार बरसाई है।।
सुखते जल मण्डल में
मौजो की बहार लाई है।
तितली नाचे भौंरे गाये
मछली मेंढक मौज उड़ाये।
इतनी खुशियां लाई है
वर्षा ऋतु आई है।।
फूलों की खुशबू से
महका है चमन सारा।
नजरें जहाँ भी जाती है
भा रहा हर नजारा।।
कलियों पर मंडराते भंवरे
प्रेम का गीत सुनते हैं।
उसने भी तृप्ति पाई है
वर्षा ऋतु आई है।
हरियाली की चादर ओढा
धरा का कर रहा श्रृंगार।
रूप और सौंदर्य का उसको
दे रहा अनोखा उपहार।
लगती धरती कितनी प्यारी
अनुपम अदभुत और न्यारी।।
दृश्य मनोहर छाई है
वर्षा ऋतु आई है।।
पेड़ पर आधारित दोहे
लेखक - श्लेष चन्द्राकर
पेड़ हमारे मित्र हैं, इनका करें बचाव।
पानी का होगा नहीं, फिर तो कभी अभाव।।
धरती माता से अगर, करता सच्ची प्रीत।
पेड़ लगा पानी बचा, नेक कार्य यह मीत।।
तरुवर तो देते हमें, काष्ठ और फल फूल।
इन्हें काटना साथियो, बहुत बड़ी है भूल।।
प्राणवायु का स्रोत है, पेड़ यहाँ हर एक।
पेड़ काटना छोड़ दो, इनके लाभ अनेक।।
पेड़ बचाने के लिए, दिया नहीं यदि ध्यान।
सारी धरती एक दिन, होगी रेगिस्तान।।
पेड़ काटकर जो यहाँ, करते काज विचित्र।
महाभूल पर एक दिन, पछताएंगे मित्र।।
करना जंगल काटकर, ग्राम्य नगर विस्तार।
जीव-जन्तु हित में नहीं, बदलों तुरत विचार।।
पेडों की रक्षा करें, पौधे रोपे मीत।
हराभरा पर्यावरण, करना कार्य पुनीत।।
मृदा अपरदन रोकने, आओ करें विचार।
पेड़ लगाए हम चलो, नदी झील के पार।।
वृक्षारोपण
लेखक - मो.शम्स तबरेज आलम
वृक्ष हमें लगाना है।
प्रकृति को बचाना है।।
वृक्ष ही मिट्टी का कटाव घटाता।
वृक्ष ही बाढ़ से बचाता।।
वृक्ष से ही बादल का आना।
बादल का फिर जल बरसाना।।
वृक्ष से ही है हरयाली।
वृक्ष ही देता वायु प्राण।।
वृक्ष के छाया बिन।
तड़पती हमारी जान।।
वृक्ष जो जमीं पर न रहा।
हम भी रह न पाएंगे।।
v वृक्ष जो मिट गया।
हम भी मिट जायेंगे।।
ग्लोबल वार्मिंग जैसे समस्या हमने ही लायी है।
जितने हमने वृक्ष न लगाएं,उतनी हमने गवाई है।।
चलो हम सब हाथ बढ़ाएं।
मिलकर हम सब वृक्ष लगाएं।।
फर्ज निभाना
लेखक - बलदाऊ राम साहू
बच्चो, अपना फर्ज निभाना।
देश हित में सूली चढ़ जाना।
सरहद पर जो लड़ रहे हैं,
उनको मिलकर गले लगाना।
बैरी कोई ललकारे तब,
तुम भी उनको आँख दिखाना।
दुश्मन से रहना सावधान,
गुप्त रहस्य तुम नहीं बताना।
मुफ्त की दौलत मिले कभी तो,
अपना हाथ तुम नहीं बढ़ना।
बूँद - बूँद से घट भरता है,
पाई - पाई से भरे खजाना।
श्रम का मान बरस तुम रखना
कहता है जी यही जमाना।
टर्र-टों भैया
लेखक - बलदाऊ राम साहू
टर्र-टों भैया, टर्र-टों भैया
बरखा रानी आई है,
काले-काले बादल के संग,
नन्ही बूँदें लाई है।
टर्र-टों भैया, टर्र-टों भैया
आओं मजा उड़ाएँ हम
नन्ही-नन्ही मछली के संग
नाचें, कूदें, गाएँ हम।
टर्र-टों भैया, टर्र-टों भैया
वर्षा को चलो बुलाएँ
हँसते-गाते, शुभ संदेश
कृषकों को भी दे आएँ ।