इनाम

लेखक - त्रिलोकी ताम्रकार

मोनू बस्ता रखते हुए बोली - 'बाबू आज हम लोग स्कूल में पौधा लगाए हैं.'

बाबू - 'अच्छा ! और ?'

'और... गुरुजी बोले हैं कि पौधा बड़ा होगा तो इनाम मिलेगा.'

'ये तो अच्छी बात है.' उसके पिताजी बोले.

मोनू अपनी मां को बताते हुए बोली - 'मां मैं खेलने जा रही हूं.'

'मोनू रुको, मेरे साथ चलना' – उसके बाबू ने कहा.

थोड़ी देर में मोनू अपने पिताजी के साथ चलने लगी. थोड़ी ही दूर पर एक पीपल का पेड़ था. मोनू के बाबू ने उसको हाथ जोड़कर प्रणाम किया, जिसे देख मोनू ने अपने पिताजी से पूछा - 'आपने इस पेड़ को प्रणाम क्यों किया?' बाबू बोले- 'जानती हो ये पेड़ किसने लगाया था? मोनू- ने कहा - 'नहीं ! '

'मेरे दादाजी ने.'

'अच्छा ! ' - मोनू बोली.

पास में ही कोठार था. कोठार में आम का बड़ा पेड़ था. पिताजी उसे मोनू को दिखाते हुए - 'बोले ये आम का पेड़ मेरे पिताजी यानि तेरे दादाजी ने मेरे जन्मदिन पर लगाया था और ये जामुन का पेड़ मैंने तुम्हारे जन्मदिन पर लगाया था. देखो, कितना बड़ा हो गया है. अब तो ये फल भी देने लगा है. पौधा लगाने के बाद सुरक्षा और देख-रेख जरूरी है.'

मोनू बड़े ध्यान से पिताजी की बातें सुन रही थी.

पिताजी ने पूछा - 'जानती हो मोनू, पेड़-पौधे हमें क्या इनाम देते हैं?'

मोनू से पूछा:- 'क्या इनाम देते हैं?'

'पेड़ हमें छाया फल फूल लकड़ी और हवा देते हैं. यही सबसे बड़ा इनाम है.'

बातें करते-करते दोनों आगे बढ़े जहां कुछ बच्चे खेल रहे थ. उन्हें देखकर मोनू उधर दौड़ते हुए बोली - 'कल मैं अपने पौधे को कांटे से घेर दूंगी.' उसके पिताजी मुस्कुराते हुए घर वापस हो गए.

भविष्य की चिंता

लेखक एवं चित्र - इंद्रभान सिंह कंवर

एक दिन की बात है तीन लकड़हारे लकड़ी काटने के लिए जंगल गए हुए थे. जंगल के पेड़ों को काटकर अपने लिए लकड़ियां एकत्रित कर रहे थे. लकड़ी काटते काटते दोपहर हो गई. काफी गर्मी थी. धूप हो चुकी थी. सभी ने आराम करने की सोची और जिस पेड़ को वह काट रहे थे उसी पेड़ की शीतल छाया में आराम करने लगे.

भरी दोपहरी का समय था. जंगल में चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था. सन्नाटे की शांति में तीनों को गहरी नींद आ गई तभी तीनों को किसी के रोने की आवाज सुनाई दी. तीनों डर के मारे आंख बंद कर चुपचाप लेटे रहकर सुनने लगे.

वह रोने की आवाज उसी पेड़ की थी, जिसे वो काट रहे थे. उस पेड़ के पड़ोसी पेड़ ने उसका हालचाल पूछते हुए कहा – ‘‘क्यों रो रहे हो, ज्यादा दर्द हो रहा है क्या?’’ तब उस पेड़ ने कहा - ‘‘नहीं दर्द हमें कहां? हम तो बने ही है सदैव दूसरों की सेवा के लिए.’’ दूसरे पेड़ ने पूछा - ‘‘तो फिर क्यों रो रहे हो?’’ तब पहले पेड़ ने कहा – ‘‘मैं तो इन इंसानों की भविष्य की चिंता करके रो रहा हूं. जिस तेज गति से यह अपनी उन्नति और उपयोगिता के लिए हमें काट रहे है, कुछ दिनों बाद तो हम लोग समाप्त हो जाएंगे. फिर इन बेचारे इंसानों का क्या होगा? उनका तो जीना बेहाल हो जाएगा. ना दिन को चैन से रह पाएंगे और ना रात को सुकून से सो पाएंगे. बस दिन रात तड़पते रहेंगे.’’ तब दूसरे पेड़ ने कहा - ‘‘तड़पने दो. यह हमें कष्ट दे रहे हैं, तो इन्हें भी तो कुछ कष्ट होना चाहिए.’’ तब फिर उस कटे हुए पेड़ ने कहा - ‘‘नहीं मित्र हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए. हमारा तो निर्माण इन लोगों की भलाई के लिए हैं, न कि अपने लिए.’’

यह सभी बातें वो लकड़हारे सुन रहे थे. उन्हें यह जानकर काफी दुख हुआ कि जिन पेड़ों को अपने स्वार्थ के लिए निर्दयता के साथ वो काट रहे हैं, वे पेड़ किस तरह से इंसानों की निस्वार्थ सेवा करते हैं. उस दिन के बाद उन तीनों ने पेड़ काटने का काम छोड़कर पेड़ लगाने का काम शुरू कर दिया और दूसरे लोगों में भी पेड़ लगाने की अलख जगाने लगे.

सीख: पेड़ लगाओ-अपने आप को बचाओ, अपनों को बचाओ, आने वाली पीढ़ी को बचाओ.

सच्चा गहना

लेखिका - श्वेता तिवारी

मालती और शांति दो बहने हैं. आज उनकी सहेली लता का जन्मदिन है उसने अपनी सभी सहेलियों को अपने घर दावत पर बुलाया है. दोनों बहनों ने कानों में झुमके हाथों में सुंदर कंगन गले में हार आदि पहना और खूब सज धज कर वहां गई. वहां लता ने खूब प्यार से उनका तथा अन्य अतिथियों का स्वागत किया जन्मदिन पर उपस्थित बच्चों ने पहले बगीचे में कुछ खेल खेलें फिर गाने गाए और कुछ बच्चों ने नृत्य भी किया सभी ने लता को उपहार दिए तो उसने झुककर सबको धन्यवाद दिया. इसके बाद सभी को केक मिठाइयां और शरबत चाय आदि पिलाई गई इसके बाद सभी अपने अपने घर चले गए. मालती और शांति भी घर आए. तब उनकी दादी उनसे मिलने आई थी. उनसे दावत के बारे में पूछा तो खूब प्रशंसा की. परंतु उन्हें इस बात पर आश्चर्य हो रहा था कि उनके जन्मदिन पर तो उन्हें कुछ ना कुछ बहुमूल्य आभूषण मां पिता जी देते हैं पर लता के पिताजी ने उसे कुछ बहुमूल्य पुस्तकें ही उपहार में दी थीं. लता ने नए कपड़े तो पहने थे पर वे बहुत महंगे नहीं लगते थे. उन्होंने कहा दादी लगता है वे बड़े कंजूस हैं. लता के पास तो एक भी आभूषण नहीं है.

इस पर दादी ने कहा नहीं प्यारी बच्चियों, ऐसी बात नहीं. यह जो आभूषण गहने तुम दोनों ने पहने हैं यह दिखावटी हैं. इनमें केवल शरीर की सुंदरता को बढ़ाया जा सकता है. मन की सुंदरता को बढ़ाने वाले आभूषण हो तो इन सब आभूषणों का कोई महत्व नहीं. मालती और शांति दोनों ने एक साथ पूछा तो वह कैसे आभूषण होते हैं. दादी बताइए. अगर वे आभूषण इन से भी सुंदर है तो हम इन्हें छोड़ कर उन्हें ही पहने. दादी बोली सच अगर ऐसी बात है तो सुनो. अच्छी बातें अच्छा व्यवहार ऐसे गुण हैं जो ग्रुप से कोई व्यक्ति को भी सुंदर बना देते हैं. देखो ना यह जो तुमने हाथों में कंगन अंगूठी आदि पहने हैं, नाखूनों को सजाया है, इससे तुम्हारे हाथ सुंदर लग तो रहे हैं परंतु अगर तुम इन हाथों से गरीब गरीबों की दुखियों की मदद करो तो वह हाथों का सच्चा भूषण है. कोई गिर जाए तो उसे अपने हाथों का सहारा देकर उठाओ. किसी बूढ़े अपाहिज की मदद करो. गरीबों को दान दो. इस तरह कानों के आभूषण कुंडल झुमके नहीं अच्छी बातें सुनना है. गले का आभूषण हार माला नहीं बल्कि अच्छी मीठी बातें बोलना है. अगर हम अच्छे काम करें तो बेशक हमारे पास आभूषण ना भी हों, तो दुख की बात नहीं, क्योंकि यह गुण सोने के आभूषण से बढ़कर हैं. विद्या तो मनुष्य का सबसे बड़ा आभूषण है. इसके रहते तो मनुष्य कहीं भी रहे धनवान रहेगा क्योंकि विद्या सबसे बड़ा धन है. यह तो खर्च करने पर और भी बढ़ता है. विदेश में भी मनुष्य अकेला नहीं होता. विद्या युक्त मनुष्य सारे संसार में पूजा जाता है, जबकि राजा की पूजा तो सिर्फ उसी के देश में होती है. यह सब बातें दोनों ने बहुत ध्यान से सुनी और दादी के चुप होते ही बोली - वाह दादी आपने तो आज हमारी आंखें खोल दीं. आज से हम भी इस बात को कभी नहीं भूलेंगे. अब हम सच्चे आभूषण पहनने का प्रयत्न करेंगे और सादा जीवन उच्च विचार का पालन करेंगे.

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