चित्र देखकर कहानी लिखो

पिछले अंक में हमने आपको कहानी लिखने के लिये यह चित्र दिया था –

इस चित्र पर हमें कई मज़ेदार कहानियां मिली हैं, जिन्हेंद हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं –

दिव्यांगता अभिशाप नहीं वरदान

लेखक - इंद्रभान सिंह कंवर

ज्ञान सिंह और राजकुमारी के यहां जब तीन बेटों के बाद लक्ष्मी रूपी एक नन्ही परी का जन्म हुआ, तब उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह दोनों और उनका परिवार काफी खुश थे. मगर उनकी खुशी ज्यादा दिन तक स्थिर ना रह सकी. जैसे-जैसे उनकी लाडली परी डिंपल बड़ी होने लगी, वैसे-वैसे उनका दुख और भी बढ़ता गया. उनके दुख का कारण था डिंपल की दिव्यांगता. उनका परिवार काफी निराश था कि अब आगे क्या होगा.

अब डिंपल बड़ी होने लगी. वह 5-6 वर्ष की हो चुकी थी. थोड़ा जानने समझने लगी थी. अपने तीन बड़े भाइयों को खेलते कूदते स्कूल जाते देखती तो उसका भी मन यह सब करने को होता. मगर वह करे तो करे क्या. मां-बाप से कहती तो वे उसकी दिव्यांगता की दुहाई देकर उसे चुप कर देते, कि तू क्या करेगी पढ़ लिखकर बेचारी डिंपल मन मारकर बैठ जाती.

डिंपल के 6 वर्ष के होते ही जैसे ही यह बात वहां के विद्यालय के शिक्षक वर्मा जी को पता चली वह तुरंत ही डिंपल के यहां गए और उसके पालक से संपर्क कर उसका दाखिला विद्यालय में कराने कहा. उसके पालक यह सोचने लगे कि कहीं विद्यालय में उसका मजाक तो नहीं उड़ाया जाएगा. तब शिक्षक वर्मा जी ने उनकी सारी शंकाओं को दूर किया और कहा कि कल से वे स्वयं डिंपल को लेने घर आएंगे. जब शिक्षक वर्मा जी डिंपल के घर पहुंचे तो वहां डिंपल पहले से ही विद्यालय जाने को लेकर तैयार बैठी थी. इस तरह से उसका शाला में प्रवेश हुआ. अब वह पहले से काफी खुश थी.

एक दिन विकास खंड कार्यालय से मैडम यादव जी आईं जो इस तरह के बच्चों पर कार्य करती थी. उन्होंने डिंपल की चंचलता और उत्सुकता को देखा, और फिर शासन की सहायता से व्हील चेयर, छात्रवृत्ति आदि सुविधाएं प्रदान कीं.

डिंपल की खुशी देखकर उसके माता-पिता भी काफी खुश थे. अब बड़े मजे से वह अपने दोस्तों के साथ व्हील चेयर पर बैठकर स्कूल जाती पढ़ाई लिखाई करती. वहां उसके काफी दोस्त भी बन गए थे जो उसको साथ में विद्यालय लेकर जाते. जब डिंपल से पूछा गया कि वह बड़ा होकर क्या बनेंगी, तब उसने बताया कि वह कलेक्टर बनेगी और अपने जैसे अन्य बच्चोंक की पूरी सहायता करेगी ताकि वे भी सामान्य जिंदगी जी सकें क्योंकि - यह दिव्यांगता अभिशाप नहीं वरदान है.

सीख - तो आइए हम सब भी मिलकर ऐसे डिंपल जैसे बच्चों की सहायता करें जो दिव्यांगता को अभिशाप मानकर कुंठित जीवन जी रहे हैं. उन्हें भी सामान्य जिंदगी जीने का अवसर प्रदान करें और यह बताएं कि यह दिव्यांगता अभिशाप नहीं वरदान है.

तीन सहेलियां

लेखक चन्द्रं प्रकाश चतुर्वेदी

एक शहर में तीन सहेलियां रहती थीं. एक का नाम डॉली, दूसरी का मीना एवं तीसरी का नाम रीना था. तीनो एक ही कक्षा में पढ़ती थीं. तीनो एक साथ खेलती थीं एवं साथ-साथ स्कूल जाती थीं. डॉली सबसे सुंदर थी. उसके लंबे बाल थे. वह किसी गुड़ि‍या की तरह ही दिखती थी. इसीलिये सब उसे डॉली कहते थे. परन्तु उसके पैरों में समस्या थी इसलिये उसे व्हीलचेयर पर चलना होता था. मीना और रीना डाली की मदद करती थीं. वह उसे अपने साथ ही उसे स्कूल ले जाती थीं. डॉली पढ़ने लिखने मे भी सबसे तेज़ थी. वह पढ़ने में अपने दोस्तों की भी मदद करती थी. स्कूल में सभी शिक्षक डॉली की प्रशंसा करते थे; तीनो सहेलियां स्कूल की सभी गतिविधियों में भाग लेती थीं. सभी इन तीनों सहेलियों की मिसाल दिया करते थे.

स्कूल से वापस आने पर तीनो गार्डन में घूमने जाती थीं. गार्डन में शेरू नाम का कुत्ता हमेशा उदास बैठा रहता था क्योंकि उसका कोई दोस्त नहीं था. वह प्रतिदिन इन तीनो को देखता और सोचता काश मेरा भी कोई दोस्त होता. एक दिन तीनो दोस्त शेरू के पास गईं और उसकी उदासी का कारण पूछा. कारण जानने पर तीनो ने शेरू को अपना दोस्त बना लिया. शेरू अब खुश हो गया. चारों अब गार्डन में मिल कर खेलने लगे.

शिक्षा – दोस्तों में हमेशा सहयोग की भावना होना चाहिए. जीवन में दोस्त होना बहुत ज़रूरी है.

व्हीलचेयर

लेखक - दिलकेश मधुकर

मंजूलता उदास बैठी थी. पास ही उसका पालतू कुत्ता मोती भी चुपचाप बैठा था. तभी उसकी सहेली रवीना पास आई और उसे बगीचे में घूमने जाने के लिए बोली. तब मंजूलता अपने पैर को दिखाते हुए कहा कि अभी कोरबा जिले में शिक्षा मड़ई कार्यक्रम के अंतर्गत खेलकूद प्रतियोगिता की तैयारी सभी स्कूलों में चल रही है. हमारे विद्यालय में खेल प्रभारी डी. मधुकर जी खेल का अभ्यास करा रहे थे. अभ्यास के दौरान मुझे चोट लग गया और मैं चल नहीं पा रही हूं.

तभी रवीना का भाई रविंद्र भी आ गया. उसने कहा कि मंजूलता को हम व्हीलचेयर में बैठाकर गार्डन घुमाने ले जा सकते हैं. मेरे मित्र देवेंद्र के चाचा के घर पर व्हीलचेयर रखी हुई है, जोकि उसे चुनाव कराने के लिए मतदान केंद्र के लिए मिली है, क्योंकि चाचा जी बीएलओ हैं.

रवीना ने कहा - ठीक है भाई, जल्दी से ले आओ. रविंद्र दौड़कर व्हीलचेयर ले आया. मंजूलता उस पर बैठ गयी. रवीना उसे पीछे से धक्का लगाते हुए गार्डन ले गयी. मोती भी पीछे-पीछे गार्डन गया. बगीचे में रंग-बिरंगे फूलों को देखकर मंजूलता का मन गदगद हो गया और उसने अपनी सहेली और उसके भाई रविंद्र को व्हीलचेयर पर लाने के लिए आभार व्यक्त किया.

सीख- हमें मित्रों की हमेशा मदद करनी चाहिए और सदा खुश रहना चाहिए.

आभा

लेखक - ओजस्वी ध्रुव

आभा कक्षा सातवीं में पढ़ती है. मां पापा और कुमुद मैम को छोड़कर, जो आभा कि कक्षा शिक्षिका है, उसे अन्य लोग विशेष प्रेम नहीं करते. आभा सामान्य बच्चों की तरह नहीं है. बचपन से उसके पैर कार्य नहीं करते. लेकिन उसके मां पापा ने उसे इसका अफसोस होने नहीं दिया और सामान्य बच्चों की तरह परवरिश की. कुमुद मैम भी अन्य शिक्षकों से हटकर आभा से सामान्य बच्चों की तरह व्यवहार करती हैं. एक बार जब स्कूल की ओर से पिकनिक पर जाने की योजना बनी तब सभी शिक्षकों ने आभा को ले जाने से मना कर दिया, लेकिन कुमुद मैम अपनी जिम्मेदारी पर आभा को ले जाने के लिए अड़ गईं. पिकनिक के दिन भी आभा के साथ सबने स्कूल जैसा ही बर्ताव किया, लेकिन कुमुद मैम ने आभा को अपने साथ रखा. आभा कुमुद मैम के साथ ज्यादा घुल-मिल कर रहती थी. जब सभी बच्चे और शिक्षक घूमने गए तब कुमुद मैम और आभा सभी के लिए पकवान बनाने में व्यस्त हो गए. दोनों बहुत खुश थे. आभा को इतनी खुश देखकर कुमुद मैम की आंखों में आसू आ गए. सभी लोग आकर पकवानों का स्वाद लेने लगे. सभी के मुंह से 'वाह' निकल पड़ा. सभी ने इसका श्रेय कुमुद मैम को दिया लेकिन कुमुद मैम ने सबको सच्चाई बताई कि सभी नये पकवान आभा ने बनाये हैं. मैम ने बच्चों को समझाया - 'बच्चों हम सबमें कोई न कोई कमी अवश्य होती है, लेकिन बहुत सारी खुबियां भी होती हैं. जैसे आभा शारीरिक रूप से कमजोर है लेकिन इसको बहुत सी रेसिपी आती हैं और यह अच्छा गाती भी है. अगर तुम कुमुद मैम के प्यारे बच्चे हो तो आभा को आज से अपनी दोस्त बनाओ और साथ में घुल-मिल कर रहो.' मैम की बातें सुनकर सभी बच्चे आभा से लिपट गए और सभी आभा के दोस्त बन गए. शिक्षकों ने भी प्रण लिया कि अब आभा के साथ भेदभाव नहीं करेंगे.

हमारा संकल्प - पर्यावरण की रक्षा

लेखिका - धारिणी सोरी

चिंकी,बादल और मिनी तीनो दोस्त थे. तीनो हमेशा साथ खेलते, स्कूल जाते और बगीचे में टहलने भी जाते थे. स्कूल में उनकी टीचर ने बताया कि हमारा पर्यावरण पहले से काफी अधिक दूषित और गन्दा हो गया है. पहले आज की जितनी गंदगी नही होती थी क्योंकि तब हरे-भरे पेड़ अधिक थे. लोग वृक्षो को देवता तुल्य मानकर पूजा करते थे. घरों से निकलने वाले धुंए को वृक्ष अवशोषित कर लेते थे जिससे पर्यावरण संतुलित हो जाता था. जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती गयी वैसे-वैसे लोगो की जरूरतें बढ़ती गईं और लोगो ने पर्यावरण को नुकसान पहुंचना अपनी स्वार्थपूर्ति हेतु वृक्षो को काटना शुरू किया. उसी के परिणामस्वरूप आज हमारी धरती पूरी तरह से बीमार हो चुकी है. न जाने कब धरती का अस्तित्व समाप्त हो जाए.

चिंकी, मिनी और बादल बड़े ध्यान से टीचर की बातें सुन रहे थे. वे अक्सर पापा और दादाजी को यह कहते सुना करते थे कि कैसे वे बचपन मे पेड़ो से फल तोड़कर खाया करते थे. पेड़ो पर बन्दरो की तरह उछलकूद करना उनका पसंदीदा खेल होता था. पर आज न वो पेड़ है न उनके खेल. उनके स्थान पर बड़ी-बड़ी बिल्डिंग बन गई हैं. दिखावे के लिए सिर्फ छोटे-छोटे सजावटी पौधे रह गए हैं. तीनो ने मिलकर दादाजी से पुछा कि हम वातावरण को कैसे दूषित होने से बचा सकते हैं?

दादाजी ने बताया कि प्रदूषण बढ़ने का सबसे बड़ा कारण है पेड़ो की कटाई. अगर हम अपना अस्तित्व बचाना चाहते है तो हमे पेडों को बचाना होगा. सबने दादाजी से कहा कि वे इस नेक काम के लिए आगे आना चाहते हैं. दादाजी भी इस काम मे उनके साथ थे. इस काम की शुरुआत के लिए उन्होंने अपने घर से बगीचे तक जाने वाले रास्ते को चुना. अगले दिन दादाजी और बच्चे हवादार और छायदार वृक्ष जैसे, नीम, पीपल करन, गुलमोहर आदि ले आए. घर से निकलते समय मिनी का पैर फिसलने से पैर की हड्डी खिसक गई. उसे तुरन्त ही अस्पताल जाना पड़ा.

पट्टी कराकर जब वह लौटी तो उदास हो गयी, कि वह आज पेड़ नही लगा पाएगी. परन्तु चिंकी और बादल के रहते मिनी कभी उदास हो सकती थी भला. दोनों उसे व्हील चेयर में बैठा कर बगीचे की ओर चल पड़े. उन्होीने कहा हम तीनों मिलकर जरूर पेड़ लगाएंगे, और पर्यावरण को स्वच्छ बनाएंगे. चिंकी और बादल गड्ढा करके पेड़ लगाते और मिनी उस पर पानी डालती.

अगले दिन स्कूल में चिंकी बादल और मिनी ने टीचर को यह बात बताई. उनकी टीचर ने उनको शाबाशी दी और कहा कि अच्छे काम के लिए हमेशा आगे रहना चाहिए और सबको प्रेरित करना चाहिए. हमारा छोटा सा प्रयास पर्यावरण को बचाने में बड़ा योगदान हो सकता है.

अब नीचे दिये चित्र को देखकर कहानी लिखें और हमें वाट्सएप व्दारा 7000727568 पर अथवा ई-मेल से dr.alokshukla@gmail.com पर भेज दें. अच्छी कहानियां हम किलोल के अगले में प्रकाशित करेंगे.

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