कान्हा छलिया
लेखक - श्रवण कुमार साहू (प्रखर)
क़ाबर कहिथे कान्हा, तोला रे छलिया।
तन अउ मन दुनों ह, हावय तोर करिया।।
मीरा के पीरा ल, तेहा समझतेस।
जहर पिये बर क़ाबर, वोला तै देतेस।।
कहिथे दुनियां तोला रे, नटवर नागर।
तेहा करिया हरस रे, सुख के सागर।।
तोरा मया म जमुना होगे रे करिया।। क़ाबर--
राधा के जिनगी ह, तोर बिन हे आधा ।
प्रेम मिलन म, कइसन हावय रे बाधा।।
बिरहा के आगी म, राधा ह तड़पे ।
देखे बर तोला, मन ह रे तरसे।।
सौतन कस लागे रे, बंशी ह करिया।।क़ाबर--
अधरतिया तै कारागार म आए हस ।
कंस, पूतना सब के नाश कराए हस।।
महाभारत के जुध्दन, तेहा कराए हस।
गीता के अमरित ग्यान, ल सुनाए हस ।।
गोपी मन के फोड़े, क़ाबर तै हड़िया।।क़ाबर—
आज तिरंगा लहराबे
लेखक – जी. आर. टंडन
राखी लाबे दीदी मोर, सुन्ना हाथ ल पहिराउन।
आशिष भरे हे दाई के ओली,
बड़ी पातर रेशम डोरी,
मया ल तै झन दुरिहाबे
मोर सुन्ना हाथ में राखी पहिराबे।।
एक अंगना में खेलेन कूदने,
दाई के दूध लिए पीये हन।
खेल खेल में होते झगड़ा,
फेर तुमसे मिले हन।
जानेन नहीं छोटे बड़े ला,
रक्षा करबो अपन देश ला।
आज तिरंगा लहराबे।।
राखी लाबे दीदी मोर।।
बड़ मुश्किल में हमला आज, मिले हे आजादी।
गांधी, ने हरु जेल गेईन, भगत ल होगे फांसी।
लिख डारिस अम्बेडकर, संविधान ला,
कहे टंडन झन सहवाग अपमान ला।
श्रद्धा के सुमन चढहाबे।।
आज तिरंगा फहराने, राखी लाबे दीदी मोर, सुन्ना हाथ म राखी पहिराबे।।
गुरूजी
लेखक - भानुप्रताप कुंजाम'अंशु'
कभु मारय, कभु डरवावय ।
कभु परेम से समझावय ।
गोटी माटी कचरा ल,
देखय त सकलावय ।
अपन तीर बइठार के,
सफई के महत्ता बतावय ।
रुख राई मं पानी,
कभु बंन उखनावय ।
परकिरिती ले परेम करव,
रोज रोज समझावय ।
भुइयाँ के धुर्रा माटी,
हाथ गोड़ मं सनावय ।
अतका ल देखय त,
हाथ गोड़ ल धोवावय ।
अइसन गुरूजी,
जम्मों जुग मं आवय ।
गुरु 'भुषण' के महिमा,
'अंशु' जिनगी भर गावय ।
चिरई जाम
लेखक - टीकेश्वर सिन्हा 'गब्दीवाला'
पाका- पाका चिरई जाम
ताजा-ताजा चिरई जाम
गुलबजामुन कस दिखथे
करिया-करिया चिरई जाम
पल-पल ले रसा रहिथे
मीट्ठा-मीट्ठा चिरई जाम
हाट-बजार मं बेचाथे
भागा-भागा चिरई जाम
छाँट-छाँट के खाथन जी
आहा-आहा चिरई जाम
तीजा पोरा
लेखिका - प्रिया देवांगन 'प्रियू'
तीजा पोरा के दिन ह आगे, सबो बहिनी सकलावत हे।
भीतरी में खुसर के संगी,ठेठरी खुरमी बनावत हे।।
अब्बड़ दिन म मिले हन कहिके, हास हास के गोठियावत हे।
संगी साथी सबो झन, अपन अपन किस्सा सुनावत हे।।
भाई बहिनी सबो मिलके, घुमे के प्लान बनावत हे।
पिक्चर देखे ला जाबो कहिके, लईका मन चिल्लावत हे।।
नवा नवा लुगरा ला, सबोझन लेवावत हे ।
हाँस हाँस के सबोझन, एक दूसर ल देखावत हे।।
देश के माटी
लेखक - नेमीचंद साहू (गुल्लू)
सुघ्घर हावय मोर
देश के माटी
जेखर महिमा ले
फूल जथे मोर छाती
इही माटी म खेलेन-बाढ़ेन
सबो ले एकर नाता हे
इही माटी म राम किसन
अउ इही म सीता माता हे
करम धरम के हरय
एहर उज्जर माटी
जेखर महिमा ले
फूल जथे मोर छाती
करिया माटी के गुन सुघ्घर
उपज ल घलो बढाथे
बासी ह गुरतुर मिठाथे
सेहत ल घलो सजाथे
पुरखा के कहानी काहत
जंगल अउ घाटी
जेखर महिमा ले
फूल जथे मोर छाती
माटी के खातिर कतकोन
अपन परान गंवादिन
मान राखिन भुइंया के
दुलरवा बेटा कहादिन
सबो जिनिस ल राखे
का हाथी का चॉटी
जेखर महिमा ले
फूल जथे मोर छाती
इही म रमायन गीता
बेद अउ पुरान हे
देवत ह घलो तरसे
माटी अतेक महान हे
सरग ले हावय सुंदर
बखान करव दिन-राती
जेखर महिमा ले
फूल जथे मोर छाती
संसकीरिति अउ संसकार के
गंगा इहॉ बोहावत हे
दया दान अपनापन के
झंडा घलो फहरावत हे
जग म एखर नाव के
जले दिया अउ बाती
जेखर महिमा ले
फूल जथे मोर छाती
बखरी के जिनगानी
लेखक - भानुप्रताप कुंजाम'अंशु'
होवत हे बखरी मं नाचा
मुरई बने ममा, भाटा हे भांचा
मखना बने राजा, करेला रानी
जम्मों झन सुनय, केरा के काहनी
गीत गावय गोभी, बरबट्टी बाजा बजावय
जोक्कड़ बने जरी सब ल हँसावय
पताल बजाए हरमोनिया
चुटकुलिया धरे हे धनिया
नाचय लाल, अमारी, चेंच भाजी
तुमा हे भइया, तोरई बने भौजी
सुहावय सावन भादो के पानी
अइसन हे बखरी के जिनगानी
मड़ई मेला
लेखक एवं चित्र - बलराम नेताम
गांव म होवत हे, मड़ई मेला
रंग रंग के सजे, हे गा ठेला
किसान भाई मन ला नेवता भेजावत हे
सगा समधियांन मन, मड़ई देखे बर आवत हे
मेला मड़ई देखे बर जावत हे, लइका सियान अव डोकरा
मेला में बिसा के खावत हे,मुर्रा मिठई अव ओखरा
नाती नतरिंन ल बबा ह, मेला घुमावत हे
कोन्हों ला गुपचुप त कोन्हों ला, चना चरपटी खवावत हे
किसम किसम के अव रंग रंग के जिनिस बेचावत हे
लइका मन फुग्गा त दाई बहनी मन, टिकली फुंदरी बिसावत हे
गुदुम गुदुम बाजा ह, बाजत हे
रउत भइया मन झूम झूम के, नाचत हे
रऊत भाई मन, नाचत गावत जात हे
देख के संगी मन ह, बड़ भात हे
मेला मड़ई के नाम लेत्तेच्च, अंतस म उमंग भर जथे
जौन मेला मड़ई देखे बर आथे, तौन तर जथे
कोन्हों चढ़हाते पान सुपारी, कोन्हों चढ़हातें भेला
इही हरे संगी, मोर गांव के मेला
मय रुख आंव
लेखक - संतोष कुमार साहू (प्रकृति)
१
मय रुख आंव, सबो झन के सुख आंव।
जेन दिन हरतार करंव, जीव जनावर के दुख आंव।।
२
मनखे बर मय बैरी जब्बर, काटे मोला ओहा अब्बड।
मोर दुख ला काला बतांव, तभो ले देथों मेहा छांव।।
३
पानी ल मेहा जुरियाथंव, सबो जगा पानी बरसांव।
पानी गिराना जब भुल जांव, मनखे चिल्लाये कांव कांव।।
४
मनखे मारथे ढेला पथरा, मोर पीरा ल काला बतांव।
फर के मय हर फर नई खांव,तभो ले सब बर मया बरसांव।।
५
भुंइया ह रेती म पट जही, चुन चुन ले सबो जर जाही।
बेर आगी ल काला बतांव ठाढे जरगे रुख अऊ रांव।।
६
अभीन घलो बेरा हे, सबो परानी मन रुख लगाव।
भुंइया झन होवय बंजर, अपन जीनगी ल बढिया बनाव।।
७
अपन गलती ल सुधार के, रुख राई ल अपन लयिका बनाव।
जरत बेरा ले घलो, हमर मन ले शांति ल पाव।।
८
सकल पदारथ के संग म , जीव जनावर के संगवारी आंव।
बर पीपर के पूजा करत हव, काबर मेहा नई दुलारी आंव??
हमन परबुधिया नोएन गा
लेखक - योगेश ध्रुव (भीम)
जांगर पेरत पसीना चुचवावत,
भुइय्या के छाती म अन उगावत,
चटनी बासी के खवैय्या आवन न,
येहर धान के कटोरा हावे गा,
हमन परबुधिया नोएन रे,
सुघ्घर छत्तीसगढ़िया आवन गा.
मोर छाती म बिजली पानी,
रुख राई अउ जंगल झाड़ी,
कोयला के खदान हावे गा,
हमन परबुधिया नोएन रे,
सुघ्घर छत्तीसगढ़िया आवन गा.
चारो मुड़ा हे नदिया नरवा,
हीरा लोहा टिन के भंडार हावे,
इहाँ के लोहा जपान जाथे न,
बैलाडीला भिलाई महान हावे,
हमन परबुधिया नोएन रे,
सुघ्घर छत्तीसगढ़िया आवन गा.
इहाँ के जंगल म तेंदू पत्ता,
साल सागौन के रवार हावे न,
हर्रा बेहड़ा चार महुवा तेंदू,
लाख कत्था अउ जड़ी बूटी,
हमन परबुधिया नोएन रे,
सुघ्घर छत्तीसगढ़िया आवन गा.
इहाँ के भुइय्या म महानदी,
अरपा पैरी अउ इंद्रावती न,
तीरथगढ़ चित्रकूट झरना हावे,
खारुन शिवनाथ केलो रेंड नदियां,
मैनपाट घलो स्थान हावे न,
हमन परबुधिया नोएन रे,
सुघ्घर छत्तीसगढ़िया आवन गा.
सबले ऊँचा गौरालाटा हावे न,
महामाया अउ बम्बलाई माता,
सम्बलाई माई दन्तेश्वरी दाई,
गंगरेल अउ हसदो बाँध हावे न,
हमन परबुधिया नोएन रे,
सुघ्घर छत्तीसगढ़िया आवन गा.
हैहयबंसी राज करिस इहाँ,
पाण्डबंसी अउ सोमबंसी राजा,
सिरपुर अउ रतनपुर के घलो,
इतिहास ह भारी हावे न,
हमन परबुधिया नोएन रे,
सुघ्घर छत्तीसगढ़िया आवन गा.
लक्ष्मण मंदिर भोरम देवा,
कैलाश गुफा अउ मंदकुद्वीपे,
इहाँ ये सबो स्थान हावे न,
हमन परबुधिया नोएन रे,
सुघ्घर छत्तीसगढ़िया आवन गा.
वीरनरायन जइसे सपूत महान,
स्वामी आत्मानंदा गुरु घासीदास,
सुंदर लाल शर्मा इहाँ गाँधी घलो न,
एखरे सेती भीम बोलत हावे न,
हमन परबुधिया नोएन रे,
सुघ्घर छत्तीसगढ़िया आवन गा.
हलषष्ठी
लेखक - श्रवण कुमार साहू (प्रखर)
छः किसिम के भाजी टोर के,
छः किसिम के कथा ल सुने हे।
हलषष्ठी के कहानी सुन के,
मने-मन म गुने हे।।
लाई,चना, मौहा अउ,
श्रीफल ल चढ़ाए हे।
पसहेर चाउर के सुग्घर,
भोग ल लगाए हे।।
बेटी बेटा के मंगल कामना ले,
देवता मन ल मनाए हे।
भैस के दूध दही ल,
देवता मन ल चढ़ाए हे।।
पिंवरा छुही के पोती ल,
लईका उपर लगाए हे।
धन हे महतारी तोर ममता ह,
अपन लईका बर कतेक बाढे हे ।
अपन लईका ल बचाय के खातिर,
सौंहत कवच बन के ठाढ़े हे।।