अधूरी कहानी पूरी करो

पिछले अंक में हमने आपको यह अधूरी कहानी पूरी करने के लिये दी थी –

इस घटना को हुए करीब 35 साल गुजर गए किंतु आज भी वे सारे दृश्य मेरी आंखों में एकदम ताज़ा हैं. उस दिन स्टेशन पर बहुत ज़्यादा भीड़ तो नहीं थी पर ट्रेन में बैठने की जगह नहीं मिली थी. मैं लंबी बेंच के किनारे खड़ा रहा. हालांकि उस बेंच पर चार लोग ही बैठे थे पर मुझे उनसे जगह मांगना अच्छा नहीं लग रहा था. थोड़ी देर के बाद एक सज्जन को शायद मुझ पर दया आई. उन्होंने खिसककर थोड़ी जगह मुझे भी दे दी.

मैं कॉलेज में अपने भाई के एडमिशन के लिए शहर आया हुआ था. बड़ी कोशिशों के बाद भी उसे किसी कॉलेज में जगह नहीं मिल पाई थी. पिछले तीन-चार दिन इतनी कठिनाई भरे थे कि क्या कहूं. ना तो दिन में खाने का ठिकाना था ना रात में सोने का. मैं इन्हीं खयालों में डूबा हुआ था, मुझे आसपास की खबर ही नहीं थी.

अचानक मेरी निगाह सामने की सीट पर गई. मैंने देखा एक महिला बहुत बेचैनी से अपने सामानों में कुछ खोज रही थी. अगल-बगल बैठे लोगों ने पूछा, क्या हुआ. लगभग रोते हुए उस महिला ने बताया कि उसका पर्स नहीं दिख रहा है. ट्रेन में चढ़ते समय शायद किसी ने उसे निकाल लिया. वह काफी देर तक सीट के नीचे और इधर-उधर अपना पर्स ढूंढ़ती रही, इस उम्मीद में कि शायद कंपार्टमेंट में ही कहीं गिरा हो और मिल जाए. पर वह उसे कहीं नहीं मिला. वह आखिर थक-हार कर अपनी सीट पर बैठ गई. उसके आंसू थम नहीं रहे थे. उसके साथ एक छोटी बच्ची भी थी, लगभग डेढ़-दो साल की. महिला कभी उसे संभालती, कभी खुद को. उसकी अब तक की बातचीत से पता चला कि उसके पर्स में उसके जेवर, पैसे, टिकट जैसी सभी चीज़ें थीं.

उसका दुख देखकर मुझे अपनी तकलीफें याद ही नहीं रहीं. आसपास के लोग उसके साथ बड़ी सहानुभूति दिखा रहे थे. जिस तरह लोग उस पर तरस खा रहे थे, पता नहीं क्यों यह बात मुझे अच्छी नहीं लग रही थी. इन खोखली सहानुभूतियों से आखिर होता भी क्या है.

अचानक वहां टीसी महोदय पहुंच गए. उन्होंने सभी से टिकट पूछना शुरू किया.

यशवंत कुमार चौधरी व्दारा पूरी की गई कहानी

जैसे ही टीसी आए, सबको लगने लगा कि अब क्या होगा इस महिला के साथ? सभी ने अपना-अपना टिकट दिखाया,पर वह महिला बेचैन होकर रोने लगी और उसने टीसी को पूरी घटना बताई.आसपास के लोगों ने भी टीसी से अनुरोध किया कि यह महिला सही कह रही है, इस पर दया कीजियेटीसी बहुत सज्जन थे पर ड्यूटी के पक्के निकले.वे अपनी ओर से ही महिला की फ़ाइन भरने लगे तभी मैंने अपना पर्स निकाला और फाइन के पैसे देने की पेशकश की.अब तोआसपास के लोग भी अपनी सहानुभूति जताते हुए सामूहिक रूप से सहयोग देने आगे आए. थोड़ी ही देर में महिला की फाइन के अलावा भी पर्याप्त रुपये जमा हो गए. महिला ने अब राहत की साँस ली और सबके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की' अपनी माँ को खुश देख बच्ची भी खुश हो गई.

तेजेश साहू व्दारा पूरी की गई कहानी

टीसी उस महिला के पास आए और उससे भी टिकट दिखाने कहा, उस महिला ने टीसी को अपनी समस्या बताने की कोशिश की परन्तु टीसी महोदय मानने को तैयार नहीं थे.वे तो टिकट दिखाने की रट लगा रहे थे.मैं यह सब सहन नहीं कर पाया और टीसी महोदय से गुजारिश की कि वे उस महिला को जाने दे परन्तु वे मानने को तैयार ही नहीं थे. तब मैंने उस महिला की टिकट के पैसे टीसी महोदय को दिए. उस महिला ने मेरा शुक्रिया अदा किया और मुझसे मेरा पता पूछने लगी ताकि वे मुझे मेरा पैसा वापस दे सके परन्तु मैंने उनसे पैसे लेने से मना कर दिया. उन्होंने पूछा कि मैं कहाँ जा रहा हूँ? तो मैंने अपनी सारी समस्या उन्हें बताई. संयोग से वे एक अच्छे कॉलेज की प्रधााध्यापिका थी. उन्होंने कहा कि वे मेरे भाई का एडमिशन उनके कॉलेज में करवा सकती हैं. मेरी खुशी का ठिकाना न था. मैंने आवश्यक दस्तावेज उनके पास जमा कर दिए और मेरे भाई का एडमिशन उनके कॉलेज में हो गया. आज मेरा भाई एक बिजनेसमैन है. मैं भगवान का शुक्रिया अदा करता हूँ कि 35 वर्ष पूर्व जो घटना हुई थी वह एक संयोग ही था और वह महिला मेरे लिए देवी रूप मैं आई थीं.

संतोष कुमार कौशिक व्दारा पूरी की गई कहानी

रिश्ता इंसानियत का

टीसी ने सभी लोगों से टिकट दिखाने कहा.पर उस महिला का पर्स उसके जेवर, पैसे टिकट जैसे सभी चीजों सहित गुम हो गया. टीसी ने महिला के पास आकर टिकट दिखाने कहा,महिला ने टीसी से कहा-' सर मेरे पर्स में टिकट,जेवर,पैसे थे वह गुम हो गया है. मेरे पास टिकट नहीं है, मैं क्या करूँ मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है.' उसकी बात सुनकर टीसी ने कड़े स्वर में कहा-'सब यही बहाना करते हैं, आपको बिना टिकट यात्रा करने के जुर्म में जेल जाना पड़ सकता है या आपको जुर्माना भरना पड़ेगा.'

महिला ने सहायता की आशा में इधर-उधर देखा.अभी तक सहानुभूति दिखाने वाले लोग अब नजरें चुराने लगे थे. यह सब देखकर मैं अपने आपको रोक नहीं पाया. मैंने टीसी से नम्रतापूर्वक कहा- वास्तव में उनका पर्स गुम हो गया है उसी पर्स में उनका टिकट था.इंसानियत के नाते उन्हें क्षमा कर दीजिए और उसे नियत जगह पर जाने दीजिए. टीसी ने चिल्लाकर मुझसे कहा-आप इंसानियत की बात कह रहे हो तो आप ही उसका जुर्माना भर दो. मुझसे उस महिला की तकलीफ देखी नहीं गई और मैंने टीसी के पास जुर्माने की राशि जमा करा दी.उस महिला ने मुझे धन्यवाद दिया. मैं खुश था कि मैं किसी इंसान की विपत्ति में काम आ सका

अगले अंक के लिए अधूरी कहानी

बारिश का वह दिन

परसा टोली तीस - चालीस घरों की एक छोटी सी जंगली बस्ती थी जो एक टेकरी के ऊपर बसी थी. यहां के लोग जंगल की उपज इकट्ठी करते और थोड़ी फल - सब्जियां उगाते थे.परसा टोली के सबसे पास का गांव था कुंवरपुर. आसपास की सभी बस्तियों और टोलों के लोग जरूरत की चीजें यहीं से खरीदकर ले जाते थे. यहां एक छोटा सा अस्पताल, पोस्ट ऑफिस और एक हाई स्कूल भी था. स्कूल के सभी शिक्षक बहुत परिश्रमी और अपने काम के प्रति बहुत जागरूक थे.स्कूल के सभी बच्चे अपने इन शिक्षकों को बहुत चाहते थे और उनका सम्मान करते थे. यही कारण था कि स्कूल की उपस्थिति प्रायः शत - प्रतिशत रहती थी.

परसा टोली के लगभग पन्द्रह - सोलह बच्चे भी यहीं पढ़ने आते थे. परसा टोली और कुंवरपुर के बीच एक नाला पड़ता था. इसमें साल भर घुटनों तक पानी रहता ही था. एक बार दो दिनों तक लगातार बारिश होती रही. पहले दिन तो बच्चों ने किसी तरह नाला पार कर लिया. दूसरे दिन नाले में पानी कुछ ज्यादा बढ़ गया. जो बच्चे कुछ बड़े थे उन्होंने छोटे बच्चों को वापस घर भेज दिया और खुद तैर कर नाले को पार कर लिया. जब वे स्कूल पहुंचे तो गीले कपड़ों में उन्हें देखकर शिक्षकों ने समझाया कि ऐसी कठिन स्थितियों में वे स्कूल ना आया करें.

छुट्टी होने के बाद ये बच्चे जब घर लौट रहे थे, नाला उफान पर था. उसे देखकर बच्चों की हिम्मत जवाब दे गई. शाम हो चली थी. आसमान में घनी बदलियां छाई हुई थीं. धीरे-धीरे अंधेरा गहराने लगा था. बच्चे फंस चुके थे. वे वापस कुंवरपुर भी नहीं जा सकते थे और उफनते नाले को पार करना भी खतरे से खाली नहीं था.

अब इसके बाद क्या हुआ होगा, इसकी आप कल्पना कीजिए और कहानी पूरी कर हमें माह की 15 तारीख तक ई मेल kilolmagazine@gmail.com पर भेज दें. आपके द्वारा भेजी गयी कहानियों को हम किलोल के अगल अंक में प्रकाशित करेंगे

Visitor No. : 6748845
Site Developed and Hosted by Alok Shukla