छत्तीसगढ़ी बालगीत

खावौ सुग्घर

रचनाकार- बलदाऊ राम साहू

गोलू - मोलू
भाँटा भैया
आलू मुनगा
के संग डार.

भाजी पाला
कतको हावै
देखौ तुम जी
हाट बाजार.

कोहड़ा तुमा
अउ रमकलिया
ले लेहू तुम
छाँट निमार.

बरबट्टी हे
करिया गोरिया
डोंड़का फरे
रूख के डार.

गोभी बटुरा
गजब मिठाथे
फर धनिया ला
पीस के डार.

खावौ सुग्घर
मिलजुल के तुम
जिनगी बनही
सुग्घर तिहार.

गाँधी बबा

रचनाकार- बलदाऊ राम साहू

एक बेर तैं हर इहाँ आ जाबे गांधी बबा
ठलहा मन ला थोरिक समझा जाबे गांधी बबा.

चौबीस घंटा मंद मा माते रहिथे ये मन ह
उन मन ला रद्दा सही देखा जाबे गांधी बबा.

सरकारी चाँऊर खाके इतरावत हे ये मन ह
मिहनत के परिभाषा बता जाबे गांधी बबा.

कब तक ये मन हाथ म हाथ धर के बइठे रहही
जिनगी के मतलब तैं समझा जाबे गांधी बबा.

अपन मरे बिन कौनो ला सरग हर तो दिखय नहीं
इंकरो मन मा सपना नवा जगा जाबे गांधी बबा

आना संगी बइठले

रचनाकार- इश्वरी राम

आना संगी बइठले गोठियालेना वो
मया पिरित के बोलीला गुठियालेना वो
तोर मन मे का बात हे बतादेना वो
जम्मो दुख पीराला इहे बिसरदेना वो
तन अव मन के नाताला जुहादेना वो
मोगरा फूल कस मोरो मयाला महकादेना वो
आहे गोदना वली मोर नाम के गोदना गोडालेना वो
जम्मो दुख पिराला संगी भुलादेना वो
तोर मन के अंतस्मा मोला बिठालेना वो.
मया पिरित के दुखला इहे बिसरलेना वो.
मोर आखि में झूलत रथच तेहा आठो पहर
एकरे सती तोला कथव ते मोर सन मया कर.
मोर मया के रस्सी मा तेहा बधाजना वो
मोर मया के बातल संगी हसि उदझन वो
तोर बिना मे जी नई सकव कइसे तोला बताव
ये पिरित के बधनाला कइसे मेहा छोडावव
मया के वो बातला संगी कइसे मेहा भुलावव.
मोर जीवरा में चिपके मीठ बोलीला कइसे मे भुलावव.
तोर बिना में जी नई सकव कइसे मेहा तोला बतावव

दार भात केंद्र

रचनाकार- रत्ना गुप्ता

रात दिन होथे शिक्षक मन के प्रशिक्षण
शिक्षक मन के प्रशिक्षण लेहे ले
लईकामन के बुद्धि कैसे बाढ़ही
का ददा के पढ़ाई करे ले
लईका मन ह परीक्षा मा बाजी मारही.
शिक्षा के मंदिर ला बना देहे
दार भात के ठिकाना.
लईकन पढ़ई के बेरा मा करते
पाखाना जाये के बहाना.
छुट्टी देबे त गड़बड़ हे
अऊ नई देबे त ज्यादा गड़बड़ हे.
खाना तो खवाय हन
त छुट्टी त देहे ल पढ़ही
छुट्टी नई देबे त पूरा कक्षा ल प्रदूषित करही.
अब तो स्कूल मा अतके बुता होवत हे
खा पी अउ पाखाना जा.
खेले कूदे बर स्कूल जा
मोर सरकार ले अतके विनती हे
खाए पिये के जिम्मेदारी ला
दाई ददा ला निभावन दव
अउ स्कूल आये शिक्षक मन ला
पुस्तक ल पढ़ावन दव,
पढ़ावन दव, पढ़ावन दव.

बापू

रचनाकार- नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र

वो बापू गाँधी, जउँहर आँधी,
गोरा आगू, ठाड़ खड़े.
नित सत्याग्रह कर, धीरज मन धर,
आजादी बर, लाल लड़े..
खादी धोती तन, निचट सरल मन,
सत रद्दा मा, रोज चले.
चरखा ल चलाके, सब ल बताये,
घर के देशी, जिनिस भले..

रोटी

रचनाकार- बलदाऊ राम साहू

बड़ मिहनत मा आथे रोटी.
सबके भूख भगाथे रोटी.

चाँवल,गहूँ, जुवार, बाजरा,
ले सुग्घर बन जाथे रोटी.

चीला, फरा अउ अंगाकर,
बन के गजब सुहाथे रोटी.

अमरित जइसे सुख मा होथे
दुख मा बड़ रोवाथे रोटी.

पेट भरे हे भाये नाहीं
भूख म तो ललचाथे रोटी.

पानी

रचनाकार- नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र

जीवन धारा पानी, अमरित धार.
ये जग मा इक पानी, हावय सार..

पानी पबरित गंगा, जइसे मान.
पानी के कीमत ला, लेवव जान..

धरती मा बस पानी, हावय मूल.
पानी के महिमा झन,जावव भूल..

जुड़े पेड़ ले पानी,पेड़ लगाव.
बरसा लाने बदरा, पेड़ बचाव..

पानी हे जिनगानी, मानौ बात.
बिन पानी के धरती, अँगरा तात..

बून्द बून्द के कीमत, लेवव जान.
भगवन लागे पानी, सौहत मान..

बरसा पानी राखव, लोग सकेल.
नइ जिनगी मा कबहू, होहू फेल..

पढ़ई तुँहर दुवार

रचनाकार- डाॅ आलोक साहू

मुड़ मा बइठे कोरोना ह
घबराये हावै संसार
छत्तीसगढ़ मा जनमे हे
गाँव मा पढ़ई तुँहर दुवार.

सबो ला चिंता हावै
कइसे पहाही अब दिन
सरहद मा तो दँवत हावै
मीठ लबरा मितान चीन.

पाकिस्तान बौखलाए हे
गजब के घात लगाए हे
हमरो सेना के जवान मन
मारे के कसम खाए हे.

पेड़

रचनाकार- नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र

जड़ ले बाँधे माटी, धर के पेड़.
कटे कभू झन माटी, रोके मेड़..

पेड़ हरे जिनगानी,पेड़ बचाव.
दवा हवा फल पानी, मनवा पाव..

जुड़े पेड़ ले पानी,पेड़ लगाव.
पेड़ ह लाने बदरा, पेड़ बचाव..

पेड़ हरे गुण कारी, गुण के खान.
महिमा येकर भारी, दौ सनमान..

पेड़ धरा बर हावय, बड़ अनमोल.
झन रुपिया मा मनवा, कीमत तोल..

जनम मरन तक लकड़ी, रहिथे संग.
होत पेड़ के भइया, लकड़ी अंग..

पेड़ बड़ा हे दानी, देव समान.
संरक्षण कर येखर, कर लौ मान..

गुरु पद पा जाते शिक्षक

रचनाकार- बलदाऊ राम साहू

हमको पाठ पढ़ाते शिक्षक
रास्ते नए बताते शिक्षक.

जहाँ कहीं मुश्किल आ जाती
हल उनका बतलाते शिक्षक.

सुबह - शाम बस चिंता करते
कभी नहीं अघाते शिक्षक.

फूल सरीखे ज्ञान बाँट कर
मान सभी से पाते शिक्षक.

अंधकार को पी जाते औ'
गुरु पद को पा जाते शिक्षक.

महतारी भाखा

रचनाकार- योगेश ध्रुव 'भीम'

मोर छत्तीसगढ के बोली भाखा,
गुरतुर गुरतुर मोला अबड़ सुहाथे.

सुवा ददरिया रिलो कर्मा पंथी,
बन कोयली कस मैना बनके.

तोर कोरा के मयारू मीठ बोली,
सबो झन ल घलो गजब रिझाथे.

सरगुजिहा रयपुरहिया भाखा नोनी,
गोड़ी हल्बी सदरी मोरो अंतस भाथे.

तय हमर राज के हावस चिन्हारी दाई,
मोर मुड़ी के घलो सुघ्घर पागा बनके.

कोरिया ले बस्तर अउ जाथन नांदगांव,
सबो डहर बोलो संगी दुरुग अउ भेलाई.

महतारी भाखा अउ काज भाखा येहर बनहि,
सबो झन जुरमिलके बोलबो इहि ह मोर मान..

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