अधूरी कहानी पूरी करो

पिछले अंक में हमने आपको यह अधूरी कहानी पूरी करने के लिये दी थी –

किताब

छुट्टी की घंटी बजी और सारे बच्चे हो - हो करते स्कूल से बाहर निकल अाए. संदीप और किशोर साथ - साथ बाहर निकले. दोनों यह बात कर रहे थे कि आज गणित में गृहकार्य के जो प्रश्न दिए गए हैं उन्हें कैसे हल किया जाए.

किशोर को गणित में बहुत कठिनाई होती थी. उसने संदीप ने कहा इन सवालों को हल करने में तुम मेरी मदद करना. संदीप ने कहा जरूर करूंगा लेकिन अभी तक मेरे पास गणित की किताब नहीं है. किशोर ने कहा, कोई बात नहीं, मैं शाम को तुम्हारे घर आ जाऊंगा. दोनों मिलकर सवाल हल कर लेंगे.

घर लौटकर संदीप किशोर की प्रतीक्षा करता रहा. बहुत देर हो गई, किशोर नहीं आया. अंधेरा होने को आ गया. अब संदीप को घबराहट होने लगी. उसे लगा यदि किशोर नहीं आया तो सवाल बन नहीं पाएंगे. वह घर में नहीं बताना चाहता था कि उसके पास गणित की किताब नहीं है. उसे मालूम था कि पिताजी अभी किताबें खरीद नहीं पाएंगे. ऐसे में उन्हें परेशान करना अच्छा नहीं होगा.

उसने किशोर के घर जाने का निश्चय किया. अपनी मां को उसने बताया कि मैं और किशोर कुछ देर साथ-साथ पढ़ना चाहते हैं. मैं उसे घर जा रहा हूं.

मां ने कहा, ठीक है लेकिन जल्दी आ जाना. संदीप अपनी कॉपी और कलम लेकर दौड़ता हुआ किशोर के घर पहुंचा. गेट पर ही चौकीदार खड़ा था. वह संदीप को पहचानता नहीं था. उसने पूछा, तुम कौन हो और यहां क्यों आए हो?

संदीप ने हांफते हुए कहा कि वह किशोर के साथ ही पढ़ता है. आज दोनों को मिलकर काम करना है.

चौकीदार ने कहा, मैं अंदर से पूछ कर आता हूं. तुम यहीं रुको.

संदीप गेट पर खड़ा रहा.

चौकीदार ने लौटकर कहा कि किशोर के पिताजी ने अंदर आने से मना किया है. संदीप अवाक रह गया, कुछ कह ना सका. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करूं.

अनंत शुक्ला, कक्षा चौथी, केन्द्रीय विद्यालय मेडक हैदराबाद द्वारा पूरी की गयी कहानी

संदीप बहुत देर तक किशोर के घर के बाहर उसके आने का इंतजार करता रहा. फिर बहुत भारी मन से अपने घर लौट आया. बहुत देर रात तक वो यही सोचता रहा कि कल स्कूल मे गुरूजी से क्या कहेगा.

यही सोचते हूए कब उसकी आंख लग गयी उसे पता ही नही चला.

सूबह उठते ही उसने यही विचार किया की वो सबकूछ गूरूजी से बता देगा कि उसके पास किताब नही है और उसके पिता के पास इतने पैसे नही है कि वो उसे किताब खरीद कर दे सके.

स्कूल पहूंचते ही गुरूजी के कक्ष में जाकर उसने सारी बात बता दी

गुरु जी उसकी सच्चाई पर बहुत ही खूश हूए और उन्होंने अपनी किताब जो उन्हें स्कूल की तरफ से दी गयी उसे दे दी. संदीप बहुत खुश हुआ और गूरूजी की दी किताब से उसने पढाई की और कक्षा मे प्रथम आया.

तब से गूरूजी ने संदीप जैसे बच्चों के लिए संस्था से आवेदन किया कि ऐसे बच्चों की मदद की जाए

यशवंत कुमार चौधरी द्वारा पूरी की गयी कहानी

संदीप ने सोचा ही नहीं था कि उसे इस तरह का जबाब मिलेगा ' उसकी योजना पर पानी फिर गया. वह काफी आहत हुआ था. अब उसके सामने दुविधा की स्थिति थी.उसके पास किताब नहीं थी और अगले दिन होमवर्क दिखाना था.उसे सूझ नहीं रहा था कि अब क्या करे? उदास होकर संदीप वापस घर की ओर चल पड़ा.रास्ते में उसे मोनिका मिली जो उसके साथ ही पढ़ती थी ' मोनिका ने संदीप से पूछा : तुमने गृहकार्य कर लिया क्या ? संदीप ने धीरे से कहा -नहीं मेरे पास किताब नहीं है इसलिए नहीं कर पाया. संदीप की बात सुनकर मोनिका ने अपनी पुरानी गणित की किताब संदीप को दे दी. संदीप की समस्या हल हो गई.उसने मोनिका को धन्यवाद दिया और घर लौटकर गृहकार्य पूरा कर लिया.

संतोष कुमार कौशिक द्वारा पूरी की गयी कहानी

घर के अंदर प्रवेश नहीं दिए जाने पर संदीप को समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे. वह सोच रहा था कि मैं गरीब हूँ और किशोर अमीर है इसीलिए मुझे घर में नहीं आने दिया. संदीप उदास होकर लौटने लगा.तभी किशोर ने संदीप को खिड़की से देखा और कहा-संदीप, रुको मैं अपने पिताजी से बात करता हूँ.संदीप रुक गया. किशोर ने अपने पिताजी से जाकर कहा - पिताजी संदीप को मैंनें बुलाया था. मैं गणित में कमजोर हूँ. होमवर्क करने में वह मेरी मदद करेगा.संदीप के पास गणित की पुस्तक नहीं है. उसके पिताजी किताब नहीं ले पाए हैं.हम दोनों साथ बैठकर गृह कार्य करेंगे. पिताजी,संदीप गरीब है पर वह ईमानदार और अच्छा लड़का है. संदीप को घर आने की इजाजत दीजिए. किशोर की बातें सुनकर पिताजी ने कहा-बेटा,संदीप को घर बुलाकर साथ-साथ गृह कार्य करो. किशोर ने संदीप को बुलाया और दोनों ने मिलकर होमवर्क पूरा किया.

किशोर के पिताजी ने मन ही मन संदीप की सहायता करने को सोची. उन्होंने संदीप के लिए किताबों का सेट मँगवाया. संदीप पुस्तकें लेने को तैयार नहीं हुआ लेकिन किशोर ने संदीप को मना लिया. संदीप ने पुस्तकें ले लीं और किशोर एवं उसके पिताजी को धन्यवाद देकर अपने घर लौट गया.

अगले अंक के लिए अधूरी कहानी

वह गांव वाला आदमी...

उस दिन भी आनंद सर को स्कूल से निकलने में देर हो गई. बच्चों को प्रैक्टिकल कराते - कराते प्राय: उन्हें रोज ही देर हो जाया करती थी. बाहर निकलकर उन्होंने देखा पूरे स्कूल में सन्नाटा बिखरा पड़ा था. गेट पर खड़ा चौकीदार उन्हीं की तरफ देख रहा था मानो कह रहा हो,आप जाएं तो ताला बन्द करूं. उन्होंने अपनी साइकिल उठाई और स्कूल से बाहर निकल आए.

उनका घर कुंदनपुर में था जो यहां से लगभग दस से बारह किलोमीटर दूर था. लगभग एक घंटा तो लग ही जाता था इस रास्ते को तय करने में. रास्ते में एक बड़ी नदी पड़ती थी. इसे पार करने के बाद लगभग दो - तीन किलोमीटर का रास्ता काफी चढ़ाव भरा था. चढ़ाव पर उनकी साइकिल धीरे - धीरे चल रही थी. अचानक उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति दौड़ते हुए उन्हें पार करके आगे निकला. वह लगभग हांफ रहा था लेकिन फिर भी चलने के बजाय दौड़ रहा था. शक्ल - सूरत से वह गांव का व्यक्ति लग रहा था. घुटनों तक एक मैली - सी धोती और ऊपर आधी बांह का कुर्ता उसने पहन रखा था. आनंद सर को लगा की कुछ तो बात है. उन्होंने उस व्यक्ति को पुकारा और रुकने को कहा. उसके नजदीक पहुंच कर उन्होंने पूछा, क्या बात है भाई, क्यों दौड़ रहे हो. उसने बताया कि उसे कुंदनपुर जाना है. वहां से सात बजे एक बस निकलती है. उस बस से उसे अपने गांव जाना है. गांव में उसका परिवार रहता है. उसे आज ही ये खबर मिली है कि उसकी बच्ची बीमार है. यदि बस नहीं मिलती तो वह अपने घर नहीं पहुंच पाएगा.

ओह!!! आनंद सर एक क्षण के लिए चुप हो गए. उन्होंने अपनी घड़ी देखी. साढ़े छह बज रहे थे. उन्होंने सोचा, यह आदमी कितना भी दौड़े, सात बजे तक कुंदनपुर नहीं पहुंच सकता. उन्होंने उस ग्रामीण से कहा, भाई ! मैं भी कुंदनपुर ही जा रहा हूं. तुम साइकिल पर पीछे बैठो. मैं कोशिश करता हूं कि तुम्हें तुम्हारी बस मिल जाए. उस व्यक्ति को कुछ संकोच हुआ. उसने कहा, मैं चला जाऊंगा साहेब, आप तकलीफ मत उठाइए. आनंद ने कहा, तकलीफ की कोई बात नहीं है. तुम बैठो, हम चलते हैं. और फिर उसे अपनी साइकिल के कैरियर पर बिठाकर वे कुंदनपुर की ओर चल पड़े. उनसे जितना तेज चलाते बन रहा था वे साइकिल चला रहे थे.

कुंदनपुर पहुंचते-पहुंचते आनंद सर पसीने से नहा चुके थे. वे उस व्यक्ति को लेकर सीधे बस स्टॉप पहुंचे. संयोग से स्टॉप पर बस खड़ी थी. बस को देखते ही उस आदमी का चेहरा खिल उठा. उसकी खुशी देखकर आनंद सर भी अपनी तकलीफ भूल गए. उनके चेहरे पर थकान के बाद भी एक प्यारी सी तसल्ली से भरी मुस्कुराहट आ गई. उन्होंने उससे कहा, भाई देखो, तुम्हारी बस खड़ी है. अब तुम बस में आराम से जा सकते हो. वह व्यक्ति कुछ कह ना सका लेकिन उसके चेहरे पर कृतज्ञता के अद्भुत भाव थे. उसने अपने कुर्ते की जेब से बारह आने निकाले और उसे सर की हाथ में रखते हुए अपने हाथ जोड़ लिए.

आनंद सर उसके इस व्यवहार से गुस्से से भर उठे. उनका चेहरा तमतमा उठा. एक क्षण के लिए उन्हें लगा यह व्यक्ति क्या समझ कर उन्हें पैसे दे रहा है. क्या वे पैसे के लिए उसे बिठाकर लाए हैं. पर तुरंत ही उन्हें लगा उसके चेहरे के भाव तो ऐसे नहीं हैं. उन्हें समझ में नहीं आया कि वे कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त करें.

कहानी को इस मोड़ पर छोड़ते हुए हम आपको जिम्मेदारी देते हैं आप इसे पूरा कर हमें माह की 15 तारीख तक ई मेल kilolmagazine@gmail.com पर भेज दें. आपके द्वारा भेजी गयी कहानियों को हम किलोल के अगल अंक में प्रकाशित करेंगे

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