चित्र देख कर कहानी लिखो

पिछले अंक में हमने आपको यह चित्र देख कर कहानी लिखने दी थी –

हमें जो कहानियाँ प्राप्त हुई हम नीचे प्रदर्शित कर रहे हैं

अपर्णा वर्मा, भानुप्रतापपुर, कांकेर द्वारा भेजी गई कहानी

एक तालाब में बत्तख और उनके दो छोटे बच्चे रहते थे.वहीं पास ही मेंढकी भी अपने बच्चों के साथ रहती थी. बत्तख अपने बच्चों के साथ तालाब में तैरा करती थी जिससे बच्चे भी तैरने में कुशल हो जाएँ. मेंढक के बच्चे रोज उन्हें तैरते देखा करते थे. अभी वे छोटे थे इसलिए उन्हें पानी में जाने से डर लगता था, एक दिन बत्तखों की माँ ने मेंढक के बच्चों को देखा. वह उनके पास गई और उनसे पूछा कि बच्चो, तुम दोनों हमेशा पत्तों में ही क्यों बैठे रहते हो? क्या तुम्हें सैर करने का मन नहीं करता? तब उन बच्चों ने बत्तख को सारी बात बताई. बत्तख बच्चों की बात सुनकर मुस्कुराई, और फिर उसने मेंढक के बच्चों से प्यार से कहा कि क्या तुम दोनों मेरी पीठ पर सवारी करना चाहोगे? इस तरह तुम्हें डर भी नहीं लगेगा और मैं तुम्हे तालाब की सैर भी करा दूँगी. दोनों बच्चे यह बात सुनकर खुशी से चहक उठे और उन्होंने तुरंत हाँ कर दी. सैर करते करते बत्तख के बच्चों और मेंढक के बच्चों में बहुत अच्छी दोस्ती हो गई. आज मेंढक के बच्चों ने पहली बार पूरे तालाब की सैर की थी.वे दोनों अत्यंत प्रसन्न थे. उधर मेंढकी अपने बच्चों को ढूँढ़ रही थी पर उसे बच्चे नजर ही नहीं आ रहे थे, वह बहुत परेशान हो रही थी.जब उसकी नजर बत्तखों के झुंड पर गई तो वह उनके पास जल्दी से गई और इससे पहले कि वो बत्तख से अपने बच्चों के बारे में पूछती, दोनों बच्चे बत्तख की पीठ से उतर कर उसके पास आ गए. उन दोनों ने अपनी माँ को सारी बातें बताईं. मेंढकी अत्यंत प्रसन्न हुई और उसने बत्तख को धन्यवाद दिया. उस दिन से बत्तखों और मेंढकों में बहुत अच्छी दोस्ती हो गई.

रजनी शर्मा बस्तरिया द्वारा भेजी गई कहानी

होनजोक मेंढ़क

होन नाम के मेंढक ने अंगड़ाई ले कर जम्हाई ली. जोक नाम का मेंढक भी उसके पास अलसाया पड़ा था. बारिश के बाद कीचड़ में दोनो हाइबरनेशन काल का आनंद ले रहे थे.ये वह समय होता है जिसमें मेंढक कीचड़ में कई दिनों तक सुस्त पड़े रहते हैं.

होन और जोक दोनों का व्यवहार अन्य मेंढकों से बिल्कुल अलग था. न उन्हें किसी से मिलना और न ही किसी से बातें करना अच्छा लगता था.

तालाब में बतखें तैरती हुई आतीं तो भी वे उदासीनता से मुँह बनाये रहते. तट किनारे के नन्हे कीड़ों को देख देख कर नाक भौं सिकोड़ते रहते थे.जब नन्ही बतख पानी में छपाक-छपाक करती तो होन और जोक पानी के छींटों से बचने के लिए कमल के पत्तों की ओट में छिप जाया करते. गुनगुनी, गुलाबी धूप में वे दोनो कमल के पत्तों के उपर ही लेटे मिलते. बतखें खूब परिश्रम करतीं.बड़ी बतखें अपने और छोटों के लिये भोजन जुटाने मशक्कत करतीं थी.पर ये दोनो होन और जोक अजीबोगरीब व्यवहार किया करते थे.एक दिन नन्ही बतख ने पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है?तो बुरा सा मुँह बनाकर कहा कि मेरा नाम होन और उसका जोक. इसका मतलब क्या होता है? दोनों ने कंधे उचकाते हुए कहा कि कोरियाई भाषा में होन का अर्थ होता है अकेला और जोक का मतलब समुदाय होता है. नन्ही बतख उन दोनों से दोस्ती करना चाह रही थी.उनके इस खुश्क जवाब से मुँह लटका कर लौट गई.इनकी बातें सुनकर बड़ी बतख सोचने लगी कि सच में ये दोनो तो होनबैप अर्थात अकेले ही खाने वाले हैं. कोरियाई भाषा में अकेले खाने वाले को होनबैप कहा जाता है.और ये होनसूल भी हैं. अर्थात अकेले ही पीते भी हैं.और आश्चर्य की बात है कि ये अकेले खेलते भी हैं अर्थात् होननोल भी हैं.

पर समय हमेशा एक सा नहीं रहता. कोरोना काल में कई प्रकार की कठिनाईयों का सामना इन जलीय जंतुओं को भी करना पड़ा.अब लोग तालाब में जलीय जीवों को चारा डालने कम ही आते थे.और इन पर आश्रित कीड़ों की संख्या कम होने लगी. भला ऐसे में बतखों की पूरी कौम को पर्याप्त भोजन कैसे मिल पाता? पर सारे बतख मिल-बाँट कर जितना भी मिलता उसे संतोष भाव से ग्रहण करते और संतुष्ट और प्रसन्न रहते.बड़ी बतख देखती थी कि होन और जोक मेंढक तालाब में हैं या नहीं.यह उसका फर्ज था आखिर वह तालाब की सबसे वरिष्ठ सदस्य जो थी.

शुरू शुरू में दोनो मेंढक फुदकते दिखते थे पर धीरे धीरे उनकी सेहत कमजोर पड़ने लगी. भोजन के अभाव में उनका शरीर शिथिल होने लगा. तालाब के अन्य सदस्यों को उन दोनों का व्यवहार नागवार था.सो उन सबने उन दोनों की मदद करना छोड़ दिया था.

होन की आँखे बाहर निकली जा रही थीं और जोक अर्धमूर्छित हो गया था.वे दोनो लगभग मरणासन्न हो गये थे.तभी अचानक अधमुँदी आँखों से दोनों ने देखा कि बड़ी बतख अपनी चोंच में कुछ दबाये तेजी से उनकी ओर आ रही है.और नन्ही बतख भी उसके पीछे आ गयी.

बड़ी बतख ने मनुहार करके उन्हें खिलाया, पिलाया अब जाकर उनकी जान में जान आई. उन दोनों की ऑंखें भर आईं. उन्होंने बतख से पूछा हम दोनों ने आप सबसे इतना बुरा व्यवहार किया पर आपने फिर भी हमारी मदद की.

बड़ी बतख ने दुलार से कहा कि तुम दोनो भी हमारे ही परिवार के सदस्य हो. कोई एक सदस्य भूखा रहे यह हमारे उसूलों के खिलाफ है. पश्चात्ताप और ग्लानि से होन और जोक का सिर झुका हुआ था.

बड़ी बतख ने अपने पंखों में उन दोनों को समेट लिया और खूब दुलार किया.यह देखकर तट किनारे खड़े कीड़े भी खुशी से किलक पड़े और किलोल करने लगे. सभी कहने लगे कि आज से इन दोनो का नाम होन जोक के बदले 'हम जोली'होगा.

सब खिलखिला पड़े, पूरे तालाब में खुशी की लहर फैल गई और कोमल स्मित वाली तरंग सबके चेहरों पर दौड़ गई.

संतोष कुमार कौशिक द्वारा भेजी गई कहानी

बतख और मेंढक

पहाड़ों के बीच एक तालाब में बतख एवं उसके बच्चे रहते थे. एक दिन जब बतख अपने बच्चों के साथ तैर रही थी तभी तालाब के किनारे बैठा मेंढक उन्हें देखकर हँस रहा था. बतख ने पूछा-मेंढक भैया,तुम क्यों हँस रहे हो? मेंढक बोला,इन बच्चों को देखकर मुझे हँसी आ रही है.ये बच्चे मेरे बच्चों की तरह नहीं तैर सकते.हा हा हा....

मेंढक के चिढ़ाने से माँ बतख ने क्रोधित होकर मेंढक से कहा- अहंकार अच्छा नहीं है. बच्चों के तैरने की प्रतियोगिता कर लेते है. देखते हैं कि प्रतियोगिता में कौन जीतता है. मेंढक ने तैरने की प्रतियोगिता की बात स्वीकार कर ली.

अगले दिन नदी के जीव जंतु बतख एवं मेंढक के बच्चों की प्रतियोगिता देखने के लिए आ गए. प्रतियोगिता प्रारंभ हुई.मेंढक के बच्चे कुछ दूर तक उछल-उछल कर तैरे और बतख के बच्चों से आगे निकल गए. लेकिन कुछ देर बाद मेंढक के बच्चे थक गए और उनके तैरने की गति धीमी हो गई. बतख के बच्चे धीरे-धीरे तैरते रहे और आगे निकल गए. बत्तख के बच्चों ने प्रतियोगिता जीत ली.

मेंढक का अहंकार नष्ट हो गया और वह शर्मिंदा हो गया.माँ बतख ने कहा मेंढक भैया,सभी प्राणियों में अलग-अलग गुण होते हैं. कोई तैरने में,कोई चलने में,कोई दौड़ने में,कोई उड़ने में,कोई कूदने में,कोई उछलने में तेज होता है. किसी का उपहास नहीं करना चाहिए.मेंढक बोला-तुम ठीक कहती हो, मैं शर्मिंदा हूँ.अब यह गलती नहीं करूँगा.

यशवंत कुमार चौधरी द्वारा भेजी गई कहानी

एक तालाब था जिसमें विभिन्न जलीय जीव-जंतु निवासरत थे ' तालाब में बत्तखें सुबह से शाम तक तैरते हुए अपना भोजन प्राप्त करती थीं. उसी तालाब में मेंढक भी उछल- कूद करते रहते,कभी पानी में, कभी जलीय पौधों की पत्तियों पर छिप जाया करते तो कभी तालाब के किनारे मेड़ पर जा बैठते ' उसी तालाब के किनारे जोंक भी रहा करती थीं जोंक अक्सर शिकार की तलाश मे रहती थीं सभी जोंकों से काफी भयभीत रहते थे ' जोंक जंतुओं के शरीर पर चिपक कर खून पिया करती थीं जिससे जंतु कमजोर हो जाया करते थे कुछ की मौत भी हो जाती थी. तालाब में कुछ जीव शाकाहारी थे तो कुछ मांसाहारी. तालाब में जलीय पौधे भी काफी विकसित थे 'सभी प्रकार के जीव -जंतु और जलीय पौधों की उपस्थिति से तालाब का पारिस्थितिकी तंत्र संतुलित था. तालाब काफी खुबसूरत था 'सभी अपने काम में मगन रहते थे 'लोग तालाब के किनारे बैठकर यह नजारा देखा करते ' सभी जीवों की जीवन-शैली अलग-अलग होती है पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बनाए रखना जरुरी है.

अगले अंक की कहानी हेतु चित्र

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