बालगीत
बचपन
रचनाकार- सपना यदु
अल्हड़ सी अटखेली लेकर,
आया बचपन झूम-झूम कर.
पेड़ों की डालों पर झूलें,
इधर-उधर उस पर लटके.
उछल-कूद करते रहते हैं,
देखो लड़की और लड़के..
चोर-पुलिस, बिल्लस, पासा,
खेलें छुपा-छुपी, नदी- पहाड़.
गिल्ली डंडे से है मारे,
देखो खिड़की और किवाड़..
कागज की है नाव बनाते,
बारिश की पानी में बहाते.
रिमझिम-रिमझिम पानी से,
भीग-भीग कर खूब नहाते..
लोहे, पुट्ठे और कनस्तर से,
देखो ये बाजा बजाते.
नाचे गाए निकाले बारात,
गुड्डा-गुड्डी की ब्याह रचाते..
मारे पत्थर और तोड़े आम,
तोड़े इमली और तोड़े जाम.
मिल बांट कर है सब खाते,
लेते नहीं है कोई दाम..
देखो हाथ डंडी पकड़कर,
साइकिल का टायर चलाते.
पानी और दलदल में जाकर,
कीचड़ में फिसल पट्टी बनाते..
पहन के साड़ी देखो मुन्नी,
बनती है,गुड़िया की मम्मी.
गोदी में बिठा खाना खिलाती,
लोरी गाती और सुलाती..
अठारह हो या उम्र हो पचपन,.
प्यारा लगता सबको बचपन..
करवाचौथ
रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू'
करवा निर्जल व्रत है करती.
भूख-प्यास को वह है सहती..
रात चाँद की दर्शन करती.
जीवन के कष्टों को हरती..
सजधज नारी पूजा करती.
प्यार पिया के हिय में भरती..
कानों में पहने सब बाली.
माँगो में सजती है लाली..
हो दीर्घायु पति हे देवा.
नित्य करूँ मैं प्रभु की सेवा..
चरण स्पर्श कर आशीषें पाती.
जीवन में खुशियाँ है लाती..
साजन सजनी लगते प्यारे.
आँगन उतरे चाँद सितारे..
शिव गौरी को भोग लगाते.
पकवानों से थाल सजाते..
शिव गौरी को नीर चढ़ाये.
पति सँग पावन प्रीत बढ़ाये..
जनम-जनम का साथ निभाये.
घर आँगन में खुशियाँ लाये..
मुनिया रानी
रचनाकार-महेन्द्र देवांगन 'माटी'
भोली भाली मुनिया रानी.पीती थी वह दिनभर पानी..
दादा के सिर पर चढ़ जाती.बड़े मजे से गाना गाती..
दादा दादी ताऊ भैया. नाच नचाती ताता थैया..
खेल खिलौने रोज मँगाती. हाथों अपने रंग लगाती..
भैया से वह झगड़ा करती. पर बिल्ली से ज्यादा डरती..
नकल सभी का अच्छा करती. नल में जाकर पानी भरती..
दादी की वह प्यारी बेटी. साथ उसी के रहती लेटी..
कथा कहानी रोज सुनाती. तभी नींद में वह सो जाती..
साफ-सफाई
रचनाकार- सतीश चन्द्र भगत
सब कहते हैं,
हमसे भाई.
गंदगी तुमने,
क्यों फैलाई.
घर- आँगन के,
साथ- साथ तू.
मन की करना,
साफ-सफाई.
घर के बाहर
कूड़ेदानी.
रखा करो जी,
कहती नानी.
स्वास्थ्य खिलेगा,
फूलों जैसा.
खुशी- खुशी से
हमने ठाना.
मुर्गा बाँग लगाता है
रचनाकार- गीता उपाध्याय 'मंजरी'
अभी उजाला हुआ नहीं है, लेकिन नित उठ जाता है.
सूरज के आने से पहले, मुर्गा बाँग लगाता है..
सोए हुए सभी लोगों को, झटपट सदा उठाता है.
कभी नहीं यह नागा करता, अपना फर्ज निभाता है..
किसने इसको काम दिया है,जिसको रोज निभाता है?
घूम घूम ऊपर चढ़ चढ़ कर,मुर्गा क्यों चिल्लाता है?
गोल गोल अपनी ऑंखों को,पहले खूब घुमाता है.
अगल बगल को पहले देखे, तब ही कदम बढ़ाता है..
चाल बादशाहों के जैसी, रुक रुक पाँव उठाता है.
सिर पर लाल कलंगी पगड़ी, जिसको खूब हिलाता है..
दादा बनकर बहुत घूमता, सबको डांट पिलाता है.
देखे दूजा मुर्गा तो झट, लड़ने को भिड़ जाता है..
बेशरम का फूल
रचनाकार- नंदिनी राजपूत
बेशरम हूँ तो क्या हुआ,
मैं भी तो एक गुल हूँ.
लोगो को पसंद आता नहीं,
लेकिन मैं गुलाबसी फूल हूँ.
तालाबोंके किनारे रहता हूँ,
कितनी तकलीफों को सहता हूँ.
लोग मुझे जला देते हैं,
फिर भी उफ्फ नहीं कहता हूँ l
गुलाब के जैसा सुगंधित नहीं,
फिर भी गुलाबसी रंग हैl
कीटनाशक के लिए उपयोगी हूँ,
मुझसे ही फसलें जीवंत हैं.
बस यही मेरी पहचान है,
बेशरम मेरा नाम है.
चाचा नेहरू
रचनाकार- वसुंधरा कुर्रे
हम नन्हे- मुन्ने प्यारे बच्चे,
चाचा के थे राज दुलारे.
चाचा करते थे हमें प्यार,
और देते थे हमें,
रंग -बिरंगे गुब्बारे प्यारे.
और चाचा को थे बच्चे प्यारे,
गुलाब ही सब फूलों से थे प्यारे,
इनको लगता इतने प्यारे.
अचकन में गुलाब फूल लगाए,
हमेशा ही मुस्कुराते रहते.
चाचा अपना जन्मदिन आज,
हम बच्चों को दे दिए दान में.
और नाम दिए उनको बाल दिवस,
बाल दिवस आज हमारा है.
सब त्योहारों से प्यारा है,
आओ, हम सब मिलकर
मनाएँ बाल दिवस.
ठंडी
रचनाकार- सपना यदु
देखो भाई ठंडी आई,
प्यारी ओस की बूंदे लाई.
रंग-बिरंगे स्वेटर पहनो,
नरम-गरम ओढो रजाई..
आसमान में बादल छटे हैं,
कोहरा छाया है सब ओर.
थरथर कर सब कांप रहे हैं,
शीत बरसे चारों ओर..
क्या दादी, नानी क्या पोती,
धूप सबको अच्छी लगती.
गरम चाय है सब पीते,
ठंडी अपनी दूर भगाते..
क्या गली और क्या मोहल्ले,
लगे हैं देखो आग सुलगने.
बच्चे, बूढ़े और जवान,
सब मिलकर हैं आग तापते..
सभी किसान खुश हो जाते,
पके फसल देखकर मुस्काते.
मेहनत रंग लाया देखकर,
अपने सारे ख्वाब सजाते हैं..
दीवाली
रचनाकार- नंदिनी राजपूत
जगमग- जगमग आई दीवाली,
घर- घर खुशियाँ लाई दीवाली.
आओ मिलकर दीप जलाएँ,
अंधकार को दूर भगाएँ.
कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी आई,
रौशनी घर में खुशियाँ लाई.
तरह- तरह की रंगोली बनाएँ,
घर- आँगन को खूब सजाएँ.
आओ मीठे- मीठे पकवान खाएँ,
सब मिल-जुल खुशियाँ मनाएँ.
चहुँओर दीपक खूब जलाएँ,
दुश्मन- दोस्त एक हो जाएँ.
नए वस्त्र को तन में सजाएँ,
लक्ष्मी पूजा से सुख- शांति पाएँ.
फुलझड़ी,पटाखे कम जलाएँ,
पर्यावरण प्रदूषण दूर भगाएँ.
बड़े- बुजुर्गों का आशीर्वाद पाएँ,
दीपावली खूब धूमधाम से मनाएँ.
कोरोना तुम कब जाओगे??
रचनाकार- निमिशा कुर्रे 'विशुद्धि'
होली गई, दीवाली गई,
पर न गई तुम्हारी छाया.
बाहर खेलने भी निकलूँ तो,
मुझको डराती अदृश्य काया.
जनता को कितना तड़पाओगे,
कोरोना तुम कब जाओगे??
स्कूल जाने की तीव्र इच्छा की,
धीमे-धीमे कट गयी पाँखें.
हादसा ये देखकर भी निष्ठुर,
क्यों नम नहीं तुम्हारी आँखें.
खुद हँसकर और कितना रुलाओगे,
कोरोना तुम कब जाओगे??
पेड़ों में भी है जान
रचनाकार- स्नेहलता टोप्पो 'स्नेह'
पर्यावरण जिनके दम से,
धरती का अभिमान.
हरे-भरे पादप मत काटो,
इनमें भी है जान.
प्राणवायु नि:शुल्क हैं देते,
दें शीतल पुरवाई.
वर्षा को आकर्षित करते,
इनसे मिले दवाई.
भूमि के अनमोल रतन,
कीमत इनकी पहचान.
हरे-भरे पादप मत काटो,
इनमें भी है जान.
महुआ,लकड़ी,तेंदूपत्ते,
देते मीठे फल.
पेड़ न हों तो सोच रे मानव,
कैसा होगा कल.
साँसों की डोरी पेड़ों से,
चलती है नादान.
हरे-भरे पादप मत काटो,
इनमें भी है जान.
जड़ से फल तक अंग पेड़ के,
होते हैं गुणकारी.
जीव-जगत और सारी सृष्टि,
पेड़ों के आभारी.
पेड़ बिना ये जग बन जाए,
पल भर में शमशान.
हरे-भरे पादप मत काटो,
इनमें भी है जान.
अच्छे मेरे मामा जी
रचनाकार- डॉ. सतीश चन्द्र भगत, बनौली, दरभंगा
अच्छे मेरे मामा जी
टाफी बिस्कुट लाना जी
और मिठाइयाँ भी लाना
खिलौने नए दिलाना जी.
पढ़ते और पढ़ाते जी
नई किताबें लाते जी
कहाँ डपटते खेलों में
अच्छे खेल खिलाते जी.
रूसा- फुल्ली फुल्लर जी
झटपट मेल मनौवल जी
कठिन सवालों को हंसकर
हमको झट बतलाते जी.
गजब निराले मामा जी
हरदम वे मुस्काते जी
हमें सुनाते कथा-कहानी
गीत कभी सुनाते जी.
तितलियाँ गायब
रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा
सजी धजी तितली जब आती,
सबके मन को वह बहलाती.
फूलों से लेकर रंग सुहाने,
तितली खुद को खूब सजाती.
चले हवा जब खुशबू वाली,
बगिया में तितली इठलाती.
जब आता अंधड़ तूफ़ानी,
तितली पेड़ों में छुप जाती.
बच्चे भागें उसे पकड़ने,
पर तितली हाथ न आती.
उजड़े बाग़ तितलियाँ गायब,
अब किताब तितली दिखलाती.
समय बड़ा बलवान
रचनाकार- दिव्या श्रीवास्तव, बालाघाट, मध्यप्रदेश
समय बड़ा बलवान बच्चो, समय बड़ा बलवान.
रखना इसका ध्यान सदा ही, रखना इसका ध्यान.
वक़्त का पहिया सदा ही चलता, कभी नहीं है ये रुकता.
कर्म हमेशा करते जाओ, व्यर्थ कभी ना समय गंवाओ.
आकाश को एक दिन छू लेता है कर्मवीर इंसान.
समय बड़ा बलवान बच्चो, समय बड़ा बलवान.
एक ध्येय जीवन में साधो, व्यर्थ कभी ना कहीं भी भागो.
करो परिश्रम कठिन हमेशा, देना मन को यही दिलासा.
मेहनत से ही होंगे एक दिन, पूरे सब अरमान.
समय बड़ा बलवान बच्चो, समय बड़ा बलवान.
एक दृष्टि इतिहास पर डालो, पार्थ कहानी ज़रा निहारो.
चिड़िया की आंखों पर जिसका, टिका हुआ था ध्यान.
गुरु की आज्ञा पाकर जिसने, किया लक्ष्य संधान.
समय बड़ा बलवान बच्चो समय बड़ा बलवान.
जंगल
रचनाकार- दिनेश कुमार चन्द्राकर
हरे-भरे पड़े-पौधों से भरे जंगल
रंग-बिरंगी लताओं से घिरे जंगल.
छोटे-बड़े, ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों से
कलकल बहते नदी-नालों से
अपने साथ लिये हैं शांति ये जंगल
कारखानों से दूर एकांत ये जंगल.
सभी जीवधारियों का आधार ये जंगल
सृष्टि में पोषक तत्वों का सार ये जंगल.
डाल-डाल पर बन्दर मामा झूलते
पात-पात पर कीट फ़ौज में घूमते.
हाथी दादा होकर मदमस्त चलते
भारी-भरकम काया ले मचलते
शेर जंगल का है राजा इसे सब समझते
ताकतवर हूँ मैं कह अभिमान से गरजते.
मनोहर रूप लिये दिखते हैं चीते
दौड़े सबसे तेज देखो फुर्तीले.
अनुभवी बुद्धिमान हैं भालू नाना
जंगल के मुखिया है यही सयाना.
चतुर लोमड़ी की मत पूछो बात निराली,
खबरीलाल जंगल की यह फिरे मतवाली.
देखों जंगल के अंदर झुमते-नाचते मोर,
कोयल की कर्णप्रिय मधुर रसभरी शोर.
पंछियों की कलरव से सजा संगीत
पवन-पुरवाई बहे गाये राग-गीत.
जंगल के अंदर होता मंगल ही मंगल
प्रेम का संदेश चहुँओर बिखेरता जंगल.
पेड़-पौधों, जीवधारियों को प्रेम से अपनाये
सुख-दुख का इन्हें साथी बना जीवन बिताये.
मत उजाड़ों इसे ये खूबसूरत जंगल की दुनिया
जंगल से ही है शुभ मंगल जन धन - वन देश दुनिया..
जिंदगी में ऐसे पल भी आते है
रचनाकार- अंकुर सिंह, चंदवक, जौनपुर, उत्तर प्रदेश
जिंदगी में ऐसे पल भी आते है,
नाखुश होकर भी खुशी दिखाते है.
ग़म चाहें जितने हो इस दिल में,
दफ़न कर सीने में जीते जाते है..
लाख जिम्मेदारियों का बोझ लादें,
विचलित होते हम डगर में दाएँ-बाएँ.
आने वाले अच्छे कल के चक्कर में,
अपने सगों को बना देते हम पराए..
जिंदगी में भी ऐसा एक पल आएगा,
धन से बढ़, खून का रिश्ता कहलाएगा.
रौब जितना भी झाड़ लो इस तन पर,
अंत समय में मोहन ही बेड़ा पार लगाएगा..
मिला है यारों तुमको श्रेष्ठ मानुष का तन,
प्रभु के भक्ति को कर लो अब चिंतन.
हाय. हाय. जितना भी कर लो प्यारे,
साथ तुम्हारे ना जायेगा कागज का ये धन..
जिंदगी में एक पल ऐसा भी आएगा,
बैठ यम के वाहन पर यमलोक तू जाएगा.
आज से ही कर ले अपने कर्मो का हिसाब,
भरी सभा में यम को क्या बतलाएगा..
चिड़िया आई
रचनाकार- बलदाऊ राम साहू
चिड़िया आई, चिड़िया आई
चीं-चीं, चूँ-चूँ, गीत सुनाई.
अब तक क्यों सोये हो बंधु
प्रातः आकर हमें जगाई.
जल्दी से तुम उठ भी जाओ
क्यों ले रहे हो तुम अंगड़ाई.
सदा प्रेम से रहना दोस्तों
आपस में मत करो लड़ाई.
छोटे -बड़े का भाव मन में
रखें कभी ना भाई - भाई.
मेरा परिवार
रचनाकार- दिलकेश मधुकर 'सूर्य'
मेरा परिवार, छोटा परिवार,
जिसमें रहती, खुशियाँ अपार.
मेरे दादा हैं बड़े जानकार,
सुनाते कहानियाँ हजार.
दादी मेरी बड़ी भोली-भाली,
खीर खिलाती भर- भर थाली.
आई.टी मास्टर पापा मेरे,
कंप्यूटर पर काम से घिरे.
अम्मा मेरी बड़ी गुणवान,
रोज बनाए नए पकवान.
सबकी करते हैं देखभाल,
बन जाते हैं सबकी ढाल.
बहना छोटी, बड़ी सयानी,
नृत्य कला की है दीवानी.
बड़ा होकर कुछ काम करूँगा,
शिक्षक बन नाम करूँगा.
अब स्कूल खुले
रचनाकार- अल्का राठौर
सबको याद आ रहा है अपना स्कूल,
चाहे बच्चें हो या शिक्षक,
सब चाहते हैं अब खुले स्कूल.
स्कूल की दहलीज भी आवाज दे रही है,
खिड़की, दरवाजे सबका नाम ले रही है.
मैदान बच्चों को खेलने बुला रहा है,
क्लासरूम अ, आ की आवाज़ लगा रहा है.
हैंडपंप बच्चों का इंतज़ार कर रहा है,
घंटी टन-टन बजने को बेचैन हो रही हैं.
स्कूल के पास की बेर अब पकने लगी है,
कच्चे अमरूद की, खुशबु फैलने लगी हैं.
सबको याद आ रहा अपना स्कूल,
चाहे बच्चें हो या शिक्षक,
सब चाहते हैं अब खुले स्कूल.
प्यार लुटाते दीप
रचनाकार- प्रमोद दीक्षित मलय
गली-द्वार मुस्काते दीप,
मन को बहुत सुहाते दीप.
धनी-निर्धन में भेद न कर,
मधुरिम प्यार लुटाते दीप..
कष्टों से जो कभी न हारे,
मिलती विजय सिखाते दीप.
लड़कर सदा अंधकार से,
जल -जल राह दिखाते दीप..
घना कुहरा, गरमी, जाड़ा,
हँस- हँस सह जाते दीप.
महल, कुटीर, खलिहान, खेत.
सभी को मीत बनाते दीप..
चच्चा जी
रचनाकार- बलदाऊ राम साहू
हम सब पर हैं प्यार लुटाते
नटखटिया चच्चा जी.
खेल-खिलौने लेकर आते
गीत मनोहर भी वे गाते
तरह-तरह के करते अभिनय
हँसते भी और खूब हँसाते.
आँखों पर हैं चश्मा पहने
फटफटिया चच्चा जी.
घर पर वे तो कभी न रहते
आड़े-तिरछे कुछ भी कहते
खाने के शौक़ीन बड़े हैं
भूख-प्यास वे कभी न सहते.
रहते हरदम घुड़सवार-से
झटपटिया चच्चा जी.
कहने को हैं पैसे वाले
पर रहते हैं बड़े निराले
मन से सीधे - सच्चे हैं
और हैं वे बड़े दिल वाले.
बिन सोचे सब कुछ कर जाते
हड़बड़िया चच्चा जी.
पढ़ई तुँहर द्वार
रचनाकार- स्नेहलता टोप्पो
गली मोहल्ला पारा- पारा,
जगमग आस का दीप जले,
ज्ञान भास्कर चमके नभ में,
शिक्षा फिर से फूले-फले.
बुलटू के बोल कहीं पर,
कहीं गूंज है माइक की,
कहीं वर्चुअल क्लास सुसज्जित
गूँज गुरूजी बाइक की,
मिस कॉल करके यह लगता,
जैसे गुरू हों पास खड़े,
ज्ञान भास्कर चमके नभ में,
शिक्षा फिर से फूले-फले.
कोरोना का भीषण संकट है,
विकट स्थिति आयी है,
वैकल्पिक शिक्षा से भरेगी,
अशिक्षा की खाई है,
लक्ष्य मिलेगा शनै:-शनै: चल,
नव प्रभात विश्वास कहे,
ज्ञान भास्कर चमके नभ में,
शिक्षा फिर से फूले-फले.
विपदा चाहे जैसे भी हो,
हार नहीं हम मानेंगे,
नव नीति की नींव बनेंगे,
वक्त नहीं जाने देंगे,
ज्ञान नीर से सींच बाल मन,
पुलकित बाग सुवास बहे,
ज्ञान भास्कर चमके नभ में
शिक्षा फिर से फूले-फले.
सैनेटाइज़ कर हाथों को,
दूरी रखकर बैठो पढ़ो,
नाक,मुँह को ढको मास्क से,
प्यारे बच्चों धीर धरो,
आलोकित शाला फिर होंगी,
सेहत प्रथम विभास रहे,
ज्ञान भास्कर चमके नभ में,
शिक्षा फिर से फूले-फले.
चूहा
रचनाकार- रजनी शर्मा बस्तरिया
खामोशी से राह बना कर,
मीलों का सफर तय कर लेते हो.
भूपथगामनी से द्रुत गति तुम्हारी,
क्षण में सारी सृष्टि नाप लेते हो.
कंकरा आंखें और दूरदृष्टि,
लक्ष्य अपना साध लेते हो.
श्रम के सुवास माटी के ढेर पर,
पहाड़ों का गुरूर क्षण में तोड़ देते हो.
चूहा क्यों है विशेष, विशिष्ट,
कार्यों से अपने सबको बता ही देते हो..
प्यारा बचपन
रचनाकार- रेणुका सिंह
खो ना जाए जरा सँभालो
मासूम-सा भोला-भाला,
प्यारा बचपन.
निश्छल होंठों की मुस्कान
पंछियों-सी उड़ान
खो ना जाए जरा सँभालो.
मन में उठते अनगिनत सवाल
क्या है, क्यों है? ये जिज्ञासाएँ
खो ना जाये जरा सँभालो.
सभी मेरे हैं, मैं सबका हूँ
कोई नहीं पराया यह भावना
मिट ना जाए जरा सँभालो.
मीठे सपनों को बुनने दो
ख्वाबों सा ऊँचा उड़ने दो
कल्पनाओं की ये लहर,
छूट ना जाए जरा सँभालो.
अंतर्मन में दीप जला लें
रचनाकार- प्रमोद दीक्षित मलय
बाहर दीप जलाने से पहले,
अंतर्मन में इक दीप जला लें.
नेह सुधा-जल से अभिसिंचित कर,
बंजर मन में रस, प्रीति उगा लें.
अविवेक अंधेरे को अब त्यागें.
जोड़ें जीवन के बिखरे धागे.
सुख-शांति है आधार विकास का,
तटिनी-तरू तट मत काट अभागे.
हृदयांगन की हम करें सफाई,
सत्कर्मों को मनमीत बना ले..
सब अपने ही हैं नहीं पराये.
मिलजुल गायें, खुशी मनायें.
धरती पर न रहे कहीं अंधेरा,
प्रेम, मधुरता, सद्भाव बनायें.
अब हार-जीत से ऊपर उठकर,
सामंजस्य के नव गीत बना लें..
बिल्ली गयी दिल्ली
रचनाकार- टीकेश्वर सिन्हा 'गब्दीवाला'
कल बिल्ली गयी दिल्ली,
और दिल्ली से कलकत्ता.
वहाँ पहुँचते ही उसने,
पूछा कुत्ते से पता.
फिर कुत्ते ने बताया,
उसे पता अजमेर का.
अजमेर जाते ही उसने,
नाम सुना शेर का.
फिर बिल्ली की हुई,
सब सिट्टी-पिट्टी गुम.
न कुछ सुनी न समझी,
दबाकर भाग चली दुम.
धनतेरस
रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू'
देते हैं उपहार जी,मिलकर सबको आज.
धनतेरस के पर्व में, पूरे करते काज..
पूरे करते काज, घरो में दीप जलाते.
आती खुशियाँ रोज, सभी पकवाने खाते..
करे साज श्रृँगार, नये कपड़े हैं लेते.
करते आतिशबाज, बधाई सबको देते..
करते पूजा पाठ जी, मिलकर के परिवार.
हाथ जोड़ विनती करे, आये खुशी अपार..
आये खुशी अपार, चरण में शीश झुकाते.
दीप जलाते रोज, मातुकी मूरत लाते..
करे आरती लोग, दिलों में खुशियाँ भरते.
आती लक्ष्मी द्वार, सभी पूजा है करते..
सच की राह
रचनाकार- लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
बहुत कठिन होता है जीवन में,
सच्चाई के राह पर हमें चलना.
उससे ज़्यादा मुश्किल है होता,
बुरी आदतों को हमें बदलना..
बुराई के दल-दल में फंस जाते,
मुश्किल होता है तब हमें संभलना.
सर्वत्र अराजकता व हिंसा फैली,
घर से नहीं चाहिए हमें निकलना..
सच के निर्णय लेने से जीवन में,
ख़ुशियों के फूल सदैव है खिलता.
झूठ के बल पर जब हम चलते,
तो जीवन में दुःख है मिलता..
झूठ, फ़रेब व कपट से जीवन,
ज़्यादा दिन नहीं हमारा चलता.
हिम्मत से सच राह पर चल दें,
निश्चय ही यूँ जीवन निखरता..
धन-दौलत और दिखावा से,
अधिक समय नहीं चमकना.
सत्पथ, सद्कर्म और प्रीत से,
जीवन में है कीर्ति फहरना..
सुनने पर यूँ विश्वास न करना,
अपनों के नज़रों में न गिरना.
सबसे मुश्किल सच का निर्णय,
दृढ़ हो तो संभव कर गुजरना..
मेरा देश संवर रहा है
रचनाकार- लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
देश मेरा अब संवर रहा है,
देश मेरा अब बदल रहा है.
नवक्रांति के नव-जागरण से
देश हमारा निखर रहा है..
हो रहा अब बहु परिवर्तन,
हर क्षेत्र में हो रहा सृजन.
संचार हुआ नव-चेतन का,
ख़ूब हो रहा चिंतन-मनन..
प्राचीन विडंबना है ध्वस्त,
प्रगति से लोग अब मस्त.
विषता कटुता न दिखती,
सूर्य अब न हो रहा अस्त..
चहुँओर दिखती ख़ुशहाली,
देश में अब न है बदहाली.
पहुँचे हम मंगल ग्रह पर भी,
अब भारत की बात निराली..
विश्व में हम बने हैं सिरमौर,
उन्नति का अब दिखता दौर.
शान से हम सर्वत्र गरजते,
निर्धनता का न देश में ठौर..
विज्ञान व शिक्षा में पहचान,
करते लेते वो जो लेते हम ठान.
दुनिया में बज रहा भारत का डंका,
मेरे राष्ट्र का होता सम्मान..
मेरा देश है महान
रचनाकार- लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
गर्व बहुत होता है मुझको,
भारत माँ की हम संतान॥
फ़ख़्र से सीना चौड़ा होता,
लहराएँ है तिरंगा निशान..
सब बोलो जय-जय हिंदुस्तान.
सदियों से मेरा देश है महान..
बचपन से लेकर अब तक,
कानों में गूँजा है राष्ट्र गान.
तन मन मेरा खिल जाता है,
देश का करे कोई गुणगान..
यहाँ जम्हूरियत का शासन,
सम माने हम राम-रहमान.
कई जातियाँ मज़हब वाले,
पढ़े गीता गुरूग्रंथ कुरान..
राष्ट्र को कोई आँख दिखाए
हम करें उसे पहले सावधान.
फ़िर आदत से बाज़ न आए
मिटा देते उसका नामो-निशान..
सब बोलों जय-जय हिंदुस्तान.
सदियों से मेरा देश है महान..
सारे विश्व में भारत माँ का,
होता रहा है सदैव यशगान.
अब वह भारत नहीं रहा है,
कोई हमें दे अब फ़रमान..
महापुरुष यहाँ जो जन्म लिए,
पूरे जग को दिए ज्ञान-विज्ञान.
परोपकार करते हम सबका,
कभी न करते हैं अभिमान..
यहाँ वीरप्रताप शिवा है जन्में,
सम्राट अशोक हुए महान.
विश्व में हमारा है देश अनूठा,
धरा को हम दें माँ का सम्मान..
सब बोलो जय-जय हिंदुस्तान.
सदियों से मेरा देश है महान..
मीठी वाणी
रचनाकार- लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
मीठी वाणी अमृत जैसी, सबका मन हरषाती है.
प्रिय लगती है ऐसी वाणी, अमृत सुधा बरसाती है..
सच वाणी यदि है कड़वी,अक्सर न हमको भाती है.
ऐसी वाणी सँभलकर बोलो,नहीं तो कटुता आती है..
मीठी वाणी हम बोले तो,दूजे भी प्रिय हो जाते हैं.
जिस वाणी में विषता हो, अपनों को भी नहीं सुहाते हैं..
मीठी वाणी प्यारी होती, प्रेम के पट देती है खोल.
ऐसी वाणी सदा सदा से, जग में होती है अनमोल..
मीठी वाणी बोल के हम, समाज में प्रिय हो जाते हैं.
आदर व सम्मान मिले हमें, यूँ आँखों में बस जाते हैं..
बच्चे बोले मीठी वाणी, बहुत ही अच्छे लगते हैं.
मीठी बोली सुनकर लोग, कितना प्यार करते हैं..
मम्मी की बोली होती मीठी, बच्चों का मन हर लेती हैं.
पापा क्रोध में भी हो, मीठे बोली से चुप कर देती हैं..
एक निवेदन सबसे मेरा, जब बोले मीठा बोलें.
कर्ण प्रिय लगे हर मानुष को, बोली में हम मिश्री घोलें..
नदियाँ
रचनाकार- अनिता चंद्राकर
कलकल कलकल इठलाती जाती,
निर्मल नदिया की धार.
हर चुनौती को स्वीकार करती,
वो नहीं मानती कभी हार.
अविरल बढ़ते जाती अपने पथ पर,
करती बाधाओं को पार.
दिखाती रौद्र रूप अपना,
जब हम करते प्रकृति से छेड़छाड़.
जीवनदायिनी माता हैं नदियाँ,
करती धरा का सुंदर श्रृंगार.
शीतल जल से प्यास बुझाती,
इनसे ही है हरा-भरा ये संसा
भारत देश हमारा
रचनाकार- अनिता चंद्राकर
गंगा यमुना कलकल गाती,बहती अमृतधारा है.
देखो मंदिर,मस्जिद,गिरजाघर,हर्षित गुरुद्वारा है..
कृष्ण-राम की पावन भूमि,गणपति सबका दुलारा है.
जन्मी सती,सीता सी नारी यहाँ,दर्श दीवानी मीरा है..
महापुरुषों की गाथा अमर,ये देश हमको प्यारा है.
नानक, गौतम सीख देते, संतों का यहाँ बसेरा है..
तुलसी,सुर,जायसी को पढ़ो, ज्ञानमार्गी कबीरा है.
गीता,बाइबिल,कुरान,वेद, पुराणों का सहारा है..
पूजा,कीर्तन,अरदास गूँजे, सबने इष्ट को पुकारा है.
है जाति धर्म की विविधता यहाँ, पर सबमें भाईचारा है..
वंदना
रचनाकार- महेन्द्र देवांगन 'माटी'
करूँ वंदना नित्य ही, हे गणनायक राज.
संकट सबके टाल दो, सिद्ध होय सब काज..
काम मिले हर हाथ को, नहीं पलायन होय.
भूखा कोई न रहे, बच्चे कहीं न रोय..
कोरोना संकट हटे, बीमारी हो दूर.
स्वस्थ रहे सब आदमी,न हो वो मजबूर..
भेदभाव को छोड़ कर,रहे सभी अब साथ.
नवयुग का निर्माण हो,हाथों में हो हाथ..
करुँ आरती रोज ही, आकर तेरे द्वार.
करो कृपा गणराज जी, वंदन बारंबार..
जन्मदिन
रचनाकार-सपना यदु
आया जन्मदिन आया, ढेरों खुशियाँ लाया.
लड्डू और पकवान बने हैं, मुँह में पानी आया..
रंग बिरंगे गुब्बारे सजे हैं, नए कपड़े भी लाया.
आया जन्मदिन आया, ढेरों खुशियाँ लाया..
पप्पू, टिंकू, सोनू, मोनू सभी दोस्तों को बुलाया.
सुंदर-सुंदर, प्यारे-प्यारे सभी ने है उपहार लाया..
दीपक, फूल, चंदन लेकर, माँ ने है थाली सजाया.
स्नेह भरा फिर चुंबन लेकर, माथे पर टीका लगाया..
एक-एक कर सब ने आकर, अपना हाथ है मिलाया.
जन्मदिन की देकर बधाई, सबने ताली खूब बजाया..
तुम बहुत याद आते हो
रचनाकार- नरेन्द्र सिंह नीहार, नई दिल्ली
मेरे प्यारे स्कूल.
तुम बहुत याद आते हो.
अक्सर मेरी पलकों में,
मेरे साथ सो जाते हो.
सपनों में तैरते हो,
नज़दीक मुझे बुलाते हो.
खेलकूद शोखियाँ शरारतें,
बादस्तूर चलती हैं.
मिड डे मील की खुशबू से,
जीभ भी मचलती है.
सामने गुरु जी को देखकर,
शीश झुकाता हूँ.
उनका स्नेहिल हाथ,
अपने सिर पर पाता हूँ.
अचानक आँख खुलने पर,
तन्हा तड़पाते हो.
मेरे प्यारे स्कूल.
तुम बहुत याद आते हो..
हारेगा कोरोना
रचनाकार- महेन्द्र देवांगन 'माटी'
संभल जाओ हे मानव अब,
विपदा भारी आई है.
कोरोना का संकट देखो,
पूरी दुनिया पे छाई है..
कोई नहीं बचाने वाला,
खुद को तुम्हे बचाना है.
छोड़ो धन के लालच को अब,
दूरी तुम्हें बनाना है..
समझा कर सब हार गये हैं,
शासन और प्रशासन भी.
मंदिर-मस्जिद बंद पड़े हैं,
डोल रहा है आसन भी..
नहीं भीड़ में जाओ अब तुम,
यदि परिवार बचाना है.
बदलो सब जीने के ढँग को,
गुलशन नया सजाना है..
हारेगा कोरोना एक दिन,
बीमारी ये जायेगी.
जीत हमारी निश्चित होगी,
फिर से खुशियाँ आयेगी..