छत्तीसगढ़ी बालगीत

नवा साल

रचनाकार- सोमेश देवांगन

दो हजार बीस के मत पूछ करलाई.
नवा साल आय के बेरा होंगे भाई.

दू हजार बीस में बिकट पेराय हन.
अपन दुख ल घोर के जग ल बताये हन..

ये साल बीतत हवय जाड़ अउ कोरोना म.
आस लगाय बइठे नवा साल के अगोरा म..

नवा साल ले सब ल हवय भारी आस.
मिलहि लेहे बर चैन ले जी भर के साँस..

कोरोना ले सब डहर ले हावन परसान.
दो हजार बीस म जग म मचे ह घमासान..

विनती हे तोला नवा साल हाथ जोर.
सब ल सुख देबे तय पाव परत हव तोर..

छेरछेरा तिहार

रचनाकार- सपना यदु

आगे रे संगी छेरछेरा तिहार,
लइका खुश होगे अउ,
सियानो में छाए,
खुशी के फुहार.

झोला, टूकनी अउ कांवर धरके,
पारे संगी मन ह गोहार.
छेरछेरा मांगे ला जाए,
सबो संगी जोहार..

फसल कटगे, धान मिंजागे,
कोठी ह खचाखच भरागे.
छेरछेरा के ये तिहार ह,
अन्नदान के परब कहाथे..

पूस पूर्णिमा दिन म भाई,
नाचे लइका अउ डोकरी दाई.
कोन्हों गावत हे धनी पुनी अउ,
कोन्हों हेरावत हे कोठी के धान..

कुकरा बासे लईका मन चिल्लावे,
छेरछेरा... कोठी के धान ला हेर हेरा.
अउ कोन्हों कहाथे,
अरन बरन कोदो दरन, जभे देबे तभे टरन..

संझा कुन माई लोगोन ह गावै,
धनी पूनी के गीत..

लइका सियान सबो मित होगे,
धनी पुनी ह एक गीत होगे.
देख के दान करत किसान भाई ला,
धरती दाई हा घलो, फूल कस खिलगे..

दया धरम अउ, दान करम के,
मन म नीर बोहाथे.
छेरछेरा के ये तिहार ह संगी,
अन्नदान के परब कहाथे..

सुरुज

रचनाकार- योगेश ध्रुव 'भीम'



सुत उठ के बड़े बिहिनिया उत्ति माथ नवाबोंन.
नवा बेरा के अगोरा म चल सुरुज ल परघबोन..

हलधरिया चल नागर धर डोली डहर म जाबोन.
करम करके भाग बनाबों पसीना ल चुचवाबोंन..

टूटहा छानी अउ कुरिया ह मोर दिखे दुवारी.
इहि मोर परान संगी अउ इहि मोर चिन्हारी..

नवा जमाना आगे संगी अउ बेरा घलो बदलेगे.
आनी बानी फेसन आगे ओनहा घलो बिगड़गे..
कोन्हों हमर पूछैय्या नइहे कोन डहर म जाबोन.
रद्दा अपन चतवारे बर चल सुरुज ल परघाबोन..
सुरुज ल परघाबो.....

हमन सुजान

रचनाकार- द्रोपती साहू 'सरसिज'



बेरा- बेरा मा काम हम करबो.
खेलबो कूदबो पढ़बो लिखबो..

गली खोर मा हिलमील के संगी.
हम भागा दौड़ी अड़बड़ करबो..

मोबाइल ला जादा नइ देखन.
पढ़ाई खेल मा समय लगाबो..

बिना बताए घर के कोन्हों ला.
कभू बरपेली कहूँ नइ जाबो..

मनमरजी मा बड़ होथे खतरा.
हम परसानी मा काबर परबो..

पकवान

रचनाकार- सोमेश देवांगन

छतीसगढ़ी पकवान ठेठरी खुर्मी अउ सोहारी.
बनय तसमई घरों घर होली अउ देवारी..

गुलगुला भजिया मुर्रा -करी लाड़ू बढ़ भाय.
इखर आघु म मोला बर्गर पिज़्ज़ा मैगी नई सुहाय..

फरा चीला मुठिया अउ मुरकू ल सब झन खाथे.
सूजी पकवा कतरा संग म जलेबी गजब मीठाथे..

रखिया बरी बने बिजौरी सुंघहर बने बफ़ौरी.
अम्मठ में चूरय सुघ्हर मसूर संग जरी..
लाई मुर्रा फूटे चना अउ उखरा बढ़ भावय.
ये सब लेहे बर मनखे मेला मड़ई जावय..

अतका कन हवय मोर छ्त्तीसगढ़ के पकवान.
कविता में नई हो सकय जी ऐखर गुनगान..

सुवा गीत

रचनाकार- स्नेहलता "स्नेह"

रोवत हवै छुप- छुप
मरत हवै तिल-तिल
फांसी ला बनावत हे गलहार,
न रे सुवा न, कर्जा मा बुड़े हे किसान न रे सुवा न कर्जा...

बिहिनिया ले संझा जाँगर टोरे बिचारा
पेट पोंसइया अन्नदाता के नइ हे इहां कोनो सहारा,
चिरहा धोती पहिरे हे मरहा कस दीखत हे.
बिन पनही पांव ले बहे लहूधार
न रे सुवा न कर्जा म बुड़े हे किसान.

टूटे -फूटे नाँगर कइसे खेत म चलावव,
बईला बर भूसा-चारा कइसे ले बिसावव,
ठग डारिस जम्मो मन लबारी मार के
गहना धराय हे घर-कुरिया खेतखार
न रे सुवा कर्जा....

कभी सूखा, कभी बाढ़ ओला रोवाथे.
साहूकार सूद ले बर रात- दिन तंगाथे
बेंच डारे अन्नधन, बेंच डारे बरतन
आज हवै छेरछेरा तिहार
न रे सुवा....

जड़काला

रचनाकार-बलदाऊ राम साहू

जड़काला के दिन जब आथे
गोरसी ह तो गजब सुहाथे.

कन-कन करथे तरिया-नदिया
रौनिया ह तो मन ला भाथे.

जुन्ना कथरी अउ कमरा हर
हितवा बन के जाड़ भगाथे.

अब के पाहरो नवा जुग मा
साल-स्वेटर ह मन ललचाथे.

रात हर बैरी कस लागथे
नवा सुरुज हर प्रीत निभाथे.

गणतंत्र तिहार

रचनाकार- सपना यदु

सुनो जी संगी, सुनो संगवारी,
आगे हमर गणतंत्र तिहार.
मुस्काथे गांव, गली अऊ फुलवारी,
संग में झूमथे धरती अऊ आकाश..

सब सरकारी भवन म,
लहराही हमर तिरंगा.
दीही संदेश शांति के,
नई करन कभु दंगा..

भुला के जात पात के भेद ला,
नई करन कभु लड़ाई.
मिलजुल के संग मा रबो,
हिंदू मुस्लिम भाई -भाई..

देश के रक्षा खातिर जेमन,
झेलीन गोली के बौछार ला.
करत हन शत -शत नमन,
भारत के अइसन पहरेदार ला..

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