लेख

हमारे पौराणिक पात्र- महर्षि कणाद

वेगः निमित्तविशेषात कर्मणो जायते.
वेगः निमित्तापेक्षात कर्मणो जायते.
नियतदिक क्रियाप्रबन्धहेतु.
वेगः संयोगविशेषविरोधी..
-वैशेषिक दर्शन

अर्थात्‌ : वेग पांचों द्रव्यों पर निमित्त व विशेष कर्म के कारण उत्पन्न होता है तथा नियमित दिशा में क्रिया होने के कारण संयोग विशेष से नष्ट होता है या उत्पन्न होता है. उपरोक्त संस्कृत सूत्र न्यूटन के 913 वर्ष पूर्व अर्थात ईसा से 600 वर्ष पूर्व लिखा गया था. न्यूटन के गति के नियमों की खोज से बहुत पहले भारतीय वैज्ञानिक और दार्शनिक महर्षि कणाद ने यह सू‍त्र 'वैशेषिक सूत्र'में लिखा था, जो शक्ति और गति के बीच संबंध का वर्णन करता है.

कणाद गुजरात के प्रभास क्षेत्र (द्वारका के निकट) में जन्मे थे. महर्षि कणाद ईसा से 600 वर्ष पूर्व हुए थे अर्थात बुद्ध और महावीर के काल में.उनके जीवन के बारे में ज्यादा बातें न करते हुए हम उनके द्वारा प्रतिपादित वैज्ञानिक सिद्धांतों के विषय में जानने का प्रयास करेंगे.

महर्षि कणाद ने परमाणु को ही अंतिम तत्व माना. कहते हैं कि जीवन के अंत में उनके शिष्यों ने उनकी अंतिम अवस्था में प्रार्थना की कि कम से कम इस समय तो परमात्मा का नाम लें, तो कणाद ऋषि के मुख से निकला पीलव:, पीलव:, पीलव: अर्थात परमाणु, परमाणु, परमाणु.

आज से लगभग 2600 वर्ष पूर्व ब्रह्माण्ड का विश्लेषण परमाणु विज्ञान की दृष्टि से सर्वप्रथम एक शास्त्र के रूप में सूत्रबद्ध ढंग से महर्षि कणाद ने अपने वैशेषिक दर्शन में प्रतिपादित किया था.

महर्षि कणाद वैशेषिक सूत्र के निर्माता, परंपरा से प्रचलित वैशेषिक सिद्धांतों के क्रमबद्ध संग्रहकर्ता एवं वैशेषिक दर्शन के उद्धारकर्ता माने जाते हैं. वे उलूक, काश्यप, पैलुक आदि नामों से भी प्रख्यात थे.

भौतिक जगत की उत्पत्ति सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण परमाणुओं के संघनन से होती है- इस सिद्धांत के जनक भी महर्षि कणाद थे. महर्षि कणाद का जन्म चरक और पतंजलि से पूर्व हुआ था.

कणाद के अनुसार पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, दिक्‌, काल, मन और आत्मा इन्हें जानना चाहिए. इस परिधि में जड़-चेतन सारी प्रकृति व जीव आ जाते हैं. कणाद ने परमाणुओं को तत्वों की ऐसी लघुतम अविभाज्य इकाई माना जिनमें इस तत्व के समस्त गुण उपस्थित होते हैं.

कणाद के अनुसार परमाणु स्वतंत्र नहीं रह सकते. एक प्रकार के दो परमाणु संयुक्त होकर ‘द्विणुक'का निर्माण कर सकते हैं. यह द्विणुक ही आज के रसायनज्ञों का ‘वायनरी मॉलिक्यूल'लगता है. उन्होंने यह भी कहा कि भिन्न-भिन्न पदार्थों के परमाणु भी आपस में संयुक्त हो सकते हैं. वैशेषिक सूत्र में परमाणुओं को सतत गतिशील भी माना गया है तथा द्रव्य के संरक्षण (कन्सर्वेशन ऑफ मैटर) की भी बात कही गई है. ये बातें भी आधुनिक मान्यताओं के संगत हैं.

महर्षि कणाद कहते हैं, द्रव्य को छोटा करते जाएंगे तो एक स्थिति ऐसी आएगी, जहां से उसे और छोटा नहीं किया जा सकता, क्योंकि यदि उससे अधिक छोटा करने का प्रत्यन किया तो उसके मूल गुणों का लोप हो जाएगा. उनके अनुसार द्रव्य की दो स्थितियां हैं- एक आणविक और दूसरी महत्. आणविक स्थिति सूक्ष्मतम है तथा महत्‌ यानी विशाल ब्रह्माण्ड. दूसरे, द्रव्य की स्थिति एक समान नहीं रहती है.

..धर्म विशेष प्रसुदात द्रव्य गुण कर्म सामान्य विशेष समवायनां पदार्थानां साधर्य वैधर्यभ्यां तत्वज्ञाना नि:श्रेयसम:.. -वैशेषिक दर्शन 0-4

अर्थात धर्म विशेष में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष तथा समवाय के साधर्य और वैधर्म्य के ज्ञान द्वारा उत्पन्न ज्ञान से नि:श्रेयस की प्राप्ति होती है.

द्रव्य क्या है? 

पृथिव्यापस्तेजोवायुराकाशं कालोदिगात्मा मन इति द्रव्याणि.. -वै.द. 1/5

अर्थात पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, काल, दिशा जीवात्मा तथा मन- ये सभी द्रव्य हैं. यहां पृथ्वी, जल आदि से कोई हमारी पृथ्वी, जल आदि का अर्थ लेते हैं. पर ध्यान रखें इस संपूर्ण ब्रह्मांड में ये 9 द्रव्य कहे गए, अत: स्थूल पृथ्वी से यहां अर्थ नहीं है. इसका अर्थ जड़ से है. जड़ जगत ब्रह्मांड में सभी जगह है. इसे आज का विज्ञान ठोस पदार्थ कहता है.

पृथ्वी यानी द्रव्य का ठोस (Solid) रूप, जल यानी द्रव्य का तरल (Liquid) रूप तथा वायु अर्थात द्रव्य का एयर (Air) रूप, यह तो सामान्यत: दुनिया में पहले से ज्ञात था. पर महर्षि कणाद कहते हैं कि तेज भी द्रव्य है जबकि पदार्थ व ऊर्जा एक है, यह ज्ञान 20वीं सदी में आया है. इसके अतिरिक्त वे कहते हैं- आकाश भी द्रव्य है तथा आकाश परमाणुरहित है और सारी गति आकाश के सहारे ही होती है, क्योंकि परमाणु के भ्रमण में हरेक के बीच अवकाश या प्रभाव क्षेत्र रहता है.

महर्षि कणाद कहते हैं- दिक्‌ (Diversion) तथा काल (time) यह भी द्रव्य है, जबकि पश्चिम से इसकी अवधारणा आइंस्टीन के सापेक्षतावाद के प्रतिपादन के बाद आई.

‘नित्यं परिमण्डलम्‌'.- वै.द. 7/20

अर्थात : परमाणु छोटे-बड़े रहते हैं, इस विषय में महर्षि कणाद कहते हैं-

एतेन दीर्घत्वहृस्वत्वे व्याख्याते (वै.द.) 7-1-17

अर्थात : आकर्षण-विकर्षण से अणुओं में छोटापन और बड़ापन उत्पन्न होता है.

इसी प्रकार ब्रह्मसूत्र में कहा गया-

महद्‌ दीर्घवद्वा हृस्वपरिमण्डलाभ्याम्‌ (व्र.सूत्र 2-2-11)

अर्थात महद्‌ से हृस्व तथा दीर्घ परिमंडल बनते हैं.

परमाणु प्रभावित कैसे होते हैं तो महर्षि कणाद कहते हैं-

विभवान्महानाकाशस्तथा च आत्मा (वै.द. 7-22)

अर्थात् उच्च ऊर्जा, आकाश व आत्मा के प्रभाव से.

परमाणुओं से सृष्टि की प्रक्रिया कैसे होती है? तो महर्षि कणाद कहते हैं कि पाकज क्रिया के द्वारा. इसे पीलुपाक क्रिया भी कहते हैं अर्थात अग्नि या ताप द्वारा परमाणुओं का संयोजन होता है. दो परमाणु मिलकर द्वयणुक बनते हैं. तीन द्वयणुक से एक त्रयणुक, चार त्रयणुक से एक चतुर्णुक तथा इस प्रकार स्थूल पदार्थों निर्मित होते जाते हैं. वे कुछ समय रहते हैं तथा बाद में पुन: उनका क्षरण होता है और मूल रूप में लौटते हैं. हमारे शरीर और इस ब्रह्मांड की रचना इसी तरह हुई है.

महर्षि कणाद यद्यपि आज से लगभग 2600 वर्ष पहले हुए थे पर उनके द्वारा विज्ञान के क्षेत्र में किए गए कार्यों के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा.

हमारे प्रेरणास्रोत- डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन

हैलो बच्चो,

आज हम बात करेंगे भारत के तीसरे राष्ट्रपति डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन की. वह एक प्रसिद्ध शिक्षाविद् और आधुनिक भारत के दृष्टा थे. उनका जन्म ८ फ़रवरी १८९७ को हैदराबाद में हुआ. उनके पिता हैदराबाद के जाने-माने वकील थे. जब जाकिर हुसैन छः साल के थे तब उनके पिता का देहांत हो गया. उनकी माताजी उन्हें लेकर उत्तर प्रदेश के गाँव मलीहाबाद में आकर बस गयीं. चौदह साल की उम्र में जब जाकिर हुसैन आठवीं की परीक्षा देने आगरा गए थे, तभी गाँव में रह रही उनकी माताजी का प्लेग की बीमारी से निधन हो गया.

जाकिर हुसैन पढ़ाई में बहुत अच्छे थे.उन्हें स्कूल की तरफ़ से वज़ीफ़ा मिलता था जिस से वह आगे की पढ़ाई कर सके. उन्होंने हाई स्कूल की पढ़ाई उत्तर प्रदेश के इटावा शहर से की, उसके बाद ग्रेजूएशन की पढ़ाई आंग्लो मोहम्मदें ऑरीएंटल कॉलेज से की, जो अब अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के नाम से जाना जाता हैं. मात्र तेईस साल की उम्र में उन्होंने नेशनल मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना अलीगढ़ में की, जो बाद में नई दिल्ली स्थानांतरित हो गयी, इसी युनिवर्सिटी को आज जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के नाम से जाना जाता है.

डॉक्टर जाकिर हुसैन यूनिवर्सिटी में छात्रों के बीच काफ़ी लोकप्रिय थे. वह कॉलेज के हॉस्टल में छात्रों से मिलने भी ज़ाया करते थे. वहाँ उन्हें जहाँ भी गंदगी दिखाई देती, वे खुद वहीं उसे अपने रूमाल से साफ़ करने लगते और छात्रों को भी साफ़-सफ़ाई से रहने और पढ़ने के लिए प्रेरित करते. जब वह जामिया मिलिया विश्वविद्यालय के कुलपति थे, तभी एक सज्जन अपने पुत्र को लेकर उनके पास गए और बोले “डॉक्टर साहब, मेरा बेटा फ़र्स्ट ईयर में फेल हो गया है, आपसे निवेदन है की अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए इसे सेकंड ईयर में प्रवेश दिला दें.” ज़ाकिर साहब थोड़ी देर बाद सहज हो कर बोले, “आप जा कर एम.ए. का फ़ॉर्म ले आइए, सीधे इसी में प्रवेश दिला देंगे. जब ग़लत करना ही हैं तो थोड़ा और ग़लत कर लिया जाए.” ज़ाकिर साहब की बात सुन कर उन सज्जन ने शर्मिंदा होकर क्षमा माँगते हुए कहा कि आगे से कभी वह अपने बच्चे के लिए ‘शाॅर्ट्कट’ खोजने की कोशिश नहीं करेंगे.

राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए, डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन की मृत्यु ३ मई १९६९ को नई दिल्ली में हो गयी. उन्हें जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी के कैम्पस में ही दफ़नाया गया. उनकी शिक्षा के प्रति आधुनिक सोच, अनुशासन और सादगी भरे जीवन ने उन्हें हमारा प्रेरणास्रोत बना दिया है.

सफलता की कहानी- सोड़ी भीमे

लेखक- गौतम कुमार शर्मा

बालिका का नाम- सोड़ी भीमे

संस्था का नाम- कआकार आवासीय संस्था, कुम्हाररस, सुकमा

कक्षा -पाँचवी

'अपने हौसलों को मत बताओ कि, तुम्हारी परेशानी कितनी बड़ी है.
बल्कि अपनी परेशानी को बताओ कि, तुम्हारा हौसला कितना बड़ा है..'

इन पंक्तियों को चरितार्थ किया है, आज की हमारी नन्हीं बहादुर नायक सोड़ी भीमे ने. सोड़ी अस्थिबाधित दिव्यांग छात्रा है, जो आकार आवासीय संस्था कुम्हाररस, सुकमा में कक्षा 5 वीं में अध्ययनरत है. सोड़ी भीमे अतिसंवेदनशील नक्सल प्रभावित क्षेत्र के पहाड़ी ढलानों पर स्थित अत्यंत पिछड़े दूरस्थ वनांचल गाँव केशापारा गुफड़ी में रहती है. इस गाँव में मूलभूत सुविधाओं की कमी है. यहाँ तक कि गाँव में सड़क तक उपलब्ध नहीं है. आइये जानते हैं हमारी नन्हीं नायक आत्मविश्वास से ओतप्रोत सोड़ी भीमे के बारे में.

सोड़ी के पिता श्री मासा सोड़ी से सोड़ी के साथ बचपन में घटित दुर्घटना के बारे में सुनकर मैं एकदम सहम-सा गया ! एक 3 साल की छोटी सी बच्ची ने असहनीय दर्द कैसे सहा होगा ? इस छोटी सी बच्ची की मन:स्थिति उस समय कैसी रही होगी ? सोड़ी के पिता ने जब मुझे बताया कि सोड़ी जब 3 साल की थी, तो ठंड के मौसम में घर के आँगन में आग तापने के दौरान खेलते - खेलते वो अचानक गिर पड़ी और उसका दाहिना पैर बुरी तरह से आग में झुलस गया और वह असहनीय दर्द से जोर -जोर से चीखने लगी. यह देखकर घर वालों का दिल दहल गया. कुछ देर पहले तक सोड़ी हंसते- खिलखिलाते, उछल-कूद करते हुए खेल रही थी और कुछ ही देर में उसकी हंसी चीख में कैसे बदल गयी ?

सोड़ी के परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने और जागरूकता की कमी होने के कारण उसके घरवालों ने उसका इलाज़ आस-पास ही कराया. उचित इलाज न होने से उसका दाहिना पैर पूरी तरह खराब हो गया. इस घटना के बाद सोड़ी का जीवन पूरी तरह से बदल गया. ये 3 साल की बच्ची एकदम चुप हो गई. न किसी से बात करना, न ही अच्छे से कुछ खाना- पीना और न ही खेलना - कूदना. इस दर्दनाक घटना ने उसकी मुस्कुराहट ही छीन ली.

इस घटना का सोड़ी पर बहुत बुरा असर हुआ था, वो किसी से भी बात नहीं करती थी. घर के एक कमरें में चुपचाप बैठी रहती थी और अपने साथ घटित उस भयानक दर्दनाक घटना के बारे में सोचकर उदास होकर रोने लगती थी. पर कहते है न वक्त बड़े से बड़े जख्म को भर देता है वैसे ही धीरे - धीरे वक्त के साथ सोड़ी के अंदर भी बहुत बदलाव आ गया और उसने अपनी इस कमजोरी को खुद पर हावी नहीं होने दिया. बहुत जल्दी वह एक ही पैर से चलना सीख गयी.

सोड़ी जब 6 साल की हुई उसके पिता ने गाँव के सरकारी स्कूल शासकीय प्राथमिक शाला केशापारा गुफड़ी में उसका नाम दर्ज करवाया. घर से स्कूल का रास्ता उबड़-खाबड़ होने की वजह से उसे विद्यालय तक पहुँचने में काफी दिक्कतें होती थी लेकिन उसके अंदर पढ़ाई की ललक की वजह से वह प्रतिदिन विद्यालय जाती थी. जब सोड़ी के बारे में सुकमा जिले में समावेशी शिक्षा के तहत् संचालित आकार आवासीय संस्था को जानकारी हुई, तो उन्होंने सोड़ी के पिता से बात करके उसका दाखिला यहाँ करवाया. शुरू - शुरू में यहाँ भी सोड़ी एकदम चुपचाप रहती थी, लेकिन धीरे - धीरे सभी बच्चों के साथ घुल - मिल गई. अब वह सभी बच्चों के साथ पढ़ाई करने के साथ खेलती - कूदती भी है.

कहते हैं कि - ' एक सपने के टूटकर, चकनाचूर हो जाने के बाद, दूसरा सपना देखने के, हौसले को ‘ज़िन्दगी कहते हैं. '

वैसे ही सोड़ी ने अपने जीवन का दूसरा सपना आकार आवासीय संस्था में दाखिले के बाद देखना शुरू किया. सोड़ी ने बहुत ही कम समय में इस संस्था में रहकर बहुत कुछ सीख लिया और उसके अंदर एक नई ऊर्जा का संचार हुआ,जिसकी वजह से उसने अपनी सबसे बड़ी कमी को अपनी ताकत बना लिया और वह एक सामान्य बच्चे की तरह ही सब कुछ करने लगी.

सोड़ी की नृत्य विधा में विशेष रूचि को देखते हुए आकार आवासीय संस्था ने उसे नृत्य करने हेतु प्रेरित किया. कुछ ही दिनों में वह नृत्य विधा में भी पारंगत हो गई और आज सामान्य बच्चों के साथ भी नृत्य करती है. सोड़ी ने अपने साथ के एक मूकबधिर छात्र से प्रेरित होकर नृत्य करना शुरू किया था और आज उसकी पहचान एक कुशल नृत्यांगना के रूप में हो गई है.

पिछले वर्ष सोड़ी ने जिला प्रशासन सुकमा द्वारा आयोजित स्वतंत्रता दिवस समारोह में भी नृत्य विधा में भाग लिया और काफी उम्दा प्रदर्शन किया. इस कार्यक्रम में जिले के बड़े अधिकारियों समेत पूरा शहर उपस्थित था. सोड़ी को एक पैर से इतना अच्छा प्रदर्शन करता देख तालियों की जो गड़गड़ाहट हुई, उससे पूरा शहर गूँज उठा और सभी ने उसके हौसले और हिम्मत की जमकर प्रशंसा की. सोड़ी ने अपनी हिम्मत से यह साबित कर दिया कि हमें किसी भी स्थिति में हार नहीं मानना चाहिए.

'डर मुझे भी लगा फासला देखकर, पर मैं बढ़ता गया रास्ता देखकर.
खुद-ब-खुद मेरे नजदीक आती गई, मेरी मंजिल मेरा हौसला देखकर.. '

ज्ञान की पाती

रचनाकार- चानी आरी

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस

भारत में सन् 1986 से हर साल 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है. प्रोफेसर सी. वी रमन ने सन् 1928 में इसी दिन एक महत्वपूर्ण खोज की थी, जो रमन प्रभाव के नाम से प्रसिद्ध है.

रमन प्रभाव में डाक्टर सी वी रमन ने प्रकाश किरणों के व्यवहार की व्याख्या की.रमन प्रभाव के अनुसार एकल तरंग (मोनोक्रोमेटिक किरणें), जब किसी पारदर्शक माध्यम जैसे- गैस, द्रव या फिर ठोस गैस से होकर गुजरती है तब मूल प्रकाश की किरणों के अलावा स्थिर अंतर पर बहुत कमजोर तीव्रता की किरणें भी उपस्थित होती हैं. इन्हीं किरणों को रमन-किरण कहते हैं.

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाने का उद्देश्य

छात्र-छात्राओं में विज्ञान के प्रति रुचि जगाना है. उन्हें विज्ञान के क्षेत्र में नए प्रयोगों के लिए प्रेरित करना और विज्ञान एवं वैज्ञानिकों की उपलब्धियों के बारे में बताना भी है

देशभर में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के दिन प्रयोगशाला, विज्ञान अकादमी, विज्ञान संस्थान, स्कूल, कॉलेज तथा प्रशिक्षण संस्थानों में कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.

13 फरवरी- विश्व रेडियो दिवस

विश्व रेडियो दिवस मनाने का उद्देश्य जनता और मीडिया के बीच रेडियो के महत्व के प्रति जागरूकता फैलाना है.यह निर्णयकर्ताओं को रेडियो के माध्यम से सूचना एवं जानकारी प्रदान करने, नेटवर्किंग बढ़ाने तथा प्रसारकों के बीच अंतरराष्‍ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करता है. आज भी करोड़ों लोग रेडियो सुनते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेडियो के प्रयोग को एक नई दिशा दी है,वे रेडियो पर 'मन की बात'करते हैं, जिसे करोड़ों लोग रेडियो पर सुनते हैं. इस तरह प्रधानमंत्री मोदी ने रेडियो को दोबारा लोगों के घर में पहुँचाया है. आज कोरोना काल मे बच्चो की पढाई जारी रखने में भी रेडियो का उपयोग किया जा सकता है. जहाँ सुरक्षा की दृष्टि से बच्चो को शालाओ मे नही बुलाया जा रहा है वहाँ रेडियो बच्चों तक पहुँचने का उपयोगी माध्यम हो सकता है.

नवाचार

रचनाकार- शालिनी पंकज दुबे

ये जो हमारी आँखे है न! ये हमें बाहरी दुनिया से जोड़ती है. यही वजह है कि हम उलझनों में उलझते हैं ;फँसते हैं और चाहकर भी हम खुद को कभी नहीं देख पाते. देखते हैं तो बस बाहरी दुनिया को, बाहर की बुराइयों को, अच्छाइयों को, सब को, पर खुद से दूर हो जाते हैं. ये आँखों का सफर बाहरी दुनिया के लिए है. पूरी जिंदगी बीत जाती है लोग तमाम अटकलें लगाते हैं हमारे स्वाभाव को लेकर, पर सच तो ये है शरीर के इस पिंजरे में हम अपनी आत्मा से कभी रूबरू ही नहीं हो पाते. यही वजह है कि सिर्फ मन्दिर में ही नहीं,हम जब भी अपने ईष्ट को याद करते है तो आँखे स्वतः बंद हो जाती है. ध्यान की मुद्रा में हमने बुद्ध को देखा है न जाने कितने ऋषि, मुनि, तपस्वी सभी आँखे बन्द कर ध्यान लगाते हैं. मतलब एक ऐसा सफर, जो मन से अन्तर्मन तक जाती है. आत्मा, परमात्मा से मिल जाती है. हालाँकि विरले ही हैं जो इस सफर से अपने मुकाम तक पहुँचे, क्योंकि सोच हर कोई लेता है ;पर लग्न सच्ची हो तभी सफलता मिलती है.

आज हमारे नायक में अपनी सफलता की कहानी लेकर आये हैं बेमेतरा जिले के बावा मोहतरा स्कूल से एक होनहार बच्चा दुर्गेश जी, जो कि कक्षा आठवीं का विद्यार्थी है. सच कहूँ तो आज मेरी कलम धन्य हुई इस प्यारे से बच्चे के बारे में लिखने का अवसर मिला. दुर्गेश जी से बातचीत के दौरान कहीं से भी नहीं लगा कि वो अपनी आँखों से दुनिया को नहीं देख पाते. इतने सारे बच्चों से मेरी बात हुई पर दुर्गेश जी सबसे अलग, आत्मविश्वास से भरपूर. हिंदी उनका मन पसंद विषय है. देवांगन मैडम इनकी प्रिय शिक्षिका है, जो हर तरह से दुर्गेश की पढ़ाई में मदद करती है. दुर्गेश की अपनी मित्र मंडली है.

समावेशी शिक्षा के अंतर्गत बेमेतरा में BRP(द्वारा CWSN) द्वारा स्कूल सपोर्ट किया जाता है. दुर्गेश को स्कूल सपोर्ट के तहत ब्रेल स्लेट एवं स्टाइलस (ब्रेल शिक्षण सामाग्री) द्वारा 6 बिंदुओं से बनने वाले अक्षरों का अभ्यास कराया गया. दुर्गेश को घर से पालकों का व स्कूल में शिक्षकों का भरपूर सहयोग मिलता है. ब्रेल लिपि का परिचय शिक्षक व पालकों को भी कराया गया ताकि दुर्गेश को जरूरत पढ़ने पर घर से भी मदद मिले. हिंदी, अंग्रेजी, गणित के नम्बरों को याद करवाना,तथा ब्रेल अंकों का अभ्यास पढ़कर, लिखकर सिखाया जाता है.

चुनौतियाँ बड़ी तो होती है, पर अटल इरादों के सामने वो स्वमेव बौनी हो जाती है. यही वजह है कि कुछ कठिन अक्षरों का उच्चारण करने, लिखने में समस्या आती है तो दुर्गेश जी उसका लिखकर अभ्यास करते है. शिक्षण कार्य व दैनिक कार्य में उसकी रुचि का ध्यान भी रखते हुए बौद्धिक क्षमता के विकास पर ध्यान दिया जाता है. दुर्गेश जी बहुत मेहनती है. वे प्रतिदिन पढ़ने लिखने का अभ्यास करते है. बी.आर.पी. श्रीमती रजनी देवांगन मैडम का स्नेह और सीख की मदद से दुर्गेश जी बहुत मन लगाकर पढ़ाई कर रहे हैं.

दुर्गेश जी से बात कर यही लगा कि आँखे हो या न हो सपने होना जरूरी, सपने देखना जरूरी है,और उन मजबूत इरादों का होना भी जरूरी है जो भीड़ से हमें अलग पहचान दे.

अपने घर का सबसे छोटा बच्चा व लाडला दुर्गेश जी है. एक इच्छाशक्ति मैंने महसूस किया दुर्गेश जी के अंदर, गजब का आत्मविश्वास व मजबूत इरादें! ये सब गुण है इनके अंदर, जो उनकी अपनी मेहनत के हैं. ये गुण अगर किसी के अंदर हो तो वो अजेय होता है. हम सब माध्यम ही तो बनते हैं, पर ऐसे बच्चे अपनी कलम से अपनी तकदीर स्वयं लिखते है. सच कहूँ तो वो देश वो राज्य और वो शहर किस्मतवाला है जहाँ ऐसे होनहार हो, जो किसी फिल्मी हीरो को नहीं बल्कि भारत के वीर सपूतों को अपना आदर्श माने व उनसे प्रभावित हो.

'पढ़ई तुंहर दुआर'हमारे शिक्षा विभाग की इस योजना के तहत बच्चों को पढ़ाई से जोड़े रखने के लिए बहुत अच्छे- अच्छे कार्य किये जा रहे हैं. बच्चों के साथ शिक्षकों के लिए भी एक वरदान की तरह है. क्या कभी किसी ने कल्पना की थी कि एक दिन उन्हें हमारे नायक के रूप में पढ़ा जाएगा. वो जो बिना किसी प्रतिस्पर्धा के, सिर्फ अपने कर्तव्यों को निभा रहे है. सच कहूँ तो ये उन सभी के अच्छे व परमार्थ का फल है कि दुर्गम इलाकों से भी हमारे नायक आ रहे हैं. छत्तीसगढ़ का ऐसा कोई प्रान्त नहीं जहाँ आज ये शिक्षा की ज्योत प्रज्जलवित न हो रही हो इस कोरोना काल में. हमें किसी अन्य के उदाहरण लेने की जरूरत नही. दुर्गेश जैसे विद्यार्थी एक मिशाल है जो अपनी लगन व दृढ़इच्छाशक्ति से पढ़ रहे है. यूँ तो लक्ष्य की तलाश करते तक, इंटर तक पढ़ जाते है पर दुर्गेश जी का लक्ष्य भी निर्धारित है. बातचीत के दौरान जब दुर्गेश जी ने कहा! 'मैं कलेक्टर बनना चाहता हूँ.' ये सुनकर बस दिल से दुआ निकली और मैंने शुभकामनाएं दी. सच कहूँ, तो उस आत्मविश्वास भरी बात में ;वो मजबूत इरादें की झलक देखी है. यकीनन एक बेहतरीन मुकाम तक दुर्गेश जी पहुँचेंगे.

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