कहानियाँ

इस बार होली में

रचनाकार- टीकेश्वर सिन्हा 'गब्दीवाला'

होली की पूरी तैयारी हो चुकी थी. पापा बच्चों के लिए रंग-गुलाल पिचकारी सभी कुछ ले आये थे. शिखा पिचकारी पाकर बहुत खुश थी. उसे होली का बेसब्री से इंतजार था; लेकिन शिखर को बोतलनुमा पिचकारी पसंद नहीं थी. उसने सोचा, क्यों न मैं बाँस की पिचकारी बना लूँ; और वह एक बाँस के टुकड़े को पिचकारी रूप देने में लग गया.

इधर शिखा ने देखा कि नल में पानी आने लगा है तो वह नहाने चली गई. पर उसने देखा कि नल में से पानी बहुत कम आ रहा है. उसे लगा कि टोंटी में कुछ फँसा हुआ है. मम्मी को बुलाया फिर दोनों ने कोशिश की और टोंटी से कुछ पॉलीथिन के टुकड़े निकाले तब नल से पानी अच्छी तरह आने लगा. अब तक शिखर की पिचकारी भी बनकर तैयार हो गयी. उसे भूख लगी थी.

खाना बनने में अभी थोड़ी देर थी तो उसने पापा के लाए फल खाने की सोची.पर यह क्या? फल तो पॉलीथिन बैग में रखे रखे खराब हो चुके थे, उनसे दुर्गंध भी आ रही थी. उसने मम्मी को बताया तो मम्मी बोलीं कि पॉलीथिन में रखे रह जाने के कारण ही फल इतनी जल्दी खराब हो गये हैं. होली के दिन सुबह से ही पूरी कॉलोनीमें चहल-पहल शुरू हो गई थी. शिखर और शिखा अपनी-अपनी पिचकारी लेकर खूब मस्ती कर रहे थे.

इधर पापा के दोस्त भी होली पर बधाई देने घर आए हुए थे. ड्राइंगरूम में बैठे इधर-उधर की बातें चल रहीं थीं बातों बातों में पॉलीथिन के विषय पर चर्चा होने लगी. पापा के दोस्त बोले 'पॉलीथिन के उपयोग पर हमारी सरकार ने बैन लगा दिया है, जो पर्यावरण सुरक्षा की दृष्टि से बिल्कुल सही है.'

लेकिन शिखर और शिखा के पापा का कहना था कि पॉलीथिन रोज के कामों में बहुत उपयोगी है. इससे कई काम आसान हो जाते हैं.

पापा के दोस्त ने बताया कि पॉलीथिन ऐसा केमिकल प्रोडक्ट है जो पुराना होने या फटने पर भी न तो सड़ता-गलता है और जलाने पर जहरीली गैस बनाते हुए जलता है. कचरे के रूप में फेंकने पर इसका ढेर लग जाता है. इसमें फँसे खाद्य पदार्थों से दुर्गंध निकलती है जो वायुमंडल के लिए नुकसानदेह है. चारा ढूँढ़ते हमारे गाय बैल, भैंस इसे खा लेते हैं जिससे इनकी जान जोखिम में पड़ जाती है. पॉलीथिन पड़ी जगह पर घास तक नहीं उगती. जमीन बंजर हो जाती है. इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है.'

'हाँ...हाँ....अंकल, आप सही कह रहे हैं. बहुत ही बेकार चीज है ये पॉलीथिन', शिखा ने नल में पॉलीथिन फँसने और चीकू-केले के सड़ने वाली बात बताते हुए कहा. अब शिखर भी बोल पड़ा - 'और अंकल ! कल एक लड़की पॉलीथिन के पैकेट में तेल खरीदकर ले जा रही थी. पैकेट का मुँह ठीक से नहीं था, सारा तेल जमीन पर गिर गया. वो बेचारी रोने लगी.'

अब तो पापा को भी पॉलीथिन के नुकसान याद आने लगे, बोले 'अरे हाँ लेबर कॉलोनीमें बरसात के दिनों में नालियों में पॉलीथिन फँसने से पानी सड़कों पर आ जाता है. कई कच्चे मकान गिर जाते हैं. पॉलीथिन का यूज़ नहीं, बल्कि मिसयूज़ ज्यादा होता है.' अब तो सभी ने पॉलीथिन का उपयोग न करने पर जोर दिया. इस बार पॉलीथिन का उपयोग नहीं करते हुए पर्यावरण को बचाने का संकल्प होली का शुभ संदेश रहा.

चुलबुली

रचनाकार- द्रोपती साहू 'सरसिज'

चुलबुली बहुत प्यारी और सबकी लाडली.

सभी के साथ घुल-मिल जाती. कभी मम्मी के साथ रसोई में काम करने लगती. कभी कोई चीज़ धड़ाम..... से गिरा भी देती.

लेकिन प्यारी चुलबुली कहती-सॉरी मम्मी! मैं अभी सब ठीक कर देती हूँ.

मम्मी प्यार से समझाती-कोई बात नहीं बेटू, मैं कर लूँगी.

दिन भर यहाँ वहाँ डोलती रहती थी चुलबुली....

एक दिन की बात है कि चुलबुली देर तक सोई थी.

पापा ने बिस्तर के पास जाकर आवाज लगाई- चुलबुल, आज उठना नहीं है क्या?

चंचल चुलबुली कुछ सुस्त स्वर में बोली-आज मुझे अच्छा नहीं लग रहा है पापा.

पापा ने उसे गोद में उठाकर सोफे पर बिठाया. चुलबुली को बीमार देखकर घर के सभी लोग परेशान हो गए. डॉक्टर को बुलाया गया.

इसकी जीभ और आँखें को देकर तो लग रहा है कि इसे बहुत कमजोरी है. खाना ठीक से तो खाती है न? डॉक्टर ने पूछा.

चुलबुली की मम्मी ने उत्तर दिया कि- चुलबुली किसी भी सब्जी को ठीक से खाती ही नहीं, तो सब्जियों के पोषक तत्व इसके शरीर को कैसे मिलेंगे?

डॉक्टर ने कहा-भई! सब्जियों में बहुत सारे गुण होते हैं. इसी से हमारा शरीर मजबूत बनता है. अब तो चुलबुली को इंजेक्शन और दवाइयाँ देनी पड़ेगी.

यह सुनकर चुलबुली बोली नहीं-नहीं डॉक्टर अंकल. मैं आज से ही सारी सब्जियाँ अच्छी तरह से खाऊँगी.और तंदूरूस्त बनूँगी.

तब से चुलबुली इंजेक्शन के डर से फल सब्जियाँ अच्छी तरह खाने लगी. धीरे-धीरे वह स्वस्थ हो गई.

मेहनत का फल

रचनाकार- डॉ. कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव

मोहिनी सरकारी विद्यालय में कक्षा 4 की विद्यार्थी थी. वह अपने भाई को प्राइवेट स्कूल जाते हुए देखती तो उसका मन भी भाई के साथ पढ़ने जाने का हुआ करता था.

एक दिन उसने अपने मन की बात अपनी मम्मी से कह दी. मम्मी बोली-'अगर तुझे स्कूल भेज दिया तो तेरी छोटी बहन की कौन देख रेख करेगा.? तेरा नाम सरकारी विद्यालय में तो लिखा है. तू सरकारी स्कूल जाया कर.

कुछ दिन बाद मोहिनी की सहेली ने बताया कि स्कूल में दो और शिक्षक आये है. अब स्कूल आया करो. नए हेडमास्टर ने अभिभावकों की एक मीटिंग बुलाई और कहा 'अब तक मैडम अकेले इस विद्यालय को देख रही थी लेकिन अब हम, राकेश जी और मैडम सहित तीन शिक्षक हो गए हैं. आप सभी अपने बच्चों को प्रतिदिन विद्यालय भेजिए. हम आपके बच्चों को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा देने की कोशिश करेगे और किसी ने कहा है कि कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती है या तो सीख मिलती है या जीत मिलती है.'

सभी अभिभावकों ने अपने बच्चों को भेजने का वादा किया.' अगले दिन उपस्थित फिर भी कम रही.

हेडमास्टर ने पिछले साल और वर्तमान साल के उपस्थिति रजिस्टर से ऐसे बच्चों की सूची बनाई जो इस सत्र और पिछले सत्र में कम आये है. सरला मैडम ने बताया 'सर, इस गाँव में मजदूर वर्ग ज्यादा हैं. परिवार के सभी सदस्य दिहाड़ी पर चले जाते हैं. छोटे बच्चों की यही बच्चे देखरेख करते हैं जो विद्यालय कम आते हैं.'

हेडमास्टर ने कहा 'हमे हर हाल में बच्चों की उपस्थिति बढ़ानी है.इसके लिए हमें व्यवस्था में परिवर्तन करना पड़ेगा.'

अगले दिन हेडमास्टर समय से आधे घंटे पहले ही विद्यालय आ गए और अनुपस्थित पाँच बच्चों के घर गए. उन्होंने कारण वही पाया जो मैडम ने बताया था. तब तक विद्यालय का समय हो गया था.सभी बच्चों को एक साथ एकत्रित करके कक्षा वार दौड़ करा दी. दौड़ होने तक सरला मैडम और राकेश भी आ गए. बच्चों को पुरुस्कार के रूप में प्रधानाध्यापक ने एक एक पेन दिया.सभी बच्चे बहुत खुश हुए. ठंड के दिनों में बच्चों को यह अभ्यास अच्छा लगा. नए सर के साथ बच्चों को अच्छा लग रहा था.

धीरे -धीरे अनुपस्थित रहने वाले बच्चों तक नए सर के क्रियाकलाप पहुँचने लगे. अब बच्चों की उपस्थिति धीरे धीरे बढ़ रही थी. मोहिनी का मन भी स्कूल जाने को करने लगा.

हेडमास्टर ने प्रतिदिन 5 बच्चों के घर जाना जारी रखा. इसी क्रम में मोहिनी के घर भी गए. मोहनी के माता पिता से हेडमास्टर ने कहा -'आपकी बच्ची स्कूल कम आती है.' उन्होंने मोहिनी को बुलाकर सामान्य ज्ञान के कुछ प्रश्न पूछे. सभी प्रश्नो के जबाब मोहिनी ने बिल्कुल सही दिए. हेडमास्टर ने कहा-'आपकी बच्ची तो बहुत होशियार है. पता चला है कि आपका बेटा प्राईवेट स्कूल जाता है. मैं यह वादा करता हूं कि अगर आप मोहिनी को स्कूल भेजते हैं तो मोहिनी अपने भाई से ज्यादा होशियार हो जाएगी,.' 'मोहिनी के पिता ने स्कूल भेजने की बात कही.

अब उपस्थित बढ़ रही थी.सातवाँ कालांश हैडमास्टर का था.उन्होंने सभी बच्चों को मैदान में आने को कहा. इस पर राकेश बोले 'सर,गणित की कक्षा मैदान में क्यों? 'हेडमास्टर ने कहा कि हर एक विषय को कहीं भी पढ़ाया जा सकता है.

अब हर दिन हेडमास्टर खेल खेल में पढ़ाने लगे.मोहिनी भी यदा कदा स्कूल आने लगी. हेडमास्टर ने अपने स्टाफ़ में चर्चा की-'अब बच्चो के उपस्थित ठीक चल रही है.अगर हमें और उपस्थित बढ़ानी है तो हर विषय मे रोचक क्रिया कलाप भी शामिल करने होंगे.' स्टाफ-ने कहा 'सर आपके क्रियाकलापों को देखकर हमारे अंदर भी ऊर्जा का संचार हो गया है.अब हम हर एक पाठ को क्रियाकलापों के द्वारा पढ़ाएंगे.'

हेडमास्टर--'वो तो ठीक है पर अभी भी कुछ बालिकाएं जैसे मोहिनी स्कूल कम आ रहीं है. ऐसा करते है कि इन बच्चों के माता पिता की एक मीटिंग बुलाते है.' अगले दिन मोहिनी सहित कई बच्चों के माता पिता स्कूल पहुँचे. हेडमास्टर ने मोहिनी के पिता से कहा आपने मोहिनी को रोज स्कूल भेजने का वादा किया था. मोहिनी की माँ --'सर, हम सब काम पर चले जाते है घर मे छोटे बच्चों की देखभाल तो यही करती है. फिर पढ़लिखकर ये क्या करेगी? ससुराल में चूल्हा चौका ही तो सँभालना है. '

हेडमास्टर--'अगर एक लडक़ी पढ़ती है. शिक्षित होती है तो पूरा समाज, पूरा परिवार शिक्षित होता है. अगर आपकी लड़की अनपढ़ रह जायेगी तो जीवन के हर राह पर कांटे है.'

सभी लोगों ने वायदा किया कि अब हम बच्चियों को स्कूल भेजेंगे.

अब स्कूल का माहौल बिल्कुल बदल गया था. प्राइवेट स्कूल जाने वाले बच्चे भी सरकारी स्कूल में आ चुके थे. मोहिनी, नंदनी, नव्या, नवरत्न, पीयूष और गोपी ने लर्निंग ऑउटकम परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त किये. पाँचवीं कक्षा पास करके मोहिनी ,नंदनी ,और भव्या ने जवाहर नवोदय स्कूल की प्रवेश परीक्षा में भी अच्छे अंक प्राप्त किये.हेडमास्टर को अपनी मेहनत का फल मिल चुका था.

मानवता का व्यवहार

रचनाकार- डॉ. कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव

आज हमारा देश स्वतंत्र है. इस स्वतंत्रता का श्रेय हमारे क्रांतिकारियों को जाता है. स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत 1857 में हुई थी. नानासाहब पेशवा, तात्या टोपे, मंगल पांडेय, बाबू कुँअर सिंह, रानी लक्ष्मी बाई और बेगम हजरत महल आदि अनेक क्रांतिकारियों ने स्वन्त्रता के संग्राम में अपने जीवन की आहुतियों दीं.

स्वतंत्रता संग्राम में सभी क्रांतिकारी तन मन धन से अपना योगदान दे रहे थे. स्वतंत्रता सेनानियों और लखनऊ के क्रांतिकारियों ने अँग्रेजों के लिए बढ़ी मुश्किलें पैदा कर दी थीं. बेगम हजरत महल के नेतृत्व में अनेक अँग्रेज सैनिको और अधिकारियों को बंदी बनाया जा चुका था.

आधी रात हो चुकी थी. बेगम जाग रही थीं. उनके मन मे कई योजनाएँ आ रही थी.तभी क्रांतिकारियों के सरदार दलपत सिंह ने प्रवेश किया. अभिवादन किया और बोले 'बेगम हुजूर की आज्ञा हो तो बंदी बनाये गए अँग्रेज़ सैनिको और अधिकारियों के हाथ पैर काट कर अंग्रेजो के शिविर में फेंक दूँ.'

बेगम हजरत महल बोली 'बिल्कुल नहीं, हम बन्दियों के साथ ऐसा व्यवहार नही करते जिससे मानवता तार तार हो जाए. कैदियों पर जुल्म करना हमारे हिदुस्तान की संस्कृति नही है. लड़ाई अपनी जगह है और वीरतापूर्वक लड़ी जायगी. बंदी सैनिको, अधिकारियों और महिलाओं के साथ मानवता का व्यवहार किया जाएगा.

दलपत सिंह अपने शिविर लौट गए.

मटुकनाथ की चोरी

रचनाकार- अनिता चन्द्राकर

नीरज को पक्षियों से बहुत ज्यादा लगाव था. वह हमेशा अपने पिताजी से घर में कोई भी पक्षी पालने की जिद करता रहता था, पर उनके पिताजी बिल्कुल इसके पक्ष में नहीं थे. एक बार नीरज बाजार से एक मुर्गा खरीदकर ले आया. मुर्गा दिखने में बहुत सुंदर और तंदुरुस्त था. नीरज ने उनका नाम रखा 'मटुकनाथ'. वह मटुकनाथ का पूरा ध्यान रखता था. खाने पीने की कोई कमी नहीं होने देता था. कुत्ते बिल्ली से भी उसे बचाकर रखता था. एक दिन उनके माता पिता किसी काम से बाहर गए. वे मटुकनाथ और घर की देखरेख की जिम्मेदारी नीरज को सौंप कर गए. नीरज घर के कामकाज में लग गया और उसका ध्यान कुछ देर के लिए मटुकनाथ से हट गया. अचानक मटुकनाथ का ख़्याल आते ही वह ,घर के पीछे के आँगन में गया. आँगन में मटुकनाथ को न पाकर वह बहुत चिंतित हो गया,इधर उधर खोजने पर भी मटुकनाथ नहीं मिला.नीरज की आँखों से आँसू बहने लगे.अपने दोस्तों को उसने सारी बात बताई. सभी दोस्त मटुकनाथ को ढूँढनें की योजना बनाकर आस पास के घरों में गए. किसी भी घर में मटुकनाथ नहीं मिला. बच्चों को याद आया कि वे लोग तो छक्कन चाचा के यहाँ जाना ही भूल गए. सारे बच्चे छक्कन चाचा के घर में घुस गए. उनको देखते ही छक्कन चाचा चिल्लाने लगे, ' अरे तुम्हारा मुर्गा मेरे घर में नहीं है, क्यों अंदर जा रहे हो तुम लोग?' ये सुनकर बच्चों का शक यकीन में बदल गया.वे बोले, 'चाचाजी हमने तो आपसे मुर्गे के बारे में पूछा ही नहीं फिर आपको कैसे पता?' सभी बच्चे भीतर जाकर सारे कमरे छान मारे,भीतर बहुत अँधेरा था.तभी ' कुकड़ूँ कूँ ' की आवाज आई. आवाज सुनकर बच्चे उधर ही भागे. एक बड़ी सी टोकरी के अंदर, छक्कन चाचा ने मटुकनाथ को छुपा दिया था. टोकरी हटाकर नीरज ने उसे गोद में उठा लिया. वह मटुकनाथ को पाकर बहुत खुश हुआ. बच्चे मटुकनाथ को लेकर बाहर आये और छक्कन चाचा से बोले, ' चाचाजी कभी भी झूठ नहीं बोलना चाहिए.' फिर सभी बच्चे मटुकनाथ को लेकर नीरज के घर आ गए.

रंगबिरंगी होली

रचनाकार- डॉ. मंजरी शुक्ला

घर में हड़कंप बचा हुआ था. आठ बरस की नन्ही मुस्कान आगे-आगे भाग रही थी और दादा-दादी मम्मी-पापा उसके पीछे-पीछे. आखिर दादी हाँफते हुए बोली-'रूक जा बेटा, क्या मेरा घुटना तुड़वाकर ही मानेगी?'

मुस्कान खिलखिलाकर हँस दी और ठुमकते हुए बोली-'दादी आप सब मेरे पीछे क्यों पड़े हो? मैं होली नहीं खेलूँगी.'

'अरे बिटिया, होली मत खेलना पर कम से कम अपनी नई फ्रॉक तो बदल ले. अभी तेरे दोस्त आएँगे और तुझे रंग से सराबोर कर देंगे.'

'पर….ये तो मेरी पसंदीदा गुलाबी फ्रॉक है..' मुस्कान बोली.

माँ थोड़े गुस्से से पिताजी की ओर देखते हुए बोली-'मैं पहले ही आपसे कह रही थी कि इतनी सुंदर फ्रॉक आज होली के दिन इसे सुबह-सुबह मत पहनाइये, वरना ये बदलेगी ही नहीं.'

दादा जी अपना चश्मा ठीक करते हुए बोले-'अरे हम अपनी रानी गुड़िया को और अच्छी फ्रॉक दिलवाएँगे.'

मुस्कान ने दादाजी की ओर देखकर पूछा-'पक्का दिलवाओगे ना आप?'

'हाँ..बिलकुल पक्का.' दादाजी ने प्यार से कहा.

'ठीक है' कहते हुए मुस्कान ने मम्मी की तरफ़ अपने नन्हे हाथ फैला दिए मम्मी ने उसे प्यार से गोद में उठाया और कमरे में चली गई.

थोड़ी देर बाद मुस्कान अपनी पुरानी फ्रॉक पहने तैयार थी, जिस पर पहले से ही थोड़ा-थोड़ा रंग लगा हुआ था. मुस्कान ने देखा कि दादाजी ने दादी के चेहरे पर पीला और गुलाबी गुलाल लगाया और दादी दादाजी के माथे पर हरे गुलाल से तिलक कर रही थी. मुस्कान को ये देखकर बहुत अच्छा लगा. उसका मन हुआ कि वो भी मुट्ठी भर गुलाल लेकर सबके ऊपर उड़ा दे, पर सब उसको देखकर भी अनदेखा कर रहे थे.

मुस्कान से अब रूका नहीं जा रहा था इसलिए वो दादाजी के पास जाकर बोली-'मुझे रंगों से डर लगता है. मैं होली नहीं खेलूँगी और मैं पक्का बता दे रही हूँ अगर किसी ने भी मुझ पर रंग डालने की कोशिश की तो मैं सबसे कट्टी हो जाऊँगी.”

'नहीं, नहीं..हममें से कोई भी तुम्हें रंग नहीं लगाएगा' कहते हुए मम्मी मुस्कुरा दीं.

मुस्कान ने सोचा था कि मम्मी उसकी मान मनव्वल करेंगी, प्यार से दुलारेंगी और जबरदस्ती उसके मुँह पर ढेर सारा रंग पोत देंगी, पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.

मुस्कान ने मम्मी की तरफ देखा जो पापा के साथ गुलाल की थाली सजा रही थी. मुस्कान चुपचाप जाकर खिड़की के पास खड़ी हो गई थोड़ी देर बाद बाहर से बच्चों की आवाज़ें आनी शुरु हो गई. मुस्कान से रहा नहीं गया. उसने धीरे से खिड़की खोली और देखा कि उसके दोस्त पूरी तरह हरे, गुलाबी, नीले, पीले रंग में रँगे हुए थे. वे सब खूब मस्ती कर रहे थे और एक दूसरे पर पिचकारी से रंग डाल रहे थे.

मुस्कान खुशी से चिल्लाई-'अरे मम्मी देखो जरा निक्की को, कैसे घूम घूम कर सब के बालों में सूखा रंग डाल रही है!'

मुस्कान की बात सुनकर मम्मी वहाँ आई और रंग बिरंगे बच्चों की देखकर मुस्कुरा उठी.

मुस्कान अपनी ही धुन में चहकते हुए बोली-' और जरा बबलू को तो देखो, वो तो पूरा फव्वारे के पानी में डूब गया है. ओह, वे सब कितने मजे से छप-छप कर रहे है न?'

मम्मी ने मुस्कान को देखा और कहा-'पर तुम बाहर बिलकुल मत जाना. तुम्हें तो रंग पसंद ही नहीं है ना '

मुस्कान जैसे नींद से जागी और धीरे से बोली-' हाँ..मुझे भला रंग क्यों पसंद हो? मुझे तो रंग बिल्कुल भी पसंद नहीं है.'

मुस्कान अब बिलकुल चुपचाप खड़ी हो गई. तभी उसके दोस्तों ने नाचना शुरु कर दिया

'अरे, ये गाने की आवाज कहाँ से आ रही हैं?” सोचते हुए मुस्कान ने झाँककर देखा.

'वाह...इन सबको को तो कितना मजा आ रहा है. रंग-बिरंगे पानी में कितनी मस्ती से झूम झूम कर नाच रहे हैं. मैंने ही जिद पकड़ रखी है कि होली नहीं खेलूँगी अब क्या करूँ ...कैसे जाऊँ बाहर' मुस्कान ने सोचा

तभी पापा के हँसने की आवाज़ आई उसने पलटकर देखा तो दादा दादी मम्मी पापा सब एक दूसरे को गुलाल लगाकर होली की बधाइयाँ दे रहे थे.

उसे याद आया कि पिछले साल मम्मी ने प्यार से उसके गाल पर लाल रंग लगा दिया था तो वह चीख चीख कर रोई थी. उसके सभी दोस्त उसे कितनी देर तक मनाते रहे पर उसने उन्हें भी दरवाजे से ही लौटा दिया था. गोलू तो खिड़की के पास आकर बोला था-'आजा मुस्कान, होली खेलने में बहुत मजा आएगा” पर मुस्कान ने गुस्से में खिड़की बंद कर दी थी.

आज होली के दिन उसे एक भी दोस्त बुलाने नहीं आया और ना ही उसकी मम्मी ने उसे रंग लगाया. मुस्कान के आँखों में आँसूं आ गए. उसने सोचा अब गलती उसकी है तो माफी तो मांगनी ही पड़ेगी. आँसूं पोंछते हुए मुस्कान ने गुलाल की प्लेट उसमें से एक चुटकी गुलाल उठाया और दादाजी के गालों पर लगा दिया. दादा जी ने उसे प्यार से गले लगा लिया. बस फ़िर क्या था मम्मी-पापा दादी सबने मुस्कान को गुलाल लगाया और मिठाई खिलाई.

'मम्मी आपने मुझे माफ़ कर दिया ना..' मुस्कान ने धीरे से कहा

'मेरी इतनी प्यारी गोल मटोल मुस्कान से भला कोई नाराज भी हो सकता है क्या? मम्मी ने हँसते हुए कहा.मुस्कान ने तुरंत पूछा-'तो क्या मेरे दोस्त भी मुझे माफ़ कर देंगे?'

'हाँ, क्यों नहीं करेंगे भला.. ये लो अपनी पिचकारी' कहते हुए पापा ने एक खूबसूरत पीले रंग की पिचकारी मुस्कान को थमा दी और साथ ही रंगों से भरे कुछ पैकेट भी

मम्मी बोली-'जाओ, अपने दोस्तों के साथ जाकर होली खेलो'

'सच ...पर पहले दरवाज़ा तो खोलो' मुस्कान ने कहा.

पापा ने हँसते हुए दरवाज़ा खोला और मुस्कान हवा की गति से बाहर फ़व्वारे के पास पहुंच गई. सभी रंगे पुते चेहरों में मुस्कान साफ-सुथरी खड़ी हुई थी. उसने गोलू को देखकर कहा-'मुझे कुछ कहना है.'

'मैं समझ गया.' मुस्कान की आँखों में तैरते आँसुओं ने जैसे सब कुछ बता दिया था

'कुछ मत कहो.. पहले तो ये तो लो.' कहते हुए गोलू ने उस पर रंगों से भरी पिचकारी छोड़ दी.

बस फ़िर क्या था, सभी दोस्त उनके आसपास आ गए और उस पर रंगों की बौछार करने लगे. हमेशा रंगों को नापसंद करने वाली मुस्कान को आज रंग भले लग रहे थे बहुत भले..

कोई छोटा नहीं होता

रचनाकार- बलदाऊ राम साहू

चिंटू चूहा पास के आम वृक्ष के नीचे खेल रहा था. साथ में उसके दोस्त मिंटू और बिट्टू भी थे. वे सभी अपने खेल में ऐसे मग्न थे कि उन्हें आसपास क्या हो रहा है, पता ही नहीं था. बहुत समय बीत जाने के बाद चिंटू ने देखा कि पास में ही पिंटी गिलहरी चित्रकारी कर रही है. वह चित्र बना रही है. पिंटी के हाथ में रंग-ब्रश देखकर चिंटू को हँसी आ गई.

चिंटू ने हँसते हुए कहा, 'पिंटी चित्रकार को चिंटू चूहे का प्रणाम. हम आपके दर्शन पाकर धन्य हुए.'पिंटी को चिंटू का इस प्रकार उपहास करना अच्छा नहीं लगा. लेकिन उसकी बातों पर बिना ध्यान दिए वह अपने काम में लगी रही. जब पिंटी ने किसी प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की तब चिंटू ने फिर कहा, 'हमारा भी एक चित्र बना दो, चित्रकार मैडम.' और फिर हँसने लगा.

पिंटी कुछ कहे बिना चिंटू का राक्षस नुमा चित्र बनाकर रख दी. चिंटू अपना चित्र देखकर खूब नाराज हुआ. वह पिंटी से लड़ने लगा. चिंटू की जोर-जोर की आवाज़ को सुनकर मिंटू और बिट्टू भी आ गए.

उन्होंने चिंटू से उसके नाराज होने का कारण पूछा तो चिंटू ने पिंटी द्वारा बनाया अपना चित्र दिखा दिया. चिंटू का चित्र देख कर उन्हें भी हँसी आ गई.

बिट्टू ने मजाकिये लहजे में कहा, 'अरे, यह तो तुम्हारे ही तरह ही दिख रहा है, किसने बनाया? '

बिट्टू का इस तरह कहना तो आग में घी डालने का काम किया. वह तो और अधिक आग बबूला हो गया. बिट्टू को भी अनाप-शनाप कहने लगा. बात को बिगड़ते देखकर मिंटू ने कहा, 'अरे भाई, इस तरह चिल्लाते रहोगे कि कुछ बतलाओगे भी. तुम कुछ बतलाओगे तो हम समझें.'

चिंटू ने पिंटी के तरफ इशारा करते हुए कहा, 'मैंने इससे मेरा चित्र बनाने के लिए कहा तो इसने मेरा यह चित्र बना दिया, बिल्कुल राक्षस की तरह.'

मिंटू ने कहा, 'फिर तो यह गलत है भाई, पिंटी को ऐसा मजाक नहीं करना चाहिए.'

तब पिंटी ने कहा, भाई, मेरी भी बात सुन लो. मैं तो किसी से कुछ कहे-बोले बिना अपना काम कर रही थी. यह आकर मुझे ताने देने लगा और कहा, 'पिंटी चित्रकार को चिंटू चूहे का प्रणाम. हम आपके दर्शन पाकर धन्य हुए. और इस प्रकार उपहास करते हुए अपना चित्र बनाने के लिए कहा तो मैंने भी इसका यह चित्र बना दिया. आज तक इसने किसी से प्रेम पूर्वक व्यवहार किया है क्या? हर किसी को चिढ़ाना ही इसका काम रहा है. ये पहले अपनी आदत तो सुधारे.'पिंटी की बात में दम था. वास्तव में चिंटू हर किसी का मजाक बनाता रहता था. जब पिंटी ने अपनी पूरी बात रखी तो उन्हें मामला समझ में आया कि इसके लिए चिंटू ही जिम्मेदार है.

मिंटू ने भी पिंटी का पक्ष लेते हुए कहा, 'फिर तो पिंटी ने ठीक किया है चिंटू भाई. हम भले ही तुम्हारे दोस्त हैं लेकिन तुम्हें मानना होगा, तुम्हारा व्यवहार उचित नहीं था. हरदम किसी का मजाक नहीं बनाना चाहिए.फिर तुम्हारी इस तरह बहुत शिकायत है.'

चिंटू ने कहा, ' अब तो तुम लोग मुझे ही दोषी ठहराने लगे. क्या कोई कभी मेरा मजाक नहीं उड़ाता है? मैंने तो कभी किसी से कुछ नहीं कहा.'

बात कल की नहीं है बात आज की है. आज तो तुमने गलती की है और गलती की है तो मानने में क्या हर्ज़ है.

चिंटू को भी अपनी गलती का अहसास होने लगा. वह बहुत देर तक सिर झुकाए खड़े रहा.

बिट्टू अब तक सबकी बातें चुपचाप सुन रहा था. चिंटू को सिर झुकाए देखकर उसने कहा, 'चिंटू इस तरह सिर झुकाए खड़े रहने से कुछ नहीं होता. तुम्हें अपनी गलती का अहसास है तो पिंटी को साॅरी बोलो और बात यहीं समाप्त करो. अपनी गलती मान लेने से कोई छोटा नहीं हो जाता.'

चिंटू ने बिट्टू की बात मान ली और पिंटी को साॅरी कहा तथा भविष्य में अपनी गलती न दोहराने की शपथ ली. अब सभी खुश थे. पिंटी झट से चिंटू का एक सुंदर चित्र बनाकर दे दी.

मेरा गाँव

रचनाकार- शालिनी पंकज दुबे

मेरा गाँव कब बसा यह तो पता नही पर अक्सर सब कहते हैं कि 'पहले तो ये स्थान पूरा जंगल था शेर, भालु, चीते, सियार आदि जंगली जानवर भी रहते थे. धीरे-धीरे बसाहट थोड़ी सघन हुई लोग घर बनाकर रहने लगे. मुझे अच्छे से याद नही पर बड़े, बुजुर्ग अक्सर अतीत की स्मृतियों से कुछ खजाने निकालकर अक्सर हम बच्चों को दे देते.

भूत प्रेत के कुछ किस्से भी सुन रखे हैं, पर डर वाली कोई बात नही, क्योंकि भूत-प्रेत की बातें हमारे लिए सिर्फ मजेदार किस्से हुआ करते थे.

गाँव की कुछ धुंधली सी यादें हैं. कुछ विशेष अवसरों की, क्योंकि गाँव में रहना नही सिर्फ मेहमानी हमारे हिस्से में आई.

कितना कुछ होता है एक गाँव में नदी, खेत, तालाब, मन्दिर, बगीचा, खपरैल वाले घर, गोबर के कंडे से सजी दीवारें, घने पेड़, जंगल, मुर्गी के रंग-बिरंगे चूजे, बेलन, बैलगाड़ी और न जाने क्या-क्या?

बैलगाड़ी पर बैठना अद्भुत लगता था. पैरावट पर खेलना, छुपना व फिसलपट्टी की तरह फिसलना, पतली पगडंडिया, खेलते बच्चे, माँ धरती की गोद मे लोटते बच्चे, प्रकृति का खूबसूरत नजारा सब गाँव में ही तो है. जंगल से उठते धुएँ से मन विचलित हो जाता और वृक्षों की कुशलता की कामना लिए आँखे स्वतः बंद हो जातीं. हल्की बारिश हुई नही की मिट्टी की सोंधी खुश्बू हवा में घुल जाती है. वो त्यौहार की सभी यादें होली, दशहरा, दीवाली सब गाँव के किस्सों की ही तो हैं. फाग गीत, जस गीत से परिचय भी गाँव में ही हुआ था. रिश्ते इतने पक्के की कौन किसका सगा है पहचानना मुश्किल होता है. सटे हुए घरों की तरहः सब एक दूसरे के करीब हुआ करते.

बहुत कुछ है, गाँव की यादों में जो जेहन में अमर है.

मूर्ख कौवा

रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा

कौवे के मुँह में रोटी देखकर, सियार के मुँह में पानी आ गया. वह सोचने लगा कि किस तरह कौवे से यह रोटी हथियाई जाए. कौवे की तारीफ़ करके उसे गाने के लिए प्रोत्साहित करके वह रोटी नहीं पा सकता था. क्योंकि कौवा सियार का ये हथकंडा खूब समझता था. तब सियार ने एक नई तरकीब सोची और वह चल पड़ा कौवे के पास.

जुबान में मिश्री घोलते हुए सियार ने कौवे से कहा- 'क्या तुम्हे पता है कि मेरे पास एक जादुई थाली है जिसमे मै किसी रोटी खाते कौवे को कैद कर सकता हूँ.'

कौवा हँसा- 'तुम झूठ बोलते हो अगर यह बात सच है तो दिखाओ वह जादुई थाल.'

सियार ने दर्पण निकाल कर झटपट कौवे को दिखाया. कौवा दर्पण देख कर दंग रह गया. सचमुच उसे रोटी खाता कौआ दिखाई दिया. वह घबरा गया. सियार बोला-'कहो तो तुम्हे भी थाली में कैद कर दूँ.'

कौवे ने घबराहट में रोटी फेंकी और बहाँ से भाग खड़ा हुआ.

सियार अपनी नई तरकीब पर मुग्ध होता हुआ मजे से रोटी खाने लगा.

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