बालगीत

होली में

रचनाकार- आयुष सोनी

जब फ़ाग गीत गाए कोई,उस नन्दगाँव की बोली में
तब देख नज़ारा बनता है,भीगे रंगों की होली में

जब मन करता है नर्तन को जब पैर हिलोरे खाते है
तब यारो संग मिलकर, हम भी बच्चे बन जाते है

जब मठरी-गुझिया और बर्फी खूब खिलाई जाते है
जब चौक-चौक पर ठंडाई, खूब पिलाई जाती है

ढोल,मंजीरे, बाजों में जब कोई नाचे मस्ती में
जब कोई टोली बच्चों की शोर मचाये बस्ती में

ये देश मेरा जब झूमेगा इन रंगों को रंगोली में
तब देख नज़ारा बनता है, भीगे रंगों की होली में

हुड़दंग करें

रचनाकार- प्रमोद सोनवानी 'पुष्प'

होली का त्यौहार है आया,
मिलकर हम हुड़दंग करें.
बेरंग है जिनका भी जीवन,
उस जीवन में रंग भरें..

अपने नन्हें से जीवन में,
भरे ख़ुशी का दौर हो.
कभी दुःख को जाने न हम,
सदा सुख का भोर हो..

चलो चलें हम छोटी को भी.
रंग लगाकर तंग करें..

दौड़ लगाकर उछले-कूदें,
जमकर शोर मचायें.
झूला डालें बगिया में हम,
झूल - झूल मौज मनायें..

बगिया में है जो सन्नाटा.
आज उसे हम भंग करें..

गुलाब

रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू'

डाल डाल पर लगी हुई थी.
सुंदर-सी गुलाब की कली..
खुशबू चारों ओर बिखेरती.
गुलाब की नन्ही-सी कली..

तितली उसके पास है आती.
नन्ही कली पर बैठ जाती..
रस उसका संग लेकर.
पेट अपना भरती..

फूलों पर बैठ तितली.
मन की बात बताती..
नन्ही कली को दोस्त बना.
आसमान में उड़ जाती..

चिड़िया पीले पंखों वाली

रचनाकार- राजेन्द्र श्रीवास्तव, विदिशा म.प्र

चिड़िया पीले पंखों वाली
आँखें छोटी भूरी-काली
देखे जब अंगूर गुलाबी
गुम हो गई अक्ल की चाबी

काले, हरे, पके-से पीले
खाए मीठे और रसीले
लेकिन ऐसे कभी न खाए
पहली बार नजर यह आए

बार-बार देखे ललचाए
बेचारी कुछ समझ न पाए
क्या वह इनको खा पाएगी!
या बिन खाए उड़ जाएगी?

नई किताबें

रचनाकार- डॉ. सतीश चन्द्र भगत,

रंग-बिरंगी चित्रों वाली,
छपकर आयी नई किताबें.

देखो लल्लू उलट - पलटकर,
कविता वाली नई किताबें.

लाल टमाटर, जामुन काला,
चित्रों वाली नई किताबें.

हंसी- ठहाके खेल- खेल में,
हंसने वाली नई किताबें.

पढ़- लिखकर खुश रहें हमेशा,
पढ़ने वाली नई किताबें.

चिंटू गया बाजार

रचनाकार- कन्या कुमारी पटेल

चिंटू गया बाज़ार, दादा के कंधे पे होके सवार.
चिंटू था खुश बड़ा, सोचा खाऊंगा समोसा बड़ा.
पहुंच गया होटल के पास, दादा जी को लेकर साथ.
होटल में था समोसा, भजिया, जलेबी, बड़ा.
रसगुल्ला, आलू गुंडा, चिंटू देख रहा था खड़ा.
समोसा बोला खा लो मुझको.
मैं तो बहुत नमकीन हूँ, तेल में छनकर निकला हूँ
मैं बड़ा स्वादिष्ट हूँ.
चिंटू हुआ खाने को तैयार, तभी सुना कुछ और आवाज.
पास में था फलों का ठेला, ताजा-ताजा फलों का रेला.
बोल रहे थे देखो भाई, हम तो हैं विटामिनों का मेला.
फिर क्यों खाते हैं सब तेलों का सामान छना.
जो पहुंचाता है शरीर को नुकसान सदा
फलों को जब तुम खाओगे, अपनी सेहत बनाओगे.
तब चिंटू ने बदला रास्ता, होटल छोड़ गया ठेले पर.
लेकर केला, सेब, संतरा, दादा के संग घर को चला.

तितली बड़ी सयानी है

रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा

तितली बड़ी सयानी है,
फूलों की दीवानी है.

खुश होती तो इठलाती,
बगिया की वो रानी है.

उसके पंख सुहाने से,
रंगों भरी कहानी हैं.

लड़ती नहीं कभी भी वह,
सीधी सरल सुहानी है.

सारे बच्चों की उससे,
लगता प्रीत पुरानी है.

फूलों के पीछे छुपती,
चतुराई की नानी है.

सज धज के जब भी आती,
कौन कहे अनजानी है.

धूप

रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र

लगती प्यारी-प्यारी धूप.
खिली-खिली-सी न्यारी धूप.

पहनो दस ऊनी कपड़े.
दूर करो सर्दी के लफड़े.
काँप रहा तन थर-थर-थर.
कोड़ा मारे शीतलहर.

बिछी हुई स्वर्णिम आभा.
सरसों की है क्यारी धूप.

जाग सुबह, मुस्काती है.
झट छत पर चढ़ जाती है.
कोहरा - धुंध हटाती है.
आँगन में इठलाती है.

हँसकर गर्माहट देती.
मार रही किलकारी धूप.

बर्फ पहाड़ों पर बरसे.
सूरज आने को तरसे.
बादल लुका-छिपी खेलें.
ठिठुरन महाशीत झेलें.

पशु - पक्षी भी मग्न हो गए.
पाकर बड़ी दुलारी धूप.
लगती प्यारी-प्यारी धूप.

कोयल

रचनाकार- श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'

कोयल काली होती लेकिन, मधु रस घोलें बोल.
उसकी मधुमय वाणी समझो, सचमुच है अनमोल.

जब-जब मधु रितु है आती तब-तब, कोयल है गाती.
अपनी मीठी वाणी से वह, दिल है जीत लेती.

मीठी वाणी की महिमा का, पाठ हमें समझाती.
जब भी बोलो मधुरस घोलो, बात यही बतलाती.

रंग रूप की नहीं सदा ही, गुण की होती पूजा.
कोयल जैसा मीठा बोले, और नहीं है दूजा.

हम भी यह संकल्प आज लें, मीठा ही बोलेंगे.
सुनने वालों के कानों में, मिसरी सी घोलेंगें.

आज के युग की नारी हूँ

रचनाकार- सुरेखा नवरत्न

उड़ चली हूँ नीलगगन में
कदम रख दिया मैंने चांद में,
मैं आज के युग की नारी हूँ
सर रख दूँ शेर की 'माँद' में.

मुट्ठी में है किस्मत मेरी
सीने में ज्वाला रखती हूँ,
अबला समझ के ना टकराना
हौसला बुलंद रखती हूँ,
मैं आज के युग की नारी हूँ.

संग-संग अपने कर सकती हूँ
हर प्राणी की रक्षा...,
मैं चाहूँ तो बदल के रख दूँ
जीवन का हर नक्शा,
सौ-सौ पर भी भारी हूँ
मैं आज के युग की नारी हूँ.

शून्य से साकार तक
दुनिया के विस्तार तक,
मेरा ही बजेगा डंका
मैं चाहूँ तो भस्म करा दूँ,

रावण की भी लंका.
मैं सीता संस्कारी और
क्रोध, कालिका अवतारी हूँ.
मैं आज के युग की नारी हूँ.

माँ

रचनाकार- योगेश राजवाड़े

माँ तेरी यही कहानी,
तेरी दया बड़ी निराली.
अपनी कोख की छाया में, बड़ा किया,
लोरी गाकर सपनों का, संसार दिया.

जग है सोया, तू है जागी,
फिर भी कभी न थकी -हारी.
सुख-दुख सब झेल जाती,
मुझ पर आँच न आने देती.

उंगली पकड़ चलना सिखाया,
सत मार्ग का राह दिखाया.
माँ तेरी यही कहानी,
तेरी दया बड़ी निराली.

करुणा पाकर जग इतराया,
माँ ये तेरी कैसी माया.
अपने हाथों से खिलाया,
समय पड़ा तो हल चलाया.

मिला है तुझको रब का दर्जा,
करते सब सम्मान
नारी शक्ति तू है 'माँ',
जग में बहुत महान..

वृक्षों का उपकार

रचनाकार- अनिता चन्द्राकर

स्वयं गरल पीकर, हमको देती शुद्ध हवाएँ.
इनकी शीतल छाया, हर तपते मन को भाये..

जड़ी -बूटी की खान, है जीवन के लिए वरदान.
पंछियों का बसेरा यहीं, वृक्ष होते सच में महान..

इनकी छाया सुखदायी, देते हमको ऑक्सीजन.
वर्षा से हरियाली आती, मेघों को देते निमंत्रण..

वृक्षों की न करो कटाई, हैं ये जीवन के आधार.
बंजर भूमि की जान वृक्ष, करते धरती के श्रृंगार..

ना भूले वृक्षों का उपकार, आओ करे वृक्षारोपण.
बाढ़-सूखे से हमें बचाती, दूर करते वायु प्रदूषण..

रानी चिड़िया

रचनाकार- बलदाऊ राम साहू

उड़-उड़ जाती रानी चिड़िया
चीं-चीं शोर मचाती चिड़िया
पास हमारे कभी न आती
लेकिन मन हर्षाती चिड़िया.

चुन-चुन दाना खाती चिड़िया
दूर-दूर तक जाती चिड़िया
लेकिन थोड़ी-सी आहट में
काहे को डर जाती चिड़िया?

अन्न देख ललचाती चिड़िया
खाकर खुश हो जाती चिड़िया
मिहनत कर के तिनके लाती
सुंदर नीड बनाती चिड़िया.

तिरंगा

रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू'

पूरे भारत देश में, उड़े तिरंगा आज.
रंग-बिरंगा आसमाँ, हमको तुम पर नाज..
हमको तुम पर नाज, गीत खुशियों के गाते.
धरा हमारी शान, साथ झंडा फहराते..
झूमे-नाचे लोग, खुशी बिन रहे अधूरे..
आता है जब पर्व, होत है सपने पूरे..

लिए तिरंगा हाथ में, फहराते सब साथ.
भारत माँ के सामने, सभी झुकाते माथ..
सभी झुकाते माथ, नमन वीरों को करते.
हुए देश पर बलिदान, दुश्मन से लड़ते..
देश हुआ आजाद, फूल की बहती गंगा.
भारत बने महान, फहरता आज तिरंगा..

बेटियाँ

रचनाकार- सीमांचल त्रिपाठी

आज बेटे संग बेटियाँ,
भी पढ़ने जा रही हैं.
मानो किसान के खेत में,
फसल लहलहा रही है..

आज के समय में हर कहीं,
कार्यस्थल में बेटियाँ खड़ी हैं.
लड़कों संग लड़कियों ने हर,
मुकाम हासिल कर लिया है..

कल जो बोझ कहलाती थीं,
हर क्षेत्र में आगे आ रही हैं.
तभी तो आज की लड़कियाँ,
घर व समाज को बदल रही हैं..

बेटियाँ दहलीज से गांव तलक,
अपने हाथों गाथा गढ़ रही हैं.
देश ही नहीं वे विदेश तलक,
अपनी शौर्य गाथा लिख रही हैं..

काला कौवा

रचनाकार- सोमेश देवांगन

सुनो मेरी बात लाला.
मैं हूँ कौवा काला..
प्यास से पड़ा पाला.
मुह में पड़ गया छाला..
इधर-उधर भटक रहा.
पानी के लिए तड़प रहा..
पास में घड़ा था पड़ा.
पानी था उसमें थोड़ा..
मेरा मन बड़ा घबराए.
पानी ऊपर कैसे आए..
पानी कैसे पिया जाए.
थोड़ा संघर्ष किया जाए..
कंकड़-कंकड़ डाला जाए.
पानी धीरे-धीरे ऊपर आए..
ठंडा पानी अब पिया जाए.
मन को शीतल किया जाए..
कविता हमको यह सिखलाए.
संघर्ष से फल मिलता जाए..

मंज़िल करीब है

रचनाकार- अनिता चन्द्राकर

थोड़ा और हौसला रख,
बढ़ा कदम लक्ष्य की ओर.
मंज़िल क़रीब है तुम्हारे,
सौगात लिए आएगी भोर..

न घबराना कड़ी धूप में भी,
स्वेद कण बनेंगे मोती.
संघर्ष के बाद जीवन में,
जगमगाएगी सुख ज्योति..

विश्वास-दीप जलाकर,
होंठों में रखना सदा मुस्कान.
मेहनत और साहस से,
मुश्किलें हो जाएंगी आसान..

नींद त्याग कर रातों की,
जो डटे रहते हैं कर्म पथ में.
ख़ुशियाँ उन्हीं के द्वार आती,
बैठ सफलता के रथ में.

होली

रचनाकार- सपना यदु

होली आई होली आई,
रंगों की बौछारें लाई.
उड़े गुलाल चले पिचकारी,
धमा चौकड़ी खूब मचाई.

फागुन पूर्णिमा दिवस में भाई,
देखो सब ये फाग है आई.
बसंत भी संग झूम रहे हैं,
टेसू के फूलों ने ली अंगड़ाई..

बच्चे हो जाते रंग-बिरंगी,
लाल,पीले, हरे, गुलाबी.
झूम -झूम कर नाच रहे हैं,
ठाठ है देखो इनके नवाबी..

ढोल बाजे, नगाड़ा बाजे.
सज-धज कर लोग डंडा नाचे..

गुजिया, बर्फी, पेड़े बनते,
बताशे की हार पहनते.
भूल कर सभी गिले- शिकवे
आपस में सब गले है मिलते..

हिन्दी बोलो

रचनाकार- स्व. महेन्द्र देवांगन 'माटी'

हिन्दी सीखो हिन्दी बोलो, हिन्दी में सब काम करो.
आगे बढ़ते जाये हम सब, भारत का तुम नाम करो..

हिन्दी में हैं बावन अक्षर,सब भाषा से न्यारी है.
मधुर सुहानी हिन्दी भाषा, हम सबको यह प्यारी है..

हिन्दी अपनी मातृभाषा है, इसका सब सम्मान करो.
आगे बढ़ते जाये हम सब, भारत का तुम नाम करो..

बन्दरों का शोर

रचनाकार- सोमेश देवांगन

हम बंदर जाए किस ओर.
चिल्ला चिल्ला कर रहे शोर..

लगाएंगे हम अब अपना जोर.
नहीं हैं हम कुदरत के चोर.

हमे हमारा घर -बार चाहिये.
हरा -भरा पेड़ बहार चाहिये..

फल फूल वाला पेड़ चाहिये.
हमे हमारा घर -बार चाहिये

घर लूट लिए जंगल के पेड़ से.
पेड़ काट लिए खेत के मेड़ से..


हम तो हो गए घर से बेघर.
जायें भी तो जायें हम किधर..

पेड़ काट करते अपनी मनमानी.
हम बन्दर कल बन जायँगे कहानी..

वीणा वादिनी वर दो माँ

रचनाकार- वृंदा पंचभाई

वीणा वादिनी वर दो माँ,
आलोकित जग कर दो माँ.

मन वीणा के तार छेड़ दो,
मुखरित यह जीवन कर दो माँ.

मेरे गीतों के हर स्वर में माँ,
नित तेरा ही आशीष रहे माँ.

तिमिर जग का दूर करो माँ,
जगमग यह जग कर दो माँ.

दुर्जन का संहार करो माँ,
सर्वत्र जग में शांति भरो माँ.

वीणा वादिनी वर दो माँ,
आलोकित जग कर दो माँ.

बर्फ

रचनाकार-डॉ.अखिलेश शर्मा

बिखरी पड़ी बर्फ की चादर
नैनाभिराम दृश्य चराचर
किरणें उसको चमकाती हैं
चाँदी सी फिर पसराती है.

देख उसे मन होता शीतल
भरा है उसके भीतर जल
धूप मचलकर नृत्य दिखाती

वसंत बहार हैं बच्चे

रचनाकार- प्रमोद दीक्षित मलय

जीवन का प्रमुदित प्यार हैं बच्चे.
उत्साह नवल सत्कार हैं बच्चे..

मधुरिम हास्य का उपहार बाँटत.
सरिता का कलरव, धार हैं बच्चे..

आँखों में शुभ इंद्रधनुष तैरते.
अम्बर अनंत विस्तार हैं बच्चे..

खुशियों का मकरंद नेह लुटाते.
मधुमास वसंत बहार हैं बच्चे..

मानव मूल्यों के सबल संवाहक.
शुभ संस्कृति के आधार हैं बच्चे..

हर दिवस उत्सव पावन बन जाता.
उल्लास, उमंग, उजियार हैं बच्चे..

जैसे कुँवर कन्हैया

रचनाकार- श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'

मेरे प्यारे भैया,
जैसे कुँवर कन्हैया.
मेरे भैया सो जा,
सपनों में तू खो जा.
नन्ही परियाँ आएँगी,
मीठे गीत सुनाएँगी.

दीदी तुझे सुलाती है,
मीठी लोरी गाती है.
परियाँ तुझे सजा कर के,
पंखों में बैठा कर के.
दूर देश ले जाएँगी,
नभ की सैर कराएँगी.

चंदा प्यारे तारे,
होंगे पास तुम्हारे.
उन्हें देख हर्षाना,
मुझको भूल न जाना.
दीदी तू तो भोली है,
करती सदा ठिठोली है.
यह तो एक कहानी है,
तू तो सचमुच रानी है.

बेटियाँ

रचनाकार- प्रतिभा त्रिपाठी

सुंदर-कोमल कली बेटियाँ,
होती अक्सर भली बेटियाँ.
मत बाँधो पैरों में बंधन,
अंतरिक्ष को चली बेटियाँ.

कितना मीठा मन रखती हैं,
ज्यों मिश्री की डली बेटियाँ.
हर बाधा सह जाती हैं,
संघर्षों में पली बेटियाँ॥

जीवन की अनमोल धरोहर,
घर की शान है बेटियाँ.
हर घर की लाज हैं बेटियाँ.
माँ-बाप का अरमान है बेटियाँ.

काँटों की राह पे चलकर,
फूल बोती हैं बेटियाँ.
सूरज है अगर बेटा,
तो चाँदनी हैं बेटियाँ..

शारदे वंदन

रचनाकार- स्व. महेंद्र देवांगन 'माटी'

चरण कमल में तेरे माता, अपना शीश झुकाते हैं.
ज्ञान और बुद्धि देने वाली, तेरे ही गुण गाते हैं..

श्वेत कमल में बैठी माता, कर में पुस्तक रखती.
राजा हो,या रंक सभी का, किस्मत तू ही लिखती..

वीणा की झंकार सुनकर, ताल कमल खिल जाते हैं.
बैठ पुष्प में तितली रानी, भौंरे गाना गाते हैं..

मधुर-मधुर मुस्कान बिखेरे, ज्ञान-बुद्धि तू देती है.
शब्द- शब्द में बसने वाली, सब कुमति हर लेती है..

मैं अज्ञानी बालक माता, शरण तुम्हारी आया हूँ.
झोली भर दे मेरी मैया, शब्द पुष्प मैं लाया हूँ..

आलू पराँठा

रचनाकार- अनिता तोमर 'अनुपमा'

गरम-गरम आलू पराँठा
चुन्नु भैया को है भाता,
ढेर सारा मक्खन लगाकर
चटपट-चटपट पूरा खा जाता.


माँ और दादी हुई परेशान
कुछ और ना खाए ये शैतान,
गोभी, मटर, पालक ना भाए
हरी सब्जियाँ कैसे खिलाएँ?


मिन्नी दीदी ने उसे बुलाया
प्यार से उसे खूब समझाया,
हरी सब्ज़ी जो बच्चे हैं खाते
हर बीमारी को वो दूर भगाते

बनाएँ रेल

रचनाकार- बलदाऊ राम साहू

मिलकर चलो बनाएँ रेल
बड़े मजे से खेलें खेल
नहीं करेंगे पेल - धकेल
छुक-छुक हम चलाएँ रेल.

दूर - दूर पहुँचाती रेल
मित्रों से मिलवाती रेल
कोक नहीं अब खाती रेत
धुआँ भी नहीं उड़ाती रेल.

शिक्षा

रचनाकार- रीता मंडल

जो ज्ञान का दीप फैलाता है.
वह तो शिक्षा है
जो दुर्गम को सरल बनाता हैं.........

जीवन में शिक्षा जरूरी है
जो हमें अधिकार का पाठ पढ़ाता है.
जो हमें कर्तव्यों का बोध कराता है
वह तो शिक्षा है
जो बुद्धिहीन को ज्ञानी बनाता है.........

जो हमें इंसानियत का पाठ पढ़ाता है,
भेदभाव,अंधविश्वास से हमें दूर ले जाता है.
अंधकार की दुनिया में जो ऊर्जा बनाता है
वो तो शिक्षा है
जो निरक्षर को साक्षर बनाता है..........

जान लो तुम यह बात,
जो अनपढ़ रह जाता है.
वो एक दिन पछताता है,
क्योंकि ज्ञान हमें जगाता है
शोषण से हमें बचाता है
वो तो शिक्षा हैं
जो बुद्धिहीन को ज्ञानी बनाता है........

बचपन बड़ा प्यारा होता है

रचनाकार- सुरेखा नवरत्न

बचपन बड़ा प्यारा होता है,
हर दिल का दुलारा होता है.

खेलकूद में बीत जाते हैं दिन
जाने कब रात हो जाती है,
दादी की कहानी सुनते.
नानी की जुबानी सुनते,
दादा के ऊंगली थामकर
पूरे गाँव का भ्रमण करते.
मित्रों के संग नाचते गाते
जाने कब बड़े हो जाते हैं
बचपन बड़ा प्यारा होता है,
हर दिल का दुलारा होता है.

दोस्तों के संग अमराई में
रामू काका के आम चुराते,
बेरियों के कंटीले झाड़ से.
खट्टे- खट्टे बेर है खाते,
खेत के पगडंडी से चलकर
स्कूल भी पढ़ने जाना है.
दोपहरी के धूप में जाकर,
चना चबेना भी खाना है.
दिन भर धमाचौकड़ी और,
जो रातभर चैन से सोता है
बचपन तो ऐसा ही होता है.

बचपन बड़ा प्यारा होता है,
हर दिल का दुलारा होता है.

पद का मद

रचनाकार- सोमेश देवांगन

मिल जाता जब किसी को अचानक पद.
हावी हो जाता सिर पर यह पद का मद..

पद मिले तो नाम मिले,मिले खूब सोहरत.
बात करने फिर अपने से निकाल रहे महोरत..

महोरत निकाल करते धोखे से जी बात.
पल-पल में बताते ये पैसे कीऔक़ात..

पद का नशा चढ़े जिसे नशा से जाये फूल.
अभिमान करने लगे सबको जाए वो भूल..

कर रहा पराया सब को ये छोटा-सा पद.
सब नशा से भारी होता पद का यह मद..

पद आते ही चढ़ने लगे मैं की ये बुरी लत.
पद पाने पर कभी न करना मद ये मेरा मत..

मातु शारदे

रचनाकार-सीमांचल त्रिपाठी

मातु शारदे, मातु शारदे,
हमको ज्ञान व बुद्धि दे.
हम तो ठहरे अबोध बाल,
हमको ज्ञान का वर दे..

हम नादां ना कुछ जाने,
ज्ञान चक्षु का वरदान दे.
पर सेवा काम आए हम,
ऐसा तू हमको वरदान दे..

पद्म पुष्प निवासिनी,
कर तू वीणा धारणी.
विद्या-बुद्धि प्रदायिनी,
पुस्तक-हार धारणी..

मन का तम हटा ज्ञान,
की ऐसी बुद्धि तू भर दे.
हम तो नन्ही सी जान,
आगे बढ़ने का भान दे..

प्रकाश पुँज दिखाकर,
अज्ञानता को हर दो.
जीवन जगमग कर,
सुर ताल से भर दो..

क्या होते हैं शिक्षक

रचनाकार- शालिनीपंकज दुबे

क्या होता है
एक शिक्षक.....
जो बच्चों को पढ़ाते हैं
पढ़ाते हुए स्वयं भी पढ़ते और
सीखते हैं अभाव के बीच भी जीना
निश्छल होकर मुस्कुराना.
कितनी भी जदोजहद कर वो जब से स्कूल पहुँचते हैं,
लाख तनाव भी हो मन में,सब छूमंतर हो जाते हैं.
वो बचपना जो व्यक्तित्व में कहीं दफ्न होता है.
दिल करता है कि बन बच्चा,बच्चों के बीच बैठ जाऊँ.
भूल जाऊँ कुछ पल को
कि...मैं कौन हूँ..?
दिल करता है
की उनकी हिंदी कविता की पंक्तियाँ
उनके साथ दोहराऊँ.
अवकाश के पल झूमकर इतराऊँ
दोनो हाथ पंछियों की तरह निकाल
मैदान का एक चक्कर लगाऊँ
हाँ शामिल होना चाहती हूँ
उनके खेलों में
वो कँचे को उँगलियों में फंसाकर मारना
मुझे आज भी आता है.
उनके सांस्कृतिक कार्यक्रम के अभ्यास में
कितने पद उन्हें सिखाते हुए
खुद भी कर जाना
औऱ उनकी तालियों के शोर से फिर वर्तमान में आ जाना.
उनके हँसी, खुशी,उदासी सब उनके साथ महसूस करना
जिस बच्चे का पिता नहीं है..
जिसकी माँ नहीं होती है.
जिस दर्द से एक बच्चा गुजरता है
उस दर्द को महसूस करना
कि शिक्षक के रूप में होकर भी छलक जाती है आँखे.
उनके नंगे पैर देखकर
नवरात्रि में खुद चप्पल न पहनना
की महसूस करना की
ये कंकड़ उन्हें कितने चुभते है.
हाँ भीगना बारिश में..
की बच्चे बहाने से भीगते हैं
ठंड में स्वेटर नहीं पहनना की
जानना ठंड बच्चों को क्यों नहीं लगती?
अंग्रेजी, हिंदी, बहुभाषा को कर किनारे
उनकी बोली बोलना
जो जोड़ती है उनसे
की घर-सा अपना स्कूल लगे
वो सब करते हैं एक शिक्षक...
जिसकी वजह बच्चों की मुस्कुराहट होती है.
कुर्सी, टेबल को छोड़ उनके बीच बैठ
किसी गतिविधियों को करना.
वो तमाम जतन करना
की उनका व्यक्तित्व निखरे.
उन्हें बिना बताए
उनकी हर समस्या हल करना.
बस एक कोशिश यही
की जैसे वो सब फेवरेट है मेरे.
उनकी फेवरेट मुझे बनना है.
की इंतजार रहता है आने वाले कल का..
कोई जीवन में एक मुकाम बना.
इस वर्तमान को दोहराएगा.
कोई बच्चा फिर जब शिक्षक बनकर आएगा.
दोहराएगा इस पल को
बच्चों के बीच फिर बच्चा बन जाएगा.
बेशक कल हम नहीं रहेंगे
हमारी सीख लिए ही
कोई फिर विद्यालय में आएगा
नए शिक्षक, नए विद्यार्थी
अतीत को समेटे यही शाला भवन वही रहेगा.
एक शिक्षक होता है भविष्य निर्माता.
डॉक्टर, इंजीनियर, वकील या व्यवसायी
एक अच्छा नागरिक
एक नेक इंसान
में कहीं न कहीं होती है गुरु की पहचान.

खाकर तुम्हें पचाना है

रचनाकार- बलदाऊ राम साहू

पप्पू भैया आओ जी
दूध जलेबी खाओ जी.

मम्मी लाई है समोसे
मूंग बड़े बढ़िया डोसे.

पर अधिक नहीं खाना है
खाकर तुम्हें पचाना है.

मेरा कलम

रचनाकार- सोमेश देवांगन

मेरा कलम मेरा अभिमान और स्वभिमान.
आज बसन्त पर करूँ कलम का गुणगान..

देव रूप में मानु तुझको करूँ आज पूजा.
सबसे सच्चा मित्र आप हो नहीं कोई दूजा..

खुद चलते खुद जलते फिर भी नहीं घबराते.
स्याही रहे खून-सी तब तक मेरा साथ निभाते..

शब्दों को खून से अपने सींच के बढ़ाते मान.
कलम खून-सी स्याही का करूँ मैं क्या बखान..

मानू मैं कलम को अपना कृष्ण-सा सारथी.
वेद पुराण गीता मानू करूँ निश दिन आरती..

रंग-बिरंगे रूप तुम्हारे कलम लगे बहुत प्यारे.
मनभावन लगे बाँसुरी जैसे हो कृष्ण से साँवरे..

आना चिड़िया

रचनाकार- बलदाऊ राम साहू

सुबह-सुबह तुम आना चिडिया
मीठे गीत सुनाना चिड़िया़.

उठने में गर देर हुई तो
आकर हमें जगाना चिड़िया.

भूख लगे तो रोना तुम मत
मम्मी को बतलाना चिड़िया.

Visitor No. : 6731933
Site Developed and Hosted by Alok Shukla