छत्तीसगढ़ी बालगीत
किसनहा बेटा बन जातेंव
रचनाकार- श्रवण कुमार साहू, 'प्रखर'
सुत उठ के बड़े बिहनिया,
धर के नांगर जाथौं.
करम के मैं ह बिजहा बोथों,
माटी के बेटा कहाथौं..
खेलत रहिथौं दिनभर मैं ह
धुर्रा चिखला पानी.
इही मोर बर गीता रमायन,
येकरे संग मितानी..
कतको दुख पीरा ल संगी,
मिहनत म भूल जाथौं.
हरियर-हरियर डोली देख के,
झुमके गाना गाथों..
किसानी के जम्मो काम ल
जांगर भरे कमाथौं.
बासी, चटनी खाके मैं हर
जिवरा अपन जुडाथौं..
नांगर, बैला, कोप्पर, बेलन,
इही मोर संगवरी
इही हरे मोर मथुरा काशी,
सरग के हरे दुवारी...
इही हरे मोर पुरखा के चिन्हा,
इही मोर रोजी रोटी.
येकर परसादे हांसत रहिथे,
मोर घर के बेटा-बेटी..
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फुलवारी
रचनाकार- योगेश्वरी तंबोली
हमर घर के फुलवारी,
देखव जी संगवारी.
जेमा बने हे सुंदर क्यारी,
रंग-बिरंगी कितनी सारी..
भंवरा अऊ तितली न्यारी,
लागत हे प्यारी-प्यारी.
हमर घर के फुलवारी,
देखव जी संगवारी..
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सुग्घर ढेंस
रचनाकार- जितेंद्र सिन्हा
लाल, अमारी, पालक चेच
गली-गली म घुमके बेंच
दार संग म गजब मिठाथे
तरिया के जी सुग्घर ढेस
तुमा, लौकी अउ मखना
घपटे हे बारी मा जरी
आलू भाटा संग मिठाथे
मुनगा के संग लेड़गा बरी
रमकेलिया ल भुंजौ बराघौ
या अम्मट म राधौ झोर
जमके फरे हे बरबटी रानी
कनिहा नवा-नवा के टोर.
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चिता सुलगा
रचनाकार- सोमेश देवांगन
सुलगा के बीड़ी चोंगी म तय,
अपने चिता ला तय सुलगाबे.
भुकुर भुकुर तीरत हव कहिके,
अपने चिता ला हवा देखाबे..
खोरोर खोरोर खाँसबे तय हर,
रात ला जाग जाग के पहाबे.
तय तो मरबे तो मरबे रे मनखे,
संग मा परिवार ला भोगवाबे..
सउख शान के मारे नशा करे,
धन धरम संग जीव ला गवाबे.
घर दुवार संग सुवारी छूट जाही,
जियते जियत तय नरक देख के आबे..
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