छत्तीसगढ़ी बालगीत
हमर गवइ गांव
रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू
सहर ले दुरिहा हे गांव के घर,
नदिया नरवा के तीर मा घर.
घास बास के बने हे घर,
डारा पाना ले सजे हे घर.
बर पिपर के छाव म घर,
बढ़ सुग्घर हे गांव के घर.
माटी मा छबाय मुदाय घर,
छुहि म लिपाय पोतय घर.
झिल्ली झिपारी वाला घर,
खपरा छानी वाला घर्.
मेयारी पटाव वाला घर,
गोबर ले घर दुवार लिपथे.
बढ़ सुग्घर घर ह दिखथे,
तुलसी चौरा सबके घर.
गऊ माता पूजे सब घर,
गाय गरु ला घर में रखथे.
गऊ माता के सेवा करथे,
छेना लकड़ी ल आगी जलाथे.
चुल्हा माटी मा खाना बनाथे,
कुआँ ले पानी ला भरथे.
काभू टेरा ल टेरत रहिथे,
होवत बिह्निया जावत खेत.
भूख पियास के नइ राहय चेत,
लिम बम्बुर् के दतवन करथे.
बततिस दात जनम भर रहिथे,
घर ले दूर नहाय ला जाथे.
तरिया डबरी मा नहाय के आथे,
बारी बखरी के साग फाजी हर.
कनौजि पतलया म अब्बड़ सुहाथे,
डोकरी दाई के अनगाकर रोटी.
पताल चटनी संग घाते मिठाथे,
मिलजुल के तिहार मनाथे.
काम बुता ला दिनभर करथे,
बैइठ भुइया मा भात खाथे.
कस के खाथे कस के कमाथे.
कोसो दूर बीमारी हर रहिथे,
घर ले दूर शौचालय रहिथे.
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नागरिहा किसान
रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू
नागर, बाईला धरे कुदारी,
खेत खार ओकर संगवारी.
उठथ बिहिनिया जावत खेत,
भूख पियास हरागे चेत.
धरती ल लागिस पियास,
सुन गुहार आइस आगास.
टरर टरर मेचका नरियाय,
मोर पापिहा कोयल कुहके.
गढ़गढ़,गढ़गढ़ बादर गरजे,
झरझर झरझर पानी बरसे.
हरियर हरियर धरती होगे,
तरिया डबरी लबालब होंगे.
खेत जोत के बोइस धान,
धरती दाई के राखिस मान.
बन बुटा के निदाई करथे,
गाय गरु ले धान ल बचाथे.
जावय खेत किसनहा बेटा,
धरे चतवार निकालय लेटा.
खेत जोत के फसल उगावत,
हरियर धरती के गुनगावत.
जम्मो झन के भूख मिटाथे,
अन्नदाता वो हर कहलाथे.
पोरा म गरभ पूजा कर थे,
किस्सा कहानी करमा गावत.
सुख दुःख के गोठ गोठियात,
पिवराय धान के लुआई करथे.
बड़होना पूजा पाठ करके,
मुररा ला धान मा चघाथे.
सुर मा, मुड़ मा भारा डोहारत,
करपा,खरहि खेत म रचके.
खेत खार म बियारा बनाथे,
दौरी,ठेला,बाइलागाड़ी हाकके.
हसिया कलारी म कोड़ियावत,
पैर डारके धान ला मिजथे.
सूपा, झेझरी पंखा मा ओसाथे.
पेरा पेराउसि बियारा मा रखके,
ओसाय धान ला घर म लाथे.
धान के पूजा पाठ करके,
गुरहा चिला धान मा चघाथे.
पारा परोस म परसाद बाटके,
धान ला माई कोठी म भरथे.
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देवारी तिहार
रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू'
देवारी मा बढ़गे काम,
कोनो नइ करे अराम.
लीपे पोते खोर दुवार,
तब्भे मानथे ये तिहार.
बड़े बिहान सब उठ जाय,
धुर्रा माटी ला झर्राय.
घर ला उन सुग्घर चमकाय,
माटी दीया रोज जलाय.
लइका मन हा गावय गीत,
बाढ़य संगी सब के प्रीत.
एक जगा जम्मो जुरियाय,
छत्तीसगढ़ी गीत सुनाय.
बाढ़य संगी सब के शान,
राखय पुरखा मन के मान.
अपन संस्कृति ला अपनाव,
मिलजुल देवारी ल मनाव.
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सरसती बंदना
रचनाकार- रजनी
परनाम के लेवईय्या तै हस,
आसीस मंगईय्या हों मां मैं.
आखर ज्ञान देवईय्या तै हस,
मां तोर सीस नवावथंव मैं.
लईका हम हन माता तै हस,
ज्ञान के पियास धरे हंव मैं.
जगत के पार लगै अईय्या तै हस,
जुग में निच्चट अज्ञानी हव मैं.
इंद्रावती कस पोसईय्या तै हस,
चिरिया, चुनमुन कस परानी मैं.
ढ़ोलकल गनेस संग बिराजे हस,
शंकनी, डंकनी कस हावंव मैं.
उज्जर अंजोर मुख के तै हस,
तम के करिया कोठरी हावंव मैं.
वाणी वीणा के धरईय्या तै हस,
सप्तक, पंचम सुर के पियासु मैं.
भारत में जुग, जुग से तै हस,
नवावंव सीस जीयत भर मैं.
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अटकन-बटकन
रचनाकार- योगेश्वरी तंबोली
अटकन बटकन दही चटाकन,
नहा खोर के तियार हो जाथन.
रोटी चटनी हम बासी खाथन,
खेलत कूदत स्कूल जाथन.
लाइन बना के प्रार्थना गाथन,
प्रार्थना कर कक्षा म जाथन.
पारी पारी हाजिरी देवाथन,
अपन अपन सुविचार बताथन.
पुस्तक-कापी मिलजुल पढ़ाथन,
सुग्घर गीत कविता ल गाथन.
अक्षर जोड़ के शब्द बनाथन,
गुरु के आगू माथ नवाथन.
नवा-नव हम चित्र बनाथन,
लिखथन-पढ़थन मजा उड़ाथन.
अपन मन के बात बताथन,
कहानी किस्सा घलो सुनाथन.
बाल सभा स्कूल मा होथे,
सुग्घर सुग्घर खिलौना बनाथन.
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