अधूरी कहानी पूरी करो
पिछले अंक में हमने आपको यह अधूरी कहानी पूरी करने के लिये दी थी –
कौवा और मोर
जंगल में रहने वाला काला कौवा न अपने रूप रंग से संतुष्ट था, न ही अपनी बिरादरी से. वह मोर जैसा सुंदर बनना चाहता था.
जब वह दूसरे कौवे से मिलता, तो कौवों के रूप रंग की बुराई कर अपनी किस्मत को कोसता कि उसने कौवा बनकर इस धरती पर क्यों जन्म लिया. साथी कौवे उसे समझाते कि जैसा रूप रंग मिला है, उसके साथ संतुष्ट रहो. पर वह किसी की बात नहीं मानता और उनसे लड़ता.
एक दिन कौवे को एक स्थान पर बिखरे हुए ढेर सारे मोर पंख दिखाई पड़े.
इस कहानी को पूरी कर हमें जो कहानियाँ प्राप्त हुई उन्हें हम प्रदर्शित कर रहे हैं.
संतोष कुमार कौशिक द्वारा पूरी की गई कहानी
मोर पंख को देखकर कौवा बहुत खुश हो गया. कौवे ने मोर के पंखों को अपने ऊपर लगा लिया और खुद को मोर समझकर मोरों के झुंड में पहुँचकर कहने लगा-दोस्त! मैं तुम सबसे दोस्ती करना चाहता हूँ. क्या तुम सब मुझसे दोस्ती करोगे? झुंड में से एक मोर ने कहा-तुम कौन हो? तुमको तो यहाँ पहले कभी नहीं देखा. कौवे ने कहा-मैं इस जंगल में नया हूँ. मोर ने कहा- ठीक है.आ जाओ, आज से तुम भी हमारे दोस्त हो. मोर के झुंड में शामिल होकर कौवा मन ही मन मोर के ना पहचानने पर बहुत खुश हुआ.
कुछ देर पश्चात वहाँ हल्की बारिश शुरू हुई. सारे मोर बारिश में खुशी से नाचने लगे. कौवे ने भी उन्हें देखकर गाना शुरू किया. वह जोर-जोर से काँव-काँव करने लगा. उसको पता भी नहीं चला कि कब पानी में भीगकर ऊपर से लगाए हुए मोर के सारे पंख नीचे गिर गए. कौवे की आवाज सुनकर और पंख देखकर सभी मोरों को पता चल गया की मोरपंख लगाकर कौवा अपने आपको मोर समझ रहा है.
कौवे ने शर्मिंदा होकर सभी मोरों से क्षमा मांगी और दुख भरी आवाज से कहने लगा कि मैं अपने रूप रंग से संतुष्ट नहीं हूँ मैं मोर जैसा सुंदर बनना चाहता हूँ. मोर के राजा ने कौवे से कहा- तुम्हें ईश्वर ने जैसा बनाया है उससे संतुष्ट रहना चाहिए. अपनी तुलना किसी से मत करो तुम्हारे जैसा भी कोई दूसरा ईश्वर ने नहीं बनाया है. हम लोगों को देखो हम लोग राष्ट्रीय पक्षी होते हुए भी हमारा शिकार किया जाता है. हमें मारकर हमारा एक- एक पंख नोचा जाता है और बेचा जाता है. तुम्हें अंदाजा भी नहीं होगा कि मोर की जिंदगी में हरपल खतरा है और तुम मोर बनना चाहते हो. कौवे को समझ में आ गया कि मोर के समान घुट-घुट कर जीने से अच्छी हमारी जिंदगी है जो निडर होकर अपना जीवन यापन करते हैं. कौवे ने ईश्वर को धन्यवाद दिया. अब वह अपने रूप रंग से संतुष्ट है.
अगले अंक के लिए अधूरी कहानी
घमण्डी ऊँट
एक गाँव में एक बढ़ई रहता था. वह बहुत गरीब था. गरीबी से तंग आकर उसने लकड़ियाँ काटकर बेचने की सोची. जब वह जंगल गया तो वहाँ उसने देखा कि एक ऊँटनी प्रसवपीड़ा से तड़प रही है. ऊँटनी ने जब बच्चे को जन्म दिया तो बढ़ई उँट के बच्चे और ऊँटनी को लेकर अपने घर आ गया. ऊँटनी को खूँटी से बाँधकर वह उसके खाने के लिये पत्तों-भरी शाखायें काटने वन में गया. ऊँटनी ने हरी-हरी कोमल कोंपलें खाईं. बहुत दिन इसी तरह हरे-हरे पत्ते खाकर ऊँटनी स्वस्थ और पुष्ट हो गई. ऊँट का बच्चा भी बढ़कर तंदुरुस्त हो गया. बढ़ई ने उसके गले में एक घंटा बाँध दिया, जिससे वह कहीं खो न जाए.
ऊँटनी के दूध से बढ़ई के बाल-बच्चे भी पलते थे. ऊँट भार ढोने के भी काम आने लगा.
उस ऊँट-ऊँटनी से ही उसका व्यापर चलता था. यह देख उसने कुछ धन उधार लेकर एक और ऊँटनी खरीद लाया. उसके पास अनेक ऊँट-ऊँटनियां हो गईं. उनके लिये रखवाला भी रख लिया गया. बढ़ई का व्यापार चमक उठा.
शेष सब तो ठीक था, किन्तु जिस ऊँट के गले में घंटा बँधा था, वह बहुत गर्वित हो गया था. वह अपने को दूसरों से विशेष समझता था. सब ऊँट वन में पत्ते खाने को जाते तो वह अकेला ही जंगल में घूमा करता था.
उसके घंटे की आवाज़ से सबको यह पता लग जाता था कि ऊँट किधर है. सबने उसे मना किया कि वह गले से घंटा उतार दे, लेकिन वह नहीं माना.
एक दिन जब सब ऊँट वन में पत्ते खाकर तालाब से पानी पीने के बाद गाँव की ओर वापिस आ रहे थे, तब वह सब को छो़ड़कर जंगल की सैर करने अकेला चल दिया. शेर ने घंटे की आवाज सुनकर उसका पीछा़ किया.
इसके बाद ऊँट के साथ क्या हुआ होगा?
इसके बारे में आप सोचना शुरू करें और इस कहानी को पूरा कर हमें ईमेल से kilolmagazine@gmail.com पर भेज देवें. आपके द्वारा भेजी गयी कहानियों को हम किलोल के अगले अंक में प्रकाशित करेंगे.