बालगीत

दादा जी

रचनाकार- बलदाऊ राम साहू

baba

बार-बार बस समझाते हैं दादा जी
गीत पुराने ही गाते हैं दादा जी.

गीता पढ़ते और बाँचते रामायण
कथा-कहानी बतलाते हैं दादा जी.

दादी जी से करते हैं हँसी-ठिठोली
हम सबका मन बहलाते हैं दादा जी.

लेकर खजाना अनुभवों का चलते हैं
जीवन की राह सुझाते हैं दादा जी.

उनसे अपना बड़े नेह का रिश्ता है
हँसते हैं और हँसाते हैं दादा जी.

कड़वे बोल कभी न बोलते हैं भाई
राम नाम पर इतराते हैं दादा जी.

'बरस' बात तुम उलटी-सुलटी मत कहना
बातों में ही तन जाते हैं दादा जी.

*****

सिंघाड़ा

रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र

Singhada

ठण्डक लेकर आया जाड़ा,
मचा रहा है धूम सिंघाड़ा.

छोटा, गोल, तिकोना सा है,
कोई लाल है, कोई हरा.

ताजा है, तालाब से आया,
हल्का मीठा स्वाद है लाया.

कोमल छिलका स्वयं उतारो,
देखो! व्यर्थ न पढ़ो पहाड़ा.

पानी में उगने वाला फल,
तीन माह भर खालो तुम.

कच्चा होता अधिक मुलायम,
पका कठोर, न छिल पायेगा.

भूनो या उबाल कर खाओ,
सर्दी का ले जीत अखाड़ा.

सुखा सिंघाड़ा, पीस कर,
बन जाता है पोषक आटा.

कच्चे का अचार माँ बनाती,
हम सबने अँगुली से चाटा.

तन के लिए स्वास्थ्यवर्द्धक,
सब रोगों को खूब पछाड़ा.
मचा रहा है धूम सिंघाड़ा.

*****

गुलाब

रचनाकार- डॉ. माध्वी बोरसे

Rose

गुलाब का फूल, अति सुंदर और सुगंधित,
करते है हम, परमेश्वर के चरणो में अर्पित.
चलो महका दे जहां, गुलाब के फूल के जैसे,
सुंदरता और कोमलता मैं प्रसिद्ध हो ऐसे.

कभी बने शरबत, औषधि और कभी गुलकंद,
स्वयं की रक्षा करने को,हममें कांटे भी हो चंद.
सजावट हो या भोजन, इसके उपयोग है कहीं,
देखो इसकी आकृति, कुछ हमसे है कह रही.

इसे देखते ही, हमारे चेहरे पर आए मुस्कान,
इससे बढ़कर क्या हो, किसी का सम्मान.
हमें देख कर भी, कई चेहरे मुस्कुराए,
चलो सभी को, नम्र हृदय से अपनाएं.

छोटा सा पौधा, हम सब अपने घर में लगाए,
क्योंकि हर बगीचे की, रौनक ये कहलाए.
कितना लाभदायक और उपयोगी है यह,
हमें जीने का, सलीका सिखलाए.

*****

संत शिरोमणि

रचनाकार- अशोक कुमार यादव

Saint

छत्तीसगढ़ के निर्गुण गुरु, बाबा संत शिरोमणि,
सतनाम पंथ के प्रवर्तक, जन चेतना के अग्रणी.
गिरौदपुरी के महाराजा, दक्षिण कोसल के स्वामी,
सत्यता की परचम लहराए, सत्य साधक सतनामी.

सांसारिक जीवन देखकर, अंतःकरण में हुई विरक्ति,
औंरा-धौंरा तरु तर तप किए, अगुण ब्रह्म की भक्ति.
मानव में था अति जातिवाद, छुआछूत और भेदभाव,
मानव को मानव ना माने, जन-जन में था अलगाव.

हिंसा और पाप का तांडव, मर्त्य-ही-मर्त्य की दुश्मन,
सदाशयता ही ज्ञान अमृत, असत्य की किया शमन.
घासीदास की वाणी सुनों, मूर्तियों की पूजा है वर्जित,
पशुओं से भी प्रेम करो, तू मरा नहीं अभी है जीवित.

जन जागृत किए उपदेश से, सत्य की राह है अविचल,
भवसागर से जीव होगा पार, जप,ध्यान कर निश्छल.
नैतिकता को कर धारण, मानव-मानव है एक समान,
ऊंच-नीच की बात कह कर, प्रभु की कर रहा अपमान.

सारा जग है परमपिता की, हंसा एक दिन उड़ जाएगा,
मिट्टी की काया और माया, मिट्टी में ही मिल जाएगा.
मैं हूँ सदा इस पावन धरा में, सत्य प्रतीक है जैत स्तंभ,
श्वेत ध्वजा लहराता रहेगा, दूर करेगा अज्ञान और दंभ.

*****

नए वर्ष में

रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र

newyear

चहुँ सुख बरसे
नए वर्ष में
धरती विहँसे
नए वर्ष में.

डाल-डाल पर, चिड़ियाँ चहकें
तितली झूमे, कलियाँ महकें
भौंरे गाएँ
विपुल हर्ष में.

अधर से फूटें, गीत सुरीले
मन को मोहें, चित्र सजीले
अंकुर फूटें
नव विमर्श में.

पूर्ण सभी हों, नव आशाएँ
अनुरंजित हों, दशों दिशाएँ
करुणा जागे
संस्पर्श में.

*****

प्रभु

रचनाकार- अजय कुमार यादव

God

किसने है यह संसार बनाया,
प्रभु आपका नाम हैं आया
हमको दिया उजालों का संसार,
हमको दिया जीवन का उपहार.

पेड़ पौधों, जीव जंतु में समाया,
हर पल हमको एहसास कराया.
आप है सबको जीवन देने वाले,
प्रभु आप है हम सबके रखवाले.

प्रभु अपना आशीर्वाद हमें दीजिए,
हम सबका जीवन सफल कीजिए,
प्रार्थना बस इतनी पूरी कर दीजिए
सबके दु:खों को दूर कर दीजिए.

*****

तिरंगा

रचनाकार- अंकुर सिंह

tiranga

तिरंगा है हमारी जान,
कहलाता देश की शान.
तीन रंगों से बना तिरंगा,
बढ़ता हम सबका मान.

केसरिया रंग साहस देता,
श्वेत रंग शांति दिखलाता.
हरा रंग विकास को बता,
तिरंगा बहुत कुछ है सिखाता.

तिरंगे के मध्य में अशोक चक्र,
निरंतर हमें बढ़ने को कहता.
राजपथ और लाल किले पर,
तिरंगा देश की शान बढ़ाता.

तिरंगा है देश की पहचान,
रखेंगे हम सब इसका मान.
तिरंगे की रक्षा के ख़ातिर,
कर देंगे अपने प्राण क़ुर्बान.

आओ आज हमसब मिलकर,
जन गण मन का गान करे.
जाति-धर्म का भेद मिटाकर,
अपने देश का हम मान बढ़ाएं.

*****

सफर

रचनाकार- डॉ. माध्वी बोरसे

Travel

बहुत समय से बैठे हैं, घर के अंदर,
चलो करें, शुरू एक नया सफर.
घूमे गाँव और अलग-अलग शहर,
महसूस करें, पर्वत और समुंदर की लहर.

करें यात्रा रेलगाड़ी, विमान और जहाज पर,
लगाए एक बार, इस प्यारी सी दुनिया का चक्कर,
चलो होकर आए, अपनों के घर.
हां जी, आज और अभी हि है, सही अवसर.

छोड़ आए कई स्थानों पर अपना असर,
कुछ समय के लिए, ऊपर वाले पर हो जाए निर्भर.
कभी समेटे स्वयं को, कभी जाए हवा में बिखर,
छू ले यात्रा मैं हर एक, उच्च शिखर.

आए अत्यंत सुंदर जगहों को घूमकर,
अपने दर्द और तनाव को पूर्ण रूप से भूलकर.
सब से कुछ नया, कुछ अलग सीख कर,
हर यात्रा में बनते चले, एक इंसान बेहतर.

*****

देखो ठंडी आयी

रचनाकार- अजय कुमार यादव

cold

ठंड ना लग जाए कहीं देखो भाई,
रात को सोते समय ओढो तुम रजाई.
मौसम का राजा देखो, देखो आया भाई,
कितना प्यारा मौसम देखो, आया भाई.

रखना अपना तुम ख्याल ठंड से बचना भाई,
जिसको लग गई ठंड उसको नानी याद आयी.
बगिया में देखो सुंदर सुंदर फूल खिले,
भौरें भी देखो फूलों से मिलने लगे हैं.

सूरज की तपन हमारे मन कितना को भाएं,
मिलजुलकर रहना ये हम सबको सिखलाएं.
किस्सा ना हो देखों हिस्सा का तुम कभी,
जो ज़िन्दगी मिली है उसकी तुम तारीफ करो.

रंग लाएगी तुम्हारी मेहनत भी एक दिन,
बस सच्चे मन से तुम अपना काम करो.

*****

आओ हम पेड़ लगाएं

रचनाकार- अजय कुमार यादव

Plantation1

आओ हम पेड़ लगाएं.
आस पास को हरा भरा बनाए
कितने सुंदर कितने प्यारे
रंग बिरंगे रहते चुपचाप खड़े
एक दूसरे से गले मिले.
आओ हम पेड़ लगाएं.

चिड़ियों का संगीत सुनो
अपने मन को धीर धरो
पेड़ों से तुम भी प्रीत करो
पेड़ों से आती बरसात निराली
फूलों की सुगंध मन को बहकाये
आओ हम पेड़ लगाएं.

जल जीवन है धरा पर उपवन,
पेड़ ही तो धरती का तन मन.
काम की बात सबको बताओ
पेड़ ना काटो मान भी जाओ
जीव जंतु सदियों से रहते आये,
आओ हम मिलकर पेड़ लगाएं.

पेड़ों की है बात निराली
करनी है इनकी रखवाली
हम मनाएंगे ईद और दीवाली
ऋषियों ने पेड़ों के गुण बताए
आओ हम वन महोत्सव मनाए
आओ हम पेड़ लगाएं.

*****

भीमराव आम्बेडकर

रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र

BhimraoAmbedkar

भीमराव आम्बेडकर बाबा
शत-शत तुम्हें प्रणाम.
भारत की पावन गाथा में
अमर तुम्हारा नाम.

माता श्रीमती भीमा बाई
पिता राम मालो सतपाल
चौदह अप्रैल को आया था
उनके घर धरती का लाल.

महू छावनी में जन्मस्थल
अम्बाबाड़े ग्राम.

अँग्रेजों की दासता से थी
भारत को मुक्ति दिलायी
छुआछूत प्रति मुखरित वाणी
जागरूकता लायी.

जाति– पाति से किया बराबर
जीवनभर संग्राम.

तुम इतिहास पुरुष, भारत के
संविधान निर्माता
गणतांत्रिक व्यवस्था पोषित
जन-जन भाग्य विधाता.

सभी बराबर हैं समाज में
प्रिय संदेश ललाम.

भगवान बुद्ध से हुए प्रभावित
बौद्ध धर्म की ली दीक्षा
आपस में हो भाईचारा
मिले सर्वजन को शिक्षा.

छह दिसंबर पुण्य दिवस है
भीम गए सुरधाम.
शत-शत तुम्हें प्रणाम.

*****

पंख

रचनाकार- दीपेश पुरोहित ''बिहारी''

boywithwing

पंख फैला उड़ा चिड़ी, चिड़िया भी उड़ी साथ,
नभ दोनों साथ चले, बतियाते रे बात.

डाल डाल पात पात, बच्चे माने नहीं बात,
करे मनमानी भारी, खाते रहे दिन रात.

चोंच खोल चिक चिक, घोसलें में झिक झिक,
तुनक तुनक सभी, हल्ला ही मचाते रहे रात.

बिहारी' पँख आएंगे, बच्चे चहचहाएँगे,
हिलमिल संग साथी, उड़ उड़ जाते साथ.

*****

रंग

रचनाकार- हर्षलता मिश्रा

Colours

लाल गुलाबी नीले रंग,
भा गए मुझको पीले रंग.

काली-काली बादल छाई,
बारिश लेकर मौसम आई.

हरे- भरे सब बाग बगीचे,
लगते कितने प्यारे- प्यारे.

सब बच्चे हैं चित्र बनाते,
लगते कितने न्यारे-न्यारे.

*****

जादुई पेंसिल

रचनाकार- हर्षलता मिश्रा

Pencil

मेरी पेंसिल बड़ी कमाल,
जादू करती बड़ी धमाल.

पेंसिल से हो जाते काम,
वह अंधेरे को करे उजाल.

पेंसिल मेरी बड़ी अनोखी,
झटपट करती मालामाल.

पेंसिल पाकर राजू खुश,
राजू की पेंसिल बेमिसाल.

*****

चिड़िया

रचनाकार- हर्षलता मिश्रा

bird2

चीं-चीं करती आती चिड़िया,
सबका मन हर्षाती चिड़िया.

फुदक-फुदक उड़ती चिड़िया,
कभी पकड़ ना आती चिड़िया.

मीठा गीत सुनाती चिड़िया,
सबका मन बहलाती चिड़िया.

रंग-बिरंगी न्यारी चिड़िया,
सुंदर-सुंदर प्यारी चिड़िया.

*****

गणतंत्र दिवस

रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र

RepublicDay

छब्बीस जनवरी आयी है.
गणतंत्र दिवस शुभ लायी है.

जनगणमन के स्वर से गुंजित,
भारत माँ की अँगनाई है.

सम्मानित अपना संविधान,
जनता ने सत्ता पायी है.

सक्षम सशक्त गणतंत्र हुआ,
जन-जन प्रिय भाई-भाई है.

सीमा पर सैनिक डटे हुए,
नित राष्ट्र वंदना गायी है.

नभ में वंदेमातरम गूँजे,
धरती सहर्ष मुसकायी है.

गर्व से तिरंगा फहराता,
बह रहा पवन सुखदायी है.

*****

वर्णमाला

रचनाकार- श्वेता तिवारी

varnmala

अ से अदरक सबको भाता,
चाय का स्वाद बढ़ाता.

आ से आम फलों का राजा,
मीठा-मीठा ताजा-ताजा.

इ से इमली खट्टी न्यारी,
खट्टी होकर लगती प्यारी.

ई से ईख मीठी मीठी,
चखकर देखो है ये अनूठी.

उ से उल्लू रात में जगता,
दिन निकलते हैं सोता.

ऊ से उन मां लेकर आई,
नानी ने मफलर बनाई.

ऋ से ऋषि लगाते ध्यान,
इससे रहता मन शांत.

ए से एड़ी कदम मिलाओ,
घर से स्कूल दौड़ के जाओ.

ऐ से ऐनक है शैतान,
चढ़े नाक पर पकड़े कान.

ओ से ओखली घर की शान,
इससे कुटे हम सब धान.

औ से औरत मां है हमारी,
लगती है सबसे प्यारी.

अं से अंगूर बड़े रसीले,
होते हैं यह काले पीले.

अः स्वर है खाली,
आओ सब बजाएं ताली.

*****

अंक

रचनाकार- श्वेता तिवारी

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एक लाल तितली गई फूल पर सो,
एक और आ गई हो गई दो.

दो लाल तितली बजा रही थी बीन,
एक और आ गई हो गई तीन.

तीन लाल तितली पहन रही थी हार,
एक और आ गई हो गई चार.

चार लाल तितली कर रहीं थीं नाच,
एक और आ गई हो गई पांच.

पाँच लाल तितली कर रहीं थीं जय,
एक और आ गई हो गई छ:.

छ: लाल तितली कर रहीं थीं बात,
एक और आ गई हो गई सात.

सात लाल तितली पढ़ रही थी पाठ,
एक और आ गई हो गई आठ.

आठ लाल तितली बो रही थी जौं,
एक और आ गई हो गई नौ.

नौ लाल तितली चला रहीं थीं बस,
एक और आ गई हो गई दस.

*****

गिनती

रचनाकार- श्वेता तिवारी

Ank

मैं अपनी गुड़िया को गिनती सिखाउंगी,
बोल गुड़िया 1
तुझे मिलेगा केक
थोड़ी सी तुम भी खाओगे थोड़ी सी हम भी खाएंगे.

मैं अपनी गुड़िया को गिनती सीखाऊंगी,
बोल गुड़िया 2
तुझे मिलेगा भोग
थोड़ी सी तुम भी खाओगे थोड़ी सी हम भी खाएंगे.

मैं अपनी गुड़िया को गिनती सीखाऊंगी,
बोल गुड़िया 3
तुझे मिलेगा बीन
थोड़ी सी तुम भी बजाओ गी थोड़ी सी हम भी बजाएंगे.

मैं अपनी गुड़िया को गिनती सिखाऊंगी,
बोल गुड़िया 4
आओ चले बाज़ार
थोड़ी सी तुम भी चलोगे थोड़ी सी हम भी चलेंगे.

मैं अपनी गुड़िया को गिनती सीखाऊंगी,
बोल गुड़िया 5
आओ नाचे साथ
थोड़ा सा तुम भी नाचोगी थोड़ा सा हम भी नाचेंगे.

मैं अपनी गुड़िया को गिनती सिखाऊंगी,
बोल गुड़िया 6
भारत माता की जय
थोड़ा तुम भी बुलाओगी थोड़ा हम भी बुलाएंगे.

मैं अपनी गुड़िया को गिनती सिखाउंगी,
बोल गुड़ियास 7
मिलकर रहे साथ.

मैं अपनी गुड़िया को गिनती सीखाऊंगी,
बोल गुड़िया 8
मिलकर पड़े पाठ
थोड़ी सी तुम भी पढ़ोगे थोड़ी सी हम भी पढ़ेगे.

मैं अपनी गुड़िया को गिनती सीखाऊंगी,
बोल गुड़िया 9
हमारी माता गौ.

मैं अपनी गुड़िया को गिनती सिखाऊंगी,
बोल गुड़िया 10
अब गिनती हो गई पूरी बस.

*****

आ जाओ न दादा

रचनाकार- उत्कर्ष चन्द्राकर'कान्हा''

Grandfather

जल्दी से आ जाओ न दादा,
दूर हुए दिन हो गया ज्यादा.

सूना दिन सूनी रात हुई है,
दिनों से न मुलाकात हुई है.

अब न तुमको तंग करेंगे,
फिर न कभी हुड़दंग करेंगे.

सुनेंगे अब हम तेरी ही बानी,
नित सुनाना हमें नई कहानी.

पढ़ाई लिखाई लगातार करेंगे,
सपना तेरा हम साकार करेंगे.

आज हम करते हैं तुमसे वादा,
जल्दी से आ जाओ न दादा.

*****

मोबाइल

रचनाकार- इंद्रजीत कौशिक

mobile

मोबाइल जब घर में आया,
कौतूहल सा मन में छाया.
सब बच्चों ने मिलकर देखो,
उसको अपना मित्र बनाया.

घर में बच्चे नहीं दिखे तो,
बिल्लू जी का मन चकराया.
फिर चुपके से पीछे जाकर,
मोबाइल का लुत्फ उठाया.

मोबाइल है बड़े काम का,
इसको अपनी लत न बनाओ.
नई-नई बातें सीख कर,
बस तुम अपना ज्ञान बढ़ाओ.

*****

अपना परिवार

रचनाकार- इंद्रजीत कौशिक

family

पूरे जग में मुझको प्यारा
है अपना परिवार,
जिसके साथ बिताता हूँ मैं
दिन जिंदगी के चार.

सुख-दुख सारे मिलकर सहते
मानें कभी न हार,
जो मिल जाता खा लेते हैं
हंसी खुशी के साथ.

परिवार का साथ मिले तो
हर मुश्किल आसान,
हर विपदा में हंसते-हंसते
करते बेड़ा पार.

*****

लाल-लाल निकला गोला

रचनाकार- वेद उत्कर्ष चन्द्राकर

Sunrise2

दिशा ने अपना पट खोला,
लाल-लाल फिर निकला गोला.
रौनक हो गए बाग बगीचे,
और कलियाँ मोहक मुस्काये.

सर-सर, सर-सर चली हवाएं
फूलों की खुशबू ले आये.
रोशन हो गए नीड़ पेड़ के,
स्वागत में चिड़ियां गीत गाये.

लोग निकल आये गलियों में,
गुन-गुन धूप सबके मन भाए.
रोचक हो गई गालियां सारी,
बच्चे खेले उत्पात मचाये.

खुशियों का भर लाया झोला,
दिशा ने अपना पट खोला.

*****

मेला

रचनाकार- सुषमा बग्गा

mela

हम मेला देखने जायेंगे
झूला - झूल कर आयेंगे
रंग - बिरंगे खिलौने लेकर
खुशियां साथ मनायेंगे
हम मेला देखने जायेंगे

खूब जलेबी खायेंगे
गुब्बारे हम लायेंगे
सबसे है अपनापन
सबको गले लगायेंगे
मेला देखने जायेंगे

चिंकी, पिंकी, गोलू, गप्पू
सब मिल मेला जायेंगे
दिनभर मस्ती खूब करेंगे
सांझ ढले घर आयेंगे
हम मेला देखने जायेंगे.

*****

नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन

रचनाकार- डॉ. कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव

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नई उमंगें साथ लिए,
नव वर्ष अब आया है.
बहुत कठिन था साल पुराना,
छायी थी अंधियारी.
दुर्भाग्य ने सबको घेर लिया
आई थी लाचारी.
डर, चिंता आतंक ने
सबको बहुत सताया है.
नई उमंगें साथ लिए,
नव वर्ष अब आया है.

आतंक रूपी कोरोना से,
सबको आफत आयी.
जाने कितने चले गए,
सब देने लगे दुहाई.
कोरोना रूपी दानव ने
आतंक बहुत मचाया है.
नई उमंगें साथ लिए,
नव वर्ष अब आया है.

सब मिलजुल कर एक हुए,
नीति नयी अपनाई.
सबने मुँह में मास्क पहन,
नई दिशा दिखलाई.
वैक्सीन औऱ होशियारी से
कोरोना को दूर भगाया है.
नई उमंगें साथ लिए,
नव वर्ष अब आया है.

साथ रहेंगे हम सब मिलकर
गीत खुशी का गाएंगें.
नया जोश साथ में लेकर,
नव विकास हम लायेंगें.
आगें बढ़ते जाएंगे हम,
कोई रोक न पाया है.
नई उमंगें साथ लिए,
नव वर्ष अब आया है.

*****

लोरी

रचनाकार- अनिता चन्द्राकर

Lori

सो जा बिटिया रानी सो जा,
मीठे मीठे सपनों में खो जा.
चाँद तारों की शीतल छाया.
हवाओं ने भी गीत सुनाया.
गोद में मेरी सो जा बिटिया.

तू है मेरी नन्ही सी चिड़िया.
हँसती रहे सदा जीवन में.
तुझसे महके मेरी बगिया.
सो जा बिटिया रानी सो जा,
मीठे मीठे सपनों में खो जा.

काँटा चुभे न कभी पाँव में,
बाजे पायल छमछम छमछम.
चहकती रहे तू घर आँगन में.
बोली गूँजे जैसे सरगम.
मेरी लाडली परी है बिटिया.
आँखें कभी भी हो ना नम.
सो जा बिटिया रानी सो जा,
मीठे मीठे सपनों में खो जा.

*****

नया वर्ष

रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू'

newyear

नये वर्ष की शुभ बेला पर, सब का साथ निभायेंगे.
हुए गिले शिकवे है जो भी, उनको दूर भगायेंगे.

सब इंसान एक बराबर, फिर क्यों पीछे जाते हो.
जाति धर्म का भेद बताकर, छोटी सोच बनाते हो.

पढ़ी लिखी यह सारी पीढ़ी, इक पहचान बनायेंगे.
नये वर्ष की शुभ बेला पर, सब का साथ निभायेंगे.

बैठे रहते सड़क किनारे, वो भी तो भूखे होते.
वर्ष नया उनका भी आता, लेकिन क्यों वह है रोते.

आओ साथी सारे मिलकर, हम भी आज हँसायेंगे.
नये वर्ष की शुभ बेला पर, सब का साथ निभायेंगे.

देखो मानव की आजादी, पार्टी भी सभी मनाते.
पी कर दारू खा कर मुर्गा, यहाँ गंदगी फैलाते.

आज नया हम प्रण लेते हैं, मिलकर इसे मिटायेंगे.
नये वर्ष की शुभ बेला पर, सब का साथ निभायेंगे.

*****

बाल हाइकु

रचनाकार- प्रदीप कुमार दाश 'दीपक'

sunrise

सूर्य सरल
दीपक सा जलता
वो अविरल.

अकेला सूर्य
आलोकित करता
संपूर्ण जग.

प्रेम के पंख
उड़ गई चिड़िया
मिला जीवन.

कटा पीपल
फुर्र हो गई मैना
दुखी मुनिया.

चाक में चढ़ा
गीली मिट्टी का लौंदा
पाया आकार.

अकड़ खूब
बहे बाढ़ में पेड़
बचती दूब.

बालक नूर
मुरझा रहे हैं क्यों
हँसी के फूल.

रखना ख्याल
बरगद सुनाता
गाँव का हाल.

बचाएँ जल
वरना तरसेंगे
बूँद को कल.

प्यारी गुड़िया
अपनत्व में पली
नन्ही चिड़िया.

*****

छुक छुक करती रेल

रचनाकार- टीकेश्वर सिन्हा

rail

चलो खेलें भैया खेल,
छुक-छुक करती रेल.

है हमारी रेल निराली,
मुम्बई दिल्ली झाँसी वाली.

मनु भैया रानी बहना,
दुर्ग-भिलाई राँची पटना.

यह कैसा पेलम पेल,
छुक-छुक करती रेल.

*****

देश हमारा

रचनाकार- टीकेश्वर सिन्हा

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स्वर्ग से न्यारा
देश हमारा.

प्राणों से प्यारा
देश हमारा.

आँखों का तारा
देश हमारा.

एक अविरल धारा
देश हमारा.

*****

नये साल में

रचनाकार- नरेन्द्र सिंह नीहार

newyear2

नये साल की भोर में,
नये नवेले दौर में,
जल्दी उठ व्यायाम करेंगे,
नित नियम से काम करेंगे.

आलस से रखेंगे दूरी,
साध दिलों की होगी पूरी.
मात - पिता का माने कहना,
सच बोलेंगे भाई - बहना.

रखें नहीं किसी से बैर,
शाम पार्क में होगी सैर.
हँसी - खुशी से होगा मेल,
मिलकर सब खेलेंगे खेल.

हम भूलेंगे बात पुरानी,
नये साल की नयी कहानी.

*****

रोबोट

रचनाकार- परवीन बेबी दिवाकर 'रवि'

robot

आया जमाना रोबोट का,
चलते -फिरते रोबोट का.

पल में करे हजारों काम,
थकने का ना लेता नाम.

रोबोट होता जटिल मशीन,
खेल -खेल में विज्ञान सीख.

रोबोट का है काम अनूठा,
इससे नहीं अब कोई रूठा.

मानव जैसा चलना,
बोलना आता है,

बच्चे, बड़े सभी के मन को भाता है.
ज्ञान -विज्ञान सिखाता है,

सब काम आसान बनाता है.

*****

मौसम के रंग

रचनाकार- परवीन बेबी दिवाकर 'रवि'

Weather

मौसम के हैं रंग कई,
हमें लगे सब नई-नई.
काले मेघा नभ पर छा जाती,
बारिश आती हमें भिगाती,
धरती को हरा-भरा बनाती.
काले मेघा देख मयूरा,
हमें सुन्दर नाच दिखाती.

बरसात ज्यों जाती,
ठण्ड है आती,
गरम रजाई हमको भाती,
धूप होती है खिली-खिली,
सेहत संवरती है धीमी-धीमी.

गर्मी का मौसम है आया,
गरम हवाएँ साथ ले आया.
गर्मी में मन बेचैन,
ठंडी हवा में ही पाये चैन.

*****

मेरा गाँव

रचनाकार- वसुंधरा कुर्रे

gaon

छोटा सा प्यारा सा मेरा गाँव,
छोटा सा प्यारा सा मेरा गाँव.

कच्ची पगडंडी रास्ता वाला मेरा गाँव.
सुबह-सुबह मुर्गा की कुकड़ू कु,
गाय बछड़ों का रंभाना, कोयल की कूक.
गाँव की मिट्टी की सुगंध,
उन चहचहाते पक्षी की चहक.
सुंदर वनों की महक,
ओ तरिया के पार, ओ खेत और खार.
दोस्तों के साथ मस्ती का भरमार.

आम इमली बेर के बौछार,
शाम होते झींगुर की गुंजन.
रात का वह चौपाल,
छोटा सा प्यारा सा मेरा गाँव,
छोटा सा प्यारा सा मेरा गाँव.

आज कहाँ शहर की चकाचौंध में,
भूल गया मैं अपना गाँव,
भूल गया मैं अपना गाँव.
ना सुनने व देखने को मिलता यह सब
छोटा सा प्यारा सा मेरा गाँव,
छोटा सा प्यारा सा मेरा गाँव.

*****

हँसते रहे

रचनाकार- टीकेश्वर सिन्हा

Smile

घोड़ा दौड़े सरपट,
जा पहुँचा दिल्ली.

मिल गयी उसे,
एक कबरी बिल्ली.

दोनों हुए खुश,
मन खिल-खिला.

चले गये फिर,
घूमने लाल किला.

घूमघाम कर फिर,
जा पहुँचे कुतुबमीनार.

खूब मजा आया उन्हें,
हँसते रहे बारम्बार.

*****

जल संचय ही जीवन संचय

रचनाकार- गीता खुंटे

savewater

जल का संचय ही जीवन संचय है,
जल संचय करना है यही निश्चय है.

जल बिन सब बागान सूखे हो जाएंगें.
जल बिन हम सब कहाँ जी पाएंगें.

जल के बिना जीवन की कल्पना अधूरी है,
जल से ही तो हमारी जिंदगी पूरी है.

जल के बिना माँ की रोटी भी न बन पाती है,
जल बिना पकवान से सजी थाली भी अधूरी रह जाती है.

जल की रक्षा करने हेतु हमको अब प्रण लेना होगा,
जल स्तर को ऊँचा करने वृक्षारोपण करना होगा.

व्यर्थ पानी कही न बहाएंगे अब यह प्रण हमारा है.
पूरे विश्व को जल संकट से बचाएंगे यह संकल्प हमारा है.

*****

जीवन की सीख

रचनाकार- मनोज कुमार पाटनवार

Life

जीवन एक संघर्ष है यह जान लो,
जो लड़ा वही बढ़ा यह मान लो.

बैठे रहने से कुछ नहीं मिलता यह जान लो,
मेहनत करने वाले आगे बढ़ते हैं यह मान लो.

सोना निखरता है आग में तप कर यह जान लो,
सफलता के लिए परीक्षा देनी होती है यह मान लो.

मेहनत करने से घबराना नहीं तुम ठान लो,
मेहनत का फल मीठा होता है यह मान लो.

दीन-दुखियों की मदद करना तुम जान लो,
सेवा करने से सुकून मिलता है यह मान लो.

सीखने की ललक होनी चाहिए यह जान लो
सीखने वाले ही विद्वान बनते हैं यह मान लो.

जीवन की चुनौतियों को स्वीकारना जान लो,
हर परिस्थिति में मुस्कुराना है यह मान लो.

चिंता को पास आने ना देना यह जान लो,
चिंता बढ़ने से चिता सज जाती है यह मान लो.

माता-पिता की सदैव सेवा करना यह जान लो
माता-पिता ही साक्षात भगवान है यह मान लो.

*****

रंग तिरंगा

रचनाकार- कन्हैया साहू 'अमित'

tiranga

देश हमारा है सतरंगा,
शान हमारी, यही तिरंगा.

नील गगन से बातें करता,
इसे देख दुश्मन है डरता.
रक्षक इसके वीर भुजंगा,
शान हमारी, यही तिरंगा.

केसरिया है सबसे ऊपर,
शौर्य वीरता भरता तत्पर.
बोझिल को कर देता चंगा,
शान हमारी, यही तिरंगा.

श्वेत शांति ही चाहे हरदम,
साथ धैर्य के रखना दमखम.
पहले से ना करना पंगा.
शान हमारी, यही तिरंगा.

हरा रंग कहता खुशहाली,
सबको भाये ये हरियाली.
जीवनदात्री जैसे गंगा,
शान हमारी, यही तिरंगा.

देश हमारा है सतरंगा,
शान हमारी, यही तिरंगा.

*****

देश हमारा

रचनाकार- कन्हैया साहू 'अमित'

india

अपना भारत देश, हमें प्राणों से प्यारा.
अखिल विश्व से प्रेम, परम प्रिय हिंद हमारा.

दिया शून्य उपहार, ज्ञान की पावन धरती.
सोना उगले खेत, भूमि न यहाँ की परती.
कुछ ना कुछ हर क्षेत्र, भरा अतुलित भंडारा.
अपना भारत देश, हमें प्राणों से प्यारा.

मुकुट सजा है शीर्ष, हिमालय जिसे पुकारे.
तीन ओर जलधाम, नित्य ही पैर पखारे.
हरा-भरा चहुँ ओर, दिखे सब सुखद नजारा.
अपना भारत देश, हमें प्राणों से प्यारा.

सैनिक वीर जवान, हमारे हैं बलशाली.
धरती जल आकाश, सदा करते रखवाली.
भारत की जयकार, गूँजता जग में न्यारा.
अपना भारत देश, हमें प्राणों से प्यारा.

अखिल विश्व से प्रेम, परम प्रिय हिंद हमारा.
अपना भारत देश, हमें प्राणों से प्यारा.

*****

वंदेमातरम

रचनाकार- कन्हैया साहू 'अमित'

Vandem

वंदेमातरम मैं भी गाऊँ,
मान सिपाही-सा मैं पाऊँ.

मेरी सेवा सीमा पर हो,
ताकि सुरक्षित सबका घर हो.

नभ में मैं झंडा लहराऊँ,
वंदेमातरम मैं भी गाऊँ.

जाति-धर्म के झगड़े छोड़ो,
मानवता से नाता जोड़ो.

करें देश की रक्षा पहले,
हृदय शत्रु का हम से दहले.,

लड़ते-लड़ते अमर कहाऊँ,
वंदेमातरम मैं भी गाऊँ.

*****

ठंडी मौसम

रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू'

cold2

ठंडी का मौसम जब आये,
स्वेटर, मफलर सब को भाये.
भीनी-भीनी आग सुहाये,
ठंडी का मौसम जब आये.

एक जगह पर सभी इकट्ठे,
मिलकर लाते लकड़ी लट्ठे.
बच्चे बूढ़े बैठे सारे,
आग तापते लगते प्यारे.

सरसर-सरसर चली हवायें,
तन-मन को ठंडी कर जाये.
धूप बड़ी लगती है प्यारी,
देह सेंकते नर अरु नारी.

शीत बूँद मोती बन आये,
बैठ धरा को वह हर्षाये.
धुँधली-सी बादल पर छाये,
जब-जब मौसम ठंडी आये.

*****

मैं पेड़ होता

रचनाकार- दलजीत कौर

tree

माँ! अगर मैं पेड़ होता,
सदा ही जगता कभी न सोता.

मेरे टहनियाँ -पत्ते होते,
पक्षी आकर उन पर सोते,
चैं-चैं का शोर-गुल होता,
खुश रहता मैं कभी न रोता.

पक्षी मुझ पर घोंसला बनाते,
उसमें फिर अण्डे दे जाते,
अंडों से बच्चे बाहर आते,
चीं-चीं का वे राग सुनाते,
सीखते उड़ना, फ़ुर्र उड़ जाते.

खट्टे-मीठे फल मैं देता,
बदले में मैं कुछ न लेता,
पेड़-सा जीवन अच्छा होता
माँ! अगर मैं पेड़ होता.

*****

ठंड

रचनाकार- दलजीत कौर

cold

ठंड की हुई शुरुआत,
आँधी चली, हुई बरसात.
थर-थर काँपे बंदर महाराज,
गर्म कपड़े नहीं थे पास.

पेड़ से लगाई आवाज़,
बिल्ली मौसी! दे दो कुछ आज.
लाऊँगा कल रज़ाई-गिलाफ,
इस बार मुझे करना माफ़.

बिल्ली बोली आकर पास,
नहीं तुम्हें कोई शर्म-लिहाज़.
क्यों नहीं दिमाग़ लगाते,
ठंड से पहले कपड़े लाते.

पड़ जाओगे जब बीमार
कौन रखेगा तुम्हारा ख़्याल?
मौसम बदलते कई बार,
रखना होगा अपना ध्यान.

जल्दी से बाज़ार तुम जाओ,
रज़ाई, स्वेटर, मोजे लाओ,
ठंड से खुद को बचाओ.

*****

नन्हीं चींटी

रचनाकार- तुषार शर्मा 'नादान'

ant

नन्हीं-सी चींटी है आई,
मुंह में दाना भर के लाई.
इसकी तुम ताकत तो देखो,
अपने से ज्यादा वजन उठाई.

रोज-रोज वह आ जाती है,
इधर-उधर वह मंडराती है.
लगन ज़रा तुम देखो उसकी,
रुके तभी जब कुछ पाती है.

इतनी छोटी-सी दिखती है,
छुईमुई-सी वो लगती है.
धूल चटाने का हाथी को,
वो खुद में साहस रखती है.

चलती जब वो ऊंचाई पर,
गर थोड़ा-सा गिर पड़ती है.
हार नहीं माने वो बिल्कुल,
कर हिम्मत फिर से चढ़ती है.

आओ हम सब सीखें इससे,
है नहीं ये कहानी किस्से.
ज़रा भी गुण हो चींटी जितना,
होगी सफलता अपने हिस्से.

*****

तीसरी लहर

रचनाकार- आशा उमेश पान्डेय

corona

तीसरी लहर कोरोना आई,
ओमीक्रान रुप धर लाई.
मीठी जहर जैसी है भाई,
तन में घूसकर जान गवाँई.

आफत विश्व में खूब मचाई,
सबको वह तो है छकाई.
कहना सबका तुम भी मानो,
ओमीक्रान को सब पहचानों.

लक्षण कुछ भी नहीं दिखाती,
सबको मीठी नींद सुलाती.
मास्क लगाना है सुखदाई,
रखना दूरी हरदम भाई.

जनसंपर्क से दूर रहना,
नहीं पड़ेगा फिर दुख सहना.
ध्यान सुरक्षा का है धरना,
सभी नियम का पालन करना.

ओमीक्रान को है भगाना,
जीत शत्रु पर हमको पाना.
प्रतिरक्षा मजबुत है रखना,
सदा शक्तिशाली है बनना.

*****

मैं फूल हूँ

रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु'

flower

मैं फूल हूँ,मुझसे फुलवारी की सुंदरता है.
मुझे मत तोड़ो, मुझसे इसकी रौनकता है.

मेरी सौरभता से सारी प्रकृति सुरभित है.
मुझसे से ही मनमोहित और श्रृंगारित है.

मैं डालियों में इतराता अच्छा लगता हूँ.
मैं अहर्निश खिलके खिलना चाहता हूँ.

मैं इन पेड़ों की गोद में सदा इठलाता हूँ.
मैं इन पेड़ों की गोद में ही प्यार पाता हूँ.

मुझे मत सताओ, डालियों से दूर न करो.
मेरे दर्द को तनिक समझो, अहसास करो.

इस हरी-भरी हरियाली पर कृतार्थ करो.
अपने मानव धर्म को चरितार्थ करो.

*****

आओ मिलकर संकल्प करें

रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु'

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आओ मिलकर संकल्प करें,
इस नव वर्ष को सुखद बनाएँ.
कुछ नया करें,कुछ नया सोंचें,
चलो एक नया संकल्प दुहराएं.

यह नव वर्ष एक अवसर है,
हमारा कर रहा यह आह्वान है.
इस अवसर को हम न भुलाएँ,
आओ करें इसका सम्मान है.

नव वर्ष की बेला एक आस है,
एक प्रेरणा है और विश्वास है.
हमारी संकल्पों का आगाज है,
भूली स्मृतियों का अहसास है.

आओ सब कुछ अच्छा करें,
सारे गीले-शिकवों को मिटाएँ.
नफरतों को प्यार में बदले,
एक दूसरे के गले लग जाएँ.

*****

फिर बच्चे बन जाएँ

रचनाकार- धारणी सोनवानी 11वी शा उ मा वि पहंडोर (पाटन) दुर्ग

bachpan

मन करता है बारिश में हम
फिर बच्चे बन जाएँ.
नाचे गाएँ खेले कूदें
तितली बन उड़ जाएँ.

मेघा खूब बरसे और
हम उसमे भीग जाएँ.
मम्मी बनाती पकौड़े,
चलो मजे से खाएँ.

पक्षियों की तरह हम भी,
मस्त मगन उड़ जाएँ.
सूरज चाचू और चंदा मामा से,
मिलकर हम आएँ.

मेघा रानी के महल को,
हम भी देख के आएँ.
उसके घर में जाकर के हम,
हल्ला खूब मचाएँ.

आसमान की ठंडी छाँव में,
हम बच्चे सो जाएँ.
सड़कों के पानी में हम,
दौड़ खूब लगाएँ.
मम्मी की जब डाँट पड़े तब,
चुपके से घर आएँ.

*****

मेरा स्कूल मेरा भविष्य

रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु'

School

वह स्कूल का पहला दिन था,
जो आज तलक मुझे याद है.
वह दिन कैसे भूल सकता हूँ,
जो रहता यादों में मेरे साथ है.

मैं गुमसुम था,सहमा हुआ था,
मैं यहां-वहां ओट में छुपा था.
मैने माँ से फरियाद किया था,
माँ ने स्कूल भेजकर दम लिया था.

मैं करता रहा माँ से फरियाद,
माँ मुझे स्कूल नहीं जाना है.
पिता ने तभी टॉफी दिलाया था,
माँ ने कहा स्कूल जरूर जाना है.

मैं कई बार बहाने बनाया था,
पर पिता ने प्यार से समझाया था.
स्कूल जाओगे तो ज्ञान पाओगे,
और बड़े होकर कुछ बन पाओगे.

वो पहला दिन मेरा भविष्य था,
मेरी दशा-दिशा तय कर दिया था.
मेरा मंजिल मुझे दिख गया था,
चुपचाप स्कूल रवाना हो गया था.

*****

आम फलों का राजा है

रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु'

mango tree

आम फलों का राजा है
लगता हरदम ताजा है.

बच्चों का मन ललचाता है,
सभी के मन को भाता है.

पीने में बड़ा मजा आता है,
जब माजा तू बन जाता है.

कच्चे में तू हरा दिखता है,
पके में तू पीला हो जाता है.

तू आमरस भी बन जाता है,
तभी चटकदार कहलाता है.

तू चटक चटनी बन जाता है,
तू ही अचार बन इतराता है.

तू ही अमराई को महकाता है,
जब बौरों से ही लद जाता है.

कोयल को तू ही लुभाता है,
तब कोयल कूकता जाता है.

तू बसन्त का सन्देशा लाता है,
प्रकृति में सौंदर्य भर जाता है.

*****

मेला

रचनाकार- अनिता चन्द्राकर

mela

नदी किनारे लगता मेला,
सबके मन को भाता मेला.

कहीं खिलौने,कहीं मिठाई,
ढेरों खुशियाँ देता है मेला.

झूलों पर बच्चे झूलते जाते,
हँसते गाते और धूम मचाते.

दिन भर मेले में घूमते रहते,
चारों तरफ वे नजर घुमाते.

बजती बाँसुरी की धुन कहीं,
डम-डम बजते डमरू कहीं.

तरह-तरह के जहाँ खिलौने,
लगता बच्चों का मन वहीं.

*****

शरारतें बचपन की

रचनाकार- अनिता चन्द्राकर

bachpan

दुनिया भर की दौड़ लगाते, बन जाते वे छुकछुक रेल.
धूल-मिट्टी गलियाँ आँगन में, तरह-तरह के खेले खेल.

दुनियादारी से क्या लेना,पल में झगड़ा पल में मेल.
निष्कपट निश्छल सबका बचपन, रखते न मन में कोई मैल.

धूप हो या हो बारिश,वो तो है अपने मन के राजा.
कभी चलाते कागज की कश्ती,कभी बजाते बाजा.

पेड़ों पर चढ़ते,झूला झूलते,तोड़े फल मीठा ताजा.
उनकी टोली धूम मचाती,खोले ख़ुशियों का दरवाजा.

तारों में ढूँढे चोर सिपाही,चाँद में पा लेते वे बुढ़िया.
तितली के पीछे भागते,कभी चढ़ते छत की सीढ़ियाँ.

दादा-दादी से सुने कहानी,माँ से सुने मधुर लोरियाँ.
पल भर में आती मीठी नींद,सपनों से भरी अँखियाँ.

*****

वक़्त की गाड़ी

रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू

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वक़्त की गाड़ी है वक़्त के साथ चलेगी,
उगता हुआ सूरज भी शाम को ढलेगा.

ज़ख्म है जिस्म में तो मलहम भी मिलेगा,
आज है ख़ुशी तो कल गम भी मिलेगा.

बागों में कलियाँ हैं तो फूल भी खिलेगा,
महकेगा चमन तो कभी काँटा भी चुभेगा.

कभी जीत मिलेगी तो कभी हार मिलेगी,
कभी पतझड़ मिलेगा तो कभी बहार मिलेगी.

कर रहे हो मेहनत तो फल भी मिलेगा,
दुनिया में हर समस्या का हल भी मिलेगा.

थक कर ना बैठ ऐ मंजिल के मुसाफिर,
आज नहीं तो कल मंजिल भी मिलेगी.

*****

जीने की कला

रचनाकार- सीमा यादव

Life3

खुशी -खुशी हर काम करना.
जीवन में कभी निराश न होना.

अपने से बड़ों का सदा आदर करना.
अपने से छोटे को सदा स्नेह व प्रेम देना.

जीवन पथ में न किसी को छोटा समझना.
न किसी से स्वयं को छोटा समझना.

सबकी जीत में विश्वास करना.
सबकी जीत में खुशी मनाना.

अपने हो या पराये सदा सही पथ दिखाना.
कभी किसी को बेवजह न सताना.

*****

बिजली दीदी

रचनाकार- महेन्द्र साहू 'खलारीवाला'

bijli

तुम न होती बिजली दीदी,
रातों को जगमग करता कौन?
तुम न होती तार की रग-रग में,
सबको दूरदर्शन कराता कौन?

बिन बिजली गर्मी के मौसम में,
उमस दूर भगाता कौन?
तुम न होती तो भला बताओ,
कूलर,ए.सी.चलाता कौन?

आविष्कार न हो पाता तुम्हारा,
तो भला,वृहद आयोजन कराता कौन?
भीड़ भरे जलसे,समारोह में,
मुखिया को सुन पाता कौन?

तुमसे मन के तार जुड़े हैं,
तुमसे घर संसार जुड़े हैं.
तुमसे बिछड़े यार जुड़े हैं,
दूरस्थ बच्चों से माँ-बाप जुड़े हैं.

तुम हो तो शहर से गाँव जुड़े हैं,
तुमसे लोगों के व्यापार बढ़े हैं.
तुमसे देश का विकास बढ़ा है,
देश संग निरत विदेश जुड़े हैं.

*****

राह आसां बनाता चलूँ

रचनाकार- महेन्द्र साहू 'खलारीवाला'

Rah

जीवन में कितने भी गम हो,
मैं नित खुशियाँ बाँटता चलूँ.
चाहे सैकड़ों काँटे हो राहों पर,
मैं राह आसां बनाता चलूँ.

मंजिल की डगर चाहे तम हो,
एक नया आशियां बनाता चलूँ.
लक्ष्य हो चाहे कितनी भी दूर,
मैं सारी दूरियां मिटाता चलूँ.

जीवन पथ पर हो स्याह रात,
विभावरी में कांति लुटाता चलूँ.
हो चाहे मुश्किलों का सामना,
मैं दुरूहता को आसां बनाता चलूँ.

जीवन में प्रतिपल खुशियाँ ही हो,
छोटी-छोटी खुशियाँ ढूँढता चलूँ.
उन छोटी खुशियों को जीता चलूँ,
हँसता रहूँ,औरों को हँसाता चलूँ.

*****

आसमां छूने का मन करता है

रचनाकार- महेन्द्र साहू 'खलारीवाला'

Moto

आसमां छू जाने का मन करता है,
समंदर पार उतरने का जी करता है.
दूर नीलाम्बर में उड़ते हैं जैसे विहंग,
हकीकत में उड़ने का मन करता है.

हसीन दुनिया की सैर करने को जी करता है,
यूँ चाँद तारे छू जाने का मन करता है.
क्या-क्या नहीं उठ रही मन में अभिलाषा,
सम्पूर्ण तृष्णा पूर्ण करने का मन करता है.

दुनिया में गमों की लगी है झड़ियाँ,
उन गमों से मेरा गम बहुत कम है.
औरों की खुशियों के लिए खलारीवाला,
पुष्प बनकर बिखर जाने का मन करता है.

*****

हाँ शरद ऋतु आई है

रचनाकार- महेन्द्र साहू 'खलारीवाला'

sharad

धरा पर मतवाली शरद ऋतु आई है.
सबके हृदय में मकरंद बन समाई है.
हरी-भरी दूब पर शबनम नजर आई है.
हाँ शरद ऋतु आई, हाँ शरद ऋतु आई है.

बागों में कली मंद-मंद मुस्काई है.
तड़ागों में लहराती हिलोरें उठ आई है.
चहुँ-दिसि धुंध की झीनी सी चादर छाई है.
हाँ शरद ऋतु आई, हाँ शरद ऋतु आई है.

साक्षात दर्शन को प्रकृति पास बुलाई है.
उपवन में सतरंगी तितलियाँ मंडराई हैं.
प्रकृति भी इस मौसम में खूब इठलाई है.
हाँ शरद ऋतु आई, हाँ शरद ऋतु आई है.

इनकी सुंदरता में अनुपम मादकता छाई है.
पर्वत घाटी देख मन में बजती शहनाई है.
विहंगों का कलरव मीठा तराना गुनगुनाई है.
हाँ शरद ऋतु आई, हाँ शरद ऋतु आई है.

उन खोहों, दरख्तों के दर्शन मन लालायित हैं.
नव कोपलों की भाँति नव चेतन पल्लवित है.
शरद ऋतु की गुनगुनी धूप उर आनंद समाई है.
हाँ शरद ऋतु आई है, हाँ शरद ऋतु आई है.

*****

कोरोना भाग जायेगा

रचनाकार- डॉ. कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव

coronago

चारों ओर सन्नाटा पसरा और अंधियारी छाई है,
क्रूर कोरोना ने मेरे भैया अपनी धूम मचाई है.
और उग्र हो गया कोरोना, और तबाही लाएगा,
कोरोना रूपी ये अंधियारा शीघ्र भाग ही जायेगा.

गली मोहल्ले ऐसे सूने, जैसे राक्षस कोई आया,
मास्क लगा झाँक रहे सब, हवा में वायरस छाया.
जाने कितने मृत हो गए, और कितनो को खायेगा.
कोरोना रूपी ये अंधियारा शीघ्र भाग ही जायेगा.

साथ में ओमीक्रान घूम रहा बच कर इससे रहना,
नए वर्ष का नया वायरस हम सबका है कहना.
हम सब जागरूक बनेगें अगर ये मात ही खायेगा,
कोरोना रूपी ये अंधियारा शीघ्र भाग ही जायेगा.

मनुष्य बहुत ही उलझ रहा व्हाट्सएप के मैसेज से,
सही बस उसकी मानो जो निकले डॉक्टर के मुँह से.
सरकार के साथ चलेंगे हम तभी हार ये पायेगा,
कोरोना रूपी ये अंधियारा शीघ्र भाग ही जायेगा.

मास्क ग्लब्स और सेनेटाइजर का प्रयोग करेंगे हम,
सभी वैक्सीन लगवाएँगे फिर काहे का गम.
बहुत तबाही ला दी तूने अब मार ही खायेगा,
कोरोना रूपी ये अंधियारा शीघ्र भाग ही जायेगा.

*****

पिंक ब्रश

रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू

brush

पिंक कलर का मेरा ब्रश,
हर दिन करता हूँ मैं ब्रश.

दिखते पीले जिनके दाँत,
साफ नहीं है उनके दाँत.

दाँतों की जो करें सफाई,
इसमें है दाँतो की भलाई.

जो दिन में दो बार ब्रश करता,
कीटाणु उनसे दूर ही रहता.

ब्रश करना,करें जो बन्द,
मुख से उनके आये दुर्गन्ध.

सौ बातों की एक ही बात,
स्वच्छ रखिये अपने दाँत.

*****

जल

रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू

savewater

टप-टप टप-टप करता नल,
व्यर्थ ही बहता नल का जल.

जो जल का महत्व समझता,
कभी व्यर्थ ना जल बहने देता.

जितना जरूरत लो उतना जल,
टपकने न दे कभी नल का जल.

संरक्षित करो बरसात का जल,
जल की समस्या का होगा हल.

*****

सपने

रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू

Moto

देखें है हमने भी, सुंदर से सपने,
यकीन है वो सपने हो जायेंगे अपने.

अगर ना हो सके, मेरे सभी सपने पूरे,
तो कोई गम नहीं, पर रह जायेंगे अधूरे.

अब सपने हमारे, मेहमान तो नहीं,
उनसे हमारी कोई, पहचान तो नहीं.

सपने ना सही, कुछ मिला तो सही,
जीत का ताज न सही, हार ही सही.

सपने देखना कोई गुनाह तो नहीं,
हर सपने पूरे हो जरूरी तो नही.

*****

माँ-बेटी का रिश्ता प्यारा

रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू

mummy

माँ बेटी का रिश्ता प्यारा,
सब रिश्तों से न्यारा है.

नौ महीने तक कोख में रहकर,
जब दुनिया में बेटी आती हैं
दर्द सहकर भी खुश हो जाती
वो सिर्फ माँ ही होती है.

माँ की उंगली पकड़ के बेटी
जब वो चलना सीखती है
गिरकर उठती, उठकर गिरती
उंगली पर नहीं छूटती है.

माँ बेटी का रिश्ता प्यारा,
सब रिश्तों से न्यारा है.

तीज पर्व पर, माँ जब अपने,
मायके जाने लगती है.
माँ संग जाने की जिद्द पकड़
अश्क बहाने लगती है.

संग में जाती पनघट माँ के
मटका भर-भर लाती है.
झाड़ू-पोंछा साथ में करती
खाना साथ बनाती है.

माँ बेटी का रिश्ता प्यारा,
सब रिश्तों से न्यारा है.

अपने माँ के साथ नहाती
दिल की अपने बात बताती.
काम में माँ के हाथ बटाकर
माँ-बेटी का फर्ज निभाती.

बेटी का जब ब्याह रचाती,
दुल्हन सा श्रृंगार कराती,
लेकर यादें वो मायके की,
अपने घर ससुराल को जाती.

माँ बेटी का रिश्ता प्यारा,
सब रिश्तों से न्यारा है.

*****

मनमोहक प्यारी बगिया

रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू

garden

प्रकृति का सौंदर्य बढ़ाती,
चहुँ ओर खुशबू फैलाती.
लोगों में उत्साह जगाती,
जीवन जीना हमें सिखाती.
मनमोहक प्यारी बगिया.

तरह-तरह के फूल खिले हैं,
भंवरे भी मंडराते मिले हैं.
बच्चे कलियाँ फूल तोड़ते,
आपस में मिल-जुल खेलते.
मनमोहक प्यारी बगिया.

सुबह-शाम टहलने जाते,
बच्चे बूढ़े साथ में चलते.
उछल कूद, बगिया में करते,
तन-मन को स्वस्थ्य रखती.
मनमोहक प्यारी बगिया.

कभी पतझड़, कभी बहार,
जीवन में मत मानो हार.
सुख-दुख में साथ निभाती,
मन हमारा हर्षित करती.
मनमोहक प्यारी बगिया.

*****

तो क्या हुआ?

रचनाकार- सीमा यादव

paheliya

मैं नादान हूँ तो क्या हुआ?
सबकी चालाकी समझता हूँ.

मैं छोटा हूँ तो क्या हुआ?
सबकी बात समझता हूँ.

मैं मासूम हूँ तो क्या हुआ?
सबकी भावना समझता हूँ.

मैं अज्ञानी हूँ तो क्या हुआ?
सबकी परीक्षा समझता हूँ.

*****

प्रेरणा गीत

रचनाकार- सीमा यादव

beti

मैं बेटी हूँ,
मैं सृष्टि हूँ,
मैं संतति हूँ.

मैं बेटी हूँ,
मैं शक्ति हूँ,
मैं लक्ष्मी हूँ.

मेरे गुण अनन्त,
मेरी भाषा अनन्त.
मेरा नाम अनन्त,
मेरी रचना अनन्त.

*****

शरद ऋतु

रचनाकार- सुशीला साहू 'विद्या'

sharad

आया मौसम सर्दी का, शीत सुहानी शाम.
देख कड़ाके ठंड में, दुबके रह निज धाम.
दुबके रह निज धाम, आज मौसम बेदर्दी.
पड़ी ओस की बूंद, ओढ़ ली ऊनी वर्दी.
सुन विद्या की बात, शरद ऋतु सबको भाया.
ओढ़े कम्बल शाल, सर्द मौसम है आया.

महकी महकी है फिजा, शीतल चली बयार.
ऋतु जब आती शीत की,लगती ठंड अपार.
लगती ठंड अपार, जला लो आग अँगीठी.
सुखद गुलाबी ठंड, पी लें कॉफी मीठी.
सुन विद्या की बात, देख चिड़िया अब चहकी.
बिखरी खुशबू भोर, फिजा है महकी-महकी.

ठंडी ऋतु है आ गयी, धरा हुई गुलजार.
ओस बूंद पत्तों पड़ी, लगे मोतियन हार.
लगे मोतियन हार, बूंद ये सबको भाती.
सर्द भोर की धूप, सुखद गरमाहट आती.
कहती विद्या आज, थाल सजती है मंडी.
सुहावनी है रात, हर सुबह हो गयी ठंडी.

*****

हिन्दी

रचनाकार- दीपेश पुरोहित 'बिहारी'

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संस्कृत जननी की जाया, सरस सरिता,तरुणा है हिन्दी.
प्रेम पाश, स्नेह बिंदु, उदारता, संवेदना, करुणा है हिन्दी.

रत्नगर्भा,मही, वसुधा, धरित्री, धरती, उर्वि सा धरातल.
क्षितिज, गगनारम्भ,उदयाचल,दिशा मंडल सा आँचल.

माथे की मणिका, रत्न,नगीना,नग, चिंतामणि है बिन्दी.
दीप्ती, प्रभा, ज्योति, उजाला, रोशनी की चमक है हिन्दी.

उठे तो हाथ, ग्रहण को पाणि,बंधन के लिए हस्त, कर है.
सर्प में दंश, पान को विष, घुले तो जहर, कालकूट, गरल है.

कनक से विषैला कनक, यम से यमुना, काल से कालिंदी.
कर हाथ भी हाथी के सूंड, राजा लेती जनता से, हिन्दी.

अपनी चाल में मस्त है, न ऊधौ का लेना न माधो का देना.
आग बबूला है घर का भेदी, माया मिली ना चना चबैना.

सुन्दरता भी सादगी भी, सौम्यता की परिचायिका हिन्दी.
सहज समेटे मातृत्व अंक में, शुभ-लाभ मंगलदायिका हिन्दी.

*****

शीत ऋतु और बरसात

रचनाकार- ऋषि प्रधान

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शीत ऋतु आयी है,जाड़ा सँग में लायी है.
ठिठुर रहे हैं सब घरों में,ले रहे अंगड़ाई हैं.

आग की अंगीठी में सेक रहे सब हाथ हैं,
माँ-पापा और दादा-दादी सब घरों में साथ हैं.

ठंड का डर इतना है कि मुन्नी दादा को ढँकती है,
दादी सब कुछ देख कर मन ही मन तो हँसती है.

त्यौहारों का अब दौर चलेगा धान सभी घर आये हैं,
मेरे प्यारे पापा सबके लिए कुछ-कुछ लाये हैं.

ठंडी इतनी ज्यादा है और अब वर्षा भी आयी है,
माँ भी है खोजती घर में और कहाँ रजाई है.

ठंड के इस मौसम में वर्षा का अब खेल हुआ,
इस सुहाने मौसम में प्रकृति का अनुपम मेल हुआ.

*****

मेरी बगिया

रचनाकार- वसुंधरा कुर्रे

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मेरी बगिया बड़ी सुंदर और निराली,
रंग-बिरंगे फूलों और सुगंधों वाली.
तरह -तरह के फूलों से लदी हुई.
मेरी बगिया बड़ी सुंदर और निराली.

मेरी बगिया में है भौरों का बसेरा,
गेंदा, गुलाब, गुड़हल और डगर,
चंपा, चमेली और मोगरा की महक.
जिधर देखो मन हो जाता मतवाला.

मन कहता इतनी सुंदर बगिया,
देखते ही रह जाऊँ मैं.
ना जाऊँ मैं दूर कहीं तुझसे,
सब छोड़कर पास तेरे रह जाऊँ.

चुन-चुन कर मैं बाग लगाया,
मैं हूँ इस बगिया का माली.
एक दिन देखे बगैर,
दूर तुझसे ना रह पाऊँ.

मेरी बगिया बड़ी सुंदर और निराली.
मेरी बगिया बड़ी सुंदर और निराली.

*****

विश्व पुस्तक दिवस

रचनाकार- बद्री प्रसाद वर्मा अनजान

Book

दुनिया भर का ज्ञान हमें,
देती रहती है पुस्तक.
वह ज्ञानी बन जाता है,
जो पढ़ता रहता पुस्तक.

पुस्तक पढ़ कर हम,
महान बन जाते हैं.
डाक्टर वैज्ञानिक पत्रकार लेखक,
देखो पढ़ कर बन जाते हैं.

देश-देश की सैर हमें,
कराती है यह पुस्तक.
घर बैठे सारी दुनियाँ,
घुमाती है यह पुस्तक.

जो पुस्तक से प्यार करता,
वह बड़ा बन जाता है.
उद्घोषक बन कर वह,
सारी दुनिया में छा जाता है.

घर में पुस्तक सदा खरीद कर,
सबको लाना चाहिए.
खुद पढ़े और बच्चों को,
रोज पढ़ाना चाहिए.

विश्व पुस्तक दिवस पर आज,
देना है यह संदेश.
जो पुस्तक प्रेमी होता,
महान कहलाता है वह देश.

*****

नीम का फूल

रचनाकार- बद्री प्रसाद वर्मा अनजान

neem

भीनी-भीनी खुशबू फैला रहा,
देखो नीम का फूल.
प्रदूषण को दूर भगा रहा,
देखो नीम का फूल.

जीवन सुखमय बना रहा,
देखो नीम का फूल.
शुद्ध हवा सबको दे रहा,
देखो नीम का फूल.

मौसम में बहार भर रहा,
देखो नीम का फूल.
सारा समां गुलज़ार कर रहा,
देखो नीम का फूल.

पेड़ पर मुस्कुरा रहा,
देखो नीम का फूल.
हर ओर ताजगी फैला रहा,
देखो नीम का फूल.

सबकी काया निरोगी बना रहा,
देखो नीम का फूल.
अपनी खुशी खूब लुटा रहा,
देखो नीम का फूल.

*****

चलो चांद पर मम्मी

रचनाकार- बद्री प्रसाद वर्मा अनजान

chand

चलो चाँद पर मम्मी
यहाँ नहीं रहना है.
बहुत बुरे हैं लोग यहाँ के
इनसे बच के रहना है.

चंदा मामा से कह कर
थोड़ी सी जगह माँग लेंगे.
अपने रहने के लिए
एक झोपड़ी डाल लेंगे.

घर के पीछे छोटा सा
आँगन एक बना लेंगे
चाँद पर चल कर मम्मी
अपना जीवन बचा लेंगे.

चाँद पर चल कर मम्मी
इन सब से दूर हो जाएँगे.
चैन से वहाँ रहेंगे,
चैन की रोटी खाएँगे.

चाहे कुछ भी हो जाए
हमें चाँद पर जाना है.
वहाँ पहुँच कर हमको
नई दुनिया बसाना है.

*****

बागों में बहार है

रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु'

garden

बागों में बहार है, फूलों में निखार है,
फूल मुस्काते हैं, कली मन लुभाती है.
भौंरे गुनगुनाते हैं, तितली मंडराती है,
करते अठखेलियाँ रसपान करते हैं.

चहुँ ओर चहुँ दिसि, रौनकता छाई है,
नाना फूल कलियाँ, देख मन भायी है.
मन में उल्लास है, और उमंग आयी है,
शीतल सुगन्ध मन्द, हवा चलआयी है.

बागों में बीथीन में, खुशबू भर आई है,
प्रकृति के कण में, मधुमास छाई है.
लाली है सिंदूरी है, पलास मन भाया है,
जहाँ देखो वहीं रंग-रंगीला समाया है.

सुरभित आम है, बौर लिए अमराई है,
नव पल्लव कोपल में, बौर खिलआई है.
पंछियों का कलरव, शुभ सन्देशा लाया है,
दूत है वसन्त की, कोयल की तान आई है.

राज है वसन्त ऋतु, रथ में सवार आए हैं,
प्रकृति है राज-रानी, चार-चाँद ये लगाएँ हैं.
पीले फूल सरसों से, महि मंडप छवाएँ हैं,
पँछी और भ्रमर दल, सुमङ्गल गीत गाएँ हैं.

*****

यात्रा

रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू'

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छन्न पकैया छन्न पकैया, यात्रा करने जाते.
मिलकर सारे बच्चे बूढ़े, खुलकर के मुस्काते.

छन्न पकैया छन्न पकैया, मन्दिर दर्शन पाते.
मनोकामना पूरी होती, भर कर खुशियाँ लाते.

छन्न पकैया छन्न पकैया, यात्रा सफल बनाते.
माँ के दर पर जा कर सारे, झोली को फैलाते.

छन्न पकैया छन्न पकैया, है जीवन की यात्रा.
गिनती की साँसें हैं चलतीं, होती इसकी मात्रा.

छन्न पकैया छन्न पकैया, फँसते हैं सब माया.
यात्रा कर लो मन से साथी, माटी होती काया.

*****

जागो देश के युवाओं

रचनाकार- मनोज कुमार पाटनवार

Moto

जागो देश के युवाओं
माँ भारती तुम्हें जगाती है.
लक्ष्य पाने बढ़ चलो
राह तुम्हें दिखाती है.
दुष्प्रवृत्तियों से दूर रहो
जन-जन को संदेश सुनाना है.
संस्कृति,कला,विज्ञान में
देश को आगे बढ़ाना है.


उन्नति के पथ पर देश को
शिखरों तक पहुँचाना है.
खेल, कला, विज्ञान में
सबको परचम लहराना है.
कर्तव्य पथ पर चलकर
हिंद को विश्व गुरु बनाना है.
जागो देश के युवाओं
माँ भारती तुम्हें जगाती है.

सत्य, कर्म, ज्ञान से
खुद को समृद्ध बनाना है.
राग-द्वेष को छोड़कर
सबको गले लगाना है.
बुरी नजर डाले जो हिंद पर
उन्हें सबक सिखाना है.
जागो देश के युवाओं
माँ भारती तुम्हें जगाती है.

*****

वसंत

रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र

sardi

मनमोहक वसंत आया है,
फूल खिले हैं उपवन-उपवन.

नवल प्रकृति की सुषमा न्यारी,
महक रही है क्यारी-क्यारी.

बीत गई है ऋतु पतझड़ की,
बजे हवा की पायल छन-छन.

अमराई में कोकिल बोले,
कानों में मधुरस सा घोले.

रंगबिरंगी उड़ें तितलियाँ,
चंचल भौंरे करते गायन.

नन्हीं कलियाँ भी मुस्काएँ,
सदा सुहाने स्वप्न सजाएँ.

जाग उठी हैं नयी उमंगें,
मुदित हुआ आशामय जीवन.

*****

हमारे बाबा

रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र

baba

हम बच्चों के प्यारे बाबा,
बस्ती भर में न्यारे बाबा.

हमको प्रातः काल जगाते,
उठ जाते भिनसारे बाबा.

भारतीयता के गुण गाते,
धोती-कुर्ता धारे बाबा.

अपने काम स्वयं करते हैं,
किसी के नहीं सहारे बाबा.

सब नन्हें-मुन्नों की टोली,
प्रेम से उन्हें पुकारे बाबा.

हर पल ध्यान सभी का रखते,
घर भर के उजियारे बाबा.

सच्चाई, अनुशासन प्रिय हैं,
हैं आदर्श हमारे बाबा.

कैसी भी आए कठिनाई,
कभी न हिम्मत हारे बाबा.

पौध लगाते, पानी देते
हरियाली के तारे बाबा.

साफ-सफाई, श्रेष्ठ दवाई,
खूब लगाते नारे बाबा.

*****

भारतीय नववर्ष

रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र

newyear

ईस्वी सन नववर्ष भुलाएँ,
भारतीय नववर्ष मनाएँ

अँग्रेजी का नया वर्ष तो,
प्रथम जनवरी से है चलता

भीषण ठंड शीतलहरी में,
अर्धरात्रि में उत्सव खलता

अँग्रेजों की पराधीनता,
आओ हम मन से ठुकराएँ.

मार्च-अप्रैल नवरात्र से,
नव संवत का शुभारंभ है.

यह भारतीय कालगणना है,
वैज्ञानिक है, नहीं दंभ है.

वासंती मौसम होता है,
साथ प्रकृति के हम मुस्काएँ.

रक्षाबंधन, विजयादशमी,
संवत के अनुसार मनाते.

गृह प्रवेश, मंगल विवाह भी,
शुभ मुहूर्त में ही हैं भाते.

राशि, लग्न, दिन, ग्रह, नक्षत्र से,
हम जीवन की चाल मिलाएँ.

जन्माष्टमी, रामनवमी हो,
एकादशी, पूर्णमासी.

व्रत - त्योहारों की संस्कृति से
जुड़े हुए भारतवासी.

ईस्वी सन से बहुत पुरानी,
निज गौरव गाथा दोहराएँ.

सूर्य-चंद्रमा की गति से है,
संवत्सर गणना संबद्ध.

बारहमास व्यवस्था रहती,
ग्रह-नक्षत्रों से आबद्ध.

भारतीयता के रंग में ही,
अपने सुंदर स्वप्न सजाएँ.

*****

चलो मातृ पितृ पूजन दिवस मनाएं

रचनाकार- मनोज कुमार पाटनवार

mapapa

आओ भारतीय सभ्यता को अपनाएं,
संस्कार और संस्कृति मन में बसाएं.

चलो मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाएं,
पाश्चात्य सभ्यता से दूरी बनाएं.

वैलेंटाइन डे से ज्यादा,
माता-पिता का मान बढ़ाएं.

जिसने हमको जन्म दिया,
चलो उसका कर्ज चुकाएं.

जिसने हमें संस्कार दिया,
पैरों में उनके शीश झुकाएं.

आओ भारतीय सभ्यता को अपनाएं,
संस्कार और संस्कृति मन में बसाएं.

चलो मातृ पितृ पूजन दिवस मनाएं,
पाश्चात्य सभ्यता से दूरी बनाएं.

हाय हेलो से अच्छा साष्टांग हो जाएं,
माता-पिता का आज्ञाकारी बने.

जिसने सब सुख का त्याग किया,
माता-पिता के कार्यों में हाथ बटाएं.

जितना हो सके सुख पहुंचाएं,
आंख से अश्रु ना बहने पाएं.

चलो मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाएं.
चलो मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाएं.

*****

मकर संक्रांति और मेला

रचनाकार- ऋषि प्रधान

makars

मकर संक्रांति और पतंगों का रेला.
कितना मनभावन वो तिल लड्डू का ठेला.

छत में हम सब होते हैं, उड़ाते हैं पतंग.
क्या सफेद क्या लाल और कई रंग.

मोनू भी होता, गोलू भी होता.
हम भी हैं होते अपने भाई-बहनों के संग.

माँ बनाती है लड्डू, पेड़े और मिठाई.
हम सब मिल बाँटकर खाते हैं भाई.

त्योहारों की शुरुआत है होती,
पावन पर्व होता है मकर संक्रांति.

मकर में लगता है कई जगहों पर मेला.
रात में जगराता और सुबह अलबेला.

हम सब जाते हैं सुबह पुण्य नदी में नहाने,
मिलते हैं सभी दोस्तों से हम इसी बहाने.

कहीं पे लोहड़ी, कहीं पे बीहू, कहीं पे कहते उत्तरायण हैं.
मकर संक्रांति का ये मेला पावन सा रामायण है.

*****

जल

रचनाकार- सीमा यादव

savewater

जल है तो सब सार हैं,
जल नहीं तो सब बेकार हैं.

जल है तो जहाँ में जीवन है,
जल नहीं तो हर जगह मरण है.

जल ही है सबके जीवन का आधार,
यही है मानव जीवन का मूलाधार.

*****

माँ मुझको पंख लगा दे

रचनाकार- जीवन चन्द्राकर 'लाल''

boywithwing

हे माँ, मुझको पंख लगा दे,
मैं अम्बर तक जाऊंगा.

ऊंचे-ऊंचे पर्वत को भी,
अपने नीचे पाऊंगा.

वहां पर जितने भी तारें हैं,
सबको चुन-चुन लाऊँगा.

हर घर को कर दूंगा जगमग,
गलियों को भी चमकाउंगा.

फिर न रहेगी कोई सीमा,
देश विदेश घूम आऊंगा.

अवारा घूमते बादल को,
धरती की राह दिखाऊंगा.

हे माँ मुझको पंख लगा दे,
मैं अम्बर तक जाऊंगा.

*****

अच्छा लगता खेल

रचनाकार- वेद उत्कर्ष चन्द्राकर

game

मुझको अच्छा लगता खेल,
मित्रों से होता है, मेल.

मुझको अच्छा लगता खेल,
हाथ मिला लेते कतार से,
बन जाते हैं, छुक-छुक रेल.

मुझको अच्छा लगता खेल,
कभी खेलते चोर पुलिस हम,
कमरा बन जाता फिर जेल.

मुझको अच्छा लगता खेल,
कभी खेलते हैं, क्रिकेट हम,
बनकर कोहली और कृष गेल.

मुझको अच्छा लगता खेल,
नहीं हम रखते बैर किसी से,
न करते हम पेल-धकेल.

मुझको अच्छा लगता खेल,
मित्रों से होता है, मेल.

*****

कोरोना

रचनाकार- जिज्ञासा वर्मा

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कोरोना से सब डरो ना,
कोरोना से सब बचो ना.

घर में सुरक्षित रहो ना,
सब गाइडलाइन पर चलो ना.

मास्क पहनकर निकलो ना,
भीड़-भाड़ से बचो ना.

सैनिटाइजर का प्रयोग करो ना,
बार-बार हाथ को धोते रहो ना.

कोरोना जिसे हुआ उससे पूछो ना,
घर पर क्या बीती उनसे जानो ना.

एक दिन कोरोना खत्म होगा ना,
जल्दी से वैक्सीन लगवा लो ना.

शादी पार्टी समारोह को टालो ना,
किसी से हाथ मिलाओ ना.

दूर से ही हाय हेलो बोलो ना,
सुबह बाहर टहलना छोड़ो ना.

घर पर योग व्यायाम करो ना,
जुड़े मानव श्रृंखला को तोड़ो ना.

ऑक्सीजन की कमी को समझो ना,
पेड़-पौधे अधिक लगाओ ना.

सर्दी, खांसी, बुखार को छुपाओ ना,
जांच के लिए डॉक्टर के पास जाओ ना.

*****

फूलों सा मुस्काना

रचनाकार- डॉ. सतीश चन्द्र भगत

flowers

थककर बैठ नहीं जाना है
मिलकर कदम बढ़ाना है.
जो हैं लक्ष्य हमारे उसको
पाकर ही मुस्काना है.

बीता समय कहाँ आता है
साथ समय के चलना है.
छट जाएंगे तम के बादल
सूरज बन निकलना है.

बहती नदियाँ हमसे कहती
सबकी प्यास बुझाना है.
नई रौशनी खुशहाली की
घर- घर में फैलाना है.

बाधाओं से डरना क्या है
आगे कदम बढ़ाना है.
कांटों में खिलते गुलाब हैं
फूलों- सा मुस्काना है.

*****

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