छत्तीसगढ़ी बालगीत
देखौ संगी
रचनाकार- प्रमेशदीप मानिकपुरी
देखौ संगी कतेक सुघ्घर फागुन आये हे,
प्रीत के रंग म सबो संगी मन नहाये हे.
देखौ संगी कतेक सुघ्घर फागुन आये हे.
जम्मो डहर ख़ुशी हे, उमंग हे, बहार हे.
देख तो संगी कतेक सुघ्घर फागुन आये हे
प्रीत के रंग म सबो संगी मन नहाये हे.
देख तो संगी कतेक सुघ्घर फागुन आये हे.
जम्मो डहर ख़ुशी हे, उमंग हे, बहार हे.
जुरमिल के मनावन ये सबे के तिहार हे.
अमुवा हर घलो कइसे सुग्घर बउराये हे.
देखौ संगी कतेक सुघ्घर फागुन आये हे
प्रीत के रंग म सबो संगी मन नहाये हे.
कोनो बने कृष्ण इहा त कोनो बने हे राधा.
राधा कृष्णा,कृष्णा राधा बिना होली हे आधा.
कृष्णा रंग म रंगे बर मोरो मन हर भाये हे.
देखौ संगी कतेक सुघ्घर फागुन आये हे
प्रीत के रंग म सबो संगी मन नहाये हे.
कोनो ला संगी कोनो के संग मिले के आस हे.
तब कोनो ला अपन कोनो संगी के तलाश हे.
होली खेले बर संगी संग,सबके मन गुदगुदाए हे.
देखौ संगी कतेक सुघ्घर फागुन आये हे
प्रीत के रंग म सबो संगी मन नहाये हे.
मया-प्रीत के रंग मा खेलव सबझन होली.
नवरंग के जीवन म अपन बगराओ रंगोली.
नवा रंग ले,नवा ढंग ले प्रीत घलो खेले बर आये से.
देखौ संगी कतेक सुघ्घर फागुन आये हे
प्रीत के रंग म सबो संगी मन नहाये हे.
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होली
रचनाकार- कलेश्वर शत्रुहन साहू
आगे होली हमर संगवारी,
रंग भरव अपन पिचकारी.
उड़ाबो जी मया के गुलाल,
संगवारी मन हो जाही लाल.
सब्बो धरम मिलके मनाबो,
जाति-पाती भेद ल मिटाबो.
आगे होली हमर संगवारी,
रंग भरव अपन पिचकारी.
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हमर गांव के मड़ई मेला
रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू
मड़ई- मेला सुग्घर लागथे
दुख हमर ला जम्मो बिसराथे
दीदी बहिनी हाँसत आथे
जिनगी सुग्घर गीत सुनाथे
सगा पहुना घर घर आथे
गांव- गली तिहार कस लागथे
संगी संगवारी मन हर आथे
मया पिरीत के गोठ गोठियाथे.
नवा कपड़ा-लत्ता पहिर के
मड़ई- मेला घूमे ला जाथे
खोवा जलेबी रसगुल्ला खाके
मेला के जी मजा उड़ाथे.
खेल-खेलौना जम्मो लाथे
झूला झूल के बड़ भजा पाथे
दाई बहिनी मन मड़ई- मेला ले
झोला भर साग भाजी लाथे
नोनी बर पुतरा - पुतरी बिसाथे
बाबू बर फुग्गा तुतरु लाथे
गोड़ बर पनही नाक बर नथनी
चूरी-बिंदी, सिंदूर बिसाथे
लइका,सियान,बुढ़वा,जवान
मेला -मड़ई म मजा पाथे
नाचा-गम्मत खेल-कूद म
जिनगी के जम्मो सुख ल पाथे.
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गांव डहर जाबो
रचनाकार- अशोक कुमार पटेल
चल संगी चल ग भईया
गांव डहर जाबो,
गांव जाबो बखरी जाबो
खेत-खार जाबो.
गांव के देवाला म, गांव के चौपाला म,
चल ग संगी, बैईठक सकलाबो.
सुम्मत के मया बतराबो,
गांव म सुराज ल लाबो,
गांव ल मिल-जुर के सुरजाबो.
दलकी हे खोर गली,
चिखला हे खोर गली,
चला ग संगी रद्दा ल सुघराबो.
गाउ-गरूआ बंधाए हे,
बाहन-बइला धन्धाये हे,
चल परिया ल गउठान बनाबो.
गांव म कछार बखरी हे,
रद्दा जम्मो हर पैडग़री हे,
नवा डहर ल अब सिरजाबो.
तीर-तखार म डबरी हे,
तरिया-नरवा,सगरी हे,
बर-पीपर के बिरवा ल जगाबो.
तीर-तखार म डबरा हे,
जेमा भरे हावे कचरा हे,
घुरवा के दिन चला बहुराबो.
होए अब नवा बिहानी हे,
सब रहय अब मितानी हे,
चला सुमता के मया बगराबो.
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ज्ञान दे न दाई मोला ओ
रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु'
ज्ञान दे न दाई मोला ओ
बुद्धि दे न दाई मोला ओ,
बिनती ल मैं करत हावाँ
आसीस ल दे न मोला ओ.
ज्ञान के तय देवइया दाई
वीणा के तय बजईया ओ,
सुर के तय सिरजइया दाई
हंस के तय ह चढइया ओ.
सरगम के बनइया दाई
सात स्वर के बनइया ओ,
संगीत के तही ह बनइया
साज के तय बजइया ओ.
अकच्छर के बनइया दाई
राग के तय ह भरइया ओ,
गीत के तय बनइया दाई
मीठ मधुर के भरइया ओ.
ज्ञान के तय अंजोरी दाई
अंधियारी ल भगइया ओ,
सुनी ले मोर गुहारी दाई
तही हर मोर सुनइया ओ.
ब्रम्हा के तय ह बेटी दाई
सुमति के सिरजइया ओ,
बंदना मैं तोर करँव दाई
लाज के तय बचइया ओ.
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दाई ददा के राखव मान
रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू
दाई ददा हमर देवी देवता एखर राखव मान जी
जनम देवइया दाई ददा के झन करव अपमान जी.
झन जा तेहर मथुरा कासी कहना ला ओकर मान जी,
जतन कर ले दाई ददा के इही मन हरे भगवान जी.
बुढ़त काल म दाई ददा के संग ला काबर छोड़थो जी,
पाल-पोस के बड़े करइया संग काबर झगड़थो लड़थो जी.
दाई ददा हर अपन जिनगी के अनुभव घलो बताथे जी,
झूठ-लबारी ल छोड़ के सच के मारग देखाथे जी.
दाई दादा के सब जतन करलव सबके पारी आही जी,
जतन करहु ता जतन करही नहीं त ठेंगा देखाई जी,
दाई दादा के नाम ले घर के होथे तुम्हर पहचान जी,
दाई दादा बिन घर हर लागथे जइसे मरघट समसान जी.
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कइसे गुजरिस भाई
रचनाकार- आंचल
2020 में आगे करोना, दुनिया में छा गए रोना रोना.
त्राहि-त्राहि हो गे दुनिया, का पाना का खोना.
कोनो कइथे चीन के बेईमानी, कोनो कइथे प्रकृति से छेड़खानी.
ऐसे तो हावय भाई करोना की कहानी.
करोना जब जनमिस तो लोगन हो गए भौचक्का.
विदेश मा रहइया मन भागिस बिन चक्का.
मजदूर बनिहार के दुख है अपार.
का कहिबे संगवारी जिंनगी हो गे तार तार.
नान नान लइका ल लेके चलिस किलोमीटर हजार.
समझ म नइआईस का करिस सरकार.
नइ मिलिस मोटर नइ मिलिस गाड़ी
छोला गे हाथ अउ छोला गे माड़ी.
भूख प्यास हां अलग झेलावय.
कोरोना वारियर के याद दिलावय.
कोरोना वारियर बन के भगवान. अइसन दिखाईन अपने पहचान.
भाईचारा के शक्ति जागिस. वारियर मन के भक्ति जागिस.
कोनो बजाइन थाली त कोनो बजाईन ताली.
रोगहा कोरोना ला भगाए बर.
धूप दीप हवन अउ दीया जला के जैसे मनाईन दिवाली.
लॉक डाउन ह जान बचाईस गलती करैया डंडा खाइस.
क्वारंटाइन म रहे लागिस तब जाके करोना ह भागिस.
कोनों खोइस बहिनी कोनो खोइस भाई
कोनो खोइस ददा त कोनो खोइस दाई.
अइसे भी दिन आईस जेखर पूरा परिवार ला दफनाइस.
दुख पड़ गे भारी करोना जइसे महामारी.
बढ़ तांडव मचाइस करोना अब हमर हे बारी.
मास्को लगावव सैनिटाइज करव 2 गज की दूरी भी धरव
काबर की संगवारी हो
ना परिवार न पइसा साथ अपनी सुरक्षा अपने हाथ.
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रितु बसंत जब आथे
रचनाकार- बलदाऊ राम साहू
रितु बसंत हर जब-जब आथे
तब-तब सुख के भान कराथे.
आमा मउरे सेमर फुलथे
परसा सुघर रंग देखाथे.
देख के धरती के सुघराई
मन ह घलो हरषित हो जाथे.
मगन हो के चिरगुन मन संग
कोयल राग म राग मिलाथे.
मन उपजथे भाव नवा तब्ब
गीत - ग़ज़ल घलो बन जाथे.
बाजा बाजे गली - खोर मा
फाग के धून गजब सुहाथे.
मया-पिरित अंतस के भइया
रिस्ता हमर नवा हो जाथे.
कउनो करथे हँसी-ठिठोली
तब हमरे मन हर मुसकाथे.
रितु बसंत के करथे स्वागत
कंठ ओकर सुरसती हमाथे.
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