8
स्थितिप्रज्ञ

यह तड़ाग तालाब कीचड़ से भरे हैं,
सांस लेना भी यहाँ दूभर हुआ है.

जो सभी मंडूक कूपों में भरे थे,
अब उन्हीं का राज यहाँ चल रहा है.

नफ़रतों के सिलसिले को देखकर तो,
कालभैरव भी, ठठाकर हंस रहा है.

गीध और सियार भी बेचैन हैं सब,
जल्द ही जलसा... भरेगा लग रहा है.

ढह गई इमारतों की लकड़ियों पर,
देगची में जाने क्या? खड़क रहा है.

हर तरफ अजब सी एक शांति है...
फिर भी दिलों में तूफान उठ रहा है.

अब ‘अणिमा’ बा- खबर कैसे रहें हम!!
खबर से ईमान अपना डिग रहा है.

Visitor No. : 6753864
Site Developed and Hosted by Alok Shukla