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भारत में बैंकिंग

  1. भारत मे योरोपियन पैटर्न पर पहला बैंक – बैंक आफ हिन्दुस्तान था जो 1770 में स्थापित हुआ.
  2. भारतीयों व्दारा स्थापित पहला बैंक अवध कमर्सियल बैंक था जो 1881 में स्थापित हुआ और 1958 में बंद हो गया.
  3. पहला पूर्ण स्वदेशी बैंक जो आज भी संचालित है – पंजाब नेशनल बैंक 1894 में स्थापित हुआ.
  4. इंपीरियल बैंक आफ इंडिया की सथापना 1921 में प्रेसिडेंसी बैंकों को मिलाकर की गई. 1955 में इसका राष्ट्रीयकरण करके स्टेट बैंक आफ इंडिया बना. 2008 में स्टेट बैंक आफ सौराष्ट्र का इसमें विलय किया गया, 2000 में स्टेट बैंक आफ इंदौर का विलय किया गया, और 2017 में अन्य सभी स्टेट बेंकों – स्टेट बेंक आफ बीकानेर एंड जयपुर, स्टेट बैंक आफ मैसूर, स्टेट बैंक आफ त्रावणकोर, स्टेट बैंक आफ पटियाला, स्टेट बैंक आफ हैदराबाद एवं भारतीय महिला बैंक का इमें विलय कर दिया गया. यह भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक बैंक है.
  5. भारतीय रिजर्व बैंक – यह भारतीय मुद्रा पर नियंत्रण रखता है तथा भारत की मौद्रिक नीति निर्धारित करता है. यह रिर्जव बैंक आफ इंडिया अधिनियम 1934 के अंर्तगत स्थापित किया गया था. प्रारंभ में यह निजी हाथों में था. 1 जनवरी 1949 को इसका राष्ट्रीयकरण किया गया.
  6. 19 जुलाई 1969 को 14 बड़े निजी व्यापारिक बेंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया. उस समय इनमें जमा राशि 50 करोड़ रुपये से अधिक थी.
  7. 1969 में ही रिजर्व बैंक ने लीड बैंक योजना लागू की.
  8. 1975 में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक बनाए गए.
  9. 15 अप्रेल 1980 को 6 और निजी बेंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया जिनमे जमा राशि 200 करोड़ रुपये से अधि‍क थी.

प्रमुख समितियां 1991 – नरसिम्हन समिति – 1, 1998 – नरसिम्हन समिति – 2, 2008 – रघुराम राजन समिति

ग्रामीण क्षेत्र की बैंकिंग के लिये प्रमुख बैंक

  1. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक यह ग्रामीण क्षेत्र में बैंकिंग सुविधा के विस्तार के लिय बनाए गए थे. इनका गठन 1975 में हुआ. अधिकतर ज़ि‍ला स्तर पर लीड बैंक एवं राज्य सरकार के सहयोग से गोवा और सिक्किम को छोड़कर 196 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक स्थापित. बाद में अनेक का आपस मे विलय हो जाने से इनकी संख्या अब घटकर 56 हो गई है.
  2. सहकारी बैंक सबसे निचले स्तर पर प्राथमिक कृषि सहकारी समिति (PACS) एवं आदिवासी क्षेत्रों में वृहत क्षेत्र बहुउद्देशीय सहकारी समिति (LAMPS), जिला स्तर पर जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक एवं राज्य स्तर पर एपेक्स, बैंक या राज्य सहकारी बैंक होता है. यह मुख्य रूप से कृषि ऋण उपलब्ध कराते हैं और कृषि कार्यों के लिये शासकीय अनुदान भी इनके माध्यम से वितरित होता है. इनके ऋण का एक हिस्सा वस्तुय के रूप में खाद, बीज, कीटनाशक आदि के रूप में भी होता है. छत्तीसगढ़ और कुछ अन्य‍ राज्यों में यह खाद्यान्नों की सरकारी खरीद का काम भी करते हैं.

विकास बैंकिंग संस्थाएं

विकास बैंकिग संस्थासओं का उद्देश्य विकास के लिए साख उपलब्ध कराना होता है. यह विषेष प्रकार की संस्थाएं होती है जो व्यापारिक बैंको की तरह जनता से जमा राशि नहीं लेती और जनता के खाते नही खोलती हैं. यह विशिष्ट विकास योजनाओं के लिये कृषि, उद्योग और अधोसंरचना के लिये मध्यम और लंबे समय की साख उपलब्ध कराती हैं. इनका मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना नहीं बल्कि अर्थव्यवस्था का विकास होता है. यह अन्य वित्तीयय संस्थाओं से प्रतिस्पार्धा नहीं करती बल्कि उनका सहयोग करती हैं. भारत में विकास बैंकिंग की प्रमुख संस्था्एं हैं -

  1. कृषि एवं ग्रामीण विकास बेंक (NABARD) वर्ष 1982 में स्थापित. इसका उद्देश्य ग्रामीण साख को बढ़ावा देना है. यह कृषि, ग्रमीण उद्योग, ग्रमीण दस्त्कारी आदि के लिये साख उपलब्ध कराता है.
  2. भूमि विकास बैंक 1929 से कार्यरत. पुराना नाम भूमि बंधक बैंक. मुख्य रूप ये कृषि ऋण.
  3. भारतीय लघुउद्योग विकास बैंक (SIDBI) - यह भारत की स्वतंत्र वित्तीय संस्था है जो सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों की वृद्धि एवं विकास के लक्ष्य से स्थापित किया गई है. यह लघु उद्योग क्षेत्र के संवर्द्धन, वित्तपोषण और विकास तथा इसी तरह की गतिविधियों में लगी अन्य संस्थाओं के कार्यां में समन्वयन के लिए प्रमुख विकास वित्तीय संस्था है. सिडबी की स्थापना 2 अप्रैल 1990 को हुई.
  4. भारतीय औद्योगिक वित्त निगम (IFCI) - औद्योगिक क्षेत्र की दीर्घकालिक वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रथम विकास वित्तीय संस्थान के रूप में 1 जुलाई, 1948 को भारतीय औद्योगिक वित्त निगम (आईएफसीआई) की स्थापना की. वर्ष 1993 में आईएफसीआई के संविधान में परिवर्तन करके इसे सांविधिक निगम मे बदलकर भारतीय कम्पनी अधिनियम, 1956 के अधीन एक कम्पनी बनाया गया. इसके पश्चात् अक्तूबर, 1999 से कम्पनी का नाम भी बदलकर आईएफसीआई लिमिटेड कर दिया गया.
  5. भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (IDBI) - इसकी स्थापना जुलाई 1964 में रिजर्व बैंक की पूर्ण स्वामित्व की संस्थाा के रूप में हुई थी. 1976 में यह स्वायत्त संस्था बन गई. यह औद्योगिक क्षेत्र में साख प्रदान करने का काम करती है.
  6. एक्जि‍म बैंक (EXIM Bank) - यह 1982 में निर्यात-आयात बैंक आफ इंडिया अधिनियम 1981 के अंतर्गत स्थापित किया गया था. इसका उद्देश्य निर्यातकों और आयातकों को वित्तीय सहायता प्रदान करना हैं. यह देश के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के संवर्धन की दृष्टि से माल एवं सेवाओं के निर्यात और आयात का वित्तपोषण करने वाली संस्थाओं के कामकाज का समन्वय करने के लिए प्रमुख वित्तीय संस्था है.

शब्दावली

अनुसूचित बैंक - वे बैंक जिन्हें भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 की दूसरी अनुसूची में शामिल कर लिया जाता है वे अनुसूचित बैंक कहलाते हैं. यह बैंक रिजर्व बैंक व्दारा निर्धरित नियमों को पूरा करते हैं.

अनुसूचित एवं गैर अनुसूचित बैंकों में अंतर

  1. अनुसूचित बेंकों की प्रदत्त पूंजी कम से कम 25 लाख होना चाहिये.
  2. अनुसूचित बैंक रिजर्व बैंक आफ इंडिया अधिनियम की दूसरी अनुसूची में शामिल होते हैं.
  3. अनुसूचित बैंकों को न्यूनतम नगद आरक्षण अनुपात (cash reserves) रिजर्व बैंक में रखना हेाता है, जबकि गैर अनुसूचित बैंक इसे अपने पास ही रखते हैं.
  4. अनुसूचत बैंक रिजर्व बैंक से अपनी आवश्यकता के लिये साख प्राप्त कर सकते हैं.
  5. अनुसूचित बैंको को निश्चित समय पर रिजर्व बैंक को रिर्टन आदि भेजना हेाता है.
  6. अनुसूचित बैकों को समाशोधन गृह का सदस्य होने की सुविधा प्राप्त हेाती है.
  7. राष्ट्रीयक्रत बैंक वे बैंक हैं जि‍नका स्वामित्व सरकार के पास हैं.

    गैर निष्पादनीय संपत्ति (Non-Productive Asset - NPA)वे ऋण हैं जिनकी मूलधन और ब्याज की वापसी या तो बिल्कुल नहीं हो पाती या समय पर नहीं हो पाती है.

    भारतीय रिजर्व बैंक के कार्य

    भारतीय रिज़र्व बैंक की प्रस्तावना में बैंक के मूल कार्य इस प्रकार वर्णित किए गए हैं:

    "भारत में मौद्रिक स्थिरता प्राप्त करने की दृष्टि से बैंकनोटों के निर्गम को विनियमित करना तथा प्रारक्षित निधि को बनाए रखना और सामान्य रूप से देश के हित में मुद्रा और ऋण प्रणाली संचालित करना, अत्यधिक जटिल अर्थव्यवस्था की चुनौती से निपटने के लिए आधुनिक मौद्रिक नीति फ्रेमवर्क रखना, वृध्दि के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखना."

    1. वित्तीय पर्यवेक्षण - रिज़र्व बैंक यह कार्य वित्तीय पर्यवेक्षण बोर्ड (बीएफएस) के दिशा- निर्देशों के अनुसार करता है. इस बोर्ड की स्थापना भारतीय रिज़र्व बैंक के केंद्रीय निदेशक बोर्ड की एक समिति के रूप में नवंबर 1994 में की गई थी. बैंकिंग पर्यवेक्षण बोर्ड व्दारा किये गए प्रयत्नों में निम्नलिखित शमिल हैं:
      1. बैंक निरीक्षण प्रणाली की पुनर्रचना
      2. कार्यस्थल से दूर की निगरानी को लागू करना
      3. सांविधिक लेखा परीक्षकों की भूमिका को सुदृढ़ करना
      4. पर्यवेक्षि‍त संस्थाओं की आंतरिक प्रतिरक्षा प्रणाली का सुदृढ़ीकरण
      5. वर्तमान लक्ष्य हैं - वित्तीय संस्थाओं का निरीक्षण, समेकित लेखाकार्य, बैंक धोखाधड़ी से संबंधित कानूनी मामले, अनर्जक अस्तियों के निर्धारण में विविधता, बैंकों के लिए पर्यवेक्षी रेटिंग मॉडल
    2. मौद्रिक प्रधिकारी - मौद्रिक नीति तैयार करता है,उसका कार्यान्वयन करता है और उसकी निगरानी करता है. मौद्रिक नीति का विकास के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता रखने के लिये बनाई जाती है.
    3. वित्तीय प्रणाली का विनियामक और पर्यवेक्षक - बैंकिंग परिचालन के लिए विस्तृत मानदंड निर्धारित करता है जिसके अंतर्गत देश की बैंकिंग और वित्तीय प्रणाली काम करती है. इसका उद्देश्य बैंकिंग प्रणाली में लोगों का विश्वास बनाए रखना, जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करना और आम जनता को किफायती बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराना हैं.
    4. विदेशी मुद्रा प्रबंधक - विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 का प्रबंध करता है. इसका उद्देश्य विदेश व्यापार और भुगतान को सुविधाजनक बनाना और भारत में विदेशी मुद्रा बाजार का क्रमिक विकास करना और उसे बनाए रखना हैं.
    5. मुद्रा जारीकर्ता- करेंसी जारी करता है और उसका विनिमय करता है अथवा परिचालन के योग्य नहीं रहने पर करेंसी और सिक्कों को नष्ट करता है. इसका उद्देश्य आम जनता को अच्छी गुणवत्ता वाले करेंसी नोटों और सिक्कों की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध कराना हैं.
    6. विकासात्मक भूमिका - राष्ट्रीय उद्देश्यों की सहायता के लिए व्यापक स्तर पर प्रोत्साहनात्मक कार्य करना.
    7. अन्य कार्य
      1. सरकार का बैंकर : केंद्र और राज्य सरकारों के लिए व्यापारी बैंक की भूमिका अदा करता है; उनके बैंकर का कार्य भी करता है.
      2. बैंकों के लिए बैंकर : सभी अनुसूचित बैंकों के बैंक खाते रखता है.

    बैंकिंग से संबंधित महत्वंपूर्ण कानून

    1. सर्वोच्च अधिनियम -
      1. भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934: रिज़र्व बैंक के कार्यों पर नियंत्रण करता है.
      2. बैंककारी विनियम अधिनियम, 1949: वित्तीय क्षेत्र पर नियंत्रण करता है.
    2. विशिष्ट कार्यों को नियंत्रित करने के लिए अधिनियम -
      1. लोक ऋण अधिनियम, 1944/सरकारी प्रतिभूति अधिनियम (प्रस्तवित): सरकारी ऋण बाज़ार पर नियंत्रण
      2. प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956 : सरकारी प्रतिभूति बाज़ार पर नियंत्रण
      3. भारतीय सिक्का अधिनियम, 1906 : मुद्रा और सिक्कों पर नियंत्रण
      4. विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1973/विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 : व्यापार और विदेशी मुद्रा बाज़ार पर नियंत्रण
    3. बैंकिंग परिचालन को नियंत्रित करने वाले अधिनियम -
      1. कंपनी अधिनियम, 1956 और 2013 : कंपनी के रूप में बैंकों पर नियंत्रण
      2. बैंकिंग कंपनी (उपक्रमों का अधिग्रहण और अंतरण) अधिनियम 1970/1080: बैंकों के राष्ट्रीयकरण से संबंधित
      3. बैंकर बही साक्ष्य अधिनियम, 1891
      4. बैंकिंग गोपनीयता अधिनियम
      5. परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881

    रिजर्व बैंक व्दारा साख नियंत्रण के उपाय यह उपाय 2 प्रकार के हैं – मात्रात्मक और गुणात्मक.

    मात्रात्मक उपाय यह उपाय बैंकों के पास उपलब्ध नकदी की मात्रा को प्रभावित करते हैं.

    1. रेपो रेट (Repo – Repurchase Option Rate) यह अल्पाकालिक ऋण पर लिए जाने वाले बयाज की दर है. केन्द्रीय बैंक प्रतिभूतियों के पुन: क्रय की शर्त पर व्यापारिक बैंकों को ऋण प्रदान करता है तब इस दर पर ब्याज लिया जाता है. बैंकों को अपने दैनिक कामकाज के लिए प्राय: ऐसी बड़ी रकम की जरूरत होती है जिनकी मियाद एक दिन से ज्यादा नहीं होती. इसके लिए बैंक जो विकल्प अपनाते हैं, उनमें सबसे सामान्य है केंद्रीय बैंक (भारत में रिजर्व बैंक) से रात भर के लिए (ओवरनाइट) कर्ज लेना. इस कर्ज पर रिजर्व बैंक को उन्हें जो ब्याज देना पड़ता है, उसे ही रेपो दर कहते हैं.
    2. रिवर्स रेपो रेट - नाम के ही मुताबिक रिवर्स रेपो दर ऊपर बताए गए रेपो दर से उलटा होता है. बैंकों के पास दिन भर के कामकाज के बाद बहुत बार एक बड़ी रकम शेष बच जाती है. बैंक वह रकम अपने पास रखने के बजाय रिजर्व बैंक में रख सकते हैं, जिस पर उन्हें रिजर्व बैंक से ब्याज भी मिलता है. जिस दर पर यह ब्याज मिलता है, उसे रिवर्स रेपो दर कहते हैं. अगर रिजर्व बैंक को लगता है कि बाजार में बहुत ज्यादा नकदी है, तो वह रिवर्स रेपो दर में बढ़ोतरी कर देता है, जिससे बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपना धन रिजर्व बैंक के पास रखने को प्रोत्साहित होते हैं और इस तरह उनके पास बाजार में छोड़ने के लिए कम धन बचता है.
    3. बैंक दर - बैंक दर वह ब्याज दर है जिस पर केन्द्रीय बैंक (रिजर्व बैंक) प्रथम श्रेणी तथा अनुमोदित प्रतिभूतियों की जमानत पर व्यापारिक बैंकों को ऋण देता है.
    4. न्यूनतम नकद आरक्षण अनुपात या कैश रिजर्व रेशि‍यो (सीआरआर) - सभी बैंकों के लिए जरूरी होता है कि वह अपने कुल कैश का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास जमा रखें. इसे नकद आरक्षी अनुपात कहते हैं. ऐसा इसलिए होता है कि अगर किसी भी मौके पर एक साथ बहुत बड़ी संख्या में जमाकर्ता अपना पैसा निकालने आ जाएं तो बैंक डिफॉल्ट न कर सके.
    5. वैधानिक तरलता अनुपात (Statutory Liquidity Ratio - SLR) हर बैंक को अपनी जमा राशि का कुछ अनुपात केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार की वित्तीय प्रतिभूतियों में निवेश करना है. यह अनुपात एसएलआर के रूप में जाना जाता है. यह जमा राशि मुख्य रूप से सरकारी प्रतिभूतियों (बांड), नकदी, सोने और गैर–अनुमोदित में निवेश किया जाता है, जिसका मतलब है कि बैंक सीआरआर की अपेक्षा इन निवेशों पर कुछ हद तक 'ब्याज' कमा सकते हैं. एसएलआर समय देनदारियों और कुल मांग के प्रतिशत के आधार पर निर्धारित होता है. समय देयताएं, बैंकों को एक निश्चित अवधि के बाद परस्पर सहमति से ग्राहकों को भुगतान करने के लिए जिम्मेदार हैं, और मांग की देनदारियां ऐसे ग्राहकों की ऐसी जमा हैं जो मांग पर देय हैं. समय दायित्व का एक उदाहरण– सावधि जमा है जो कि मांग पर देय नहीं है, लेकिन केवल निर्धारित समय के बाद देय है. मांग देयता का एक उदाहरण बचत खाते या चालू खाते में जमा है जो मांग पर देय है– जैसे चेक. एसएलआर आमतौर पर मुद्रास्फीति को बढ़ाने या घटाने के लिए उपयोग किया जाता है. 7.02.2017 की स्थिति में सएलआर 20.50% है.

    गुणात्मक या चयनात्म क उपाय इन उपायों से आर्थिक क्रिया के व्दारा साख का नियंत्रण किया जाता है -

    1. क्रेडिट राशनिंग इस पध्दति में (उच्च मुद्रास्फीति के समय) ऋण सिर्फ उन्हीं क्षेत्रों में दिया जाता है जो अर्थव्यवस्था के लिए बहुत महत्वपूर्ण (उत्पादक उधार देना) होते हैं. अन्य उपाय है, धन की आपूर्ति की जांच के लिए सीमा को बढ़ाने के बाद अन्य ऋणों पर ब्याज का निर्धारण.
    2. ऋण मार्जिन में बदलाव-इस विधि के तहत बैंक गिरवी रखी गई संपत्ति के मान के कुछ प्रतिशत तक ही ऋण देते हैं. गिरवी रखी गई संपत्ति और दिए गए ऋण की धनराशि के बीच का अंतर ऋण मार्जिन कहलाता है.
    3. नैतिक प्रत्यायन- नैतिक प्रत्यायन आरबीआई के निर्देशों के अनुरुप वाणिज्यिक बैंकों को ऋण के अग्रिम का भुगतान करने के लिए मनाना है. इस विधि के तहत आरबीआई वाणिज्यिक बैंकों से देश में धन की आपूर्ति के प्रबंधन में सहयोग की बात करता है.
    4. खुले बाज़ार की क्रियाएंरिजर्व बैंक मुद्रा बाज़ार में सरकारी प्रतिभूतियों तथा प्रथम श्रेणी के बिलों व प्रतिज्ञा पत्रों का क्रय-विक्रय करती है.

    प्रधान मंत्री जन-धन योजना

    प्रधानमंत्री जन धन योजना (संक्षेप में - पीएमजेडीवाई) भारत में वित्तीय समावेशन पर राष्ट्रीय मिशन है और जिसका उद्देश्य देश भर में सभी परिवारों को बैंकिंग सुविधाएं मुहैया कराना और हर परिवार का बैंक खाता खोलना है. इस योजना की घोषणा 15 अगस्त 2014 को तथा इसका शुभारंभ 28 अगस्त 2014 को भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने किया. इस परियोजना की औपचारिक शुरुआत से पहले प्रधानमंत्री ने सभी बैंको को इ-मेल भेजा जिसमें उन्होंने 'हर परिवार के लिए बैंक खाता' को एक 'राष्ट्री य प्राथमिकता' घोषित किया और सात करोड़ से भी अधिक परिवारों को इस योजना में प्रवेश देने और उनका खाता खोलने के लिए सभी बैंको को कमर कसने को कहा. योजना के उदघाटन के दिन ही 1.5 करोड़ बैंक खाते खोले गए.

    जन धन योजना के लाभ - इस खाते में मिनिमम बैलेंस रखने की जरूरत नहीं है और 5000 रुपये के ओवर ड्राफ्ट की भी सुविधा दी गई है. इसके साथ इंश्योरेंस, पेंशन प्रोडक्ट की सुविधा मिल रही है. अकाउंट खोलने के लिए फिंगर प्रिंट से अकाउंट खुलेगा और आधार कार्ड के जरिए ई-केवाईसी किया जाएगा. इसके अलावा वोटर आईडी कार्ड, राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, सरपंच या किसी सरकारी अधिकारी का पत्र, नरेगा कार्ड, बिजली और टेलीफोन बिल या बर्थ और मैरिज सटिर्फिकेट के जरिए भी अकाउंट खोला जा सकता है. जन-धन योजना बड़े काम की है और देश में फाइनेंशियल इनक्लूजन के लिए जरूरी है. देश में 42 फीसदी लोगों के पास बैंक अकाउंट नहीं है और क्रिसिल के मुताबिक 40 फीसदी लोगों तक ही फाइनेंशियल सर्विस उपलब्ध हैं. इसके जरिए बैंकिंग, कर्ज, बीमा, पेंशन, डेबिट कार्ड सेवा का विस्तार होगा.

    प्रायॉरिटी सेक्टर लेंडिंग

    आरबीआई के नियमों के हिसाब से बैंकों को अपने कुल लोन का एक हिस्सा विकास के कामों के लिए देना पड़ता है. इसे ही प्रायॉरिटी सेक्टर लेंडिंग कहा जाता है. इसकी लिमिट बैंक के ओनरशिप पैटर्न के हिसाब से तय होती है. लोकल बैंकों-प्राइवेट और पब्लिक, दोनों को अपने नेट बैंक क्रेडिट यानी एनबीसी का 40 फीसदी प्रायॉरिटी सेक्टर को देना होता है। फारेन बैंकों के लिए यह लिमिट 32 फीसदी रखी गई है. घरेलू बैंकों को एनबीसी का 18 फीसदी लोन अग्रीकल्चर और 10 फीसदी लोन समाज के कमजोर तबके को देना होता है. लेकिन विदेशी बैंकों को एनबीसी का 10 फीसदी लोन स्मॉल स्केल इंडस्ट्री को देना होता है. ये एनबीसी का 12 फीसदी लोन एक्सपोर्ट क्रेडिट के रूप में दे सकते हैं. प्रायॉरिटी सेक्टर लेंडिंग की बाकी रकम से कई सेक्टर को लोन बांटा जा सकता है. रिजर्व बैंक ने प्रायॉरिटी सेक्टर का डिटेल नोट बनाया हुआ है जिसमें हाउसिंग लोन, एजुकेशन लोन, एमएफआई लोन वगैरह होता है. लोकल बैंकों को प्रायॉरिटी सेक्टर लेंडिंग में कमी की भरपाई के लिए नाबार्ड के रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट फंड (आरआईडीएफ) में योगदान करना होता है. अगर विदेशी बैंक प्रायॉरिटी सेक्टर का लेंडिंग टारगेट या सब-टारगेट चूकते हैं तो उनको उतनी रकम एक साल के लिए सिडबी के पास जमा करनी पड़ती है.

    प्रधान मंत्री मुद्रा योजना

    इस योजना के अंतर्गत सरकार व्दारा लोन प्राप्त करके आप अपने व्यवसाय को सुचारू रूप से चला सकते हैं. इसके अंतर्गत कोई भी नागरिक भारत सरकार द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त कर सकता है. मुद्रा का पूरा नाम माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी लिमिटेड है. इस संस्था का मुख्य लक्ष्य देश के कारपोरेट और छोटे व्यवसाइयों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है.

    मुद्रा योजना के लाभ

    1. नागरिकों को बिना किसी गारंटी के लोन उपलब्ध कराया जाता है
    2. लोन पर किसी भी तरह की प्रोसेसिंग फीस नहीं लगती है
    3. योजना के अंतर्गत मिलने वाले लोन की भुगतान अवधि को 5 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है
    4. इस योजना के अंतर्गत मिलने वाले लोन की ब्याज दर अन्य बैंक लोन से कम होती है

    मुद्रा योजना के प्रकार और उनके अंतर्गत मिलने वाली धनराशि

    1. शिशु ऋण - इसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति जो अपना छोटा बिजनेस स्थापित करना चाहता है या अपने चल रहे बिजनेस को आगे बढ़ाना चाहता है तो इसके अंतर्गत ₹ 50000 तक का लोन प्राप्त कर सकता है. इसके अंतर्गत ब्याज दर 10 से 12% तक रहती है.
    2. किशोर ऋण- यह उन लोगों के लिए है, जो अपने कारोबार को और अधिक विस्तारित करना चाहते हैं. इसके अंतर्गत ₹ 50000 से लेकर ₹ 5 लाख तक का लोन प्राप्त किया जा सकता है. इस लोन के अंतर्गत ब्याज दर 14 से 17% तक रहती है.
    3. तरुण ऋण - इस लोन के अंतर्गत वह सभी छोटे कारोबारी ऋण प्राप्त कर सकते हैं जो अपने कारोबार को विस्तारित करना चाहते हैं. इसके अंतर्गत कोई भी पात्र नागरिक 10 लाख रुपए तक का लोन प्राप्त कर सकता है. इस लोन के अंतर्गत ब्याज दर 16 प्रतिशत से शुरू होती हैं.
    4. भारत के 500 और 1000 रुपये के नोटों के विमुद्रीकरण - जिसे मीडिया में छोटे रूप में नोटबंदी कहा गया, की घोषणा 8 नवम्बर 2016 को रात आठ बजे (आईएसटी) भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व्दारा अचानक राष्ट्र को किये गए संबोधन के व्दारा की गयी. यह संबोधन टीवी के व्दारा किया गया। इस घोषणा में 8 नवम्बर की आधी रात से देश में 500 और 1000 रुपये के नोटों को खत्म करने का ऐलान किया गया। इसका उद्देश्य केवल काले धन पर नियंत्रण ही नहीं बल्कि जाली नोटों से छुटकारा पाना भी था.

      नोटबंदी लाभ : -

      1. 18 लाख संदिग्ध खातों की जांच की गई.
      2. 2.89 लाख करोड़ रुपये के कैश डिपाज़ि‍ट की जांच हो रही है.
      3. एडवान्ड डेटा एनालिटिक्स टूल से 5.56 लाख नए संदिग्ध मामलों की पहचान हुई है.
      4. 4,73,003 संदिग्ध लेन-देन का पता चला.
      5. 29,213 करोड़ के अघोषित आय का पता चला.
      6. नोटबंदी के बाद 16,000 करोड़ रुपये का काला धन वापस नहीं आया.
      7. बाज़ार में कैश ट्राज़ेक्शन 21% घटा.
      8. 56 लाख नए करदाता जुड़े.
      9. आयकर रिटर्न भरने वालों की संख्या में गत वर्ष की 9.9% की वृध्दि की तुलना में इस वर्ष 24.79% की वृध्दि.
      10. स्वयं आंकलन आयकर में गत वर्ष की तुलना में 34.25% की वृध्दि.
      11. 3 लाख से अधिक संदिग्ध शेल कंपनियों पर नज़र रखी जा रही है.
      12. 2.1 लाख शेल कंपनियों का पंजीकरण रद्द हुआ.
      13. काला धन और हवाला लेन-देन को छिपाने वाली 37,000 से अधिक शेल कंपनियो की पहचान कर ली गई.
      14. 400 से अधिक बेनामी लेन-देन की पहचान और 800 करोड़ से अधिक की वेनामी संपत्ति जप्त की गई.
      15. बैंकिंग प्रणाली में जमा राशि में 3 लाख करोड़ की वृध्दि.
      16. बैंकों में आये अतिरिक्त धन से ब्याज दरों में 100 बेसिस प्वाइंट की कटौती.
      17. डिजिटल भुगतान में 56% की वृध्दि.
      18. एक करोड़ से अधिक श्रमिकों को ई.पी.एफ. और ई.एस.आई.सी. से जोड़ा गया.
      19. 50 लाख से अधिक श्रमिकों का बैंक खाता खुला जिससे उनका वेतन सीधे खाते मे जमा किया जा सके.

      नोटबंदी की हानियां : -

      1. कैश के लिये आम आदमी को लंबी कतारों में खड़ा होना पड़ा.
      2. कुछ समय में लिये अर्थव्यवस्था की बढ़त धीमी हो गई.
      3. दैनिक मजदूरी प्राप्त करने वाले लोगों को परेशानी का समाना करना पड़ा.
      4. सब्जी , फल की कीमतें बढ़ीं.
      5. रोज़गार, उत्पा दन, खपत और निवेश में कमी आने से जीडीपी ग्रोथ में कमी आई.
      6. अपेक्षा से अधिक रकम बेंकों में जमा की गई जिसका अर्थ है कि बहुत से लोग अपना काला धन सफेद करने में सफल हो गए.
      7. नोटबंदी का असर केवल पुराने काले धन के स्टा क पर ही पड़ता है. नया कालाधन बनने पर नहीं. ऐसी खबरें आना प्रारंभ हो गई है कि नए नोटों की रिश्वत दी जा रही है जो कई स्थानों से जप्त भी हुए हैं.

      भारत के बैंको की प्रमुख समस्याएं

      1. एन.पी.ए. की समस्या जून 2014 बैंकों के कुल एन.पी.ए. 2.34 लाख करोड़ रुपये थे जो दिसंबर 2016 की स्थिति में बढ़कर 6.46 लाख करोड़ रुपये हो गये. ऋण वसूली के लिये बनाए गए कड़े कानून और उपायों का बहुत लाभ होता नहीं दिख रहा है. हाल ही में भारतीय रिज़र्व बेंक की सलाह पर बैंकों ने 12 बड़े डिफाल्टरों के विरुध्द दीवालिया कानून में कार्यवाही प्रारंभ की. यह कार्यवाही प्रारंभ होते ही बाज़ार में मानो भूकंप सा आ गया. इसका सबसे बुरा असर मध्यम वर्ग पर पड़ा. जे.पी. इंफ्राटेक पर कार्यवाही के फलस्व रूप उसकी आवासीय परियोजनाओं में घर खरीदने वाले मध्यहमवर्गीय परिवारों की गाढ़ी कमाई का पैसा डूबने की संभावनाएं उत्पन्न हो गईं. रियल एस्‍टेट और प्रापर्टी बाज़ार धराशाही हो गया. सुना गया है कि रिज़र्व बैंक ने 40 और कंपनियों पर दीवालियेपन की कार्यवाही प्रारंभ करने की अनुशंसा की है. इतनी सारी बड़ी-बड़ी कंपनियो के दीवालिया होने से अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ना तो निश्चित ही है. विजय माल्या और नीरव मोदी आदि के प्रकरणों से पता चला है कि बैंक अधिकारियों और कुछ उद्योगपतियों के बीच मिली भगत के कारण कुछ घोटाले भी हुए है जिनके आधार पर आपराधिक प्रकरण भी दर्ज किए गए हैं.
      2. बैंक क्रेडिट वृध्दि में लगातार कमी भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार वित्त वर्ष 2017 में बैंक क्रेडिट में 5.1% की वृध्दि हुई जो पिछले 60 सालों में सबसे कम है और पिछले साल की तुलना में आधे से भी कम है. इसी अवधि में बेंकों के डिपाज़ि‍ट में 11.8% की वृध्दि हुई है. बेंकों के पास ऋण देने के लिये लगभग 108 लाख करोड़ रुपये उपलब्ध हैं परन्तु एन.पी.ए. की बड़ी संख्या और मांग में कमी के कारण वे इसका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं. आर्थिक गतिविधियों में कमी का बुरा असर अर्थव्य़वस्था पर पड़ना नि‍श्चित है.

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