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भारत में ऊर्जा सुरक्षा

किसी भी देश के लोगों के रहन-सहन के अच्छे स्तर के लिए ऊर्जा की उपलब्धता अत्यंत महत्वपूर्ण है. जीवन की साधारण गतिविधियों जैसे खाना पकाना, सफाई करना, परिवहन, संप्रेषण, आदि सभी के लिए ऊर्जा आवश्यक है. यह माना जाता है कि किसी देश के विकास का स्तर उसकी प्रति व्‍यक्ति ऊर्जा खपत से मापा जा सकता है. भारत की ऊर्जा खपत विश्व की कुल ऊर्जा खपत की लगभग 3.5% है जबकि भारत में दुनिया के 17% लोग रहते हें. भारत के गांवों में बड़ी संख्या में लोग अभी भी अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिये ठोस बायोमास, जैसे गोबर, लकड़ी और कोयले पर नि‍र्भर हैं. नीति आयोग के आंकलन के अनुसार देश में लगभग 30 करोड़ लोगों की बिजली तक पहुंच नहीं है. भारत सरकार की योजना है कि वर्ष 2022 तक सभी लोगों को चौबीस घंटे सभी दिन बिजली मिल सके. इसी प्रकार प्रधान मंत्री उज्जवला योजना के माध्यम से गांव की महिलाओं को खाना पकाने के लिये कुकिंग गैस देने का प्रयास किया जा रहा है. इन योजनाओं के असर से भारत की ऊर्जा की मांग में काफी वृध्दि होने की संभावना है. इसके साथ ही देश के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण और औद्योगिक उत्पादन का हिस्सा 16% से बढ़कर 25% होने के संभावना भी है. नीति आयोग व्दारा तैयार किए गये भारत ऊर्जा सुरक्षा परिदृश्य (आई.ई.एस.एस.) 2047, के अनुसार वर्ष 2040 तक भारत की ऊर्जा मांग में 2.7 से 3.2 गुना की वृध्दि होगी. 2012 से 2040 के बीच केवल बिजली की मांग में ही 4.5 गुना की वृध्दि हो सकती है.

उपर्युक्त आंकलन के आधार पर नीति आयोग ने भारत की ऊर्जा नीति के 4 प्रमुख उद्देश्य निर्धारित किए हैं. यह उद्देश्य हैं – उचित मूल्य पर ऊर्जा की उपलब्ध‍ता, बेहतर ऊर्जा सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास. भारत ऊर्जा का बड़ा उत्पादक नही है, इसलिये ऊर्जा की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों पर भारत का नियंत्रण संभव नहीं है. इस कारण आम जनता को उचित मूल्य पर ऊर्जा उपलब्ध कराने के लिए लंबे समय तक गरीबों को आर्थिक अनुदान देना पड़ेगा. गरीबों और अमीरों के लिये अलग मूल्य निर्धारण पर भी विचार किया जा सकता है. ऊर्जा सुरक्षा भारत के लिये एक बड़ी चुनौती है. इसके लिये हमे विज्ञान और प्रौद्योगिकी, ऊर्जा प्रबंधन एवं कूटनीति के मिले जुले प्रयास करना होंगे. पर्यावरण संरंक्षण की चिंताएं भी कभी-कभी मूल्य और आयात की चिंताओं की विपरीत भी हो सकती हैं. हमे यह याद रखना होगा कि तीव्र आर्थिक वृध्दि के लिये अधिक ऊर्जा की आवश्यंकता होगी और हमें इसके लिये तैयार रहना होगा.

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार ऊर्जा सुरक्षा का अर्थ है – "उचित मूल्य पर ऊर्जा की निरंतर उपलब्धता." भारत में गरीबी और अभावों को देखते हुए लोगों को उचित मूल्य पर ऊर्जा उपलब्ध कराने की अवश्यकता को कम करके नहीं आंका जा सकता. आज भी भारत के लगभग 30 करोड़ लोगों को बिजली उपलब्ध नहीं है और लगभग 50 करोड़ लोग खाना पकाने के लिये ठोस बायोमास पर निर्भर हैं. वर्ष 2015-16 के बजट में 2022 तक सभी परिवारों तक बिजली पहुंचाने का जो वादा किया गया था उसे पूरा करने के लिये और सभी लोगों को खाना पकाने का साफ सुथरा ईंधन उपलब्ध कराने के लिये एक राष्ट्रीय ऊर्जा नीति की बहुत आवश्यकता है. इस नीति में तीव्र उद्योगों को भी उचित मूल्य पर ऊर्जा उपलब्ध कराने का प्रावधान करना आवश्यक है. समय के साथ हमे देश के भीतर ऊर्जा के भंडारण के तरीकों पर भी विचार करना होगा जिससे आपात समय में आयात पर हमारी निर्भरता कम हो सके.

वर्तमान अनुमान के अनुसार भारत में 5.7 अरब बैरेल तेल का भंडार है, 47 खरब क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस और 60,600 अरब टन कोयला है. आज भी भारत की लगभग 70% ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति जीवाश्म र्इंधन से ही होती है. इसका 52.9% कोयले से, 29.6% तेल से और 10.6% प्रकृतिक गैस से मिलता है. पुनःप्राप्य ऊर्जा स्रोतों से केवल 13% और नाभिकीय स्रोतों से 2% ऊर्जा प्राप्ति होती है. भारत इस बात का प्रयास कर रहा है कि 2040 तक देश की 57%-66% ऊर्जा आवश्य्कता गैर जीवाश्म. र्इंधन से पूरी हो. परन्तु हमें इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि भारत में ऊर्जा की खपत भी लगातार बढ़ रही है. ऐसा आंकलन है कि बिजली की प्रति व्यक्ति खपत जो 2012 में 887 किलोवाट घंटा थी 2040 तक बढ़कर 2911-2924 किलोवाट घंटा हो जायेगी. वर्ष 2012 में भारत में ऊर्जा की मांग 503 तेल समकक्ष किलोग्राम थी. वर्ष 2040 तक इसके बढ़कर 1055 से 1184 तेल समकक्ष किलोग्राम हो जाने की संभावना है. नीति आयोग के अनुसार 2102 में ऊर्जा के लिये आयात पर निर्भरता जो 2012 में 31% थी जो 2040 तक बढ़कर 36% से 55% हो जायेगी.

ऊर्जा के आयात के लिए रणनीतिक विदेशी साझेदारी की आवश्यकता है. भारत ने इस दिशा में काफी प्रयास किये हैं पर हमें हर स्थान पर चीन से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ी है. अनेक स्थानों पर चीन ने अपनी कूटनीति के इस्तेमाल से भारत के प्रयासों में बाधा डाली है. इसके कुछ उदाहरण नीचे दिये है -

  • ईरान-पाकिस्तान-भारत पाइपलाइन में प्रगति नहीं हुई है.
  • इसी प्रकार कूटनीतिक कारणों से तुर्कमेनिस्‍तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत प्राकृतिक गैस पाइपलाइन में भी प्रगति नहीं हो सकी है.
  • बांगलादेश ने भारत को म्यानमार से आने वाली पाइपलाइन अपने क्षेत्र से बनाने की अनु‍मति नहीं दी है. म्यानमार के श्वेन क्षेत्र में भारत ने प्राकृतिक गैस खोजने में सहायता की थी और अपेक्षा थी कि यह गैस भारत को मिलेगी, परन्तु क्योंकि पाइपलाइन नहीं बन सकी इसलिये म्यानमार ने यह गैस चीन को बेच दी है.
  • कज़ाकस्तान में भी भारत को ऊर्जा के ठेके नहीं मिल सकी और चीन ने यह ठेके प्राप्त कर लिये.
  • ऊर्जा क्षेत्र पर भू-राजनीतिक संबंधों का बड़ा असर होता है. भारत के लिये यह महत्वपूर्ण है कि हम ऊर्जा के आयात के लिये अपनी कूटनीति का भरपूर सफल उपयोग करें.

    नीति आयोग ने ऊर्जा के लिये 7 महत्वपूर्ण क्षेत्र निर्धारित किए हैं: -

    1. उद्योगों, कुटुम्बों , परिवहन और कृषि को उचित मूल्य: पर साफ सुथरी ऊर्जा उपलब्ध कराना.
    2. ऊर्जा दक्षता बढ़ाकर ऊर्जा बचत करना. उदाहरण के लिये यदि सभी वर्तमान बिजली के बल्ब एल.ई.डी. लाइट में बदल दिये जांय तो लगभग 100 अरब किलो वाट घंटा बिजली की प्रतिवर्ष बचत हो सकती है.
    3. कोयले के उत्पादन और वितरण को बेहतर बनाना.
    4. बिजली उत्पादन, ट्रांसमिशन और वितरण की व्ययवस्था में सुधार करना.
    5. घरेलू उत्पादन बढ़ाकर तथा विदेशों में परिसंपत्तियां प्राप्त करके तेल तथा गैस की उपलब्धता सुनिश्चित करना.
    6. तेल एवं गैस की रिफाइनिंग तथा वितरण की अधोसंरचानाएं बढ़ाना.
    7. पुनःप्राप्य ऊर्जा का उत्पादन और उपयोग बढ़ाना.

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