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अनुसूचित जनजातियों के संबंध में संवैधानिक प्रावधान

जनजाति (tribe) वह सामाजिक समुदाय है जो राज्य के विकास के पूर्व अस्तित्व में था या जो अब भी राज्य के बाहर हैं. किसी भी समुदाय को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में शामिल करने के आधार हैं-

  1. आदिम लक्षण
  2. विशिष्ट संस्कृति
  3. भौगोलिक पृथक्करण
  4. समाज के एक बड़े भाग से संपर्क में संकोच
  5. पिछडापन

भारत में अनुसूचित जनजातियों से संबंधित कई प्रावधान हैं. मुख्यतः इन्हें दो भागों में बांटा जा सकता है - सुरक्षा तथा विकास. अनुसूचित जनजातियों की सुरक्षा संबंधी प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 15(4), 16(4), 19(5), 29, 46, 164, 244, 330, 332, 334, 335 व 338, 339(1), पांचवी सूची व छठी सूची में निहित हैं. अनुसूचित जनजातियों के विकास से संबंधित प्रावधान मुख्य रूप से अनुच्छेद 275(1) प्रथम उपबंध तथा 339 (2) में निहित हैं.

अनुच्छेद 15(4) – (संविधान पहला संशोधन अधिनियम 1951 की धारा 2 व्दारा जोड़ा गया) अनुच्छेद 15 कहता है कि राज्य किसी नागरिक के विरुध्द केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म‍स्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा. परन्तु अनुच्छेद 15(4) कहता है कि इस अनुच्छेद या अनुच्छेद 29 के खंड (2) की कोई बात राज्य को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिए या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी.

अनुच्छेद 16(4) – अनुच्छेद 16 कहता है कि राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समता होगी और राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के संबंध में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या निवास या इनमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे विभेद किया जायेगा. परन्तु अनुच्छेद 16(4) कहता है कि इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व् राज्य की सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिए उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी.

अनुच्छेद 16(4क) - (संविधान सतहत्तरवां संशोधन अधिनियम 1995 की धारा 2 व्दारा जोड़ा गया) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, राज्य के अधीन सेवाओं में किसी वर्ग के पदों पर पारिणामिक ज्येाष्ठता सहित, प्रोन्नति के मामलों में आरक्षण के लिए उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी.

अनुच्छेद 16(4ख) - (संविधान इक्यासीवां संशोधन अधिनियम 2000 की धारा 2 व्दारा जोड़ा गया) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को किसी वर्ष में किन्हीं ऐसी रिक्तियों को, जो खंड (4) या खंड (4क) के अधीन किए गए आरक्षण के लिए किए गए उपबंध के अनुसार उस वर्ष में भरी जाने के लिए आरक्षित हैं, किसी उत्तरवर्ती वर्ष या वर्षों में भरे जाने के लिए पृथक वर्ग की रिक्तियों के रूप में विचार करने से निवारित नहीं करेगी और ऐसे वर्ग की रिक्तियों पर उस वर्ष की रिक्तियों के साथ जिसमें वे भरी जा रही हैं, उस वर्ष की रिक्तियों की कुल संख्या के संबंध में पचास प्रतिशत की अधिकतम सीमा का अवधारण करने के लिए विचार नहीं किया जायेगा.

अनुच्छेद 19 (5) – अनुच्छेद 19 नागरिकों को वाक् स्वातंत्र्य आदि अनेक स्वतंत्रताएं प्रदान करता है. इस अनुच्छेद का खंड (घ) सभी नागरिकों को भारत के राज्य‍क्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का अधिकार देता है और खंड (डं.) सभी नागरिकों को भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस जाने का अधिकार देता है. परन्तु् अनुच्छेद 19 (5) कहता है कि – उक्त खंड के उपखंड (घ) और उपखंड (डं.) की कोई बात उक्ता उपखंडों व्दारा दिए गए अधिकारों के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में या किसी अनुसूचित जनजाति के हितों के संरक्षण के लिए युक्तियुक्त निर्बधन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बधन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्यल को निवारित नहीं करेगी.

अनुच्छेद 29 – भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को, जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का अधिकार होगा.

अनुच्छेद 46 – यह संविधान के भाग 4 (राज्य के नीति निदेशक तत्व) में हैं. यह अनुच्छेद कहता है – राज्य, जनता के दुर्बल वर्गों के, विशिष्टितया अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृध्दि करेगा और सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से उनकी संरक्षा करेगा.

अनुच्देछ 164 – यह अनुच्छेद राज्यों की मंत्रिपरिषदों के संबंध में है. इसमें प्रवधान है कि – बिहार, मध्यछप्रदेश और उड़ीसा राज्यों में जनजातियों के कल्याण का भारसाधक एक मंत्री होगा जो साथ ही अनुसूचित जातियों और पिछड़े वर्गों के कल्याण का या किसी अन्य कार्य का भी भारसाधक हो सकेगा.

अनुच्छेद 244 (1) – पांचवीं अनुसूची के उपबंध असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम राज्यों से भिन्न किसी राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण के लिए लागू होंगे.

अनुच्छेद 275 (1) - में प्रवधान है कि राज्यों के राजस्वों मे सहायता अनुदान के रूप में भारत की संचित निधि से ऐसी पूंजी और आवर्ती राशियां संदत्त की जायेंगी जो उस राज्य को उन स्कीमों के खर्चों के पूरा करने में समर्थ बनाने के लिए आवश्यक हों जिन्हे उस राज्य में अनुसूचित जनजातियों के कल्याण की अभिवृध्दि करने या उस राज्य में अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन स्तर को उस राज्य के शेष क्षेत्रों के प्रशासन स्तर तक उन्नत करने के प्रयोजन से उस राज्य व्दारा भारत सरकार के अनुमोदन से हाथ में लिया जाये.

अनुच्छेद 330 – लोक सभा में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए स्था‍नों का आरक्षण.

अनुच्छेद 332 – राज्यों की विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण.

अनुच्छेद 334 – यह अनुच्छेद कहता है कि लोक सभा और विधान सभाओं में आरक्षण के प्रावधान संविधान के इस उपबंध के प्रारंभ से साठ वर्ष की अवधि की समाप्ति पर प्रभावी नहीं रहेंगे.

अनुच्छेद 335 – संघ या किसी राज्य के कार्यकलाप से संबंधित सेवाओं और पदों पर नियुक्ति के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के दावों का प्रशासन की दक्षता बनाए रखने की संगति के अनुसार ध्यान रखा जायेगा. परन्तु इस अनुच्छेद की कोई बात अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के पक्ष में संघ या किसी राज्य के कार्यकलाप से संबंधित सेवाओं के किसी वर्ग या वर्गों पर प्रोन्नति के मामलों में आरक्षण के लिए किसी परीक्षा के अर्हक अंकों में छूट देने या मूल्यांकन के मानकों को घटाने के लिए उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी. (यह परन्तुक संविधान बयासीवां संशोधन अधिनियम 2000 की धारा 2 व्दारा जोड़ा गया)

अनुच्छेद 338 क – राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के संबंध में. (यह परन्तुक संविधान नवासीवां संशोधन अधिनियम 2003 की धारा 2 व्दारा जोड़ा गया)

अनुच्छेद 339 – (1) राष्ट्रपति राज्यों के अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के बारे में प्रतिवेदन देने के लिए आयोग की नियुक्ति आदेश व्दारा किसी भी समय कर सकेगा और इस संविधान के प्रारंभ से दस वर्ष की समाप्ति पर करेगा. (2) संघ की कार्यपालिक शक्ति का विस्तार किसी राज्य को ऐसे निदेश देने तक होगा जो उस राज्य की अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए निदेश में आवश्यक बताई गई स्कीमों के बनाने और निष्पादन के बारे मे हैं.

अनुच्छेद 342 – अनुसूचित जनजातियां – (1) राष्ट्रपति किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में और जहां वह राज्य है वहां उसके राज्यपाल से परामर्श करने के पश्चाकत लोक अधिूसचना व्दारा उन जनजातियों या जनजाति समुदायों अथवा जनजातियों या जनजाति समुदायों के भागों या उनमें के यूथों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा, जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिए यथास्थिति उस राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में अनुसूचित जनजातियों समझा जायेगा. (2) संसंद विधि व्दारा किसी जनजाति या जनजाति समुदाय को अथवा किसी जनजाति या जनजाति समुदाय के भाग या उसमें के यूथों को खंड (1) के अधीन निकाली गई अधि‍सूचना में विनिर्दिष्ट अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल कर सकेगी या उसमें से अपवर्जित कर सकेगी, किन्तु जैसा ऊपर कहा गया है उसके सिवाय उक्त खंड के अधीन निकाली गई अधिसूचना में किसी पश्चात्वर्ती अधिसूचना व्दारा परिवर्तन नहीं किया जायेगा.

भारत का संविधान- पांचवीं अनुसूची

अनुच्छेद 244 (1)
अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण के बारे में उपबंध
भाग क साधारण
  1. निर्वचन
    इस अनुसूची में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, 'राज्य' पद के अंतर्गत असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्य नहीं हैं.
  2. अनुसूचित क्षेत्रों में किसी राज्य की कार्यपालिका शक्ति
    इस अनुसूची के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार उसके अनुसूचित क्षेत्रों पर है.
  3. अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में राष्ट्रपति को राज्यपाल व्दारा प्रतिवेदन- ऐसे प्रत्येक राज्य का राज्यपाल जिसमें अनुसूचित क्षेत्र हैं, प्रतिवर्ष या जब भी राष्ट्रपति इस प्रकार अपेक्षा करे, उस राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में राष्ट्रपति को प्रतिवेदन देगा और संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार राज्य को उक्त क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में निदेश देने तक होगा.
भाग ख
अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों का प्रशासन और नियंत्रण
  1. जनजाति सलाहकार परिषद्
    1. ऐसे प्रत्येक राज्य में, जिसमें अनुसूचित क्षेत्र हैं और यदि राष्ट्रपति ऐसा निदेश दे तो, किसी ऐसे राज्य में भी जिसमें अनुसूचित जनजातियाँ हैं किंतु अनुसूचित क्षेत्र नहीं हैं, एक जनजाति सलाहकार परिषद् स्थापित की जाएगी जो बीस से अनधिक सदस्यों से मिलकर बनेगी जिनमें से यथाशक्य निकटतम तीन-चौथाई उस राज्य की विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधि होंगे, परंतु यदि उस राज्य की विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधियों की संख्या जनजाति सलाहकार परिषद में ऐसे प्रतिनिधियों से भरे जाने वाले स्थानों की संख्या से कम है तो शेष स्थान उन जनजातियों के अन्य सदस्यों से भरे जाएँगे.
    2. जनजाति सलाहकार परिषद् का यह कर्तव्य होगा कि वह उस राज्य की अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और उन्नाति से संबंधित ऐसे विषयों पर सलाह दे जो उसको राज्यपाल व्दारा निर्दिष्ट किए जाएँ.
    3. राज्यपाल -
      1. परिषद के सदस्यों की संख्या को, उनकी नियुक्ति की और परिषद के अध्यक्ष तथा उसके अधिकारियों और सेवकों की नियुक्ति की रीति को,
      2. उसके अधिवेशनों के संचालन तथा साधारणतया उसकी प्रक्रिया को, और
      3. अन्य सभी आनुषंगिक विषयों को, यथास्थिति, विहित या विनियमित करने के लिए नियम बना सकेगा.
  2. अनुसूचित क्षेत्रों को लागू विधि
    1. इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, राज्यपाल लोक अधिसूचना व्दारा निदेश दे सकेगा कि संसद का या उस राज्य के विधान मंडल का कोई विशिष्ट अधिनियम उस राज्य के अनुसूचित क्षेत्र या उसके किसी भाग को लागू नहीं होगा अथवा उस राज्य के अनुसूचित क्षेत्र या उसके किसी भाग को ऐसे अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए लागू होगा जो वह अधिसूचना में विनिर्दिष्ट करे और इस उपपैरा के अधीन दिया गया कोई निदेश इस प्रकार दिया जा सकेगा कि उसका भूतलक्षी प्रभाव हो.
    2. राज्यपाल किसी राज्य में किसी ऐसे क्षेत्र की शांति और सुशासन के लिए विनियम बना सकेगा जो तत्समय अनुसूचित क्षेत्र है. विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे विनियम-
      1. ऐसे क्षेत्र की अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों द्वारा या उनमें भूमि के अंतरण का प्रतिषेध या निर्बंधन कर सकेंगे,
      2. ऐसे क्षेत्र की जनजातियों के सदस्यों को भूमि के आबंटन का विनियमन कर सकेंगे,
      3. ऐसे व्यक्तियों व्दारा जो ऐसे क्षेत्र की अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों को धन उधार देते हैं, साहूकार के रूप में कारबार करने का विनियमन कर सकेंगे.
    3. ऐसे किसी विनियम को बनाने में जो इस पैरा के उपपैरा (2) में निर्दिष्ट है, राज्यपाल संसद के या उस राज्य के विधान मंडल के अधिनियम का या किसी विद्यमान विधि का, जो प्रश्नगत क्षेत्र में तत्समय लागू है, निरसन या संशोधन कर सकेगा.
    4. इस पैरा के अधीन बनाए गए सभी विनियम राष्ट्रपति के समक्ष तुरंत प्रस्तुत किए जाएँगे और जब तक वह उन पर अनुमति नहीं दे देता है तब तक उनका कोई प्रभाव नहीं होगा.
    5. इस पैरा के अधीन कोई विनियम तब तक नहीं बनाया जाएगा जब तक विनियम बनाने वाले राज्यपाल ने जनजाति सलाहकार परिषद् वाले राज्य की दशा में ऐसी परिषद् से परामर्श नहीं कर लिया है.
भाग ग
अनुसूचित क्षेत्र
  1. अनुसूचित क्षेत्र
    1. इस संविधान में, 'अनुसूचित क्षेत्र' पद से ऐसे क्षेत्र अभिप्रेत हैं, जिन्हें राष्ट्रपति आदेश व्दारा अनुसूचित क्षेत्र घोषित करे.
    2. राष्ट्रपति किसी भी समय आदेश व्दारा -
      1. निदेश दे सकेगा कि कोई संपूर्ण अनुसूचित क्षेत्र या उसका कोई विनिर्दिष्ट भाग अनुसूचित क्षेत्र या ऐसे क्षेत्र का भाग नहीं रहेगा,
      2. किसी राज्य के किसी अनुसूचित क्षेत्र के क्षेत्र को उस राज्य के राज्यपाल से परामर्श करने के पश्चात्‌ बढ़ा सकेगा,
      3. किसी अनुसूचित क्षेत्र में, केवल सीमाओं का परिशोधन करके ही, परिवर्तन कर सकेगा,
      4. किसी राज्य की सीमाओं के किसी परिवर्तन पर या संघ में किसी नए राज्य के प्रवेश पर या नए राज्य की स्थापना पर ऐसे किसी क्षेत्र को, जो पहले से किसी राज्य में सम्मिलित नहीं हैं, अनुसूचित क्षेत्र या उसका भाग घोषित कर सकेगा,
      5. किसी राज्य या राज्यों के संबंध में इस पैरा के अधीन किए गए आदेश या आदेशों को विखंडित कर सकेगा और संबंधित राज्य के राज्यपाल से परामर्श करके उन क्षेत्रों को, जो अनुसूचित क्षेत्र होंगे, पुनः परिनिश्चित करने के लिए नए आदेश कर सकेगा, और ऐसे किसी आदेश में ऐसे आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध हो सकेंगे जो राष्ट्रपति को आवश्यक और उचित प्रतीत हों, किंतु जैसा ऊपर कहा गया है उसके सिवाय इस पैरा के उपपैरा (1) के अधीन किए गए आदेश में किसी पश्चात्‌वर्ती आदेश व्दारा परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
भाग घ
अनुसूची का संशोधन
  1. अनुसूची का संशोधन
    1. संसद समय-समय पर विधि व्दारा, इस अनुसूची के उपबंधों में से किसी का, परिवर्धन, परिवर्तन या निरसन के रूप में, संशोधन कर सकेगी और जब अनुसूची का इस प्रकार संशोधन किया जाता है तब इस संविधान में इस अनुसूची के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह इस प्रकार संशोधित ऐसी अनुसूची के प्रति निर्देश है.
    2. ऐसी कोई विधि, जो इस पैरा के उपपैरा (1) में उल्लिखित है, इस संविधान के अनुच्छेद 368 के प्रयोजनों के लिए इस संविधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी.

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