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भारत का भूगोल - थार मरुस्थल एवं कछ का रण

थार मरुस्थल

थार मरुस्थल लहरदार रेतीले पहाड़ों का विस्तार है जो विशाल भारतीय मरुस्थल भी कहलाता है. इसका कुछ भाग भारत के राजस्थान में और कुछ पाकिस्तान में स्थित है. 2,00,000 वर्ग किमी में फैले इस क्षेत्र के पश्चिम में सिंधु व्दारा सिंचित क्षेत्र है. इसके दक्षिण-पूर्व में अरावली का विस्तार है और दक्षिण में कच्छ का रन है. पूर्वोत्तर में पंजाब का भूभाग है.

बनने का कारण - यह मरुस्थल मॉनसून में अभाव के परिणामस्वरूप निर्मित हुआ है, जिसके कारण इस इलाक़े में पर्याप्त वर्षा नहीं होती.

थार शब्द से अभिप्राय - थार शब्द की उत्पत्ति थल से हुई है, जिसका अर्थ रेत का टीला है.

थार मरुस्थल का स्वरूप - मरुस्थल की रेत पूर्व कैंब्रियन युग की चट्टानों (ग्रेनाइट जैसी आग्नेय चट्टानों, जो 3.8 अरब वर्ष पुरानी हैं) के साथ 2.5 अरब से 57 लाख वर्ष पुरानी अवसादी चट्टानों का परिवर्तित रूप है. इसके अलावा आधुनिक भौगर्भिक काल में नदियों व्दारा बहाकर लाए गए निक्षेप भी इस रेत में हैं. सतह पर पाई गई रेत हवा व्दारा लाई गई है. इस रेगिस्तान की सतह असमान और ऊंची-नीची है, रेत के छोटे-बड़े टीले रेतीले मैदानों और छोटी बंजर पहाड़ियों या भाकर से विभक्त हैं. विभिन्न आकार के रेतीले टीले सतत परिवर्तनशील हैं. इस पूरे क्षेत्र में खारे पानी की कुछ झीलें (प्लाया) बिखरी हुई हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में ढांढ़ कहते है.

वर्षा और तापमान - पश्चिम में वार्षिक वर्षा 100 मिमी या उससे कम और पूर्व में लगभग 500 मिमी होती है. कुल वर्षा का लगभग 90 प्रतिशत भाग दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून काल में जुलाई से सितंबर के बीच होता है. मई और जून सबसे गर्म महीने होते हैं, जब तापमान 50°से. तक पहुंच जाता है. जनवरी के महीने में ठंड के दौरान न्यूनतम तापमान 5° से 10°से. तक रहता है. मई और जून के मौसम में 140 से 150 किमी प्रति घंटा की गति से तेज़ धूल भरी आंधी और हवाएं चलती हैं.

वनस्पति और जीव-जंतु - रेगिस्तानी वनस्पतियों में ज्यादातर जड़ी-बूटियां या छोटी झाड़ियां होती हैं. पेड़ कहीं-कहीं दिखाई पड़ते हैं. पहाड़ियों पर गोंद के एरोबिक अकासिया और यूफ़ॉर्बिया भी मिलते हैं. मैदानी इलाकों में खेजड़ी (प्रोसोपिस सिनेरारिया) के पेड़ पाए जाते हैं. घास के मैदानों पर काला हिरन, चिंकारा और अन्य शिकारी-पक्षी, जैसे तीतर और बटेर पाए जाते हैं. प्रवासी पक्षियों में भट्टतीतर, बत्तख और कलहंस प्रमुख हैं. यह मरुस्थल लुप्तप्राय भारतीय सोन चिड़िया का आवासीय क्षेत्र भी है. थार मरुस्थल में दुधारू गायों की पांच मुख्य नस्लें पाई जाती हैं, इनमें से थारपारकर नस्ल की गाय सबसे अधिक दूध देती है, जबकि कांकरे नस्ल की गाय बोझ ढोने और दूध उत्पादन में समान रूप से महत्त्वपूर्ण है. मध्यम-उत्तम और मोटी, दोनों क़िस्मों की ऊन के लिये यहाँ भेड़ों का पालन किया जाता है. आमतौर पर ऊंट का परिवहन के साथ-साथ जुताई और अन्य कृषि कार्यों में भी इस्तेमाल किया जाता है. यहाँ की ज्यादातर आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है और विषम घनत्व में फैली है.

जनजीवन शैली - यहाँ हिंदू और मुसलमान, दोनों संप्रदायों के लोग रहते हैं और जनसंख्या जटिल आर्थिक व सामाजिक आधारों पर विभक्त है. यहाँ पर बंजारे पशुपालन, दस्तकारी और व्यापार में संलग्न हैं. घास यहाँ का प्रमुख प्राकृतिक संसाधन है. इससे पशुओं के लिए स्वादिष्ट प्राकृतिक चारा तो मिलता ही है, स्थानीय लोग इससे दवा भी बनाते हैं. वनस्पतियों के सत्व से दवाइयां बनती हैं और तेल से साबुन भी तैयार किया जाता है. मौसमी वर्षा के पानी को कुंडों और जलाशयों में इकठ्ठा कर लिया जाता है, जिसका इस्तेमाल पीने और अन्य घरेलू उपयोगों में होता है.

क्षेत्रफल में वृध्दि - थार मरुस्थल हर साल आधा किलोमीटर की रफ्तार से उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ रहा है. सबसे ज़्यादा चौंकाने वाला तथ्य यह सामने आया है कि, देश के 32 प्रतिशत भू-भाग का बुरी तरह ह्रास हो चुका है. इसमें से सर्वाधिक 24 प्रतिशत मरुस्थली क्षेत्र है. राजस्थान राज्य तो ज़बर्दस्त मरुस्थलीकरण की चपेट में है. राष्ट्रीय मृदा सर्वे और भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो का कहना है कि थार मरुस्थल के फैलाव का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि, 1996 तक 1 लाख, 96 हज़ार 150 वर्ग किमी. में फैले मरुस्थल का विस्तार अब 2 लाख, 8 हज़ार 110 किमी. तक हो चुका है. अरावली पर्वत शृंखलाओं की प्राकृतिक संपदा को भी नुकसान पहुंचने से भूमि ज़्यादा बंजर हुई है. यहाँ लोगों ने जलावन और ज़रूरतों की पूर्ति के लिए जंगलों पर कुल्हाड़ी चलाई है.

कछ का रण

कच्छ का रण गुजरात राज्य में कच्छ ज़िले के उत्तर तथा पूर्व में फैला हुआ एक नमकीन दलदल का वीरान स्थल है. कच्छ का रण लवणीय दलदली भूमि है जो पश्चिमी-मध्य भारत और दक्षिणी पाकिस्तान में स्थित है.

कच्छ का रण लगभग 23,300 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैला हुआ है और पाकिस्तान सीमा से लगे भारतीय राज्य गुजरात में लगभग पूरा का पूरा अवस्थित है. कच्छ का छोटा रण, कच्छ की खाड़ी के पूर्वोत्तर में है और यह गुजरात के लगभग 5,100 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है.

मूलतः अरब सागर का विस्तार रहा कच्छ का रण सदियों से एकत्रित होने वाले अवसाद के कारण एक बंद क्षेत्र बन गया है. कच्छ का रण समुद्र का ही एक सँकरा अंग है जो भूकंप के कारण संभवत: अपने मौलिक तल को ऊपर उभर आया है और परिणामस्वरूप समुद्र से पृथक हो गया है. सिकंदर महान के समय यह नौकायन योग्य झील थी, लेकिन अब यह एक विस्तृत दलदली क्षेत्र है, जो मॉनसून के दौरान जलमग्न रहता है.

मार्च से अक्टूबर मास तक यह क्षेत्र अगम्य हो जाता है. यहाँ के लोगों का निवास निम्न, विलग पहाड़ियों तक सीमित है. सन 1819 ई. के भूकंप में उत्तरी रण का मध्य भाग किनारों की अपेक्षा अधिक ऊपर उभर गया. इसके परिणामस्वरूप मध्य भाग सूखा तथा किनारे पानी, कीचड़ तथा दलदल से भरे हैं. ग्रीष्म काल में दलदल सूखने पर लवण के श्वेत कण सूर्य के प्रकाश में चमकने लगते हैं.

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