छत्तीसगढ़ी बालगीत

माटी

रचनाकार- राधेश्याम सिंह बैस, बेमेतरा

maati

मोर भुइया क़े माटी, हाबस अब्बड़ अनमोल.
जनम -मरण तोरे कोरा म, करम-धरम कहानी क़े बोल.
खेले कुदेन तोर अंगना म,पले बढ़े होगेन जवान.
इही माटी क़े भरोसा म, हाबे जिंदगानी क़े पहचान.
माटी ले फले फूले, माटी क़े हमर बोली.
बेरा बखत म बइठे फुरसत, संग संगवारी करथे ठिठोली.
जउन रद्दा म चलथन, रद्दा हाबे माटी क़े.
करथन मेहनत बहाथन पसीना, तब होथे पेट भर रोटी क़े.
मोर माटी हीरा सोना,येखर बात निराला.
जी जुड़ाथे येखर छइहा म, सुग्घर सुख देने वाला.
किसान मजदूर क़े मेहनत ले, उपजत है अन्न जल.
इही भरोसा म दुनियाँ हे, जी ले तय हाँ आज अउ कल.
माटी क़े बरतन हाबे, भोजन घोलो इही बरतन म भाय.
गांव शहर कोनो जगह होय, मजा बिन माटी क़े नइ आय.
माटी म रुख राई, खेलय माटी म बाबा अउ नाती.
इही ले हमर ताकत आथे, सौँधी सौँधी महके माटी.
हमर माटी क़े बात जबर, काबर येमे जम्मो सुहागे.
मेहनत हे बिहनिया ले संझा, माटी महतारी क़े गोठ मिठागे.
येखर खुशबु महर -महर, मिल जाथे नवा जान.
देथे सन्देश दुनियाँ भर ल,हम सबो इह माटी क़े पहचान.
माटी क़े बने है घरौंदा, हमर जिनगी क़े दिया बाती.
बोली इहा क़े गुरतुर, अब्बड़ सुहाथे हमर जनम माटी.
मोर छत्तीसगढ़ क़े माटी, मय पाय लागो दिन रात.
तोर अचरा ले बाढ़े हाबो, जियत मरत ले नइ भुलान बात.

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चंद्रयान -3

रचनाकार- राधेश्याम सिंह बैस, बेमेतरा

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दाई क़े मान बढ़ाये बर, इसरो क़े चमत्कार आइस हे .
कतका दिन क़े मेहनत ले, सम्मान अपन ल पाइस हे.
दूरिहा ले चंदा ममा क़े दरसन, बचपन ले जवानी बीतगे.
करत रहेंन ओखर कल्पना,जम्मो क़े संका है घलोक मीटगे.
सुग्गघर हे नाव चंद्रयान,अंगद सरिक विक्रम क़े गोड़ जमगे.
देखत रहिस जग टक-टकी लगाये, येखर ले हम जम्मो क़े मन खिलगे.
रिसाय लइका ल मनाये बर, चंदा ल खिलौना बनाय.
जा पहुचें ममा क़े घर म, सन्देश ल सुन क़े दुनियाँ है सकपकाय.
अवइया दू चार दिन म, पुन्नी राँखी क़े त्यौहार.
अभरिस भाचा धर क़े राँखी, मिलगे चंदा ममा ल बहिनी क़े प्यार.
तनगे भारत माता क़े सीना, लेके तिरंगा उहा पंहुचाइस.
समय बखत म जा धमकीस, पूरा देश है अपन सपना ल पाइस.
किसम -किसम क़े जानबोन, ममा घर क़े जम्मो संसार ल.
सोचत रहेन बिकट दिन ले, हमु जातेंन चंदा क़े पार ल.
देखे सपना होइस पूरा, हमर वैज्ञानिक क़े योगदान क़े
नइ हाबे भारत ह पाछू,चलबों मुड़ी उठा अउ सीना तान क़े.

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विक्रम लैण्डर

रचनाकार- रुद्र प्रसाद शर्मा, रायगढ़

vikram

चन्दा म उतरिस विक्रम,
साराभाई ल करि के सन्मान.
दक्खिन ध्रुव म तिरंगा तानके,
माँ भारती के करिस गुणगान.

कहिस जोन ल ममा हो ममा,
कोन हर आय तुंहर नाम् ?
सुधाकर,हिमांशु, शशि, इन्दु,
सोम,निशानाथ, अंजोर के धाम.

दही, शंख, बरफ सहि उजियार,
भोला के मउर म बिराजमान्.
जनम होईस समुदर भीतर ले.
जोहार - जोहार कोटि प्रणाम्.

चन्दा ममा ल पूछिस विक्रम् ह,
कोन मेर हवय सूत के थान ?
बर रुख अउ खरहा कहाॅ हॅवयॅ ?
देखहूॅ गा ममा, कहिदेबे मोरे कान्.

ममा कहिन सुनव जी भांचा,
तुंहर प्रश्न के बिज्ञान, समाधान.
धुॅका नईंए पानी भी नईंए,
सुरुज अंजोर म मोर पहेचान.

इसरो करिस इसारा विक्रम ल,
निकरिस भीतर ले रोभर प्रज्ञान.
लेजर, कैमरा मसिन धरिके,
देखिस धातु - अधातु के खदान.

ममा घर म पानी, हवा नईंए,
कैसन बाॅहाचे ऊंखर परान?
विक्रम फिरिस पन्दरा दिन म,
अन्तरिक्ष ले बईठ के चन्द्रयान.

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जय हरछठ मैया की

रचनाकार- श्रीमती निहारिका झा, खैरागढ़

jay

बछर में एक घांव आथे तिहार ऐ.
लइका मन के रच्छा के एही तिहार हे.
बलदाऊ भैया के जनम तिहार हे,
कांशी फूल से सरगी बनाथन
गौरी शिवा के पूजा ल करथन
छः ठिक कहानी नियम से कहिथन.
संयम नियम अब्बड़ परब के,
गैया के घी,दूध झन लेना भूल के,
भैंसी के दही संग पसहर के भात,
लाई, महुआ अऊ छः जातअनाज,
छः जात भाजी के चड़थे परसाद,
लइका के चेन्थी में पोता ल मारबो
जिनगानी लइका के हमन बढाबो.
राजी खुसी से तिहार मनाबो,
हरछठ्ठी मैया ल हमन मनाबो.

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झन काटव रुख-राई ल

रचनाकार- संतोष कर्ष, कोरबा

jhan

चल संगी रुख-राई लगाबो.
भुइयाँ के उमर ल बढ़ाबो.

चारो कति ले रुख नँदागे.
रेंगत रेंगत गोड़ पिरागे.
छईयाँ खोजव मिलत नइये,
खोजत खोजत गला सुखाये,
रद्दा बनगे पेड़ कटागे,
चल संगी रुख-राई लगाबो.
भुइयां के उमर बढ़ाबो.

बेंदरा मन घलो सिरागे,
टाँगी ले के मानुष आगे,
हाथी बपरा रद्दा भुलागे,
नरवा तलवा सबो सुखागे,
रुख कटागे मशीन आगे,
पानी घलो बदरा संग भागे,
तभे त कइथव संगी हो,
चल संगी रुख-राई लगाबो.
भुइयां के उमर बढ़ाबो.

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छत्तीसगढ़ के प्रमुख फसल धान

रचनाकार- श्रीमती युगेश्वरी साहू, सारंगढ़

Chhattisgarh_dhaan

हमर छत्तीसगढ़ के प्रमुख फसल धान हावय
खून पसीना बहाके उपजावत ओला किसान हावय.
धान के फसल हर हरिहर हरिहर लहलहाथे
इखरे खातिर मोर छत्तीसगढ़ हर धान के कटोरा कहलाथे.
धान के खेती हर अबबढ़ सुख देथे
किसान के मन ल मोहित कर लेथे.
आज के जमाना म खेती होथे ट्रेक्टर अऊ थ्रेसर से
विज्ञान के चमत्कार से मुक्त हावय तनाव प्रेशर से.
मोर छत्तीसगढ़ के माटी हर उगलत हावय सोन सही धान
जब घर म आथे धान गदगद हो जाते लईका सियान.
धान के निकले चाउर के कतका करों बखान
चीला,सोहारी,खुर्मी, आइरसा बनथे ऐखर पकवान.
आनी बानी के हावय धान ओमा ल निकले सादा पिसान
धन्य हे धान के उपजोइया मोर छत्तीसगढिया किसान.

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काँस फूल

रचनाकार- रुद्र प्रसाद शर्मा, रायगढ़

kans

काँस के फूल फुटिस भादों म,
बरसा ह सियान बनिके मोटावत हवय.

खेत के खातू, चिखला, कादों म,
हरियर धान के गभोट ह पोठावत हवय.

डगर के पानी ह सुखाय लागिस,
जस, लोभिहा म संतोष उड़ावत हवय.

स्वाती के एके थिपा ल पी के,
कुर्री चिरई के सुसी ह जुड़ावत हवय.

सफा होगिस तरिया के पानी,
पैरा के गोर्रा ह, खुखड़ी ल फोरत हवय.

दसरहा घाम म जीउ जनाय,
जम्मो देह ल पसीना म बोरत हवय.

मघा के बरसे माता के परसे,
बादर येदे घुड़घुड़ावत हवय.

गंगरेल के गेट ढिला गे,
कतको गाँव घर ल बुड़ावत हवय.

नरवा तीर म काँस फूलय सरसर,
पोरा बइला ल लइका ह सजावत हवय.

बरसा हाँसय भादों म मुचमुच,
पाका चुंदी के काँस फूल लजावत हवय.

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आगे पोरा के तिहार

रचनाकार- अशोक कुमार यादव मुंगेली

Chhattisgarh_Pora

छत्तीसगढ़ मा आगे संगी, पोरा के तिहार.
भादो अमावस के मनाबो, जम्मों उछाह.

चना पिसान के गोलवा, लंभरी ठेठरी बनथे.
चाऊंर, गहूं के संग गुरहा खुरमी ला सानथे.

किसान मन हा अपन बइला ला सम्भराहीं.
हार अउ जीत के बइला दउंड़ ला कराहीं.

लइका मन कूदत-नाचत, गली मा आगिन.
गेंड़ी ला तरिया-नंदिया मा ओमन सरा दिन.

माटी के बइला मा लगाके चक्का दउंड़ावत हें.
दीया, चुकलिया, जांता म व्यंजन मढ़हावत हें.

नोनी-बाबू, ठेठरी-खुरमी ला कड़दउंहन चाबे.
डोकरी-डोकरा मन कुट-पीस के फांका दाबे.

रद्दा देखथें माई लोगिन, बाबू,भाई कब आही.
बारह महीना के परब मा बेटी लेवा के लाहीं.

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