बालगीत
दोस्त
रचनाकार- कुमारी सुषमा बग्गा, रायपुर
एक दोस्त ऐसा हो
हाँ एक दोस्त ऐसा भी हो
जो दुनिया की भीड़ में मुझे तन्हा ना छोड़े
जो अंधेरे में मेरी रोशनी बने,
हाँ एक दोस्त ऐसा भी हो
जो छोटी से छोटी बात मुझे बताया करें,
जो हर पल मेरे साथ हो
एक प्यार भरा रिश्ता निभाया करें,
हाँ एक दोस्त ऐसा भी हो
जो बड़े से बड़े दुख का असर तोड़ती हो,
जो जिंदगी की कठिन राह पर मेरे साथ हो
जो साथ चले तो लगे कि मेरी परछाई हो
हाँ एक दोस्त ऐसा भी हो
जो मुझे खोने से डरे
एक दोस्त ऐसा भी हो
हाँ एक दोस्त ऐसा भी हो
मेरे जैसा भी हो
*****
नभ में
रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा, भोपाल
नभ में हंसी नज़ारे देखे,
हमने जगमग तारे देखे.
हरे गुलाबी नीले पीले,
पतंग जीतते हारे देखे.
कभी उड़ाते हैं जब बच्चे,
उड़ते कुछ गुब्बारे देखे.
श्वेत मेघ की टोली घूमे,
कभी बदरवा कारे देखे.
चंदा,सूरज,मेघ,पखेरू,
हमने नभ में सारे देखे.
*****
चूहे राम
रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा, भोपाल
बड़े मतलबी चूहे राम,
लेटे रहते सुबहोशाम.
अपना काम खुद ना करते,
चुहिया से करवाते काम.
चुहिया रानी थी दमदार,
मोटा चूहा आलस राम.
एक दिवस आई बिलाई,
दोनों भागे दिल को थाम.
मोटा चूहा भाग न सका,
पहुँच गया वो रब के धाम.
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लुभाते पेड़
रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा, भोपाल
हरीतिमा बिखराते पेड़,
सबको बहुत लुभाते पेड़.
पक्षी करें रैन बसेरा,
उनका नीड़ बनाते पेड़.
तूफानों से कभी न डरें,
उनको सदा हराते पेड़.
गरमी में छाँह दें शीतल,
सबको सुख पहुंचाते पेड़.
जीते हैं दूजों के लिए,
सबका काम बनाते पेड़.
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कूके कोयल
रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा, भोपाल
उपवन के ये फूल सुहाने,
देते खुशियों के नजराने.
चंपा बेला और चमेली,
आते अपनी महक लुटाने.
ये गुलाब का फूल निराला,
इसको चाहें सभी दिवाने.
तितली रानी फूल फूल से,
आई लेने रंग सुहाने.
नीम डाल पे कूके कोयल,
सब सुनते हैं उसके गाने.
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चंदा के घर जाएंगे
रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा, भोपाल
नभ में उड़ कर जाएंगे,
घर इक नया बनाएँगे.
इसमें होंगे खिड़की दस,
दरवाजे होंगे नौ बस.
देंगे पानी बादल जी,
खाएंगे पूरी भाजी.
चंदा के घर जाएंगे,
दूध मलाई खाएंगे.
पापा हमें बुलाएंगे,
तब हम वापस आएंगे.
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मंगलमय के हर पल के सभी साक्षी रहे
रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
सभी जीवन में सुखी रहें,
दुनियां में कोई दुखी ना रहे,
सभी जीवन भर रोग मुक्त रहे,
मंगलमय के हर पल के सभी साक्षी रहें .
सभी जीवों का कल्याण का कार्य करते रहें,
किसी के दुखों का भागी न बने,
सभी की भलाई निस्वार्थ करते रहें,
भारतीय संस्कारों को जीवन में अपनाते रहें.
यह भाव हर मानवीय जीव में रहे,
दुनिया में सभी सुखी रहें,
जीवन भर सभी का मन शांत रहे,
दूसरों की परेशानी में मदद करें.
कभी किसी को दुख का भागी ना बनना पड़े,
यह कामना हर मानवीय जीवन में रहे,
जीवन में किसी जीव को परेशान
ना करने का मंत्र ज्ञान मस्तिष्क में रहे.
सभी श्लोकों को पढ़कर जीवन में आनंद करें,
महापुरुषों के ग्रंथों को पढ़कर सही रास्ते पर चलकर सभी में यह सोच भरें,
किसी की बुराई और परेशान ना करें.
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दिशाएँ
रचनाकार- शीतल बैस, बेमेतरा
बच्चों तुम्हें बतलाती हूं,
चार दिशा सीख लाती हूं.
उगता सूरज उसका धाम,
यही दिशा पूरब तुम मान.
पूर्व में मुंह को जान,
तभी दिशा की हो पहचान.
जिधर डूबता सूरज दादा,
फिर आने का करता वादा.
यही दिशा पश्चिम बतलाता,
मीठा मीठा लगे बताशा.
पश्चिम में होता श्रीलंका,
रावण का बजता है डंका.
दाएं हाथ को हम घूमाए,
यही दिशा दक्षिण बतलाए.
दक्षिण में बहती कावेरी,
स्कूल में न हो तुम देरी.
आदिवासी है बस्तर में ,
खड़ा हिमालय उत्तर में.
खड़े खड़े तुम पासा फेकों,
बाएं हाथ में उत्तर देखो.
उत्तर, दक्षिण,पूर्ब,पश्चिम,
चार दिशायें जाने हम.
हमको कराती ज्ञान है,
होती दिशाएं चार है.
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आजादी का अमृत काल विज़न 2047 शुरू
रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
भारत को मजबूत स्थिर शांतिपूर्ण देश
के रूप में विकसित करना है.
शिक्षा क्षेत्र में विज़न 2047 शुरू,
पूर्ण विश्वास है भारत बनेगा विश्व गुरु.
जब देश की आजादी के 100 वर्ष पूरे होंगे,
आजादी के अमृत काल तक भारतीय शिक्षा नीति सारी दुनिया को दिशा देने वाले दिन यू होंगे.
ये ख्वाब हमारे संकल्प सामर्थ्य से पूरे होंगे .
अमृत काल में हिंदुस्तान की शिक्षा नीति की विश्व प्रशंसा करे,
यहां ज्ञान लेने आएं, ऐसा हमारा गौरव हों,
विश्व कल्याण की भूमिका निर्वहन करने में भारत समर्थ होंगे.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति को शिक्षकों,प्रशासकों द्वारा गंभीरता से अमल में लाना है,
शिक्षा क्षेत्र में भारत को
विश्वगुरु बनाना है .
भारतीय युवाओं में प्रतिभा की कोई कमी नहीं,
बस गंभीरता से उसे पहचानना है.
शिक्षण को स्वच्छंदात्मक बहुआयामी
आनंदमयी अनुभव बनाना है .
छात्रों में मूल्यों को विकसित करने शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका रेखांकित करना है .
छात्रों के आचरण को सुधारने विपरीत परिस्थितियों का सामना करने आत्मविश्वास जगाना है .
*****
उन शिक्षकों का दिवस
रचनाकार- युक्ति साहू, कक्षा 8वी, स्वामी आत्मानंद शेख गफ्फार शासकीय, अंग्रेजी माध्यम विद्यालय, तारबाहर, बिलासपुर
5 सितंबर को,
उन शिक्षकों का दिवस है.
पढ़ने को मन करता नहीं,
पर वह करते हमें विवश हैं.
उनकी हर डांट के पीछे,
रहता उनका प्यार ही है.
उनकी हर फटकार के नीचे,
हमारी खुशियों की क्यारी है.
उनकी वह कठोरता,
हमें मुश्किलों से लड़ना सिखाती है.
लेकिन उनकी वह सरलता,
हमारे दिल में घर कर जाती है.
कभी वह हमें डांटते मारते तो,
कभी पीठ सहलाते हैं.
उन्हें अच्छा कहूं या बुरा कहूं,
यें मुझे समझ ना आते हैं.
परंतु इन सब के पीछे,
है मात्र एक ही वजह.
कि उनके छात्र तरक्की करें,
सफल रहे वह हर जगह.
हम तो छोटे हैं अभी,
कुछ भी नहीं जानते हैं.
डांट कर पढ़ने को विवश करते तभी,
हमारे शिक्षक हमारे शुभचिंतक है.
सत्य का साथ देना तो,
हर शिक्षक सीखाता समान.
लेकिन बात ग़लत की हो तो,
उठाना सिखाते तीर -कमान.
जिन्हें देखकर करते हैं,
धरती अंबर भी सलाम.
ऐसे महान शिक्षकों को,
मेरा दिल से प्रणाम.
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माँ बूढ़ी हो रही है
रचनाकार- विनोद दूबे
अबकी मिला हूँ माँ से,
मैं वर्षों के अंतराल पर,
ध्यान जाता है बूढ़ी माँ,
और उसके सफ़ेद बाल पर,
आज-कल की ढेरों बातें,
वह अक्सर भूल जाती है,
मेरे बचपन की पुरानी बातें,
वह कई दफा दुहराती है,
थोड़ा झुक कर चलती है,
थोड़ा सा लड़खड़ाती है,
रात में देर तक जागती है,
दिन में अक्सर सो जाती है,
जिस माँ को छोड़कर गया था,
लौटकर उसे क्यों नहीं पाता हूँ,
कई दफा माँ की बातों पर भी,
मैं अनमने खीझ से भर आता हूँ,
स्मृतियों के पंख लगाए तब मैं,
पुरानी माँ से मिलने जाता हूँ,
दिखती हैं माँ मुझे गोद में लिए-लिए,
सारे घर का जिम्मा एक पैर पर उठाते,
आँगन के सिलबट्टे पर मसाला पीसते,
मेरे पीछे दूध का गिलास लिए भागते,
जीवन की कोरी स्लेट पर रात को,
मुझे सही गलत के क ख ग सिखाते,
बल बुद्धि विवेक का क्षीण होना,
हम सबकी उम्र का किस्सा है,
मेरे पास आज जो भी समझ है,
वो भी तो मेरी माँ का हिस्सा है,
माँ का बूढा होते जाना,
नहीं है एक दिन का सिला,
गलती मेरी थी जो मैं उससे,
वर्षों के अंतराल पर मिला,
अब रोज वीडियो कॉल पर,
मैं उसे ग़ौर से देखा करता हूँ,
उसकी सारी बातें सुनता हूँ,
चाहे गलत हों या सही,
उसे देखते अंतर्मन में एक भय कचोटता है,
कल मेरे फोन में माँ का सिर्फ नंबर रहेगा,
शायद माँ नहीं.
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प्यारी बहना
रचनाकार- डॉ०कमलेन्द्र कुमार, उत्तरप्रदेश
बहन की रक्षा करने का है,
दृढ़ संकल्प हमारा.
साथ पलें हैं साथ बढ़े हैं,
प्यार हमारा न्यारा.
कभी झगड़ते,कभी मचलते,
कभी करें शैतानी.
दिन दिन भर हम बात करें ना,
थी कितनी नादानी?
सही दिशा दिखलाती हरदम,
मुझको प्यार दिया है.
मैं सफल हो जाऊँ पथ पर,
ऐसा कार्य किया है.
जब से बिछुड़े हम दीदी से,
सब कुछ सूना लगता.
कैसे मैं बतलाऊँ दीदी,
दिन दूना दूना लगता.
पावन पर्व भाई बहन का,
आओ इसे मनाएं.
घर की हो तुम राज दुलारी,
आओ झूमें गाएं.
*****
फिर से गाऊँ गाना
रचनाकार- डॉ. सतीश चन्द्र भगत, दरभंगा
गुमसुम बैठी क्यों उदास हो,
भूल गई तुम चूं- चूं गाना.
जहर छिटें हैं खेत- खेत में,
जहरीला है इसका दाना.
कटती जाती झाड़ी- झाड़ी,
हुआ कठिन है नीड़ बनाना.
अंधाधुंध कटते हैं पेड़,
लगता सूना सब बेगाना.
पेड़ लगाओ हो हरियाली,
खुश हो फिर से गाऊँ गाना.
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खेल- खेल में खेलें हम
रचनाकार- डॉ. सतीश चन्द्र भगत, दरभंगा
मौसम है बारिश वाला,
हर बच्चा है मतवाला.
निकलें हम चुपके- चुपके,
धूम मचा लेंगे मिलके.
दिखे सड़क पर है पानी,
कर लें थोड़ी मनमानी.
कागज की नाव बनाकर,
पानी में उसे चलाकर.
नन्ही टोली लेकर हम,
खेल- खेल में खेलें हम.
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हिंदुस्तान में नवाचार स्टार्टअप में सफ़लता है
रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
हिंदुस्तान नवाचारों का उपयोग करके
ऐसी तकसनीकी विकसित करता है
जनता के लिए सस्ती सुगम सहजता लाए
ऐसा नवाचार विज्ञान नए भारत में लाता है
उन्नत भारत अभियान में नवाचार भाता है
उन्नत ग्राम उन्नत शहर में विज्ञान लाकर
नमामि गंगे का अभियान चलाना है
नवाचार सभी के जीवनमें सहजता लाता है
रचनात्मक नवाचार से जुड़ा विज्ञान
आम आदमी के लिए जीवन में सहजता लाता है
डिजिटल भारत मेक इन इंडिया
जैसी थीम जनहित में लाता है
भारत वैज्ञानिक दृष्टिकोण के फलक को
विकसित करने नए आयाम बनाता है
सतत विकास और नए तकनीकी नवाचारों
के माध्यम के साथ उन्नति दिखाता है
*****
प्रकृति 'माँ'
रचनाकार- ASTHA PANDEY ' VI', SAGES TARBAHAR BILASPUR
हे माँ प्रकृति, हमें माफ करना
तुझे ही हमारा, है इंसाफ करना
सब कुछ तो मां हमको तूने दिया
बदले में तूमने ना कुछ भी लिया
धरती भी ये तेरी, अंबर भी तेरा
तेरी हवा है, ये सागर भी तेरा
तेरा हर पत्ता है तेरी हर डाली
तेरा ही तो सब है, तेरी हरियाली
हम तो गए हैं, अब खुद में ही खो
चिंता माँ तेरी,किसी को ना हो
तरक्की के नाम, हमने ये क्या किया
प्रदूषण ही तेरी झोली में भर दिया
ना फिक्र, किसी को पड़ी कल की
इस हवा की ना वन की ना ही जल की
सागर को हमने है मैला किया
चारो ओर, हमने धुआं भर दिया
अब तो हैं, बस तुझसे इतना ही कहना
नादानी हमारी, तू और अब ना सहना
हमने फैलाई है ये गंदगी
इसे तो हमे ही है, अब साफ करना
हे माँ प्रकृति हमें माफ करना
तुझे ही हमारा है इंसाफ करना
*****
भाई भाई
रचनाकार- ASTHA PANDEY, CLASS - 6, SCHOOL NAME - SWAMI ATMANAND SHEIKH GAFFAR GOVERNMENT ENGLISH MEDIUM SCHOOL TARBAHAR
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
ये सभी है भाई भाई
व्यर्थ ही क्यों ये लड़ते झगड़ते
व्यर्थ ही क्यों ये ईर्ष्या करतें
एक खून है एक ही जान
भारत देश का ये सम्मान
व्यर्थ ही ना तुम लड़ा करो
आपस में ना तुम लड़ा करो
मिलजुल कर तुम एक बनों
भारत की तुम शक्ति बनों.
*****
स्वच्छता
रचनाकार- कु. सुषमा बग्गा, रायपुर
दो एकम दो
हाथ रगड़ कर धो
दो दूनी चार
सफाई से कर प्यार
दो तिया छ:
साफ कपड़ों में रह,
दो चौक आठ
सफाई का पढ़ पाठ.
दो पंजे दस
नाख़ून साफ रख
दो छक्के बारह
स्वच्छ घर हमारा
दो सत्ते चौदह
घर में लगाओ पौधा
दो अठे सोलह
साफ रखों चोला
दो नमें अट्ठारह,
स्वच्छता का नारा
दो दहाई बीस
याद कर गीत.
*****
क्रोध अहंकार दिखावा छोड़
रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
क्रोध अहंकार दिखावा छोड़
सहज़ता जोड़ो क्रोध के उफ़ान में
अपराध हिंसा हो जाती है
घर बार जिंदगी तबाह हो जाती है
अपने आपको सहज़ता से जोड़ो
सहज़ता में संस्कार उगते हैं
सौद्राहता प्रेम वात्सल्य पनपता है
मां लक्ष्मी सरस्वती का आशीर्वाद बरसता है
जिंदगी की दुर्गति की शुरुवात
अहंकार रूपी विकार से होती है
अहंकार दिख़ाने को छोड़ो, परिणाम
मानसिक असंतुलन की शुरुआत होती है
जिंदगी को वात्सल्य रूपी सुयोग्य मंत्रों से जोड़ो
क्रोध रूपी विकार को छोड़ो
अपने, आपको विनम्रता से जोड़ो
इस मंत्र से भारत के हर व्यक्ति को जोड़ो
*****
चंदा मामा अब कुछ कहना
रचनाकार- अनिता मंदिलवार सपना
हर रात वही सपना देखे
यादें लेकर सो जायेगी.
सफेद और उज्जवल चाँदनी
लगते मोती आसमान की
नन्हा बालक देखता उसे
दिखे ज्यों ज्योति पुंज ज्ञान की
तारों संग वो यहाँ मिलकर
गीत कोई जरूर गायेगी
हर रात वही सपना देखे
यादें लेकर सो जायेगी.
भरे चंदा शीतल चाँदनी
रात का वह घनघोर साया
नीलगगन में असंख्य तारे
प्यारी छवि है न्यारी छाया
सोया है संग मुन्ना राजा
नहीं बदली कोई छायेगी
हर रात वही सपना देखे
यादें लेकर सो जायेगी.
खुश रहो का संकेत देते
सदैव ही तुम हँसते रहना
रोज रोज अब पुकारूँ तुम्हें
चंदा मामाअब कुछ कहना
चंदा के झूले पर चढ़कर
वही निंदिया फिर आयेगी
हर रात वही सपना देखे
यादें लेकर सो जायेगी.
*****
चंदा मामा
रचनाकार- अनिता मंदिलवार सपना
हे चंदा मामा ! फिर आयेंगे
सफेद उज्जवल चाँदनी
लगे आसमान की मोती
नन्हा बालक देखता तुझे
उसे पता है कल फिर आयेंगे
प्यारे प्यारे चंदा मामा
तेरी परछाई दिखे पानी में
दुआ मेरी है चमकता रहे तू
काली बदली भी घिर आयेंगे
रात का घनघोर साया
आकाश में चाँद जगमगाया
प्यारी छवि तेरी न्यारी छाया
गोल चकोर चंदा फिर आयेंगे
चाँद की शीतल चाँदनी
नीलगगन में चमके तारे
रोज रोज मैं तुम्हें पुकारूँ
यादें लेकर सो जायेंगे
सदा ही तुम हँसते रहते
खुश रहने का संकेत देते
हर रात मैं सपना देखूँ
तारे संग जगमगायेंगे
*****
चाँद
रचनाकार- अनिता मंदिलवार सपना
साँझ की बेला
पक्षियों का झुंड
पेड़ो के झुरमुट से
झाँकता कौन
छुप छुप खेले
बादलों की ओट से
कभी इधर कभी उधर
चाँद देखो
कैसे चमकता
जैसे कोई
मुखड़ा निखरता
इतने सलोने
तुम हो चंदा
मनमोहक कोई परिन्दा
नयना हटे न
तेरे मुखड़े से
तभी तो किया तुझे
कैमरे में कैद
तुम हो स्वच्छंद
चंदा मेरे
मुझको है पता
बादलों के पार
तेरी छवि है प्यारी
तुम अप्रतिम हो
छुप छुप खेले
चाँदनी संग
आँख मिचौली
ऐसे ही रहना
सबके दुलारे
चंदा प्यारे चंदा प्यारे.
*****
चंद्रयान 3 सफल लैंडिंग
रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
विकसित भारत के शंखनाद का क्षण हमने देखे
नए भारत के जयघोष का पल हमने देखे
इतिहास बनते देख जीवन धन्य होते देखे
मुश्किलों के महासागर को पार करते देखे
जीत के चंद्रपथ पर चलने को देखें
अनेक मानवीय धड़कनों के सामर्थ्य को देखें
नई ऊर्जा नए इतिहास को देखें
नई चेतना नए भाग्य को देखें
अमृतकाल की प्रथम प्रभा को देखें
भारत के उदयमान भाग्य को देखें
सफ़लता की अमृतवर्षा को देखें
धरती पर संकल्प कर चांद पर साकार होते देखे
*****
चन्द्रयान -3
रचनाकार- श्रीमती सालिनी कश्यप, बलौदाबाजार
बचपन में सुना था चन्दा है मामा,
आज इसे सही मान रहा जमाना.
जब धरती माँ ने चन्दा मामा को राखी पहनाया,
ऐसे लग रहा मामा ने खुद इस रिश्ते को निभाया.
अब तीज का त्यौहार है आ रहा,
जिसमें उपहार स्वरूप विक्रम तसवीरें है ला रहा.
हो गया दुनिया में भारत का नाम,
इसके लिये सभी वैज्ञानिकों को सलाम.
इसरो की मेहनत है रंग लाई,
आज पूरे देशवासियों की आंखें है भर आई.
खुशी इतनी है जिसका नही कोई ठिकाना,
भारत की ताकत को पूरी दुनिया ने है माना.
सभी देशों ने झंडा में चाँद बनाया,
भारत ने तो चाँद पे ही झंडा लहराया.
आज पूरे भारत के लिए है गर्व का दिन,
इतिहास ऐसे ही बनता है एक दिन.
आज भारत ने भी दुनिया में इतिहास बनाया,
जब चन्द्रयान-3 ने भारत का झंडा चाँद पर लहराया.
*****
क्रांति गीत
रचनाकार- अशोक कुमार यादव मुंगेली
अब हमें चाहिए क्रांति.
दुःख और पीड़ा से शांति.
अब ना कोई, बेबस होगा.
अब ना कोई, अकेला रहेगा.
मिलकर सभी काम करेंगे.
जग में ऊँचा नाम करेंगे.
मिट जाएगी मन की भ्रांति.
अब हमें चाहिए क्रांति.
दुःख और पीड़ा से शांति.
बहते आँसूओं को, पोंछना है.
गरीबों को गले, लगाना है.
अब ना कोई, बेसहारा होगा.
अब ना कोई, खामोश रहेगा.
सबके चेहरे में आएगी कांति.
अब हमें चाहिए क्रांति.
दुःख और पीड़ा से शांति.
*****
भारत बुलंदियां छूकर नए आयाम बनता है
रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
भारत वैज्ञानिक दृष्टिकोण के फलक को
विकसित करने नए आयाम बनाता है
सतत विकास और नए तकनीकी नवाचारों
के माध्यम के साथ उन्नति दिखाता है
भारत नवाचारों का उपयोग करके
ऐसी तकनीकी विकसित करता है
जनता के लिए सस्ती सुगम सहजता लाए
ऐसा नवाचार विज्ञान नए भारत में लाता है
उन्नत भारत अभियान में नवाचार भाता है
उन्नत ग्राम उन्नत शहर में विज्ञान लाकर
नमामि गंगे का अभियान चलाना है
नवाचार हरआदमी के जीवन में सहजता लाता है
रचनात्मक नवाचार से जुड़ा विज्ञान
आम आदमीके जीवन में सहजता लाता है
डिजिटल भारत मेक इन इंडिया
जैसी थीम जनहित में लाता है
*****
रक्षाबंधन
रचनाकार- अशोक कुमार यादव मुंगेली
दुकानों में सजी है रंग-बिरंगी रेशमी राखी.
नग-नगिनों, चंदन, मौली और मीनाकारी.
बाजार में दिखने लगी रक्षाबंधन की रौनक.
खरीदने आ रही हैं बहनें मन मगन सम्यक.
यह बंधन भाई-बहन के पवित्र प्यार का है.
जीवन पर्यंत रक्षा करने और दुलार का है.
चेहरे पर मुस्कान लिए आँखों में चमके नूर.
सफलता, उन्नति मिलेगी, बाधाएँ होंगी दूर.
सावन पूर्णिमा के दिन मनाएँगे श्रावणी पर्व.
भाई की कलाई में सुन्दर रक्षा सूत्र का दर्प.
माथे पर गोल तिलक है स्वीकृति का सूचक.
बहन को खुश रखने भाई बनेगा महारक्षक.
देवी लक्ष्मी ने राखी बाँधने की शुभारंभ की.
गरीब स्त्री की रूप धारण करके गमन की.
पाताल लोक में राखी बाँधी राजा बलि को.
वरदान माँग वापस लाई भगवान विष्णु को.
चक्र चलाते श्रीकृष्ण को उँगली में चोट लगी.
द्रौपदी ने साड़ी का पल्लू फाड़ कर बाँध दी.
कृष्ण ने कृष्णा को रक्षा करने का वचन दिया.
चीरहरण के समय लाज बचाई वचन निभाया.
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दीपक
रचनाकार- राधेश्याम सिंह बैस, बेमेतरा
दीपक की आवश्यकता अनेक, इस दिव्य दिवस की प्रकाश पर.
है महत्व भारी, बनता प्रभाव धरती से आकाश.
हुआ खेद तब दीपक को, जब इन पर उठता कथन.
संजोये प्राचीन संस्कृति को, जब करते लोग इन पर मंथन.
पीड़ा कितनी बार सहकर, अस्तित्व मे जब आता है.
तैयारी होती तब उनकी, कीमत सभी जब समझ पाता है.
जननी इनकी मिट्टी है, रहती मिट्टी रूप मे.
प्रकाश फैले दूर -दूर तक, उस समय जब अंधेरा रहे भयंकर कूप मे.
भरकर बोरे मे गधे की पीठ से, देते औजारो से कूट पीट.
कर दी जाती कण -कण अलग, बैठा दी जाती मेरी शीट.
डालकर पानी उसमे, मिल जाती मिश्रण से शांति.
गुँथा उसमे मै मैंदे की तरह,न आती किसी को विपत्ति.
चाक पर रख घुमाते, दिया जाता जब रूप मेरा.
कुम्हार अपने कुशलकरों से,विद्यमान रूप तुम मुझे उकेरा.
लगा अब हो दुखो का अंत, ढककर घासपुसो मे आग.
सहकर तप्त रहा दिनों तक, शेष बचा न कुछ भी पाग.
सहकर धूल धुँआ से,वेदना सही दिन -रात.
शांत होती जब अग्नि, रूप देखकर कहता क्या बात.
जलना है तो दीपक की तरह, महकों तो हो फूल.
कायाकल्प हो पत्थरो मे, विनय करें परिवार औऱ कुल.
*****
मेरी बहना
रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू', गरियाबंद
बँधी वो प्रीत की डोरी, कलाई याद आती है.
रसीले स्वाद हो जिसकी,मिठाई याद आती है.
कहूँ कैसे भला उसको, कि कितनी प्रीत है उससे.
कभी भाई बहन की ये, लड़ाई याद आती है.
नहीं ख्वाहिश अगर पूरी, जरा सी रूठ जाती थी.
रखे वो ख्याल जब मेरी,दवाई याद आती है.
कभी मैं खेल में हारा,चिढ़ाती औ सताती थी.
मगर हर जीत में मेरी,बधाई याद आती है.
बिना उसके यहाँ घर में, नहीं पल भी रहा जाता.
चली क्यों दूर वह मुझसे, जुदाई याद आती है.
*****
भाई-बहन का पावन पर्व राखी
रचनाकार- अशोक कुमार यादव मुंगेली
किसी की बहन नहीं है, किसी का ना भाई है.
राखी बाँधेगी कौन?, सूनी हाथ की कलाई है.
बाजार से रेशमी राखी, खरीद लाई है बहना.
थाली में सजा कर बैठी, प्रेम का सुंदर गहना.
सुबह से नहा कर, नए कपड़े पहन बैठा है भाई.
बार-बार, लगातार राह देख रहा है नजरें गड़ाई.
कैसे मनाऊँ मैं राखी?, किसका करूँ इंतजार?
दुःख में आँखों से बरस रही आँसूओं की धार.
बहन सोच रही सबके होते हैं भाई, मेरा क्यों नहीं?
किसे पुकार कर आवाज दूँ?, मन की बातें कही.
भाई बैठा है गुमसुम, उदास मन, सिसकियाँ लेते.
मेरा कोई नहीं है दुनिया में जो मुझे राखी बाँधते?
ये दिव्य रक्षा सूत्र भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है.
अपनी बहन की सुरक्षा, साथ निभाने की सीख है.
पावन है, मनभावन है, रक्षाबंधन का यह त्यौहार.
सदियों तक अमर रहेगा, भाई-बहन का यह प्यार.
*****
नशा नाश का मूल है
रचनाकार- सागर कुमार शर्मा, राजिम
नशा नाश का मूल,सदा करता बरबादी.
फिर भी करते भूल,देश की है आबादी.
पाते हैं संताप, रोग से है घिर जाते.
होते जीवन मुक्त,प्राण भी देख गँवाते.
संकट में परिवार,कलह का कारण बनता.
करता दुर्व्यवहार,नशे में होकर ठनता.
मार पीट आक्रोश,नशा लाती बेहोशी.
रहे कुंद मस्तिष्क, देख फिर होता दोषी.
उजड़ रहा परिवार,नशा है रंग दिखाए.
फैल विकट संजाल,अरे अब कौन बचाए.
गुटका खैनी आज,युवा है नित्य चबाते.
पीकर मदिर शराब, खून भी ये कर जाते.
बच्चे मरते भूख, रहे जी चूल्हा ठंडा.
पत्नि संग विवाद,चले फिर लाठी डंडा.
डूबा होते कर्ज, नहीं जब लौटा पाते .
होते जब मजबूर,गले फंदा लटकाते..
अपराधों का मूल,यही कारण बन जाता.
लूट अरु बलात्कार,नशा ही सब करवाता.
होता विवेक शून्य,मनुज बस होश गँवाता.
डगमग जीवन नाव,नेक पथ बिसरा जाता.
करें नशा का त्याग,युवा अब देश बचाओ.
नूतन पीढ़ी साज,नया आदर्श बनाओ.
बनें विवेकानंद, करे गौरव सब तुम पर.
सागर का संदेश,नशे की छोड़ो डगर.
*****
फलों की संख्या बताओ
रचनाकार- टीकेश्वर सिन्हा 'गब्दीवाला', बालोद
एक आम और दो थे केले.
तीन नीबू इनसे मिलने चले.
इनके मेहमान बने सेब चार.
और फिर मिले पाँच अनार.
छः अमरूद का हुआ आगमन.
सात अंगूर भी आए बन ठन.
आठ संतरों को मिली खबर.
नौ चीकू को आ जाएँ लेकर.
दस पपीते फिर इन्हें ढूँढते आए.
मिलकर वे खूब ठहाके लगाए.
बच्चों ! अब जरा दिमाग लगाओ.
चलो फलों की संख्या बताओ.
*****
मेरे वो शिक्षक
रचनाकार- युक्ति साहू, कक्षा 8वी, स्वामी आत्मानंद शेख गफ्फार शासकीय, अंग्रेजी माध्यम विद्यालय, तारबाहर, बिलासपुर
मेरे वो शिक्षक जिनकी :-
जिनकी हर डांट के पीछे,
रहता उनका प्यार ही है.
जिनकी हर फटकार के नीचे,
हमारी खुशियों की क्यारी है.
जिनकी वह कठोरता,
हमें मुश्किलों से लड़ना सिखाती है.
लेकिन जिनकी वह सरलता,
हमारे दिल में घर कर जाती है.
कभी जो हमें डांटते मारते तो,
कभी पीठ सहलाते हैं.
उन्हें अच्छा कहूं या बुरा कहूं,
यें मुझे समझ ना आते हैं.
परंतु इन सब के पीछे,
है मात्र एक ही वजह.
कि उनके छात्र तरक्की करें,
सफल रहे वे हर जगह.
हम तो छोटे हैं अभी,
कुछ भी नहीं जानते हैं.
डांट कर भी पढ़ाते तभी,
हमारे शिक्षक हमारे शुभचिंतक है.
सत्य का साथ देना तो,
हर शिक्षक सीखाता समान.
लेकिन बात ग़लत की हो तो,
उठाना सिखाते तीर -कमान.
जिन्हें देखकर करते हैं,
धरती अंबर भी सलाम.
ऐसे महान शिक्षकों को,
मेरा दिल से प्रणाम.
*****
शिक्षक
रचनाकार- आंचल वर्मा, बेमेतरा
शिक्षक है एक ऐसा नाम,नहीं लगा सकता कोई दाम.
गांव, शहर, समाज के साथ ही, राष्ट्र निर्माण है जिसका काम.
'बच्चों के जो बाल मन में, लाते है शिक्षा का ज्ञान.
लेकर गीली मिट्टी जो गढ़ देते पूरा इसान.
क्या, कब, कैसे, कहाँ शब्द का, कर देते हैं जो पूरा निदान.
शिक्षक भी एक मानव है,नहीं है पर उसको अभिमान.
रात-दिन की मेहनत में भी, है उसका बस एक ही काम.
'बना सके बच्चे महान, आये फिर जो देश के नाम (काम)
एक लक्ष्य और एक किनारा, जीवन का बस एक ही नारा
पढ़ना-पढ़ाना और सिखाना, बच्चों को मजबूत बनाना.
*****
कुम्हड़ा
रचनाकार- टीकेश्वर सिन्हा गब्दीवाला
मैं गोल मटोल कुम्हड़ा.
हाँ जी तैं बोल कुम्हड़ा.
छानी म करँव अराम.
सुबह ले लेके शाम.
मैं जस ढोल कुम्हड़ा.
हाँ जी तैं बोल कुम्हड़ा.
मैं निक पाचुक सब्जी.
सुवाद मोर गजब जी.
सच मैं अमोल कुम्हड़ा.
हाँ जी तैं बोल कुम्हड़ा.
मैं गोल मटोल कुम्हड़ा.
हाँ जी तैं बोल कुम्हड़ा.
*****
इसरो की टीम महान
रचनाकार- शांति लाल कश्यप, कोरबा
इसरो की टीम महान है, इसरो की टीम महान.
भारत माता की शान है, इसरो की टीम महान.
जग में कर दिया नाम रोशन, हो रहा आज गुणगान.
चन्द्रयान को भेज चांद पर, मचा दिया कोहराम.
वैज्ञानिकों की मेहनत को देखो, दुनिया करती आज सलाम.
भारत माता की जय से, गूंज रहा है हिन्दूस्तान.
इसरो की टीम महान है, इसरो की टीम महान.
भारत माता की शान है, इसरो की टीम महान.
इस धरा में कभी ना हो पाया, इसरो ने कर दिखलाया.
भारत माँ के बेटे बेटियों ने, दुनिया में सम्मान दिलाया.
बात कही है वैज्ञानिकों ने, ग्रंथों में इसका सार है.
शिव शक्ति पाइंट से देखो, चिन्हांकित हो गया स्थान है.
इसरो की टीम महान है, इसरो की टीम महान.
भारत माता की शान है, इसरो की टीम महान.
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सरस्वती शिशु मंदिर
रचनाकार- शांति लाल कश्यप, कोरबा
ना जाने क्यूँ ये शिशु मंदिर अपना घर सा लगता है.
बहन भैया आचार्य मईया दीदी जी परिवार सा लगता है.
ना जाने क्यूँ ये शिशु मंदिर अपना घर सा लगता है.
आते हैं जब हम मंदिर झुकाते शीश चौखट पे.
सरस्वती वन्दना प्रातः स्मरण प्रार्थना करते.
ना दूजा भाव ना द्वेष रहता मन निर्मल सा लगता है.
बहन भैया आचार्य मईया दीदी जी परिवार सा लगता है
ना जाने क्यूँ ये शिशु मंदिर अपना घर सा लगता है.
शिष्टाचार नैतिकता सदाचारी बनें सब हम.
महापुरुषों की गाथाओं से सीखते नेक बातें हम.
शिशु मंदिर की शिक्षा हमें ज्ञान सागर सा लगता है.
बहन भैया आचार्य मईया दीदी जी परिवार सा लगता है.
ना जाने क्यूँ ये शिशु मंदिर अपना घर सा लगता है.
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मैं संघर्ष करूँगा
रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु', शिवरीनारायन
चलूंगा,दौडूंगा,पीछे मुड़कर न देखूंगा
चलता रहूँगा मैं आगे बढ़ता ही रहूँगा.
मैं सँघर्षो से न डरूंगा, न घबराउंगा
मैं सामना करूँगा ,मुकाबला करूँगा.
मेरा अपना आत्मविस्वास मेरे साथ है
मेरा अपना स्वाभिमान तो मेरे हाथ है.
मेरे मन मे दृढ़ता है, संकल्प शक्ति है
मेरी नजर में ही मेरा लक्ष्य,मंजिल है.
मैं लक्ष्य जरूर भेदूँगा, मैं अर्जुन बनूंगा
मैं चिड़िया की आँखों में बाण भेदूँगा.
मैं एकलव्य बनूंगा,मैं कोशिश करूँगा
गुरु के एक मंत्र को आधार बनाऊँगा.
ये सत्य है,तय है, और ये कहा जाता है
जो संघर्ष करता है,वही तराशा जाता है.
जो छीनी हथौड़े से मारक चोट खाता है
वही रोज मंदिरों में श्रद्धा पूजा जाता है.
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गुरु की अद्भुत महिमा
रचनाकार- अशोक कुमार यादव मुंगेली
गुरु बड़ा है जग में सबसे, सुमिरन करूँ मैं नाम.
भवसागर से पर लगाए, बना देता बिगड़े काम.
गुरुवाणी अनमोल रे हंसा, ज्ञान को करो धारण.
पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति, अज्ञान हो अवदारण.
दिव्य प्रकाशमान आत्मा, भटक रही बन निर्जीव.
गुरु सत्संग जिसको मिले, बन जायेगा वो सजीव.
दुनिया माया जाल में बंधे, गुरु की बात नहीं माने.
कर रहा कुकर्म, दुराचार, स्वयं अँधा बन अभिमाने.
जब त्याग दोगे सर्वनाशी घमंड, धन-दौलत की मोह.
तब गुरुवर बचाने आयेंगे, उबारने जगत दुर्गम खोह.
धोकर सभी मन का मैल, ज्ञानी गुरु का ध्यान लगाओ.
गुरु कर्म के लिखा बदल देंगे, सत्कर्म से सुख पाओ.
गुरु मिलने आएगा एक दिन, ढूँढते तुझे तुम्हारे द्वार.
सरल, सुगम पथ बताने, मिट जाएगा मन अँधकार.
शरणागति में मोक्ष प्राप्ति, बार-बार करो गुरु के वंदन.
गुरु के पैरों की धूल को, तिलक लगाओ समझ चंदन.
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बस्ता लेकर आओ
रचनाकार- राजेंद्र श्रीवास्तव विदिशा
फटा-पुराना पहन पजामा,
शहद चाटता भालू .
पहुँच गया विद्यालय अपने
लेकर कच्चे आलू.
टीचर वहाँ लोमड़ी-दीदी
उनको गुस्सा आया.
फिर भी रह कर शांत उन्होंने
भालू को समझाया.
इतने गंदे-बच्चे बनकर
तुम विद्यालय आए.
लेकर आए कच्चे आलू
बस्ता साथ न लाए.
जाओ, तन की करो सफाई
पहले खूब नहाओ.
यूनीफॉर्म पहन कर जल्दी
बस्ता लेकर आओ.
*****
बेटी
रचनाकार- कन्हैया साहू 'अमित', भाटापारा
बेटी मुझको अति मनभावन, मन को भाती सुता सुहावन.
घर आँगन उपवन सा महके, बेटी चिड़िया सी जब चहके.-1
लगे परी सी राजकुमारी, चंचल चपला, अति अनुचारी.
बेटी शीतल जल की धारा, जनकनंदिनी भाग्य सितारा.-2
नेक राह पर चलने वाली, प्रेम पुष्प सा पलने वाली,
सबके मन को भाती है, खुशियों की यह थाती है.-3
संकट से कब यह घबराती! विकट समस्या हल सुलझाती.
बेटी सबसे आगे रहती, कौन सका कह इसकी महती.-4
त्याग, तपस्या, मनभर ममता, सहनशीलता, साहस, समता.
मृदुभाषी मिश्री सी बोली, भावनीय उर भीतर भोली,-5
बिटिया आँगन की है तुलसी, हिय हितकारी, हर्षित हुलसी.
सति, सावित्री, सुषमा, सीता, बेटी गायत्री, गौ, गीता.-6
हैं ये तितली के पंखों सी, करतल ध्वनि, घंटा शंखों सी.
कोमल फूलों सी मुस्काती, गहन उदासी दूर भगाती.-7
बिटिया बिन यह जगत अधूरी, खुशियाँ घर की इनसे पूरी.
बनती सबकी सबल सहारा, अंतर्मन आशा उजियारा.-8
अपने हाथों सदन सजाती, नाता-रिश्ता सहज निभाती.
मन से जोड़े मन का बंधन, सीधी-सादी सुता सुगंधन.-9
बेटी सच में मोती, हीरा, हृदय भावमय राधा, मीरा.
तनया सबका माने कहना, सबसे यही कीमती गहना.-10
पिता सहेली, सविनय, सुषमा, अनुरंजित है सुता अनुपमा.
जन जीवन से रहती जुड़कर, देखे न कभी पीछे मुड़कर.-11
भाव वक्ष में समतल भरती, इच्छा सबकी पूरित करती.
सुबोधिनी, सत, सुभग, सुनीता, पुत्री परपद, परम पुनीता.-12
दयादायिनी होती दुहिता, सुलक्षणा, अति सौम्या, सुहिता.
स्नेह संपदा की अभिलाषी, मनोरमा, मुकलित मृदुभाषी.-13
बिटिया ममता की है झपकी, सुंदर सुखमय दुखहर थपकी.
पहले-पहले कभी न लड़ती, छेड़ा फिर तो थप्पड़ जड़ती.-14
कोंपल सा तनया तन नरमी, अंतर्मन पावक सी गरमी.
जग में पावन सुता किशोरी, खुशियों की यह भरी तिजोरी.-15
बेटी, बहना, बहुला, बाला, मानस मन की माणिक माला.
किसलय सी यह नूतन कलिका, सहनशील अति जैसे इलिका.-16
मातु पिता की सदा सहाई, रहती तत्पर काज भलाई.
सेवाभावी अति सुखकरनी, करुणामयी सुता दुखहरनी.-17
बिटिया से ही आशा अतिशय, रहता कभी नहीं है संशय.
अनुकरणी यह होती अनुपम, वंशागत अनुयायी उत्तम.-18
घर भर की यह राजदुलारी, चलती-फिरती यह फुलवारी.
जब-जब बेटी मुस्काती है, धरती पर रौनक छाती है.-19
बेटी बाबुल की परछाई, अनुगामी करती अगुवाई.
परंपरा की शुभ संवाहक, स्वस्थ समझ की सत संग्राहक.-20
समझ नहीं बिटिया को बोझिल, लगती अमरैया की कोकिल.
सबको अपना हिस्सा बाँटे, सहर्ष जनहित कंटक छाँटे.-21
सुता शुभाकांक्षी, शुभकामी, शोभावती, शिष्ट शुभगामी.
कुलतारण परिजन कल्याणी, वेणु मधुर सम इनकी वाणी.-22
बहे आपगा सी आनंदी, तनुजा नहीं किसी की बंदी.
आगे बढ़कर करती अगवानी, मानवता हित अति वरदानी.-23
सुहासिनी सुंदर संरचना, सबसे बढ़िया बिटिया, बहना.
पिता चहेती, चपला चंचल, अडिग कर्म पथ रहती अविचल.-24
जीवन जीती सदा सुगमता, भर-भर रखती मन में ममता.
प्रेम सुधा धन पीहर परिमल, बहती धारा परहित निश्छल.-25
बिटिया घर भर करती गुंजन, लगता आलय मनहर मधुवन.
होती सुता हमारी लज्जा, इनसे ही है जग की सज्जा.-26
पथिक प्रगति की पुत्री प्रतिपल, कदम साहसी रखती अविरल.
मंगलकरनी यह मनमोहक, बनती कभी न पथ अवरोधक.-27
पुत्री पवित्र पूजा-पाठी, दान धर्म की लालित लाठी.
परम हितैषी परिजन प्यारी, करती काज नियम अनुसारी.-28
समझो कभी न कोमल काया, होती हैं सुता महामाया.
पार स्वयं ही करती अड़चन, मन से कभी नहीं रख अनबन.-29
बिटिया समझो मानस गंगा, डाले फिर क्यों जगत अडंगा.
होती इनकी शान निराली, बेटी दूर करे बदहाली.-30
शक्ति स्वरूपा, सक्षम सबला, कहना नहीं इन्हें अब अबला.
विद्या, वैभव विधिवत वर्धन, करती तनुजा मिथ्या मर्दन.-31
कुहके कोयल सी घर कानन, मंगलकारी बिटिया आनन.
हैं शुभकारी, सगुन सुशीला, प्रेम पुलक उर, नहीं प्रमीला.-32
बेटी मुलाधार सुख सुविधा, दुहिता नहिँ कोई भी दुविधा.
छोड़ो पिछड़ी सोच संकुचित,
है अनिवार्य आत्मजा समुचित.-33
बिटिया छूती हर ऊँचाई, भरकर चंचलता चतुराई.
सतत सकुच सह सुविचारी, अतिशय आदर की अधिकारी.-34
होती बिटिया मैहर बुलबुल, रहती पीहर चपला चुलबुल.
बनती सबकी सुता चहेती, होती घर परिवार सचेती.-35
जब-जब देखो बिटिया मुखड़ा, हट जाता है झट से दुखड़ा.
तनुजा तन-मन से संतोषी, करुणा दया प्रेममय कोषी.-36
सबसे आगे सुता बढ़ाओ, बिटिया को भी खूब पढ़ाओ.
दो-दो कुल की मान बढ़ाये, परिपाटी का पाठ पढ़ाये.-37
बेटी से ही चले घराना, बेटी मन का मधुर तराना.
हो आत्मीय अखिल अभिवादन, 'अमित' आत्मजा सुख आच्छादन.-38
बेटी-बेटा एक समाना, भेदभाव को तुरत मिटाना.
बहुत जरूरी इनकी शिक्षा, संस्कारपूर्ण नैतिक दीक्षा.-39
जितना ज्यादा स्नेह मिलेगा, उतना ही सौभाग्य खिलेगा.
शारद कृपा कलम को थामा, लिखा 'अमित' यह बेटीनामा.-40
*****
मेरे सपने मेरे अपने
रचनाकार- गरिमा बरेठ, कक्षा - आठवीं, स्वामी आत्मानन्द शेख गफ्फार अंग्रेजी माध्यम शाला तारबहार बिलासपुर
सबके ही होते हैं सपने,
जो होता है उनका सपना.
होता है किसी- किसी का सपना सच,
नहीं होता है सबका सपना सच.
सपना पूरा करना है तो,
सबसे पहले हटाओ अपनी बुराइयों को.
सभी सोचते हैं बड़े होने पर,
भरेंगे ऊंची उड़ान.
पर भर न पाते उड़ान,
बुरी आदतों की वजह से.
सब है चाहतें,
मेरा सपना दिपक सा जले,
मोती सा चमके, चाँद सा सजे.
पर हो न पाता,
बहुत लोगो का सपना सच.
कुछ सपने तो अहसास है दिलाते गलतीयों की,
दुबारा ना करना ऐसी गलती.
सपने तो सपने ही होते है,
ज्यादातर पूरे नहीं होते है सपने.
सब की तरह है एक मेरा भी अपना सपना,
जिसे मुझे ही पूरा करना है.
करना है मुझे अपने माॅ - बाप और,
मेरे देश का नाम रौशन.
मैंने है ठाना अच्छे से पढ़ने का,
ताकि जीवन में कभी न पड़े मुश्किल सपने पूरे करने का.
काटों पर चलु, धुप से लड़ू,
पर सपने पूरे करने का जोश अपने मन मे भरू.
सपने तो आते ही है नींद में सभी को,
पर वो है नहीं असली सपना.
असली सपना तो वो है,
जो हमें पूरा करना होता है.
*****
संघर्ष के ऊपर मेरा विचार
रचनाकार- शिखा मसीह, 8वीं, स्वामी आत्मानंद शेख गफ्फार सरकारी अंग्रेजी माध्यम स्कूल तारबहार बिलासपुर
संघर्ष सभी के जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण है
हम खुश किस्मत है कि भगवान ने हमें संघर्ष जैसी शक्ति प्रदान की है
संघर्ष को हमें सही दिशा में इस्तेमाल करना चाहिए जिसे हमे जीवन में सफलता मिलती है
संघर्ष के द्वारा हम देश की भी मदद करते हैं
संघर्ष के साथ-साथ हम वक्त के साथ भी चलना सीखते हैं
संघर्ष हमें बड़ी सी बड़ी मुश्किलों का सामना करना सिखाती है
संघर्ष से हमें उच्च शिक्षा प्राप्त होती है
संघर्ष से हमें हमारे जीवन में सफलता मिलती है
संघर्ष हमें हमारे जीवन में बहुत कुछ सिखाती ह
संघर्ष हमें हमारे सपनों की मंजिल तक पहुंचता है
हमारे सपनों की मंजिल तक पहुंचने वाली कुंजी है संघर्ष
*****
शिक्षक दिवस 5 सितंबर को यह संकल्प लेना है
रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
भारत को मजबूत स्थिर शांतिपूर्ण देश
के रूप में विकसित करना है
शिक्षा क्षेत्र में भारत को
विश्वगुरु बनाना है
जब देश की आजादी के 100 वर्ष पूरे होंगे
आजादी के अमृत काल तक भारतीय शिक्षा
नीति सारी दुनिया को दिशा देने वाले दिन होंगे
ये ख्वाब हमारे संकल्प सामर्थ्य से पूरे होंगे
अमृत काल में हिंदुस्तान की शिक्षा नीति की
विश्व प्रशंसा करे, यहां ज्ञान लेने आएं,
ऐसा हमारा गौरव हों,विश्व कल्याण की
भूमिका निर्वहन करने में भारत समर्थ होंगे
भारतीय युवाओं में प्रतिभा की कोई कमी नहीं
बस गंभीरता से उसे पहचानना है
शिक्षण को स्वांदात्मक बहुआयामी
आनंदमयी अनुभव बनाना है
छात्रों में मूल्यों को विकसित करने शिक्षकों
की महत्वपूर्ण भूमिका रेखांकित करनाहै छात्रों के
आचरण को सुधारने विपरीत परिस्थितियों
का सामना करने आत्मविश्वास जगाना है
*****
शिक्षक: एक भविष्य निर्माता
रचनाकार- अशोक कुमार यादव मुंगेली
ज्ञान की पाठशाला में, जो सबको पढ़ाई करवाता है.
वो शिक्षक ही तो है, जो बगिया में फूल खिलाता है.
सादे कोरे कागज में, शब्द लिखकर चित्र बनाता है.
बच्चे कच्ची मिट्टी के समान, उन्हें आकार दे जाता है.
स्वयं चलता दुर्गम राह में, शिष्यों के लिए सुगम बनाने.
स्वयं तपता है भट्टी में, कच्चे लोहे से औजार बनाने.
सड़क के जैसे पड़ा है, विद्यार्थी आते-जाते अनजाने.
चले जा रहे रफ्तार से, मुसाफिर के मंजिल है सुहाने.
एक लक्ष्य, एक राह, मन में पैदा करता है सदा जुनून.
हौसलों को बुलंद कर, अनुभव की चक्की से पीसे घुन.
शिक्षादूत, ज्ञानदीप, शिक्षाविद् ही दूर करता है अवगुन.
जीत दिलाने अध्येता को, त्याग देता है चैन और सुकून.
कर्म औषधि जड़ी-बूटी को, अज्ञानियों को खिलाता है.
ज्ञान गंगा प्रवाहित कर, ज्ञान अमृत सबको पिलाता है.
अनुशासन और अभ्यास से, सबको सफलता दिलाता है.
विद्यार्थियों को अधिकारी, डॉक्टर, इंजीनियर बनाता है.
*****
सेठ का पेट
रचनाकार- परवीनबेबी दिवाकर, मुंगेली
एक सेठ,निकला था पेट,
चलते थे लाठी को टेक.
सेठ इतना भारी भरकम,
चल ना पाते थे, हरदम.
फिर सेठ को सूझी, एक उपाय.
क्यों न में कसरत करू.
रोज कसरत करते थे.
पेट नहीं अब बढ़ते थे.
कसरत से आई ताकत.
सेठ ने फिर दौड़ लगाई.
*****
जैसा बोओगे वैसा काटोगे
रचनाकार- श्याम सुंदर साहू, धमतरी
जो बोओगे वही उगेगा.
चाहे सींचो कितना उसको,
काँटों से न फूल खिलेगा.
बो के पेड़ बबूल का प्यारे,
आम का फल तो नहीं लगेगा.
किये जो कर्म खराब हैं तूने,
काँटा बनकर वही चुभेगा.
जो बाँटोगे वही मिलेगा,
आज नहीं तो कल मिलेगा.
दुगुना होकर आएगा वापिस,
फल का प्रतिफल अवश्य मिलेगा.
दुःख बाँटोगे दुखी रहोगे,
सुख बाँटोगे सुखी रहोगे.
देकर दुनियाँ को ग़म तुम प्यारे,
तुम भी तो ग़मगीन रहोगे.
गहरे पैठ के पानी से तुम,
मोती ख़ोज के लाओगे.
गर बाँटोगे दुनियाँ में खुशियाँ,
खुशियाँ अपार तुम पाओगे.
क्रोध का बीज बोकर शांति कैसे पाओगे
घृणा का बीज बोकर प्रेम कैसे पाओगे
जो दोगे वही मिलेगा
आज नहीं तो कल मिलेगा.
बुरे कर्म से डरो प्यारे
ईश्वर सब देख रहा
क्रिया का प्रतिक्रिया अवश्य होगा
आज नहीं तो कल होगा
*****
मेरे विद्यालय
रचनाकार- श्याम सुंदर साहू, धमतरी
मेरे विद्यालय से बेहतर विद्यालय है कहां
बच्चों के भविष्य को संवारना,
उनके सपनों को पंख देना,
ऐसे समर्पित शिक्षक है जहां,
मेरे विद्यालय से बेहतर विद्यालय है कहां.
एक के बाद एक शिक्षक का कक्षा में आना,
अपने विषय को बेहतर पढ़ाना,
ऐसे कर्तव्यवान शिक्षक है जहां,
मेरे विद्यालय से बेहतर विद्यालय है कहां.
तन को स्वस्थ और मन को पवित्र रखने योग सिखाते,
खेल खेलाकर एक बेहतर खिलाड़ी बनाते,
ऐसे योग और खेल शिक्षक है जहां,
मेरे विद्यालय से बेहतर विद्यालय है कहां.
जो बच्चे विद्यालय नहीं आते,
उनका घर-घर जाकर समझाते,
पढ़ना कितना जरूरी है,
यह बात उन्हें बतलाते,
ऐसे निष्ठावान शिक्षक है जहां,
मेरे विद्यालय से बेहतर विद्यालय है कहां.
बच्चों को आगे बढ़ने के लिए हमेशा प्रेरित करना,
उन्हें जीवन की चुनौतियों से लड़ना सीखाना,
ऐसे प्रेरणा स्रोत शिक्षक है जहां,
मेरे विद्यालय से बेहतर विद्यालय है कहां.
परीक्षा के समय घर-घर जाकर पढ़ाना,
उन्हें पढ़ने के लिए सुबह चार बजे उठाना,
ऐसे ऊर्जावान शिक्षक है जहां,
मेरे विद्यालय से बेहतर विद्यालय है कहां.
अपना पर्यावरण है कितना प्यारा शिक्षक हमें बतलाते,
पेड़ लगाना कितना जरूरी है हमें वे समझाते,
ऐसे प्रकृति प्रेमी शिक्षक है जहां,
मेरे विद्यालय से बेहतर विद्यालय है कहां.
*****
पानी का मूल्य हर मानव को समझाना है
रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
पानी बचाने की ज़वाबदेही निभाना है
पानी का मूल्य हर मानव को समझाना है
पानी को अहम दुर्लभ मानकर
अपव्यय करने से बचाना है
पानी की कमी का चिंतन छा रहा है
जलवायु परिवर्तन चेता रहा है
जल बचाओ जीवन बचाओ जल बिना
मानव जीवन अधूरा बता रहा है
पानी के स्त्रोतों की सुरक्षा स्वच्छता अपनाने
के लिए जी जान से ध्यान लगाना है
पानी बचाओ जीवन बचाओ
यह फॉर्मूला मूल मंत्र के रूप में अपनाना है
पानी बचाने की ज़वाबदेही निभाना है
हर मानव को ज़ल संरक्षण संचयन अपनाकर
पानी बचाकर जनजागृति लाना है
अगली पीढ़ियों के प्रति ज़वाबदारी निभाना है
बिना पानी ज़िन्दगी का दर्द क्या होता है
पानी अपव्यय वालों तक पहुंचाना है
पानी का उपयोग अब हमें
प्रसाद की तरह करना है
*****
सबका जीवन है अनमोल
रचनाकार- चांदनी साहू, कक्षा 9वी, शा हाई स्कूल बोडरा विकासखंड मगरलोड धमतरी
सबका जीवन है अनमोल,
कितना प्यारा है जीवन का यह मोल,
कहीं भूलना मत इंसानियत,
इंसान की इंसानियत नहीं तो,
इस जीवन का क्या है मोल,
सबका जीवन है अनमोल,
कितना प्यारा है जीवन का यह मोल,
कितना प्यारा और सबसे प्यारा है
इस नन्हे से जीवन का मोल,
जीवन में हमेशा याद तुम्हें रखना
मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म है
सभी की हमेशा मदद करना,
सबका जीवन है अनमोल,
कितना प्यारा है जीवन का है मोल,
इंसान की इंसानियत पर कभी शक नहीं करना,
सबका जीवन है अनमोल
कितना प्यारा है जीवन का यह मोल.
*****
चीकू राम और मीकूराम
रचनाकार- सुधारानी शर्मा, मुंगेली
चीकू राम चीकू राम
कितने अच्छे चीकू राम.
रोज सुबह ये उठते हैं.
ब्रश मंजन भी करते हैं.
रोज स्कूल जाते हैं.
वहां पढ़ाई करते हैं
नहीं लड़ाई करते हैं.
साफ सुधरे रहते हैं
ताजा भोजन करते है
होमवर्क भी करते हैं.
खेलकूद में अच्छे है
स्कूल के अच्छे बच्चे हैं
जल्दी से सो जाते हैं
फिर जल्दी उठ जाते हैं
खुश होकर स्कूल आते हैं
चीकूराम, चीकूराम
कितने अच्छे चीकूराम
मीकूराम,मीकूराम
कितने गंदे मीकूराम
हर बात में आलस करते हैं
सुबह जल्दी नहीं उठते हैं.
घर में ना पढ़ाई करते हैं.
स्कूल में लड़ाई करते हैं.
घर में कार्टून देखते हैं.
कपड़े गंदे रखते हैं
फास्ट फूड ही चखते है
देर रात तक जगते हैं
तो,मीकूराम,मीकूराम
कितने गंदे मीकूराम
कौन बनेगा चीकू राम.
हम बनेंगे चीकू राम
कौन बनेगा मीकूराम
नहीं बनेंगे मीकूराम
*****
मेहनत का फल
रचनाकार- सुधारानी शर्मा, मुंगेली
अच्छे कर्मो का मैने बीज कभी बोया था
लहु पसीना बहाकर मैने उसे सींचा था.
उत्साह नेकी देखभाल की खाद उसमे थी डाली
वो छोटा सा पौधा था और मै उसका माली.
आंधी अंधड और गर्म थपेडो से मैने उसे बचाया
दिन रात को एक समझ आंखो मे ख्वाब सजाया.
धीरे धीरे वह बड़ा हुआ,उसकी छाया मे मै छोटा
नव कलरव नव किसलय मे उसने मुझे समेटा.
धीरज का फल मीठा होता ,मैने कभी सुना था
मेहनत का अपना मीठा फल मैने आज चखा था.
भूल गई मै अपनी सारी पीड़ा हताशा और अपमान
मेरे ही अपने सुकर्मो ने जग मे बढाया मान.
बात पते की कहती हूं कभी ना करना किसी का अपमान
वो सदा खड़े हो देखता अपनी लाठी तान.
पडती जब उसकी लाठी तो होता मानव मूक
सदा नेक राह अपनाओ ,ये उपाय बड़ा अचूक.
मेहनत,ईमानदारी से सद्कर्मो की नदिया सदा बहावो
शांति, सुकून से अपनी मेहनत का मीठा मीठा फल खाओ.
कभी सुनहरा मिले जो अवसर सदकमो के बीज ही बोना
मनुज तन अनमोल मिला है व्यर्थ इसे ना खोना.
*****
जिंदगी में उतार-चढ़ाव एक खेल है
रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
जिंदगी सुखों और दुखों का
बहुत ही ख़ूबसूरत मेल है
जिंदगी में उतार-चढ़ाव
बस एक ख़ूबसूरत खेल है
दुख भी शरमा जाएगें
यह कैसा माहौल है
जियो अगर दुखों को खुशी से
जिंदगी में यह सबसे यह अनमोल है
कभी ढेरों खुशियां आती है
कभी गम आते बेमिसाल है
घबरा जाए तो चुनौतियां से
वह भी क्या इंसान है
जीना सिखा दे बुरे वक्त में
वही असल इम्तिहान है
इम्तिहानो से भरी जिंदगी यही
खूबसूरत मिसाल है
सिर्फ सुख या सिर्फ दुख ही
जीवन में यह सरासर बेमेल है
जिंदगी में उतार-चढ़ाव होते रहें
बस यही तो खूबसूरत खेल है
जिस प्रकार दो पहियों से
पटरी पर दौड़ती रेल है
बस उतार-चढ़ाव जिंदगी के
खूबसूरत खेल है
*****
अंतरिक्ष - यात्रा
रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र, लखनऊ
आओ! हम योजना बनाएँ
अंतरिक्ष - यात्रा पर जाएँ
चंदामामा के घर ठहरें
धमाचौकड़ी वहीं मचाएँ
नए - नए रहस्य जानेंगे
मस्ती से छुट्टियाँ बिताएँ
सौरऊर्जायान क्षितिज पर
बड़े मजे से खूब उड़ाएँ
शून्य गुरुत्वाकर्षण में हम
नवोन्मेष करके दिखलाएँ
वहाँ न कूड़ा - कचरा फेंकें
मोहक वातावरण सजाएँ
मिट्टी, पानी, खनिज धातुएँ
कई शीशियों में भर लाएँ
वहाँ से देखेंगे धरती को
हरियाली पर बलि - बलि जाएँ
मंगल ग्रह अगला पड़ाव है
अपनी बस्ती नई बसाएँ
गगनयान 'इसरो' भेजेगा
यात्रियों में नाम लिखाएँ
*****
नटखट कन्हैया
रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू', गरियाबंद
ठुमक–ठुमक आए कन्हैया,
देखो नटखट है नंदलाल,
छम–छम छम घुँघरू बाजे,
पैरों में सुंदर साजे,
गोकुल की गलियों में घूमे,
घुँघरालू है उसके बाल.
रोम–रोम जब हर्षित होवे,
गूँजे आँगन किलकारी,
मनमोहक ये दृश्य सलोना,
छुप कर देखे गोपियाँ सारी,
नजर उतारे मातु यशोदा,
अचरज हो कर करे सवाल.
मधुर–मधुर मुरली की धुन,
सुन गैय्या रंभाये,
बाल रूप की छवि निराली,
आँखों में छप जाये,
मदमस्त मगन हो मेरे कान्हा,
बैठे कदंब की डाल.
करे उपाय लाख कंस,
भय सर में मंडराये,
बकासुर कृष्णा के आगे,
अपना प्राण गँवाये,
जन –जन हृदय वास मुरारी,
रखे सभी का ख्याल.
*****
मेरा देश
रचनाकार- पलक, कक्षा 7, उच्च प्राथमिक विद्यालय सबदलपुर, सहारनपुर
मेरा देश भारत देश.
सुंदर और सलोना देश.
सोने सी मिट्टी वाला,
चांदी से पानी वाला,
मेरा देश भारत देश.
सुंदर और सलोना देश.
शिक्षा और विज्ञान से नाता,
नई नई खोजे हैं लाता,
चंदा को छूता है हर दिन,
संकल्प इसका मंगलयान,
इससे बढ़ती मेरी शान,
बसती इसमें मेरी जान,
मेरा देश भारत देश.
सुंदर और सलोना देश.
साफ़ स्वच्छ है परिवेश,
देता सबको योग संदेश,
मिलकर रहना सिखलाता,
पूरी दुनिया से है नाता,
चलता सबके आगे आगे,
सबको ही तो प्यारा लागे,
सब देशों में न्यारा देश.
मेरा देश भारत देश.
*****
पेड़
रचनाकार- कुमारी टीकेश्वरी वर्मा, कक्षा 8 वीं , शा पूर्व माध्यमिक शाला तर्रा , विकासखंड धरसीवां
प्यारा मेरा पेड़ है,
धूप लगे तो छाया दे.
भूख लगे तो फल देता,
प्यारा मेरा पेड़ है.
झूला झूले इसपे चढ़के,
कभी नहीं सताता है.
फल इसके मीठे-मीठे,
सुंदर सुंदर फूल है.
पत्ते देखो बड़े निराले,
प्यारा मेरा पेड़ है.
*****
चंदा मामा
रचनाकार- शशिकांत कौशिक, बिलासपुर
चंदा मामा दूर से, देखे हमको घूर के.
आओ कभी हमारे घर, बैठे हो मगरुर से.
कभी बढ़ते कभी घटते हो,
फिर भी तुम अकड़ते हो.
एक दिन पूरा दिखते हो,
एक दिन किससे छिपते हो.
या भागे से फिरते हो, अपने किसी कुसूर से.
आओ कभी हमारे घर, बैठे हो मगरुर से.
बात भले मेरी तू न मान,
भेज दिया हमने चंद्रयान.
दक्षिण ध्रुव पर रोवर उतरा,
बढ़ गया भारत का अभिमान.
अब तो नीचे उतर आओ, आसमान सा गुरुर से.
आओ कभी हमारे घर, बैठे हो मगरुर से.
*****
चन्द्रयान -3
रचनाकार- श्रीमती सालिनी कश्यप, बलौदाबाजार
बचपन में सुना था चन्दा है मामा,
आज इसे सही मान रहा जमाना.
जब धरती माँ ने चन्दा मामा को राखी पहनाया,
ऐसे लग रहा मामा ने खुद इस रिश्ते को निभाया.
अब तीज का त्यौहार है आ रहा,
जिसमें उपहार स्वरूप विक्रम तस्वीरें है ला रहा.
हो गया दुनिया में भारत का नाम,
इसके लिये सभी वैज्ञानिकों को सलाम.
इसरो की मेहनत है रंग लाई,
आज पूरे देशवासियों की आंखें है भर आई.
खुशी इतनी है जिसका नही कोई ठिकाना,
भारत की ताकत को पूरी दुनिया ने है माना.
सभी देशों ने झंडा में चाँद बनाया,
भारत ने तो चाँद पे ही झंडा लहराया.
आज पूरे भारत के लिए है गर्व का दिन,
इतिहास ऐसे ही बनता है एक दिन.
आज भारत ने भी दुनिया में इतिहास बनाया,
जब चन्द्रयान-3 ने भारत का झंडा चाँद पर लहराया.
*****
विज़न 2047 नए भारत को साकार रूप देना हैं
रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी, महाराष्ट्र
प्रौद्योगिकी पर जोर देकर
विकास को बढ़ाना हैं
विज़न 2047 नए भारत को
साकार रूप देना हैं
साथ मिलकर महत्वपूर्ण
भूमिका निभाना हैं
संकल्प लेकर सुशासन को
आखिरी छोर तक ले जाना हैं
भ्रष्टाचार को रोककर सुशासन को
आखरी छोर तक ले जाना हैं
सरकारों को ऐसी नीतियां बनाना हैं
भारत को सोने की चिड़िया बनानां हैं
आधुनिक प्रौद्योगिकी युग में भी
अपनी जड़ों से जुड़कर रहना है
प्रौद्योगिकी का उपयोग
कुशलतापूर्वक करना है
भारत को परिवर्तनकारी
पथ पर ले जाना हैं
सबको परिवर्तन का सक्रिय
धारक बनाना हैं
न्यूनतम सरकार अधिकतम
शासन प्रणाली लाना हैं
सुशासन को आखिरी
छोर तक ले जाना हैं
भारतीय लोक प्रशासन को
ऐसी नीतियां बनाना हैं
वितरण प्रणाली में भेदभाव
क्षमता अंतराल को दूर करना हैं
लोगों के जीवन की गुणवत्ता
कौशलता विकास में सुधार करके
सुखी आरामदायक बेहतर
ख़ूबसूरत जीवन बनाना हैं
सुविधाओं समस्यायों समाधानों
की खाई पाटना हैं
आम जनता की सुविधाओं को
अधनुतिक तकनीकी से बढ़ाना हैं
*****
साझा क़दम बढ़ाना है
रचनाकार- जीवन चन्द्राकर'खपरी''दुर्ग
साझा कदम बढ़ाना है.
चंदा में तो पहुंच गये हम.
अन्य ग्रहों में जाना है.
लंबे रेस का हमारा अभियान हो,
जन जन का उत्तम योगदान हो,
दुआ जुटाएंगे ईश्वर से,
और हर मंजिल को पाना है.
साझा क़दम बढ़ाना है
हर प्रयासों का गुणगान करें हम.
हर श्रम का भरपूर मान करें हम.
हौसला कमजोर न होवे,
हम सबको सतत बढ़ाना है.
साझा कदम बढ़ाना है.
*****
सूरज आया
रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा, भोपाल
बड़े सवेरे सूरज आया,
खिले फूल मौसम हरषाया.
चलीं हवाएं महकी महकी,
कोयलिया ने गीत सुनाया.
धूप तेज थी दोपहरी में,
सभी चले बरगद की छाया.
शाम सुहानी आई जैसे,
सौम्य हुई सूरज की काया.
*****
सपने सारे
रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा, भोपाल
सच होंगे सपने सारे,
गर तू हिम्मत ना हारे.
अपने श्रम के दीपक से,
ला जीवन में उजियारे.
जीवन पथ पर चल के तू,
तोड़ेगा नभ के तारे.
उसे सफलता मिलती है,
जो छोड़े आलस सारे.
जीवन के हर सपने को,
सच करना श्रम से प्यारे.
*****
तितली अलबेली
रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा, भोपाल
फूल-फूल संग जम के खेली,
फिर बोली तितली अलबेली.
कितने प्यारे ये गुलाब हैं,
कितने प्यारे फूल चमेली.
तरह-तरह के फूल खिलाते,
ये बगिया है अबुझ पहेली.
रंग सुहाने ले जाउंगी,
बन जाउंगी छैल छबीली.
मुझे देख सब बोल उठेंगे,
तितली मेरी सगी सहेली.
*****
सीखो पढ़ना लिखना
रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा, भोपाल
सीखो पढ़ना लिखना लाली,
जीवन में लाओ खुशहाली.
सबको शिक्षा से जोड़ो जी,
अनपढ़पन को समझो गाली.
अगर नहीं पढ़ना सीखोगे,
सभी कहेंगे तुम्हे मवाली.
पढ़ने से किस्मत की रेखा,
देगी कुर्सी अफसर वाली.
मोटर कोठी देगी शिक्षा,
तेरी होगी शान निराली.
*****
पेड़ की महिमा
रचनाकार- संतोष कर्ष, कोरबा
पेड़ लगाएं पेड़ लगाएं
आओ साथियों पेड़ लगाएं
धरती को खुशहाल बनाएं
पेड़ ना हो तो हम ना होंगे
हमारे वंशज सजा भुगतेंगे
चिड़िया ना होगी
फल भी ना होंगे
हाथी, बाघ, शेर ना होंगे
बंदर मोड़ दिखाई ना देंगे
गर दुनिया में पेड ना होंगे
कारखाने लगाकर क्या कर लोगे
पेड़ लगाकर जीवन लोगे
पेड़ ना हो तो छांव न होगी
पैर जलेंगे, वर्षा न होगी
बंजर धरती, पर्यावरण असंतुलित होगी
पेड़ न लगाओ तो क्या पाओगे
जीवन भर तुम पछतावोगे
चलो मिलकर हम पेड़ लगाएं
इस धरती को स्वर्ग बनाएं
पेड़ लगाएं, पेड़ लगाएं
जीवन को खुशहाल बनाएं
*****
हम जनता सबके मालिक हैं
रचनाकार- किशन सनमुुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
सरकार कानून सब साथ देंगे
बस हमें कदम बढ़ाना है
हम जनता सबके मालिक हैं
यह करके दिखाना है
इसांनियत को जाहिर कर
स्वार्थ को मिटाना है
बस यह बातें दिल में धर
एक नया भारत बनाना है
एकता अखंडता भाईचारा
यह जरूर होगा पर
इसकी पहली सीढ़ी
अपराध को ह्रदय से मिटाना है
कलयुग से अब सतयुग हो
ऐसी युग बनाना है
हम सब एक हो ऐसा ठाने
तो ऐसा युग जरूर आना है-3
पूरी तरह अपराध मुक्त भारत बने
ऐसी चाह बनाना है
भारत फिर सोने की चिड़िया हो
ऐसा भारत बनाना है
सबसे पहले खुद को
इस सोच में ढलाना हैं
फिर दूसरों को प्रेरित कर
जिम्मेदारी उठाना है
ठान ले अगर मन में
फिर सब कुछ वैसा ही होना है
हर नागरिक को परिवार समझ
दुख दर्द में हाथ बटाना है
इस सोच में सफल हों
यह जवाबदारी उठाना है
मन में संकल्प कर
इस दिशा में कदम बढ़ाना है
पूरी तरह अपराध मुक्त भारत बने
ऐसी चाहना है
भारत फिर सोने की चिड़िया हो
ऐसी भावना है
*****
प्रभु श्रीकृष्ण
रचनाकार- अशोक कुमार यादव, मुंगेली
स्वर्ग से उतर आए भगवान विष्णु,
माँ देवकी के गर्भ से लेने अवतार.
युगपुरुष कृष्ण बनकर जन्म लिया,
अत्याचारी कंस का करने संहार.
बालपन में राक्षसों का वध किया,
वृंदावन में सखा संग गाय चराये.
बजाकर मनमोहक सुरीली बाँसुरी,
गोपियों को अपने संग में नचाये.
चौंसठ कलाओं के सर्वश्रेष्ठ ज्ञाता,
द्वापरयुग के आदर्श देव दार्शनिक.
निष्काम कर्मयोगी और स्थितप्रज्ञ,
महान् विश्व गुरु प्रभु द्वारकाधीश.
विराट रूप तीन लोक, चौदह भुवन,
कुरुक्षेत्र में अर्जुन को किया प्रेरित.
त्रिकर्म, जीवन, सुख-दुःख के चक्र,
गीता ज्ञान के गंगा करके प्रवाहित.
यादव वंश के शिरोमणि, कुलभूषण,
युगों-युगों तक भारत में यदुवंशी राज.
आपको जन्मदिन की बधाई हो कान्हा,
हम पर कृपा बना कर देना आशीर्वाद.
*****
जाग,हुआ है नया सबेरा
रचनाकार- जीवन चन्द्राकर'खपरी''दुर्ग
सूरज की सोने सी किरणें,
स्वागत कर रहे हैं, तेरा.
चल जाग,हुआ है नया सबेरा.
चल जाग,हुआ है नया सबेरा.
चहल-पहल है हर गलियों में.
मुस्कान जगी है हर कलियों में.
खुशबू लेकर,चल रही हवाएं,
खग-वृन्द,भौरें गाना गाये.
झूम रहे हैं तृण, पेड़ लताएँ,
नदी जलाशय भी लहरायें.
नभ को नाप रही है चिड़िया,
छोड़कर अपना अपना डेरा.
चल जाग,हुआ है नया सबेरा.
*****
घर भी है एक भगवान
रचनाकार- सलीम कुर्रे, कक्षा 8 वीं, शास. पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, संकुल- लालपुर थाना, वि.ख. लोरमी, जिला- मुंगेली
खुद तो धूप में रहता है.
लेकिन हमको छाया देता है.
गर्मी हो या सर्दी हो,
हमें अंधियारे से बचाता है.
एक जगह खड़ा रहता है,
फिर भी हमें सुरक्षित रखता है.
खुद तो भीगता है पानी में,
लेकिन हम सब को भीगने नहीं देता.
घर भी है एक भगवान,
क्या लेते हैं? क्या देते हैं?पता नहीं चलता.
*****
भोजन
रचनाकार- गौरव पाटनवार, कक्षा -3 री, केन्द्रीय विद्यालय, गोपालपुर कोरबा
सभी संतुलित भोजन खाएं
कुपोषण से मुक्ति पाएं.
चावल, गेहूं, आलू खूब खाएं
कार्बोहाइड्रेट से ऊर्जा पाएं.
मक्खन घी, तेल से सब्जी बनाएं
वसा से शरीर तंदुरुस्त हो जाएं.
प्रोटीन से वृद्धि विकास बढ़ाएं
भोजन में दाल सोयाबीन खाएं.
रोज भोजन में विटामिन अपनाएं
फल के साथ हरी सब्जी खाएं.
रोज तीन लीटर पानी पी जाएं
भोजन में सलाद रोज खाएं.
सभी संतुलित भोजन खाएं
कुपोषण से मुक्ति पाएं.
*****
भारतीय संस्कारों को जीवन में अपनाते रहें
रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
भारतीय संस्कारों को जीवन में अपनाते रहें
सभी जीवो का कल्याण का कार्य करते रहें
किसी के दुखों का कारण न बने
सभी की भलाई निस्वार्थ करते रहें
यह भाव हर मानवीय जीव में रहे
दुनिया में सभी सुखी रहें
जीवन भर सभी के मन शांत रहें
दूसरों की परेशानी में मदद करें
कभी किसी को दुख का भागी ना बनना पड़े
यह कामना हर मानवीय जीवन में रहे
जीवन में किसी जीव को न करें परेशान
ना करने का मंत्र ज्ञान मस्तिष्क में रहे
सभी जीवन में सुखी रहें
दुनिया में कोई दुखी ना रहे
सभी जीवन भर रोग मुक्त रहे
मंगलमय के हर पल के सभी साक्षी रहे
सभी श्लोकों को पढ़कर जीवन में आनंद करें
महापुरुषों के ग्रंथों को पढ़कर
सही रास्ते पर चलकर
सभी में यह सोच भरें
किसी की बुराई और परेशान ना करें
*****
हाथी
रचनाकार- श्रीमती युगेश्वरी साहू, बिलाईगढ़
देखो देखो हाथी आया;
लम्बी-लम्बी सूंड हिलाया.
मोटी-मोटी टाँगे इसकी
छोटी-छोटी आंखे इसकी
गन्ने पत्ती खाता है,
नदी में जाकर नहाता है.
सूंड में पानी भरकर लाता
दर्जी मामा पर फुर्राता
झूमते-झुमते आता है
सबको नाच दिखता है
*****
मछली
रचनाकार- श्रीमती युगेश्वरी साहू, बिलाईगढ़
जल की रानी मछली रानी
लहराती है पानी-पानी
चपटी-चपटी,मोटी-मोटी
पतली-पतली,छोटी-छोटी
चित्ती धारी मछली रानी
सुंदर-सुंदर,प्यारी-प्यारी
भोली-भोली, न्यारी-न्यारी
नहीं रहती है बिन पानी
पंख सुनहरे नित चमकाती
जल की रानी मछली रानी
लहराती है पानी-पानी.
*****
शत शत बार नमन
रचनाकार- भूूपसिंह भारती, हरियाणा
दो अक्टूबर को खूब खिले,
उपवन में दो अनुपम सुमन.
जिनकी महक से महका है,
भारत माँ का पावन आँगन.
बापू गाँधी लाल बहादुर,
भारत के दो अनमोल रतन.
अंग्रेजों से लड़ी लड़ाई,
किए खूब थे आंदोलन.
सत्य अहिंसा के बल पर,
आजाद कराया निज वतन.
जय जवान जय किसान का,
नारा गुंजाया था बीच गगन.
अपने सतकर्मो से दोनों,
देश में लाये चैन अमन.
देश धर्म और संस्कृति पर,
तन मन धन कर गए अर्पण.
नत मस्तक हो करे 'भारती',
इनको शत शत बार नमन !!!
*****
पत्तियाँ
रचनाकार- वसुंधरा कुर्रे, कोरबा
पत्तियाँ तरह-तरह के होती हैं पत्तियाँ
रंग-बिरंगे सुंदर मनमोहक़होती हैं पत्तियाँ
कई रूप रंग आकार के होती है पत्तियाँ
छोटे- बड़े ,लंबे -चौड़े ,गोल- अंडाकार होती है पत्तियाँ
नुकीले, कटीले और धारदार होती हैं पत्तियाँ
एकांतर और जालीनुमा होती हैं पत्तियाँ
नरम -खुरदुरे, चिकनी और गद्देदार होती है पत्तियाँ
खट्टे* मीठे ,कड़वे और नमकीन होती है पत्तियाँ
औषधियां और अनेक सब्ज़ियां बनती है पत्तियाँ
तरह-तरह घर और छतरी बनती है पत्तियाँ
अनेकों जीव -जंतु के बसेरा बनती है पत्तियाँ
प्रकृति की मनमोहक छटा है ये पत्तियाँ
तरह-तरह के होती है पत्तियाँ
*****
तोता
रचनाकार- काव्या दिवाकर, कक्षा - चौथी' ब '
मेरा तोता प्यारा है
जग में सबसे न्यारा है
मीठा - मीठा गाता हैं
मेरा मन बहलाता है
लाल - लाल मिर्च वो खाता है
फिर पेड़ में जा बैठता है
मीठा - मीठा गाता हैं
मेरा तोता प्यारा है
जग में सबसे न्यारा हैं.
*****
पेड़ भी है दानी
रचनाकार- सलीम कुर्रे, कक्षा 8 वीं, शास. पूर्व माध्य. शाला बिजराकापा न, संकुल- लालपुर थाना, वि.ख. लोरमी, जिला- मुंगेली
इन पेड़ों को देखो. इन पेड़ों को देखो.
कितना सुंदर फूल खिला है.
आओ-आओ यहाँ देखो,
कितना सुंदर फूल खिला है.
गाओ यहाँ. नाचो यहाँ.
झूम-झूम के गाओ यहाँ.
पेड़ों में भी है जान.
इन पेड़ों में भी है ज्ञान.
इनके माध्यम से जीते हैं यहाँ,
इनसे ही एक उम्मीद है हमारी.
इनसे ही मिलती है शुद्ध हवा,
ये पेड़ भी है एक दानी.
क्या लेते हैं? क्या देते हैं?
इनसे ही पूरी होती है जरूरतें सारी,
इनसे ही मिलती है जरूरत की सारी समानें.
ये पेड़ भी एक दानी है.
*****
प्यारे बप्पा
रचनाकार- उर्मी साहू, कक्षा - 6, विध्यालय - स्वामी आत्मानंद शेख गफ्फार शासकीय अंग्रेजी माध्यम विद्यालय तारबहर बिलासपुर
गणपति बप्पा आते हैं,
हर साल खुशियाँ दे जाते है.
पसंद है उनको मोदक, लड्डू,
जो उनको सदा ही भाते है.
मिलकर साथ मूषक के,
मित्रता की मिशाल दे जाते है.
सीख दिलाई चंद्रमा को,
और कुबेर को भी पाठ पढ़ाया,
जिनको धन की गर्मी थी.
समझ न पाए एक दांत को,
एक कटोरी भात की कमी थी.
भाद्रपद की चतुर्थी में,
सबके घर पर आते है.
कुछ दिन सबके साथ ही रहकर,
फिर वापस हो जाते हैं.
ज्ञान के हो देवता आप,
मेरी यही कामना आपसे.
सदा दिखाना मुझको राह,
आशीर्वाद भी देना मुझको,
कभी न छोड़ना मेरा साथ.
*****
मातृभाषा
रचनाकार- सुचित्रा सामंत सिंह, बस्तर
हिन्द देश के निवासी,
हिंदी हमारी मातृभाषा.
हमारे हृदय के अंतस्थल में,
रची बसी ये भाषा.
नदियों में पवित्र गंगा,
भाषाओं में श्रेष्ठ हिंदी.
स्वर व्यंजन के समावेश से,
रचती,मधुर सुर ताल हिंदी.
हर अक्षर की भिन्न पहचान,
रस घोलती कानों में हिंदी.
अलंकार,रस,छंद समाहित,
अपनेपन की अहसास है हिंदी.
दर्पण सी स्पष्ट है हिंदी,
लेखन उच्चारण समान.
क्लिष्ट नही सरल सुगम है हिंदी,
हर भारतीय की है पहचान.
एक सूत्र में जोड़े रखे,
यह हमारी पावन भाषा है.
भारतीय संस्कृति,संस्कारों की,
प्रतिबिंब हमारी हिन्दी है.
सरल सहज सुगम लचीली,
मातृभूमि की अनमोल धरोहर.
एकता के सूत्र में पिरोए हमें,
हमारी पहचान हिन्दी भाषा है.
*****
हलषष्ठी
रचनाकार- श्रीमती नंदिनी राजपूत*, *कोरबा
भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को,जब हलषष्ठी पर्व आता है.
श्री कृष्ण के भाई बलराम जी का,जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है.
हलषष्ठी को ललई छठ, हरछठ कई नामों से जाना जाता है.
पूरे भारतवर्ष में इसे हर्षोल्लास से मनाया जाता है.
माँ अपने पुत्र के दीर्घायु के लिए यह व्रत रखती है.
अन्न- जल का त्याग करके, पूरे मन से पूजा करती हैं.
छः चुकिया में छः अन्न का भोग चढ़ाया जाता है.
पूजा के उपरांत बच्चे के पीठ पर पोता लगाया जाता है.
हल से उगा अनाज, इसमें रहता है वर्जित.
भैंस का दूध- दही, होता है देव समर्पित.
महिलाएँ साज- श्रृंगार करके सच्चे मन से प्रार्थना करती हैं.
हलषष्ठी माँ खुश होकर संतान सुख से झोली भरती हैं.
हलषष्ठी का पर्व है, बहुत पवित्र और पावन.
इसके पूजा-अर्चना से होता है, खुशियों का आगमन.
*****
डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन
रचनाकार- श्रीमती नंदिनी राजपूत*, *कोरबा
5 सितंबर शिक्षक दिवस,जब यह पावन दिन आता है.
राधाकृष्णन का जन्म दिवस, धूमधाम से मनाया जाता है.
तमिलनाडु के तिरूतनी में, जब हुआ था इनका जन्म.
5सितंबर 1888 को मिला था,भारत को एक अनमोल स्वर्ण.
स्वतंत्र भारत के जब पहले उपराष्ट्रपति व दूसरे राष्ट्रपति बने.
भारतीय संस्कृति के संवाहक,शिक्षाविद,महान दार्शनिक के रूप में कार्य किए.
उनकी प्रथम पुस्तक *द फिलॉसफी ऑफ रविंद्रनाथ टैगोर ने ऐसा मन को भाया.
वर्ष 1954 में उन्हें, भारत रत्न से सम्मानित कराया.
1962 में जब भारत चीन युद्ध में सैनिकों का कदम डगमगाया.
उनके ओजस्वी भाषणों ने, सैनिकों का मनोबल बढ़ाया.
उन्होंने अपना अधिकतम जीवन, एक शिक्षक के रूप में बिताय.
इसलिए अपने जन्म दिवस को, शिक्षक सम्मान के रूप में समर्पित कराए.
एक लंबी बीमारी ने,उन्हें ऐसा तोड़ा.
17अप्रैल 1975 को उन्होंने हमारा साथ छोड़ा.
उस अनमोल हीरे को,हम कभी नहीं भूल पाएँगे.
उनकी याद में हम, शिक्षक दिवस प्रतिवर्ष मनाएँगे.
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भारत देश महान, मेरी आन बान शान
रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
चांद पर पहुंचे अब सूरज की मिलेगी कमान
जी20 सफ़ल हुआ पूरे हुए अरमान
देश विकास में लगा देंगे जी जान
सफ़ल भारत हर नागरिक के अरमान
भारत देश महान, मेरी आन बान शान
धर्मनिरपेक्षता हैं, भारत की पहचान
हर धर्म त्यौहार संस्कृति का, भारत में सम्मान
अनेकता में एकता, हैं भारत विश्व में बलवान
भारत देश है,बुद्धिजीवियों की खान
कोरोना वैक्सीन बना कर,दी नई पहचान
कोरोनावारियर्स बनकर उभरे भारत की शान
अब फिर बनेगा,भारत सोने की खान
आत्मनिर्भर भारत, बनेगा हर क्षेत्र की जान
हर नागरिक को डालना होगा, इस सोच में जान
सोच में ही छुपा है, कुछ कर गुजरने का ज्ञान
भारत देश महान, मेरी आन बान शान
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मेरी हिंदी मेरा अभिमान है
रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु', धमतरी
मेरी हिंदी मेरा अभिमान है
मेरी हिंदी मेरी पहचान है.
हिंदी ही मेरी जान-जहान है
हिंदी ही मेरी राष्ट्र में महान है.
सबकी अलग अपनी जुबान है
पर मेरी हिंदी मेरे लिए शान है.
हिंदी से ही मेरा उपकृत ज्ञान है
हिंदी से स्वर-व्यंजन का भान है.
हिंदी से ही हिंदी साहित्यकाश है
इसी में बना हिंदी का इतिहास है.
आदि,भक्ति ही,इसी से विकास है
और रीतिक आधुनिक भी खास हैं.
दैदीप्यमान कवि सूर्य सा सूरदास हैं
शशि जैसे चमके युग तुलसीदास हैं.
यह हिंदी हमारे देश की सरताज है
हिंदी भाषा की ये होती आवाज है.
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गणपति स्वामी
रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु', धमतरी
गणपति स्वामी तोर महिमा हे भारी
पूजा तोर पहिली होवे रूप हे न्यारी
लम्बा तोर सुंड हे मुसवा के सवारी
सुपा असन कान तोर पेट हवे भारी
बुद्धि के स्वामी तंय वेद के रचईया
अज्ञानी ल ज्ञान के वर तंय देवईया
सुख के वरदानी दुख पीरा हरईया
अंधा के आँखी म जोत के जलईया
रिद्धि अउ सिद्धि के तहीं हर स्वामी
देव दानुज दानव तोर बने अनुगामी
धन-धन्य लक्ष्मी के तहीं ह वरदानी
सुख समृद्धि दाता ज्ञान के तंय दानी
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आओ हिन्दी अपनाए
रचनाकार- सोनल सिंह 'सोनू', दुर्ग
माँ भारती के माथे की बिन्दी,
ऐसी भाषा हमारी हिन्दी.
सरस, सरल और प्राचीन,
प्रमुख भाषाओं में नामचीन.
संस्कृति संस्कारों को देती मान,
हिन्दी भाषा हमारा अभिमान.
परिपूर्णता की परिभाषा है,
उज्जवल भविष्य की आशा है.
हिन्दी सचमुच खास है,
विदेशियों को भी इसका एहसास है.
हिन्दी को मिली नई पहचान है,
नमस्ते भारत कहना हमारी शान है.
इससे झलकता है अपनापन,
सहज बनाती है ये जीवन.
काम काज में इसे अपनाए,
हिन्दी का हम मान बढ़ाए.
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हिंदी से है हिंदुस्तान
रचनाकार- अशोक कुमार यादव, मुंगेली
सरल, सरस भाषा है हिंदी, हिंदी से है मेरी पहचान.
हिंदी हमारी आन-बान-शान, हिंदी से है हिंदुस्तान.
देववाणी संस्कृत की उत्तराधिकारिणी भाषा है हिंदी.
स्वरों और व्यंजनों की वैज्ञानिकता अनुस्वार में बिंदी.
हिंदी मातृभाषा, संपर्क भाषा, राजभाषा, राष्ट्रभाषा.
देश की उन्नति और आशा, जन-जन की अभिलाषा.
हिंदी सबरस की गंगा बहाती, शोभा बढ़ाता अलंकार.
सर्व गुणों की अधिष्ठात्री, शब्द शक्तियों का भण्डार.
सिद्धों और नाथों का ज्ञान अमृत, संतों की अमर वाणी.
सगुण और निर्गुण की भक्ति, प्रेम की धारा बही सुहानी.
हिंदी में तुलसी के राजा राम है, सूर के कृष्ण लीलाधारी.
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी है, वीरांगना झाँसी वाली रानी.
कोहिनूर हीरा जैसी कविता, मानव जीवन की कहानी.
अभिनेता करता है नाटक, अभिनेत्री सौंदर्य अतुलनीय.
आओ हम सभी मिलकर, हिंदी भाषा का सम्मान करें.
गर्व से सिर को ऊँचा कर, हिंदी दिवस पर राष्ट्रगान करें.
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हे विघ्न विनाशक
रचनाकार- संगीता पाठक, धमतरी
हे विघ्न विनाशक !भवानी नंदन
तुम्हें कोटि कोटि सादर वंदन.
हे रम्ब!तुम जीवन के हो अवलम्ब,
शुभ कार्यों का करते हो तुम प्रारंभ.
मात पिता की किये परिक्रमा,
तुम प्रथम पूज्य कहलाते हो.
जो भक्त करे स्तवन तुम्हारा,
तुम विघ्नों से पार लगाते हो.
अद्भुत सृजन के प्रणेता तुम्ही हो,
वेद पुराणों के सर्जनहार तुम्ही हो.
संकट की घड़ी से तुम ही उबारते हो,
जीवन नैया तुम ही पार लगाते हो.
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हिंदी का श्रृंगार
रचनाकार- श्रीमती सुनीता लहरे, बालोद
बिंदी से सजी, हमारी हिंदी.
बिंदी से सजी, हमारी हिंदी.
व्याकरण तुम्हारा सुंदर श्रृंगार,
चिन्हों के है उत्तम प्रकार.
अनंत शब्दकोश के विशाल भंडार.
मधुर मिठास से घुली, हमारी हिंदी
बिंदी से सजी, हमारी हिंदी.
संधि संग तत्भव तत्सम,
रचना साहित्य संग मुहावरे.
कोमल कठोर वीभत्स,
तरह - तरह शब्दपुंज तुम्हारे,
देते हैं सबको निरंतर ज्ञान.
यही है हमारी, हिंदी भाषा की
पहचान.
नलिन सी मनमोहक, हमारी हिंदी
बिंदी से सजी, हमारी हिंदी.
कभी आपस में बहस करे,
छंद और समास.
कहते ही आत्मविभोर होता,
रस ज्ञान का अहसास.
संस्कृत की बेटी, हमारी हिंदी.
देश की आत्मा, हमारी हिंदी.
बिंदी से सजी, हमारी हिंदी.
उपसर्ग, प्रत्यय से कहना.
उपसर्ग,प्रत्यय से कहना.
विशेषता बताए हिंदी की.
विलोम वचन तुम मत देना.
पद,काल बताए हिंदी की.
रचनाकार की भावना,
हमारी हिंदी.
बिंदी से सजी, हमारी हिंदी.
बिंदी से सजी,हमारी हिंदी.
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शहीदों की कुर्बानी
रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
देश की रक्षा करते तुम,
गहरी नींद में सो गए
पूरा भारत परिवार तुमको याद किया,
तुम शहीद हो गए
शहीदों की कुर्बानी से
आंखें सभकी भर आई
वो कल भी थे आज भी हैं
अस्तित्व में चमक छाई
नमन: उनकी शहादत को,
शरीर देख आंखें भर आई
ज़जबा मां का जब बोली,
भारत की रक्षा में सौ बेटे लुटाई
भारत मां के लाल तूने,
फ़र्ज़ अपना अदा किया
जान हथेली पर लेकर,
एक झटके से दुश्मन को ढेर किया
देश की रक्षा में तुम्हारा बलिदान,
देश कभी ना भूल पाएगा
हर देशवासी याद रखेगा तुमको,
वंदे मातरम गाएगा
अब हर परिवार से एक बच्चा,
सेना में जाएगा
देश की रक्षा में,
जी जान से लड़ जाएगा
देश सुरक्षित है तुम्हारी,
खातिर अब सभको समझ आएगा
साथियों में उर्जा भर गए,
दुश्मन अब भारत से थार्रराएगा
तुम जैसे बहादुरों का नाम सुन,
दुश्मन सीमा से भाग जाएगा
हर सीमा पर हमेशा,
भारत का झंडा लहराएगा.
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गणित पर पाँच दोहे
रचनाकार- पोखन लाल जायसवाल, बलौदाबाजार
गणित सरल लगता तभी, रहे अंक जब ज्ञान.
अंक दहाई दसगुना, बढ़ता पा वरदान.
अंक सैकड़ा धारकर, बढ़े सैकड़ों दाम.
अंकों से जुड़कर चलो, करें हजारों काम.
जोड़-घटाना है सरल, मन में हो विश्वास.
किन्तु खूब लगते कठिन, करते प्रथम प्रयास.
गुणा-भाग आता उसे, जिसे पहाड़ा-ज्ञान.
करते नित अभ्यास जो, बनते वो विद्वान.
गणित कठिन उतना नहीं, जितना माने लोग.
दूर भागते बेवजह, बना फोबिया रोग.
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प्यारे गणपति
आया मेरा प्यारा गणपति
मूषक में हो सवार रे,
गोल गाल तेरे गाल है
गोल गोल सा पेट,
भुख लगे तो खाएगा
लाई हूं तेरे लिए
मोदक भेंट.
रूपा के जैसे कान तेरे
मेरी आवाज सुन पाएगा,
सुन ले मेरी आवाज गणपति
मेरे घर तू आएगा.
पिता है तेरे भोले शंकर
माता तेरी पार्वती,
मैं तो उनसे कह दूंगी
आना है तुझे मेरे घर
ओ मेरे प्यारे गणपति.
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चंद्रयान -3
रचनाकार- आशा उमेश पांडेय, सरगुजा
चंदा मामा के घर जाऊंगा,
मैं भतीजा यान.
सफल लक्ष्य में होऊंगा,
नाम मेरा है चंद्रयान.
चंदा मामा के घर से,
लाउंगा सौगात कई.
जल, जीवन ,खनिज संपदा,
खोज लाउंगा चीज नई.
मां धरा को लाकर दूंगा,
राखी का प्यारा उपहार.
लाकर दूंगा अपने भारत को,
चांद पर जीवन के आसार.
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